नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

July 31, 2012

पिता का पत्र ,नव-विवाहिता बेटी के नाम.


अहा ! जिंदगी

"अहा ! ज़िन्दगी" के जुलाई माह के अंक में मेरी ये चिट्ठी प्रकाशित हुई है.....आप सभी को पढाना चाहती हूँ....बिटिया को विदा करके पिता क्या सोचते हैं...क्या उम्मीद रखते हैं...क्या समझाइश करते हैं.....



प्रिय अनु,

तुम्हारे विवाह के बाद ये मेरा पहला पत्र है. यकीं ही नहीं हो रहा अब तक कि हमारी छोटी सी,शरारती,चुलबुली बिटिया अब बड़ी हो गयी और ब्याह कर हमसे दूर हो गयी है(दिल से नहीं.)
बेटियों को विदा करके अकसर मां-बाप थोडा फ़िक्र मंद होते हैं उनके भविष्य को लेकर.हम भी हैं...पत्र तुम्हें इसी आशय से लिख रहा हूँ .
वैसे आमतौर पर माएं ये फ़र्ज़ अदा करतीं हैं मगर बचपन से तुम भावनात्मक तौर पर मुझसे ही ज्यादा करीब रहीं .
जब कभी तुम व्यथित होतीं, अपनी भीगीं पलकें पोंछने को मां का आँचल नहीं मेरा कंधा खोजा करती थी.....सो तुम्हारी मां का आग्रह था कि ये पत्र तुम्हे मैं ही लिखूँ.

बेटा मुझे तुम्हारी समझदारी पर कोई शंका नहीं है मगर फिर भी कुछ बातें तुमसे कहना चाहता हूँ....जैसा तुम अकसर कहती हो कि"जल्दी मुद्दे पर आइये " मैं भी शुरु करता हूँ अपनी बात, बिंदुवार....
साथ फेरे के साथ सात वचन  लेकर तुम ब्याहता कहलायीं.अब मेरी ये सात बातें गाँठ बाँध कर सुखी जीवन व्यतीत करो ये कामना है मेरी.

पहली बात- तुम ससुराल में हो और  अब वही तुम्हारा घर है.
मगर ये बात ध्यान रखना कि जिस घर में तुम पली बढ़ी हो,तुम्हारा मायेका,वो भी सदा तुम्हारा रहेगा....तुम्हारा संबल बनेगा.
बिटिया हमने तुम्हें पराये घर भेजा है,पराया नहीं किया है.

दूसरी बात- ससुराल में सभी का उचित मान-सम्मान करना.बड़ों को शिकायत का कोई मौका न देना.
मगर बिटिया कोई तुम्हारा अपमान करे तो संयम और विनम्रता से अपना विरोध दर्ज़ कराना.अपमान सहना किसी भी सूरत में उचित नहीं है.

तीसरी बात-सबको अपना समझना. तुम्हारी हर चीज़ पर उनका भी हक़ है.और वैसे ही तुम्हें भी अधिकार है ससुराल की हर चीज़ को अपना समझने का.कोई इच्छा मन में दबा कर न रखना,तुम्हें पूरी उम्र वहाँ गुजारनी है.कुंठित होकर जीने से ह्रदय में स्नेह नहीं रहता.

चौथी बात- पति को अपना मित्र समझना.तुम्हारी ओर से प्रेम और सम्मान में कोई कमी ना रहे...और व्यवहार संतुलित हो.तभी तुम भी पाओगी भरपूर प्रेम और मान.
हो सकता है उनके ह्रदय में स्थान बनाने में तुम्हें वक्त लगे,परन्तु अपने प्रयासों में कमी ना होने देना.रिश्ते मुट्ठी में बंद रेत की तरह होते हैं.....मुट्ठी हौले से बांधना....ज्यादा कसने से रेत  फिसल जाती हैं और रह जाते हैं खाली हाथ. 

पांचवी बात-अपने स्वभाव में ठहराव लाना.अब तुम्हारे ऊपर एक परिवार का दायित्व है.मगर अपने विचारों में कभी ठहराव न लाना.अपनी कल्पनाशीलता को मत बांधना....अपने व्यक्तित्व की बाढ़ को मत रोकना,इसे निखरने देना दिन-प्रतिदिन.

छटवीं बात- सभी की आज्ञा का पालन करना तुम्हारा कर्त्तव्य होना चाहिए.मगर ध्यान रहे समाज के प्रति भी तुम्हारे कुछ कर्त्तव्य हैं.जैसे, जब तुम गर्भवती हो तब किसी के भी कहने से  लिंग जांच न कराना.यदि कन्या जन्म ले तो भी उसका स्वागत करना,और उसको अपनी तरह दृढ़ और सुशील बनाना...ससुराल में पल रही किसी भी कुप्रथा को न मानने का तुम्हें पूरा अधिकार है.

सातवीं बात-नया घर,नये लोग,नया परिवेश.....कभी ना कभी अकेलापन लगेगा,घबराहट भी होगी,उदासी भी घेरेगी.ईश्वर पर विश्वास  रखना...और उससे ज्यादा ज़रूरी है कि खुद पर यकीं रखना.जैसे मुझे यकीन है तुम पर और अपने दिये संस्कारों पर.

सदा खुश रहो 
सस्नेह
तुम्हारा पिता.

July 30, 2012

पुरुष ही पुरुष का दुश्मन

समय बड़ी तेजी से बदल रहा हैं एक ज़माना था लोग कहते थे औरत की औरत की दुश्मन होती हैं आज पुरुष ही पुरुष का दुश्मन हैं ये कहावत बनाने का वक्त आ ही गया हैं

July 26, 2012

ख़ैर मुझे तो ऐसी खबर बड़ा सुख देती हैं

एक छठी क्लास की लड़की ऐश्वर्या पराशर ने लखनऊ से आर टी आई के जरिये सरकार से पूछा की
महात्मा गाँधी को "राष्ट्र - पिता " कब और किसने बनाया ?
सरकार के पास कोई आधिकारिक दस्तावेज नहीं हैं जिस मे ये आर्डर दिया गया हो की आज की तारीख से सरकार महात्मा गाँधी को "राष्ट्र -पिता " की पदवी देती हैं .
आर टी आई के जवाब में सरकार ने ऐश्वर्या से कहा की वो आर्काइव में रखे दस्तावेजो पर रीसर्च कर के पता कर सकती हैं "राष्ट्र - पिता " शब्द का इतिहास .
ख़ैर मुझे तो ऐसी खबरे,  जहां हमारी नन्ही मुन्नी बेटियाँ "कितनी जहीन और दूरगामी " सोच लेकर आरही हैं , बड़ा सुख देती हैं .
इससे पहले ऐश्वर्या मायावती के दफ्तर में भी आर टी आई लगा चुकी हैं जब वो 8 वर्ष की थी जिसके लिये उन्होने अपनी गुल्लक से 10 रूपए दिये थे .

ऐश्वर्या देश की सबसे छोटी आर  टी आई activist हैं
हमारी दुआ उनके साथ हैं


गाँधी जी पर बाद मे जानकारी खोजी गयी तो पता चला की नेता जी ने  सबसे पहले सिंगापुर रेडियो प्रसारण जुलाई 6 , 1944 को गांधी जी को इस नाम से संबोधित किया था , उसके बाद सरोजिनी नायडू ने 28 अप्रैल 1947 और इसको ओफ्फिशियल घोषणा,  गाँधी जी मृत्यु के पश्चात दिये गये , नेहरु जी के रेडियो प्रसारण को माना जाता हैं



July 24, 2012

क्या हो इनका भविष्य ?

         

आज एक खबर टी वी पर देखी - मन विचलित हो गया ये सोच कर की इस कच्ची उम्र की बच्ची का भविष्य क्या होगा ? उसके बच्चे का भविष्य क्या होगा? खबर थी -" 13 वर्ष की बच्ची माँ बनी. " वह गैंग रेप का शिकार हुई थी और इस कच्ची उमर में जब कि वह किशोरावास्था की देहलीज पर खड़ी थी उसे बच्ची से औरत बना दिया और फिर माँ . माँ बनने का उसका अपना निर्णय था , उसके घर वालों ने उसको समझाया लेकिन पता नहीं उस बच्ची ने क्या सोचा और माँ बनने का निर्णय ले डाला क्योंकि उसको अभी ये नहीं मालूम है कि --

ऐसे बच्चों को पालने में और उनकी परवरिश में समाज की क्या भूमिका होती है?

ऐसे बच्चों को ये समाज किस दृष्टि से देखता है?

उनको क्या नाम देता है?

कल उसको क्या क्या सुनना और सहना होगा?

कल वह इस समाज को बच्चे के पिता का नाम नहीं बता सकेगी, और पिता का नाम तो हर जगह चाहिए , उसके बच्चे को स्कूल में प्रवेश नहीं मिलेगा अगर उसके साथ पिता का नाम नहीं होगा तो? अभी कुछ ही दिन पहले यह बात संज्ञान में आई थी कि एक युवती के बच्चे को स्कूल में प्रवेश इसलिए नहीं दिया गया क्योंकि वह गैंग रेप की शिकार युवती अपने बच्चे के पिता का नाम नहीं बता पायी थी। उसको स्कूल से वापस कर दिया गया।

इस समाज में वे लोग भी रहते हैं जो बच्चियों या युवतियों को गैंग रेप का शिकार बनाते हैं और वे बच्चियां भी रहती हैं जो इस हादसे का शिकार होती हैं। फिर पुरुष से इस तरह के प्रश्न को क्यों नहीं पूछा जाता है? अगर उठाया भी गया तो उसके लिए दुनियां के कानूनी दलीलें पेश कर दी जाती हैं। पितृत्व को साबित करने के लिए डी एन ए टेस्ट करवाना इतना आसान भी नहीं होता है कि हादसे का शिकार परिवार इसके लिए प्रयास कर सके। अब गैंग रेप तो रोज ही खबर में सुनने को मिल जाती है। परसों ही सिर्फ रामपुर शहर के अलग अलग जगहों पर दो युवतियां गैंग रेप का शिकार बनायीं गयीं . क्या पता वे उन से परिचित हो भी या न हों। फिर ऐसे हालात आने पर वे क्या करेंगी ? इस समाज और क़ानून की सहानुभूति पीडिता के साथ छद्म होती है क्योंकि न्याय की इतनी लम्बी प्रक्रिया होती है कि अपराधी उनको ऐन केन प्रकारेण डराने धमकाने से लेकर पैसे से खरीदने तक के सारे हथकंडे अपना लेता है और जब नहीं हो पाता तो वकील को खरीद कर अपने मामले को रफा दफा करने को सौप देता है।

मेरा विषय मात्र इतना है कि ऐसे मामले में पिता का निर्धारण कैसे हो? हो ही नहीं है क्योंकि वे रेपिस्ट पकड़ में तो आने से रहे और आये भी तो फिर डी एन ए टेस्ट की प्रक्रिया को दुहराना इतना आसन काम नहीं है। अब बलात्कार जैसे अपराध के लिए जो दंड प्रावधान किया जा रहा है , उसके आने पर तो कोई भी बलात्कारी पकड़ा ही नहीं जाएगा और अगर पकड़ गया तो वकील और पुलिस उसके चश्मदीद गवाह माँगते हैं तभी तो मामला बनता है नहीं तो मामला दर्ज कैसे हो सकता है? उस पीड़िता को पहले कुछ लोगों को बुला कर खड़ा कर लेना चाहिए की मेरा बलात्कार किया जाने वाला है।

ये कानूनी दांव पेच तो आम आदमी के समझ से बाहर रहे हैं और रहेंगे भी। सवाल सिर्फ इतना है कि समाज के बदलते स्वरूप और नारी के बदलते विचारों के चलते ऐसे बच्चों के लिए सिर्फ माँ के नाम का चाहिए।अब ऐसे क़ानून बनाने की जरूरत महसूस की जा रही है। अगर पता चल भी जाए तो कोई भी महिला ऐसे बलात्कारी को अपने बच्चे के साथ जोड़ने में गर्व नहीं बल्कि शर्म महसूस करेगी। अगर ऐसे हालत में वह अपने बच्चे को जन्म देने का निर्णय ले सकती है तो फिर वह उसको पालने और उसकी परवरिश करने की क्षमता भी विकसित कर लेगी .

समस्या तो यहाँ पर असहाय लड़कियों की आती है - जो गरीब परिवार से हैं या फिर बेसहारा है तो वे बच्चे को जन्म के बाद इधर उधर फ़ेंक देती हैं या फिर उनको मरने के लिए छोड़ देती हैं। क्योंकि परवरिश वह अपनी नहीं कर पाएंगी तो बच्चे को कैसे पालेंगी? ऐसी लड़कियों के लिए ऐसे आश्रम की सरकार द्वारा व्यवस्था की जानी चाहिए जहाँ पर ऐसी माँओं और उनके बच्चों को शरण मिल सके . कोई माँ अपने बच्चे को सिर्फ इसलिए त्यागने के लिए मजबूर न हो कि वह उसकी परवरिश में सक्षम नहीं है। इस दिशा में सोचना आवश्यक हो गया है कि ऐसी माँएं कहाँ जाएँ ? कई बार तो घर वालों का जीना मुहाल हो जाता है।

इस दिशा में और भी सुझाव आमंत्रित किये जाते हैं की ऐसे मामले में निर्णय क्या हो? बिना पिता के नाम के बच्चे को समाज में जीने और पढ़ने का अधिकार होना चाहिए या नहीं क्योंकि पिता का नाम कुछ भी हो सकता है लेकिन माँ वही रहेगी जो जन्म देती है। उसके होने पर कोई शक या शुबहा नहीं हो सकता है।

हमारा समाज भी अगर वह ऐसे अमर्यादित आचरण करने वालों को दण्डित करने में रूचि नहीं रखता है या फिर हिम्मत नहीं रखता है तो फिर इसकी शिकार युवतियों या फिर उसका परिणाम बच्चों के प्रति अपनी सकारात्मक सोच तो रख ही सकता है। वह जो इस कुकृत्य का शिकार बनायीं गयीं है, उन्हें एक स्वस्थ जीवन जीने अधिकार तो दे ही सकता है।

July 23, 2012

जन हित मे जारी


अगर आप एक विवाहित स्त्री हैं और आप का विवाह हिन्दू सनातनी रीति रिवाज से हुआ हैं , यानी विवाह तो हुआ , लेकिन उसका कोई क़ानूनी प्रमाण पत्र आप के पास नहीं हैं तो जान लीजिये की आप को कभी भी समस्या आ सकती हैं .
अब विवाह का रजिस्ट्रेशन करवाना जरुरी होता जा रहा हैं .
अगर आप शादी के बाद विदेश जाना चाहती हैं तो पासपोर्ट पर पति का नाम हो ना हो लेकिन अगर आप विवाहित हैं तो आप के पास उसका प्रमाण पात्र जरुरी चाहिये .
अगर आप को अपने नाबालिग बच्चे का पासपोर्ट बनवाना हैं तो भी आप के पास शादी का प्रमाण पात्र जरुरी हैं ,
इसके अलावा कभी बुरा समय आने पर अगर पति के ना रहने पर { ईश्वर ना करे } आप को कहीं ये प्रूव करने को कह दिया जाए की आप ही उनकी "लाफुल्ली weded  वाइफ " हैं जैसे बैंक , लाइफ इंश्युरेंस इत्यादि पर तो केवल और केवल ये एक प्रमाण पत्र दे कर आप बहुत सी कानूनी दांव पेच से बच जायेगी . बहुत मुश्किल काम होता हैं कानून अपने को पत्नी सिद्ध करना , कई गवाह और अफिदेवित की जरुरत होती हैं .

अगर आप अपनी बेटी का विवाह किसी अन आर आई से कर रही है तो आप को उस विवाह को तुरंत रजिस्टर करा देना चाहिये क्युकी आज कल भारतीये लड़कियों से अन आर आई लडके शादी तो कर लेते हैं , दान दहेज़ भी लेते हैं पर उनको अपने साथ विदेश नहीं ले जाते . अगर शादी रजिस्टर नहीं होगी तो आप की बेटी विदेश जा ही नहीं सकती

अभी इस रजिस्ट्रेशन को कम्पलसरी नहीं किया गया हैं पर ये कानून लागू बहुत जल्दी किया जाने वाला हैं .

समाज में हिन्दू विवाह को मान्यता हैं लेकिन क़ानूनी वैद्यता के लिये लीकित दस्तावेज चाहिये होता हैं

आर्य समाजी रीति से जो विवाह होते हैं , उनमे प्रमाण पत्र  दिया जाता हैं पर सनातनी रीति मे इस का प्रावधान नहीं है .

मैने दिनेश जी और अजय जी मेल देकर पूछा था की क्या उन्होने कोई पोस्ट इस पर दी हैं ? उन्होने इस पोस्ट मे और जानकारी देने की बात की हैं जो टिपण्णी मे आते ही अपडेट कर दूंगी







July 22, 2012

जिम्मेदारियां : पत्नी के घर की !



विवाह करके आज भी लडके और उसके घर वालों का यही होता है कि जिस लड़की से वे शादी करने जा रहे हैं . वह आकर इस घर की जिम्मेदारियां संभाले और उनमें हाथ बँटाये . ये एक कटु सत्य है फिर किसी ऐसी लड़की से शादी करना , जिसके भाई बहनों और माँ बाप की जिम्मेदारी उठानी हो कोई भी पसंद नहीं करता है। जिम्मेदारी बांटना तो बहुत दूर की बात है यहाँ तो ऐसी भी स्थिति आ जाती है कि अगर लड़की शादी से पहले नौकरी कर रही है तो उससे पहले कमाए हुए पैसे का हिसाब भी माँगा जाता है कि जो कमाया उस पैसे का क्या किया ? ये सिर्फ एक विचार नहीं है बल्कि एक सत्य है। इसका एक पहलू यह भी है कि वह बेटी जिसे पढ़ा लिखा कर उसके माँ बाप काबिल बनाते हैं और जब वह कमाती है तो उस पर उसके पति और ससुराल वालों का अधिकार होता है। अपने बेटे को पढ़ाने लिखाने पर जो पैसा खर्च वह करते हैं तो उसके बदले तो वह बेटे की कमाई के हकदार होते हैं फिर बेटी की कमाई के हक़दार उसके माँ बाप क्यों नहीं हो सकते हैं? फिर जिम्मेदारियों की बात कौन और कैसे कर सकता है?

आम तौर पर लडके वाले अपने लडके के पैदा होने से लेकर पढाई तक का खर्च बहू के घरवालों से वसूल करना चाहते हैं और ऐसे ही लोग होते हैं जो बहू की कमाई का हिसाब भी माँगते हैं। फिर दृष्टि से कमजोर लड़कियों का हाथ थम कर उनके घर के लोगों की जिम्मेदारी लेने वाले लोग कहाँ से मिलेंगे ? अभी हमारे समाज में ऐसे उदारवादी लोग नहीं मिलते हैं कि वह शादी करके जिम्मेदारी उठाने को सहज रूप से ले लें। अपने घर की जिम्मेदारी उठाने के लिए पत्नी पर पूरा पूरा दबाव रख सकते हैं। इस पुरुष प्रधान समाज में अभी सोच इतनी उन्नत नहीं हुई है कि पत्नी के घर की जिम्मेदारी वह उठा सके या फिर उसके परिवार वाले इस काम में उनका सहयोग करें . जानबूझ कर ऐसे परिवार में शादी करने का तो कोई सोच ही नहीं सकता है लेकिन अगर भविष्य में ऐसा दुर्भाग्यवश हो जाए और इन स्थितियों में दामाद ससुराल की जिम्मेदारियों में हाथ बांटता है तो घर वाले ही नहीं बल्कि और रिश्तेदार और समाज के तथाकथित ठेकेदार उसको जोरू का गुलाम , ससुराल का चेरा जैसे शब्दों से नवाजते रहते हैं . कोई कुछ करना चाहे तो ये समाज व्यंग्य करने में पीछे नहीं रहता है और फिर समाज बनता किससे है ? हम लोगों से न तो हमें अपनी ही सोच बदलनी चाहिए . यहाँ पर कितने ऐसे होते हैं कि जिनके खाने के दांत और दिखने के के और होते हैं। बाहर समाज सेवक /सेविका और घर में बहू के प्रति व्यवहार तानाशाह वाला मिलता है।

वैसे अपवाद इसके भी हैं , मेरे एक कजिन की ससुराल में भाभी के भाई नहीं थे , सिर्फ बहनें ही थी और जिसमें से एक बहन कुछ मानसिक रोग का शिकार भी थी। उसने शादी के वक़्त इस बात को जान लिया था कि इस परिवार की जिम्मेदारी भविष्य में मुझे उठानी है और उसने शादी की - घर वालों ने भी इस बारे में कुछ नहीं कहा। उसके सास ससुर का निधन हो चुका है लेकिन उस साली की शादी करने के बाद जब उसका तलाक हो गया तो अब रहती तो वह अपने ही घर में है लेकिन उसकी मानसिक स्थिति जब भी ख़राब होती है वह बराबर उसके प्रति सजग रहता है . उसकी साली के पास या तो पत्नी को छोड़ता है या फिर अपने बच्चों को ताकि कोई अनहोनी न कर बैठे और उसके समान्य होने पर भी पूरा पूरा ध्यान रखता है। कभी इस बारे में पत्नी या साली से ये नहीं कहा कि उसको इससे कोई भी परेशानी है। अभी पृथ्वी वीरों से खाली नहीं है लेकिन ऐसे कितने लोग हैं?


विवाह अगर भारतीये सभ्यता में "दो परिवारों का मिलन " माना जाता हैं तो दोनों परिवारों की जिम्मेदारी दंपत्ति पर क्यूँ नहीं होती ??? केवल लड़की अपना घर परिवार छोड़ कर दूसरे  परिवार की जिम्मेदारी उठाने के लिये क्यूँ बाध्य हैं ? आज जब परिवारों में महज एक बच्चे की बात होती हैं और अगर वो बेटी ही हो तो उसके माता पिता  की जिम्मेदारी उसके पति की क्यूँ नहीं हैं ??? 
अगर पत्नी के लिये सास ससुर की सेवा फर्ज हैं तो पति के लिये उनके सास ससुर की सेवा फर्ज क्यूँ नहीं हैं ???

समाज के रीति रिवाज के चक्कर में नारी के लिये चुनने के अधिकार का प्रश्न खो जाता हैं

काम का विभाजन केवल और केवल लिंग आधारित नहीं हो सकता हैं

स्त्री बच्चे को जनम देती हैं लेकिन ये जरुरी नहीं हैं की हर स्त्री देना चाहे

स्त्री का विवाह उसकी नियति नहीं हैं

जैसे पुरुष को अधिकार हैं अपने लिये कैरियर चुनने का स्त्री को भी संविधान और कानून देता हैं

सवाल हैं क्या स्त्री को ये समाज अधिकार देता हैं
कि  वो कानून और संविधान की दी हुई बराबरी के तहत अपने लिये चुनाव कर सके

कि  उसको काम करना हैं या नहीं , शादी करनी हैं या नहीं , बच्चे पैदा करने है या नहीं , घर में रहना हैं या बाहर जा कर नौकरी करनी हैं या दोनों काम करने हैं 

मै ऐसी बहुत से स्त्रियों को जानती हूँ जो अपने भाई बहनों को पढ़ाने के लिए नर्स , टाइपिस्ट और बहुत सी ऐसी नौकरियां करती हैं जहां यौन शोषण की संभावनाए असीमित हैं क्युकी जिन पुरुषो के नीचे वो काम करती हैं वो जानते हैं की ये मजबूर हैं नौकरी नहीं छोड़ सकती . इन स्त्रियों को क़ोई क्यूँ नहीं नौकरी करने से रोकता , इनकी नौकरी करने को एक सैक्क्यूँ रिफैस का नाम दिया जाता हैं . गलती उनके माँ बाप की हैं जो जब शादी के लायक ही नहीं थे उनकी शादी की गयी और फिर उन्होने बच्चो की लाइन लगा दी और उसका भुगतान उनकी बेटियाँ उठाती हैं
ये लडकियां नौकरी नहीं करना चाहती , विवाह करना चाहती हैं , लोग बजाये उनका शोषण करने के उनसे विवाह ही क्यूँ नहीं कर लेते .

क्या जरुरी हैं की जो लड़की नौकरी करना चाहती हैं उसको विवाह के लिये बाधित किया जाये . यहीं समस्या की जड़ हैं , हम लकीर पीटना चाहते हैं की शादी करना जरुरी हैं जबकि सोचना ये चाहिये की शादी उनकी हो जो करना चाहे नाकि इस लिये हो की लड़कियों को घर में रह कर गृहस्थी  संभालनी चाहिये

जिन लड़कियों को शादी की जरुरत हैं , जिनको ऐसे परिवार और पति चाहिये जो उन के मायके के सम्बन्धियों  को पढ़ा लिखा सके ऐसी लड़कियों को पति और शादी क्यूँ नसीब नहीं होती इस पर विचार दे .

क्यूँ लोग केवल उन लड़कियों से शादी करना चाहते हैं जो पढ़ी लिखी हैं , दहेज़ भी ला सकती हैं , वक्त जरुरत नौकरी भी कर सकती हैं और बच्चे भी संभाल  सकती हैं

हजारो गरीब मजदूरों की लडकिया हैं जिनकी शादी नहीं होती क्यूँ ?, क्यूँ नहीं वो पुरुष जिन्हे महज एक पत्नी चाहिये आगे आकर इनका हाथ पकड़ते हैं

जो करना नहीं चाहता उसकी जबरदस्ती करना और जो चाहता हैं नहीं करना

समाज के रीति रिवाज के चक्कर में नारी के लिये चुनने के अधिकार का प्रश्न कहा खो जाता हैं इस पर बहस क्यूँ नहीं होती

जिम्मेदारी देने से पहले क्या ये जानना जरुरी नहीं हैं की जिस पर ज़िम्मेदारी डाली जानी हैं उसकी मर्ज़ी क्या हैं . उसकी जरुरत क्या हैं .

July 21, 2012

बेटी नहीं बेटा है तू

मेरी  बेटी  नहीं बेटा है तू",  "मुझे मेरे माँ- पापा ने बेटे की तरह पाला है!"ऐसे ही शब्द मुझे आजकल रोज सुनने को मिलते हैं, और सोचने पर मजबूर हो  जाती हूँ कि 

क्या बेटियां बेटी बन कर नहीं रह सकती? क्यों उन्हें या तो कैदी बनाया जाये या बेटा बनाया जाये? मैं अक्सर पढ़ती हूं, कि हमारे यहाँ औरतो की  बहुत क़द्र होती थी!

बिना घूँघट के रहती थी,पूजा जाता था  उन्हें स्वयंवर रचाने तक का भी हक था!
विदुषियाँ होती थी, अपने आप में सम्पूर्ण..तभी तो ऐसी तेज युक्त संतान पैदा करती थी..और स्रष्टि व समाज सब साफ़ रहता था...मैं अपवाद की बात नहीं कर रही हूँ यहाँ..


फिर एक वक़्त आया,जब उन्हें घूँघट में कैदी बना दिया गया!नौकर की तरह रखा जाने लगा! सारे हक छीन लिए गए...न पढाना, न खुद का वर चुनने की आजादी, और न ही अपनी कोख में पली संतान के विषय में कोई भी फैसला लेने का हक..पुरुषों में सब कुछ अपने ही हाथ में ले लिया..ऐसे में पुरुषों ने कौन से परचम लहरा दिए? पूरी सामाजिक व्यवस्था ही गड़बड़ा गयी...

और अब तो प्रकृति को ही ललकार दिया, बेटी को बेटा बना दिया .और अजीब बात तो ये है, कि बहुत ख़ुशी होती है बेटियों को जब पापा कहते है, "बेटा है मेरा ये" मुझे तो ये शब्द बिलकुल पसंद नहीं है , बेटी हूँ, बेटी ही कहिये..मेरा अपना वजूद है, प्रकृति ने दोनों को अलग बनाया है! मैं बेटा नहीं बनाना चाहती! मैं खुश हूँ कि मैं आपकी बेटी हूँ, और बेटी बनकर ही नाम रोशन करुगी.


क्यों हमारा समाज बेटी को बेटी बनाकर नहीं रख सकता और बेटे को बेटा?.या यूँ कह लो कि क्यों पुरुष, पुरुषत्व नहीं दिखलाता, और नारी नारीत्व..? क्या वाकई में,बेटियों को बराबर खड़ा करने के लिए बेटे शब्द का सहारा लेना जरुरी है..? क्यों कहते हैं, कि आजकल तो लड़कियां लड़कों से आगे हैं? आगे जाकर करना क्या है? क्यों आगे जाने की होड लगी है दोनों में? दोनों एक ही गाडी के दो पहिये हैं,लड़की लड़की बनकर रहे

और लड़का लड़का ही रहे! तो फिर क्या उन्नति नहीं हो सकती?


जब तक बेटी में बेटी नहीं होगी,या एक पत्नी में पत्नी नहीं होगी?तो कैसे ये गाड़ी चल पाएगी? मुझे डर ये है कि कही येदोनों अपना अलग संसार ही ना बसा ले! उत्तरी छोर पुरुषों का, दक्षिणी महिलाओं का..या फिर इसका उल्टा भी हो सकता..उत्तरी महिलाओं का, दक्षिणी पुरुषों का..और वैसे भी विज्ञानं ने इतनी तरक्की तो कर ही ली है कि वंश को आगे बढ़ाने में कोई दिक्कत नहीं होगी..है न? आप हंसिये मत, दोनों की प्रतिस्पर्धा अगर ऐसी ही रही तो यही होने वाला है!


ये कहते हैं,कि लड़की लड़का हैं! ठीक है,  फिर क्यों उस लड़के को बस में सीट की जरुरत होती है? बाकी लडको की तरह खड़े नहीं हो सकती ?तब कैसे आप झट से कह दोगे, महिला है बेटा, सीट दे दे!अधिकार की बात हो तो हम बेटियां हैं,और वैसे हम बेटों से आगे हैं! यहाँ मैं ये बिलकुल नहीं कह रही कि नारी बराबर नहीं है..लेकिन ये आगे, पीछे, बराबर की लड़ाई मेरी समझ से परे है...
और ये महिला मोर्चा वालों से तो मैं यही कहूँगी, ये तो वही बात हो गई कि माँ लाठी लेकर कहे कि मैं माँ हूँ, मेरी पूजा कर...बस में सीट दिलाने की बजाय नारी को खड़ा होना सिखाइये,, उससे कहिये कि समाज में अपना स्थान न छोड़े..पूजा करवानी है तो देवी बने,,किन्तु सशक्त ताकि पीछे कई बरसो से जो शोषण हो रहा है, उसके बारे में पुरुष सोचे भी न..और कम से कम अपनी संतान को ( बेटा या बेटी) उसके प्राकृतिक गुणों से परिचित तो करवा ही दें,,,सिखाना तो आपकी मर्जी है..
दोनों का एक दूसरे के मन में सम्मान होना जरुरी है...दोनों अपना अपना काम करें,,,और ये होड आगे निकलने की, उसे छोड दे..इससे कुछ हासिल नहीं होगा...बस स्थिति और बिगड जायेगी...

आपके विचार सदर आमंत्रित हैं...:))


copyright गुंज झाझारिया

July 20, 2012

अगर आप एक अजन्मी बच्ची के साथ ऐसा कर सकते हैं तो आप ना माँ हैं , ना बाप और ना डॉक्टर


 मनु "बे-तख़ल्लुस" नारी ब्लॉग के पाठक हैं और उन्होने ये मुझे इस ब्लॉग पर पोस्ट करने के लिये  दिया हैं 
उनका फेसबुक लिंक हैं 

अगर आप एक अजन्मी बच्ची के साथ ऐसा कर सकते हैं तो आप ना माँ हैं , ना बाप और ना डॉक्टर 

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लिंक देखिये

  याद रखें कि जब भी ऐसे लोग बच निकलते हैं उनका अपने हमेशा बच निकलने पर यकीन बढ़ जाता है
लिंक देखिये 
मुक्ति के गुगुल प्लस से वहाँ पहुची थी 

एक दूसरा लिंक भी हैं
देखिये 


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July 19, 2012

चर्चामंच पर कुछ निर्भीकता दिखानी चाहिए.

 हमारे यहाँ जैसे ही किसी बलात्कार की रिपोर्ट मीडिया देता हैं सब जगह पहला सवाल होता हैं
समय क्या था
लड़की / महिला ने पहना क्या था
शराब पी रखी थी क्या
अकेली थी
हर किसी की अदालत मे मुजरिम वो लड़की / महिला हो जाती हैं तो खुद ही एक जुर्म का शिकार बन चुकी हैं
उसके "रेप हो जाने की वजह से " बाकी सब लड़कियों पर बंदिशों का दौर शुरू हो जाता हैं
लोग खाप पंचायत के कानून को गलत बता देते हैं लेकिन हमारे देश के हर घर मे आज भी एक अनलिखा कानून हैं लड़कियों के लिये जो कहता हैं 
समय से घर आ जाओ , अंधेरे में बाहर मत जाओ , रात को घर से किसी पार्टी में मत जाओ  , ये पहनो और ये मत पहनो , उन लड़कियों से दोस्ती मत करो जो "फास्ट " हैं
और ये सब इस लिये क्युकी हम सब कहीं ना कहीं आतंकित हैं अपनी बेटियों की सुरक्षा के लिये 
जिन की बेटियाँ नौकरी करती हैं और देर से घर आती हैं उनकी सांसे रुकी ही रहती हैं जब तक बेटी घर ना आजाये
क्यूँ हो रहा हैं ये सब क्युकी हम कानून और संविधान में दिये हुए अधिकार , समानता के अधिकार को समझना ही नहीं चाहते . आज भी स्त्री किसी की संपत्ति ही बनी हुई हैं और उसको लूट कर लोग आनंदित होते हैं .
नारी को बराबरी का दर्जा देना यानी अपनी सत्ता का हिस्सा बाँट करना इसलिये बलात्कार सबसे आसान औजार हैं किसी भी नारी को "उसकी सही जगह दिखाने का " .

वही दूसरे देश अपने कानून का पूरा उपयोग कर रहे हैं
एक खबर के अनुसार ऑस्ट्रेलिया में एक टैक्सी ड्राइवर ने जो भारतीये था एक महिला का बलात्कार किया . महिला कहीं से शराब पीकर आयी थी और उसकी टैक्सी में घर गयी थी . पूरी खबर इस लिंक पर हैं 
बलात्कार के बाद उस ड्राइवर को पुलिस ने पकड़ा पर छोड़ना पडा क्युकी सबूत पूरे नहीं थे .
ड्राइवर ने उसी दिन जा कर इंडिया का वन वे टिकेट खरीदा और इंडिया वापस चल दिया .  तारीख थी 6 फरवरी 2010 .
वहाँ की पुलिस ने अपनी कार्यवाही नहीं रोकी और सबूत जोड़े और फिर 5 जनवरी 2012 को भारतीये पुलिस की साहयता से इस ड्राइवर को पकड़ा गया और ये पहले हिन्दुस्तानी बना जिसको देश से निकाल कर विक्टोरिया { ऑस्ट्रेलिया } भेज दिया गया . Mutta was taken into custody by Indian authorities on January 5 this year before being extradited. It was the first time an Indian national had been extradited to Victoria.

हेना फोस्टर केस भी ऐसा ही था 

वहाँ महिला का अकेले रात को घूमना, भड़कीले कपड़े पहनना  , शराब  पीना , टेक्सी मे अकेल घर आना इत्यादि जुर्म नहीं माना गया वहा  जुर्म था बलात्कार और दोषी था बलात्कार करने वाला और उसको सजा दिलवाने के लिये वहाँ की पुलिस उसको यहाँ से वहाँ ले ही गयी 

और यहाँ गुहाटी में हो या कहीं और हफ्तों मुजरिम का पता ही नहीं चलता . पकड़ भी जाए तो सजा इतनी मामूली हैं की बेल मिली और ये जा और वो जा .

आज अखबार में हैं की अब रेप को क्रिमिनल असौल्ट  का नाम दिया जाएगा और सजा अब उम्र कैद ही होंगी

 ये दोनों जेंडर पर लागू होगा यानी वो जो भ्रान्ति थी की पुरुष का बलात्कार नहीं होता वो ख़तम होगी , पुरुष भी चाहे तो शिकायत दर्ज करवा सकते हैं ,  ध्यान दे अभी तक ज्यादा मामले वो सामने आये हैं जहां पुरुष दूसरे  पुरुष के साथ जबरदस्ती यौन सम्बन्ध बनाता हैं , जो अब कानून अपराध माना जायेगा , इस लिये इसको ये ना समझा जाए की महिला ने बलात्कार किया .

इस के अलावा तेज़ाब फेकने की सजा भी उम्र कैद होगी

बदलाव शुरू हो रहा है पर बदलाव अपनी मानसिकता में भी लाना होगा . लडकियां क्यूँ असुरक्षित रहती हैं सुनसान जगह ?? इस पर विचार आमंत्रित हैं .

चलते चलते
मुझ पर आरोप रहता हैं की मै कमेन्ट डिलीट कर देती हूँ . कहा जाता हैं चर्चामंच पर कुछ निर्भीकता दिखानी चाहिए.... वहाँ द्वार हमेशा खुले रखने चाहिए... चाहे कोई अपनी गंदगी ही उड़ेल जाये.. उससे उसकी मानसिकता का ही तो पता चलेगा.

मेरा उत्तर हैं
मै यहाँ ब्लॉग पर अपनी जिन्दगी के हिसाब से चलती हूँ 
 एक नियम हैं मेरा
अगर क़ोई हमारे घर आकर बेहूदी , गन्दी और ओछी बाते करता हैं , किसी की बुराई करता हैं , टेंशन बढाता हैं , तो हम उसको कहते हैं अपने घर जाओ हमारा घर मंदिर हैं
उसी तरह मेरा ब्लॉग मेरी मेहनत हैं , मेरी पूजा हैं मेरा मंदिर हैं यहाँ क़ोई वो कमेन्ट नहीं रहेगा जो गन्दी मानसिकता का होता हैं मेरी अपनी बेटियाँ और बहुये भी इसको पढती हैं , मेरी बहनों के परिवार के सदस्य पढते हैं , उनके ससुर भी इस ब्लॉग के फोल्ल्वर हैं . हिंदी ब्लॉग जगत में जिस प्रकार के कमेन्ट आते हैं या जिस प्रकार की बाते निरंतर महिला ब्लोग्गर पर कहीं जाती हैं , जिस प्रकार उनकी तस्वीरो पर लेबल लगा कर डाला जाता हैं , जैसी कविताएं रची जाती हैं ,
कभी सोच कर देखिएगा किसी की बेटी जब अपनी माँ के विषय में ये पढ़ेगी जो यहाँ कहा जाता हैं तो क्या सोचेगी
हो सकता हैं कभी यही सोच ले कहीं मेरी माँ ऐसी ही तो नहीं थी
 
नारी ब्लॉग को नारियों की सोच को आगे लेजाने के लिये बनाया हैं इस में हम अपनी सोच से चलना चाहते हैं , हम चाहते हैं की कोई अगर इस को कभी पढ़े तो हमारी सोच उसको दिखे , हम जो  सही समझते हैं अपने लिये वो दिखे . इस माध्यम के जरिये हम देश और प्रांत की सीमा से दूर भी अपनी बात ले जा सकते हैं 

और वैसे बहुत से ब्लोग्गर कमेन्ट रोकते हैं , मिटाते हैं लेकिन यहाँ हो जाए तो आपत्ति दर्ज करवाते हैं 
मैने तो कमेन्ट रखना या मिटाना ब्लॉग मालिक का अधिकार मानती हूँ और जो लोग किसी महिला को समझा कर पोस्ट डिलीट करवाते हैं विवाद ख़तम करवाने के लिये वो मेरे कमेन्ट हटाने को आदत कहते हैं :) इसी दोहरी मानसिकता से लडने का मंच है नारी ब्लॉग 
15 अगस्त को संझा ब्लॉग से इसको एकल ब्लॉग बनाया था क्युकी तब बहुत से सदस्य कहते थे हमे पता नहीं था यहाँ क्या क्या लिखा जाएगा हम तो गलती से सदस्य बन गये 
अब 15 अगस्त से फिर इसको संझा करने का मन बनाया हैं कारण हैं जो कोई भी मेल दे कर पूछ सकता हैं 
पिछली बार मैने लोगो को जोड़ा था इस बार उनके नाम जोड़ना चाहती हूँ जो खुद इच्छुक हो और इस ब्लॉग के नियमो को मानते हुए ही अपनी पोस्ट दे . पोस्ट देना कोई जरुरी नहीं हैं आप इस मंच के सदस्य ही बने रह सकते हैं यानी आप को लगता हैं की आप की बात यहाँ सही तरह से होती हैं 
सभी पुराने सदस्यों को आने का न्योता हैं क्युकी ये ब्लॉग आप सबकी सोच से ही बना हैं 



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July 17, 2012

नारी ब्लॉग परिचर्चा

 नारी ब्लॉग परिचर्चा - रश्मि प्रभा
लिंक देखिये  

नारी ब्लॉग या नारी को जागरूक करती छावनी ( पहला भाग )


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नारी ब्लॉग की 1000 वी पोस्ट अवाहन हैं महिला को समाज से स्वीकृत होने की चाह में जीना बंद करे


रात के 9.30 बजे एक ऐसी सड़क पर जहां आवाजाही होती हैं , आपस में एक दुसरे से अनजान 11-12 लडके / पुरुष जो एक दूसरे  से नितांत अनजान हैं आपस में "रिश्ता " बना लेते हैं

जुड़ाव का कारण हैं वो अकेली  लड़की जो सड़क पर एक पार्टी से हो कर अकेली घर जा रही हैं

इन सब लडको के घर में बहिन हो ना हो पर माँ तो जरुर होगी और उसने इनको संस्कार भी दिये ही होंगे लेकिन उन सब संस्कारों को ये "नया रिश्ता " ख़तम करता हैं और

फिर ये सारे नये रिश्तेदार उस लड़की को मोलेस्ट करने में आगे बढ़ बढ़ कर हिस्सा लेते हैं .

क्युकी इन पर बाध्यता नहीं हैं कोई भी

की ये समाज के बनाये नियम माने ,
ये अपने  माता के संस्कारों को माने
या ये समाज से अपने काम के लिये स्वीकृति ले

ये हर स्वीकृति से ऊपर हैं . ये समाज को खुश करके जीना नहीं जानते हैं क्युकी ये समाज से ऊपर हैं ये नियम बनाते हैं समाज के बाकी दोयम दर्जे के लोगो के लिये

दोयम दर्जे के नागरिक यानी नारी , बेटी , स्त्री

वही जब किसी जगह 11-12 महिला एकत्र होती हैं तो मुद्दा होता हैं कैसे समाज को खुश रखते हुए जीने की कला सीखी जाए , कैसे अपनी बेटी को समझाया जाये "सहो क्युकी ये तो होता ही हैं "
11 -12 अनजान स्त्रियाँ एक जगह हो कर भी कभी रिश्ते मे नहीं बांध सकती क्युकी उन सब के पर्सनल अजेंडे में सबसे पहले समाज और पुरुष की नज़र में "अच्छे बन कर रहना सबसे जरुरी होता हैं " .
और अपनी अच्छे होने के लिये वो 11-12 आपस में ही एक दूसरे को अपने से कमतर साबित करने के लिये लग जाती हैं

जिस दिन ये 11 - 12 अपने पर्सनल अच्छे दिखने के अजेंडे को भूल कर एक दुसरे को अच्छा साबित करेगी और आने वाले दिनों में अपनी बेटियों को मुक्ति की सांस लेना शुरू करेगी

उस दिन से ये झुण्ड जो किसी सड़क पर जानवर की तरह व्यवहार करके उनकी बेटियों को नंगा करते हैं खुद ख़तम हो जायेगे

सालो क्या सदियों नारियों ने आज़ादी का मतलब बस यही माना हैं की हम ज़िंदा हैं यही बहुत हैं , सालो से वो समाज के आगे अच्छे बने रहने की चाहत में खुद अपने जैसी दूसरी महिला को बुरा साबित करती रही हैं

उसका खामयाजा हमारी बेटी भुगत रही हैं . अब भी जग जाए , एक दूसरे से अनजान होते हुए भी एक रिश्ते मे बंध जाये , रिश्ता बस नारी होने का और अपनी बेटियों के लिये नयी दुनिया बनाये वर्ना एक दिन सुनियेगा

" सारी उम्र तो मर मर के जी लिये , एक पल तो अब हमे जीने दो जीने दो "


नारी ब्लॉग की 1000 वी पोस्ट अवाहन हैं महिला को समाज से स्वीकृत होने की चाह में जीना बंद करे


 क्युकी अब ये ब्लॉग आप को हिंदी ब्लॉग जगत पर नहीं दिखेगा , मैने हटवा दिया हैं आग्रह करके इसलिये आप इसको फीड से पढना सीख ले या अपना ईमेल आ ई डी दे दे पोस्ट आप को ईमेल कर दी जायेगी


बिना हेअडिंग के पोस्ट क्युकी हेड शर्म से झुका हैं

संस्कार माँ हर लडके को देती हैं पर उसको याद कितने रखते हैं

 

हमारिवानी से भी ये ब्लॉग हटवाने की प्रक्रिया करनी हैं अभी  





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संस्कार माँ हर लडके को देती हैं पर उसको याद कितने रखते हैं

 एक आदमी यानी जिसकी पोस्ट का जिक्र पिछली पोस्ट में था   एक साथ की ब्लोग्गर को अपने मित्र के साथ चैट पर कुतिया कहता हैं


लोग भूल जाते हैं और फिर एक दिन वो अपनी पत्नी के किये हुए काम की तारीफ़ करता हैं और कहता हैं उसका लड़का कभी ऐसा नहीं करता

कमाल की याद्शत हैं इस ब्लॉग जगत की जो नारी के खिलाफ किया हुआ हर अपराध भूल ही जाते हैं

July 16, 2012

एक अपडेट पिछली पोस्ट पर

एक अपडेट  पिछली पोस्ट पर
सच आईने की तरह साफ़ होता हैं लेकिन लोग अपने आईने से कहते हैं मुझे बस सुंदर कहो 


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July 15, 2012

बिना हेअडिंग के पोस्ट क्युकी हेड शर्म से झुका हैं

पिछले कई दशको से संस्कृति को संभालने का ठेका नारी के सिर पर रहा हैं और गलती कि शुरुवात यही से हुई हैं । क्युकी एक बे पढ़ी लिखी नारी को बच्चो को यानी बेटे और बेटी को बड़ा करने का काम दिया गया उसने वो काम सही नहीं किया । उसी कि वजह से बेटे उदंड और बेटियाँ फैशन परस्त होगयी । इसका निवारण बहुत आसान हैं । ये काम नारी से वापस लेलिया जाए क्युकी वो इस को करने मे अक्षम रही हैं और उसको पढ़ने लिखने और नौकरी करके अपने मानसिक स्तर को सुधारने का काम दिया जाए । बच्चो को संस्कार देने का काम उनके पिता को दिया जाए ताकि भारतीये संस्कृति और सभ्यता सही दिशा मे चल सके । नौजवान लडको को इस दिशा मे सोचना चाहिये और अपनी पत्नियो से ये काम तुरंत वापस ले लेना चाहिये !!

काफी पहले एक ब्लॉग पर ये कमेन्ट दिया था एक ब्लॉग पर , आज सोचा इस को नारी ब्लॉग पर पोस्ट में दे दूँ बिना किसी लिंक के . 
आप कहेगे क्यूँ ??
दो कारण 
पहला अख़बार में पढ़ा की गुहाटी में जो घटना हुई एक 11 कक्षा की छात्रा के साथ वो पुलिस की डायरी में "महज छेड़  छाड़ का मामला " यानी ईव टीसिंग  के तहत दर्ज की गयी हैं . 
उसको बलात्कार की कोशिश यानी attempt to rape भी नहीं माना गया हैं . 
eve teasing एक बहुत ही मामूली बात मानी जाती हमारे सभ्य समाज में और इसके खिलाफ अगर लडकियां अपने घरो में भी शिकायत करे तो उन्हे समझाया जाता हैं की ये सब चलता हैं इस को इग्नोर कर दो . और कानून में शायद इसकी सजा ज्यादा से ज्यादा 2 साल होगी . 

अब गुहाटी में जो हुआ उस लड़की के साथ उसको eve teasing कह कर , दर्ज कर के पुलिस में पहले ही केस को कमजोर कर दिया हैं . सजा तो अब उनको क्या ही मिलेगी . किसी के कपड़े फाड़ना attmept to rape नहीं हैं . 

कल एक ब्लॉग पर पढ़ा की लडको को क्या क्या सिखाना चाहिये उनकी माँ को , ब्लॉग इंग्लिश में हैं लिंक हैं http://thelocalteaparty.com/post/27192073244

अब  आते हैं दूसरे  कारण पर इस कमेन्ट को पोस्ट करने के 
हिंदी में लिखे एक ब्लॉग पर एक पोस्ट पढी और उस पर आये वाह वाह के कमेन्ट भी पढ़े 
पोस्ट का सारांश था की कैसे  लेखक की पत्नी और उनकी पड़ोसिने और दोस्ते , अपने आस पास किसी भी लडके को गलत हरकत करते , ईव टीसिंग करते पकड़ लेती हैं तो उसकी डाट डपट करती हैं. अब क्युकी वो दुसरे लडको की डांट डपट करती हैं और उनका लड़का ये सब देखता हैं तो भविष्य में वो तो ये सब करने से रहा . 

उनकी पोस्ट पढ़ कर लगा की कितनी आसानी से हम बाहर वालो को डांट कर सजा देकर सोचते हैं की हमने बड़ा काम कर लिया और अपने बच्चो के लिये एक मानक स्थापित कर दिया . लेकिन जब बात अपने पर आती हैं तो हम संस्कार की दुहाई देते हैं की नहीं मेरा बेटा नहीं कर सकता क्युकी हमने तो खुद विगत में ना जाने कितने लडको को सजा दी हैं . 
ये सब महिला , ख़ास कर उनकी पत्नी काश इस पढ़े लिखे ब्लॉग जगत में आती और देखती की उनके पति और बेटे यहाँ जब दूसरी महिला पर आलेख लिखते हैं , उनके बारे में बात करते हैं तो किस लेवल तक उतर जाते हैं . 

अभी कुछ दिन पहले ही मुझे मेरे एक ब्लॉग मित्र ने एक बहस के दौरान कहा आप पुराने लिंक क्यूँ लगाती हैं जो बीत गया बिसार दे . 

अब जो बीत गया हैं उसी ने तो हम को आज इस मोड़ पर ला कर खडा कर दिया है . 
भारतीये संस्कृति धरातल में जा रही हैं और उसके भविष्य को लेकर असीम चिंता दिखती हैं लेकिन आज जो वर्तमान हैं उसके अतीत मे कितने काले पन्ने है ये बात ना की जाए . 
महिला का काम संस्कार देना हैं वो देती रहे चाहे उसके दिये संस्कारो को कोई माने या ना माने . इस नीति पर चल कर ही हम आज समाज की इस स्थिति पर पहुचे हैं जहां एक 17 साल की लड़की अकेली दिख जाए तो संस्कारों के धनी उस के कपड़े फाड़ दे . अब संस्कार तो उन सब को उनकी माँ ने दिये हैं क्युकी ये माँ का ही काम था संस्कार देना इस लिये 

पिछले कई दशको से संस्कृति को संभालने का ठेका नारी के सिर पर रहा हैं और गलती कि शुरुवात यही से हुई हैं । क्युकी एक बे पढ़ी लिखी नारी को बच्चो को यानी बेटे और बेटी को बड़ा करने का काम दिया गया उसने वो काम सही नहीं किया । उसी कि वजह से बेटे उदंड और बेटियाँ फैशन परस्त होगयी । इसका निवारण बहुत आसान हैं । ये काम नारी से वापस लेलिया जाए क्युकी वो इस को करने मे अक्षम रही हैं और उसको पढ़ने लिखने और नौकरी करके अपने मानसिक स्तर को सुधारने का काम दिया जाए । बच्चो को संस्कार देने का काम उनके पिता को दिया जाए ताकि भारतीये संस्कृति और सभ्यता सही दिशा मे चल सके । नौजवान लडको को इस दिशा मे सोचना चाहिये और अपनी पत्नियो से ये काम तुरंत वापस ले लेना चाहिये !!

बिना हेअडिंग के पोस्ट क्युकी  हेड शर्म से झुका हैं रोज हो रहे बलात्कार और यौन शोषण खबरों से
अपडेट

जो बात इस पोस्ट के मूल मे हैं उस पर आपत्ति दर्ज करके खुद वही बात कहना यही हैं दुहरी सोच , दोहरा व्यक्तित्व और   अटेन्शन सीकर होना .
अगर मै पहचान कर जो जैसे  हैं उन पर पोस्ट लिखूं तो गलत और आप छाती ठोंक कर एलान कर दे तो सही
सच आईने की तरह साफ़ होता हैं पर लोग आइने से बस यही कह लाना चाहते हैं वो कितने सुन्दर हैं

मुझे ये कमेन्ट पढ़ कर जितनी ख़ुशी हुई कह नहीं सकती :) ऐसी हज़ार मुस्काने भी कम हैं 



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July 14, 2012

मिलगया वो समाधान जिसको लागू करने से रेप , मोलेस्टेशन इत्यादि रोके जा सकते हैं

यूरेका , यूरेका ,
मिलगया वो समाधान जिसको लागू करने से
रेप , मोलेस्टेशन इत्यादि रोके जा सकते हैं

July 13, 2012

अपनी बेटी , अपना अंश या अपनी इज्ज़त दूसरे की बेटी महज शरीर एक विपरीत लिंग .


 कल से चर्चा का विषय बना हुआ हैं एक विडिओ जिसमे एक लड़की को सारे आम  सड़क पर मोलेस्ट किया जा रहा हैं और मज़ा लिया जा रहा हैं
लिंक ये देखिये  
चर्चा यहाँ  भी देखिये  

कितनी आसानी से एक नहीं कई सारे मेढक राज कुमारी की गोद में कूद कर राजकुमार बनाना के लिये तैयार हो गए कितनी आसानी से लोग इस कहानी को महज कहानी मान कर मेढ़को को बचाने की पैरवी करते हैं रचना जी नें मेंढक की सहज कूद को अनावश्यक ही एक दुखद किस्से से जोड दिया, यदि मार भुन कर खाना मात्र प्रतीकात्मक है तो मेंढक की कूद में तो ऐसा कोई प्रतीक तक नहीं, चर्चा को इमोशनल चुपी देने के उद्देश्य से नाहक और असंगत अरूणा शानबाग का उल्लेख किया गया।
{हंसराज जी लिंक दिया हैं आप पर कोई व्यक्तिगत आक्षेप  नहीं किया हैं ये कमेन्ट किसी भी बहस में कोई भी कभी भी दे सकता हैं और पहले भी दिया हैं }

ख़ैर इस विडियो से नेट पर उपस्थित समुदाय को अपनी बेटी के लिये एक डर का एहसास हुआ .
अपनी बेटी अपनी दूसरे की लड़की या औरत .
अपनी बेटी , अपना अंश या अपनी इज्ज़त

दूसरे की बेटी महज शरीर एक विपरीत लिंग . 


इस पोस्ट का मसकद हैं वो विज्ञापन जो आज कल टी वी पर आ रहा हैं
विज्ञापन हैं aircel कम्पनी का जहां वो मोबाइल पर विडियो बनाना कितना सस्ता और आसन हैं बता रही हैं . 
एक विज्ञापन में एक लडके को सामान लाते दिखाया जा रहा है और उसका मित्र विडियो बना रहा हैं पर किस बात का 
उसके पेंट उतारने का . फिर ये विडियो आपस में बांटा जायेगा . 

इस प्रकार के वाहियात विज्ञापन को हटवाना जरुरी हैं क्युकी ये ही सब प्रेरणा देते हैं हमारे बच्चो को की वो इस प्रकार के विडिओ बनाये और अपलोड और शेयर करे

ये सब हास्य नहीं हैं

नारी ब्लॉग पर मैने ये लिंक पहले भी दिया हैं फिर दे रही हूँ 
इस लिंक पर जा कर अपनी  आपत्ति दर्ज करने मे आप को महज कुछ मिनट ही लगेगे . 

 advertising Standards Council of India

जिस कम्पनी के खिलाफ आपत्ति दर्ज करनी हैं वो हैं http://www.aircel.com/AircelWar/

आप से आग्रह हैं की अपनी आपत्ति दर्ज करवा दे 


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July 12, 2012

तकनीक का खेल हैं सब , सीख ले और सुरक्षित रहे

 कुछ लोग साँझा ब्लॉग से निमंत्रण की मेल पाकर जुड़ जाते हैं पर जब अपने को अलग करने का सोचते हैं तो उनको समझ नहीं आता क्या करे

July 11, 2012

कुछ बहुत आसान तकनीकी जानकारियाँ दे रही हूँ

ये सब जानकारी नेट पर उपलब्ध हैं . आप को भी ये सब खुद ही मिल सकता हैं . इसके लिये किसी तकनीक के जानकार की मद्दत की इतनी जरुरत नहीं होती हैं .
सबसे पहले एक बात बता दूँ अगर कभी आप का ब्लॉग बंद भी हो जाए तो बजाये किसी को अपना ईमेल आ ई डी देने के

इस लिंक पर जाए और वहाँ अपनी बात कहें . https://groups.google.com/group/blogger-help-howdoi/topics?hl=pt%06d415deff73e1d7b
आप को यहाँ सदस्यता लेनी होगी 
आप जिस को भी आ ई डी देते हैं / देती हैं वो भी यही से काम करता हैं . हिंदी ब्लॉग जगत में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं हैं जो गूगल से किसी भी प्रकार से सम्बंधित हो , इस लिये इस भ्रम में ना रहे की किसी ने आप का काम गूगल से करवा दिया या कोई ये कहे गूगल से पूछा तो भी उसका मतलब यही हैं

कभी कभी ब्लागस्पाट पर ही समस्या होती हैं जिसकी जानकारी आप को यहाँ मिल सकती हैं
http://knownissues.blogspot.in/

वहाँ से आप फिर यहाँ जा सकते है http://groups.google.com/group/blogger-help-troubleshoot/topics

सबसे जरुरी लिंक
http://support.google.com/webmasters/bin/answer.py?hl=en&answer=164734

यहाँ स्टेप बाई स्टेप जा कर आप गूगल सर्च से

अपना पुराना पेज , जो आप मिटा चुके हैं हटवा सकते हैं
http://support.google.com/webmasters/bin/answer.py?hl=en&answer=1663416

 या किसी और के ब्लॉग का भी पुराना पेज हटवा सकते है
 http://support.google.com/webmasters/bin/answer.py?hl=en&answer=1663688

आप कोई भी स्पाम ब्लॉग की रिपोर्ट यहाँ दे सकते हैं
http://support.google.com/blogger/bin/request.py?&contact_type=spam

 अगर आप नहीं चाहते हैं की जो आप लिखते हैं वो सर्च मे आये तो आप यहाँ जा सकते हैं
 http://support.google.com/webmasters/bin/answer.py?hl=en&answer=93710&ctx=cb&src=cb&cbid=gxsx8nrgv3mc&cbrank=1


अपनी इमेज को सर्च से बचाने के लिये
http://support.google.com/webmasters/bin/answer.py?hl=en&answer=35308


ये सब करना बहुत आसन  हैं , सब बहुत आसन इंग्लिश मे हैं

वैसे गूगल ने पुरी वेब साईट को ट्रांसलेट करने की सुविधा भी दी हैं

http://translate.google.com/

जब आप नेट पर हैं तो महज एक दिन का एक घंटा लगा कर आप ये सब सीख सकते हैं
जरुरी हैं

और सबसे जरुरी हैं अपना फ़ोन नंबर ईमेल आ ई डी की सेटिंग में गूगल पर रजिस्टर करवा दे ताकि अगर वो hack  हो { यानी कोइ बार बार उसको खोलना चाहे और गूगल उसको लोक्क  कर दे } तो आप के मोबाइल पर आप पास वर्ड मंगवा सके

इसके लिये अपने जी मेल अकाउंट में जा कर पास वर्ड सेटिंग पर जाए और ऑप्शन मे देखे


चलिये अब चलती हूँ , भ्रम में ना रहे की मै  तकनीक की जानकार हूँ , आप बस गूगल सर्च में शब्द डालते जाये जानकारी खुद बा खुद आती जाती हैं









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July 10, 2012

चक्रव्यूह कितना सशक्त हैं

 नीचे दी हुई पोस्ट मैने 26 फरवरी 2011 को लिखी थी .

July 09, 2012

नारी ब्लॉग की पिछली पोस्ट जन हित में जारी से आगे , important information


नारी ब्लॉग की पिछली पोस्ट जन हित में जारी से आगे

किसी भी पोस्ट में लेबल लगाने का ऑप्शन होता हैं . ये शायद इस लिया किया गया हैं ताकि जब कोई सर्च इंजन पर कुछ खोजे तो वो आप की पोस्ट तक पहुच सके

हिंदी ब्लॉग में ये देखा जाता हैं की लोग पहला लेबल अपने नाम का लगाते हैं ताकि पाठक अगर उनका नाम खोजे तो उनकी पोस्ट तक आये .

दूसरा लेबल पोस्ट की विषय वस्तु से जुडा  होता हैं .

अब अगर इस पोस्ट पर आप ने किसी का भी चित्र डाला हैं तो जब भी image search मे कोई जा कर आप का दिया हुआ लेबल डालेगा , आप की पोस्ट में जोडी हुई ईमेज भी उसी लेबल के साथ दिखेगी .

जब आप अपनी पोस्ट में किसी महिला या पुरुष bloggar का चित्र लगाते हैं और नीचे लेबल में नीच , कमीना , कमीनी  , बाँझ , नपुंसक , सेक्स , सम्भोग , काम , रति , अनंग , नग्न , इत्यादि लिख देते हैं तो जब भी गूगल सर्च में आप जायेगे और इन शब्दों को सर्च करेगे या image search करेगे तो आप को उस ब्लोग्गर का चित्र भी उस सर्च में दिखेगा .

लोगो ने पिछली पोस्ट को पढ़ कर कई पोस्ट लगा दी हैं की धर्म की बात क्यूँ ?? चित्र के सत्यापन तक की बात कहींगयी हैं . मेरा चित्र अपने गूगल प्लस में डाल कर शयेर  किया जा रहा हैं क्युकी आवाज क्यूँ उठाई मैने  ??

इसलिये जो लोग ये सोच रहे हैं की दूसरी महिला ने आपत्ति क्यूँ नहीं की वो समझ सकते हैं क्यूँ नहीं की


अब आते हैं एक शब्द हैं सम्भोग
ज़रा आप सब इस शब्द को ईमेज सर्च में डाले ,

और देखे की क्या क्या आप को दिखता हैं { adult content will be there so please take care before you do this } किस किस तरह के चित्र आप को दिखते हैं और उनके बीच में हमारे अपने "ब्लॉग परिवार " की एक महिला का चित्र भी आप को दिखेगा .

क्यूँ
क्युकी ब्लॉग की खबरे नामक वाहियात ब्लॉग पर उनका चित्र एक पोस्ट में डाला गया और हेअडिंग और लेबल में सम्भोग शब्द दिया गया .

अब दो दिन दे आपत्ति करने पर हेअडिंग बदल दी गयी लेकिन चित्र नहीं हटाया गया .
कुछ दिन बाद जब मसला ठंडा हो जाएगा . लेबल में फिर सम्भोग , हेअडिंग में फिर सम्भोग शब्द जोड़ दिया जाएगा .

जरुरी हैं आप लोग जागरूक हो कर उस ब्लॉग पर से इस चित्र को हटवाने की प्रक्रिया में हम सब का साथ दे जो इस मुहीम में अब लग गए हैं .

अगर आप अपना विरोध दर्ज करवाना चाहते हैं तो आप से निवेदन हैं इस पोस्ट पर जाकर अपना विरोध दर्ज करवा दे क्युकी शायद ये ना होते तो इस  विषय की गंभीरता को कम से कम मै तो नहीं समझती 



आज एक महिला ब्लोग्गर का चित्र हैं कल कहीं दूसरी का होगा परसों किसी और का . क्या इसी लिये हम सब हिंदी ब्लॉग लिख रहे हैं 

लेबल की सुविधा पाठक लाने के लिये दी गयी हैं किसी के चित्र के दुर उपयोग के लिये नहीं

अगर किसी ने अपना चित्र अपने प्रोफाइल में डाला हैं तो उसका अर्थ ये नहीं हैं की कोई भी उस चित्र को अपने ब्लॉग पर  उसको डाल दे .


मै  इस पोस्ट के जरिये उन सभी चर्चाकारो से आग्रह कर रही हूँ की आप चर्चा में चित्र डालने से बचे और
सभी ब्लोगर अपने चित्र को नेट पर खोज सकते हैं

http://www.tineye.com/  इस वेबसाइट पर जा कर आप अपना चित्र लेफ्ट साइड में अपलोड कर दे , और फिर सर्च करके देख सकते हैं की आप का चित्र कहां कहां इस्तमाल हुआ है और अगर आप को कहीं भी लगे की उसका गलत इस्तमाल हुआ हैं तो उस जगह सबसे पहले जा कर अपनी आपत्ति दर्ज करवा दे उसके बाद आप मुझ से संपर्क कर ले और आगे की कार्यवाही की प्रक्रिया की जानकारी ले ले 

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July 07, 2012

ये पोस्ट मै जन हित मे जारी कर रही हूँ .


ये पोस्ट मै  जन हित मे जारी कर रही हूँ .
एक संझा ब्लॉग पर महिला ब्लॉगर के चित्र पोस्ट में डाले जाते हैं और फिर उस पोस्ट को बार बार क्लिक करके "ज्यादा पढ़ा हुआ " वाले विजेट के जरिये टेम्पलेट पर साइड बार मे दिखाया जाता हैं . चित्र के साथ सेक्स , यौन , सम्भोग , इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया जा रहा हैं .

ब्लॉग  एक इस्लाम धर्म के अनुयायी का  हैं और चित्र केवल और केवल हिन्दू धर्म की अनुयायी महिला ब्लोगर्स के  हैं .

इस साँझा ब्लॉग के कुछ सदस्यों से बात की तो उन्होने विरोध दर्ज करते हुए अपनी सदस्यता उस ब्लॉग से ख़तम कर दी हैं

वहाँ जो भी विरोध का कमेन्ट कर रहा हैं उसको अपशब्द कहे जा रहे हैं और धमकी भी दी जा रही हैं . बार बार कहने पर भी ब्लॉगर चित्र हटाने को तैयार नहीं हैं

गूगल की नीति के तहत एडल्ट कंटेंट वाले ब्लॉग को सेटिंग मे इसकी जानकारी देना जरुरी हैं जो वहाँ नहीं दी गयी हैं

इसके अलावा नेव बार को भी ब्लॉग पर नहीं डाला गया हैं जो की गूगल की नीति हैं

जो लोग इस संझा ब्लॉग के सदस्य हैं उनसे आग्रह हैं अन्य की तरह अपना नाम वहाँ से हटा ले ताकि किसी कार्यवाही की प्रक्रिया में उनका नाम ना आये 

पोस्ट का लिंक नहीं दे रही हूँ पर जिसे चाहिये मुझ से संपर्क करके इस पोस्ट की सत्यता को जांच सकता हैं


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July 06, 2012

मंडूक क़ोई शाप से नहीं बनता


 ब्रेन कैंडी नाम की एक वेबसाइट हैं जहां चुटकुलों की भरमार हैं . वहाँ से एक लिंक पर लम्बी बाते यहाँ दिखी . कुछ भ्रम थे  पहले मैने वो दूर किये फिर बात की पोस्ट पर

कथा का सारांश था की एक राज कुमारी की गोद में एक मेढक घुस जाता हैं और उसको कहता हैं की मै  राज कुमार हूँ , शापित हूँ , मुझ से शादी कर लो और मेरे बच्चो की माँ बनो , मेरे घर में रहो और मेरी माँ की सेवा करो और मेरी भी

कथा का अंत होता हैं राज कुमारी के रात के खाने से जहां वो मेढक को भुन कर खाती हैं

इंग्लिश में ये कथा यहाँ हैं जिसको जेंडर आधारित जोक माना गया है , 
हिंदी में अली जी इस कथा को अपने ब्लॉग पर दिया हैं और संवाद वहाँ जारी हैं 

अली जी कथा की व्याख्या पर बात करना चाहते थे अब ये व्याख्या भी हैं देखिये क्या प्रतिक्रया लाती हैं 

चलिये अली जी
आप की शिकायत दूर करती हूँ और कथा पर ही बात करती हूँ
सुयज्ञ जी कहते हैं इतना भारी दंड की कूप मंडूक की भून दो , बहुत ना इंसाफी हैं :)

एक बात पूछनी थी , किसी की गोदी में उछल कर बैठने से पहले पूछना तो बनता हैं ना .
किसी की खाली गोदी देखी और घुस लिये कहां का इन्साफ हैं ,
राजकुमारी पहचान गयी थी देश की राजनीति में , समाज के नियम में उसको न्याय नहीं मिलना हैं सो अपनी अस्मिता की लड़ाई उसको खुद लड़नी हैं और दंड देने का अधिकार भी उसका ही हैं वर्ना क्या पता देश की राष्ट्रपति किये कराये पर पानी फेर दे { अंशुमाला का नया आलेख हैं सन्दर्भ } और मंडूक फिर गोदी एक नयी खोजे . और रहगयी बात समाज की वो तो मंडूक के साथ ही होगा क्युकी मामला हमेशा पूरक का होता हैं , सहन शीलता का होता हैं .
फिर राज कुमारी ये भी जान ही गयी थी मंडूक क़ोई शाप से नहीं बनता अब आज कल राज कुमारियाँ पढ़ लिख जो रही हैं अंध विश्वास से ऊपर उठ रही हैं सो जानती थी अगर ब्याह कर भी लिया तो रहेगा तो मंडूक का मंडूक ही , राजकुमार होता तो गोदी में कूद कर बैठने जैसी ओछी हरकत तो शायद ही करता और
वैसे भी २०११ आते आते तक राज कुमारियों ने "नीली आँखों वाले प्रिंस चार्मिंग " का इंतज़ार बंद कर दिया हैं .
वैसे सुयज्ञ जी निरामिष के प्रवक्ता हैं और मै भी काश राज कुमारी के हाथ में इतनी ताकत होती की वो मंडूक को पहले "वेजिटेबल स्टेट " { "वेजिटेटिव   स्टेट  "} में लाती और फिर सब्जी बना कर खाती .

"वेजिटेबल स्टेट " {"वेजिटेटिव   स्टेट "} में आज भी एक राज कुमारी पड़ी हैं अरुणा शान बाग़ नाम हैं और वो कूप मंडूक जो उसकी गोदी में कूदा था आज कहीं राजकुमार बना घूम रहा हैं
काश इस राज कुमारी ने उसको तभी भुन दिया होता


अली जी व्याख्या पसंद आयी क्या ??

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July 01, 2012

किरोड़ीमल कॉलेज दिल्ली मानता हैं की बेटी के बच्चे आप पर कोई अधिकार नहीं रखते हैं

 दिल्ली विश्विद्यालय के कॉलेज में एक प्रावधान हैं की जिस कॉलेज में आप प्राध्यापक या प्राध्यापिका हैं उस कॉलेज में आप के वार्ड यानी बच्चे के लिये एक सीट होती हैं जो कट ऑफ से कम अंक होने पर भी उसको एडमिशन दिलाती हैं . ये उसी तरह हैं जैसे सरकारी नौकरी में कई प्रावधान हैं पत्नी और बच्चो को नौकरी मिलने के .
जी हाँ ये एक प्रकार का रेसेर्वेशन ही हैं लेकिन इसको प्रेव्लीज कहा जाता हैं क्युकी माना जाता हैं की साल दो साल मे कोई एक सीट किसी कॉलेज में इस तरह भरी जाती हैं .
अब जानिये किरोड़ीमल कॉलेज दिल्ली का हाल , यहाँ भी ये प्रावधान हैं और इसके साथ साथ ये भी प्रावधान हैं की प्राध्यापक या प्राध्यापिका की ग्रैंड चाइल्ड को भी ये लाभ दिया जाएगा अगर उनके बच्चे ने ये लाभ पहले नहीं उठाया हो तो .
लेकिन केवल और केवल लडके के बच्चे इस लाभ को उठा सकते हैं लड़की के बच्चो को इस का फायदा नहीं मिलेगा क्युकी वो आप के खानदान के नहीं होते हैं . वो पराये खानदान के हैं .

ये यू जी सी का नियम नहीं हैं , कॉलेज का अपना बनाया नियम हैं . ये उनलोगों का बनाया नियम जिनकी पढाई , लिखाई , मानसिक स्तर और सोच पर ऊँगली उठाना ही गलत माना जाता हैं . ये टीचिंग कम्युनिटी के लोग हैं जिनसे समाज मे ये उम्मीद की जाती हैं की वो बेटे और बेटी में विबेध नहीं करते होंगे .


लड़की के बच्चे आप के खानदान के नहीं हैं इस लिये आप की किसी भी चीज़ पर उनका अधिकार कैसे हो सकता हैं . कॉलेज की सीट भी अब बेटो और उनके खानदान का प्रीव्लेज हैं .

इस से बड़ा क्या प्रूफ हो सकता हैं की लड़कियों को आज भी हमारा समाज अपना नहीं मानता हैं ,
जहां कानून अब मार्कशीट पर माँ का नाम मांगता हैं वहाँ कोई कॉलेज अपने प्राध्यापक के ग्रैंड चिल्ड्रेन मे लिंग भेद कर रहा हैं और पिछले कई सालो से कर रहा हैं .

बहुत सी बाते हैं जैसे मान लीजिये किसी प्राध्यापक या प्राध्यापिका के केवल लडकियां ही हो और वो चाहे की उसके ग्रांड चिल्ड्रेन उसके कॉलेज मे पढ़े तो ये नहीं संभव हैं क्युकी उनको इसके लिये बेटा पैदा करना चाहिये ही था अब क्युकी वो बेटा पैदा करने मे अक्षम थे तो  उनकी लड़की के बच्चे उनके नहीं हुए . उनको प्रीव्लेज नहीं मिल सकता

कल जब वो प्राध्यापक या प्राध्यापिका वृद्ध होगे और अपने नातिन / नाती के साथ रहना चाहेगे क्युकी पोता पोती तो हैं नहीं {और ये अब कानून नाती / नातिन को करना होगा लिंक देखे } तो उनके नाती / नातिन उनसे पूछ तो सकते ही हैं की जब हम आप के हैं ही नहीं तो किस अधिकार से आप को हम अपने साथ रखे

कितनी अजीब बात हैं की जब भी किसी प्रेव्लीज की बात होती हैं केवल बेटा और उसके बच्चे ही याद आते हैं .
कितने माँ बाप हैं जो ऐसी परिस्थिति मे बेटियों को जनम देना चाहेगे

शायद जो जितना ज्यादा पढ़ा हैं वो उतना ज्यादा बेटियों से नफरत करता हैं और उनको बेटे के समान मानता ही नहीं हैं .

किसी भी प्रकार का रिजर्वेशन गलत हैं ये मानते हुए इस सुविधा को पूरी तरह ना लागू किया गया होता तो ठीक था लेकिन सुविधा दे कर लिंग विभेद  करना और वो भी आज के समय मे , और सिविल सोसाइटी के उनलोगों द्वारा जो दूसरो को शिक्षित करते हैं .

क्या शिक्षा मिल रही हैं महज ये की बेटी अपनी नहीं हैं ?? उसके बच्चे अपने नहीं हैं ? उनको आप के खानदान का नहीं माना जा सकता हैं .

एक तरफ कानून लड़की से उम्मीद करता हैं की वो अपने माता पिता का ख्याल रखे , वही दूसरी तरफ बेटियों को मूल भूत बराबरी के अधिकार से ही वंचित किया जाता हैं .

आज भी कितना विभेद हैं और आज भी मानसिक रूप से कितने अपरिपक्व हैं हमारे समाज के वो लोग जो सबसे ज्यादा शिक्षित हैं

कभी कभी जब बच्चे कहते हैं हमारे टीचर को कोई समझ ही नहीं हैं तो लगता हैं इन बच्चो को तमीज ही नहीं सीखी गई हैं , आज की पीढ़ी अध्यापको का सम्मान ही नहीं करती हैं

फिर जब ऐसा कुछ सामने आता हैं तो लगता हैं टीचर्स से ज्यादा दक्यानुसी , कानून की अवेहलना करने वाले शायद ही कोई और हो . पढाई लिखाई से मानसिक चक्षु खुलते हैं ऐसा सुना था पर अब लगता हैं ये गलत हैं .

चलते चलते बता दू किसी भी कॉलेज मे ये नियम कॉलेज के अध्यापक ही बनाते हैं स्टाफ कौंसिल की मीटिंग मे और मुझे आश्चर्य हैं की जिस कॉलेज मे इतनी वोमन टीचर्स भी वहाँ इस प्रकार के कानून को ना केवल बनाया गया अपितु उसको निभाया भी जा रहा हैं

चिराग तले अँधेरा इसी को कहते हैं 




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