आरक्षण पर शुरुआती किला फतह करने के बाद शुक्रवार को महिलाओं ने एक और जंग जीत ली। सेना में स्थायी कमीशन देने को लेकर जारी भेदभाव के खिलाफ लड़ाई में महिलाओं ने विजय श्री हासिल कर ली है। दिल्ली हाईकोर्ट ने सैन्य सेवा में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने का सरकार को आदेश दिया है। कोर्ट के अनुसार, 2006 से पहले सेना में भर्ती महिलाओं को स्थायी कमीशन प्रदान किया जाए। हाईकोर्ट ने सेना में भर्ती में महिला-पुरुष लिंगभेद पर सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। अपने ऐतिहासिक फैसले में हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह भविष्य में सैन्य सेवाओं की भर्ती व नौकरियों में लिंगभेद की नीति न अपनाए।
गौरतलब है कि 2006 से पूर्व भर्ती महिलाओं को स्थायी कमीशन न देकर 14 साल के बाद उन्हें नौकरी से रिटायर कर दिया जाता है। जबकि पुरुष व महिलाओं की भर्ती पहले शार्ट सर्विस कमीशन के माध्यम से ही होती थी। पांच साल बाद पुरुषों को स्थायी कमीशन दे दिया जाता था, जबकि महिलाओं को शार्ट सर्विस कमीशन में ही रखकर 14 साल बाद रिटायर कर दिया जाता है। करीब 60 मौजूदा व पूर्व महिला सैन्य अफसरों ने इस नीति के खिलाफ कोर्ट में याचिकाएं दायर कर रखी थी। जिसमें सरकार पर स्थायी कमीशन देने के नाम पर भेदभावपूर्ण नीति अख्तियार करने का आरोप लगाया गया था।
सेवारत एवं सेवानिवृत्ता महिला अधिकारियों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने बीते 14 दिसंबर को इन याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा लिया था। याचिका में सशस्त्र सेनाओं में पुरुष अधिकारियों की तरह ही महिला सैन्य अधिकारियों को भी स्थायी कमीशन प्रदान करने संबंधी निर्देश दिए जाने की मांग की गई थी। यह भी कहा गया था सुनहरे भविष्य का सपना दिखा उन्हें भर्ती किया जाता है और 14 साल बाद रिटायर कर दिया जाता है।
फैसले में पीठ ने कहा है कि वह सरकार की नीति में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती। लेकिन सरकार ने जो नीति बना रखी है, उसमें लिंगभेद नहीं बरती जानी चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसी महिलाएं जिन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और वे जो सेवानिवृत्ता हो चुकी है, उन्हें फिर से बहाल कर स्थायी कमीशन दिया जाए। पीठ ने सरकार से महिला सैन्य अधिकारियों को सभी प्रकार के अनुवर्ती लाभ मुहैया कराने को भी कहा है। कोर्ट ने दो महीने के अंदर फैसले पर अमल करते हुए याचिकाकताओं को सुविधाएं देने को कहा है।
कोर्ट ने माना कि 2006 में सरकार ने जो नई नीति बनाई है, वह तो ठीक है। किंतु इससे पहले तो कोई नीति ही नहीं थी। इससे पूर्व सैन्य सेवाओं में भर्ती हुई महिलाओं को 14 साल बाद रिटायर कर दिया जाता था। यह भेदभाव ठीक नहीं था।
ध्यान रहे कि 2006 के बाद सरकार ने जो अधिसूचना जारी की है, उसके तहत महिला या पुरुष किसी को भी स्थायी कमीशन दिए जाने का प्रावधान नहीं है। इसलिए कोर्ट ने सरकार की इस पालिसी पर कोई टिप्पणी नहीं की है। याचिका में इस नई पालिसी को भी रद करने की मांग की गई थी। किंतु उनकी इस मांग को ठुकरा दिया गया।
संघर्ष ने भरी सफलता की 'उड़ान' वायुसेना में शुरुआती पांच साल के करियर में उनके प्रदर्शन को सभी ने सराहा। अधिकारियों ने उनकी खूब तारीफ की। मेडल दिए गए और सर्टिफिकेट भी। साथ ही एक झटका भी। उन्हें कहा गया कि वह अब आगे काम नहीं कर सकती। मन ही मन सोचा जब मैं पुरुषों से बेहतर कर सकती हूं तो फिर आगे बढ़ने से क्यों रोका जा रहा है। आला अधिकारियों से लेकर चीफ तक से इस पर प्रश्न पूछा, लेकिन जवाब किसी ने नहीं दिया। अंत में हाईकोर्ट की शरण ली। रिटायरमेंट के बाद थकी नहीं, अपने संघर्ष को जारी रखा। नतीजा आज सेना में काम करने वाली महिलाओं को स्थायी कमीशन देने के रूप में सामने आया। इस नतीजे से वह बहुत खुश हैं। वे इसे महिला अधिकारों की जीत मानती हैं। उन्हें उम्मीद है कि महिलाओं को अब कांबेट ट्रेनिंग में भी लिया जा सकेगा।
बात हो रही है देहरादून में रहने वाली विंग कमांडर अनुपमा जोशी की। जिन्होंने सेना में रहते हुए महिला अधिकारियों के अधिकार की आवाज बुलंद की और अपने संघर्ष को अंजाम तक पहुंचाया। अनुपमा जोशी का 1992 में एयर फोर्स में पहली महिला अधिकारी के रूप में चयन हुआ। इसके बाद वह अपनी मेहनत और जज्बे के बल पर आगे बढ़ती रही। पहले पांच साल की सर्विस के बाद उन्होंने आवाज उठाई तो उन्हें तीन साल और फिर तीन साल का एक्सटेंशन मिला। हर बार टुकड़ों में मिल रहे एक्सटेंशन से वह खिन्न आ गई। उन्होंने 2002 में इसके लिए अपने सीनियर अधिकारियों से लिखित में जवाब मांगा। यहां से कोई जवाब न मिलने पर वायु सेना प्रमुख को पत्र लिखकर जवाब मांगा। कहीं से कोई जवाब नहीं आया तो फिर उन्होंने इसके लिए कोर्ट में मुकदमा करने की ठान ली। 2006 में उन्होंने अन्य महिला अधिकारी के साथ कोर्ट में याचिका दर्ज की। ऐसा करने वाली वह पहली महिला अधिकारी थी। कोर्ट ने इस केस की सुनवाई में नई भर्तियों को स्थायी कमीशन देने का फैसला दिया, लेकिन सर्विग महिला अधिकारियों का फैसला नहीं हो पाया। 2008 में वह रिटायर हो गई, लेकिन उनका संघर्ष जारी रहा। इस बीच कुछ अन्य अधिकारियों ने भी सेना में तैनात महिलाओं को स्थायी कमीशन देने के लिए मुकदमा दायर किया। इस पर हाईकोर्ट ने एक संयुक्त सुनवाई ने महिला अधिकारियों के पक्ष में अपना निर्णय सुनाया है।
दोबारा कर सकती हैं सेवा
विंग कमांडर जोशी दोबारा वायुसेना को अपनी सेवाएं दे सकती हैं। विंग कमांडर अनुपमा जोशी कहती हैं कि कोर्ट ने याचिका में शामिल महिला अधिकारियों की सर्विस कंटीन्यू करने की बात कही हैं। ऐसे में उन्हें उम्मीद है कि दोबारा अपनी सेवाएं देने का मौका मिल सकता है।
महिला अधिकारियों में खुशी की लहर
नई दिल्ली। सेना में स्थायी कमीशन देने के कोर्ट के फरमान से महिला अधिकारियों की खुशी का ठिकाना नहीं है। उनका कहना है कि अब वे अपने पुरुष सहकर्मियों की तरह ही बगैर किसी भेदभाव के देश की सेवा कर सकती हैं।
कोर्ट में महिला अधिकारियों की ओर से पेश वकील रेखा पाली ने कहा कि यह एक बड़ी जीत है। महिलाओं को समानता का हक दिलाने वाले इस फैसले के लिए मैं कोर्ट की शुक्रगुजार हूं।
याचिकाकर्ता विंग कमांडर रेखा अग्रवाल ने खुशी जाहिर करते हुए कहा, 'मैं काफी खुश हूं। मैं फिर से काम पर जाऊंगी और राष्ट्र की सेवा करूंगी।' रेखा के मुताबिक, खुशी है कि आखिरकार महिलाओं को भी स्थायी कमीशन का अधिकार मिल गया। सेना में पहले महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार नहीं प्राप्त था, लेकिन इस फैसले से अब हमें भी वह सभी अधिकार मिल जाएंगे, जो पुरुष सैन्य अधिकारी को मिलते हैं। यह सचमुच महिलाओं की जीत है।
मेजर सीमा सिंह ने कहा, 'तीन वर्ष की लड़ाई रंग लाई। न्यायालय ने सेना में महिला अधिकारियों के साथ होने वाली असमानता को आखिर समझ लिया है।' उनका कहना है कि इस आदेश से न केवल मौजूदा अफसरों को ही फायदा होगा, बल्कि सेना ज्वाइन करने की सोच रहीं महिलाएं भी इससे उत्साहित होंगी।
याचिकाकर्ता अवकाश प्राप्त विंग कमांडर पुष्पांजलि ने कहा, 'हाईकोर्ट के फैसले ने हमारे दिल की मुराद पूरी कर दी है। यह हमारा हक था, जिसके लिए हम संघर्ष कर रहे थे। 14 साल की देश सेवा के बाद मुझे अवकाश दिया गया तो बहुत दुख हुआ था। ऐसे में हमने कोर्ट में याचिका दायर की और अपने हक के लिए संघर्ष शुरू किया।'
साभार : जागरण आकांक्षा यादव