नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

April 30, 2011

ब्लोगिंग / इन्टरनेट की दुनिया के सम्बन्ध

ब्लोगिंग / इन्टरनेट की दुनिया के सम्बन्ध

आभासी दुनिया हैं ये और यहाँ कौन क्या हैं और क्या दिखता हैं दोनों में अंतर हैं । लेकिन ये तो रीयल दुनिया में भी होता हैं । नकाब तो वहां भी हैं हर चहेरे पर ।

हम आभासी दुनिया में क्यूँ आये हैं ? कारण अनगिनत हैं सबके अपने अपने लेकिन जो लोग आभासी दुनिया में रिश्ते खोजने आये हैं उनसे कुछ प्रश्न हैं
क्या जब आप किसी को भाई/बहिन कहते हैं , बड़ा भाई/बहिन या छोटा भाई/बहिन तो क्या आपके मन में उसके लिये वही स्नेह , सम्मान और पवित्रता हैं जो एक भाई/बहिन के लिये होती हैं ।
क्या आप संबंधो की शुचिता को ध्यान रखते एक बार सम्बन्ध बनाने के बाद । उस से भी ज्यादा जरुरी हैं क्या आप जिस व्यक्ति से संबध बना रहे हैं उस से पूछते हैं की उसके मन में भी आप के प्रति वही भावना हैं या नहीं ? हो सकता हैं वो आप के प्रति आसक्ति रखता / रखती हो , आपके लेखो के प्रति आसक्ति रखता / रखती हो ?? तब क्या उसको भाई बहिन के सम्बन्ध में बंधना उचित हैं ? और ये भी हो सकता हैं आप का अपना व्यवहार , चैट , ईमेल इत्यादि उसके लिये भ्रामक हो रहे हो क्युकी आभासी दुनिया में शब्द दिखते हैं भावना नहीं दिखती , मनो भाव नहीं दिखते ।

क्या जिस तिस को भाई , बहिन , माँ , दीदी इत्यादि संबंधो में बांधना ब्लोगिंग हैं ? संबध बनाने में क्या बुराई हैं कोई नहीं पर बिना परखे बनाना क्या उचित हैं और अगर बना लिये हैं तो उनका बार बार उल्लेख करना पोस्ट में और टीप में कितना सही हैं ???

बहुत से महिला ब्लोगर समय समय पर बताती रही हैं अपने अनुभव लेकिन मुझे हमेशा लगता हैं गलती अपनी हैं रियल दुनिया के संबंधो से भाग कर आभासी दुनिया में आये हैं और इसी लिये यहाँ सम्बन्ध खोज रहे हैं । अपनी निजी बाते एक दूसरे से बाँट कर अपने मन हल्का करने की चेष्टा में उस दूरी को हम ख़तम कर रहे हैं जो आभासी दुनिया का शाश्वत सच हैं । जिनको रियल दुनिया की नजदीकियां जब परेशान करती हैं तो वो आभासी दुनिया में आते हैं लेकिन फिर यहाँ भी आकर वो संबंधो में बांध कर / बंध कर , प्रगाढ़ मित्र बन कर कर एक दूसरे को दंश देते हैं ।

आज ४ ऐसी ही पोस्ट नज़र में आई हैं जो आपस मे जुडी हैं और आभासी संबंधो की सचाई को बयान करती हैं । पोस्ट आप खोज कर पढले । मैने तो केवल रीवीयु दिया हैं अपनी नज़र से ।

April 28, 2011

कभी कभी लगता हैं हम सिर्फ कानून को तोड़ने की बात करते हैं और उसी का समर्थन भी करते हैं ।

कुछ समय पहले सानिया मिर्ज़ा के स्कर्ट पहनने को ले कर हाय तौबा मची थी । उनके महजब के लोग इसको गलत बता रहे थे और उस समय बहुत से लोग , महिला संसथान इत्यादि सानिया के पक्ष में और स्कर्ट के पक्ष में खड़े पाये गए थे

अभी कोई एक हफ्ते पहले बैडमिन्टन संघ ने कहा था की अब बैडमिन्टन खेलने वाली महिला खिलाड़ी को स्कर्ट पहनना जरुरी होगा । इस समय सब इस कानून का विरोध करने लगे हैं क्युकी कहना था की ग्लैमर की नहीं नहीं खेल की बात हो

कभी कभी लगता हैं हम सिर्फ कानून को तोड़ने की बात करते हैं और उसी का समर्थन भी करते हैं ।

April 24, 2011

बाट जोगती सूनी आखें


-उपासना बेहार

भारत में बहुत सारे लोग प्रति वर्ष रोजगार के लिए अपने घर से दूर शहर या दूसरे मुल्कों में जाते हैं। । इसकी वजह से उनके परिवार खासकर उनकी बीबीयों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पडता है। ये समस्याऐं ना सिर्फ पारिवारिक है बल्कि सामाजिक और आर्थिक भी है। आमतौर पर हमारे समाज में ये माना जाता है कि इन बीबीयों को सुख सुविधाओं की कोई कमी नही होती है और उनको जीवन में ज्यादा समस्याओं का सामना नही करना पडता है। इस तरह की महिलाओं को पति वियोग तो सहना ही पडता है साथ ही सामाजिक लांझन,बच्चों की देखभाल,परिवार की जिम्मेदारी के बोझ तले हमेशा दबे रहना पडता है। ज्यादातर महिलाओं की जिन्दगी सालों से इसी ढर्रे पर चली आ रही है।

प्रवा़स आज एक गम्भीर समस्या बन कर उभरी है। इसके पीछे अनेक कारण छिपे हुए है। बेरोजगारी की वजह से लोग जीविकोपार्जन के लिए अपने परिवार को छोडकर दूसरे देश प्रवास करने को मजबूर होते है। इससे उनके और उनके परिवार की आर्थिक स्थिति में थोडा बहुत सुधार तो अवष्य होता है परन्तु उनकी बीबीयों को सामाजिक,मानसिक,सांस्कृतिक दिक्कतों का सामना करना पडता है।

मुस्लिम समुदाय के लोग भी बड़ी संख्या मैं में खाड़ी देशों में रोजगार के तलाश मैं जाते हैं ! अधिकतर मामलों में यह देखा गया है कि निकाह के चंद दिनो बाद ही पति रोजगार के लिए परदेश चला जाता है। फिर साल या कभी-कभी उससे भी ज्यादा समय बाद 3-4 माह के लिए स्वदेश वापस आते है उस दरमियान वे अभिभावको,रिष्तेदारों इत्यादि के प्रति अपने फर्ज को निभाते है,मतलब की पति-पत्नि के पास होते हुए भी उसे ज्यादा समय नही दे पाता। कुछ समय उपरान्त वे पुनः नौकरी में वापस चले जाते हैं,और पीछे छोड जाते हैं अपलक इतंजार करती हुई पत्नि को।

वर्ष २००४ में हैदराबाद शहर में ऐसे कुछ परिवारों में किये गये एक अध्ययन से निकल कर आया कि ये महिलाऐं कई तरह की समस्याओं का सामना कर रही है। उन्हें ना केवल बीबी के रुप में बल्कि एक मॉ,एक बहु के रुप में भी बहुत सारी दिक्कतों से रुबरु होना पड रहा है।

अध्ययन में ये देखा गया कि, संयुक्त परिवार में रहने वाली महिलाओं को आर्थिक स्वतंत्रता नही होती है क्योकि शौहर द्वारा सारा पैसा ससुराल के नाम पर भेजा जाता है और ये पैसा ज्यादातर ससुराल की जिम्मेदारियों को पूरा करने में खर्च हो जाता है,जिससे बीबी-बच्चों की आर्थिक स्थिति में कोई परिवर्तन नही होता उल्टे पति के ना रहने के कारण परेशानीयॉ और बढ जाती हैं। ऐसी महिलाओं को हमेशा आर्थिक तंगी बनी रहती है। जिससे वे अपनी इच्छाओं को दबाती जाती है। पति के साथ ना होने पर समाज -रिष्तेदार और कभी-कभी तो ससुराल वाले उसके चरित्र पर उगंलियां उठाते है। ससुराल में भी वे अपने दिल की बात व शारिरिक/मानसिक दिक्कतों को किसी से कह नही पाती है और उसे अपने अंदर ही दबा देती है। ये महिलाऐं दिनभर घर के काम,बच्चों की देखभाल एवं परिवार की जिम्मेदारियों को निभाने में ही अपना पूरा वक्त गुजार देती है। किसी चीज की आवष्यकता होती है तो सास/ननद आदि जा कर ला देतीं हैं। ये जब तक अतिआवष्यक ना हो जाये घर से बाहर नही निकलती है। घर की चारदिवारी में अपना ज्यादा समय गुजार देती है। बाहर की दुनिया से इनका ज्यादा वास्ता नही रहता है। ये सारी परेशानीयॉ धीरे-धीरे अनेक बीमारियो के रुप में बाहर आने लगती है और ये अवसाद का शिकार हो जाती है।

वही एकल परिवार में रहने वाली महिलाऐं आर्थिक रुप से स्वतंत्र होती है। ऐसे परिवार में आर्थिक सुद्वढता आती तो है परन्तु वे भी पूरी तरह अकेली ही होती है। परिवार के अंदर-बाहर की पूरी जिम्मेदारी उन्ही के सर आ जाती पडती है। बच्चे भी पिता के ना होने पर मॉ की बात सुनते नही है। उनकी बातों की अवहेलना करते है, और कई बार तो गलत राह पर चल पडते है। जिसका दोश भी परिवार/समाज द्वारा उसके ऊपर लगाया जाता हैं।

कई परिवारों में ये देखने में आया है कि इस्लामिक देशों में कार्यरत् शौहर जब वापस घर आते है तो वे ओर संर्किण मानसिकता के हो जाते है, तथा अपनी बीबी पर तरह-तरह की पाबंदियॉ लगाते है। कई बार ये भी देखने में आता है कि आस-पास के लोगों द्वारा झुठी शिकायत करने पर तथा बहकावे मे आ कर बीबीयों के साथ मार-पीट भी करते है।

ज्यादातर महिलाऐं अपनी वर्तमान स्थिति से संतुष्ट नही है। उनका ये मानना है कि परिवार/ससुराल की आर्थिक स्थिति तो बदल रही है परन्तु उनकी मानसिक परेशानियॉ बढ गई है। मानसिक शांति खत्म हो गयी है। वैवाहिक जीवन पर बहुत असर पडा है। शारिरिक संतुष्टी नही होने पर महिलाओं को कई तरह की मानसिक/शारिरिक बीमारीयॉ हो रही है। इनका मानना है कि हमसे तो अच्छी जिन्दगी विधवा महिलाओं की है क्योंकि उन्हें कम से कम पता होता है कि उनके शौहर नही रहें जिससे वे शारिरिक सुख की कामना ही नही करती है या चाहे तो दूसरा निकाह कर सकती है परन्तु हमारे पास तो केवल इंतजार ही एक रास्ता होता है। इन महिलाओं का कहना है कि अब हमारी जिन्दगी तो खत्म हो चूकी है बस बच्चे खुश रहें,अच्छे स्कूल में पढे और अच्छी जिन्दगी जिये।

ये महिलाएं अपनी बच्चीयों की शादी विदेश में कार्यरत् लडके से कराने के बिलकुल पक्ष में नही है। लडके द्वारा विवाह के बाद अपनी बीबी को भी अपने साथ विदेश ले जाने की शर्त में वे अपनी बेटी का विवाह उनसे करने को तैयार होगी । ये महिलाएं नही चाहती कि जिस तरह की मुष्कलातों का सामना वे कर रही है उनकी बेटी भी उन्ही दिक्कतों से रुबरु हो।

इन सभी महिलाओं का कहना है कि अगर भारत में नौकरी मिलेगी तो उनके शौहर वापस आ जायेगें पर भारत देश में अकुष्ल लोगों को ठीक - ठाक नौकरी मिलना बेहद मुष्कील है। सरकार को हमारी समस्या पर ध्यान देना चाहिए। इतने सालों से ये लोग भारत को विदेशी मुद्रा कमा कर दे रहें हैं। अगर सरकार कुछ नही कर सकती तो कम से कम बैक से ऋण लेने में ही कुछ सहुलियत या छुट दें। जिससे ये नौकरी ना सही कोई व्यवसाय शुरु कर लें।

सरकार के साथ-साथ ससुराल/समाज को इस तरह की महिलाओं के प्रति संवेदनशील होने की आवष्यकता है। ससुराल पक्ष को चाहिए कि इनकी इच्छाओं का सम्मान करें आखिर इनके शौहर अपने परिवार की ही जिम्मेदारियों को ही तो पूरा करने अपनी बीबी को छोड सात समुन्दर पार गये है।

(लेखिका सामाजिक कार्यकर्ता है और भोपाल में रह कर विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के साथ काम करती हैं )

April 23, 2011

लिंग अनुपात की बात जब भी हो , बात काम की हो , बात क्षमताओं की हो ।

जनगणना के प्रारम्भिक आंकड़ों के मुताबिक लडको के अनुपात में लड़कियों कि संख्या कम हैंपर इस से नुक्सान क्या हो रहा हैं ?

जब भी अनुपात की बात होती हैं लडके और लड़कियों की तो लोग , सरकार और समाज यही समझाते हैं अगर लडकियां कम होगी तो
शादी करने के लिये लड़की नहीं मिलेगी
नयी पीढ़ी का सृजन करने वाली कोख नहीं होगी

कभी कभी सोचती हूँ
अगर किसी एक जगह
१००० लडके पैदा हो और उसी जगह १००० लडकियां भी पैदा aहो तो अनुपात बराबर हो जाएगा लेकिन क्या वो १००० लडके उन्ही १००० लड़कियों से विवाह करेगे ??? शायद उनमे से कुछ उनकी बहिन हो ??? तब क्या अनुपात सही रखने का ये कारन सही हैं ।

कभी भी जब अनुपात की बात होती हैं तो हम ये क्यूँ नहीं कहते की अनुपात सही होने
से

हाथ और मिल जायेगे अपनी क्षमता के हिसाब से काम करने के लिये

दिमाग और मिल जायेगा कुछ नया सोचने और करने के लिये

अनुपात सही क्या केवल प्रजनन की प्रक्रिया और यौन संबंधो की शुचिता/उपलब्धता इत्यादि के लिये होना चाहिये या इस लिये भी होना चाहिये की प्रक्रति उसको
कैसे सही रखना चाहती हैं । यहाँ कभी साइंस के जानकार क्यूँ नहीं नेचुरल बैलेंस की बात करते हैं । नेचर की बैलान्सिंग को बिगाडने की बात क्यूँ नहीं होती हैं ??


ये ठीक हैं की माँ बनने का अधिकार केवल नारी को दिया हैं प्रकृति ने लेकिन उसके साथ साथ प्रकृति ने उसमे और भी बहुत सी क्षमताये दी हैं लेकिन जेंडर रेश्यो की बात होते ही केवल और केवल एक ही बात सामने आती हैं एक ही सोच उभरती है की माँ कौन बनेगा या समलैंगिकता बढ़ेगी या स्त्रियों के लिये हिंसा बढ़ेगी यानी बलात्कार इत्यादि ।
इस सोच मे कहीं भी स्त्री / नारी की और क्या जरुरत हैं इस पर बात ही नहीं होती ।
एक माँ बनने की क्रिया को छोड़ दे तो कोई भी ऐसा काम नहीं हैं जो स्त्री पुरुष दोनों समान रूप से ना कर सके और प्रकृति ने कोई भेद भाव किया ही नहीं हैं स्त्री और पुरुष मे । दोनों को समान रूप से सब कुछ दिया हैं और इसीलिये अनुपात की बात जब भी हो बात काम की भी , बात क्षमताओं की भी हो । पर नहीं होता हैं खुद महिला भी नहीं करती हैं ।

Gender Ratio Imbalance and Sex Ratio Imbalance एक नहीं हैं पर इनको एक ही समझा जाता हैं । सेक्स शब्द से मति भ्रम उत्पन्न होता हैं जिस के कारण अनुपात में अगर नारी के लिए जाती हैं तो सब को लगता हैं विवाह के लिये मुश्किल उत्पन्न हो जायेगी ।

अगर कभी सोच कर देखे तो बहुत सी जगह एक ही गोत्र मे विवाह की मनाई हैं
वहाँ अगर जेंडर रैशियों सही नारी के तो सोच आपस मे विवाह संभव हैं

एक कन्या को मार कर आप
२ हाथ कम करते हैं
१ दिमाग कम करते हैं
जो आगे चल कर अपनी क्षमता और योग्यता से बहुत कुछ कर सकती हैं और माँ भी बन सकती ।

जैसे
नारी के लिये माँ बनना प्रकृति की देन हैं वैसे ही क्षमता भी प्रकृति कीदेन हैं और क्षमता को ख़तम करने का मतलब हैं तरक्की को ख़तम करना

अगर अनुपात सही करना हैं तो लोगो को समझाना जरुरी हैं की लड़की होने से उनको कोई नुक्सान नहीं हैंआज की सामाजिक सोच लड़की को " खर्चे " से जोडती हैं अगर ये सोच बदलनी हैं तो लड़की को "कमायु पुत्र " की तर्ज पर "कमायु पुत्री " की तरह समाज के सामने रखना होगाजैसे ही लड़की यानी खर्चा की बात ख़तम होगी जेंडर इम्बैलांस भी ख़तम होगा ,

सोच कर देखिये का की सोच बदलने से अगर बात बन सकती हैं तो सोच को बदलने मे नुक्सान क्या हैं

April 22, 2011

एक कहानी और ख़तम हो जाती हैं

स्थान गाज़ियाबाद
एक ५ साल की बालिका का बलात्कार उसका १९ साल का कजिन करता हैं
बालिका की माँ वारदात होते हुए देखती हैं और ईट मार कर बलात्कारी को भागती हैं
बालिका के माता पिता बिरादरी के बड़ो के पास जाते हैं
बड़े बलात्कारी को २ -४ चांटे रसीद कर देते हैं ।
बलात्कारी से माफ़ी मंगवाते हैं
बलात्कारी का पिता १.५ लाख रुपया लड़की मे माँ बाप को देता हैं
बालिका के माँ बाप को सख्त हिदयात दी जाती हैं की बिरादरी और परिवार के मान के लिये वो चुप रहे

बालिका को अगले दिन स्कूल भेज दिया जाता हैं
बालिका को स्कूल मे उलटी होती हैं
टीचर बालिका को कुछ बच्चो के साथ घर भिजवा देती हैं और हिदायत देती हैं की इसकी माँ को साथ लाना क्युकी उलटी की गन्दी साफ़ करनी हैं
बालिका को अकेला छोड़ कर माँ स्कूल जा कर सफाई करती हैं और १ आध घंटे मे वापस आती हैं
बालिका को अवचेतन पाती हैं
पास के अस्पताल ले जाती हैं
अस्पताल वाले भारती नहीं करते हैं सरकारी अस्पताल जाने को कहते हैं
सरकारी अस्पताल ले जाती हैं
अस्पताल वाले " लाने पर मृत " कह देते हैं
पोस्ट मार्टम रिपोर्ट मे मृत्यु का कारण "गला दबाने से " लिखा जाता हैं

पुलिस को कार्यवाही नहीं करती क्युकी किसी ने शिकायत दर्ज नहीं करवाई
मृत्यु के बाद बालिका के माता पिता शिकायत दर्ज करवाते हैं
बलात्कारी को पकड़ा जाता हैं
आरम्भिक जाच से पता चलता है बलात्कारी का पिता भी एक नाबालिक लड़की के रेप मे १४ साल की जेल काट चुका हैं

एक कहानी और ख़तम हो जाती हैं
हम बेकार ही कन्या भुंण ह्त्या की खिलाफत करते हैं
जब मारना यों भी तो पैदा होने से पहले ही मारना अच्छा और बेहतर उपाय हैं

आप क्या कहते हैं कौन दोषी हैं ???

April 20, 2011

मुक्ति और फिरदौस के ब्लॉग की पोस्ट राष्ट्रिये सहारा मे नाम के साथ हैं आज

मुक्ति और फिरदौस के ब्लॉग की पोस्ट राष्ट्रिये सहारा मे नाम के साथ हैं आज
इ पेपर का लिंक हैं यहाँ आधी दुनिया का टैब दबाये और देखे ।
ब्लॉग का लिंक भी दिया हैं
पिछले हफ्ते जब नारी ब्लॉग की पोस्ट बिना नाम के डाली गयी थी तो विरोध सवरूप ना केवल मैने इस ब्लॉग पर पोस्ट दी थी अपितु सहारा कंपनी के दफ्तर मे भी मेल भेजी थी विरोध मे और उसमे वही लिखा था की ये चोरी हैं ।

मेरे छोटे से प्रयास से अगर महिला ब्लोगर का नाम उनकी पोस्ट के साथ आजाये तो मुझे ये प्रयास करते रहने मे ख़ुशी होगी ।

आप सब से आग्रह हैं की अगर आप को लगता हैं आप का नाम होना चाहिये था , आप के ब्लॉग का नाम होना चाहिये था तो आप भी अपनी जगह आवाज उठाये

हम सब ब्लॉग जन चेतना के लिये लिखते हैं और ये हमारा व्यवसाय नहीं हैं , लेकिन अगर किसी को लगता हैं की उसको इसका पैसा मिलना चाहिये तो उसको अखबार के दफ्तर जा कर अपना पैसा मांगना चाहिये । इस और प्रयास करना चाहिये क्युकी जो लोग ये अखबार निकालते हैं उनके पास करोडो रुपया हैं , उनके यहाँ सम्पादक लाखो की तनखा पाते हैं ।

अगर आप विरोध करना चाहते हैं तो पोस्ट मे अखबार के विरुद्ध भी लिखे । चोरी चोरी ही हैं । कोई हमारी चीज़ चुराए और हम अभिभूत हो कर अपने ब्लॉग पर उसकी कटिंग लगा कर चोरी को प्रचारित करे और अहसान टेल दब जाए ये गलत हैं ।

छोटे छोटे प्रयास करते रहे विनम्र आग्रह हैं ताकि भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन की नौबत ना आये

हम जहां जहां हैं वहाँ से आवाज उठाये तो बदलाव निश्चित हैं

April 19, 2011

आखिर लड़कियों के लिए भारत कब बदलेगा? उनके लिए क्रान्ति कब आयेगी? आयेगी बस इतना कर ले

आखिर लड़कियों के लिए भारत कब बदलेगा? उनके लिए क्रान्ति कब आयेगी?

मुक्ति की पोस्ट पढी , अनगिनत प्रश्न । बदलेगा भारत और पहले से बदला भी लड़कियों के लिये । बदलाव तब ही आता हैं और दिखता हैं जब हम खुद बदले । जिस दिन लडकियां खुद को बदलेगी उस दिन भारत बदलेगा लड़कियों के लिये । जिस दिन आप और मै हर लड़की मे ये अलख जगा सकेगे की वो पुरुष से हर बात मे समान हैं इस लिये उसको भी आर्थिक रूप से सक्षम होना हैं । जिस दिन हर नारी एक दूसरी नारी को ये समझा सकेगी की बेटी हो कर पैदा होना अभिशाप नहीं वरदान हैं उस दिन बदलाव दिखेगा ।
अगर एक नारी हो कर आप अपने आस पास के पुरुषो की दस गलतियों पर पर्दा डालती हैं तो अपने आस पास की नारी की १०० गलतियां माफ़ कर के उसके लिये खड़ी होना सीख लेगी उसदिन बदलाव होगा । हर पढ़ी लिखी कमाती नारी अगर अपने आस पास के ५ लड़कियों और नारियों मे शिक्षा और स्वाबलंबन की जागरूकता ले आये तो बदलाव होगा ही नहीं दिखेगा भी ।
और सबसे जरुरी हैं की आप और हम अपने आस पास की महिला को चुप रह कर गलत को सहने की की नहीं "आवाज बुलंद " कर के गलत के खिलाफ बोले की प्रेरणा दे तो बदलाव होगा।
अपने आस पास हम जिस जगह भी किसी भी महिला के प्रति लिंग भेद देखे , जेंडर बायस देखे तो खुद भी बोले और उसको भी समझाये की इसके खिलाफ बोलना जरुरी हैं

हर जनम मोहे बिटिया ही कीजो

हर जनम मे मुझे शक्ति इतनी ही दीजो की जब भी देखू कुछ गलत , उसे सही करने के लिये होम कर सकू , वह सब जो बहुत आसानी से मुझे मिल सकता था /है /होगा ।
चलू हमेशा अलग रास्ते पर जो मुझे सही लगे सो दिमाग हर जनम मे ऐसा ही दीजो की रास्ता ना डराए मुझे , मंजिल की तलाश ना हो ।
बिटियाँ बनाओ मुझे ऐसी की दुर्गा बन सकू , मै ना डरू , ना डराऊँ पर समय पर हर उसके लिये बोलू जो अपने लिये ना बोले , आवाज बनू मै उस चीख की जो दफ़न हो जाती है समाज मे।
रोज जिनेह दबाया जाता है मै प्रेरणा नहीं रास्ता बनू उनका । वह मुझसे कहे न कहे मै समझू भावना उनकी बात और व्यक्त करू उन के भावो को अपने शब्दों मे।
ढाल बनू , कृपान बनू पर पायेदान ना बनू ।
बेटो कि विरोधी नही बेटो की पर्याय बनू मै , जैसी हूँ इस जनम मै ।
कर सकू अपने माता पिता का दाह संस्कार बिना आसूं बहाए ।
कर सकू विवाह बिना दान बने ।
बन सकू जीवन साथी , पत्नी ना बनके ।
बाँट सकू प्रेम , पा सकू प्रेम ।
माँ कहलायुं बच्चो की , बेटे या बेटी की नहीं ।
और जब भी हो बलात्कार औरत के मन का , अस्तित्व का , बोलो का , भावानाओ का या फिर उसके शरीर का मै सबसे पहली होयुं उसको ये बताने के लिये की शील उसका जाता है , जो इन सब चीजो का बलात्कार करता है ।
इस लिये अभी तो कई जनम मुझे बिटिया बन कर ही आना है , शील का बलात्कार करने वालो को शील उनका समझाना है । दूसरो का झुका सिर जिनके ओठो पर स्मित की रेखा लाता है सर उनका झुकाना हैं । वह चूहे जो कुतर कर बिलो मे घुस जाते हैं , बाहर तो उन्हें भी लाना है ।
दाता हर जनम मोहे बिटिया ही कीजो ।

April 18, 2011

क्या वाकई भारत बदल रहा है?


लोग कह सकते हैं कि मैं उस माहौल में निराशा भरी बातें कर रही हूँ, जबकि भारत को क्रिकेट विश्व कप जीते पन्द्रह दिन ही हुए हैं, जबकि हर ओर अन्ना हजारे के समर्थन में भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन का जोश लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है, जबकि सभी लोग ये आशा लगाए हुए हैं कि क्रान्ति होने की उम्मीद अभी बाकी है और उसके बाद सब बदल जाएगा. बच्चों से लेकर बूढ़े तक जोश और आशा से भरपूर है और मैं निराश हूँ.
जी हाँ, मैं निराश हूँ उस जड़ता से जो औरतों को आगे बढ़ने से रोके हुए है, उन अतार्किक परम्पराओं से जो उसे सुखी नहीं होने देतीं, बस सुखी होने का नाटक करने को बाध्य करती हैं, उस झूठी प्रतिष्ठा के दिखावे से, जिसके लिए उसे बार-बार त्याग करना पड़ता है और घुट-घुटकर जीने को विवश होना पड़ता है. मैं ये बातें भावावेश में आकर नहीं कह रही हूँ, बल्कि, खुद से जुड़ी कुछ लड़कियों के जीवन में पिछले दिनों घटी घटनाओं पर गहन विचार-विमर्श के बाद कह रही हूँ. मैं उन लड़कियों के बारे में ज्यादा नहीं बता सकती, पर इतना ज़रूर है कि वो हिन्दुस्तान की उन कुछ भाग्यशाली लड़कियों में से एक हैं, जिन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलता है.
जिस समस्या की बात मैं कर रही हूँ, वो कुछ लोगों को समस्या लग ही नहीं सकती क्योंकि उनके अनुसार यदि माता-पिता ने लड़कियों को बाहर पढ़ने का मौका दिया, तो लड़कियों का भी ये कर्त्तव्य बनता है कि वे उनकी आज्ञा का पालन करें और उनकी इच्छा से विवाह कर लें. लेकिन क्या यह एक विडम्बना नहीं कि लड़कियों को बाहर पढ़ने दिया जाय, उन्हें हर तरह की छूट दी जाए, लेकिन उनकी जो सबसे ज़रूरी और प्राकृतिक सी बात है विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण, उस पर पूरा नियंत्रण बनाए रखा जाए. ये सोच लिया जाय कि पढ़ने वाले बच्चों को अगरचे तो किसी से प्यार करना ही नहीं चाहिए और अगर भूले से हो भी गया तो शादी की बात तो बिल्कुल नहीं सोचनी चाहिए, यदि यह अंतरजातीय विवाह है तब तो इससे बड़ा पाप और कोई है ही नहीं.
मैं जिन दो लड़कियों की बात कर रही हूँ, उनके साथ ऐसा ही हुआ. अपनी पढ़ाई के दौरान उन्हें प्रेम हो गया. उनमें से एक लड़की ने तो अपने घर में कुछ भी ना बताते हुए सिर्फ़ इस डर से माता-पिता की इच्छा से विवाह कर लिया कि अगर घर-खानदान में उसके प्यार की बात मालूम हो गयी तो उसकी छोटी बहनों की शादी में अडचनें आ सकती हैं. दूसरे मामले में लड़की ने अपने प्रेमी के बारे में घर में बताया और उससे विवाह की इच्छा जताई. बस, फिर क्या था. घर में बवाल हो गया. लड़की को तरह-तरह से इमोशनली ब्लैकमेल किया जाने लगा. उसे अपराध बोध करवाया जाने लगा, 'हमने तुम्हारे ऊपर इतना विश्वास किया, तुम्हें इतना पढ़ाया-लिखाया और तुमने इतना बड़ा धोखा दिया' 'तुम्हें अपने प्रेम के आगे माँ-बाप की इज्जत की परवाह नहीं है. लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे?' 'लड़का अपनी जाति का होता तो कह देते कि हमने खुद ही ढूँढा है. दूसरी जाति वाले से ब्याह करवायेंगे तो सबको पता चल जाएगा कि लड़की ने अपने मन से पसंद किया है' 'सबलोग यही कहेंगे कि और भेजो लड़की को बाहर पढ़ने' वगैरह-वगैरह. मुझे मालूम है कि वो लड़की अपने माँ-बाप का कहना मानकर उनकी पसंद के लड़के से शादी कर लेगी क्योंकि जिस लड़के से वो शादी करना चाहती है, उसके घरवाले तो तैयार हैं, पर लड़का चाहता है कि बिना किसी विरोध के शादी हो. लड़की भी माँ-बाप की प्रतिष्ठा के लिए बड़े से बड़ा त्याग करने को तैयार है.
यहाँ सवाल यह उठता है कि माता-पिता की प्रतिष्ठा अधिक बड़ी है या बच्चों की खुशी. आखिर समाज और उसके नियमों को हमने अपनी सुविधाओं के लिए बनाया है, तो ये नियम बदल क्यों नहीं सकते. लड़का-लड़की दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हैं, दोनों अपने पैरों पर खड़े हैं, फिर सिर्फ़ इसलिए उनकी शादी का विरोध कि अपनी जाति वाले क्या कहेंगे ? और बाकी समाज प्रेम-विवाह करने के कारण लड़की पर लांछन लगायेगा- ये सब कहाँ तक सही है? माँ-बाप क्यों बच्चों के प्रेम को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लेते हैं? ये माता-पिता क्यों इस बात को स्वीकार नहीं करते कि उनकी बेटी भी एक इंसान है, उसे भी प्यार हो सकता है. अगर वो अपनी बेटी को वास्तव में प्यार करते हैं तो उसके प्यार को स्वीकार करने में क्या समस्या है? आखिर कब तक हम समाज के इन सड़े-गले नियमों के अनुसार चलते रहेंगे? जब लड़कियाँ अपने जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण निर्णय नहीं ले सकतीं, तो उनके लिए क्या बदला है? आखिर लड़कियों के लिए भारत कब बदलेगा? उनके लिए क्रान्ति कब आयेगी?

April 16, 2011

राष्ट्रीय सहारा ने नारी ब्लॉग का आलेख बिना उल्लेख के छापा




नारी ब्लॉग की पोस्ट

आज के समय मे संस्कार , रीति रिवाज के नाम पर कन्यादान करके आप खुद वैवाहिक रीति की शुचिता को नष्ट करने का आवाहन देते हैं

को राष्ट्रिये सहारा ने बिना पोस्ट का उल्लेख दिये छापा हैं मैने विनीत उत्पल जी से खुद एक हफ्ते पहले फ़ोन पर बात की थी और उन्होंने आश्वासन दिया था की कोई भी पोस्ट लेखक के नाम के साथ ही छपेगी लेकिन अब तो ब्लॉग का नाम भी हटा दिया गया

इसे कहते हैं चोरी और सीना चोरी

शर्म करो शर्म करो
तस्वीर आभार blogsinmedia.com

Link

April 15, 2011

ये जबरिया व्रत.... वंदना की पोस्ट और उस पर आये कमेन्ट से उपजे प्रश्न

इस पोस्ट का मुद्दा था ???
क्या जो शिक्षित स्त्रियाँ व्रत उपवास रखती हैं वो वास्तव मे शिक्षित हैं या नहीं हैं ??
क्या जो शिक्षित स्त्रियाँ व्रत उपवास रखती हैं वो गलत करती हैं ??
क्या शिक्षित स्त्रियों को व्रत उपवास नहीं रखना चाहिये अन्यथा उनकी शिक्षा ही प्रश्न चिन्ह हो जायेगी ??
क्या व्रत उपवास रखना ढकोसला हैं और शिक्षा के प्रचार प्रसार से ये ढकोसला ख़तम हो सकता हैं ??
जो कमेन्ट आये हैं उनमे जो प्रश्न उठाए गये हैं उन से मुद्दा बनता हैं
डिग्री धारी होना शिक्षित होने का प्रमाण नहीं हैं
शिक्षित होने से ज्ञानी हो जाए जरुरी नहीं हैं
क्या आदर्श के साथ पुरुष लगाना सही हैं , आदर्श व्यक्तित्व क्यूँ नहीं कहा जाये ??


इसके साथ साथ एक प्रश्न
क्या शिक्षित स्त्रियाँ जो करवा चौथ , परदोष , बेटे के लिये व्रत , जन्माष्टमी इत्यादि रखती हैं वो गलत हैं

April 14, 2011

ये जबरिया व्रत....

मेरे विद्यालय में बच्चों की छुट्टियाँ शुरू हो गई है, लिहाज़ा स्टाफ को यहाँ-वहां की बातें करने का पर्याप्त समय मिलता है। इसी बतरस के दौरान कल एक बड़ी विचित्र सी बात सामने आई । मेरे विद्यालय की ही एक शिक्षिका ने मुझसे एक व्रत ले लेने की बात कही मेरे पूछने पर उन्होंने बताया की मुझे इस गणेश-व्रत में पन्द्रह दिनों तक उनके द्वारा दी गई व्रत सम्बन्धी दो कहानियाँ और जप करना होगा,पन्द्रह दिनों के बाद मैं जब इस व्रत का प्रसाद जिस भी महिला को दूँगी,उसे भी अगले पन्द्रह दिनों तक यह क्रम दोहराना होगा। और प्रसाद भी किसी एक को नहीं बल्कि चार महिलाओं को देना होगा। फिर इसी प्रकार सिलसिला चलता रहेगा। सुन के मैं सकते में आ गई। इस प्रकार जबरिया व्रत करवाने का मतलब? चूंकि मैं मूर्ति-पूजा करती नहीं सो मैंने न केवल उनसे क्षमा मांग ली,बल्कि इस व्रत के सिलसिले को यहीं समाप्त कर देने की सलाह भी दे डाली। लेकिन इस किस्से के बाद मेरा मन बहुत दुखी हो गया। उन शिक्षिका महोदया का कहना था कि यदि हमने इस व्रत को नहीं किया तो हमारे परिवार पर संकट आ जाएगा। उनकी मंद-बुद्धि में ये बात नहीं आई कि संकट तो व्रत करने के बाद भी आते ही है। हर हिंदू परिवार में पूजा-पाठ होता ही है, तो क्या हम संकटों से बचे रहते हैं?जिन महिलाओं को हम पढ़ा-लिखा समझते हैं, कम से कम उन्हें तो ऐसी अंध-विश्वास से जुड़ी बातों का विरोध करना ही चाहिए। शिक्षित होने के बाद भी यदि हम ऐसी थोथी मान्यताओं में उलझे रहेंगे तो जो सचमुच अशिक्षित महिलाऐं हैं, उन्हें सही रास्ता कौन दिखायेगा? क्या ये महिलाऐं सचमुच शिक्षित हैं? मुझे तो नहीं लगता.....और आपको???

April 12, 2011

राम नौमी की बधाई ,



आज राम लला की मोहक छवि की बात कर लेते हैं


१ अवधेसके द्वारें सकारें गई सुत गोद कै भूपति लै निकसे।
अवलोकि हौं सोच बिमोचनको ठगि-सी रही, जे न ठगे धिक-से॥
तुलसी मन-रंजन रंजित-अंजन नैन सुखंजन-जातक-से।
सजनी ससिमें समसील उभै नवनील सरोरुह-से बिकसे॥

पग नूपुर औ पहुँची करकंजनि मंजु बनी मनिमाल हिएँ।
नवनील कलेवर पीत झँगा झलकै पुलकैं नृपु गोद लिएँ॥
अरबिंदु सो आननु रूप मरंदु अनंदित लोचन-बृंग पिएँ।
मनमो न बस्यो अस बालकु जौं तुलसी जगमें फलु कौन जिएँ॥

२ तन की दुति स्याम सरोरुह लोचन कंचकी मंजुलताई हरैं।
अति सुंदर सोहत धूरि भरे छबि भूरि अनंगकी दूरि धरैं॥
दमकैं दँतियाँ दुति दामिनि-ज्यौं किलकैं कल बाल-बिनोद करैं।
अवधेसके बालक चारि सदा तुलसी-मन-मंदिरमें बिहरैं॥

कबहूँ ससि मागत आरि करैं कबहूँ प्रतिबिंब निहारि डरैं।
कबहूँ करताल बजाइकै नाचत मातु सबै मन मोद भरैं॥
कबहूँ रिसिआइ कहैं हठिकै पुनि लेत सोई जेहि लागि अरैं।
अवधेसके बालक चारि सदा तुलसी-मन-मंदिरमें बिहरैं॥

३ बर दंत की पंगति कंदकली अधराधर-पल्लव खोलनकी।
चपला चमकैं घन बीच जगैं छबि मोतिन माल अमोलनकी॥
घुँघुरारि लटैं लटकैं मुख ऊपर कुंडल लोल कपोलनकी।
नेवछावरि प्रान करै तुलसी बलि जाउँ लला इन बोलनकी॥

April 11, 2011

आज के समय मे संस्कार , रीति रिवाज के नाम पर कन्यादान करके आप खुद वैवाहिक रीति की शुचिता को नष्ट करने का आवाहन देते हैं .

इस ब्लॉग पर और अन्य जगह भी मैने कन्यादान के विरोध मे लिखा हैं । कन्या को मै वस्तु नहीं मानती इस लिये उसका दान मुझ सही कभी नहीं लगा ।

कन्यादान किस लिये किया जाता था ?
जहां तक समझा हैं हिन्दू रीती रिवाजो मे दान की महिमा बहुत हैं । दान दे कर आप अपने पापो से मुक्ति पाते हैं । पाप क्या हैं और पुण्य क्या हैं इसकी विवेचना भी बहुत वृहत हैं । दान मे गोदान का बड़ा महातम हैं । मुंशी प्रेमचंद की कहानी गोदान मे इसके विषय बड़ा सटीक वर्णन हैं ।

कन्या को गौऊ सामान माना जाता था यानी जिस खूटे से चाहो बाँध दो । मूक बछिया की तरह चली जायेगी ।

कन्या का दान करके माता पिता अपने लिये मोक्ष का रास्ता खोल लेते हैं ।
कन्या का दान करके माता पिता कन्या को किसी और परिवार मे सौप देते हैं और क्युकी दान खली हाथ नहीं किया जाता हैं इस लिये उसके साथ वस्त्र और जेवर भी दिये जाते हैं ।

कन्या दान के बाद ये माना जाता हैं की कन्या पर से माता पिता का अधिकार ख़तम और उसके नए मालिक यानी पति का अधिकार शुरू ।

कभी भी कहीं भी ये सब लिखा , तो पाया की लोग कह रहे हैं की ये भारतीये संस्कृति का विरोध हैं । ये अपनी प्रथाओ को भूलना हैं और अगर हम अपनी प्रथाओ को गलत कहेगे { यानि कु प्रथा } तो आने वाले समय मे हमारे पास कोई प्रथा होगी नहीं ।
विवाह की रीतियों को , संस्कारो को ना निभाने से हम "परिवार " जैसे शब्दों को भूल जायेगे ।

अष्टमी और नौमी को कन्या की पद पूजा होती हैं और कन्या खिलाई जाती हैं तो मुझे लगा इस से बेहतर दिन क्या होगा इस बात को कहने के लिये ।

कन्या जिमाने को जो कारण हैं उन से अलग हट कर एक कारण हैं जो मेरी दादी ने मुझे १९६९ मे बताया था

दादी ने कहा था "सब समय तो बिटिया, बेटो को अच्छा खाने को मिलता हैं सो लगता हैं ये रीत इस लिये शुरू की गयी होगी की कम से कम साल मे ९ दिन , राम नौमी वाली नवरात्रि और ९ दिन दुर्गा माँ वाली नवरात्री मे कन्या / बेटी को अच्छा खाने को मिल जाए । पूजा के बहाने से ही सही कुछ दिन लडकिया भी व्यंजन खा ले वर्ना तो उनको खाना भाई और पिता के खाना खाने के बाद ही नसीब होता हैं । १९६९ मे दादी की उम्र ९० साल थी और वो मेरे पिता की माँ नहीं उनकी दूर की मौसी थी , जो ९ वर्ष की उम्र से विधवा थी ।


मेरा निज का मानना हैं कि जब बात संस्कार की हो , पूजा पाठ की हो तो हम को वो पूरे रीति रिवाज से करना चाहिये या नहीं करना चाहिये अन्यथा उनका लाभ { वैसे क्या कुछ भी लाभ के लिये करना चाहिये } नहीं मिलता .

नवरात्रि शुरू हैं . कन्या कि पद पूजा और खिलाने का काम भी शुरू होगा . भारत में "कन्या " केवल और केवल वो कहलाती हैं जो रजस्वला नहीं हुई हैं . रजस्वला कि ना तो पद पूजा होती हैं ना उसको जिमाया जाता हैं . ये बात भारत कि हर स्त्री जानती हैं

आप सब अगर किताबी बातो से हट कर किसी भी स्त्री से पूछे तो आप को यही बताया जायेगा . कन्या और अविवाहिता दो अलग अलग बाते हैं .

पहले विवाह कि उम्र दस वर्ष से कम ही होती थी क्युकी तब तक ही कन्या , कन्या मानी जाती थी . उस समय और कई जगह आज भी जहाँ पारम्परिक रीती रिवाज हैं विवाह कन्या का किया जाता हैं और गौना रजस्वला का .

आज विवाह कि आयु कानून १८ वर्ष हैं जिस तक पहुचते पहुंचते हर कन्या रजस्वला हो चुकी होती हैं . तो अगर हमारी संस्कृति में "कन्यादान " किया भी जाता था तो आज अगर एक १८ वर्ष कि लड़की का कन्यादान होता हैं तो वो अपने आप में गलत प्रथा , परिपाटी या रीति रिवाज का अँधा अनुकरण मात्र हैं . पूजा यानी वैवाहिक रीती खंडित पहले ही हो जाती हैं . हो सकता हैं इन्ही गलत रीतियों को मानने से परिवार आज ज्यादा टूट रहे हैं !!!

अब इसके परिणाम सुनिये
आज कल विवाह के समय कन्या "महीने " से अगर होती हैं तो संस्कार वश वो पूजा में नहीं बैठना चाहती हैं , क्या करे अगर विवाह कि तारीख और "महीने " कि तारीख एक दिन ही पडे . क्या अपने पिता या भाई से वो कह सकती हैं ?? माँ से कहती हैं , और माँ और दोस्तों कि राय से कैमिस्ट के यहाँ जाती हैं और दवा लेती हैं { डॉक्टर के यहाँ नहीं जाती हैं क्युकी डॉक्टर नहीं देगी } वो दवा जो "महीने " को आगे ले जाति हैं . वही से खिलावाड़ शुरू होता हैं उसका अपने शरीर से .क्यूँ क्युकी संस्कार हैं कंडिशनिंग हैं .

कन्या दान के महत्व कि बात करते हैं पर वो जिस समय होता था हम उस समय से बहुत आगे आगये हैं . पीछे मुड़ कर देखने से , कन्यादान का महातम समझने से या वो कितना सही या गलत हैं ये विवाद करने से क्या हासिल होगा ?? आज अगर दान होता भी हैं तो "कन्या " का नहीं होता .



आज के समय मे संस्कार , रीति रिवाज के नाम पर कन्यादान करके आप खुद वैवाहिक रीति की शुचिता को नष्ट करने का आवाहन देते हैं .

अगर बात संस्कारों की हैं संस्कृति की हैं तो फिर आज के समय मे कन्यादान करना गलत हैं चाहे वो केवल परम्परा निभाने के लिये ही क्यूँ ना किया जाता हो ।





April 10, 2011

शुभकामनाएं

नारी ब्लॉग के सफल तीन वर्षों के लिए रचनाजी एवं इससे जुड़े सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई। यहां जीवन के उन पहलुओं पर भी चर्चा हुई जो प्रायः अनछुए ही रह जाते हैं। इस समूह का सदस्य होना सदा ही मेरे लिए गर्व का विषय रहा है।। जब जीवन की बात चलती है तो नारी की चर्चा न हो ऐसा नहीं हो सकता। बच्चों की सफलता का श्रेय समाज अक्सर पिता यानी पुरुष को देता है, पर कच्ची मिट्टी को समग्रता प्रदान करते हुए, सम्पूर्णता का चोला पहनाने वाले हाथ नारी के ही होते हैं, भले ही परदे की ओट में वो कहीं छिपे रह जाते हो।

-प्रतिभा.

"नथ " विद्रूप सोच जो स्त्री के वर्जिन होने को महिमा मंडित करती थी


नारी ब्लॉग सक्रियता अप्रैल २००८ -से अब तक
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ब्लॉग पढ़ रही थी एक ब्लॉग पर एक पोस्ट देखी जहां लड़कियों के नथ पहनाने की फायदों की बात हुई हैं और वहां वैज्ञानिक कारण भी दिये हैं ।

नथ यानी नाक में पहनने वाला गहना ।
लोग कितना जानते हैं नथ के बारे मे या क्यूँ पहनाई जाती थी नथ लड़कियों को और क्यूँ धीरे धीरे अब इस का प्रचलन केवल और केवल एक फैशन मात्र ही हैं

पहले लड़कियों की नाक बचपन मे छिदवा कर उसमे नथ पहना दी जाती थी ।

ये नथ "प्रतीक " होती थी की स्त्री ने किसी के साथ सहवास नहीं किया हैं । जब लड़की का विवाह होता था तो नथ उसका पति उतारता था और उसके बाद स्त्री नथ की जगह नाक की कील पहन लेती थी ।

"नथ उतराई " वेश्या की भी बहुत महातम रखती थी और इस के लिये राजा , महराजा धन दौलत लुटा देते थे ।

यानी नथ प्रतीक थी कि स्त्री वर्जिन हैं । एक और विद्रूप सोच जो स्त्री के वर्जिन होने को महिमा मंडित करती थी लेकिन पुरुष के लिये कोई भी "ऐसी सोच " समाज मे नहीं थी ।

धीरे धीरे जब नारी को ये बात समझ आ गयी और उन्होने विद्रोह स्वरुप नथ पहनना बंद कर दिया । स्त्री वर्जिन हैं या नहीं ये उसकी अपनी पसंद हैं । लेकिन वर्जिन होने का सबूत अगर नथ हैं तो नारी ने इसको ना मंजूर कर दिया ।

कभी कभी लगता हैं हमारी संस्कृति के ऊपर लम्बे लबे लेख लिखने वाले असली बात को हमेशा छुपा क्यूँ जाते हैं । इतने अनभिज्ञ तो वो नहीं होगे की नथ के ऊपर सब जानते हो पर ये ना जानते हो की नथ किस बात का प्रतीक या सबूत होती थी

नथ पहनना या ना पहनना उस पर निर्भर हैं जो इस को पहनता हैं लेकिन नथ के पीछे का इतिहास बहुत घिनोना हैं

नथ उतराई

नथ उतारना

कभी कभी जब ऐसे आलेख पढ़ती हूँ जहां नथ कि महिमा का गान करते हुए बताया जाता हैं कि कैसे नथ पहनने से बीमारिया कम होती हैं तो मन में आता हैं पूंछू फिर सुहागन से विधवा होते ही नथ क्यूँ उतरवा दी जाती हैं
क्या विधवा को बीमारी नहीं होती या फिर उसको बीमारी से नहीं बचाना चाहिये ??

नथ ही नहीं हर वो गहना जो नारी को उस समय पहनाये जाये जब उसका विवाह हो रहा हैं और उस समय उतरवा लिया जाए जब वो विधवा हो जाती हैं केवल और केवल नारी के जीवन मे विवाह और पति का महातम बना रहे इस लिये ही होता हैं अन्यथा मंगल सूत्र , बिछिये , चूड़ियां इत्यादि सुहागन का प्रतीक नहीं होती । नारी के अपने लिये ये कुछ भी नहीं हैं । सब उसके जीवन मे जुड़े पुरुष के लिये हैं और जिस दिन वो पुरुष नहीं रहता ये सब उसके लिये बेकार समझा जाता हैं ।



अनगिनत प्रश्न हैं उत्तरों कर लिये मुहं बाए , लिखती रहूंगी नारी ब्लॉग पर

चलते चलते , नारी ब्लॉग के सभी सदस्यों को नारी ब्लॉग के तीसरे जनम दिन कि शुभ कामना । इस जमीन पर पाँव जमें रहे इसी कामना के साथ ।
स्त्री उत्पीड़न में मुक्ति!

April 09, 2011

नारी का सफ़र

नारी का सफ़रLink

वंदना की पोस्ट यहाँ पढ़े

नारी का सफ़र


नारी ब्लॉग सक्रियता अप्रैल २००८ -से अब तक
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मैं नारी ब्लॉग की नयी सदस्या हूँ . अभी कुछ दिनों पहले ही जुडी हूँ और बहुत ख़ुशी है कि नारी ब्लॉग को 3 साल हो गए .
इसके लिए रचना जी बधाई की पात्र हैं .यूं तो नारी ब्लॉग की पोस्ट पहले भी पढ़ती थी मगर इससे जुड़ने के बाद इसकी उपयोगिता का पता चला
...........मेरे पहले ही आलेख "क्या हाउस वाईफ का कोई अस्तित्व नहीं " को उदंती पत्रिका में स्थान मिला अभी मार्च में ही रायपुर से प्रकाशित पत्रिका में छपा जो इस बात का द्योतक है कि नारी ब्लॉग की पहुँच कहाँ कहाँ तक है
...........सार्थक और गंभीर लेखन की दिशा में नारी ब्लॉग ने अपनी पहचान बनायीं है और इसकी पहुँच दूर- दूर तक हो रही है
........ये सब रचना जी के अथक परिश्रम का परिणाम है
.....लोगों की सोच बदलने में एक महत्त्वपूर्ण स्थान बना रहा है नारी ब्लॉग और यही इस ब्लॉग का ध्येय है जिसमे ये खरा उतर रहा है
.......इससे जुडी सभी सदस्याओ का मनोबल बढाता है
........उम्मीद करती हूँ आने वाले वक्त में नारी ब्लॉग अपनी एक विशिष्ठ पहचान बनाएगा
..........नारी की पहचान , उसके सम्मान और उसे स्थान दिलाने में अग्रसर नारी ब्लॉग अपनी खास छवि बनाएगा और एक स्वस्थ समाज का निर्माण करेगा .मेरी हार्दिक शुभकामनायें और बधाइयां नारी ब्लोग के सफ़र के लिये

……………नारी ब्लोग की निर्मात्री रचना जी और इससे जुडी प्रत्येक सदस्या के लिये


जब तक पृथ्वी आकाश रहें
ये सफ़र यूँ ही चलता रहे………

April 08, 2011

वाणी की पोस्ट "नारी एक आन्दोलन "

वाणी की पोस्ट "नारी एक आन्दोलन "

इस लिंक पर उपलब्ध हैं

" नारी "... एक आन्दोलन


नारी ब्लॉग सक्रियता अप्रैल २००८ -से अब तक
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हमारे पित्रसत्तात्मक समाज में नारियां सदियों से हाशिये पर रही हैं ...उदाहरण के रूप में कुछ ख्यातनाम महिलाओं के नाम देकर इस तथ्य को भ्रान्ति मान झुठलाने की कोशिश की जाती रही है , लेकिन फिर भी सच यही है कि आधी आबादी उत्पीडन और शोषण (शारीरिक या भावनात्मक ) के लम्बे दौर को झेला है ...जो महिलाएं दोयम दर्जे की स्थिति में होने के बाद भी अपने लिए एक अलग मुकाम हासिल कर सकी , वह उनके परिवार के सहयोग और समर्थन के कारण ही संभव हुआ , सामाजिक ढांचे के कारण नहीं ...महिलाओं को उनके आत्मसम्मान , आत्मसुरक्षा और आत्मनिर्भरता के प्रति जागरूक करने के लिए समय- समय पर नारी जागृती आन्दोलन चलाये जाते रहे हैं , और बहुत हद तक इसका प्रभाव समाज की वर्तमान परिस्थियों पर देखा जा सकता है ...आज नारी अपनी स्वतंत्र सोच रखते हुए अपने अधिकार और हक़ के लिए अपनी आवाज़ बुलंद कर रही है ,वह हर कार्य कर रही है जो सिर्फ पुरुषों के लिए सुरक्षित माने जाते रहे हैं ...वह पुरुष के कंधे से कन्धा मिला कर समाज के सर्वांगीण विकास के लिए तत्पर है । मगर फिर भी दिन प्रतिदिन नारियों के साथ बढ़ते अपराध यह साबित करते हैं कि अभी भी काफी कुछ किया जाना शेष है ...

इन्टरनेट /ब्लॉगिंग युग में नारियों को जागरूक करने में " नारी " ब्लॉग ने अपने महती भूमिका निभायी है ...इस ब्लॉग के रूप में एक कोना सिर्फ नारियों के लिए सुरक्षित रखा गया है , जहाँ वे बिना किसी डर या झिझक के अपने विचार पूर्ण स्वतन्त्रता से रख सकती हैं ...अपने मिशन के प्रति पूर्णरूपेण समर्पित यह ब्लॉग नारी की दृढ़ता और साहस का प्रत्यक्ष प्रमाण है ...समय -समय पर यह मंच पर महिलाओं के आर्थिक अथवा शारीरिक शोषण , भ्रूण हत्या , अश्लील तस्वीरों अथवा पोस्ट पर पुरजोर शब्दों में अपना विरोध दर्ज करने के साथ ही वास्तविक और आभासी दुनिया में महिलाओं के आत्मसमान को जागृत करने ,समान अधिकार आदि पर विचारोत्तेजक लेख आदि प्रस्तुत कर अपने उद्देश्य की ओर पूरी दृढ़ता से अग्रसर है और बना रहेगा ...नारियों की आवाज़ को एक खुला आसमान उपलब्ध करने के लिए इस मंच को साधुवाद और शुभकामनाएं !

April 07, 2011

"नारी ब्लॉग "नारी के लिए दिशा संवाहक


नारी ब्लॉग सक्रियता अप्रैल २००८ -से अब तक
पढ़ा गया १०७५६४ फोलोवर ४२५ सदस्य ६०



नारी ब्लॉग को तीन साल हो गये रहे है शक्ति के दिनों (नवरात्रों में ) में शक्ति को सफ़लता |

बधाई हो नारी ब्लाग की शक्तियों को जिन्होंने इस ब्लाग को अपने विचार देकर इस ब्लाग को सार्थक बनाया | इस उपलब्धि की स्तम्भ" रचना जी" जिन्होंने अपने स्पष्ट विचारो से इसको और मजबूत बनाया उन्हें भी हार्दिक बधाई |
रचना जी का ये कहना की "स्त्री पुरुष एक दूसरे के पूरक नहीं हो सकते पति पत्नी एक दूसरे के पूरक है "

इस विचार को दिशा दी और सोचने को मजबूर किया की अभी तक हमारी सोचने की दिशा ही भटक गई थी |
जहांतक ब्लॉग जगत का सवाल है समय समय पर नारी ब्लॉग पर लिखे गये आलेखों से अन्य ब्लोगर की सोच में भी परिवर्तन महसूस किया है जैसे की कई बार महिलाओ को लेकर अश्लील चुटकुले ,उन पर फबतिया कसना या बात बात में उनके लिखे लेखो को कमतर समझना इन सब पर जरुर अंकुश लगा है और यह अंकुश लगना ही इस बात का धोतक है की जब नारी ने सामूहिक रूप से इस छेड़छाड़ का विरोध किया है तो उसने अपनी आधी आबादी को महसूस किया है |
अपनी तीन साल की बाधाओं को झेलते झेलते मुकाम पर पहुंचने लिये इस सार्थक यात्रा के लिये शुभकामनाये|

April 06, 2011

क्या मायने है "नारी" ब्लॉग के

नारी ब्लॉग सक्रियता अप्रैल २००८ -से अब तक
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नारी ब्लॉग को सफ़लत पूर्वक तीन वर्ष पूरे करने की इससे जुड़े सभी सदस्यों और पाठको को ढेरो बधाई |

कई बार "नारी" ब्लॉग के लेखो को कुछ लोगो द्वारा भारतीय संस्कृति और परम्पराओ के खिलाफ माना जाता है,

उनका ये सोचना सही है "नारी" ब्लॉग हमेशा ऐसी संस्कृतियों चाहे वो दुनिया में कही की भी हो का विरोध करेगी जो नारी को दोयम दर्जा दे कर कमतर मानती है उसे बराबरी का दर्जा नहीं देती और उन्हें पुरुषो की तरह सामान्य इन्सान नहीं मानती |
वो हर नारी को उन परम्परा के खिलाफ जाने के लिए उकसाती रहेगी जो उन्हें कष्ट देते है उन्हें बिना वजह के बंधन में डालते है | क्योकि जब तक कुछ नारीया भी इस संस्कृति और परम्परा के नाम पर सारी मर्यादाओ नैतिकता का बोझ अकेले ढोती रहेगी सारे जुल्म अत्याचार अकेले सहती रहेगी , सभी नारियो से इसी तरह के व्यवहार की उम्मीद की जाएगी और उन्हें दबाने का प्रयास किया जायेगा |
"नारी" ब्लॉग समाज के हर तबके की नारी की आवाज उठाता है और उठाता रहेगा चाहे वो दलित गरीब महिला हो घरेलु या काम काजी महिला हो या कोई अमीर और प्रतिष्ठित महिला हो या किसी भी धर्म या जाती की हो | हमें मालूम है की तथा कथित भारतीय संस्कृति के रक्षक आगे भी इस पर प्रकाशित लेखो का विरोध करेंगे उन्हें अपने हिसाब से समझेंगे किन्तु इससे " नारी " ब्लॉग पर कोई असर नहीं होगा |

एक समय था जब सती प्रथा , विधवा विवाह , और बाल विवाह का विरोध करने वालो को भी भारतीय संस्कृति के खिलाफ माना गया था उन्हें समाज तोड़ने वाला पश्चिमी संस्कृति में रंगा हुआ कहा गया था | उस दौर में भी इन विरोधो को पश्चिमी संस्कृति का हमला और भारतीय संस्कृति का अपमान बताया गया | किन्तु समय गवाह है कि भारतीय संस्कृति और परंपरा का नाम लेकर नारी पर जुल्म करने वाले उसके साथ पशु जैसा व्यवहार करने वाले आज इतिहास में कही भी नहीं है और पूरा समाज भारतीय संस्कृति में व्याप्त इन कुरीतियों की खिलाफत करने वालो के साथ खड़ा है |

वैसे ही हम जानते है की आज जो बाते कुछ लोगो को भारतीय समाज के खिलाफ लग रही है या जो लोग इनके समर्थन में जाने अनजाने खड़े होते है कल को वो ही अपने आज के विचारो पर हँसेंगे जैसे हम आज बाल विवाह का समर्थन करने वालो पर हसंते है उसे बेफकुफी और गलत मानते है किन्तु आज भी भारत में बड़ी संख्या में ये सब हो रहा है और लोग उसका समर्थन भी कर रहे है |

कल को जब उनकी बेटिया बड़ी होंगी तो वो आज के संघर्स से पाई गई नारी स्वतंत्रता और सम्मान को दिलाने वाले लोगो को धन्यवाद (क्योकि वो कई बार चाह कर भी समाज से अकेले लड़ कर वो सब अपनी बेटी के लिए हासिल नहीं कर पाते) देंगे की उनकी बेटी आज यहाँ की कई सामाजिक कुरीतियों के चपेट में आने से बच गई और आज वो अपनी मर्जी की एक स्वतंत्र और खुशहाल जीवन जी रही है समाज में उसका भी अस्तित्व है उसका भी नाम है और वो बड़े फक्र से अपनी बेटी से खुद को जोड़ेंगे |

समय बदल गया है और लोगो खासकर बहुत सारे पुरुषो का व्यवहार और उनकी सोच भी महिलाओ के प्रति बदली है और वो अपनी घर की महिलाओ को पहले से कही ज्यादा सम्मान देते है और उन्हें आगे बढ़ाने का काम करते है किन्तु आज भी हम जाने अनजाने में अपने घर की या आस पास की महिलाओ के साथ कुछ ऐसा व्यवहार करते है या उसके प्रति सोच रखते है जो सही नहीं है और हर नारी के लिए एक समस्या बन गई है किन्तु वह कह नहीं पाती, कभी प्यार के कारण कभी डर के कारण कभी किसी अन्य कारणों से | " नारी" ब्लॉग लोगो को उस गलत सोच और व्यवहार की तरफ भी ध्यान दिलाता है, ये बाते यहाँ पर आप पढ़ और समझ सकते है और उनके प्रति किये जा रहे अपने व्यवहार और सोच को चैक कर सकते है और महिलाओ के दिल कि बात और सोच को समझ सकते है | ये न सोचे की आप के घर में रह रही या आप के करीबी महिला को कोई समस्या ही नहीं है या उसकी सोच इस ब्लॉग की नारियो से अलग है या उसकी परेशानिया अलग है | इस ब्लॉग पर लिख रही नारिया समाज के हर वर्ग से आती है हर तरह की नारियो का प्रतिनिधित्व करती है इसलिए इनकी लेख भी आप के घर के और आस पास कि नारियो की ही सोच है बस आप उसे किसी और द्वारा लिखे जाने से जान रहे है |


इन सब के अलावा ये ब्लॉग वर्त्तमान में आ रही नहीं समस्याओ जैसे कन्या भ्रूण हत्या और महिलाओ के खिलाफ बढ़ते अपराध के खिलाफ भी लोगो को जागृत करती रही है और आगे भी करती रहेगी और भविष्य में आने वाली समस्याओ के खिलाफ भी सभी में अलख जगाती रहेगी |

सभी पाठको से आशा है की वो आगे भी अपने विचारो से हमें अवगत कराते रहेंगे और खासकर नारी ब्लॉग के आलोचकों से आग्रह है की वो इस ब्लॉग के लेखो के प्रति अपने विचारो और विरोध से हमें अवश्य अवगत कराये तभी तो हमें पता चलेगा की समाज की नारी के प्रति क्या सोच है आखिर लोग नारी को किस रूप में देखते है आखिर नारी को किन समस्याओ से दोचार होना पड़ता है | तभी हमें पता चल सकेगा की हमें किस सोच से और किस किस विचारो से संघर्स करना है |

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