नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

January 31, 2009

समानता तभी सम्भव हैं जब हम जितना लेते हैं उतना देने की क्षमता रखते हो ।

एक अनाम ब्लॉगर ने मंगलोर मे हुए प्रकरण पर आयी नारी ब्लॉग की पोस्ट पर लिखा था
Anonymous said...हँसी आ रही है मुझे नारी ब्लॉग वालों पर कहिये क्यों? एक तो सारे नारी ब्लॉग पुरूष और महिला दोनों के समान होने के नारे बुलंद करते हैं महिलाओं के साथ अत्याचार हुआ है, वो गाली क्यूँ न देन, वो शर्ट उतार के क्यूँ न घुमे दूसरी तरफ़ महिला बस में पुरूष सफर कर रहे होते हैं तो वहां महिला होना याद आ जाता है???????? क्यूँ जब भेद भाव नही तो स्पेशल स्टेटस क्यूँ चाहिए???? रोज पुरूष लात खाते रहते हैं, कोई कुछ नही बोलता, आदत हो गई है एक दिन लड़कियों को लात खाते देख लिया तो तालिबान, श्रीराम सब याद आ गए????? स्त्री का सम्मान याद आ गया?????? बराबरी का हक़ भी चाहिए और स्पेशल स्टेटस भी??? दोगलापन क्यूँ???? या तो स्त्री के पीटने को पुरूष के पीटने जितना नोर्मल लीजिये, या समान होने का ढोंग करना बंद कीजिये? इससे यही प्रतीत होता है कि बाकी नारीवादियों कि तरह आप भी दूकान चला रही हैं स्त्री कि समस्या से कोई लेना देना नही है स्त्री त्रस्त रहे तभी आपकी दूकान चलेगी आप उन नेताओं कि तरह हैं जो गरीबों की बात तो करते हैं लेकिन यह भी चाहते हैं की गरीब गरीब बना रहेमुझे पता है, मेरे इस कमेन्ट पर कोई "जागरूक" "नारीवादी" ब्लॉगर मेरी धज्जियाँ उडाएगी/आ परवाह नहीं प्यारी कोमल टिप्पणियों देने वालों तक बात पहुचनी थी सो पहुच गई रहे आप लोग, आप लोग तो सुधरेंगे नहीं स्त्री को डराकर उसका समर्थन हासिल करते रहेंJanuary 28, 2009 8:25 PM

और इस कमेन्ट को नारी ब्लॉग पर पोस्ट बना कर डाल दिया गया क्युकी इस कमेन्ट मे तमाम वो सवाल थे जिनको आज के समय मे उठाना बहुत जरुरी हैं । कमेन्ट जरुर मंगलोर प्रकरण से जुडा था और उस सन्दर्भ मे ग़लत भी था पर अगर इस कमेन्ट को केवल मंगलोर प्रकरण के साथ जोड़ कर ना देखा जाये तो इसके अंदर बहुत ही सही बात कही गयी हैं । उस पर चर्चा जरुरी हैं और करेगे भी पर खुशी हैं की इस कमेन्ट के जवाब मे बहुत से कमेन्ट आए जिनको आप यहाँ देख सकते हैं । एक अनाम ब्लॉगर ने बहुत ही सटीक जवाब भी दिया हैं ऊपर आए कमेन्ट का ।
Anonymous said...
न कहते हुए भी मुझे अनामी की कुछ बात पर हामी भरनी पड़ रही है। कब तक स्त्री कोमल बनी रहेगी और समाज से संत्वनाएँ मांगती रहएगी अपने अत्याचारों के लिए ?? क्यों उसे अपनी आवाज उठाने के लिए किसी का सहारा चाहिए ?? क्यों उसे अपनी बात रखने के लिए मंच चाहिए ?? और वो अभी तक क्यों अत्याचार सह रही है ??अब ये बातें एक तरफ़, और अब हम बात करते हैं मंगलोर की - अनामी ने कहा "आदत हो गई है एक दिन लड़कियों को लात खाते देख लिया तो तालिबान, श्रीराम सब याद आ गए????? स्त्री का सम्मान याद आ गया?????? बराबरी का हक़ भी चाहिए और स्पेशल स्टेटस भी??? दोगलापन क्यूँ????" अब आप मुझे बताइए - आजतक क्यों pub जाने वाले पुरुषों की पिटाई नहीं हुई ??क्या पुरूष pub जायेंगे तो ठीक है लेकिन महिला जाएँगी तो उनका निरादार किया जाएगा ??मुझे ये बताइए क्यों सिर्फ़ रुढिवादी पुरूष ही भारतीय सभ्यता को बचाने का ढोंग करते हैं?और एक बात, क्या इस तरह से महिलाओं की पिटाई करना किस सभ्यता का अंग हैं??
January 29, 2009 12:46 PM

सार्थक रूप से ब्लोगिंग का मतलब ही यही हैं की हम अपने विचारों का आदान प्रदान करे पर बिना भाषा पर संतुलन खोये । कमेन्ट नाम से हो या अनाम कोई फरक नहीं पड़ता अगर विचार स्पष्ट हो ।

नारी ब्लॉग पर ही नहीं और भी ब्लोग्स पर जिन पर नारी - पुरूष समानता को लेकर विमर्श होता हैं मैने निरंतर इस बात को कहा हैं की नारी को " संरक्षण और समानता की बात एक साथ नहीं करनी चाहिये । अगर नारी पुरूष से संरक्षण चाहती हैं तो उसको पुरूष से समानता की बात नहीं करनी चाहिये । समानता तभी सम्भव हैं जब हम जितना लेते हैं उतना देने की क्षमता रखते हो । बार बार इतिहास को दोहराने से कोई लाभ नहीं होता हैं क्युकी हर वर्तमान की अपनी समस्याए होती हैं ,उन समस्याओं का अपना निदान होता हैं ।

मंगलोर प्रकरण मे समानता से ज्यादा बात थी की क्यूँ नारी हमारे समाज मे सुरक्षित नहीं हैं । क्यों नारी पर प्रतिबन्ध हैं । क्यूँ पुरूष समुदाय गुंडा गर्दी करता हैं नारी शरीर को हथियार बना कर । मंगलोर प्रकरण मे जितना भी अभी तक पढा हैं उसमे जो प्रत्यक्षदर्शी हैं उनके बयान कहते हैं की पब मे जो लडकियां थी उनको ना केवल मारा पीटा गया अपितु उनके कपड़ो के साथ खीचा तानी की गयी यानी खुले आम "मोलेस्टेशन" । नारी को ये बताना की उसकी जगह कहा हैं ।

इस बात को कई बार उठाया गया हैं की अगर आप चाहते हैं की आने वाले समय मे लडकियां वो सब ना करे जो आप को ग़लत लगता हैं तो आप को लड़को को अनुशाषित करना होगा । आप सब ख़ुद इस बात को मानते हैं की लड़किया , लड़का बनाने की कोशिश या होड़ मे ये सब करती हैं तो फिर पुरूष समुदाय और वो स्त्री समुदाय जो इस बात को सही मानता हैं क्यूँ नहीं अपने लड़को पर पाबंदी लगता हैं शराब , सिगरेट और हर उस काम को करने के लिये जिसको करने के लिये वो अपनी लड़कियों को माना करता हैं ।

नारी पुरुष मे वैचारिक मतभेद बहुत बार होता हैं , होगा भी क्योकि दोनों को जीने के आयाम अलग अलग मिले हैं । लेकिन जब भी ये मतभेद होता हेँ तो कभी भी नारी किसी पुरुष के शरीर , वस्त्रों इत्यादी पर ऊँगली नहीं उठाती । विचारो की लड़ाई मे नारी शरीर / परिधान का इतना महत्व पुरुष समुदाय के लिये क्यो हो जाता हैं ?? बलात्कार के लिये क्यों हमेशा आतुर हैं पुरूष ? क्या बलात्कार केवल शरीर का होता हैं ? पाशविक मनोवृति हैं क्या पुरूष की आज भी ? तब तो शायद जो हमारी दादी / नानी यानी सन ६० के दशक मे ६० वर्षीया स्त्रियाँ कहती थी की बेटी पिता से भी दूरी बनाओ सही था । यानी हम आज भी जो ख़ुद दादी नानी बनने की उम्र मे हैं इस लिये खामोश रहे क्योकि हम नारी हैं , महिला हैं और आप गली मे टहलते पशु हैं जो घात लगा कर कभी भी हम को अनावरत कर सकते हैं । सो आप करते रहे ये सब क्योकि ये आप की मानसिकता हैं और हम भी आप सब के खिलाफ आवाज बुलंद करते रहेगे इसलिये नहीं की हम को आप से कोई दुश्मनी हैं बल्कि इसलिये की एक महिला होने के नाते हम आप की बेटी लिये भी समाज मे उतनी ही सुरक्षा चाहते हैं जितनी अपनी बेटी की और हम आप के बेटो के लिये भी एक ऐसा साफ सुथरा समाज चाहते हैं जहाँ उनको हमेशा कटघरे मे ना खडे होना पडे । आज जो पुरूष वर्ग महिला चरित्र हनन कर रहा हैं वह अपने बेटो के लिये खाई खोद रहा हैं । कभी सोच कर देखे आने वाले समय मे आप के बेटो को क्या क्या सुनना पड़ सकता हैं आप की इस मानसिकता की वजह से ।

अगर आप को लगता हैं की स्त्री या नारी चोखेर बाली { यानी आँख की किरकिरी } इस लिये बनती हैं क्युकी वो पुरूष के ग़लत आचरण का अनुसरण करती हैं तो पुरूष के ग़लत आचरण को रोकिये । उस पर प्रतिबन्ध लगाईये , उस पर आक्रोश व्यक्त कीजिये , उसको सजा दीजिये । अगर आप ये मानते हैं की पुरूष एक पेदेस्तल पर खड़ा हैं { मै ये नहीं मानती हूँ व्यक्तिगत रूप से } और नारी उसको देख कर उसके जैसा बनना चाहती हैंताकि वो पुरूष की तरह एक उंचा स्थान पा सके तो पुरूष को अपना आचरण सही करना होगा । भारतीये संस्कृति नारी के आचरण मे सुधार से नहीं पुरूष के ग़लत आचरण पर प्रतिबन्ध से बच सकती हैं ।

अगर पब संस्कृति का विरोध करना हैं तो सरकार का विरोध करे जो इनको लाइसेंस देती हैं । अगर शराब और सिगरेट का विरोध करना हैं तो फिर उस सरकार का विरोध करे जो इसको बढ़ावा देती हैं । घर मे कोई सिगरेट या शराब ना ले चाहे स्त्री , चाहे पुरूष , चाहे अभिभावक , चाहे बच्चे । अगर "western outfit" का विरोध करना हैं तो पुरूष भी ऑफिस कुर्ते पाजामे या धोती मे जाए और महिला भी साड़ी या सूट मे जाए यानी एक नेशनल ड्रेस कोड बनाया जाए ।

सभ्यता या संस्कृति गुंडागर्दी से ना तो बनेगी और ना बचेगी हाँ जितनी जितनी गुंडा गर्दी पुरूष स्त्री पर करेगा उतना उतना स्त्री समाज को गुलाबी गैंग बनाने पर मजबूर करेगा । समय दूर नहीं हैं जब लडकियां हथियारों से लेस हो कर वो सब करेगी जो आज पुरूष कर रहे हैं , हर जगह व्यवस्था बिगडेगी ।
संस्कृति तो आप क्या बचायेगे हाँ कुछ फूलन देवियाँ और समाज मे जरुर दे जायेगे ।

और अंत मे एक बात उस अनाम ब्लॉगर से जो निरंतर इस ब्लॉग पर कमेन्ट मे अपशब्द दे रहे हैं और मै उसको डिलीट कर रही हूँ । आप अपना समय व्यर्थ कर रहे हैं , क्यों नहीं आप खुल कर अपने ब्लॉग पर कुछ भी लिखते हैं आप को लगता हैं नारी उत्पात मचा रही हैं तो आप अपने ब्लॉग पर उस बात को खुल कर लिखे ताकि विमर्श हो।
इसके अलावा विवेक निरंतर हर पोस्ट पर साधू साधू लिखते हैं , वो कमेन्ट भी डिलीट करना पड़ता हैं क्युकी अगर आप विमर्श नहीं करना चाहते हैं तो कोई बात नहीं पर जो कर रहे हैं उनके विचारों मे व्यवधान ना डाले ।

मै अपने दोनों अनाम टिप्पणी देने वालो की आभारी हूँ क्यूँ हर कमेन्ट से मै अपनी सोच मे इजाफा कर पाती हूँ ।

January 29, 2009

"एक दिन लड़कियों को लात खाते देख लिया तो तालिबान, श्रीराम सब याद आ गए?????" 'अनाम'

कल की पोस्ट पर जो कमेन्ट आए हैं उनमे से एक यहाँ दे रही हूँ क्युकी इस मे कुछ प्रश्न हैं जो अनुतरित हैं । कमेन्ट "अनाम " ने दिया हैं सो वैसा ही दे रही हूँ । कमेन्ट जरुर देखे कोई जवाब इनको देना चाहे तो जरुर दे , प्रश्न जरुरी हैं ।

Anonymous said...
हँसी आ रही है मुझे नारी ब्लॉग वालों पर कहिये क्यों? एक तो सारे नारी ब्लॉग पुरूष और महिला दोनों के समान होने के नारे बुलंद करते हैं महिलाओं के साथ अत्याचार हुआ है, वो गाली क्यूँ न देन, वो शर्ट उतार के क्यूँ न घुमे दूसरी तरफ़ महिला बस में पुरूष सफर कर रहे होते हैं तो वहां महिला होना याद आ जाता है???????? क्यूँ जब भेद भाव नही तो स्पेशल स्टेटस क्यूँ चाहिए???? रोज पुरूष लात खाते रहते हैं, कोई कुछ नही बोलता, आदत हो गई है एक दिन लड़कियों को लात खाते देख लिया तो तालिबान, श्रीराम सब याद आ गए????? स्त्री का सम्मान याद आ गया?????? बराबरी का हक़ भी चाहिए और स्पेशल स्टेटस भी??? दोगलापन क्यूँ???? या तो स्त्री के पीटने को पुरूष के पीटने जितना नोर्मल लीजिये, या समान होने का ढोंग करना बंद कीजिये? इससे यही प्रतीत होता है कि बाकी नारीवादियों कि तरह आप भी दूकान चला रही हैं स्त्री कि समस्या से कोई लेना देना नही है स्त्री त्रस्त रहे तभी आपकी दूकान चलेगी आप उन नेताओं कि तरह हैं जो गरीबों की बात तो करते हैं लेकिन यह भी चाहते हैं की गरीब गरीब बना रहेमुझे पता है, मेरे इस कमेन्ट पर कोई "जागरूक" "नारीवादी" ब्लॉगर मेरी धज्जियाँ उडाएगी/आ परवाह नहीं प्यारी कोमल टिप्पणियों देने वालों तक बात पहुचनी थी सो पहुच गई रहे आप लोग, आप लोग तो सुधरेंगे नहीं स्त्री को डराकर उसका समर्थन हासिल करते रहें
January 28, 2009 8:25 PM

January 28, 2009

हिंदू राष्ट्र बनाने का अचूक नुस्खा - जय श्री राम नहीं जय तालिबान - उर्फ़ मंगलोर

जिस दिन हमारा सर गर्व से ऊंचा होना चाहिये था की एक महिला राष्ट्रपति सलामी ले रही हैं उस दिन हम शर्म से आँखे नीची किये सोच रहे हैं कि ......

इस पोस्ट पर जो कमेन्ट आए हैं एक बार उनको जरुर पढे । मंगलोर मे जो हुआ वो अगर ग़लत नहीं था तो अब हम सब को तयार रहना होगा क्युकी आज एक पब मे घुस कर संस्कृति का बचाव किया गया हैं महिला के साथ ना केवल मार पिट कर के अपितु उसके साथ अभद्र व्यवहार कर के भी तो कल हम सब के घरो मे घुश कर हमारी बहु बेटियों को ये बताया जायेगा की क्या करो की संस्कृति , हिंदू धर्म बचा रहे और बताने का तरीका वो देखा चुके हैं ।


रंजन said...
बहुत शर्मनाक काम किया.. पता नहीं चलता कि तालीबान और भारत में क्या फर्क है.. क्यों ये सोचते है कि ये ही धर्म के ठेकेदार है.. लानत है..आपको गणतंत्र दिवस की शुभकामनाऐं
January 26, 2009 7:59 PM

Dr. Amar Jyoti said...
धर्म तो एक बहाना है। मकसद है अपने तालिबानी फ़ासिस्ट एजेण्डे को आगे बढ़ाना।
January 26, 2009 8:16 PM
अनिल कान्त : said...
ये जितने भी धर्म के ठेकेदार बनते हैं वो बस अपनी रोटियाँ सकते हैं ...उन्हें समाचारों में रहना पसंद है ...वो किसी न किसी पार्टी के सदस्य होते हैं ......भले ही ख़ुद रात के अंधेरे में कुछ भी करे ...ऐसे लोग मौका मिलने पर बलात्कार करने जैसा घिनोना अपराध करते हैं ...और धर्म की बात करते हैं ....बहुत शर्मनाक है ....अनिल कान्त
January 26, 2009 8:31 PM
विनीत कुमार said...
भारतीय संस्कृति की रक्षा के नाम पर राम सेना के उत्पातियों ने जो कुछ भी किया,उसे घरेलू आतंकवाद माना जाना चाहिए। उनको ये अधिकार किसने दे दिया कि वो संस्कृति बचाने के नाम पर बर्बरता पैदा करें,इसका न सिर्फ विरोध हो बल्कि इसके खिलाफ सख्त कारवायी भी होनी चाहिए।
January 26, 2009 11:37 PM
विष्णु बैरागी said...
हिन्‍दू धर्म और मनु स्‍मृति परस्‍पर पर्याय हैं। हिन्‍दू राष्‍ट्र की स्‍थापना मनु स्‍मृति के अनुसार ही होगी और मनु स्‍मृति में वर्ण व्‍यवस्‍था सहित वे तमाम वर्जनाएं हैं जिनके चलते स्‍त्री को 'मर्द के पैरों की जूती' से अधिक और कुछ नहीं होना है।मेंगलोर में जो कुछ भी हुआ, यह उसी की तैयारी है।'औरत' को 'मनुष्‍य' होने का कोई अधिकार नहीं है। वह केवल भोग्‍या है, भोग्‍या ही रहे, जब मर्द चाहे तब बिछ जाए, बच्‍चे पैदा करे, रोटी बनाए, जूते खाए और यह सब सहन करते हुए पति को परमेश्‍वर मानकर हिन्‍दू धर्म की रक्षा भी करे और गौरव भी बढाए।जय जय श्रीराम
January 27, 2009 12:05 AM
Mired Mirage said...
दो दिन से टी वी नहीं देखा था क्योंकि मैं यह देखना नहीं चाहती थी। बिना देखे ही इतनी विचलित होती हूँ ...। यदि हम सब केवल और केवल यह सोचें कि ये हम या हमारी बेटियाँ हो सकती थीं। क्या हुआ कि हम मैंगलौर में नहीं हैं। क्या हुआ कि हम पब में नहीं जाते। कल हमारा कोई न कोई आचरण किसी न किसी को तो अखरेगा ही और तब हमारी, आपकी, आपकी पुत्रियों की खैर नहीं।घुघूती बासूती
January 27, 2009 12:44 AM
Ratan Singh Shekhawat said...
शर्मनाक कृत्य है ये ! ऐसे तत्वों को कभी माफ़ नही करना चाहिए
January 27, 2009 7:59 AM
DEEPAK BABA said...
अब मुह मत खुलवाइए, अगर शर्म नहीं आती तो जब आधी रात को पुलिस पकड़ के ले जाती है तो मुहं क्यों छिपाया जाता है . क्यों नहीं सामने आती की मैं यहाँ ड्रग लेने आई थी. क्यों नहीं उनके परिवार वाले दुनिया को बताते की मेरी लड़की आधी रात को पब में ड्रग लेती है . अगर कोई समाज के कचरे को साफ़ करना चाहता है तो आप जेसे बुद्धिजीवी हल्ला मचने लग जाते है. दूसरी बात ... एक चमचागिरी से लिप्त महिला ... जिसकी योग्यता मात्र इतनी है की वो गाँधी परिवार की वफादार रही है उसको रास्त्रपति बना देना . क्या वो ओरत दिल में झांक कर देखे और पुराने रास्त्रपति से अपनी तुलना करे ... उसे क्या अधिकार है सलामी लेने का ... दिल को लगे तो माफ़ करना ..
January 27, 2009 12:33 PM
Nirmla Kapila said...
ye koi hdarmik log nahi hain balki talivan ke samarthak hai kya talibaan ke naron ki goonj kahin paas ati sunai de rahi hai savdhaan hona padega aur in ko baar baar lanat bhejni padegi
January 27, 2009 5:05 PM
रंजना [रंजू भाटिया] said...
शर्मनाक हादसा है यह ....
January 27, 2009 5:19 PM
सीमा रानी said...
koi purushon ko ye batane wala sangthan nahi hai?ke rishvatkhori beimani,bhrashtachar ye sab hamare desh,samaja aur dharm ke virruddha hain.aurton ke aachran sudharne ka theka lene wale apne aachran par bhi to gour farmayen.
January 27, 2009 9:44 PM

January 26, 2009

जिस दिन हमारा सर गर्व से ऊंचा होना चाहिये था की एक महिला राष्ट्रपति सलामी ले रही हैं उस दिन हम शर्म से आँखे नीची किये सोच रहे हैं कि ......

६० साल से भारत गणतंत्र दिवस माना रहा हैं । इस बार महिला राष्ट्रपति "प्रतिभा पाटिल " जी ने सलामी ली । जो खुशी हमे मिलने चाहिये थी नहीं मिली क्युकी गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर मंगलोर के एक पब मे महिलाओं पर हिंदू समाज के रक्षको ने हमला किया और उनको मार पीट कर के पब से निकाल दिया । कारण हिंदू धर्म का पालन नहीं कर रही थी वो लडकियां / महिलाए ।

aurto kae पब मे आने से और अपने परिवार और दोस्तों के साथ बैठ कर शराब पीने { क्या पब मे सिर्फ़ शराब ही मिलती हैं ड्रिंक्स मे ??? } की वजह से हिंदू धर्म धरातल मे चला जा रहा हैं सो मारना जरुरी था । कैसे मारा यहाँ देखे

अब प्रतिभा पाटिल सलामी ले तो भी क्या फरक हैं हमारी मानसिकता आज भी वही हैं . महिला के लिये सही और ग़लत का फैसला कब महिला को ख़ुद लेने दिया जाएगा ?? हम प्रतिभा पाटिल को राष्ट्रपति बना कर क्या केवल इस लिये खुश हैं क्युकी वो सर ढक कर साड़ी पहनती हैं ??

हिंदू धर्म की रूल्स एंड रेगुलेशंस की किताबो मे शायद पुरुषों और लड़को के लिये केवल इतना ही लिखा हैं की वो महिलो को देखते रहे और जहाँ भी उनको लगे की महिला हिंदू धर्म को बिगाड़ रही हैं तुंरत जाए और मार पीट करे । तब भी ना समझ आए तो बलात्कार करे । हिंदू धर्म सभ्यता इस से बची रहेगी ।

हिंदू धर्म सही रहे इसके लिये महिला / स्त्री / नारी को सही रहना बहुत जरुरी हैं ।


जिस दिन हमारा सर गर्व से ऊंचा होना चाहिये था की एक महिला राष्ट्रपति सलामी ले रही हैं उस दिन हम शर्म से आँखे नीची किये सोच रहे हैं कि धर्म को बचाया जा रहा हैं या अधर्म को बढ़ावा दिया जा रहा हैं ।

January 25, 2009

दिल्ली विश्वविद्यालय मे बढ़ता यौन शोषण और उसके ख़िलाफ़ जीतती आज की महिला लेक्चरर

यौन शोषण मामले में फंसे लेक्चरर को सजा देते हुए किरोड़ीमल कॉलेज की प्रबंध समिति ने उसको किसी भी कमेटी का प्रभार देने और उसका सदस्य बनाए जाने पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। साथ ही कॉलेज कैम्पस का आवास खाली करने का आदेश दिया है। इसके अलावा सालाना वेतन बढ़ोतरी पर भी रोक लगा दी है। समिति ने यह फैसले कॉलेज शिकायत कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर किया हैं मालूम हो कि बीते साल जुलाई में कॉलेज की एक गेस्ट लेक्चरर समिता (काल्पनिक नाम) ने कॉलेज राजनीति शास्त्र विभाग के तत्कालीन टीचर इंचार्ज महावीर सनसनवाल पर यौन शोषण का आरोप लगाया था। सूत्रों के अनुसार शिक्षक ने गेस्ट लेक्चरर को अश्लील किताबें दीं थी। जिसके बाद गेस्ट लेक्चरर ने कॉलेज शिकायत कमेटी में शिकायत दर्ज करवाई थी। कमेटी ने इसकी जांच की जिसमें आरोप सही पाये गए। कालेज प्राचार्य डॉ भीमसेन ने बताया कि दोषी शिक्षक को अच्छे व्यवहार के लिए बांड भरने का भी आदेश दिया गया है।

ख़बर साभार राष्ट्रीय सहारा
खुशी हैं की नारी ने अपनी आवाज यौन शोषण के ख़िलाफ़ मजबूती से उठानी शुरू कर दी हैं । विश्वविद्यालय से नाता कुछ पुराना हैं मेरा क्युकी माता - पिता दोनों ने अपनी जीविका यापन के लिये यहाँ ४० वर्ष से ज्यादा बिताये हैं । रिसर्च गाइड जिस प्रकार से शोषण करते थे / हैं अपनी शिष्याओं का एक बहुत ही स्वाभाविक प्रक्रिया मानी जाती थी , और डिपार्टमेंट के हेड जिस प्रकार से टेम्पररी महिला अध्यापिकाओ से व्यवहार करते और चाहते थे आज से ३० वर्ष पहले उस पर कोई आवाज नहीं उठती थी ।

पर कब तक और क्यूँ ??? अच्छा लगा की अब इस कम्युनिटी की महिलाओ ने भी लड़ना और आगे आने वाली पीढी के लिये रास्ता साफ़ करना शुरू कर दिया हैं ।

यौन शोषण के ख़िलाफ़ आवाज उठाए क्युकी इसमे आप की नहीं जो करता हैं उसकी बदनामी हैं । सजा जरुर दिलवाए ताकि एक सबक मिलाए औरो को ।


http://www.rashtriyasahara.com/RegionalDetailFrame.aspx?newsid=75689&cityname=Delhi&vcityname=दिल्ली/एनसीआर

January 24, 2009

राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर

राष्ट्रीय बालिका दिवस : २४ जनवरी पर विशेष
आज के दिन एक बार सब अपने अपने घरो मे अपनी बेटियों से , पत्नियों से और अपनी माँ से जरुर पूछे की क्या वो समाज मे "बालिका " की "स्थिति और स्थान" से खुश हैं ? एक संवाद कायम करे अपने अपनी घरो मे , एक बहस नहीं एक सार्थक संवाद । जब बात बहस बन जाती हैं तो मुद्दा खो जाता हैं । सार्थक समाज की शुरुवात सार्थक संवाद से हो सकती हैं अपने अपने घरो से राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर । और अपने किये हुए संवाद को यहाँ दे ताकि
किसी को प्ररेणा मिल सके ।

मेरी तरफ़ से सभी महिला को बालिका दिवस की बधाई क्युकी हम सब मे एक बालिका छुपी हैं

January 23, 2009

अंटार्कटिका अवार्ड से सम्मानित भारतीये महिलायें

पिछले दिनों एक किताब पढ़ रही थी रोचक रोमांचक इसको पढ़ते हुए बहुत सी रोचक बातें पढने को मिली और महिला होने के नाते एक सवाल जो मेरे दिल में स्वभाविक रूप से इसको पढ़ कर आया था कि यहाँ क्या महिलायें भी जा सकती है ...इसका उत्तर यहाँ मुझे इसी किताब में मिला ...जी हाँ इस अभियान में न केवल महिलाएं गई है उन्होंने अपना योगदान भी दिया है ...
भारत का पहला स्टेशन दक्षिण गंगोत्री १९८४ के अभियान में भारत की पहली दो महिलायें वैज्ञानिक डॉ सुदीप्ता सेनगुप्ता और डॉ अदिति पन्त चार महीने के लिये गई थी ..डॉ सुदीप्ता भूवेज्ञानिक के क्षेत्र में प्रसिद्ध है .और डॉ अदिति समुन्दर विज्ञान के अनुसंधान में निपुण है यह दोनों दुबारा भी पाँचवे और नौवें अभियान में गई हैं .....इनके किए अनेक प्रयोग कई जगह प्रकशित हुए हैं ...डॉ सुदीप्त ने तो बहुत सारे रोचक लेख भी लिखे हैं जो बंगाल में बहुत लोक प्रिय हुए हैं

सन १९८९ से मैत्री स्टेशन यहाँ काम कर रहा है ...और कई अनुसन्धान यहाँ चल रहे हैं ...किसी भी क्षेत्र की महिला जैसे मनोवैज्ञानिक .बनस्पति विज्ञान ..भू विज्ञान ..मन- शरीर विज्ञान आदि से जुड़ी महिला यहाँ आ सकती है ....पहले सब महिलाए यहाँ सिर्फ़ ४ महीने के लिये यहाँ गई ..१६ महीने की विंटर टीम में यह मुश्किल माना जाता था , पर १९९९ में डॉ कमल विल्कू १६ महीने तक वहां रही है ... ..जब वह वहां गई वह ५३ वर्ष की थी ..उस अभियान की सबसे वरिष्ठ सदस्य .वह भारत सरकार के केन्द्रीय विभाग में मेडिकल आफिसर रही है .. उन्होंने जबलपुर से एम् .बी .बी .एस किया है .उन्होंने ड्राइंग व पेंटिंग में भी ४ साल का डिप्लोमा किया हुआ हैं अपने अंटार्कटिका प्रवास के दौरान उन्होंने वहां की बहुत सारी सुंदर पेंटिंग्स बनायी हैं

अंटार्कटिका में विंटररिंग करने के बाद उन्हें अनेक पुरस्कार मिले..... अखबारों और कई जगह उनके इस काम का उल्लेख हुआ .....उनके ख़ुद के भी अनेक लेख प्रकाशित हुए ......जिस में उन्होंने लिखा कई भारतीय महिलाओं का योगदान अंटार्कटिका में हो इस के बारे में उन्हें जरा भी संदेह नहीं है ..चार महीने का तो प्रवास वह वहां आसानी से कर सकती है ..१६ महीने के लिए उनको अपने घर बार से दूर रहना होगा...... तूफानी हवा का सामना ....कडाके की सर्दी .....मौसम का सामना करना और स्टेशन की देखभाल आदि करना काम है जिसको कोई भी महिला अपने संघर्ष से आसानी से कर सकती है ...लेकिन सबसे बड़ी समस्या होती है पुरूषों की मानसिकता से जो ख़ुद को महिलाओं से अधिक श्रेष्ट मानते हैं ...और यहाँ तो वैसे भी पुरुषों का दबदबा रहा है ....यह सिर्फ़ भारतीय पुरुषों के साथ नही है .अन्य केन्द्र भी यहाँ इसी दंभ से भरे हुए हैं ...इसका एक उदाहरण मिला यही की एक किताब में जब अमरीकी स्टेशन मैकमुर्डो पर दो अमरीकी महिला सदस्य पहुँची तो कोई पुरूष वहां स्टेशन पर रहने वाला उनके स्वागत को बाहर तक नही आया और यही अहंकार उनके पुरूष होने का उनकी वहां की हर बात चीत में झलकता है ..बस यही एक समस्या है कि जब अकेली महिला वहां हो तो उसको इस अतरिक्त मानसिक दबाब को सहना पड़ता है ..

भारतीय सेना में अफसर रहे अपने पति के साथ डॉ विल्कू मिजोरम .हिमाचल प्रदेश .,कश्मीर और लदाख जैसे दुर्गम इलाकों में यह डाक्टर की तरह काम कर चुकी हैं ...सन १९७९ में एक निर्जन पहाडी इलाकों में दुर्घटना ग्रस्त एक बस में दर्जनों घायल लोगो को बचाने के लिए अकेले ही इन्होने अपनी जान की बाजी लग दी थी .इस से इन्हे मिजोरम सरकार ने सम्मानित किया था ..

भारतीय महिलाओं में तीन वैज्ञानिक महिलाओं डॉ सुदीप्त सेनगुप्ता ,डॉ आदिती पन्त और डॉ जया नैथानी और एक मेडिकल आफिसर डॉ कंवल विल्कू को अंटार्कटिका अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है ...

महिलाए आज हर जगह अपनी कार्य कुशलता से अपने होने का प्रमाण दे रही है ..और अब आज की महिला किसी से कम नही है ..यह बात इस सुदूर दुर्गम जगह पर गई महिलाओं ने साबित कर दी है ...

रोचक रोमांचक अंटार्कटिका किताब के सौजन्य से यह जानकारी यहाँ लिखी गई है
रंजना [रंजू ] भाटिया
और जानकारी
http://www.ias.ac.in/womeninscience/Antartic.pdf

January 22, 2009

आप के विचारों का इंतज़ार हैं ।

हर जगह आप और हम बस यही पढ़ते और लिखते हैं की
नारी शोषण का शिकार हैं , नारी को बराबरी का दर्जा नहीं दिया गया हैं ।
आज भी बहुतायत मे नारी को शिक्षित ना करने की प्रथा हैं ।
नारी को शादी के लिये बाध्य किया जाता हैं । इत्यादि इत्यादि ।
काफी समय से ब्लॉग पर भी इसी प्रकार की चर्चा होती आ रही हैं लेकिन अभी तक कोई भी सार्थक संवाद नहीं शुरू हुआ हैं की आख़िर हम सब किस प्रकार का बदलाव चाहते हैं और इस बदलाव को लाने के लिये हम क्या करते हैं और क्या कर सकते हैं । क्या कोई भी ये सुझाव देना चाहेगा की आख़िर किस प्रकार से नारी की स्थिति मे बदलाव आ सकता हैं और वो बदलाव होगा क्या ????
आज सार्थक संवाद हो की क्या सच मे नारी अपनी स्थिति मे बदलाव चाहती हैं या हम केवल हम मुद्दे पर एक बौधिक बहस ही करना जानते हैं

व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना हैं की
बराबरी की बात करना मतलब हर वो काम उतनी सक्षमता से करना जैसे दूसरा करता हैं ।
बराबरी की बात यानी संरक्षण को भूल कर अपने आप को स्थापित करना ।
बराबरी की बात यानी कोई लाइन नहीं { कोई आरक्षण नहीं }
बराबरी की बात का मतलब चुनना जो ख़ुद को अच्छा लगे और अपने उस चुनाव से सम्बंधित हर लड़ाई को लड़ने के लिये तैयार रहना । चुनाव का अधिकार सबके पास होता हैं पर उसको अमल नहीं किया जाता जिसकी सब से साधारण वजह हैं वो डर की "लोग क्या कहेगे "


आप के विचारों का इंतज़ार हैं ।

January 19, 2009

सेक्स वर्कर के बच्चो पर किया गया सर्वे

अगर आप मे जिंदगी से लड़ने की ताकत हैं तो मेरा मानना हैं की जिंदगी सबको एक अवसर जरुर देती हैं " चुनाव" करने का । अगर आप उस अवसर का सही तरह से उपयोग कर ले तो आप की जिंदगी सही बदलाव बदलाव आ सकता हैं । एक ग़लत कदम से एक सही कदम तक केवल एक कदम की ही दूरी होती हैं । बस कदम उठाने मे देर नहीं करनी चाहिये

गुजरात मे ६० सेक्स वर्कर पर एक सर्वे किया गया और पाया गया की उनमे से १८ हाउस वाइफ थी और बाकी सब नर्स , टीचर , कॉल सेण्टर एम्प्लोयी और सेल्स गर्ल थी जिन्होने आजीविका के लिये अपने शरीर को माध्यम बनाया क्युकी वो सब सेक्सुअल हेरैस्मेंट, कम तनखा इत्यादि का शिकार थी ।

लेकिन इन्ही नारियों ने अपने बच्चो को सारे साधन उपलब्ध कराये और उनकी पढाई मे कोई कमी नहीं की । आज इन्ही ६० नारियों मे ३ के बच्चे विदेश मे उचे पदों पर हैं . सुनएना { ४५ वर्ष } का बेटा ऑस्ट्रेलिया MBA हैं और अपनी माँ को ले जा रहा हैं . मालती {४७ वर्ष } की बेटी कंप्यूटर इंजिनियर हैं और उसकी नौकरी लगने वाली हैं ।

सर्वे मे पाया गया हैं की सेक्स वर्कर एक प्रतिबधता से अपने बच्चो को पढाती हैं ताकि उनका जीवन संवर सके ।

Sociologist Gaurang Jani, who helped with the study, said: "When the child of a sex worker grows up to be a lawyer, doctor or an MBA, it just goes to show how determined the mother is to see her child do well in life."

January 16, 2009

रेप करेने वाले और रेप करवाने वाले दोनों किस्म के लोग पैदा हो गए है

"रेप करेने वाले और रेप करवाने वाले दोनों किस्म के लोग पैदा हो गए है"। आप को आश्चर्य हो रहा हैं की ये हम क्या कह रहे हैं । तो ये मैने एक पोस्ट पर आए कमेन्ट मे पढा हैं । ये कमेन्ट दीखता हैं की हम किस मानसिकता का शिकार हैं आज भी । कितनी आसानी से कह दिया गया हैं की "रेप करवाने वाले" बढ़ रहे हैं । अब होसकता हैं इस पोस्ट के बाद समझाया जाए की मतलब ये नही था जो मुझे समझ आया । लेकिन हर बार जब ही कहीं रेप होता हैं हमेशा दोष एक स्त्री को , लड़की को या बच्ची को ही दिया जाता हैं की अकेली क्यूँ घूम रही थी । घर के बाहर क्यूँ थी , कपडे सही क्यूँ नहीं पहने थे और ना जाने क्या क्या । शायद इस तरह का कमेन्ट देने वाले ये भूल जाते हैं की कोई भी स्त्री रेप नहीं करवा सकती । जब विवाहिता तक के साथ अनिच्छा से या जबरन किया सम्भोग भी बलात्कार माना जाता हैं तब हम ये कहे की "रेप करवाने वाले लोग बढ़ गए हैं " तो हम अपनी विद्रूप मानसिकता को ही दिखाते हैं ।

पोस्ट हैं रेप मामलों के लिए बने सख्त कानून

संरक्षण जरुरी हैं पर इतना नहीं की हम गुलामी की आदत ही डाल ले ।

चन्द्र कांता जी से मेरा मिलना मेरी माँ की वजह से हुआ हैं । चन्द्र कांता जी ६० वर्ष की हैं । पति की मृत्यु दो वर्ष पहले हुई हैं । ३ बेटे , ३ बहू , १ बेटी के साथ रहती हैं । शिक्षा केवल दसवी कक्षा तक हैं , इंग्लिश का ज्ञान , ना के बराबर ही हैं । अब इस मे ख़ास क्या हैं ? एक आम भारतीये , मिडल क्लास की महिला ........



नहीं खास हैं चन्द्र कांता जी क्युकी इनके ससुर की प्रेशर कुकर की फैक्ट्री हैं । इनके पति के रहते हुए भी इनके ससुर ने इनकी घर चलाने की कार्य कुशलता को देखते हुए वो फैक्ट्री अपने बाद इनके नाम कर दी और कहा की उनको विश्वास हैं की बुरे वक्त मे वो ये फैक्ट्री उनके बेटे से ज्यादा बेहतर चला सकती हैं । उस दिन से चन्द्र कांता जी ये फैक्ट्री चला रही हैं । जब भी कभी घर मे बटवारे की बात होती हैं वो साफ़ कह देती हैं फैक्ट्री उनकी हैं और अगर लड़के चाहे तो अपने लिये कही भी कोई काम कर सकते हैं । उस फैक्ट्री से वो लड़को को सलेरी देती हैं ।

चन्द्र कांता जी की पुत्री का विवाह जब हुआ उस की उम्र उस समय केवल १९ वर्ष थी और शिक्षा केवल स्नातक थी । विवाह के एक वर्ष के अंदर बेटी , माँ बन गयी और ससुराल से घर भी आगई ।चन्द्र कांता जी जी के पति इस घटना से एक दम टूट गए और बीमार पड़ गए लेकिन चंद्र कांता जी ने हिम्मत नहीं हारी । उनकी बेटी ने जब ससुराल मे हो रहे दुर्व्यवहार के बारे मे उनसे बताया और कहा की वो दुबारा उस घर मे नहीं जाना चाहती हैं तो चन्द्र कांता जी ने अपनी बेटी का ही साथ दिया । पति और बेटो के विरोध के बाद भी उन्होने बेटी को ससुराल वापस नहीं भेजा । वो ख़ुद ट्रक ले कर गयी और जितना समान उन्होने दहेज़ मे दिया था सारा वापस लाई ।

इस के अलावा उन्होने कोर्ट से अपनी बेटी के डिवोर्स के लिये भी आवेदन करवाया और २० लाख रुपए अपनी बेटी की बेटी के लिये मेंटीनेंस का खर्चा अपने दामाद से मांगा । ये मुकदमा ५ साल चला , उस दौरान चन्द्र कांता जी ने अपनी बेटी की पढाई दुबारा शुरू करवाई और आज उनकी बेटी दिल्ली के एक ५ स्टार होटल मे काम करती हैं । डिवोर्स भी होगया हैं और कोर्ट ने बच्ची का संरक्षण भी माँ को ही दिया तथा २० लाख रुपए भी बच्ची की देख रेख के लिये उसके पिता से कोर्ट ने दिलवाए हैं ।

चन्द्र कांता जी का कहना हैं की जो दहेज़ दिया था उसको वापस लाना जरुरी हैं ताकि वर पक्ष समझ सके की दहेज़ बेटी को दिया जाता हैं , माँ पिता का आशीर्वाद होता हैं ताकि बेटी अपनी गृहस्थी सही से शुरू कर सके । उस पर केवल और केवल बेटी का ही अधिकार होता हैं । इस के अलावा चन्द्र कांता जी कहती हैं की अगर बेटी के साथ ससुराल मे दुर्व्यवहार हो तो उसको कभी ससुराल दुबारा नहीं भेजना चाहिये । मेंटीनेंस खर्चे के लिये चन्द्र कांता जी कहना हैं की हर पिता का अपने संतान के प्रति जो कर्तव्य हैं ये खर्चा उस कर्तव्य की पूर्ति हैं । उन्होने अपनी बेटी के लिये को खर्चा अपने दामाद से नहीं लिया हैं । अपनी प्रोपर्टी मे से भी उन्होने अपनी बेटी का हिस्सा अलग कर दिया हैं और फैक्ट्री मे से भी अब बेटी को भी तनखा मिलती हैं । वो अपनी बेटी की दूसरी शादी करने के पक्ष मे हैं और इसके लिये अपनी बेटी को मानसिक रूप से तैयार कर रही हैं ।

चंद्र कांता जी जैसी महिलाए ही समाज को बदल सकती हैं और नयी दिशा दे सकती हैं । उन्होने अपने लिये एक नया रास्ता चुन लिया हैं और चल रही हैं बिना ये सोचे लोग क्या कहेगे । जब तक हम चुनने के अधिकार का प्रयोग नहीं करेगे हम केवल और केवल दीन हीन शोषित ही रहेगे । संरक्षण जरुरी हैं पर इतना नहीं की हम गुलामी की आदत ही डाल ले ।

January 15, 2009

हर जनम मोहे बिटिया ही कीजो


हर जनम मे मुझे शक्ति इतनी ही दीजो की जब भी देखू कुछ गलत , उसे सही करने के लिये होम कर सकू , वह सब जो बहुत आसानी से मुझे मिल सकता था /है /होगा ।

चलू हमेशा अलग रास्ते पर जो मुझे सही लगे सो दिमाग हर जनम मे ऐसा ही दीजो की रास्ता ना डराए मुझे , मंजिल की तलाश ना हो ।

बिटियाँ बनाओ मुझे ऐसी की दुर्गा बन सकू , मै ना डरू , ना डराऊँ पर समय पर हर उसके लिये बोलू जो अपने लिये ना बोले , आवाज बनू मै उस चीख की जो दफ़न हो जाती है समाज मे।

रोज जिनेह दबाया जाता है मै प्रेरणा नहीं रास्ता बनू उनका । वह मुझसे कहे न कहे मै समझू भावना उनकी बात और व्यक्त करू उन के भावो को अपने शब्दों मे।

ढाल बनू , कृपान बनू पर पायेदान ना बनू ।

बेटो कि विरोधी नही बेटो की पर्याय बनू मै , जैसी हूँ इस जनम मै ।

कर सकू अपने माता पिता का दाह संस्कार बिना आसूं बहाए ।
कर सकू विवाह बिना दान बने ।

बन सकू जीवन साथी , पत्नी ना बनके ।

बाँट सकू प्रेम , पा सकू प्रेम ।

माँ कहलायुं बच्चो की , बेटे या बेटी की नहीं ।

और जब भी हो बलात्कार औरत के मन का , अस्तित्व का , बोलो का , भावानाओ का या फिर उसके शरीर का मै सबसे पहली होयुं उसको ये बताने के लिये की शील उसका जाता है , जो इन सब चीजो का बलात्कार करता है ।

इस लिये अभी तो कई जनम मुझे बिटिया बन कर ही आना है , शील का बलात्कार करने वालो को शील उनका समझाना है । दूसरो का झुका सिर जिनके ओठो पर स्मित की रेखा लाता है सर उनका झुकाना हैं ।


दाता हर जनम मोहे बिटिया ही कीजो ।

January 14, 2009

विषय गंभीर हैं और चिंतन चाहता हैं सो लिखें अपने विचार ।

हम अपने बच्चो को लिये किस प्रकार से अपने घर और अपने संकुचित दिमागों को दरवाजे खोल सकते हैं?



इस पोस्ट पर काफी टिप्पणी आयी हैं आप को वो सब पढ़वा रही हूँ और आप के विचार फिर आमत्रित कर रही हूँ इस विषय पर । विषय गंभीर हैं और चिंतन चाहता हैं सो लिखें अपने विचार ।

14 comments:

शाश्‍वत शेखर said...

माफ़ कीजियेगा लेकिन संकुचित दिमाग वाली समझ नहीं आए| अगर दोनों प्रेमी युगल हैं तो क्या बुराई है| जो कुछ भी हुआ वह दुखद है, चाहे सुनसान जगह हो या बाजार, सुरक्षा हर जगह होनी चाहिए|

प्रयास said...

छुप छुप कर मिलना शायद प्रेम करने का ही एक हिस्सा है. इसमें संस्कारों के संकुचित होने जैसा कुछ नहीं है. संस्कारों का संकुचन मैं उन लोगों में पाता हूँ जो ब्लातकर करने जैसा घिनौना कार्य करने में जरा भी नहीं डरते. हमारे देश के बडे ही नहीं ब्लकि छोटे शहरों में भी प्रेमी युगलों का पार्क इत्यादि में अकेले मिलना आम बात है. इसका मतलब यह नहीं है कि उनमें संस्कार नहीं हैं अथवा उनके संस्कार संकुचित हैं. हमारे मन में महिलाओं के प्रती इज्जत और सम्मान की भावना होनी चाहिये.

शाश्‍वत शेखर said...

अगर चोरी छुपे मिलना जैसी आम बात संस्कार पर प्रश्न चिह्न लगाती है तो मुझे शक है हम कभी संस्कारी बन पाएंगे|

Vidhu said...

रचना तुमने ,सही समय मैं एक सही प्रशन उठाया है,क्योंकि ये समय बच्चों के पढ़ाई का होता है माता -पिता इसके अलावा कुछ और बर्दाश्त नही कर पाते,घर मैं विपरीत सेक्स के दोस्त को शक से देखा जाना,आदि कई कारण से ...वैसे ये सही है की खुले दिल-दिमाग से बच्चों को सहूलियत और सुविधाएं देना चाहिए और दूसरी तरफ उन पर मनोवेइज्ञानिक दवाब भी बनाना चाहिए ...कभी उनके दोस्त बने कभी माता-पिता ...बच्चे चाहे जितना स्मार्ट हो..हमसे उनका अनुभव ज्यादा नही हो सकता,ज्यादा से ज्यादा उनसे बात करके कई मुश्किलों से पार पाया जा सकताहै और इस ग़लत पहमी मैं भी ना रहें की की उन्हें कुछ मालुम ही नही ...हाँ लेकिन कभी-कभी बच्चों के सामने बेवकूफ बन जाने मैं भी भलाई है....

कुश said...

धर्म, जाति भेद व्यक्ति को बाध्य करते है अपने प्रेमी से छुपकर मिलने से.. उन्हे पता है कि हमारे घरवालो कि सोच इतनी वृहद नही है कि वे इसे स्वीकार करे.. कभी कभी इस मामले में हैसियत और पैसा भी देखा जाता है.. परंतु सबसे पहले यदि धर्म या जाति ही अलग हो तो एक दीवार खड़ी हो ही जाति है..

हालाँकि फ़िल्मो के गीतो में इसमे आनन्द कि अनुभूति भी दर्शाई है.. याद करे फिल्म "जान तेरे नाम" का ये गीत "लेकिन छुप छुप के मिलने से मिलने का मज़ा तो आएगा" कहने का मतलब है कि ये भी एक वजह हो सकती है छुप छुप के मिलने क़ी..

माता पिता द्वारा बच्चो को भिन्न जाति अथवा धर्म या हैसियत के प्रेमी से ना मिलने दिया जाना.. और ऐसा होने पर समाज द्वारा बुरा मानना एक संकुचित सोच है.. इसी सोच से हमे बाहर जाना होगा..

हालाँकि इसके लिए आवश्यक है क़ी भावना शुद्ध हो, टिप्पणी सब कुछ कह पाना संभव नही.. फिलहाल इतना ही..

शाश्‍वत शेखर said...

प्रेमी युगल को कुछ समय अकेले बिताने का भी मन करता है, इसमे परिवार, धर्म, जाति मुझे किसी भी कोण से नजर नही आता| भले ही आप दोनों को अपने घर में जगह दें, openness रखें, फ़िर भी उन्हें अकेले वक्त बिताना ही है|

दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi said...

आप के विचार सही हैं। पर क्या घर के बाहर जीने का अधिकार नहीं है, लोगों को?

प्रवीण त्रिवेदी...प्राइमरी का मास्टर said...

आप के विचार सही हैं।!!
पर पर समाज द्वारा बुरा मानना एक संकुचित सोच है.. इसी सोच से हमे बाहर जाना होगा..

विवेक सिंह said...

कोई चीज कम मात्रा में मिले या मुश्किल से मिले तभी तो उसका आनन्द है .

Amit said...

बढ़िया लेख | अभी तक जितने भी लोगो ने टिपण्णी की है सब दुरुस्त है | मैं बस ये कहना चाहूँगा की आप घर में रहे या घर से बाहर हर जगह सुरक्षा होनी चाहिए | कम से कम आपको इतना अधिकार तो होना ही चाहिए की आप कहीं भी बिना रोक टोक के घूम सके , कहीं भी जाने से ना डरे | हम अगर अपने ही देश में उन्मुक्त होकर ना रह सकते हैं तो कहाँ रहेंगे |

अनिल कान्त : said...

हम सब ख़ुद ही समाज का निर्माण करते हैं ...और इस तरह कि छुप छुप कर मिलने की घटनाएं और आदत तब तक बनी रहेंगी जब तक कि ...समाज अपनी सोच का दायरा नही बढाता ....हम ख़ुद ही समाज हैं .....ज्यादातर प्रेमी युगुल अलग अलग जाती के होते हैं ...और इस कारण से बड़ी जाती या विपरीत जाती के लड़के या लड़की के माँ बाप ये कभी कबूल नही कर पाते और तमाम बंधन और लगाम लगाने कि कोशिश करते हैं......कुछ तो इस सदमे में ख़ुद के मरने कि या लड़के/लड़की को मारने कि धमकी तक दे डालते हैं .....ये सबसे बड़ा कारण है जिसकी वजह से प्रेमी युगुल छुप छुप कर मिलते हैं और सब कुछ छुप छुप कर करते हैं .....अगर समाज को इन मामलो में थोड़ा समझदारी पूर्वक और खुले दिमाग के तौर पर कबूला जाए तो इतनी मुश्किलात न आए ......और इसके लिये अंतर्जातीय विवाह के सभी रास्ते खोल देने चाहिए .....और अपने बच्चो को बचपन से खुला माहौल और अच्छी सीख व समझ दे ...यही इसका उपाय है

K.P.Chauhan said...

premi yugal ka chhup chhup kar milna wastav me sankuchit mansikta ka dyotak hai yadi unke hirday patal shuddh or shreshth hain or wo swayam bhi sanskarit hain to chhupne ki jarurat nahin hai balki me to kahungaa ki apne mata pita ke samne hi milen . chhupkar milne main anisht ki sambhawnaa bad jaati hai jo ki yugal main khastor par ladki ke bhavishya par prashan chinh lag jate hain jisko hamara samaj manyta nahin deta .jindgi bahut lambi hai usko sukhpoorvak jeene ke liye har kshetra main sanyam ki jarurat hai .

K.P.Chauhan said...

premi yugal ka chhup chhup kar milna wastav me sankuchit mansikta ka dyotak hai yadi unke hirday patal shuddh or shreshth hain or wo swayam bhi sanskarit hain to chhupne ki jarurat nahin hai balki me to kahungaa ki apne mata pita ke samne hi milen . chhupkar milne main anisht ki sambhawnaa bad jaati hai jo ki yugal main khastor par ladki ke bhavishya par prashan chinh lag jate hain jisko hamara samaj manyta nahin deta .jindgi bahut lambi hai usko sukhpoorvak jeene ke liye har kshetra main sanyam ki jarurat hai .

गिरीश बिल्लोरे "मुकुल" said...

zarooree aalekh
http://sanskaardhani.blogspot.com/2009/01/blog-post_09.html

January 12, 2009

अपने विचार लिखे शायद खुल कर पता चले कि क्यों नारी को ही नारी की विरोधी माना जाता हैं

औरत ही औरत की दुश्मन हैं । ये बात हमेशा कही जाती हैं ।
इस पोस्ट के जरिये हम विस्तार से अपने अपने विचार रख कर इस बात को समझ और समझा सकते हैं ।
प्रश्न हैं
क्या औरत ही औरत की दुश्मन होती हैं ??
अगर आप इस बात को सही मानते हैं तो बताये वो क्या कारण हैं की औरत औरत की दुश्मन बन जाती हैं ?
वो क्या परिस्थितियाँ हैं जो औरत को औरत का दुश्मन बनाती हैं ?
आप क्या कहते हैं , अपने विचार लिखे शायद खुल कर पता चले कि क्यों नारी को ही नारी की विरोधी माना जाता हैं ?

January 07, 2009

हम अपने बच्चो को लिये किस प्रकार से अपने घर और अपने संकुचित दिमागों को दरवाजे खोल सकते हैं?

आज के अखबार की हेडलाइन देख कर मन मे बहुत विषाद भर गया । क्या ये केवल एक हादसा हैं , एक दुर्घटना हैं । एक नवयुवक -युवती जो साथ पढ़ते थे कार मे या किसी सुनसान जगह पाये गए तो एक सवाल मन मे बराबर उठता हैं कि क्यूँ हमारे घर इतने छोटे हैं , क्यों हमारे संस्कार इतने संकुचित हैं कि हमारे बच्चे इस प्राकर से बाहर छुप कर मिलते हैं और एक दूसरे के प्रति अपने स्नेह को व्यक्त करते हैं ।
क्या हम अपने बच्चो को इतना असुरक्षित करने के लिये हम ख़ुद जिम्मेदार नहीं हैं ??
याद करती हूँ तो ना जाने कितने ऐसे हादसे याद आजाते हैं आप को भी आते होगी सो आप बताये क्या हो सकता हैं। मै इस घटना को महज एक बलात्कार ना मान कर उस से आगे इसके होने के कारणों पर बात हो ऐसा चाहती हूँ । बलात्कार , बलात्कारी किस कि गलती ये सब तो पुलिस देख लेगी , मीडिया भरकस बात करेगा पर हम अपने बच्चो को लिये किस प्रकार से अपने घर और अपने संकुचित दिमागों को दरवाजे खोल सकते हैं आप से ये जानना हैं

January 04, 2009

मैं दहेज के लिये मारपीट कर घर से निकाल दी गई एक पढ़ी-लिखी लड़की हूं।

कल की पोस्ट की लेखिका से जब मैने उनका परिचय पूछा तो मेल से ये जवाब आया हैं । आप सब भी पढे । नाम संपादित कर दिया हैं ।

रचना जी,
(ये परिचय सिर्फ आपके लिये है। इसे छापें ना बेहतर होगा। अगर छापें तो संपादित कर दें)
मैं दहेज के लिये मारपीट कर घर से निकाल दी गई एक पढ़ी-लिखी लड़की हूं। सात फेरों के कुछ घंटों बाद से ही मुझे बड़ी गाड़ी, 5 लाख कैश और विधवा मां के मकान से एक तिहाई हिस्से के कागज़ लाने या उतनी रकम लाने के लिये परेशान किया जाने लगा। फिर दो-तीन महीनों बाद मेरे बेरोजगार और हिंसक पति ने जान लेने की कोशिश की। पुलिस की मदद से मैं मां के घर लौटी और तब से वहीं हूं। मेरी गाड़ी, जेवर, कागज़ात, रोज़ पहनने के कपड़े तक मेरे पति ने वापस नहीं किये, बल्कि पारिवारिक अदालक में मामला दर्ज करवा दिया कि मैं सब कुछ लेकर भाग गई हूं और उनके साथ रहना नहीं चाहती। एक साल से मामला चल रहा है, वो मामला दर्ज करने के बाद तारीख पर हाज़िर नहीं होते हैं। मुझे तरह-तरह से परेशान किया जा रहा है। उन्होने मामला किया है इसलिये उनका अपर हैंड है। चाहे जब फोन पर धमकाते हैं कहते हैं मैं सुसाइड कर लूंगा और सुसाइड नोट में तेरे परिवार के लोगों के नाम लिखकर उनको फंसा जाऊंगा। पुलिस में शिकायत की लेकिन पुलिस समाज सेवक बन गई है कह रही है मिल-बैठकर मामला सुलझा लो। लेकिन किसके साथ, कोई बात करने को तैयार हो तब ना। मेरी बूढ़ी मां तक से गालीगलौज की जाती है। मेरी मां ने हर तरह से कोशिश कर ली लेकिन वो, उनकी मां, मुंबई में अफसर बड़ा भाई, फौज में तैनात कर्नल भाई और विदेश में रहने वाली छोटी बहन मांग पूरी किये बगैर कुछ भी सुनने को तैयार नहीं। फौजी अफसरों से भी अपने कर्नल जेठ की शिकायत की लेकिन वहां भी तूती की आवाज़ नहीं सुनी गई है। किसके पास जाऊं अपनी परेशानी लेकर। मैंने पिछले साल जनवरी में पहली बार राष्ट्रीय महिला आयोग में शिकायत की। उसके बाद साधारण डाक से लेकर, UPC, रजिस्ट्री, स्पीड पोस्ट तक से बीसियों शिकायतें भेजी लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। एक पत्रकार की मदद ली तब जाकर 14-15 नवंबर को शिकायत का नंबर मिला, लेकिन उसके बाद फिर चुप्पी। महिला आयोग में कोई तमीज़ से बात ही नहीं करता है। सैकड़ों रुपये डाक और फोन पर खर्च कर चुकी हूं। बड़ी गाड़ी, 5 लाख कैश और विधवा मां के मकान से एक तिहाई हिस्सा, कहां से इंतज़ाम करूं। यही परिचय है मेरा। मेरा क्या शायद और भी कई महिलाओं का परिचय यही होगा।

अगर इससे किसी तरह का विवाद ना पैदा होता हो तो इसे कहीं इस्तेमाल कर लें, शायद महिला बिरादरी के काम आये।

मुझे ईमेल से ये प्रत्र प्राप्त हुआ हैं जिसको मै यहाँ पोस्ट कर रही हूँ । मैने लेखिका से उनका परिचय पूछा तो जो जवाब आया वह आप सब कल पढ़ सकेगे । कब हम जगेगे कब ये समाज महिला के प्रति अपनी गलती को सुधार सकेगा पता नहीं ।
(नारी ब्लॉग की सूत्रधार अगर आप ठीक समझें और अगर इससे किसी तरह का विवाद ना पैदा होता हो तो इसे कहीं इस्तेमाल कर लें, शायद महिला बिरादरी के काम आये।)
....देश की पहली महिला राष्ट्रपति ने भी कह दिया कि दहेज कानून का दुरुपयोग हो रहा है। राष्ट्रपति महोदया ने यवतमाल में एक कार्यक्रम में कहा कि 6 से लेकर 10 फीसदी तक मामले गलत होते हैं। उन्होने किसी सर्वे के हवाले से ये बात कही। चूंकि राष्ट्रपति महोदया बोल रही हैं इसलिये इस पर शक करने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता है। लेकिन एक सवाल ज़रूर पैदा होता है कि सही मामले तक दर्ज ना करने वाली पुलिस गलत मामले कैसे दर्ज करती है। और जब मामला गलत साबित होता है तो उसकी सज़ा पुलिस को क्यों नहीं मिलती है।

हाल ही में दहेज कानून के खिलाफ जिस तरह से हवा बननी शुरू हुई उससे लगता है कि पत्नियों और ससुरालियों से पीड़ित संघ जैसे मसखरे संगठन बनाने वाले लोगों और पेशेवर समाज सेवकों की एक नई पीढ़ी के दुष्प्रचार अभियान ने असर दिखाना शुरु कर दिया है।

लेकिन आंकड़े कुछ और भी बयां करते हैं। केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड की मासिक पत्रिका समाज कल्याण के जनवरी अंक में पृष्ठ क्रमांक 13 पर महिलाओं के उत्पीड़न से संबंधित आंकड़े छपे हैं जिनमें से एक ये है कि देश में हर 78 मिनिट में एक महिला को दहेज की वजह से अपनी जान देनी पड़ती है। ये तो वो मौत है जो कहीं कागज़ों में दर्ज होती है। वो मामले जिनमें रिपोर्ट दर्ज नहीं होती या दर्ज नहीं करवाई जाती, उनको भी अगर जोड़ लिया जाये तो हो सकता है कि 78 मिनिट घटकर 28 या 18 मिनिट पर आ जायें। जब दहेज से जुड़ी मौत के आंकड़े इतने भयावह हैं तो दहेज के लिये मारने-पीटने, मानसिक यातनायें देने, तलाक लेने, घर से निकालने के आंकड़े कितने भयानक होंगे कल्पना ही की जा सकती है।

एक दैनिक अखबार में छपे राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2007 में दहेज के लिये परेशान करने और दहेज मृत्यु के मामलों में 2 लाख 15 हज़ार लोग 733 लोग गिरफ्तार किये गये और जिनमें से 85 से लेकर 94 फीसदी तक लोग बरी हो गये। लेकिन इसमें ये भी देखना होगा कि ये लोग अदालत ने बेकसूर साबित करके बरी किये या पीड़ित पक्ष के मामला वापस लेने की वजह से बरी हुए। ज़्यादातर मामलों में लड़की वाले बेटी के भविष्य की चिंता करके लड़के के घर वालों के गलती मान लेने पर मामला वापस ले लेते है। इसे बरी होना नहीं माना जा सकता है। ये दरअसल एक किस्म का मेलमिलाप है जो डंडे के दम पर होता है। ये कानूनी तौर पर भले ही गलत हो लेकिन इससे भी सैकड़ों परिवार टूटने से बचे हैं और दहेज लोभियों और अत्याचारियों की अक्ल ठिकाने आई है। इसी को आजकल दहेज कानून का दुरुपयोग कहा जा रहा है।

January 01, 2009

नारी ब्लॉग की २००९ पहली पोस्ट नयी पीढी के नाम ।

नारी ब्लॉग अपने सभी पाठको को २००९ की बधाई देता हैं । २००९ मे भी हमारा प्रयास रहेगा की हम सामाजिक व्यवस्था मे नारी के लिये समान अधिकार की बात को जारी रखे और आप का परिचय उन नारियों से करवाते रहे जिन्होने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की हैं ।
नारी ब्लॉग का मकसद हैं नारी को जाग्रत करते रहना की जो अधिकार तुम्हारा जन्म से हैं उसको तुम्हे किसी से मांगने की जरुरत नहीं हैं ।
अगर नारी बराबरी की बात करे तो उसको अपने को इतना सशक्त करना होगा की वह बारबरी के अधिकार के साथ हर जिम्मेदारी को भी बराबरी से पूरा करने मे सक्षम हो ।
नारी सशक्तिकरण का अर्थ हैं समानता अधिकार और जिम्मेदारी मे ।
हिन्दी ब्लॉग जगत एक बड़ी दुनिया का छोटा सा हिस्सा हैं । हम निरंतर प्रयास करते रहेगे की इस छोटी सी इन्टरनेट की दुनिया मे नारी के प्रति शब्दों मे कहीं भी को अभद्रता ना हो ।
सादियों से अभद्र शब्द सुन कर चुप रहने को महिला अपनी नियति मानती हैं पर हमारी इस ब्लॉग पर निरंतर कोशिश रही हैं की हम इस "नियति " को बदल सके ।
व्यक्तिगत लड़ाई और व्यक्तिगत क्षमा से ऊपर उठ कर सामाजिक कुरीतियों और सामाजिक उत्थान का समय हैं और ये ब्लॉग केवल एक छोटी सी कोशिश हैं इस उत्थान मे अपना सहयोग देने की ।
हमारी हर सदस्य कोशिश करती हैं की अपना सहयोग इस मे दे , समय समय पर उनके भेजे लिंक से ही मै निरंतर पोस्ट कर पाती हूँ ।
इस के अलावा हमारेअन्य ब्लॉगर मित्र जो इस ब्लॉग के सदस्य नहीं हैं , निरंतर लिंक भेज कर इस ब्लॉग पर डालने के लिये अपना सहयोग देते हैं ।
जिन लोगो ने टिपण्णी दे कर कई बार हमारी सोच को "सही " किया हैं उनकी मै ह्रदय से आभारी हूँ । कई बार मुझे मेल देकर किसी पोस्ट को हटाने के लिये भी कहा गया हैं और वो पोस्ट हटाई भी गयी हैं क्युकी अगर हमारी पोस्ट मे कोई बात ऐसी हैं जिससे समाज मे अव्यवस्था हो सकती हैं तो उस पोस्ट को हटाने मे क्या आपत्ति होगी पर तर्क सही होना जरुरी हैं ।
स्त्री और पुरूष एक ही तरह से बने हैं और समानता के अधिकारी हैं । संविधान मे दिये गए हर समान अधिकार पर स्त्री का उतना ही अधिकार हैं जितना पुरूष का । कन्या भूण हत्या आज भी हमारे समाज मे स्त्री के प्रति समान अधिकार की सोच को झुठलाता हैं ।
जिस दिन हम अपने बच्चो को बच्चो की नज़र से देखेगे बेटे -बेटी मे विभाजित नहीं करेगे उसदिन से काफी बदलाव आयेगा ।
नारी की नियति नारी को ख़ुद बनानी होगी , अपशब्द का जवाब अपशब्द होता हैं इस लिये अगर आप आगे आने वाली पीढी मे संतुलन चाहते हैं , अगर आप "परिवार" बचाना चाहते हैं तो अपशब्द देना बंद करे । नारी को ये समझाना बंद करे की परिवार मे समझोता नारी की नियति हैं ।
समझोते से जिन्दगी कटती हैं जी नहीं जाती अपने अपने घरो मे बस एक बार अपने घरो की महिलाओ से पूछ कर देखे " क्या वो जिन्दगी जी रही हैं या काट रही हैं " और आप को जो जवाब मिले उसको पूरी इमानदारी और सचाई से यहाँ बांटे आप की माँ का जवाब आप की सोच को सही दिशा दे सकता हैं बस कुछ मिनट माँ के साथ इस प्रश्न को पूछने मे लगाए

आप सब को नया साल शुभ हो और नयी पीढी को जिन्दगी वो सब खुशियाँ दे जो पुरानी पीढी को नहीं मिली । इसी शुभकामना के साथ नारी ब्लॉग की २००९ पहली पोस्ट नयी पीढी के नाम ।

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