नारी सशक्तीकरण की दिशा में अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति की बदौलत अमेरिका देवी व तिलिया देवी ने चमत्कारिक काम कर विश्व पटल पर सुर्खियां पा ली हैं। इसके लिए दोनों को काफी संघर्ष करना पड़ा, लेकिन वे हार नहीं मानी। तभी तो दोनों वर्ष 2004 में नेयॉन फाउंडेशन द्वारा वुमन ऑफ सब्सेंटस अवार्ड से सम्मानित और 2005 में नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया। इन दिनों वे महादलितों को शिक्षा सहित अन्य क्षेत्रों में जागरूक करने में जुटी हैं। झझारपुर अनुमंडल केलखनौर प्रखंड के खैरी गाव की मुसहर जाति की तिलिया देवी व सोहराय गाव की अमेरिका देवी को 07 जुलाई 2005 को नोबल पुरस्कार के लिए नामित किया गया था। तिलिया ने अपने गाव खैरी सहित लखनौर, बलिया, लेलिननगर, कमलदाहा मुसहरी, बेलौचा, निर्मला, उमरी आदि मुसहरी व अमेरिका ने अपने गाव सोहराय सहित मदनपुर खतवेटोल, गोट सोहराय सहित आसपास की मुसहर जातियों के घर-घर जाकर उन्हें जागरूक करना शुरू कर दिया। अमेरिका देवी ने कहा कि 360 परिवार वाले सोहराय गाव में 18 महिलाओं का स्वयं सहायता समूह बनाकर करीब 360 महिलाओं को हस्ताक्षर करना सिखाया। अब ये अंगूठा छाप के कलंक से मुक्त हो गयी हैं। इन्हें आर्थिक रूप से बैंकों से जोड़ कर मजबूत भी किया गया है। इसी तरह तिलिया देवी ने भी 48 स्वयं सहायता समूहों का गठन कराकर 700 महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बना दिया है। नारी सशक्तीकरण की दिशा अब नगरों से गांवों की ओर भी चल पड़ी है.
साभार : जागरण
आकांक्षा यादव
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
August 28, 2009
"आधी दुनिया का दावा करने वाली प्रजाति" का मतलब महिला समाज हैं तो बाकी आधी दुनिया मे पुरूष , समलैंगिक और लैंगिक विकलांग सब ही हुए ।
"बाकी बात रही आधी दुनिया होने का दावा करने वाली प्रजाति की।"
क्या इस वाक्य मे प्रजाति शब्द का उपयोग सही हैं । ये हिन्दी ब्लोगिंग हैं और यहाँ बारबार हिन्दी के ऊपर जोर दिया जाता हैं क्या प्रजाति शब्द का उपयोग करना महिला समाज के लिए सही हैं । इस ब्लॉग जगत मे एक कमेन्ट मे ये पढा हैं । पूरा कमेन्ट भी दे सकती हूँ , लिंक भी दे सकती हूँ लेकिन वो जरुरी नहीं हैं , जरुरी हैं की आज भी क्यूँ इन शब्दों का प्रयोग होता हैं । किसने किया हैं आधी दुनिया का दावा ? कौन हैं वो जिसको आप प्रजाति कह कर संबोधित कर रहे हैं ?अगर ये आधी दुनिया का दावा करने वाली प्रजाति का मतलब महिला समाज हैं तो बाकी आधी दुनिया मे पुरूष , समलैंगिक और लैंगिक विकलांग सब ही हुए । इस का अर्थ हुआ की वो आधी दुनिया जिस को आप फक्र से पुरूष की दुनिया कहते हैं वो केवल आप की नहीं हैं । आज जिस प्रजाति को आप आधी दुनिया कहते हैं वो अगर आप ही की बात को सही समझा जाए तो आधी से ज्यादा दुनिया ले चुकी हैं !!! सो इतना टंच ना कसे की वो आप को जवाब देने को मजबूर हो जाये ।
बाकी आधिकारो के प्रति सजगता बढ़ रही हैं आधी दुनिया कहतेकहते कही आप के पैरो के नीचे से जमीन ना खिसक जाए बचा के रखे
"प्रजाति " शब्द के बारे मे कोई भी विस्तार से बता दे और भाषा विज्ञान की दृष्टि से उसके प्रयोग के बारे मे भी पता चले तो आभार होगा । गूगल पर तो प्रजाति शब्द कहीं भी महिला समुदाये के लिये नहीं प्रयोग हुआ हैं और विकी पर भी नहीं मिला हैं ।
हां आप ये जरुर कहा सकते हैं पूरा कमेन्ट पढे बिना कुछ नहीं कहा जा सकता सो अगर लिंक चाहे तो वो भी दे सकती हूँ बस कमेन्ट मे कहें की लिंक चाहिये
क्या इस वाक्य मे प्रजाति शब्द का उपयोग सही हैं । ये हिन्दी ब्लोगिंग हैं और यहाँ बारबार हिन्दी के ऊपर जोर दिया जाता हैं क्या प्रजाति शब्द का उपयोग करना महिला समाज के लिए सही हैं । इस ब्लॉग जगत मे एक कमेन्ट मे ये पढा हैं । पूरा कमेन्ट भी दे सकती हूँ , लिंक भी दे सकती हूँ लेकिन वो जरुरी नहीं हैं , जरुरी हैं की आज भी क्यूँ इन शब्दों का प्रयोग होता हैं । किसने किया हैं आधी दुनिया का दावा ? कौन हैं वो जिसको आप प्रजाति कह कर संबोधित कर रहे हैं ?अगर ये आधी दुनिया का दावा करने वाली प्रजाति का मतलब महिला समाज हैं तो बाकी आधी दुनिया मे पुरूष , समलैंगिक और लैंगिक विकलांग सब ही हुए । इस का अर्थ हुआ की वो आधी दुनिया जिस को आप फक्र से पुरूष की दुनिया कहते हैं वो केवल आप की नहीं हैं । आज जिस प्रजाति को आप आधी दुनिया कहते हैं वो अगर आप ही की बात को सही समझा जाए तो आधी से ज्यादा दुनिया ले चुकी हैं !!! सो इतना टंच ना कसे की वो आप को जवाब देने को मजबूर हो जाये ।
बाकी आधिकारो के प्रति सजगता बढ़ रही हैं आधी दुनिया कहतेकहते कही आप के पैरो के नीचे से जमीन ना खिसक जाए बचा के रखे
"प्रजाति " शब्द के बारे मे कोई भी विस्तार से बता दे और भाषा विज्ञान की दृष्टि से उसके प्रयोग के बारे मे भी पता चले तो आभार होगा । गूगल पर तो प्रजाति शब्द कहीं भी महिला समुदाये के लिये नहीं प्रयोग हुआ हैं और विकी पर भी नहीं मिला हैं ।
हां आप ये जरुर कहा सकते हैं पूरा कमेन्ट पढे बिना कुछ नहीं कहा जा सकता सो अगर लिंक चाहे तो वो भी दे सकती हूँ बस कमेन्ट मे कहें की लिंक चाहिये
August 26, 2009
उन्हें जीने दो - उन्हें भी जीने का हक है!
इस देश के सिर्फ एक कानपुर शहर में पिछले एक हफ्ते पहले, प्रतिदिन का एक समाचार इस का होता था कि एक नवजात बच्ची मृत मिली। कभी कूड़े के ढेर पर , कभी नाले के किनारे और कभी सड़क के किनारे। यह ख़बर रोज निकलती रही और हम उसको एक ख़बर समझ कर पढ़ते रहे। दो चार अपशब्द उसके घर वालों के लिए बोल कर अपने कर्तव्य की इति श्री समझ ली ।
इस दुनिया में आने के बाद भी उनसे उनके जीने का हक़ छीन लिया गया। किसने छिना यह अधिकार? शायद हमने ही - हाँ हम ही तो हैं इसके जिम्मेदार। उन ८ बच्चियों में कुछ के सिर पर चोट करके मारा गया था , किसी को भरी बारिश के बीच सड़क के किनारे डाल दिया गया था. कुछ को जीवित ही फ़ेंक दिया और बाद में मौत मिली और किसी को घर वालों ने मौत बख्श दी फिर फ़ेंक दिया।
इनमें ही एक माँ ने साहस किया या फिर घर वालों से मिन्नतें करके बच्ची के जीवन तो मांग लिया लेकिन अपनी गोद से वंचित करने की शर्त पर । कम से कम उसको जीवन तो मिला जाएगा। कल एक बच्ची एक मन्दिर में पड़ी पाई गई , २० दिन की बच्ची जिसके गले पर रस्सी से कसने के निशान हैं। पर उस बच्ची के लिए कई सूनी गोद फैल गयीं। आज नहीं तो कल उसको एक गोद मिल जायेगी और उसके जीवन को एक सफर।
ये सजा सिर्फ उन मासूमों को ही नहीं मिली जिनको आँखें खोलते ही मौत दे दी गई बल्कि उन माँओं को भी मिली जिन्होंने घर वालों के तमाम ताने सहते हुए उसे प्रसव तक अपने गर्भ में पाला, प्रसव पीड़ा सही और फिर मिली उनको खाली गोद और उन मासूमों के लिए उनके स्तनों से बहता हुआ दूध। कितनी मौत मरती है वह माँ. सिर्फ एक लडके की चाह ने उस मासूम को जीने नहीं दिया।
इन मारने वालों ने कभी सूनी गोद वालों की पीड़ा को नहीं सहा है और उसका अहसास भी नहीं कर सकते हैं। जो अपने ही अंशों को गला घोंट कर मार देते हैं, वे पीड़ा से परे होते हैं. घर के आँगन में एक किलकारी गूंजने की चाह में कितने दंपत्ति मन्दिर, मस्जिद और गुरुद्वारों पर माथा टेकते हैं। तब भी उनको कोई एक माँ और पापा कहने वाला नहीं मिल पता है और हम अपने आँगन में आए उस सुख को ख़त्म कर देते हैं।
मेरी तो सबसे यही प्रार्थना है की इन बच्चियों को मत मारो, उनके जीने का हक़ दो। अगर आप नहीं पाल सकते तो उन्हें जिन्दा किसी आश्रम , मन्दिर या फिर पालना घर जैसी स्वयंसेवी संस्थाओं में छोड़ दो। उनको कोई घर मिल जाएगा और किसी घर को उनकी किलकारियों का सुख। तुम्हें तो उनसे ममता नहीं है और न प्यार, बस उन्हें इस दुनियां में जीने का हक़ दो। उन्हें लेने के लिए सैकड़ों खाली आंचल फैल जायेंगे। वह एक जीवन जो तुमने सृजित किया है, उसको नष्ट मत करो। मारने वाला कोई भी हो, मेरे ख्याल से माँ तो नहीं हो सकती और अगर माँ भी है तो अपने ही रक्त मज्जा से सृजित शरीर को कुत्तों और कौवों का आहार बनाने से बेहतर है कि किसी की गोद को भरने के लिए छोड़ दो।
वे बच्चियां जिन्होंने तुम्हारे घर में जन्म लिया है, उनकी हत्या करना बंद करो। एक सवाल उन्हीं से क्या कभी नवजात शिशु जो पुल्लिंग होता उसके इस तरह से मारा गया है। नहीं - ऐसा कभी नहीं होता है, अगर वह बीमार भी पैदा होता है तो अस्पतालों के चक्कर लगाते और मन्नतें मान रहे होते। क्या बेटे पैदा होते ही आपको कमाई खिलाने लगाते हैं या फिर उनका दहेज़ आपको पहले से नजर आने लगता है। हम आज भी किस भ्रम में जी रहे हैं। बेटियाँ आज आसमान छू रही हैं, वंश के नाम के चलने के प्रश्न पर भी मैं पूछती हूँ, कि कितनी पीढ़ियों तक आप का नाम जीवित रहेगा। इंसान का नाम अपने कर्मों से जीवित रहता है, बेटे और पोते से नहीं. बेटियाँ भी उतनी ही सक्षम होती हैं, जितने कि आपके बेटे। उन्हें जीवन दीजिये मृत्यु नहीं। अगर नहीं चाहिए तो उन्हें जीवन ही मत दीजिये। इन हत्याओं का आपको कोई दंड नहीं देगा क्योंकि ये अनदेखा अपराध किसने देखा है ? लेकिन इसका अपराध बोध आपका पीछा सारे जीवन नहीं छोडेगा।
इसलिए फिर वही प्रार्थना कि बेटियों को जीने दीजिये , अपनी गोद नहीं देनी है तो दूसरों कि सूनी गोद में जीने दीजिये। ये आपका उपकार होगा मानवजाति पर, स्त्री जाति पर और उन सूने आंगनों पर जिनमें ये किलकारियों कल गूजेंगी जिन्हें आप खामोश कर देना चाहते हैं.
इस दुनिया में आने के बाद भी उनसे उनके जीने का हक़ छीन लिया गया। किसने छिना यह अधिकार? शायद हमने ही - हाँ हम ही तो हैं इसके जिम्मेदार। उन ८ बच्चियों में कुछ के सिर पर चोट करके मारा गया था , किसी को भरी बारिश के बीच सड़क के किनारे डाल दिया गया था. कुछ को जीवित ही फ़ेंक दिया और बाद में मौत मिली और किसी को घर वालों ने मौत बख्श दी फिर फ़ेंक दिया।
इनमें ही एक माँ ने साहस किया या फिर घर वालों से मिन्नतें करके बच्ची के जीवन तो मांग लिया लेकिन अपनी गोद से वंचित करने की शर्त पर । कम से कम उसको जीवन तो मिला जाएगा। कल एक बच्ची एक मन्दिर में पड़ी पाई गई , २० दिन की बच्ची जिसके गले पर रस्सी से कसने के निशान हैं। पर उस बच्ची के लिए कई सूनी गोद फैल गयीं। आज नहीं तो कल उसको एक गोद मिल जायेगी और उसके जीवन को एक सफर।
ये सजा सिर्फ उन मासूमों को ही नहीं मिली जिनको आँखें खोलते ही मौत दे दी गई बल्कि उन माँओं को भी मिली जिन्होंने घर वालों के तमाम ताने सहते हुए उसे प्रसव तक अपने गर्भ में पाला, प्रसव पीड़ा सही और फिर मिली उनको खाली गोद और उन मासूमों के लिए उनके स्तनों से बहता हुआ दूध। कितनी मौत मरती है वह माँ. सिर्फ एक लडके की चाह ने उस मासूम को जीने नहीं दिया।
इन मारने वालों ने कभी सूनी गोद वालों की पीड़ा को नहीं सहा है और उसका अहसास भी नहीं कर सकते हैं। जो अपने ही अंशों को गला घोंट कर मार देते हैं, वे पीड़ा से परे होते हैं. घर के आँगन में एक किलकारी गूंजने की चाह में कितने दंपत्ति मन्दिर, मस्जिद और गुरुद्वारों पर माथा टेकते हैं। तब भी उनको कोई एक माँ और पापा कहने वाला नहीं मिल पता है और हम अपने आँगन में आए उस सुख को ख़त्म कर देते हैं।
मेरी तो सबसे यही प्रार्थना है की इन बच्चियों को मत मारो, उनके जीने का हक़ दो। अगर आप नहीं पाल सकते तो उन्हें जिन्दा किसी आश्रम , मन्दिर या फिर पालना घर जैसी स्वयंसेवी संस्थाओं में छोड़ दो। उनको कोई घर मिल जाएगा और किसी घर को उनकी किलकारियों का सुख। तुम्हें तो उनसे ममता नहीं है और न प्यार, बस उन्हें इस दुनियां में जीने का हक़ दो। उन्हें लेने के लिए सैकड़ों खाली आंचल फैल जायेंगे। वह एक जीवन जो तुमने सृजित किया है, उसको नष्ट मत करो। मारने वाला कोई भी हो, मेरे ख्याल से माँ तो नहीं हो सकती और अगर माँ भी है तो अपने ही रक्त मज्जा से सृजित शरीर को कुत्तों और कौवों का आहार बनाने से बेहतर है कि किसी की गोद को भरने के लिए छोड़ दो।
वे बच्चियां जिन्होंने तुम्हारे घर में जन्म लिया है, उनकी हत्या करना बंद करो। एक सवाल उन्हीं से क्या कभी नवजात शिशु जो पुल्लिंग होता उसके इस तरह से मारा गया है। नहीं - ऐसा कभी नहीं होता है, अगर वह बीमार भी पैदा होता है तो अस्पतालों के चक्कर लगाते और मन्नतें मान रहे होते। क्या बेटे पैदा होते ही आपको कमाई खिलाने लगाते हैं या फिर उनका दहेज़ आपको पहले से नजर आने लगता है। हम आज भी किस भ्रम में जी रहे हैं। बेटियाँ आज आसमान छू रही हैं, वंश के नाम के चलने के प्रश्न पर भी मैं पूछती हूँ, कि कितनी पीढ़ियों तक आप का नाम जीवित रहेगा। इंसान का नाम अपने कर्मों से जीवित रहता है, बेटे और पोते से नहीं. बेटियाँ भी उतनी ही सक्षम होती हैं, जितने कि आपके बेटे। उन्हें जीवन दीजिये मृत्यु नहीं। अगर नहीं चाहिए तो उन्हें जीवन ही मत दीजिये। इन हत्याओं का आपको कोई दंड नहीं देगा क्योंकि ये अनदेखा अपराध किसने देखा है ? लेकिन इसका अपराध बोध आपका पीछा सारे जीवन नहीं छोडेगा।
इसलिए फिर वही प्रार्थना कि बेटियों को जीने दीजिये , अपनी गोद नहीं देनी है तो दूसरों कि सूनी गोद में जीने दीजिये। ये आपका उपकार होगा मानवजाति पर, स्त्री जाति पर और उन सूने आंगनों पर जिनमें ये किलकारियों कल गूजेंगी जिन्हें आप खामोश कर देना चाहते हैं.
August 22, 2009
शब्दों मे ताकत क्या कम होती हैं जो मातृशक्ति की जरुरत पड़ती हैं ??
हम "बाजारवाद" को अपनी सब समस्याओं के लिये जिम्मेदार मानते हैं । बहुत से लोग नारी को विज्ञापनों मे देख कर आपत्ति करते हैं क्युकी उनको महसूस होता हैं की नारी का शरीर का नंगा प्रदर्शन होता हैं ।
लोग अभिनेत्रियों और मोडेल्स के विरूद्व एक सोच ले कर चलते हैं की वो समाज मे वेस्टर्न कल्चर लाती हैं ।
हिन्दी ब्लॉग मे ना जाने कितने ब्लॉग हैं जहाँ चित्र होते हैं महिला के लेकिन उस चित्र का कोई भी तारतम्य नहीं होता लेख से । लोग इन्टरनेट से चित्र उठा कर अपनी पोस्ट पर लगाते हैं लेकिन बिना किसी प्रसंग के ।
हम किस मानसिकता के तहत ऐसा करते हैं ?? क्या हैं जरुरत नारी शरीर को { वस्त्र के साथ या बिना वस्त्र के } टूल बना कर अपनी पोस्ट को आकर्षित बनाना ।??
शब्दों मे ताकत क्या कम होती हैं जो मातृशक्ति की जरुरत पड़ती हैं ??
लोग अभिनेत्रियों और मोडेल्स के विरूद्व एक सोच ले कर चलते हैं की वो समाज मे वेस्टर्न कल्चर लाती हैं ।
हिन्दी ब्लॉग मे ना जाने कितने ब्लॉग हैं जहाँ चित्र होते हैं महिला के लेकिन उस चित्र का कोई भी तारतम्य नहीं होता लेख से । लोग इन्टरनेट से चित्र उठा कर अपनी पोस्ट पर लगाते हैं लेकिन बिना किसी प्रसंग के ।
हम किस मानसिकता के तहत ऐसा करते हैं ?? क्या हैं जरुरत नारी शरीर को { वस्त्र के साथ या बिना वस्त्र के } टूल बना कर अपनी पोस्ट को आकर्षित बनाना ।??
शब्दों मे ताकत क्या कम होती हैं जो मातृशक्ति की जरुरत पड़ती हैं ??
August 21, 2009
कर्मयुद्ध हैं हम सब साथ हैं
आज की चिटठा चर्चा पढ़ना जरुरी हैं क्यूँ , ये तो वही जाकर पता चलेगा । वहाँ कहा गया हैं
वर्ना हमें माफ कीजिए । अपना रास्ता लीजिए !" सुजाता
क्यूँ अब ये तो वही जा कर देखे ।
हम तो बस यही कहेगे
कर्मयुद्ध हैं हम सब साथ हैं
क्यूँ अब ये तो वही जा कर देखे ।
हम तो बस यही कहेगे
कर्मयुद्ध हैं हम सब साथ हैं
August 20, 2009
कहां हो क्रांतिवीरों.......
विवेक सिंह का कहना है कि उनकी शादी हो चुकी लेकिन लक्ष्मण से पूछ लें.....जबकि विवेक कुमार कह रहे हैं- मैंतैयार हूं, है कोई नज़र में? जीत भार्गव को भी यह आइडिया बुरा नहीं लग रहा। पोस्ट पर टिप्प्णी करने वालेज़्यादातर महानुभावों का मानना है कि मुसलमान लड़कियों को बदहाली से निकालने के लिए उनसे हिंदु युवकों कोशादी कर ही लेनी चाहिए। धर्मयुद़ध (http://ckshindu.blogspot.com/2009/08/blog-post_17.html) नामके ब्लॉग पर चढ़ाई गई इस पोस्ट को शायद मैं कभी क्लिक न करती अगर इसके शीर्षक में लड़कियों का जि़क्र नहोता। मैंने पोस्ट को पढ़ा और देखा कि मुस्लिम समाज में औरतों पर होने वाले अत्याचारों की कहानियों के लिंकदिए गए हैं और इस बात उनकी दुर्गत पर दुख जताते हुए क्रांति का रास्ता चुनने और इन लड़कियों से हिंदु युवकोंका विवाह करने के लिए क्रांति का आवाहन किया गया है। गोया, इनके जिम्मे है पूरे समाज की भलाई और इन्हींके हाथ है सारे युवकों की डोर। मुझे पोस्ट और उस पर मौजूद कमेंट़स देखकर सख्त हैरानी हुई कि कैसे इससंवेदनशील विषय को मज़े लेकर पेश किया जा रहा है। मैंने वहां कमेंट करते हुए कहा कि आप सबने क्योंकिमुसलमान औरतों के कल्याण का बीड़ा उठाया है तो मेरा भी उद़धार करें। मैंने वहां अपने दो ईमेल एड्रेस छोड़े थेलेकिन अफ़सोस एक भी क्रांतिवीर ने अपनी कुंडली नहीं भेजी।
धर्मयुद़ध ब्लॉग को चलाने वाले कौन हैं, उनका नफ़रत फैलाने वाला एजेंडा कहां से संचालित हो रहा है और वे इसतरह की हरकतों से हिंदु या मुसलमान किस समाज की नज़रों में उठ रहे हैं, मैं नहीं जानती। वे इस एजेंडे परकितनी दूर तक जाना चाहते हैं, यह उनकी मर्जी है लेकिन महिलाओं के नाम पर इस तरह की उनकी हरकत का मैंपुरज़ोर विरोध करती हूं। मुझे सख्त एतराज़ है उनकी भाषा और नीयत पर। मैं इस पोस्ट के लेखक से पूछनाचाहती हूं कि महाशय मैंने आपको कब यह अधिकार दिया कि आप मेरे, मेरी बहन या मेरी बेटी के लिए कोई रिश्तातलाश करके लाएं ? किसने उनसे जाकर फ़रियाद की है कि आओ हमारा जीवन सुधार दो।
जिस समय मैंने उक्त पोस्ट पर कमेंट किया तो मेरे सहयोगियों का कहना था कि ऐसा करके नाहक एक फिज़ूलपोस्ट को भाव दे रही हूं। ऐसे लोगों को इग्नोर करना चाहिए। मैं शायद ऐसा ही करती लेकिन सिर्फ़ एक कारण थाजिसके लिए मुझे यह पोस्ट लिखनी पड़ी कि इन महाशय को आगाह कर दिया जाए कि भविष्य में अपने एजेंडे कीआड़ लेकर महिलाओ पर कोई निशाना न साधें। आप अपने धर्मयुद़ध की ध्वजा फहराने के लिए हमारा इस्तेमालन करें, क्योंकि आपकी मानसिकता और सोच सीधे तौर पर हमारी समझ में आ रही है....
आप मुस्लिम समाज में औरतों की दुर्गत पर बात कर रहे थे तो जनाब आपको बता दूं कि मैं हर दिन ऐसी कम सेकम बीस खबरें देखती हूं जिसमें हर धर्म और समाज में औरतों पर होने वाले अत्याचार और जुल्म की कहानी होतीहै। अमेरिका से लेकर यूरोप और अरब से लेकर हरियाणा तक में औरतों पर होने वाले अत्याचार की भाषा एक है।कितनी गिनती आती है आपको बता दीजिएगा क्योंकि ऐसी कहानियां हमारे देश में हर रोज बनती और खत्म होजाती हैं जिसमें औरत को कलंकित किया जाता है, उस पर जुल्म किया जाता है।
आपने एक पोस्ट लिखी और मैंने उस पर अपना विरोध दर्ज किया, बस इससे ज़्यादा आगे तक जाने का न तो वक़्तमेरे पास है और न ही मंशा। इस पोस्ट द्वारा आपको समझाना चाहती हूं कि धर्म के नाम पर जो भी आप कर रहे हैंउसे मेहरबानी करके बंद कीजिए। अगर वास्तव में अपने देश और समाज से प्यार है तो कुछ अच्छा करने कीकोशिश कीजिए, इस बात का भरोसा रखिए कि आप जब भी एक अच्छा काम करेंगे, आपको पूरी कौम को आवाज़देने की ज़रूरत पड़ेगी ही नही पड़ेगी। हमारे देश में बहुत सारी समस्याएं हैं, बहुत सारी परेशानियां हैं अगर आपकेपास वक्त और संसाधन हैं तो उनका इस्तेमाल किसी ढंग के काम में कीजिए। और हां, एक बात और समझलीजिए कि औरत का भला करने के लिए उसे सिर्फ पत्नी बना लेना ही एक अकेला रास्ता नहीं है, ऐसा लिखकरआपने खुद को उन लोगों की जमात में खड़ा कर लिया है जो वास्तव में जानते ही नहीं कि औरत भोग के अलावाऔर क्या है।
मुझे जो कहना था कह दिया, आशा है आप आज के बाद महिलाओं की चिंता छोड़ देंगे।
ओरिजिनल पोस्ट हटा ली गयी हैं ब्लोग्वानी पर अभी हैं लिंक हैं
और पोस्ट यहाँ भी उपलब्ध हैं
धर्मयुद़ध ब्लॉग को चलाने वाले कौन हैं, उनका नफ़रत फैलाने वाला एजेंडा कहां से संचालित हो रहा है और वे इसतरह की हरकतों से हिंदु या मुसलमान किस समाज की नज़रों में उठ रहे हैं, मैं नहीं जानती। वे इस एजेंडे परकितनी दूर तक जाना चाहते हैं, यह उनकी मर्जी है लेकिन महिलाओं के नाम पर इस तरह की उनकी हरकत का मैंपुरज़ोर विरोध करती हूं। मुझे सख्त एतराज़ है उनकी भाषा और नीयत पर। मैं इस पोस्ट के लेखक से पूछनाचाहती हूं कि महाशय मैंने आपको कब यह अधिकार दिया कि आप मेरे, मेरी बहन या मेरी बेटी के लिए कोई रिश्तातलाश करके लाएं ? किसने उनसे जाकर फ़रियाद की है कि आओ हमारा जीवन सुधार दो।
जिस समय मैंने उक्त पोस्ट पर कमेंट किया तो मेरे सहयोगियों का कहना था कि ऐसा करके नाहक एक फिज़ूलपोस्ट को भाव दे रही हूं। ऐसे लोगों को इग्नोर करना चाहिए। मैं शायद ऐसा ही करती लेकिन सिर्फ़ एक कारण थाजिसके लिए मुझे यह पोस्ट लिखनी पड़ी कि इन महाशय को आगाह कर दिया जाए कि भविष्य में अपने एजेंडे कीआड़ लेकर महिलाओ पर कोई निशाना न साधें। आप अपने धर्मयुद़ध की ध्वजा फहराने के लिए हमारा इस्तेमालन करें, क्योंकि आपकी मानसिकता और सोच सीधे तौर पर हमारी समझ में आ रही है....
आप मुस्लिम समाज में औरतों की दुर्गत पर बात कर रहे थे तो जनाब आपको बता दूं कि मैं हर दिन ऐसी कम सेकम बीस खबरें देखती हूं जिसमें हर धर्म और समाज में औरतों पर होने वाले अत्याचार और जुल्म की कहानी होतीहै। अमेरिका से लेकर यूरोप और अरब से लेकर हरियाणा तक में औरतों पर होने वाले अत्याचार की भाषा एक है।कितनी गिनती आती है आपको बता दीजिएगा क्योंकि ऐसी कहानियां हमारे देश में हर रोज बनती और खत्म होजाती हैं जिसमें औरत को कलंकित किया जाता है, उस पर जुल्म किया जाता है।
आपने एक पोस्ट लिखी और मैंने उस पर अपना विरोध दर्ज किया, बस इससे ज़्यादा आगे तक जाने का न तो वक़्तमेरे पास है और न ही मंशा। इस पोस्ट द्वारा आपको समझाना चाहती हूं कि धर्म के नाम पर जो भी आप कर रहे हैंउसे मेहरबानी करके बंद कीजिए। अगर वास्तव में अपने देश और समाज से प्यार है तो कुछ अच्छा करने कीकोशिश कीजिए, इस बात का भरोसा रखिए कि आप जब भी एक अच्छा काम करेंगे, आपको पूरी कौम को आवाज़देने की ज़रूरत पड़ेगी ही नही पड़ेगी। हमारे देश में बहुत सारी समस्याएं हैं, बहुत सारी परेशानियां हैं अगर आपकेपास वक्त और संसाधन हैं तो उनका इस्तेमाल किसी ढंग के काम में कीजिए। और हां, एक बात और समझलीजिए कि औरत का भला करने के लिए उसे सिर्फ पत्नी बना लेना ही एक अकेला रास्ता नहीं है, ऐसा लिखकरआपने खुद को उन लोगों की जमात में खड़ा कर लिया है जो वास्तव में जानते ही नहीं कि औरत भोग के अलावाऔर क्या है।
मुझे जो कहना था कह दिया, आशा है आप आज के बाद महिलाओं की चिंता छोड़ देंगे।
ओरिजिनल पोस्ट हटा ली गयी हैं ब्लोग्वानी पर अभी हैं लिंक हैं
और पोस्ट यहाँ भी उपलब्ध हैं
August 18, 2009
" धन्यवाद ईश्वर आप ने हमे बहुत अच्छा बनाया हैं "
जी टी वी पर प्रसारित धारावाहिक "आपकी अंतरा " जो नहीं देखते हैं जरुर देखे । हर एपिसोड ख़तम होने के बाद बेसाख्ता मुंह से निकल ही जाता हैं " धन्यवाद ईश्वर आप ने हमे बहुत अच्छा बनाया हैं " ।
अगर ऐसे और धारावाहिक बने अलग अलग विषयों पर तो बहस के अलावा बहुत कुछ सीखा और समझा जा सकता हैं ।
अगर ऐसे और धारावाहिक बने अलग अलग विषयों पर तो बहस के अलावा बहुत कुछ सीखा और समझा जा सकता हैं ।
मिलिये संगीता अग्रवाल से ।
मिलिये संगीता अग्रवाल से । जानिये क्यूँ मिलाना जरुरी हैं संगीता अग्रवाल से । इस लिंक पर जाना पडेगा मिलने के लिये उन से । जरुर जाए आप को अफ़सोस नहीं होगा ।
August 14, 2009
आज़ादी आन्दोलन की एक परम्परा , स्वाइन फ्लू को कम कर सकती है
नारी ब्लॉग पर प्रश्न उठाने की परम्परा शुरू से रही है और लंबे शीर्षकों की भी!!!
आजादी की इस पूर्वसंध्या पर एक सवाल, एक लंबे शीर्षक के साथ मैं भी पूछना चाहती हूँ, कि कैसे इस दिन को सार्थक तरीके से मनाया जा सकता है? एक अमूर्त भारतमाता की जे-जयकार से, एक छूट्टी की तरह, या फ़िर उत्सव धर्मिता मे रंगे त्यौहार और वर्चुअल शुभकामनाओं के आदान प्रदान से? या फ़िर ऐसे ही संकेतो से?
आज़ादी की पूर्वसंध्या पर जब देश मे बहुत से लोग स्वाइन फ्लू के आतंक से घिरे है, अपनी जेबों मे अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा को तलाश रहे है, और बाज़ार कुछ असली नकली मास्क और तमाम तरह की चीजों को बेचने मे लगा है, और मीडीया का काम सिर्फ़ सनसनी फैलाना भर है, मुझे लगता है की ब्लॉग जैसे सीमित मंच से ही सही, अपनी एक भूली-बिसरी परम्परा जो आजादी के आन्दोलन का मुख्य हिस्सा थी, को याद करने का ये सटीक समय है। आज़ादी की लड़ाई के साथ एक और मुहीम महात्मा गांधी ने चलाई थी। वों थी सफाई अभियान, सामाजिक सारोकार की और आमजन की भागीदारी की। पढ़े-लिखे, छात्र और नागरिको को शहरी और सार्वजानिक स्थलों की सफाई मे भागीदार बनाना। गरीब बस्तियों मे शिक्षा और स्वास्थ्य संबन्धी जानकारी इसका प्रचार करना, शिक्षा और सूचना को समाज के कमजोर हिस्सों तक पहुचना और सबके लिए सार्वजनिक जीवन को बेहतर बनाने के लिए इसका इस्तेमाल करना।
स्वाइन फ्लू से बचने के लिए व्यक्तिगत हायजीन, मास्क, वैक्सीन, और बाज़ार मे मौजूद तमाम साधनों पर कई ब्लोगों पर बात हो चुकी है। कुछ मैंने अपने ब्लॉग स्वपनदर्शी पर भी लिखा है। एक पक्ष जो सामने नही आया है वों ये है कि अकेले अपने दम पर, अपनी जेब की दम पर इसका मुकाबिला करना सम्भव नही है। ये एक संक्रमित बीमारी है, और अमीर-गरीब, स्त्री पुरूष, काले-गोरे का भेद नही करेगी। १०० करोड़ जनसँख्या वाले देश मे व्यक्तिगत हाईजीन अगर एक चौथाई तबका फोलो भी करे तब भी ख़ुद को बचा नही पायेगा। अपने-अपने द्वीप मे हम नही रहते, और इसीलिये, अपने और अपनो को बचाने की इस मुहीम का सबसे कारगर हिस्सा, मास्क खरीदने, फ्लू के मंहगे टेस्ट के पीछे भागने की बजाय पुब्लिक हायजीन को ठीक करने मे हमारा थोडा -बहुत योगदान , सहयोग हो सकता है। और ये एक आदमी के बूते की बात नही है, बल्की कई लोगो का मिलाजुला अपने-अपने स्तर पर प्रयास हो सकता है। इतिहास की महामारियों, जिनमे प्लेग काफी कुविख्यात है, का सबसे बड़ा प्रतिरोध पब्लिक स्पेस मे लोगो की सामूहिक भागीदारी के जरिये साफ़-सफाई का ही रहा है।
क्या इस तरह की किसी पहल के लिए लोग तैयार है? ज्यादा नही, क्या एक घंटा प्रति महीने आप सार्वजानिक स्वच्छता मे किसी तरह का सहयोग कर सकते है, किसी ऐसे को स्वास्थ्य और बीमारी से बचाव की शिक्षा दे सकते है, जो पढ़ना -लिखना न जानता हो? कामगार हो? किसी स्कूल मे जाकर, खासकर गरीब स्कूलों मे, सरकारी स्कूलों मे बच्चों के साथ साफ़-सफाई की जानकारी बाँट सकते है?
आजादी की इस पूर्वसंध्या पर एक सवाल, एक लंबे शीर्षक के साथ मैं भी पूछना चाहती हूँ, कि कैसे इस दिन को सार्थक तरीके से मनाया जा सकता है? एक अमूर्त भारतमाता की जे-जयकार से, एक छूट्टी की तरह, या फ़िर उत्सव धर्मिता मे रंगे त्यौहार और वर्चुअल शुभकामनाओं के आदान प्रदान से? या फ़िर ऐसे ही संकेतो से?
आज़ादी की पूर्वसंध्या पर जब देश मे बहुत से लोग स्वाइन फ्लू के आतंक से घिरे है, अपनी जेबों मे अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा को तलाश रहे है, और बाज़ार कुछ असली नकली मास्क और तमाम तरह की चीजों को बेचने मे लगा है, और मीडीया का काम सिर्फ़ सनसनी फैलाना भर है, मुझे लगता है की ब्लॉग जैसे सीमित मंच से ही सही, अपनी एक भूली-बिसरी परम्परा जो आजादी के आन्दोलन का मुख्य हिस्सा थी, को याद करने का ये सटीक समय है। आज़ादी की लड़ाई के साथ एक और मुहीम महात्मा गांधी ने चलाई थी। वों थी सफाई अभियान, सामाजिक सारोकार की और आमजन की भागीदारी की। पढ़े-लिखे, छात्र और नागरिको को शहरी और सार्वजानिक स्थलों की सफाई मे भागीदार बनाना। गरीब बस्तियों मे शिक्षा और स्वास्थ्य संबन्धी जानकारी इसका प्रचार करना, शिक्षा और सूचना को समाज के कमजोर हिस्सों तक पहुचना और सबके लिए सार्वजनिक जीवन को बेहतर बनाने के लिए इसका इस्तेमाल करना।
स्वाइन फ्लू से बचने के लिए व्यक्तिगत हायजीन, मास्क, वैक्सीन, और बाज़ार मे मौजूद तमाम साधनों पर कई ब्लोगों पर बात हो चुकी है। कुछ मैंने अपने ब्लॉग स्वपनदर्शी पर भी लिखा है। एक पक्ष जो सामने नही आया है वों ये है कि अकेले अपने दम पर, अपनी जेब की दम पर इसका मुकाबिला करना सम्भव नही है। ये एक संक्रमित बीमारी है, और अमीर-गरीब, स्त्री पुरूष, काले-गोरे का भेद नही करेगी। १०० करोड़ जनसँख्या वाले देश मे व्यक्तिगत हाईजीन अगर एक चौथाई तबका फोलो भी करे तब भी ख़ुद को बचा नही पायेगा। अपने-अपने द्वीप मे हम नही रहते, और इसीलिये, अपने और अपनो को बचाने की इस मुहीम का सबसे कारगर हिस्सा, मास्क खरीदने, फ्लू के मंहगे टेस्ट के पीछे भागने की बजाय पुब्लिक हायजीन को ठीक करने मे हमारा थोडा -बहुत योगदान , सहयोग हो सकता है। और ये एक आदमी के बूते की बात नही है, बल्की कई लोगो का मिलाजुला अपने-अपने स्तर पर प्रयास हो सकता है। इतिहास की महामारियों, जिनमे प्लेग काफी कुविख्यात है, का सबसे बड़ा प्रतिरोध पब्लिक स्पेस मे लोगो की सामूहिक भागीदारी के जरिये साफ़-सफाई का ही रहा है।
क्या इस तरह की किसी पहल के लिए लोग तैयार है? ज्यादा नही, क्या एक घंटा प्रति महीने आप सार्वजानिक स्वच्छता मे किसी तरह का सहयोग कर सकते है, किसी ऐसे को स्वास्थ्य और बीमारी से बचाव की शिक्षा दे सकते है, जो पढ़ना -लिखना न जानता हो? कामगार हो? किसी स्कूल मे जाकर, खासकर गरीब स्कूलों मे, सरकारी स्कूलों मे बच्चों के साथ साफ़-सफाई की जानकारी बाँट सकते है?
August 12, 2009
वन्देमातरम की स्वर लहरियाँ बिखेरतीं 6 सगी मुस्लिम बहनें
पिछले दिनों मुस्लिमों द्वारा वन्देमातरम् न गाने के दारूउलम के फतवे पर निगाह गई तो उसी के साथ ऐसे लोगों पर भी समाज में निगाह गई जो इस वन्देमातरम् को धर्म से परे देखते और सोचते हैं। मशहूर शायर मुनव्वर राना ने तो ऐसे फतवों की प्रासंगिकता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए यहाँ तक कह दिया कि वन्देमातरम् गीत गाने से अगर इस्लाम खतरे में पड़ सकता है तो इसका मतलब हुआ कि इस्लाम बहुत कमजोर मजहब है। प्रसिद्ध शायर अंसार कंबरी तो अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं-मस्जिद में पुजारी हो और मंदिर में नमाजी/हो किस तरह यह फेरबदल, सोच रहा हूँ। ए.आर. रहमान तक ने वन्देमातरम् गीत गाकर देश की शान में इजाफा किया है। ऐसे में स्वयं मुस्लिम बुद्धिजीवी ही ऐसे फतवे की व्यवहारिकता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता ए.जेड. कलीम जायसी कहते है कि इस्लाम में सिर्फ अल्लाह की इबादत का हुक्म है, मगर यह भी कहा गया है कि माँ के पैरों के नीचे जन्नत होती है। चूंकि कुरान में मातृभूमि को माँ के तुल्य कहा गया है, इसलिये हम उसकी महानता को नकार नहीं सकते और न ही उसके प्रति मोहब्बत में कमी कर सकते हैं। भारत हमारा मादरेवतन है, इसलिये हर मुसलमान को इसका पूरा सम्मान करना चाहिये।
वन्देमातरम् से एक संदर्भ याद आया। हाल ही में मेरे पति एवं युवा प्रशासक-साहित्यकार कृष्ण कुमार यादव के जीवन पर जारी पुस्तक ‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर‘‘ के पद्मश्री गिरिराज किशोर द्वारा लोकार्पण अवसर पर छः सगी मुस्लिम बहनों ने वंदेमातरम्, सरफरोशी की तमन्ना जैसे राष्ट्रभक्ति गीतों का शमां बाँध दिया। कानपुर की इन छः सगी मुस्लिम बहनों ने वन्देमातरम् एवं तमाम राष्ट्रभक्ति गीतों द्वारा क्रान्ति की इस ज्वाला को सदैव प्रज्जवलित किये रहने की कसम उठाई है। राष्ट्रीय एकता, अखण्डता, बन्धुत्व एवं सामाजिक-साम्प्रदायिक सद्भाव से ओत-प्रोत ये लड़कियाँ तमाम कार्यक्रमों में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराती हैं। वह 1857 की 150वीं वर्षगांठ पर नानाराव पार्क में शहीदों की याद में दीप प्रज्जवलित कर वंदेमातरम् का उद्घोष हो, गणेश शंकर विद्यार्थी व अब्दुल हमीद खांन की जयंती हो, वीरांगना लक्ष्मीबाई का बलिदान दिवस हो, माधवराव सिन्धिया मेमोरियल अवार्ड समारोह हो या राष्ट्रीय एकता से जुड़ा अन्य कोई अनुष्ठान हो। इनके नाम नाज मदनी, मुमताज अनवरी, फिरोज अनवरी, अफरोज अनवरी, मैहरोज अनवरी व शैहरोज अनवरी हैं। इनमें से तीन बहनें- नाज मदनी, मुमताज अनवरी व फिरोज अनवरी वकालत पेशे से जुड़ी हैं। एडवोकेट पिता गजनफरी अली सैफी की ये बेटियाँ अपने इस कार्य को खुदा की इबादत के रूप में ही देखती हैं। 17 सितम्बर 2006 को कानपुर बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित हिन्दी सप्ताह समारोह में प्रथम बार वंदेमातरम का उद्घोष करने वाली इन बहनों ने 24 दिसम्बर 2006 को मानस संगम के समारोह में पं0 बद्री नारायण तिवारी की प्रेरणा से पहली बार भव्य रूप में वंदेमातरम गायन प्रस्तुत कर लोगों का ध्यान आकर्षित किया। मानस संगम के कार्यक्रम में जहाँ तमाम राजनेता, अधिकारीगण, न्यायाधीश, साहित्यकार, कलाकार उपस्थित होते हैं, वहीं तमाम विदेशी विद्वान भी इस गरिमामयी कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।
तिरंगे कपड़ों में लिपटी ये बहनें जब ओज के साथ एक स्वर में राष्ट्रभक्ति गीतों की स्वर लहरियाँ बिखेरती हैं, तो लोग सम्मान में स्वतः अपनी जगह पर खड़े हो जाते हैं। श्रीप्रकाश जायसवाल, डा0 गिरिजा व्यास, रेणुका चैधरी, राजबब्बर जैसे नेताओं के अलावा इन बहनों ने राहुल गाँधी के समक्ष भी वंदेमातरम् गायन कर प्रशंसा बटोरी। 13 जनवरी 2007 को जब एक कार्यक्रम में इन बहनों ने राष्ट्रभक्ति गीतों की फिजा बिखेरी तो राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा डाॅ0 गिरिजा व्यास ने भारत की इन बेटियों को गले लगा लिया। 25 नवम्बर 2007 को कानुपर में आयोजित राष्ट्रीय एकता सम्मेलन में इन्हें ‘‘संस्कृति गौरव‘‘ सम्मान से विभूषित किया गया। 19 अक्टूबर 2008 को ‘‘सामाजिक समरसता महासंगमन‘‘ में कांग्रेस के महासचिव एवं यूथ आईकान राहुल गाँधी के समक्ष जब इन बहनों ने अपनी अनुपम प्रस्तुति दी तो वे भी इनकी प्रशंसा करने से अपने को रोक न सके। वन्देमातरम् जैसे गीत का उद्घोष कुछ लोग भले ही इस्लाम धर्म के सिद्वान्तों के विपरीत बतायें पर इन बहनों का कहना है कि हमारा उद्देश्य भारत की एकता, अखण्डता एवं सामाजिक सद्भाव की परम्परा को कायम रखने का संदेश देना है। वे बेबाकी के साथ कहती हैं कि देश को आजादी दिलाने के लिए हिन्दू-मुस्लिम क्रान्तिकारियों ने एक स्वर में वंदेमातरम् का उद्घोष कर अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया तो हम भला इन गीतों द्वारा उस सूत्र को जोड़ने का प्रयास क्यों नहीं कर सकते हैं। राष्ट्रीय एकता एवं समरसता की भावना से परिपूर्ण ये बहनें वंदेमातरम् एवं अन्य राष्ट्रभक्ति गीतों द्वारा लोगों को एक सूत्र में जोड़ने की जो कोशिश कर रही हैं, वह प्रशंसनीय व अतुलनीय है। क्या ऐसे मुद्दों को फतवों से जोड़ना उचित है, आप भी सोचें-विचारें !!
(चित्र में- वन्देमातरम गायन करती 6 सगी मुस्लिम अनवरी बहनें)
आकांक्षा यादव
वन्देमातरम् से एक संदर्भ याद आया। हाल ही में मेरे पति एवं युवा प्रशासक-साहित्यकार कृष्ण कुमार यादव के जीवन पर जारी पुस्तक ‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर‘‘ के पद्मश्री गिरिराज किशोर द्वारा लोकार्पण अवसर पर छः सगी मुस्लिम बहनों ने वंदेमातरम्, सरफरोशी की तमन्ना जैसे राष्ट्रभक्ति गीतों का शमां बाँध दिया। कानपुर की इन छः सगी मुस्लिम बहनों ने वन्देमातरम् एवं तमाम राष्ट्रभक्ति गीतों द्वारा क्रान्ति की इस ज्वाला को सदैव प्रज्जवलित किये रहने की कसम उठाई है। राष्ट्रीय एकता, अखण्डता, बन्धुत्व एवं सामाजिक-साम्प्रदायिक सद्भाव से ओत-प्रोत ये लड़कियाँ तमाम कार्यक्रमों में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराती हैं। वह 1857 की 150वीं वर्षगांठ पर नानाराव पार्क में शहीदों की याद में दीप प्रज्जवलित कर वंदेमातरम् का उद्घोष हो, गणेश शंकर विद्यार्थी व अब्दुल हमीद खांन की जयंती हो, वीरांगना लक्ष्मीबाई का बलिदान दिवस हो, माधवराव सिन्धिया मेमोरियल अवार्ड समारोह हो या राष्ट्रीय एकता से जुड़ा अन्य कोई अनुष्ठान हो। इनके नाम नाज मदनी, मुमताज अनवरी, फिरोज अनवरी, अफरोज अनवरी, मैहरोज अनवरी व शैहरोज अनवरी हैं। इनमें से तीन बहनें- नाज मदनी, मुमताज अनवरी व फिरोज अनवरी वकालत पेशे से जुड़ी हैं। एडवोकेट पिता गजनफरी अली सैफी की ये बेटियाँ अपने इस कार्य को खुदा की इबादत के रूप में ही देखती हैं। 17 सितम्बर 2006 को कानपुर बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित हिन्दी सप्ताह समारोह में प्रथम बार वंदेमातरम का उद्घोष करने वाली इन बहनों ने 24 दिसम्बर 2006 को मानस संगम के समारोह में पं0 बद्री नारायण तिवारी की प्रेरणा से पहली बार भव्य रूप में वंदेमातरम गायन प्रस्तुत कर लोगों का ध्यान आकर्षित किया। मानस संगम के कार्यक्रम में जहाँ तमाम राजनेता, अधिकारीगण, न्यायाधीश, साहित्यकार, कलाकार उपस्थित होते हैं, वहीं तमाम विदेशी विद्वान भी इस गरिमामयी कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।
तिरंगे कपड़ों में लिपटी ये बहनें जब ओज के साथ एक स्वर में राष्ट्रभक्ति गीतों की स्वर लहरियाँ बिखेरती हैं, तो लोग सम्मान में स्वतः अपनी जगह पर खड़े हो जाते हैं। श्रीप्रकाश जायसवाल, डा0 गिरिजा व्यास, रेणुका चैधरी, राजबब्बर जैसे नेताओं के अलावा इन बहनों ने राहुल गाँधी के समक्ष भी वंदेमातरम् गायन कर प्रशंसा बटोरी। 13 जनवरी 2007 को जब एक कार्यक्रम में इन बहनों ने राष्ट्रभक्ति गीतों की फिजा बिखेरी तो राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा डाॅ0 गिरिजा व्यास ने भारत की इन बेटियों को गले लगा लिया। 25 नवम्बर 2007 को कानुपर में आयोजित राष्ट्रीय एकता सम्मेलन में इन्हें ‘‘संस्कृति गौरव‘‘ सम्मान से विभूषित किया गया। 19 अक्टूबर 2008 को ‘‘सामाजिक समरसता महासंगमन‘‘ में कांग्रेस के महासचिव एवं यूथ आईकान राहुल गाँधी के समक्ष जब इन बहनों ने अपनी अनुपम प्रस्तुति दी तो वे भी इनकी प्रशंसा करने से अपने को रोक न सके। वन्देमातरम् जैसे गीत का उद्घोष कुछ लोग भले ही इस्लाम धर्म के सिद्वान्तों के विपरीत बतायें पर इन बहनों का कहना है कि हमारा उद्देश्य भारत की एकता, अखण्डता एवं सामाजिक सद्भाव की परम्परा को कायम रखने का संदेश देना है। वे बेबाकी के साथ कहती हैं कि देश को आजादी दिलाने के लिए हिन्दू-मुस्लिम क्रान्तिकारियों ने एक स्वर में वंदेमातरम् का उद्घोष कर अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया तो हम भला इन गीतों द्वारा उस सूत्र को जोड़ने का प्रयास क्यों नहीं कर सकते हैं। राष्ट्रीय एकता एवं समरसता की भावना से परिपूर्ण ये बहनें वंदेमातरम् एवं अन्य राष्ट्रभक्ति गीतों द्वारा लोगों को एक सूत्र में जोड़ने की जो कोशिश कर रही हैं, वह प्रशंसनीय व अतुलनीय है। क्या ऐसे मुद्दों को फतवों से जोड़ना उचित है, आप भी सोचें-विचारें !!
(चित्र में- वन्देमातरम गायन करती 6 सगी मुस्लिम अनवरी बहनें)
आकांक्षा यादव
August 09, 2009
धर्म - माता ?? धर्म - पति ???
धर्म - पत्नी शब्द बहुत प्रयोग होता हैं । इसका मतलब क्या हैं ??
और
अगर धर्म - पत्नी शब्द हैं तो धर्म - पति शब्द भी होना चाहिये ।
क्यूँ धर्म - पति शब्द सुनने मे नहीं आता ?
क्या धर्म - पति शब्द शब्दकोष मे होता हैं ?
अगर नहीं
तो क्यूँ नहीं धर्म - पत्नी का पुल्लिंग शब्द धर्म - पति हैं ??
धर्म - पिता शब्द बहुत सूना जाता हैं पर धर्म - माता शब्द नहीं ?? फिर वहीं क्यूँ ??
अपनी बात आप कहें ।
और
अगर धर्म - पत्नी शब्द हैं तो धर्म - पति शब्द भी होना चाहिये ।
क्यूँ धर्म - पति शब्द सुनने मे नहीं आता ?
क्या धर्म - पति शब्द शब्दकोष मे होता हैं ?
अगर नहीं
तो क्यूँ नहीं धर्म - पत्नी का पुल्लिंग शब्द धर्म - पति हैं ??
धर्म - पिता शब्द बहुत सूना जाता हैं पर धर्म - माता शब्द नहीं ?? फिर वहीं क्यूँ ??
अपनी बात आप कहें ।
August 06, 2009
स्वाईन फ्लू
स्वाईन फ्लू से सम्बंधित जानकारी इस लिंक पर हैं
भारत मे स्वाईन फ्लू के उपचार के लिये निम्न अस्पताल के लिंक मुझ मिले हैं आप के पास और हो तो उस पोस्ट के कमेन्ट मे जोड़ते जाए ।
Bangalore
Rajiv Gandhi Institute of Chest Diseases
Near NIMHANS, Hombegowda Nagar
Bangalore-560029
+91-80-26632634
+91-80-26631923
http://rgicd.com/
Chandigarh
Postgraduate Institute of Medical Education & Research (PGI),
Sector 12, Chandigarh-160012
+91-172-2747585
+91-172-2746018
+91-172-2756565
Chennai
Communicable Diseases Hospital
No 187, Thiruvottiyur High Road
Near Apollo Hospital, Tondiarpet
Chennai-600081
+91-44-25912686
+91-44-25912687
+91-44-25912688
Hyderabad
Govt Chest Hospital
E S I Hospital Road, S R Nagar
Erragadda, Hyderabad-500018
+91-40-23814421
+91-40-23814422
Kolkata
Beliaghata Id Hospital
57 Beliaghata Main Road
Kolkata-700010
+91-33-23701251
+91-33-23701252
+91-33-23601251
+91-33-23601252
Mumbai
Kasturba Hospital
Sane Guruji Road
Jacob Circle
Opp Arthur Road Jail
Mahalaxmi, Mumbai-400011
+91-22-23083901
+91-22-23054831
+91-22-23004325
Noida
Dr Ram Manohar Lohia Hospital
Ward No 5, Baba Kharak Singh Marg
Connaught Place-110001
+91-11-23921401
+91-11-24525211
Pune
Naidu Hospital
Near Le Meridian Hotel
Raja Bahadur Mill, Pune GPO
Pune-411001
+91-20-26058243
+91-20-26058842
भारत मे स्वाईन फ्लू के उपचार के लिये निम्न अस्पताल के लिंक मुझ मिले हैं आप के पास और हो तो उस पोस्ट के कमेन्ट मे जोड़ते जाए ।
Bangalore
Rajiv Gandhi Institute of Chest Diseases
Near NIMHANS, Hombegowda Nagar
Bangalore-560029
+91-80-26632634
+91-80-26631923
http://rgicd.com/
Chandigarh
Postgraduate Institute of Medical Education & Research (PGI),
Sector 12, Chandigarh-160012
+91-172-2747585
+91-172-2746018
+91-172-2756565
Chennai
Communicable Diseases Hospital
No 187, Thiruvottiyur High Road
Near Apollo Hospital, Tondiarpet
Chennai-600081
+91-44-25912686
+91-44-25912687
+91-44-25912688
Hyderabad
Govt Chest Hospital
E S I Hospital Road, S R Nagar
Erragadda, Hyderabad-500018
+91-40-23814421
+91-40-23814422
Kolkata
Beliaghata Id Hospital
57 Beliaghata Main Road
Kolkata-700010
+91-33-23701251
+91-33-23701252
+91-33-23601251
+91-33-23601252
Mumbai
Kasturba Hospital
Sane Guruji Road
Jacob Circle
Opp Arthur Road Jail
Mahalaxmi, Mumbai-400011
+91-22-23083901
+91-22-23054831
+91-22-23004325
Noida
Dr Ram Manohar Lohia Hospital
Ward No 5, Baba Kharak Singh Marg
Connaught Place-110001
+91-11-23921401
+91-11-24525211
Pune
Naidu Hospital
Near Le Meridian Hotel
Raja Bahadur Mill, Pune GPO
Pune-411001
+91-20-26058243
+91-20-26058842
August 05, 2009
बिना कुछ कहे भी औरतें कर जाती हैं अपनी ताकत का ऐलान
स्त्री सशक्तिकरण के उदाहरण में किसी नए खून, नई पीढ़ी, जींस और तेज-तर्रार जबान/कलम का होना कतई जरूरी नहीं है। आज रक्षा बंधन पर सुबह-सुबह एक दिलचस्प नज़ारा देखने को मिला। इस घटना के बारे में पढ़ कर आप भी मेरी बात से सहमत होंगे। आज बहनें भाइयों को राखियां बांध रही हैं। सुबह से ही यह सिलसिला शुरू हो जाता है। इसीलिए कोई 10 बजे जब मैं घर से निकली तो सड़कें रोज के मुकाबले काफी खाली-खाली सी थीं।
एक लाल बत्ती पर मेरी नज़र बगल वाली गेहुंए रंग की एक लंबी गाड़ी पर पड़ी, जिसे एक बुजुर्ग महिला- कम से कम 70-75 साल की- चला रहीं थीं। मुझे हमेशा अच्छा लगता है ऐसे नजारे देखना कि औरत मोटर गाड़ी चलाए और पुरुष बगल में बैठे। मुझे समझ में आती है कि स्टीयरिंग व्हील पर बैठी औरत की ताकत। उसके हाथ में ताकत है- स्टीयरिंग के जरिए गाड़ी को मैनिपुलेट करने की, जाहे जहां ले जाने की, अपने काबू में रखने की! और साथ बैठे लोग हमेशा निर्भर-से लगते हैं।
तो उस दिन देखा उन बुज़ुर्ग महिला को जो लाल बत्ती पर रुकी कार के स्टीयरिंग व्हील पर थी और लगातार बातें किए जा रही थी, मुस्कुराती जा रही थी। बीच-बीच में कनखियों से बगल में नजर डाल लेतीं। ट्रैफिक और बत्ती पर उनका पूरा ध्यान था।
बगल की सीट पर उनसे भी ज्यादा बुजुर्ग बैठे थे, जिनके चेहरे पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दिख रही थी। उनकी नजर सिर्फ लाल बत्ती वाले खंबे पर टिकी थी। एकाध मिनट तक मैं यह दिलचस्प दृष्य देखती रही। फिर बत्ती हरी हो गई। मैने उनकी गाड़ी को पहले जाने दिया। इसमें मेरा स्वार्थ भी था। उस सुंदर दृष्य को थोड़ी देर और देख पाने का लालच था।
पर जैसे ही गाड़ी कुछेक फुट आगे बढ़ी, उस दृष्य में कुछ और दिलचस्प चरित्र जुड़ गए। कार में पीछे वाली सीट पर, जिसे मैं अब तक देख नहीं पाई थी, दो युवक बैठे थे और वह महिला संभवतः उन्हीं से बातें कर रही थी। उन दो युवा, सक्षम पुरुषों के रहते उस महिला का खुद, पूरे आत्मविश्वास से कार चलाना!
रक्षा बंधन जरूर एक मीठा त्यौहार है, भाई-बहन के मिलने का, गिलों-शिकवों, मान-मनौवल, प्यार-मनुहार का। लेकिन सोचिए तो भला- क्या ऐसी महिलाओं को जरूरत है रक्षा करने वाले भाइयों की?
एक लाल बत्ती पर मेरी नज़र बगल वाली गेहुंए रंग की एक लंबी गाड़ी पर पड़ी, जिसे एक बुजुर्ग महिला- कम से कम 70-75 साल की- चला रहीं थीं। मुझे हमेशा अच्छा लगता है ऐसे नजारे देखना कि औरत मोटर गाड़ी चलाए और पुरुष बगल में बैठे। मुझे समझ में आती है कि स्टीयरिंग व्हील पर बैठी औरत की ताकत। उसके हाथ में ताकत है- स्टीयरिंग के जरिए गाड़ी को मैनिपुलेट करने की, जाहे जहां ले जाने की, अपने काबू में रखने की! और साथ बैठे लोग हमेशा निर्भर-से लगते हैं।
तो उस दिन देखा उन बुज़ुर्ग महिला को जो लाल बत्ती पर रुकी कार के स्टीयरिंग व्हील पर थी और लगातार बातें किए जा रही थी, मुस्कुराती जा रही थी। बीच-बीच में कनखियों से बगल में नजर डाल लेतीं। ट्रैफिक और बत्ती पर उनका पूरा ध्यान था।
बगल की सीट पर उनसे भी ज्यादा बुजुर्ग बैठे थे, जिनके चेहरे पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दिख रही थी। उनकी नजर सिर्फ लाल बत्ती वाले खंबे पर टिकी थी। एकाध मिनट तक मैं यह दिलचस्प दृष्य देखती रही। फिर बत्ती हरी हो गई। मैने उनकी गाड़ी को पहले जाने दिया। इसमें मेरा स्वार्थ भी था। उस सुंदर दृष्य को थोड़ी देर और देख पाने का लालच था।
पर जैसे ही गाड़ी कुछेक फुट आगे बढ़ी, उस दृष्य में कुछ और दिलचस्प चरित्र जुड़ गए। कार में पीछे वाली सीट पर, जिसे मैं अब तक देख नहीं पाई थी, दो युवक बैठे थे और वह महिला संभवतः उन्हीं से बातें कर रही थी। उन दो युवा, सक्षम पुरुषों के रहते उस महिला का खुद, पूरे आत्मविश्वास से कार चलाना!
रक्षा बंधन जरूर एक मीठा त्यौहार है, भाई-बहन के मिलने का, गिलों-शिकवों, मान-मनौवल, प्यार-मनुहार का। लेकिन सोचिए तो भला- क्या ऐसी महिलाओं को जरूरत है रक्षा करने वाले भाइयों की?
August 02, 2009
ध्यान रहे आप कैसे व्यक्ति हैं आप की अभिव्यक्ति ये बताती हैं - चिटठा चर्चा.-.संवाद
आज पढा इस चर्चा को . सबने सब कह दिया और सबने सब सह लिया . हिंदी ब्लॉग जगत का आभार और शुक्रिया की एक मत होकर विरोध हुआ "एक गलत अभिव्यक्ति का " ना की"व्यक्ति" का . पर ये ध्यान रहे आप कैसे व्यक्ति हैं आप की अभिव्यक्ति ये बताती हैं . . वीनस उम्र मे कम पर सोच मे बडे हैं और डॉ अमर को समझना और मुश्किल हो जायेगा अगर उन्होने गहन और शिष्ट शब्दों का प्रयोग शुरू किया . समीर को कभी भी कोई गलत लिखता नहीं लगता पर आपति वो नारी ब्लॉग पर अपनी उस लेख के विरूद्व दर्ज करा चुके हैं कुश . क्या माफ़ी मांगने से अपराध कम हो जाता हैं , शायद नहीं, केवल हमारी गिल्ट ख़तम होती हैं . और जो माफ़ी नहीं मांगते उनमे गिल्ट भी नहीं होती क्युकी गिल्ट का सम्बन्ध आत्मा से होता हैं . विवाद, कभी ख़तम नहीं होते हां संवाद जरुर ख़तम हो जाते हैं . संवाद चलता रहे , समर्थन मिलता रहे , हम अपने सामाजिक कर्तव्यों को पूरा करते रहे , इसी कामना के साथ एक बार फिर आभार .
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