अगर आप एक विवाहित स्त्री हैं और आप का विवाह हिन्दू सनातनी रीति रिवाज से हुआ हैं , यानी विवाह तो हुआ , लेकिन उसका कोई क़ानूनी प्रमाण पत्र आप के पास नहीं हैं तो जान लीजिये की आप को कभी भी समस्या आ सकती हैं .
अब विवाह का रजिस्ट्रेशन करवाना जरुरी होता जा रहा हैं .
अगर आप शादी के बाद विदेश जाना चाहती हैं तो पासपोर्ट पर पति का नाम हो ना हो लेकिन अगर आप विवाहित हैं तो आप के पास उसका प्रमाण पात्र जरुरी चाहिये .
अगर आप को अपने नाबालिग बच्चे का पासपोर्ट बनवाना हैं तो भी आप के पास शादी का प्रमाण पात्र जरुरी हैं ,
इसके अलावा कभी बुरा समय आने पर अगर पति के ना रहने पर { ईश्वर ना करे } आप को कहीं ये प्रूव करने को कह दिया जाए की आप ही उनकी "लाफुल्ली weded वाइफ " हैं जैसे बैंक , लाइफ इंश्युरेंस इत्यादि पर तो केवल और केवल ये एक प्रमाण पत्र दे कर आप बहुत सी कानूनी दांव पेच से बच जायेगी . बहुत मुश्किल काम होता हैं कानून अपने को पत्नी सिद्ध करना , कई गवाह और अफिदेवित की जरुरत होती हैं .
अगर आप अपनी बेटी का विवाह किसी अन आर आई से कर रही है तो आप को उस विवाह को तुरंत रजिस्टर करा देना चाहिये क्युकी आज कल भारतीये लड़कियों से अन आर आई लडके शादी तो कर लेते हैं , दान दहेज़ भी लेते हैं पर उनको अपने साथ विदेश नहीं ले जाते . अगर शादी रजिस्टर नहीं होगी तो आप की बेटी विदेश जा ही नहीं सकती
अभी इस रजिस्ट्रेशन को कम्पलसरी नहीं किया गया हैं पर ये कानून लागू बहुत जल्दी किया जाने वाला हैं .
समाज में हिन्दू विवाह को मान्यता हैं लेकिन क़ानूनी वैद्यता के लिये लीकित दस्तावेज चाहिये होता हैं
आर्य समाजी रीति से जो विवाह होते हैं , उनमे प्रमाण पत्र दिया जाता हैं पर सनातनी रीति मे इस का प्रावधान नहीं है .
मैने दिनेश जी और अजय जी मेल देकर पूछा था की क्या उन्होने कोई पोस्ट इस पर दी हैं ? उन्होने इस पोस्ट मे और जानकारी देने की बात की हैं जो टिपण्णी मे आते ही अपडेट कर दूंगी
Anu ji aapne badw pyar se mere blog par tippni dete hue likha ki aapne meri bat man li...is blog par aa kar jana ki aap to naari blog chalaati hain..padh kar achchha lagaa .shukriya ji.
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ReplyDeleteरचना जी ,
ReplyDeleteआपने बहुत ही सामयिक और सटीक मुद्दा उठाया है इस पोस्ट में । विवाहों के पंजीकरण को अनिवार्य किए जाने के नए कानून के विषय में आपने बहुत सारी बातें लिखीं को आम जन में मन निश्चित रूप से उठ रही होंगीं । सबसे पहली बात तो ये बता दूं कि हमारे यहां देश में एक सबसे बडी कमी प्रशासन और व्यवस्था की ये रही है , या शायद जानबूझ कर छोडी गई है कि किसी भी कानून के बनने बनाने की प्रक्रिया में आम जनता का कोई सहयोग विरोध तो दूर उसे भनक न ही लगे तो अच्छा है की प्रवृत्ति पर ही काम किया गया है ।
विवाहों का पंजीकरण अनिवार्य किए जाने के पीछे बहुत सारे विधिक ,सामाजिक और प्रशासनिक कारण रहे हैं जिनकी चर्चा विशद हो जाएगी । मोटे तौर पर इसे इस तरह समझा जाए कि , सरकार ने अपने रिकॉर्डों को दुरूस्त करके उससे होने वाले फ़ायदे नुकसान का मन बना लिया है । राजधानी दिल्ली में इसे अनिवार्य कर दिया गया है अब , और जल्दी ही पूरे देश में भी कर दिया जाएगा ।
पिछले कुछ वर्षों मे पनपे सामाजिक अपराधों में एक अपराध आश्चर्यजनक रूप से वो था जो कहीं न कहीं विवाह से जुडा हुआ था , अलबत्ता उन पहले से चले आ रहे अपराधों , जैसे बाल विवाह आदि , एक से अधिक शादियां कर लेना वो भी किसी गलत उद्देश्य से , धोखे से गलत जानकारियां देकर शादी कर लेना , शादी करके विदेशों में जा बसना या विदेशों से आकर भारत में शादी करने के बाद उन्हें ठग निकलना आदि जैसे जुर्मों को ध्यान में रखते हुए इसे अनिवार्य करने की पहल ठीक कही जानी चाहिए ।
हां ये बात बिल्कुल दुरूस्त है कि कानून के अनुसार पत्नी अधिकांश मामलों में पहली वारिस या उत्तराधिकारी मानी जाती है विशेषकर तब जब वो खुद इस हक से कानून के सामने आए , उस समय जरूर ही ये बहुत जरूरी हो जाता है साबित करना कि वे शादीसुदा पति पत्नी हैं और अभी चलन में चल रहे दस्तावेज़ों में राशनकार्ड , या फ़िर मतदाता पहचान पत्र आदि सहायक और पूरित कागज़ात हैं , विवाह पंजीकरण प्रमाणपत्र की जरूरत कुछ वर्षं पश्चात उसी तरह मानी समझी जाएगी जैसे आज से कुछ वर्षों पहले तक मैट्रिक की परीक्षा के प्रमाणपत्र को जन्मतिथि के लिए पर्याप्त माना जाता था जबकि अब एक नियत वर्ष के बाद पैदा हुए बच्चों के लिए जन्म तिथि प्रमाण पत्र का होना अनिवार्य कर दिया गया है ।
शुरूआती दिनों में विवाह पंजीकरण करवाना आसान नहीं था , तकनीकी विधिक प्रक्रिया थी और बहुत सारी अनिवार्य सी शर्तें , जिन्हें अब जाकर कुछ कुछ लोगों की सहूलियत के हिसाब से बदला गया है । मसलन पहले पंजीकरण कराने वाले वक्तियों का उपस्थित होना जरूरी था जबकि अब नए के अनुसार अब इस अनिवार्यता को समाप्त कर दिया गया है , गवाहों की उपस्थिति आदि नियमों में बदलाव किए गए हैं , जिन्हें अलग से विस्तृत पोस्ट में कहना होगा । फ़िलहाल ये कदम उचित अपेक्षित और अनिवार्य कदम के रूप में ही देखा जाना चाहिए , बेशक सरकार चाहे तो इस प्रमाणपत्र के बनने और उसे आम लोगों के हाथों में पहुंचने की प्रक्रिया को जितना सरल कर सके उसका प्रयास करना चाहिए । बहरहाल एक नागरिक और विधिक क्षेत्र से जुडे होने के कारण मैं इतना ही कह सकता हूं कि इस कानून का सम्मान और पालन करना चाहिए , ये हमारे हित का कानून है । ...
बाप रे कमेंट लंबा हो गया लगता है , चलिए मैं जल्दी ही अपनी पोस्ट भी लिखता हूं इस विषय पर