नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

December 29, 2011

कहां से आयेगा इतना पैसा और किस काम की होगी ये पोतियाँ ??

कुछ समय पहले इस लिंक पर एक पोस्ट पुब्लिश की थी । लिंक पर जा कर आप पोस्ट पढ़ भी सकते हैं और आयी हुई तारीफों के कमेन्ट भी देख सकते हैं ।
आज उसी महिला के विषय में एक और पोस्ट दे रही हूँ । पता नहीं वो लोग जिन्होने पहले इनके ऊपर दी हुई पोस्ट पढी थी वो इस पोस्ट को पढ़ कर क्या सोचेगे ।

चंद्रकांता जी के यहाँ ३ बेटो मै बड़े बेटे के एक बेटी और एक बेटा हैं , बाकी दोनों बेटो के १-१ बेटी हैं । पिछले वर्ष चंद्रकांता जी के तमाम अनुग्रह , आग्रह और साम दाम दंड नीति के तहत उनकी दोनों छोटी बहुए इस बात के लिये तैयार हुई की वो दुबारा माँ बने । पूरे ९ महीने चंद्रकांता जी ने अपनी बहुओ के प्रसव का इंतज़ार किया लेकिन पोतो के आने का ।

बीते हुए मई और जून के महीने में दोनों बहू दुबारा माँ बनी । चन्द्रकान्ता जी के घर २ और पोतियाँ आ गयी हैं ।

जब मई में बच्ची हुई तो चंद्रकांता जी अस्पताल से सीधे घर आगई और उसके बाद अस्पताल नहीं गयी । रोज शाम को वो सीनियर सिटिज़न क्लब में भी आने लगी । जब लोगो ने बधाई दी और कहा आप को तो बहू के पास होना चाहिये क्युकी उसको आप की ज़रूरत हो सकती हैं दूसरी बहू तो खुद नौवे महीने में हैं तो चंद्रकांता जी ने कहा मुझे क्या करना हैं , लड़की हुई हैं वैसे भी अपने आप संभाले लेगी इसमे करना क्या होता हैं । उनके इस रवये के बाद किसी ने उनसे मिठाई की मांग भी नहीं की ।
जब जून में दूसरी पोती हुई तो चंद्रकांता जी का गुस्सा सातवे आसमान पर था । वो अस्पताल भी नहीं गयी । यहाँ तक की जितनी जगह उन्होने पोता होने के लिये पूजा , तावीज , टोना टोटका इत्यादि करवाये थे उनके लिये भी चंद्रकांता जी ने अपशब्द कहे ।
दो बच्चे घर में जन्मे थे इसलिये पूजा करवाना चाहती थी उनकी बहुये जिसके लिये भी चंद्रकांता जी बड़ी ही मुश्किल से तैयार हुई ।

अपनी एक बहुत ही क्लोज फ्रेंड के साथ बैठ कर उसके बाद चंद्रकांता जी फुट फुट कर रोयी । बहुत समझाने पर बोली की मेरे बेटे अब क्या करेगे । ३ बेटो में ५ पोतियों का बोझ हैं कैसे पार लगायेगे । लड़कियों को पढ़ाना लिखना शादी करना सब अंधे कुयें मे पैसे डालने जैसा होता हैंकहां से आयेगा इतना पैसा और किस काम की होगी ये पोतियाँ ।

आज ६ महीने बाद चन्द्रकान्ता जी का मानसिक संतुलन जैसे बिगड़ सा गया हैं । हर व्यक्ति से वो लडती सी लगती हैं । आस पास के लोग और उनके मिलने वाले उनके इस व्यवहार से अचंभित हैं क्युकी उनको लगता था जो महिला अपनी बेटी के डाइवोर्स के बाद इतनी लड़ाई लड़ कर बेटी के लिये हर्जाना वसूल सकती हैं वो इस प्रकृति की कैसी हो गयी ।

आज भी बेटियों का जन्म लेना अभिशाप हैं हमारे समाज में क्युकी उनकी शिक्षा दीक्षा पर जो खर्च होता हैं वो अंधे कुये में पैसा डालने जैसा माना जाता हैं ।
कितने और दशक लगेगे ये सब ख़तम होने में ??? पाठक बताये ।

एक सन्दर्भ और जोड़ ले यहाँ
किस काम के लिये माँ पिता बच्चो को जन्म देते हैं ??
क्या बेटो का जन्म किसी सोचे हुए मकसद के तहत होता हैं ??
क्या बच्चे केवल इस लिये चाहिये क्युकी वो माँ पिता के किसी काम आने होते हैं ??
क्या बच्चे किसी प्रकार के बंधुआ मजदूर हैं अपने माँ पिता के क्युकी उनके लालन पालन पर माँ पिता पैसा और उर्जा खर्च करते हैं ??

अनगिनत सवाल हैं उत्तरों की प्रतीक्षा में ।

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December 18, 2011

अच् आ ई वी का खतरा अब रेड लाईट एरिया की वर्कर में कम हो गया हैं .


नीचे दी हुई खबर पढिये और देखिये

अच् वी का खतरा अब रेड लाईट एरिया की वर्कर में कम हो गया हैं .

कारण होमो सेक्सुअल मेल यानी पुरुष तो पुरुष के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं उन पर ये ख़तरा ज्यादा हो गया हैं

जो अनुपात २००० में ४.३ % था वो २००९ में ७.३० % हो गया हैं

तकरीबन २५ लाख होमो सेक्स्सुअल पुरुष सरकारी आकड़ो के हिसाब से एक हाई रिस्क ग्रुप में हैं ।

अब क्या कहा जा सकता हैं , पिछली पोस्ट की तरह प्रबुद्ध पाठक अगर नाम पूछेगे या प्रमाण मांगे तो कहा से दिया जायेगा :-)

भला हो मीडिया का की वो खबरे जो पहले छुपी रहती थी वो अब सामने आ रही हैं ।



For one, the feminist can now have a laugh -homosexual men are increasingly getting infected with the Human Immunodeficiency Virus/Acquired Immuno Deficiency Syndrome।

And, in the process, women -especially commercial sex workers --who have been bearing the brunt of the deadly disease till now have got some respite.

The latest data analysed by a planning commission committee shows that of the 1.2 lakh new HIV/AIDS cases in 2009, 7.30% are same-sex men and drugusers, while female sex workers account for 4.94%.

In 2000, HIV-infected female sex workers were about 11% of the 2.7 lakh new registrations, while same-sex men accounted for 4.3%.

A report of the committee, chaired by Sayan Chatterjee, secretary in the department of AIDS control in the health ministry, said, “This estimate has confirmed the clear decline in HIV prevalence among sex workers.“

But what worries the government is the increased level of the disease among homosexual men and drug-users. The department estimates that there are 25 lakh homosexual males, who fall in the high-risk group.

What's more, the vulnerability of men has been found to be more in the states that have traditionally recorded low prevalence of the disease, such as Orissa, Bihar, West Bengal, UP, Rajasthan, Madhya Pradesh and Gujarat. These now have high levels of HIV among men.

The report, to be submitted to the government for formulating new policy interventions in the 12th five-year plan (2012-2017), says, “Some low-prevalence states have shown increases in the number of new infections over the past two years, that underscores the need to focus more on these states.“

Chetan Chauhan, Hindustan Times







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December 16, 2011

क्या कम आयु के लडको का स्पर्म बेचना महज अपनी पॉकेट मनी के लिये सही हैं / नैतिक हैं ???

यहाँ मुद्दा हैं की क्या कम आयु के लडको का स्पर्म बेचना महज अपनी पॉकेट मनी के लिये सही हैं / नैतिक हैं ???
मैने यहाँ गर्भ धारण की किसी भी पद्धति की बात कहा की हैं ???
मेरा मुद्दा साफ़ हैं की अगर लड़कियों को महज पिंक चड्ढी , सलट वाल्क जैसे विरोध करने के तरीको को लेकर लोग उनको छिनाल , वेश्या इत्यादि कहते हैं वो लोग इन लडको के जो जान कर और समझ कर ये कृत्य कर रहे हैं क़ोई ब्लॉग पोस्ट दे कर विमर्श क्यूँ नहीं करते हैं .

कितनी आसानी से प्रबुद्ध पाठक मुद्दे को गर्भ धारण की विधियों की जानकारी पर ले गए और उस जगह जहां एक माँ अपने बेटो से कह सकती थी "बाँट लो " द्रौपदी को .

मेरी पोस्ट हमेशा नारी और पुरुष को मिले अधिकारों की असमानता पर होती हैं और जितनी बाते मैने इस पोस्ट में कही हैं नैतिकता लड़कियों के लिये जिन पर पोस्ट पर पोस्ट आती हैं और सो कॉल्ड विमर्श होता हैं उतना विमर्श इस पोस्ट की दिशा को ध्यान में रख कर क्यूँ नहीं हो रहा क्युकी यहाँ गलत काम एक ना बालिग लड़का कर रहा हैं .

पूरा विमर्श यहाँ पढ़े और कमेन्ट भी दे और सबसे जरुरी हैं इस जानकारी को समझे और बांटे ताकि आप के घर में अगर क़ोई बालक नादानी वश दिशा भ्रमित हो रहा हैं तो रोके

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December 14, 2011

बेटो को भी नैतिक शिक्षा की जरुरत हैं ताकि समाज सुरक्षित रहे । ---- illegal sperm donation

हमारे आस पास की दुनिया के बदलाव बहुत तेज हैं और मीडिया के कारण आज कल , बहुत सी ऐसी खबरे जो शायद पहले हम तक नहीं पहुचती थी , अब उन पर चर्चा करना संभव हैं ।

बहुत से ऐसे विषय जो घरो में आज भी प्रतिबंधित हैं उन पर अगर घरो में चर्चा हो तो शायद बदलाव का रुख सकारातमक हो ।

मैने इस ब्लॉग पर हमेशा कहा हैं की नारी के अधिकार और कर्त्तव्य , हमारे कानून और संविधान में पुरुष के बराबर ही हैं । उसके साथ साथ मैने ये भी कहा हैं की एडल्ट होने तक बच्चो को सही मार्ग दर्शन की बहुत आवश्यकता हैं और ये हम तभी दे सकते हैं जब हम खुद नैतिक हो । नैतिकता की बात करना और उस नैतिकता को सबसे पहले अपने पर लागू करना दोनों में अंतर हैं । जब ये अंतर ख़तम होगा तभी नयी पीढ़ी के आगे हम किसी भी सोच को रखने का अधिकार पा सकते हैं ।


बहुत से ब्लॉग पर मैने पढ़ा हैं की नारी के लिये नैतिक क्या हैं , उसको क्या क्या करना चाहिये । प्रगतशील नारी का मतलब हमेशा लोगो को नकारात्मक छवि देता हैं नारी की यानी जो
बाल कटाती हैं
स्तन पान नहीं कराती
गर्भ निरोधक लेती हैं
अबोर्शन करवाती हैं
नौकरी करती हैं घर में मैड रखती हैं
खाना नहीं बनाती हैं
सिगरेट लेती हैं
पब में जाती हैं
डिस्को में जाती हैं
घर देर से आती हैं
शादी नहीं करती हैं
शादी से पहले कोमार्य भंग करती हैं
दुबारा वर्जिन बनने के लिये ओपरेशन करवाती हैं
इत्यादि
इसके अलावा हमारी सैलिब्रितिज़ पर भी तंज उठते रहे हैं
प्रियंका ने शराब का विज्ञापन दिया
मल्लिका ने कपडे शरीर दिखने वाले पहने
राखी सावंत ने डांस में हद कर दी
इत्यादि
इसके बाद जो और विषय हैं जिन पर चर्चा होती रही हैं वो हैं
गरीब महिला अपनी कोख बेचती हैं
गरीब माँ अपने बच्चे बेचती हैं
गरीब माँ अपना दूध बेचती हैं
और आगे जाए तो
पढ़ी लिखी लडकियां संभ्रांत परिवार की पॉकेट मनी के लिये
कॉल गर्ल का काम करती हैं
गर्ल गाइड का काम करती हैं
या
रेप का कारण लड़की का पहनावा और चाल चलन होता हैं

इन सब विषयों में जब भी चर्चा होती हैं दो बताए हमेशा कही जाती हैं
एक ये सब इस लिये गलत हैं क्युकी महिला करती हैं
दूसरा महिला ये सब करके पुरुष बनना चाहती हैं

जिसका निष्कर्ष हैं की अगर महिला करती हैं तो गलत हैं और अगर महिला पुरुष के गलत काम को देख कर करती हैं यानी पुरुष बनना चाहती हैं तो भी महिला के लिये ही गलत हैं
यानी पुरुष का करना गलत नहीं हैं क़ोई भी काम हाँ महिला करे अगर उसी काम को तो गलत हैं ।

अब आप सोच रहे होगे विषय क्या हैं
विषय हैं की आज के युवा टीन एजर लडके यानी जो अभी १८ वर्ष के भी नहीं हैं और बहुत ही संभ्रांत परिवारों से हैं , जिनके परिवारों का नाम कुलीन परिवारों में गिना जाता हैं वो अपना स्पर्म डोनेट कर रहे हैं
ये कानून गलत हैं पर हो रहा हैंसुंदर और गोरे लडको के स्पर्म की मांग बहुत हैं और एक बार के डोनेशन का १०० रुपया मिलता हैं


किसी भी जगह किसी भी ब्लॉग पर मैने अभी तक इस विषय पर ना तो बहस देखी हैं और ना ही ये देखा हैं की किसी ने भी इसको गलत मान कर इसका प्रतिकार किया हो ।
अब या तो ब्लॉग लिखने वाले इसको गलत ही नहीं मानते हैं क्युकी लडके कर रहे हैं
या
लोग पूरी तरह से अनभिज्ञ हैं की ये हो रहा हैं ।

अगर आप अनभिज्ञ हैं तो एक बार इस विषय पर सोचिये जरुर क्युकी या तो आप बेटे के माँ पिता हैं
या आप होने वाले दामाद के सास ससुर हैं
दोनों ही केस में आप इस विषय से जुड़े हैं ।

Delhi: Lure of quick money pulls school boys to sperm donation

Sperm donation for pocket money?

अगर किसी के पास किसी भी हिंदी में लिखे हुए ब्लॉग पोस्ट का लिंक हो इस विषय पर तो कृपा कर के कमेन्ट में जरुर जोड़ दे ।

जो लोग इस चर्चा को आगे बढ़ाना चाहे वो इस पोस्ट का लिंक भी जोड़ दे ।

इस विषय से सेहत संबंधी जो भी जानकारी हो उसको खोजिये और अपने बेटो से इस पर चर्चा भी कीजिये । नैतिकता का पाठ पढ़ना बेटे और बेटी दोनों के लिये जरुरी हैं

हाँ एक सम्बंधित विषय हैं जिस पर चर्चा जरुर होनी चाहिये की स्पर्म डोनेशन की जरूरत क्यूँ पड़ने लगी हैं क्या infertility on the rise,हैं । अगर ऐसा हैं तो क्या विवाह पूर्व इसकी जांच भी जरुरी हो जाएगी जैसे एच आई वी के लिये कहा जाता हैं ।

चलते चलते

अब समय आ रहा हैं जब दुनिया में क्लोन ज्यादा होगे । बच्चो की शक्ल घर के लोगो से नहीं मिलेगी । हो सकता हैं किसी का बच्चा जब उसके साथ ट्रेन में या फ्लाईट में जा रहा हो तो बगल की सीट वाले से उसकी शक्ल और व्यवहार मिल रहा हो क्युकी क्या पता डोनेट किये हुए स्पर्म से किसी सररोगेट माँ की कोख से वो जन्मा / जन्मी हो ??? !!! :-)

इसे विज्ञान की तरक्की कहेगे या इसको नैतिकता का पतन ये फैसला होता रहेगा , समय की मांग हाँ की कम आयु के बच्चो को रोका जाये इसको करने से । बेटो को भी नैतिक शिक्षा की जरुरत हैं ताकि समाज सुरक्षित रहे ।

वो लोग जो संतान को जन्म देने में अक्षम हैं क्या ही बेहतर हो अगर गोद लेने का विकल्प चुने

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December 09, 2011

एक भारतीये ब्लॉगर के इंग्लिश ब्लॉग पर एक अमेरीकन महिला का पत्र छपा हैं ।

एक भारतीये ब्लॉगर के इंग्लिश ब्लॉग पर एक अमेरीकन महिला का पत्र छपा हैं ।

अमेरिकन महिला के अनुसार उनका सम्बन्ध एक भारतीये पुरुष से था । अमेरिकन महिला ने साफ लिखा हैं की वो लोग लिव इन रिलेशन शिप में नहीं थे । महज प्रेम सम्बन्ध था , ३ साल से जानते थे , ६ महीने से सम्बन्ध में थे ।

भारतीये पुरुष ने शुरू में ही साफ़ कह दिया था की वो शादी नहीं कर सकता हैं क्युकी उसके अभिभावक इस बात से खुश नहीं होगे और वो अपने अभिभावक को समाज में किसी भी तंज का सामना नहीं करने दे सकता हैं ।

अब वो भारतीये पुरुष कही और शादी कर रहा हैं भारतीये महिला से अपने अभिभावकों की पसंद से ।

अमेरिकी महिला का मानना हैं की
भारतीये अभिभावक अपने बच्चो की खुशियों में रोड़ा अटकाते हैं
भारतीये अभिभावक अपने बच्चो को कमोडिटी { जिसको बेचा ख़रीदा जाता हैं } समझते हैं
भारतीये अभिभावक मानते हैं की उनकी ख़ुशी इस बात पर निर्भर हैं की उनके बच्चो का जीवन साथी कैसा हैं
इस के अलावा अमेरिकी महिला का ये भी मानना हैं की
भारतीये समाज में शादी एक "ड्यूटी " की तरह हैं

अब आप बताये की आप क्या सोचते हैं


उसी पोस्ट पर एक कमेन्ट में एक भारतीये ब्लॉगर ने पूछा हैं की क्या क़ोई चाहेगा की जहां उस भारतीये पुरुष की शादी हो रही हैं वहाँ बताया जाये की उसका पहले से ही कहीं सम्बन्ध रहा हैं ?
क्या ऐसा करना सही हैं और क्या ऐसा करने से क़ोई फरक भी पड़ेगा या क्या आप ऐसा करेगे ??



आज कल कमेन्ट स्पाम में जा रहे हैं ।अगर ना दिखे तो इंतज़ार करिये दुबारा ऑनलाइन जाने पर में स्पाम फोल्डर में जा कर उसको पुब्लिश कर दूंगी । ।

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December 01, 2011

“भूखे बच्चों से स्वाबलम्बी बच्चे ज़्यादा बेहतर ऑप्शन है”

आज भी माध्यम वर्ग में ही सबसे ज्यादा प्रचलन हैं काम के लिये बाई रखने का । ऊपर के वर्ग में भी घर में काम करने वाले रखे जाते हैं पर "casual labor " की तरह नहीं ।
झाड़ू पोछा बर्तन करने के लिये ये लोग आती हैं तो इनके बच्चे कहां रहते हैं ??
कितने घर हैं जो इनके बच्चो को अन्दर आने देते हैं ??
कहां जाते हैं ये बच्चे जब इनकी माँ काम पर आती हैं ??
कौन से क्रेश / शिशु गृह इन के लिये खुला हैं जहां ये माँ के ना रहने पर ये रहते हैं ?

ऐसी ज्यादा माँ के बच्चे कबाड़ ही बीनते हैं या कहीं नौकरी करते हैं ।
क्या जरुरी नहीं हैं की हम कम से कम उतनी तनखा जरुर दे जो मिनिमम वेज कहीं जाती हैं ??
क्या केवल ये कह देने से की हम घर की तरह रखते हैं से बात ख़तम हो जाती हैं , जब आप बेसिक सहूलियत नहीं दे सकते , जब आप मिनिमम वेज नहीं दे सकते तो फिर नौकर रख कर आप केवल और केवल उसका शोषण ही कर रहे हैं ।

अब इसका दूसरा रुख देखिये । अगर आप ने मिनिमम वेज दिये और सहुलियते भी दी तो उसको काम भी पूरा करना होगा पर ऐसा नहीं हो रहा हैं आप से पैसा लिया जाता हैं बड़े आदमी का और काम करता हैं क़ोई बच्चा । अब आप ने पैसे पूरे दिये हैं सहुलियते भी तो फिर शोषण कैसे हुआ ।

आज कल हर काम करने वाली बाई ४ छुट्टी मांगती हैं और आप से उम्मीद करती हैं की उस दिन के बर्तन आप खुद धो कर रखेगे । ४ दिन की छुट्टी क्यूँ , क्युकी सब काम करने वालो को मिलती हैं । सही पर सब काम करने वाले यानी जो ऑफिस में हैं अपना काम खुद करते हैं उनकी छुट्टी पर उनका काम कौन करता हैं और उनकी छुट्टी का पैसा भी उनकी सैलिरी ही समझा जाता हैं । लेकिन बाई को ये छुट्टी तो अपना अधिकार लगता हैं पर उस दिन का काम अगले दिन करना नहीं ??

अब कौन किस का शोषण कर रहा हैं ये आप खुद सोचिये ।

समस्या हैं की हम भावना प्रधान समाज हैं जबकि काम भावना से नहीं कर्त्तव्य से जुडा होता हैं । हम घर के काम को प्रोफेशन की तरह नहीं लेते हैं इसी वजह से हमारे यहाँ सर्विस इंडस्ट्री के लिये क़ोई रुल नहीं हैं । ना रुल हैं काम करने वालो के लिये ना कराने वालो के लिये ।

काम वाली बाई से बात करो की समय पर क्यूँ नहीं आयी वो कहेगी " उधर वाली भाभी के यहाँ , मेहमान थे उन्होने कहा नाश्ता बनवा दो " सो देर होगयी । उधर वाली भाभी से पूछा तो उत्तर मिला " काम किया तो क्या मैने तो तुरंत पैसे दिये और नाश्ता अलग करवाया " । अब ऐसे में उनलोगों का क्या जिनके यहाँ वो बाई देर से पहुची । अगर उनमे से क़ोई बाहर नौकरी करती हो तो ???

उधर वाली भाभी ने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया पैसा दिया , बाई ने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया नाश्ता बनवा दिया पर और लोगो को जो परेशानी हुई उसकी भरपाई कैसे होगी ।
बाई के बच्चो की फीस भर दी एक भाभी ने तो दूसरी भाभी को जा कर बाई ने सूना दिया । अगर उसने बच्चो की उनिफ़ोर्म के पैसे नहीं दिये तो वो बुरी होगई ।

क्या जरुरी नहीं हैं इस सब में सुधार हो ?? अपनी सुविधा के लिये कुछ भी करना चाहे उस से दूसरो को असुविधा ही क्यूँ ना हो भी शोषण ही हैं ।


१४ साल तक के बच्चो को ही सरकार बच्चा मानती हैं और केवल उनको ही आप काम पर रखेगे तो आप कानून के अपराधी हैं उसके ऊपर की उम्र के बच्चों से काम लिया जा सकता हैं ।

चाइल्ड लबर के खिलाफ सबसे पहले आवाज विदेशो में उठी थी और उन्होने हमारे उद्योग में जहां बच्चे काम करते थे उन पर पाबंदी लगा दी और समान लेना बंद करदिया । लाखो घरो में चूल्हा जलना बंद होगया । सरकार जगी और इन बच्चो के बारे में सोचना शुरू किया पर हुआ कुछ नहीं । क्युकी जन संख्या इतनी तेजी से बढ़ती हैं की कुछ करना संभव ही नहीं हैं ।

गैर क़ानूनी तरीके से कुछ भी करना पड़ता हैं तो क्या बेहतर हो की सर्विस इंडस्ट्री के लिये कानून बना दिये जाए । बच्चो से काम लेना गैर कानूनी ना हो हां उनको क्या क्या सहूलियत देनी होगी इस पर बात हो ।

समीर लाल { उड़न तश्तरी } ने अपनी किताब में लिखा हैं जो देश , इंडिया में चाइल्ड लबर के खिलाफ बात करते हैं वही देश अपने यहाँ बच्चो से काम करवाने में उरेज नहीं करते । विदेशो में बच्चे बड़े बड़े रेस्तराओ में काम करते हैं और इसको स्वाबलंबन माना जाता हैं ।

आज यूरोप , इकोनोमिक डिसास्टर के कगार पर हैं , सबसे पहले बच्चो से काम ना करवाये , पल्स्टिक में सामान ना बचे इत्यादि नियम के ऊपर बात वही से उठी थी । उस से सारे सामान की कीमत में बढ़ावा हुआ और भारत से समान जाना काम हुआ या मेहंगा हुआ ।

हमारे देश की cotton से बनी वस्तुये जो cottage industry यानी जहां पूरा परिवार काम करता था ख़तम होगई । सबसे सस्ती वही बिकती थी । आज यूरोप उनको खरीदना चाहता हैं पर अब वो काम बंद ही हो गया हैं क्युकी इतने नियम और कानून उन्होने बना दिये की परिवारों ने वो काम छोड़ ही दिया ।

गरीबी की बात करना , गरीबी हटाने की बात करना और बच्चो और काम वालो के शोषण की बात करना इस सब को करने से पहले सोचना होगा की हमारे देश की स्थिति को देखते हुए क्या सही हैं ??


कुछ नियम कानून हम सब को खुद बनाने होगे सर्विस इंडस्ट्री के लिये । अगर हम शोषण करना नहीं चाहते तो हमे अपने शोषण को भी बचाना चाहिये ।


कानून बनाने होगे की हमारे घर के उद्योग बंद ना होजाये और परिवार भुखमरी पर ना पहुँच जाये । बच्चो से काम लेना बुरा नहीं हैं अगर आप उनके काम का पूरा मेहनताना दे । जो मूल भूत सुविधा हैं वो सब उनको मुहिया कराये ।


i would prefer to have rules of our own that will benefit us and protect us . i would prefer that if we employe someone as domestic help we give them exactly the same amount that is minimum wage . and i would prefer to take work accordingly . i feel exploitation is a 2 way process and has nothing to do with class or cadre . its a human tendency and we need to rise over it
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