नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

October 29, 2011

अपने माँ पिता के लिये आप ने क्या प्लान किया हैं ??

माँ बीमार थी पिछले ३ महीने से तकरीबन बिस्तर पर ही थी { अब ठीक हैं } जितने लोग आये सब ने कहा आप ने माँ की बड़ी सेवा की । मुझे ये बड़ा अजीब लगा । मैने एक दो से कहा भी की ये सेवा वाली बात सही नहीं हैं क्युकी ये मेरा या किसी भी संतान का कर्तव्य होता हैं की वो अशक्त और बीमार अभिभावक के लिये अपने कर्तव्यों की पुरती सही तरीके से करे । इस पर मुझे बताया गया की सेवा और कर्तव्य में अंतर होता हैं क्युकी सेवा भावना से जुड़ी हैं और कर्तव्य भावना से नहीं होता हैं । और दूसरी महत्व पूर्ण बात थी की क्युकी मै बेटी हूँ इस लिये ये सेवा हैं , बेटा करता तो कर्तव्य होता और अगर निस्वार्थ होता तभी सेवा कहलाता ।

मेरी एक मित्र हैं वो विवाहित हैं । उनके एक भाई भी हैं । मेरी मित्र तकरीबन ५६ साल की हैं और हर साल कम से ३ महीने अपनी ८० साल की माँ को अपने भाई के पास से ला कर अपने पास रखती हैं । मैने उनसे पूछा वो ऐसा क्यूँ करती हैं , उनका उत्तर था सारे कर्तव्य क्या बेटे के ही हैं । मेरे कर्तव्यो का क्या ?? क्या माँ की देखभाल मेरा कर्तव्य नहीं हैं । भाई मना भी करता हैं तब भी वो माँ को ले कर आती हैं । मेरे पूछने पर की आप के पति का क्या री एक्शन हैं ? उन्होने ने कहा शुरू मे उनको समस्या लगती थी अब नहीं लगती । मेरी मित्र का प्रेम विवाह हुआ था तब भी पति को शुरू में ये सब बड़ा अटपटा लगता रहा था । ये बताना जरूरी हैं की मेरी मित्र ने कभी नौकरी नहीं की हैं ।

मुझे खुद भी यही लगता हैं की माँ - पिता का काम करना करना , उनकी देखभाल करना हर संतान का कर्तव्य होता हैं सेवा नहीं । हर संतान को ये कर्तव्य पूरा करना चाहिये बराबर से चाहे वो बेटा हो , बेटी हो , विवाहित हो या अविवाहित हो । माँ - पिता के प्रति किया गया क़ोई भी कार्य सेवा नहीं हो सकता हम इस कर्तव्य को सेवा कह कर केवल संतान के कार्यो का महिमा मंडन ही करते हैं । इसके अतिरिक्त जब क़ोई संतान ये कर्तव्य पूरा नहीं करती हैं तो हम उसको कर्तव्य पूरा करने के लिये बाधित नहीं करते हाँ बस ये कह देते हैं उसमे सेवा भाव नहीं हैं । बहुत से माता पिता खुद भी अपने सब बच्चो से एक सी उम्मीद नहीं लगाते हैं । जो नहीं करता हैं उसको कहते ही नहीं हैं और इस कारण से बहुधा बच्चो मे आपस के संबंधो में भी फरक आता हैं ।

आप कह सकते हैं जो करता नहीं उस से कैसे करवाया जा सकता हैं । सही बात हैं लेकिन सेवा नहीं करवाई जा सकती हैं पर अगर ये कर्तव्य हो तो एक बाध्यता पैदा की जा सकती हैं बचपन से ही ।

इसके अलावा समाज का ये नज़रिया की बच्चे अगर माँ पिता की सुविधा के लिये नौकर रख दे तो वो कर्तव्य हैं और खुद करे तो सेवा भी एक भ्रम उत्त्पन्न करता हैं क्युकी जरुरी ये हैं की बुजुर्गो को सुविधा मिले ना की ये की वो सुविधा कैसे और कौन दे रहा हैं ।

अब मेरी मित्र को ही ले खुद ५५ वर्ष की हैं और उनके पति ५८ वर्ष के और मित्र की माँ ८० वर्ष की ऐसे मे किसी ना किसी को नौकरी पर रख कर ही वो अपनी माँ की देखभाल कर सकती हैं ।

माँ पिता को सेवा भाव से ज्यादा जरुरत हैं कर्तव्य पालन की ताकि जब वो शिथिल हो तो उनको कहना ना पडे बच्चे खुद उनकी सुविधा का ध्यान रखे । इस के लिये हर बच्चे को बचपन से जागरूक करना होगा और शायद ये सब अब स्कूल में कोर्से की तरह भी पढ़ाया जाना चाहिये ।

इसके अलावा जहां तक संभव हो हमको अपने बुढ़ापे के लिये बच्चो पर निर्भर ना रहना पडे इस के लिये अपने अन्दर जागरूकता भी लानी होगी । मै शायद ये निर्लिप्त भाव से लिख सकती हूँ क्युकी अविवाहित हूँ और अपेक्षा नहीं हैं किसी से लेकिन मै चाहती हूँ जो विवाहित हैं वो भी एक बार इस बारे में सोचे क्युकी अगर आप जो अपने बच्चो के लिये करते हैं वो निस्वार्थ ममता हैं तो आप को अपने बच्चो से क़ोई अपेक्षा नहीं रखनी चाहिये । लेकिन अगर आप ने कर्तव्य की तरह अपने बच्चो का लालन पालन किया हैं और कर्तव्य पूरा करने में क़ोई कमी नहीं रखी हैं तो बच्चो को भी उनके कर्तव्य का भान शुरू से करवाए और सब बच्चो को बराबर समझे ।

विवाहित स्त्रियाँ अपनी मायके के प्रति अपने कर्तव्यो का निर्वाह कैसे करती हैं या नहीं कर पाती हैं इस पर क़ोई विवाहिता खुल कर लिखे ब्लॉग पर तो एक सकारात्मक सोच उभर कर आ सकती हैं ।

सब कहते हैं वृद्ध के लिये कुछ होना चाहिये पर अपने माँ पिता के लिये आप ने क्या प्लान किया हैं ??

सेवा करके अपना परलोक सुधारेगे या कर्तव्य निभा कर माँ -पिता का इहलोक सुधारने की कोशिश करेगे ।

जी हाँ कर्तव्य और सेवा में यही सब से बड़ा अंतर हैं


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October 19, 2011

समय हैं बेटियों को नहीं बेटो को नैतिकता का पाठ पढ़ाने का

सवाल सीधा से हैं हर पुरुष के लिये दूसरा पुरुष दुश्मन क्यूँ लगता हैं जैसे ही पहला पुरुष किसी बेटी का पिता बनता हैं ??

क्युकी पुरुष से बेहतर पुरुष को क़ोई नहीं समझता ।
ये समय वो हैं जब एक पुरुष को चाहिये की वो दूसरे पुरुष को नैतिकता का पाठ पढाये ताकि एक पुरुष दूसरे पुरुष को अपनी बेटी का दुश्मन ना समझे ।

हर समय हर युग में नारी को नैतिकता का पाठ पढ़ा दिया जाता हैं और नारी को ही नारी का दुश्मन माना जाता हैं जब की हैं इसका उलटा ।
अगर आप गंभीर रूप से विचार करेगे तो पायेगे की नारी को नैतिकता का पाठ सब से ज्यादा उसके पुरुष अभिभावक ही देते हैं क्युकी वो दूसरे पुरुष को समझते हैं



ईश्वर हर घर में एक बेटी दे ताकि हर पिता समझे समाज को सुरक्षित करना कितना जरुरी हैं

समाज किस से बनता हैं ?

बेटे और बेटी से . सो बेटे और बेटी को सब अगर समान समझ देगे तो सुरक्षा खुद आयेगी
लोग बेटो को कभी ये नहीं समझाते, किसी भी वर्ग के लोग, की लड़की को मत छड़ो पर लड़कियों को सब पर्दे में रखना चाहते हैं । हर नियम कानून लड़कियों की सुरक्षा से सम्बंधित घरो में बनाये जाते हैं और लड़कियों को उन पर अमल करने के लिये कंडीशन किया जाता हैं और सुरक्षा के बहाने उनकी आजादी उन से छीन ली जाती हैं । बच्ची , लड़की ,बेटी , औरत , माँ , बहना , पत्नी , दादी , नानी , सास , बहू , नन्द , भाभी अनगिनत रिश्तो में नारी जिस जगह भी हैं हर पुरुष जो उस से सम्बंधित हैं वो उसकी सुरक्षा के लिये चिंतित हैं लेकिन सुरक्षा किस से कहीं ना कहीं एक पुरुष से ही ना ।

क्यूँ हर पुरुष को अपने आस पास अपनी करीबी नारी के लिये दूसरा पुरुष एक " दुश्मन लगता हैं " और अगर उसको ऐसा लगता हैं तो क्या वो पुरुष अपने भाई , बेटे , दोस्त को कभी भी ये समझता हैं की नैतिकता क्या हैं स्त्री पुरुष संबंधो की ।


क्यूँ पिता बनते ही हर पुरुष दूसरे पुरुष को अपनी बेटी के लिये असुरक्षित मानता हैं बेहतर होगा पुरुष एक दूसरे को इस और शिक्षित करे ताकि हर पुरुष की बेटी दूसरे पुरुष की भी बेटी ही हो
क्या ये इतना संभव कार्य हैं एक पुरुष से बेहतर दूसरे पुरुष को कौन समझ और समझा सकता हैं
समय हैं बेटियों को नहीं बेटो को नैतिकता का पाठ पढ़ाने का ।

मनाई , बंदिश और नियम

जहाँ भी मनाई हों लड़कियों के जाने की

लड़को के जाने पर बंदिश लगा दो वहाँ

फिर ना होगा कोई रेड लाइट एरिया

ना होगी कोई कॉल गर्ल ,ना होगा रेप

ना होगी कोई नाजायज़ औलाद

होगा एक साफ सुथरा समाज

जहाँ बराबर होगे हमारे नियम

हमारे पुत्र , पुत्री के लिये


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जिस पोस्ट के ये अंश हैं नारी ब्लॉग के पाठक उस पोस्ट पर जा कर उसको पढ़े और कमेन्ट भी दे ऐसा आग्रह हैं

"लड़कियां अपनी इच्छाओं को जबान और महत्वाकांक्षाओं का पंख लगाने को तत्पर है। पितृसत्तात्मक सामंती समाज के शील, संकोच और मर्यादा शायद ही अपने आवरण में उन्हें छल सकें। कानून और सरकार के बल पर नहीं बाजार के बल पर स्त्री बदल रही है। बाजार स्त्री को हजारों साल की जलालत से मुक्त कर रहा है किसी ऐतिहासिक और सामाजिक सरोकार को समझ कर नहीं, बस इसलिए कि उसे अपने फायदे के लिए नये किस्म के श्रम, नये किस्म की श्रमिक और एकदम नये किस्म के ‘प्रोडक्ट’ की जरूरत है। खतरे कम नहीं है इस राह में। लेकिन छ: फीटी साड़ी और घूंघट को कफन की तरह लपेटे समाज की टिकठी पर और कितने दिन पड़ी रहे स्त्री। हजारों साल की इस पाशविक गुलामी में आखिर ऐसी कौन दुर्दशा बची रह गयी जिसका भय दिखाकर आप उसे बाजार के मोहक सपनों की ओर जाने से रोक लेंगे।" Subhash Rai


जिस पोस्ट के ये अंश हैं नारी ब्लॉग के पाठक उस पोस्ट पर जा कर उसको पढ़े और कमेन्ट भी दे ऐसा आग्रह हैं

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October 12, 2011

क्या हम सच में गंभीर विषयों से बच कर निकलना चाहते हैं , क्यूँ हम अनछुए विषयों पर बात ही नहीं करना चाहते

पिछली पोस्ट से बात आगे बढाते हुए
हम सब शुचिता की बात करते हैं संबंधो में , हम सब कहते है की शादी एक पवित्र बंधन हैं और भारतीये संस्कृति का प्रतीक हैं । फिर भी सदियों से विवाह से इतर सम्बन्ध बनते रहे हैं स्त्री और पुरुष दोनों के ।

हर ऐसे इतर सम्बन्ध को सदियों से छुपाया जाता रहा हैं और परिवार के नाम पर नैतिकता को नहीं अनैतिकता को बढ़ावा दिया जाता रहा हैं ।

हमेशा कहा जाता रहा हैं की परिवार सर्वोपरि हैं लेकिन उस परिवार के नियम कितने लोग मानते हैं ?? क्या बात को दबा देने से या बात को छुपा देने से गलत बात ख़तम हो जाती हैं या वो सही हो जाती हैं ?

जिन परिवारों में ये सम्बन्ध होते हैं उनके बच्चे क्या सच में अनजान रहते हैं अपने पिता - माता के बीच की अनबन से ? क्या उन पर क़ोई दूरगामी परिणाम नहीं होता हैं इन सब बातो का ??

हम एक स्वस्थ समाज की बात करते हैं पर क्या हम ने सच में एक स्वस्थ समाज का निर्माण किया हैं ?
हम कहते हैं नयी पीढ़ी बहुत मॉडर्न हो गयी हैं , उनको शादी की जरुरत ही नहीं रह गयी हैं , लिव इन रिलेशन शिप बढ़ रहा हैं , लोग बच्चा नहीं चाहते हैं । नयी पीढ़ी पाश्चात्य सभ्यता को मानती हैं ।

ये नयी पीढ़ी आयी कहां से हैं ? किसी की संतान हैं ये ? क्यूँ बन रही हैं वो ऐसी ? क्या कभी हमारा समाज इस पर विचार करता हैं ? क्या जो कुछ इन बच्चो ने पुरानी पीढ़ी को दबे ढके छुपे करते देखा हैं वो खुल कर कर रही हैं ? हम खुलेपन के विरोधी हैं और इसे पाश्चात्य सभ्यता की देन कहते हैं
लेकिन गलत काम खुले पन से हो या छुप कर हैं तो गलत ही । नयी पीढ़ी इन सब बातो को गलत मानेगी की कैसे जब आप ने किसी भी गलत काम का क़ोई सजा निर्धारण तो किया नहीं हैं । आप ने तो महज इतना कहा हैं कुछ भी कर लो पर घर की बात घर में ही रहे , तमाशा ना बने ।

यानी गलती को गलती केवल इस लिये नहीं माना जाता हैं क्युकी वो पति पत्नी के बीच की बात हैं और कोम्प्रोमैज़ से दाम्पत्य जीवन पटरी पर होता हैं क्युकी बच्चो को सुरक्षा चाहिये । यानी नैतिकता का तो क़ोई मोल ही नहीं हैं क्युकी अनैतिकता की क़ोई सजा नहीं हैं ।

जो पति या पत्नी किसी और से विवाह से इतर सम्बन्ध बनाते हैं क्या वो कभी इन लोगो पर क्या बीतती हैं सोचते हैं ? नहीं वो केवल अपने बारे में सोचते हैं और जिस से सम्बन्ध बनाते हैं उसको ही गलत कहते हैं और अपने विवाह की समस्या का जिम्मेदार मानते हैं ।
गलती दोनों पक्षों की होती हैं पर विवाहित लोग फिर अपने घर वापस जा कर "साफ़ और कुलीन " होने का नाटक कर लेते हैं और दूसरा पक्ष "नीन्दनिये " हो जाता हैं । उसके जीवन का क्या ??? उसकी मनोस्थिति का क्या ??

क्यूँ समाज के नियम सबके लिये बराबर नहीं हैं

पिछली पोस्ट पर नारी ब्लॉग के रेगुलर पाठक ने कहा हैं
फिर आपने बात की परिवार में शुचिता की.पर इसकी स्थापना के लिए क्या किया जाए.एक तरीका नैतिकता,मर्यादा आदि के बखान का हो सकता है लेकिन केवल इससे बात बनती तो दुनिया में अंधिकांश गलत काम कभी होते ही नही.आज भी जो लोग गलत काम कर रहे है उन्हें पता है कि ये गलत ही है पर फिर भी कर रहे है.हाँ कम्प्रोमाइज नहीं होना चाहिए.लेकिन ये विषय थोडा गंभीर हो जाएगा क्योंकि बहुत से प्रश्न इसके साथ जुडे है.इस पर व्यापक बहस की आवश्यकता है.हिंदी ब्लॉगिंग में भी शायद ऐसे प्रयास अभी तक हुए नहीं पर होने चाहिए.


क्या हम सच में गंभीर विषयों से बच कर निकलना चाहते हैं , क्यूँ हम अनछुए विषयों पर बात ही नहीं करना चाहते



अपडेट
ये दो लिंक हैं जहां मैने कमेन्ट किया हैं पाठक उन कमेंट्स पर भी अपनी राय यहाँ दे सकते हैं विषय यही हैं

लिंक
लिंक


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October 11, 2011

एक प्रश्न

मैने जब भी कहीं किसी विवाहित को अपने पति / पत्नी के अलावा किसी दूसरे से सम्बन्ध रखते देखा हैं या उस तरह की समस्या पर कहीं भी विमर्श होते देखा हैं तो हमेशा एक ही बात पर जोर दिया जाता देखा की "अब जो होगया सो होगया , एक दूसरे के साथ कोम्प्रोमिज करो और रहो " । बात परिवार की हो , भारतीये संस्कृति की हो ।

मैने जब भी किसी अविवाहित को किसी से सम्बन्ध बनाते देखा हैं , वो अविवाहित स्त्री हो या पुरुष उनको एक ही सन्देश/ उपदेश दिया जाता हैं "यही सब करना था तो शादी क्यूँ नहीं कर लेते । एक इज्जत की जिन्दगी जियो ।

यानि विवाहित होकर कितना भी अनैतिक आचरण कर लो लेकिन अगर पति पत्नी एक दूसरे को माफ़ !! कर के साथ रह कर , परिवार बना लेते हैं तो वो सजा के नहीं तारीफ़ के काबिल होते हैं और वही एक अविवाहित केवल इसलिये फ्लर्ट और दिल फेंक हो जाता हैं/जाती क्युकी वो अविवाहित हैं

जहां देखो सुनाई पड़ जाता हैं नयी पीढ़ी भारतीये संस्कृति को समझती नहीं , परिवार का महत्व नहीं जानती , शादी और बच्चे नहीं चाहती ।
ये नयी पीढ़ी आती कहा से हैं ?? क्या मानदंड थे पुरानी पीढ़ी के जो नयी पीढ़ी नहीं मानती हैं ?? क्या ये सही कर रही थी पुरानी पीढ़ी सदियों से की परिवार के नाम हर अनैतिक आचरण को बढ़ावा दिया गया ? शादी को एक महज रीति रिवाज समझ कर लिया और जब मन किया बाहर का माहोल देखा , घूम , फिरे और लौट आये । फिर एक दूसरे की हम बिस्तर हो गये , जी हाँ माफ़ कर दिया अब पति ने पत्नी को किया या पत्नी ने पति को क़ोई फरक नहीं हैं।

समाज में नैतिकता ख़तम हो रही हैं ये हर तरफ सुनाई देता हैं पर कौन कर रहा हैं इस पर बात कभी क्यूँ नहीं होती । विवाहित जोड़े जो विवाह से इतर सम्बन्ध बनाते हैं उनके लिये हमारा समाज किसी सजा का प्रावधान क्यूँ नहीं करता हैं ।

क्या केवल शादी कर लेने से और परिवार हो जाने से उनको सजा से इम्म्युमिटी मिल जानी चाहिये ??

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October 09, 2011

कहते हैं दहेज़ लेना और देना कानूनन अपराध हैं , क्या सच में

दो तीन दिन से टी वी पर खबर आ रही हैं की एक लड़की जिसकी शादी इस साल शायद मार्च में ही हुई थी उसको उसके ससुराल वालो ने छत से नीचे फ़ैक दिया और वो बहुत गंभीर हालत में अस्पताल में भरती हैं ।

घटना जयपुर की हैं लड़का डॉक्टर हैं लड़की भी डॉक्टर हैं । लड़की अपने माँ पिता की एक ही संतान हैं ।

लड़की के पिता का कहना हैं की लडके वाले दहेज़ की मांग कर रहे थे और ससुराल वालो ने लड़की को छत से फैकने से पहले उस से सुसाइड नोट भी लिखवा लिया था


क्या एक डॉक्टर लड़की को छत से फैकने से पहले उसके माँ पिता को ज़रा भी आभास नहीं हुआ होगा की ये होने वाला हैं ??
क्या एक डॉक्टर लड़की के विवाह में दान दहेज़ की प्राथमिकता होती हैं ??
क्या एक डॉक्टर लड़की शादी से पहले बिलकुल अनभिज्ञ रहती हैं कि उसके विवाह में क्या क्या खर्च होगा ?
लड़की कि ऐसी क्या मज़बूरी होती हैं कि वो डॉक्टर होने के बाद भी अपने विवाह के बारे में , होने वाले परिवार के बारे में आँख बंद रखती है ?
विवाह होने के बाद भी , ससुराल पहुचने के बाद और ससुराल वालो के व्यवहार को जानने के बाद क्या एक डॉक्टर लड़की इतनी लाचार हो जाती हैं अपने घर वापस ना सके और छत से फ़ेंक दी जाए ??

इस पोस्ट के जरिये क्या हम मंथन कर सकते है कि दहेज वास्तव में कौन चाहता हैं { यानी देना और लेना }

क्या वर
क्या वर के परिवार वाले
क्या वधु
क्या वधु के परिवार वाले

क्यूँ बराबर के पढ़े लिखे वर -वधु में वधु को दहेज़ में बलि बनना पड़ता हैं
और अगर दहेज़ लेना और देना कानून अपराध हैं तो क्यूँ नहीं वर , वधु और दोनों के माता पिता सब को जेल होती हैं


There is case of Lady Dr being thrown from roof top by her in-laws in Jaipur within 6 months of her marriage . Reason Dowry . The girl parents claim , they were being harassed for dowry and in laws even got a suicide note written by the girl .
I sometimes wonder do these highly educated girls don't know what expenses are being incurred on their wedding ? And to top it all when they reach the husbands house and realize something is amiss , do they never bother about their safety ?
When boy and girl are equally qualified why girls don't put their foot down at the time of marriage itself and stop their parents from spending exorbitant amount on marriage for dowry ?

Thru this post can we really discuss who is the one who wants the dowry { give or take }
the boy and his parents
the boy
the girl and her parents
the girl

And why when the girl and boy both are equally qualified its the girl who is sacrificed in the name of dowry .

Dowry is a legal offense , then why not punish bride , bridegroom and both set of parents equally and send them all to jail


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October 07, 2011

हेड ऑफ़ द फॅमिली / परिवार का मुखिया कुछ प्रश्न

  1. परिवार का मुखिया या हेड ऑफ़ दी फॅमिली का क्या मतलब समझना चाहिये और
  2. क्या "हेड ऑफ़ फॅमिली" की जरुरत हैं हर परिवार को आज भी ?
  3. किसी व्यक्ति में क्या क्या होना चाहिये हेड ऑफ़ फॅमिली बनने के लिये या ये क़ोई अपने आप ही बन जाता हैं ??
  4. हेड ऑफ़ फॅमिली के नियम कानून किस किस पर लागू होते हैं परिवार में
और
एक बार क्या परिवार को भी "परिभाषित " किया जा सकता हैं

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October 06, 2011

महिला कमाए पैसा - A Big No No

रियल्टी शो का चलन आने से बहुत से लोगो को रोजी रोटी मिल रही हैं कुछ उसी तरह जैसे न्यूज़ चॅनल पर विज्ञापन दिखाया जाना .

अब बात करते हैं की लोग पैसे के लिये क्या क्या करेगे , धोनी क्या क्या नहीं करते ?? अमिताभ क्या क्या नहीं करते ?? अगर जिन्दगी बिना पैसे के चल जाती तो शायद ही किसी को काम करना पड़ता .

अब जिस को जो काम आयेगा वो वही करेगा . एक गर्भवती पहलवान लड़की अगर पैसा कमाना चाहती हैं तो इस में हर्ज क्या हैं ? अगर वो बच्चे को शो के दौरान जनम दे भी देती हैं तो इस से क्या फरक पड़ेगा ?? हो सकता हैं वो इसीलिये यहाँ आयी हो ताकि जो भी खर्चा हैं वो चॅनल करे .

अगर याद आये तो याद करिये एक ब्रिटिश कलाकार ने अपनी मृत्यु तक को स्पोंसर कर दिया था ताकि उसके बच्चो के लिये अथाह पैसा हो

मुझे वाकई ये समझ नहीं आता की पैसा कामना क्यूँ बुरा हैं अगर वो बिना बेइमानी के कमाया जा रहा हैं . और खुशदीप की पुरानी आदत हैं वो महिला पर बड़ी जल्दी ऊँगली उठा देते हैं इस से पहले प्रियंका के ऊपर भी वो पोस्ट लिख चुके हैं सो आपत्ति दर्ज करना बेकार हैं क्युकी उनको शायद महिला का पैसा कमाना ही गलत लगता हैं हमेशा .


और पूरी पोस्ट में कहीं भी प्रतिकार नहीं हैं की शक्ति कपूर जैसे व्यक्ति को जिस के ऊपर स्टिंग तक से ये साबित हो चुका हैं वो यौन शोषण का दोषी हैं को क्यूँ इस शो में रखा गया .
अब ये ना कहे ये तो उन महिला को कहना चाहिये जो उस शो में हैं क्युकी वो सब तो इन जैसो को सही रखना जानती हैं



किसी गर्भवती महिला के ऐसे वक्त पर परिवार के सदस्यों से दूर रहने में कोई बुराई नहीं है Linkतो रचना जी का तर्क जायज़ है...
कितनी ही मजदूर औरते सडको पर बच्चे जनती हैं , जनपथ पर हुई जच्चगी भूल गये क्या या , अस्पतालों के बाहर वरांडे में बच्चा पैदा होता हैं , ये याद हैं या बच्चा होता ही सड़क पर फ़ेंक दिया जा ता हैं क्यूँ गरीबी , पैसा ना होना
परिवार का महातम रोटी से बड़ा नहीं होता

शो के आयोजकों की मेडिकल सुविधाएं अगर घर के सदस्यों के साथ रहकर भावनात्मक और मानसिक रूप से संबल दिए जाने पर भारी हैं तो रचना जी का तर्क जायज़ है...
जहां पुरुष बाहर काम करते हैं और महिला कहीं और वहाँ क्या होता हैं , आज कल ना जाने कितनी गर्भवती महिला ८ मॉस तक काम करती हैं ताकि बच्चा होने के बाद आराम कर सके

अमेरिका के कैलिफोर्निया में पति के साथ वेल सेटल्ड महिला का सृष्टि के विधान की प्लानिंग के साथ सिर्फ पैसे के लिए नुमाइश करना स्वालंबन है तो रचना जी का तर्क जायज़ है...
किसी भी अमीर पर ऊँगली उठाना महज इसलिये क्युकी उसके पास हम से ज्यादा हैं कितना सही हैं सोचिये , ये उन पति पत्नी का मामला हैं और आप के पास क़ोई साक्ष्य हैं की वो पति वेल सेटल ही हैं , मंदी के दौर में अमेरिका में कौन सैटल हैं ये अखबार पढ़ ले
हो सकता है एक माँ अपना और बच्चे का भविष्य सुधार रही हो


अगर मैंने कभी किसी पुरुष या संस्थान के खिलाफ आलोचनात्मक पोस्ट नहीं लिखी तो रचना जी का तर्क जायज़ है...
कितनी लिखी हैं पता नहीं क्युकी जब भी किसी महिला को पैसा कमाते देखते हैं आप तुरंत उनके ऊपर पैसा कमाने को ले कर आक्षेप लगा देते हैं
अब गर्भवती केवल महिला ही होगी पुरुष नहीं और अपने और अपने बच्चे के सुरक्षित भविष्य के लिये वो महिला जिम्मेदार हैं वो पैसा कमाये ये उसकी मर्जी क्युकी पिता को ९ महीने ऐसा क़ोई फैसला करना पडे इस की नौबत ही नहीं आती हैं

हर मुद्दे को महिला-पुरुष के नज़रिए से ही देखा जाना चाहिए तो रचना जी का तर्क जायज़ है...
हर मुद्दे को महिला - पुरुष की के नज़रिये से देख कर ही ये सब पोस्ट आती हैं क्युकी महिला के लिये माँ बनना यानी ९ महीने शिशु को पेट में रखना एक सजा नहीं हैं और ये बात साइंस भी मानती हैं की काम करने से क़ोई नुक्सान नहीं होता



अब घास हमेशा हरी ही नज़र आए तो क्या करूं, चाहे सावन हो या न हो...

सावन हो क्या क़ोई भी मौसम हो अगर औरत पर टार्गेट करके लिखेगे को घास खिलाने आना ही पड़ेगा




मेरे ही लिखे पुराने लिंक हैं इसी ब्लॉग से , मिलते हुए विषय पर

फिर चाहे वो "राखी का स्वयम्बर " हो या "सच का सामना " या "मुझे इस जंगल से बचाओ " मकसद सिर्फ़ इतना हैं कि पैसा हो ताकि जिंदगी आसान हो ।

केवल नारी को पैसा नहीं कमाना चाहिये और हर नैतिकता का ध्यान रखना चाहिये मुझे इस बात से ना कभी इतिफाक था ना होगा । माँ बनना , और काम करना , पैसा कमाना सब अपने अपने व्यक्तिगत निर्णय हैं

लेकिन क्युकी क़ोई माँ बनने वाली हैं और काम कर रही हैं , गलत हैं मुझे नहीं लगता ये सोच सही हैं ।
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