नारी ब्लॉग सक्रियता ५ अप्रैल २००८ -से अब तक
पढ़ा गया १०७५६४ फोलोवर ४२५ सदस्य ६०
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ब्लॉग पढ़ रही थी एक ब्लॉग पर एक पोस्ट देखी जहां लड़कियों के नथ पहनाने की फायदों की बात हुई हैं और वहां वैज्ञानिक कारण भी दिये हैं ।
नथ यानी नाक में पहनने वाला गहना ।
लोग कितना जानते हैं नथ के बारे मे या क्यूँ पहनाई जाती थी नथ लड़कियों को और क्यूँ धीरे धीरे अब इस का प्रचलन केवल और केवल एक फैशन मात्र ही हैं
पहले लड़कियों की नाक बचपन मे छिदवा कर उसमे नथ पहना दी जाती थी ।
ये नथ "प्रतीक " होती थी की स्त्री ने किसी के साथ सहवास नहीं किया हैं । जब लड़की का विवाह होता था तो नथ उसका पति उतारता था और उसके बाद स्त्री नथ की जगह नाक की कील पहन लेती थी ।
"नथ उतराई " वेश्या की भी बहुत महातम रखती थी और इस के लिये राजा , महराजा धन दौलत लुटा देते थे ।
यानी नथ प्रतीक थी कि स्त्री वर्जिन हैं । एक और विद्रूप सोच जो स्त्री के वर्जिन होने को महिमा मंडित करती थी लेकिन पुरुष के लिये कोई भी "ऐसी सोच " समाज मे नहीं थी ।
धीरे धीरे जब नारी को ये बात समझ आ गयी और उन्होने विद्रोह स्वरुप नथ पहनना बंद कर दिया । स्त्री वर्जिन हैं या नहीं ये उसकी अपनी पसंद हैं । लेकिन वर्जिन होने का सबूत अगर नथ हैं तो नारी ने इसको ना मंजूर कर दिया ।
कभी कभी लगता हैं हमारी संस्कृति के ऊपर लम्बे लबे लेख लिखने वाले असली बात को हमेशा छुपा क्यूँ जाते हैं । इतने अनभिज्ञ तो वो नहीं होगे की नथ के ऊपर सब जानते हो पर ये ना जानते हो की नथ किस बात का प्रतीक या सबूत होती थी
नथ पहनना या ना पहनना उस पर निर्भर हैं जो इस को पहनता हैं लेकिन नथ के पीछे का इतिहास बहुत घिनोना हैं ।
नथ उतराई
नथ उतारना
कभी कभी जब ऐसे आलेख पढ़ती हूँ जहां नथ कि महिमा का गान करते हुए बताया जाता हैं कि कैसे नथ पहनने से बीमारिया कम होती हैं तो मन में आता हैं पूंछू फिर सुहागन से विधवा होते ही नथ क्यूँ उतरवा दी जाती हैं ।
क्या विधवा को बीमारी नहीं होती या फिर उसको बीमारी से नहीं बचाना चाहिये ??
नथ ही नहीं हर वो गहना जो नारी को उस समय पहनाये जाये जब उसका विवाह हो रहा हैं और उस समय उतरवा लिया जाए जब वो विधवा हो जाती हैं केवल और केवल नारी के जीवन मे विवाह और पति का महातम बना रहे इस लिये ही होता हैं अन्यथा मंगल सूत्र , बिछिये , चूड़ियां इत्यादि सुहागन का प्रतीक नहीं होती । नारी के अपने लिये ये कुछ भी नहीं हैं । सब उसके जीवन मे जुड़े पुरुष के लिये हैं और जिस दिन वो पुरुष नहीं रहता ये सब उसके लिये बेकार समझा जाता हैं ।
अनगिनत प्रश्न हैं उत्तरों कर लिये मुहं बाए , लिखती रहूंगी नारी ब्लॉग पर
चलते चलते , नारी ब्लॉग के सभी सदस्यों को नारी ब्लॉग के तीसरे जनम दिन कि शुभ कामना । इस जमीन पर पाँव जमें रहे इसी कामना के साथ ।
स्त्री उत्पीड़न में मुक्ति!
नथ वगेरह पहनने के फारदे बताने में कोई बुराई नहीं.लेकिन इसके फायदे जानते हुए भी हम ऐसी किसी सोच का विरोध तो कर ही सकते है न जिसके अनुसार इन्हें पहनने से स्त्री काबू में रहती है या ये उसके कौमार्य की निशानी है.लेकिन समाज के एक वर्ग की जब तक ये सोच रही तब तक तो हम चुप रहे क्योंकि इससे हमारा कोई नुकसान नहीं था और जैसे ही किसी महिला ने ऐसी सोच का (न कि गहने पहनने का) विरोध किया तो उल्टे उसी के खिलाफ मुगदर भांजने निकल पडे क्या इसे बेईमानी न कहा जाए?
ReplyDeleteहम जब स्त्री के फायदे के लिये बात करते है तब भी उसे ही नीचा दिखाते है जैसे ये गहने वाली बात,भीड के फायदे की बात करते है तब भी जैसे महिने के कुछ खास दिनों में उसे धार्मिकस्थलों से दूर रखने के लिये भी स्त्री को ही अपवित्र बताना(संक्रमण वगेरह का चक्कर रहा होगा),और जब पुरूष के भले कि बात करते है तब भी जैसे पहले पुरुषों को ब्रह्मचर्य का पालन कराने व स्त्री के आकर्षण से अछूता रखने के लिये भी उसे ही नरक की द्वारी वगेरह बता दिया जाता था. हो सकता हैं शुरू में ये बातें न कहकर कुछ और कहा गया हो लेकिन यदि हमने स्त्री को नीचा दिखाने के लिये ऐसी बातें अपना ली तब तो हम और भी ज्यादा दोगले हुए.फिर ऐसे दोगलेपन का विरोध महिलाएँ क्यों न करे?
सुमन आप को भी नारी ब्लॉग के जनम दिन की बधाई . कोई भी गहना अगर स्त्री इस लिये पहनती हैं की वो उसकी पसंद हैं तो सही हैं लेकिन अगर सामाजिक दबाव के चलते पहनती हैं तो वो गलत हैं
ReplyDeleteराजन
लीजिये सुमन आगई लेख ले कर अपने पिछले पोस्ट मे शायद उनको याद दिलाया था
आप एक बार औरो को भी याद दिलाईये की उनको लिखना चाहिये
जी रचना जी मैंने सुमन जी का नाम लिया था.और बहुत ही बढिया वापसी की है उन्होने.इसके लिये धन्यवाद.उस दिन एक नाम जोडना भूल गया था वो है फिरदौस जी.कोई बात नहीं यदि व्यस्तता के चलते पोस्ट न दे सकें तो कई बार कमेंट ही काफी होते हैं.
ReplyDeleteसुमन जी,
ReplyDeleteआपकी लेखनी की धार ने नारी के इस सालगिरह के जश्न को और बढ़ा दिया है. बड़ा सटीक प्रश्न उठाया है की स्त्री के विधवा होते ही उसके सारे गहने क्यों उतरवा दिए जाते हैं. क्या वे सिर्फ उसके अस्तित्व को कुछ भी नहीं मनाते हैं. उसका अस्तित्व क्या सिर्फ पति से ही जुड़ा होता है. अब इस धारणा में भी परिवर्तन आ रहा है. आज की पीढ़ी इन वर्जनाओं और रुढियों से अलग हो कर जीने का साहस करने लगी है. जब तक ये आचरण आम न हो जाये या एक भी इस तरह की रूधि मौजूद है इसके लिए संघर्ष जारी रहना चाहिए. ...
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (11-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteपर विवाहेत्तर सम्बन्ध अभी भी नारी के लिए वर्जना बने हुए हैं. क्यों एक नारी विवाह के रिश्ते से परे जाकर शारीरिक सुख नहीं उठा सकती? क्या एक ही पुरुष से बंधे रहना महिला की यौन अभिव्यक्ति पर अत्याचार नहीं है? क्या यह उम्मीद करना गुलामी की उम्मीद नहीं है? इसपर भी बहस होनी चाहिए.
ReplyDeleteइस विषय पर मुझे भी जानकारी नहीं थी । लेख के लिए आभार।
ReplyDeleteनथ का एक इतिहास कुरूप है यह कड़वा सच है लेकिन आज इसी सच्चाई को बेझिझक नकारा भी जा रहा है......
ReplyDeleteनाथ है तो नकेल जैसी ही. किन्तु बहुत से समाजों में विवाहिताएं नथ पहनती हैं बल्कि विवाहिताएं ही नाथ पहनती हैं.पहले स्त्री को गहने पहनने की आदत डाली जाती है फिर पति के बाद वे उतार कर पति के जीवित रहने का महत्व सिखाया जाता है. हम सभी जानते हैं कि यह सब क्यों किया जाता है किन्तु स्वीकार नहीं करते.
ReplyDeleteघुघूती बासूती
Nath aaj kaval ek abhusad matr raha gayi hai ha iska pahle jis arth (nari ki pavitrata) mein prayog hota tha wah kavel nari ko badh kar rakhne ki kosis matr thi jo ki puri tarh se galat thi. Nari ki pavitrata uske hatho mein hai na ki ek nath ke.............
ReplyDeleteनारी शक्ति को सलाम
ReplyDeleteLekin kuchh v ho bharteeya naari ki sondarya ka asli gahna naak ki nath h
ReplyDeleteनारी के जितने भी गहने आज प्रचलन में हैं,इन सभी में एक भी गहना नारी के सौंदर्य से सम्बंधित नहीं,,,ये सभी नारी की गुलामी की निशानी हैं।जैसे जब आर्य विदेशी भारत आये,तो वो साथ में स्त्रियों को नहीं लाये थे,इसलिए यहीं के मूलनिवासियों की स्त्रियों,लड़कियों को छीनकर ले जाते थे,एवम कोई दूसरा उन पर अपना दावा न करे,इसलिए उनके हाथों या पैरों में धातु के कड़े,या जंजीर डाल देते थे,गर्दन में भी किसी धातु की जंजीर या मोटा कड़ा डाल देते थे,जिस प्रकार से कैदी के हाथ पैरों,गर्दन में हथकड़ी आदि होती है,अब करते हैं बात स्त्री की लाल बिंदी की,तो क्रूर आर्य उस स्त्री के सामने ही उसके पति की हत्या कर देते थे,और उस मृत पति के खून से उसकी पत्नी के सिर को भर देते थे,की अब तुझे कोई बचाने नहीं आएगा,ये सिंदूर से मांग भरने की एतिहसिक सच्चाई है,इसी प्रकार नाक,कान छेद देने का भी प्रचलन था,मकसद एक ही था,की सम्बंधित स्त्रियों,लड़कियों को कोई दूसरा आर्य कबीला न ले जाये,ये उस आती की संपत्ति मानी जाती थीं।जो इन्हें छीन झपट कर लाया,और इन्हें,चिन्हित कर देता था,इसकी दूसरी वजह भी थी,की नाक,कान छेदने से कई दिन उन बेबस स्त्रियों,लड़कियों को असहनीय दर्द,वेदना होती थी,जिससे उनका विरोध धीमा पड जाता था,आर्यों का इतिहास बहुत ही बर्बर,और अनगिनत हत्याओं के रक्त रंजित इतिहास रहा है,,,चूंकि आर्यों ने यहीं की स्त्रियों से वंश वृद्धि की,इसलिए आर्य इस भारत को मातृभूमि कहने लगे,,,क्योंकि इनकी पितृभूमि तो ईरान,यूरेशिया थी।।।
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