ब्रेन कैंडी नाम की एक वेबसाइट हैं जहां चुटकुलों की भरमार हैं . वहाँ से एक लिंक पर लम्बी बाते यहाँ दिखी . कुछ भ्रम थे पहले मैने वो दूर किये फिर बात की पोस्ट पर
कथा का सारांश था की एक राज कुमारी की गोद में एक मेढक घुस जाता हैं और उसको कहता हैं की मै राज कुमार हूँ , शापित हूँ , मुझ से शादी कर लो और मेरे बच्चो की माँ बनो , मेरे घर में रहो और मेरी माँ की सेवा करो और मेरी भी
कथा का अंत होता हैं राज कुमारी के रात के खाने से जहां वो मेढक को भुन कर खाती हैं
इंग्लिश में ये कथा यहाँ हैं जिसको जेंडर आधारित जोक माना गया है ,
हिंदी में अली जी इस कथा को अपने ब्लॉग पर दिया हैं और संवाद वहाँ जारी हैं
अली जी कथा की व्याख्या पर बात करना चाहते थे अब ये व्याख्या भी हैं देखिये क्या प्रतिक्रया लाती हैं
चलिये अली जी
आप की शिकायत दूर करती हूँ और कथा पर ही बात करती हूँ
सुयज्ञ जी कहते हैं इतना भारी दंड की कूप मंडूक की भून दो , बहुत ना इंसाफी हैं :)
एक बात पूछनी थी , किसी की गोदी में उछल कर बैठने से पहले पूछना तो बनता हैं ना .
किसी की खाली गोदी देखी और घुस लिये कहां का इन्साफ हैं ,
राजकुमारी पहचान गयी थी देश की राजनीति में , समाज के नियम में उसको न्याय नहीं मिलना हैं सो अपनी अस्मिता की लड़ाई उसको खुद लड़नी हैं और दंड देने का अधिकार भी उसका ही हैं वर्ना क्या पता देश की राष्ट्रपति किये कराये पर पानी फेर दे { अंशुमाला का नया आलेख हैं सन्दर्भ } और मंडूक फिर गोदी एक नयी खोजे . और रहगयी बात समाज की वो तो मंडूक के साथ ही होगा क्युकी मामला हमेशा पूरक का होता हैं , सहन शीलता का होता हैं .
फिर राज कुमारी ये भी जान ही गयी थी मंडूक क़ोई शाप से नहीं बनता अब आज कल राज कुमारियाँ पढ़ लिख जो रही हैं अंध विश्वास से ऊपर उठ रही हैं सो जानती थी अगर ब्याह कर भी लिया तो रहेगा तो मंडूक का मंडूक ही , राजकुमार होता तो गोदी में कूद कर बैठने जैसी ओछी हरकत तो शायद ही करता और
वैसे भी २०११ आते आते तक राज कुमारियों ने "नीली आँखों वाले प्रिंस चार्मिंग " का इंतज़ार बंद कर दिया हैं .
वैसे सुयज्ञ जी निरामिष के प्रवक्ता हैं और मै भी काश राज कुमारी के हाथ में इतनी ताकत होती की वो मंडूक को पहले "वेजिटेबल स्टेट " { "वेजिटेटिव स्टेट "} में लाती और फिर सब्जी बना कर खाती .
"वेजिटेबल स्टेट " {"वेजिटेटिव स्टेट "} में आज भी एक राज कुमारी पड़ी हैं अरुणा शान बाग़ नाम हैं और वो कूप मंडूक जो उसकी गोदी में कूदा था आज कहीं राजकुमार बना घूम रहा हैं
काश इस राज कुमारी ने उसको तभी भुन दिया होता
अली जी व्याख्या पसंद आयी क्या ??
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interesting:)
ReplyDeleteउस कथा पर , मेरे आलेख के प्रथम तीन पैरे मेरी प्रतिक्रिया / मेरा अभिमत / मेरा पक्ष हैं ! अब मित्रों को कथा की व्याख्या करना है , जो , इसे जैसा समझे !
ReplyDeleteमतलब निरामिष के प्रवक्ता मेढक खा सकते हैं यदि उन्हें मेढक को सब्जी में परिवर्तित करने की शक्ति मिल जाय!:)
ReplyDeleteअब ये ब्रेन कैंडी है या ब्रायन कैंडी है,चुटकुला है या क्या है संदर्भ कहाँ है कुछ नहीं पता पर इतना तो है कि इसे एक बार पढते ही अपने तो समझ में वही आया जो अली साहब ने बताया है.बाकी व्याख्या तो सभी की अपनी है और ये ब्लॉगिंग के लिहाज से अच्छा है.
ReplyDeleteवैसे इस मेंढक का आत्मविश्वास देखकर तो लगता है पक्का इसकी पहले भी कई गर्लफ्रेंड रही होंगी जो इसके झाँसे में आ गई होगी लेकिन इस मूर्ख ने वही डायलॉग राजकुमारी के सामने भी दे मारा.
कहाने व्याख्या बहुत पसंद आई। बहस करना मुझे आता नहीं और इन-बिटविन द लाइन्स पढ़ा नहीं जाता।
ReplyDeleteऐसे मेढ़कों का चोखा बनाना तो बनता ही है। और ज़रूरत पड़े तो निरामिषों को सामिष भी बन ही जाना चाहिए।
वैसे हम ज़ूलोजी वाले हैं, बहुत मेढ़कों का सत्यानाश किया है।
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ReplyDeleteइस मुद्दे पर कोई भी पुरुष को मारने, हिंसा की बात नहीं कर रहा है मेढक को मारा जाना तो मात्र संकेत है |
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ReplyDeleteबेशक यह एक जोक है...लेकिन समाज को आईना दिखाने के लिए काफ़ी है..लडकियाँ अब किसी 'बहकावे' या 'दिवास्वप्न' में आने वाली नहीं...'रानी' और 'नौकरानी' का अंतर अब वो समझतीं हैं...और ऐसे किसी भी फंदे में नहीं पड़तीं...जो पुरुष अपनी मानसिक 'मंडूकपने' से बाहर आना नहीं चाहते...उनको दरकिनार कर देने जैसे भुनेपन का ही अहसास दिलाया जाएगा...राजकुमारी को बात समझ में आ गई, एक तो मंडूक को शाप से मुक्ति भी दिलाओ, फिर सारी जिम्मेदारियां भी निभाओ...महज एक खिताब 'रानी' के लिए जो वस्तुतः 'नौकरानी' है...!!
ReplyDeleteअब वो दिन लद गए हैं...
अच्छी पोस्ट..
आभार..
सुज्ञ जी
ReplyDeleteहिंसा व हिंसक मनोवृति के पैरोकार तो हम भी नहीं हैं गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं----
कोई भी जीव धारी एक पल के लिए भी कर्म मुक्त नहीं हो सकता … .. गीता - 18.11
कोई कर्म ऐसा नहीं जो दोष मुक्त हो … .. गीता - 18.48
अतः दोष युक्त कर्म होने पर भी सहज कर्मों को करते रहना चाहिए क्योंकि -----
कर्म के बिना नैष्कर्म्य की सिद्धि नहीं मिलती
नैष्कर्म्य कि सिद्धि ही ज्ञान योग की परा निष्ठा है गीता - 18.50
और ज्ञान परम धाम का द्वार है // saabahar http://gitatatvavigyan.blogspot.in/2012/04/blog-post_05.html
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Deleteपहली हिंसा तो यह हुई कि बिना अनुमति अपनी गाळीचता लिए किसी की गोद में कूद पड़ो क्योंकि वह महिला है. किसी पुरुष या हठधर्मी बालक की गोद में कूदो फिर देखो हिंसा नज़ारा.
DeletePeace,
Desi Girl
यह शायद पहली पोस्ट है जिसपर दोनों पक्षों के पक्ष से सहमत हूँ - हर एक टिपण्णी से सहमत हूँ |
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ReplyDelete:) what follows is a hypothetical analysis only - nothing to do with frogs / princesses / princes ...
ReplyDeleteयह शायद पहली पोस्ट है जिसपर दोनों पक्षों के पक्ष से सहमत हूँ - हर एक टिपण्णी से सहमत हूँ |
original कहानी में तो राजकुमारी ने ( हमारी राष्ट्रपति की ही तर्ज पर ) उस मेंढक को उसके सब अपराधों की सजा से मुक्त कर दिया था, बिना यह देखे की उन्होंने क्या अपराध किया, और उसके शिकारों को कितना संताप होगा इस माफ़ी और सजा मुक्ति से | वही अंशुमाला जी की पोस्ट वाली बात आ जाती है - अपराध किसके प्रति, और माफ़ी कौन दे रहा है ? नृशंस हत्यारों और बच्चियों के बलात्कारियों को भी सजा से मुक्त कर दिया जाना सुन्दर राजकुमारियों द्वारा ( रानी बनने के लोभ में )- अन्याय है |
लेकिन मेंढक को मार कर खा लिया जाना हिंसा करने की सीख देने के लिए नहीं, बल्कि राजकुमारी के एलर्ट होने को चिन्हित कर रहा है यहाँ | यदि कोई जबरन रानी बनाने के स्वप्न दखा कर गोद में कूदना चाहे - तो राजकुमारी क्या करेगी - आज के सन्दर्भों की पढ़ी लिखी खुली आँखों वाली राजकुमारी - यह इन्दिकेट करा गया है इस इन्टरप्रेटेशन में | देख तो हम रहे ही हैं की अरुणा शान्बाघ के साथ क्या हुआ | इस गोद में कूदने वाले दिमागी मेंढकों की बात कर रही हैं रचना जी, असल मेंढक की नहीं |
आखिर यदि राजकुमार को श्राप देकर मेंढक बनाया गया था - तो उसका कोई कारण तो होगा न ? :) | और श्राप देने वाले भी ऐरे गैरे नहीं होंगे - तभी उनका श्राप फलीभूत हुआ होगा :) | तो उसके लिए वह सजा उचित ही रही होगी |
@मंडूक कभी भी "वेजिटेबल स्टेट " में नहीं आना है
यदि मेंढक वेजिटेबल नहीं बन सकता, तो राजकुमार भी मेंढक नहीं बन सकता :) , और यदि राजकुमार मेंढक बन सकता है, तो मेंढक भी सब्जी बन सकता है | या तो दोनों, या एक भी नहीं :) यह सिर्फ काल्पनिक है |
और यदि राजकुमार को किसी इतने ज्ञानी व्यक्ति ने श्राप देकर मेंढक बनाया (ज्ञानी रहे ही होंगे - अन्यथा उनका श्राप फलता ही नहीं ) तो कोई उचित कारण भी रहा ही होगा | तो ऐसे सजा पाए व्यक्ति को राष्ट्रपति (यहाँ राजकुमारी) को माफ़ कर के फिर से पुरुष में परिवर्तित कर देना वैसे भी उचित नहीं है | हाँ - राष्ट्रपति / राजकुमारी (मृत्युदंड की) सजा अवश्य दे सकते हैं यदि वे यह देखें की primary सजा (मेंढक बनाया जाना) मिलने के बाद भी मेंढक जी ने अपने आपराधिक प्रवृत्तियाँ नहीं बदलीं - अब भी लड़कियों की गोद में कूद रहे हैं बिना उनकी अनुमति लिए |
thank you for understanding the punch of the comment
Deleteshilpa ji
Deletegood one ati uttam :)
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Delete"वेजिटेबल स्टेट "हटा कर {"वेजिटेटिव स्टेट "} लिखना पडा पर क्युकी लोग समझ नहीं सके पञ्च को अब लगा हैं दोनों लिख दूँ तो ही बेहतर हैं
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