नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

April 29, 2010

मुंबई ब्लॉगर मीट - एक नया आयाम

मुंबई ब्लॉगर मीट कि रिपोर्ट कई ब्लॉग पर पढ़ी ।विषय था " मेरी रचना, मेरी कलम और ब्लोगकी दुनिया " अनीता कि पोस्ट पर पढ़ा । साथ साथ ये भी पढ़ा "घुघुती जी का कहना था कि ब्लोगिंग से पहले उनकी अपनी कोई पहचान नहीं थी, उनकी पहचान उनके पति से थी, उनका सामाजिक दायरा पति के सहकर्मियों से जुड़ा था और वो खुश हैं कि ब्लोगिंग ने उन्हें अपनी एक पहचान दी है और अपने मित्र दिये हैं। "



ब्लॉग लिखने मे अपने अस्तित्व की तलाश करती नारियों को एक नया माध्यम मिला हैं अभिव्यक्ति का और अपने सरोकार बढाने का ।


वो लोग जो महिला के ब्लॉग पर विद्रूप , विषय से हट कर हास्य पूर्ण , और अश्लील कमेन्ट देते हैं या व्यक्तिगत कमेन्ट मे लेखक के परिवार , उसके रहन सहन पर आक्षेप करते हैं वो एक बार जरुर सोचे।


बहुत सी गृहणियां जिनके पास अब समय हैं अपने को अभिव्यक्त करने का और जिनके पास अब एक ऐसा माध्यम हैं जो उनके विचारों को देश विदेश तक ले जाता हैं उन सब को लिखने दे । बढ़ावा नहीं दे सकते तो कम से कम गलत कमेन्ट दे कर उनका उत्साह तो ना ख़तम करे ।

आज के लिये बस इतना ही ।

April 25, 2010

शर्म क्यों नहीं आती उन्हें


पिछले कुछ समय से मुबंई लगातार चर्चा में बना हुआ है...कभी टैक्सी ड्राइवरों के साथ मार-पीट के कारण, कभी पानी की पहरेदारी के कारण, कभी शाहरुख के कारण, कभी अमिताभ को सरकारी कार्यक्रम में बुलाने के कारण। ऐसा लगता है मानो अपनी अहमियत सिद्ध करने के लिए हर पहला व्यक्ति दूसरे की टांग खींचने में लगा है। ऐसे में वहीं की कानून व्यवस्था की स्थिति कमजोर पड़ी है।

अंधेरी में रहने वाले तीन मैनेजमेंट के छात्रों ने अपनी 13 वर्षीय नौकरानी के साथ जिस हैवानियन भरे व्यवहार का प्रदर्शन किया, उससे सम्पूर्ण इंसानियत शर्मसार हो गई है। उनके चंगुल में फंसी उस बच्ची को पहले उन्होंने मारा-पीटा, फिर उसको घुटनों पर बैठा कर स्वयं उसकी पीठ पर बैठ गए। फिर भी मन नहीं भरा तो अपने पैरों की कैंची बनाकर उसके गले में फंसा दी और लगातार उसे इधर से उधर घुमाते रहे। बच्ची लगातार रो रही थी, पर उन दरिंदों पर उसके रोने का कोई असर नहीं पड़ रहा था, वे इस हैवानियत का पूरा आनंद उठा रहे थे।

निश्चित रूप से ये अमीर मां-बाप की बिगड़ी औलादें होंगी। जिन्हें अपनी व्यस्तता के मध्य अपने बच्चो को ये सिखाने का अवसर ही नहीं मिला होगा कि इस दुनिया में इंसानियत नाम की भी कोई चीज होती है। अन्यथा ये बच्ची को प्रताड़ित करते हुए कमरे से घसीटते हुए बाहर नहीं ले जाते। बात यहीं खत्म नहीं होती, उन्होंने अपनी हैवानियत बकायदा एक फिल्म भी बनाई और उसे यू ट्यूब में डाल दिया, ताकि उनकी हैवानियत को पूरी दुनिया के लोग देखकर उसका आनंद उठा सकें।

छात्रों की इस वहशी हरकत का सर्वप्रथम विरोध उन्हीं के साथ पढ़ने वाले छात्रों ने किया। और इस घटना की जानकारी पुलिस को दी। घटना की जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने जो पहला कार्य किया वो था यू ट्यूब से उस फिल्म को हटाना। तत्पश्चात उन्होंने उन छात्रों को गिरफ्तार कर लिया, पर उन पर बहुत हल्की-फुल्की धाराएं लगाई गई और वे आराम से सात-सात हजार रुपयों के मुचलकों में बाहर आ गए। पुलिस की इस ढीली-ढाली कार्रवाई का कोई कारण तो अवश्य रहा होगा। संभव है उनके बापों ने मोटी रकम खर्च करके पुलिस का मुँह बंद कर दिया हो।

लड़के एक बार फिर अपनी हैवानियत का खेल खेलने के लिए स्वतंत्र है। किसी को भी उस बच्ची की चिंता नहीं है। क्या गुजर रही होगी उस बच्ची के बाल मस्तिष्क पर? अब क्या वह कभी सामान्य हो पाएगी? आने वाली रातों में वह क्या कभी चैन से सो पाएगी? क्या इन परिस्थितियों से गुरने के बाद lउसे संपूर्ण पुरुष जाति से नफरत नहीं हो जाएगी? बच्ची को मनोचिकित्सा की जरूरत है, जो उसके मन से इस भय को निकाल सके, पर कौन ले जाएगा उसे मनोचिकित्सक के पास? अगर उनके माँ-बाप की इतनी हैसियत होती तो वे निश्चित रूप से उसे स्कूल भेजते न कि ऐसे दरिंदों के घर नौकरी करने के लिए।

सरकार और स्वयंसेवी संगठनों को आगे आकर सबसे पहले बच्ची की शारीरिक और मानसिक जांच करवानी चाहिए। बच्ची के साथ हुए मानसिक दुराचार की भरपाई तो संभव नहीं है, लेकिन आरोपियों को कठोर से कठोर दंड दिया जाना चाहिए, ताकि भविष्य में मौज-मस्ती के नाम पर इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके।

-प्रतिभा वाजपेयी.

April 24, 2010

साइबर स्टॉकिंग - ऑनलाइन हरास्स्मेंट .

साइबर स्टॉकिंग - ऑनलाइन हरास्स्मेंट के बारे मे जानकारी दे रही हूँ आशा हैं काम आयेगी

CYBERCRIME INDIA, CYBERSTALKING, harassment women India, issues

What is Cyber stalking, Who is a cyber stalker, Who is the victim & what motivates a cyber stalker. Is there a solution?

What is Cyber stalking?

Cyber stalking is when a person is followed and pursued online. Their privacy is invaded, their every move watched. It is a form of harassment, and can disrupt the life of the victim and leave them feeling very afraid and threatened

Stalking or being 'followed' are problems that many people, especially women, are familiar with. Sometimes these problems (harassment & stalking) can occur over the Internet. This is known as cyber stalking. The internet mirrors the real world. That means it also reflects real life & real people with real problems. Although it is rare, Cyber stalking does occur. Cyber Stalking usually occurs with women, who are stalked by men, or children who are stalked by adult predators or paedophiles. A cyber stalker does not have to leave his home to find, or harass his targets, and has no fear of physical violence since he believes he cannot be physically touched in cyberspace. He maybe may be on the other side of the earth or a neighbour or even a relative! And a stalker could be of either sex.

Typically, the cyber stalker's victim is new on the web, and inexperienced with the rules of netiquette & internet safety. Their main targets are the mostly females, children, emotionally weak or unstable, etc. It is believed that Over 75% of the victims are female, but sometimes men are also stalked. The figures are more on assumed basis and the actual figures can really never be known since most crimes of such natures go unreported.

What does a cyber stalker look like?

Cyber stalkers can be categorized into 3 types. (Sometimes these categories may overlap ).

1)The common obsessional cyber stalker

The common obsessional stalker refuses to believe that their relationship is over. Do not be misled by believing this stalker is harmlessly in love.

2)The delusional cyber stalker

The next type is the delusional stalker. They may be suffering from some mental illness like schizophrenia etc & have a false belief that keeps them tied to their victims. They assume that the victim loves them even though they have never met. A delusional stalker is usually a loner & most often chooses victims who are married woman, a celebrity or doctors, teachers, etc.. Those in the noble & helping professions like doctors, teachers etc are at often at risk for attracting a delusional stalker. Delusional stalkers are very difficult to shake off.

3)The vengeful cyber stalker.

These cyber stalkers are angry at their victim due to some minor reason- either real or imagined. Typical examples are disgruntled employees. These stalkers may be stalking to get even & take revenge and believe that "they" have been victimized. Ex-spouses can turn into this type of stalker.

Two different kinds of cyber stalking situations which can occur.

1. Online harassment & cyber stalking that occurs & continues on the internet.

2. Online harassment and stalking that begins to be carried on offline too. This is when a stalker may attempt to trace a telephone number or a street address. Always be careful what details you give out over the web and to whom.

What motivates a cyber stalker ?

1)Sexual Harassment

This should not surprise anyone, especially women, since sexual harassment is also a very common experience offline. The internet reflects real life & consists of real people. It's not a separate, regulated or sanctified world. The very nature of anonymous communications also makes it easier to be a stalker on the internet than a stalker offline

2)Obsession for love

This could begin from an online romance, where one person halts the romance and the rejected lover cannot accept the end of the relationship. It could also be an online romance that moves to real life, only to break-up once the persons really meet. Then one person again cannot accept the NO. Sometimes, this obsession stalking can even start from real life and then move over to cyberspace. One of the problems with obsession stalking is that since it often starts as real romance, much personal information is shared between persons involved. This makes it easy for the cyber stalker to harass their victim. Some users online enjoy "breaking hearts" as a pastime, and so may well set up obsessions for their own enjoyment - games that they may later regret having played. Sometimes, an obsession can also be a fixation by a stranger on another user for no valid reason. Since these obsession stalkers live in a dream world, it is not always necessary for the target to have done anything to attract her (or his) attention in the first place. Obsession stalkers are usually jealous and possessive people.Death threats via email or through live chat messages are a manifestation of obsession stalking.

3)Revenge & Hate.

This could be an argument that has gone out of hand, leading eventually to a hate & revenge relationship. Revenge vendettas are often the result of something you may have said or done online which may have offended someone. Vendettas often begin with arguments where you may have been rude to another user. Sometimes, hate cyber stalking is for no reason at all (out of the blue)- you will not know why you have been targeted nor what you have done, and you may not even know who it is who is doing this to you & even the cyber stalker does not know you. In fact you have NOT been individually targeted at all - you have been chosen as a random target by someone who does not know you !! This stalker may be using the net to let out his frustrations online.

4)Ego & Power Trips

These are harassers or stalkers online showing off their skills to themselves and their friends. They do not have any grudge against you - they are rather using you to 'show-off' their power to their friends or doing it just for fun and you have been unlucky enough to have been chosen.

Most people who receive threats online imagine their harasser to be large and powerful. But in fact the threat may come from a child who does not really have any means of carrying out the physical threats made.

It is estimated that there are about 2,00,000 real-life stalkers in America today. Roughly one in 1,250 persons is a stalker - and that is a large ratio. Of course, no one knows the truth, since the Internet is such a vast medium, but these figures are as close as it gets to giving statistics. Out of the estimated 79 million population worldwide on the internet at any given time, we could find 63,000 internet stalkers travelling the information superhighway, stalking approximately 4,74,000 victims.

मद्दत के लिये

Links to Police Departments Websites in India.

Mumbai Police : http://www.cybercellmumbai.com - Includes News Updates & cyber crime information.

Delhi Police http://delhipolice.nic.in Chandigarh Policehttp://chandigarhpolice.nic.in Assam Police http://www.assampolice.com Haryana Police http://haryanapolice.nic.in Himachal Pradesh Police http://hppolice.nic.in

for hindi translation use google translation but please dont fall in wrong hands .

April 23, 2010

संघर्ष में भी रोड़े !

                  

                     जीवन में संघर्ष जिसके हिस्से में आता या तो वह कर ले जाता है या फिर बुजदिलों कि तरह से दुनियाँ छोड़ कर चल देता है. यह मानव जाति के गुण के अनुरूप नहीं है. जीवन एक संघर्ष है और इसको जीत के जाना  है.  ऐसे ही पुरुषों की सत्ता को चुनौती देती हुई कितनी महिलायें अपने परिश्रम और लगन से जीत के निकली हैं.
                कर्म और सिर्फ कर्म को अपना धर्म मानकर चलने वालों की अभी कमी नहीं है. ऐसे ही कानपुर की  ये महिला जो एक दिन अखबार में चर्चा का विषय बनी , उसी अख़बार में जिसको वो हॉकर   के रूप में वह बेचती चली आ रही है.
इस क्षेत्र में ९९% पुरुषों का कार्यक्षेत्र समझा जाने वाला क्षेत्र भी एक महिला की दस्तक को स्वीकार कर चुका है.
                                      आज वह जिस स्थान पर खड़ी है वहाँ इस क्षेत्र में पुरुषों की ही पहुँच हुआ करती है और कई तो इस मुकाम तक पहुँच भी नहीं पाते हैं. ये गीता है , कानपुर के ग्वालटोली चौराहे पर एक छोटी सी दुकान चलाने वाली महिला, जिसकी दिनचर्या अन्य महिलाओं से अलग नहीं है. लेकिन सुबह चार बजे उठने के बाद उसकी दिनचर्या बदल जाती है, जो आम औरतों से अलग है. हॉकर का काम ऐसा है कि चाहे जो भी मौसम हो उसकी दिनचर्या सुबह ४ बजे से शुरू हो जाती है. उसको सेंटर से जाकर अखबार उठाने होते हैं और फिर उनको घर घर पहुँचाना भी होता है. इसके बाद दुकान से भी अखबार बेचती है. 
                         पिछले २२ वर्षों से जुड़ी है इस धंधे से, प्रतिद्वंद्वी  हमेशा पुरुष ही रहे हैं, कितने व्यवधान डाले गए कि वह उस रास्ते से हट जाय लेकिन अपनी लगन और मेहनत से उसने लोहा मनवा  लिया.  पहले अपनी ही दुकान पर रख कर कुछ पेपर बेचने शुरू किये और जिससे लेती थी , उसकी शर्त के मुताबिक १०० रुपये होने पर पैसा देगा. जब ये सीमा पूरी होने लगी तो उसने पेपर देने में आनाकानी की, कभी पेपर लाये ही नहीं, कभी देर से लाये. कुछ लोगों का नियम होता है कि घर से घूमने के लिए निकले और दुकान पर बैठ कर अखबार पढ़ा तब घर गए या फिर दुकान से ही लेते गए. ऐसे लोगों कि संख्या बहुत थी तो उसके पति ने सेंटर से अख़बार लाकर दुकान पर रखने शुरू किये. गीता को  पराश्रित होने से अपने हाथों पर अधिक विश्वास था. बेचने की  जिम्मेदारी उसने स्वयं उठाई.  पति के सहयोग से यह व्यवसाय अच्छा चलने लगा. किन्तु पिछले दो साल से पति को परेशानी होने के कारण वह स्वयं सेंटर से जाकर पेपर लाती है और करीब २०० पेपर रोज बेचती है. उसको अपने काम पर गर्व है. इसी के चलते उसने अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह किया. उसने अपनी ३ बेटियों को पढ़ाया और उनकी शादी की. बेटा अभी पढ़ रहा है. 
                 अखबार वितरकों कि दुनियाँ में २०० अख़बार रोज बेचना अपने आप में एक स्थान रखता है. उसने वह कर दिखाया है , जिसे एक मिशाल माना  जा सकता है. ऐसी हिम्मत और लगन के आगे बड़े बड़े विरोधी भी मात खा जाते हैं. 
                 ऐसी महिलाओं को मैं नमन करती हूँ.

April 21, 2010

परदे मे रहने दो क्युकी सभ्य हिंदी ब्लॉगर समाज मे पुरुष बुरका पहनते हैं

परदे मे रहने दो
पर्दा ना उठाओ
पर्दा जो उठ गया तो
भूचाल जायेगा

जी हाँ इरान मे आये भूकम के लिये नारियां जो पर्दा नहीं करती वो ज़िम्मेदार हैं और ये फतवा हैं किसी मुल्ला या क़ाज़ी कापूरी खबर यहाँ पढ़े
वैसे सोचने कि बात हैं दिल्ली और आस पास गज़ियाद , फरीदाबाद इत्यादि मे बिजली और पानी कि इतनी परेशानी रहती हैं क्या उसकी वजह भी ऐसी ही कुछ हैं ??!!! कोई हमारे भारत मे इस पर रिसर्च क्यों नहीं करता ??

और
हाँ वो सब जो फिरदौस के नाम का पर्दा पहन कर कमेन्ट कर रहे हैं उन सब से विशेष आग्रह हैं कि "बुर्का " पुरुषो के लिये कितना जरुरी हैं उस पर भी लिखेसभ्य हिंदी ब्लॉगर समाज मे पुरुष बुरका पहनते हैं क्या इसीलिये यहाँ विचारों कि शुन्यता सबसे ज्यादा दिखती हैं ?? !!! हद्द हैं

हम फिरदौस से बस इतना कहना चाहते हैं " बनी रहो , तुमने सो कॉल्ड "मर्दों " को बुरका पहना दिया

जरूरत है शिक्षको को शिक्षित करने की


कपिल सिब्बल जब से मानव संसाधन मंत्री बने हैं तब से शिक्षा में सुधारों को लेकर बहुत सारी बातें हो रही हैं. ये बातें कागजों पर तो अच्छी है पर हकीकत की कसौटी पर ये खरी नहीं उतर पा रही है। बस्ते का बोझा कम करना अच्छी बात है. पर शिक्षको की मानसिकता में परिवर्तन लाए बिना शिक्षा व्यवस्था में लाया गया कोई भी परिवर्तन सफल नहीं होगा।

बच्चे पर हाथ उठाना कानूनन अपराध है. शहरों में बच्चो के साथ मार-पीट की घटनाओं में कमी भी आई है, परंतु अभी भी बहुतायत में हमारे देश के शिक्षक उसी मानसिकता में जी रहे हैं, जिसमें ये माना जाता है कि बिना भय के ज्ञान प्राप्त नहीं होता। इसी हिटलरी मानसिकता के कारण रांची के लोहरदगा के शीला अग्रवाल सरस्वती विद्या मंदिर के छात्र आकाश को होमवर्क न करके लाने के जुर्म में उसकी शिक्षिका अनिता वर्मा ने इतनी निर्ममता से पीटा की कि उसकी बांई आँख 96% क्षतिग्रस्त हो गई। डॉक्टरों का कहना है कि बच्चे को इलाज के लिए दिल्ली या चेन्नई ले जाना चाहिए, परंतु गरीब मां-बाप के लिए बच्चे को दिल्ली या चेन्नई ले जाना संभव नहीं है।
स्कूल ने अपने अपराध को छुपाने के लिए बहाना गढ़ा कि स्कूल में खेलते समय गिर जाने से उसे आँख में चोट लगी है, यही नहीं बच्चे के पिता को इस बात का लालच भी दिया गया गया कि यदि वे पिटाई के बारें में किसी को नहीं बताएगें तो उन्हें तो आकाश के इलाज का खर्चा भी स्कूल वाले उठाएगे, लेकिन बात फैल जाने के बाद शिक्षक महोदय अस्पताल से गयाब हो गए और प्राचार्य जी ने तो अस्पताल आकर अपने शिष्य को देखने तक की आवश्यकता नहीं समझी।

बच्चे के साथ मार-पीट कानूनन अपराध है. भारतीय पीनल कोड के अनुसार डंडे या हथियार से किसी की आँख फोड़ने या टांग तोड़ने की सजा अधिकतम दस वर्ष है. और भारतीय दण्ड संहिता की धारा 326 के तहत उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है।

एक तरफ सर्व सिक्षा अभियान की बात हो रही है। शिक्षा प्राप्त करना कानूनी अधिकार बना दिया गया है, दूसरी तरफ इस तरह की घटनाएं हो रही है। इस अपराध के लिए शिक्षिका को दण्ड मिलेगा की नहीं पता नहीं. पर यह सच है कि एक मासूम की जिंदगी बर्बाद हो गई, इसमें दो राय नहीं। यहां इस बात पर ध्यान दिया जाना जरूरी है कि मारपीट से बच्चे के मानसिक विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता।

आज बच्चो को शिक्षित करने से ज्यादा जरूरी है शिक्षको को शिक्षित करने की, ताकि वे अपना फ्रेशट्रेशन बच्चो पर न निकालें।

-प्रतिभा वाजपेयी.


April 19, 2010

ईश्वर जेसिका की आत्मा को शान्ति दे

मनु कि उम्र कैद कि सजा बरक़रार रखी गयी हैं और उम्र कैद का मतलब अब केवल १४ साल कि सजा नहीं हैं , जब तक उम्र हैं तब तक जेल हैं

जसिका लाल के परिवार को आज राहत हुई होगी कि कानून हैं ।

इस केस मे मीडिया का रोल बहुत सराहनीये रहा हैं और पब्लिक का साथ भी जसिका के परिवार के साथ ही रहा हैं हां जेठमलानी जैसे वकील जब मनु जैसे लोगो का साथ देते हैं तो अफ़सोस ही होता हैं और लगता हैं पैसा ही बहुत से लोगो का ईमान हैं ।

ईश्वर जेसिका की आत्मा को शान्ति दे

April 11, 2010

न दैन्यम न पलायनम : फ़िरदौस ख़ान

महिलाएं न तो देवी बनना चाहती हैं और न ही ग़ुलाम... वो तो बस समाज से इंसानी हक़ चाहती हैं... जीने का हक़, वो हक़ है, जो मर्दों को हासिल हैं... दुनियाभर में सभी संप्रदायों ने महिलाओं का हमेशा शोषण किया है... महिलाएं कहीं शोषण के ख़िलाफ़ आवाज़ न उठाने लगें, इसलिए उन्हें घर की चारदीवारी तक महदूद (सीमित) कर दिया गया... उन्हें पर्दे में रहने के लिए मजबूर किया गया... बुर्क़े के ख़िलाफ़ लिखे हमारे लेखों से प्रभावित होकर हेल ही में भाई परम आर्य जी, ने हमें हिन्दू धर्म अपनाने की दावत दी है... इसके लिए भाई का आभार...

हिन्दू धर्म में भी महिलाओं की स्थिति पुरुषों के बराबर कम ही रही है... महिलाओं को जहां देवी बनाकर उनकी पूजा की गई तो वहीं उन्हें देवदासी भी बनाया गया. लेकिन यह हिन्दू धर्म की महानता है कि इसमें निरंतर सुधार होता गया... लेकिन मुस्लिम समाज (मज़हब के ठेकेदार ) आज भी महिलाओं के शोषण के ही पक्ष में है... हैरत की बात यह भी है कि भारत जैसे लोकतांत्रिक और 'धर्मनिरपेक्ष' देश में भी महिलाओं के शोषण का सिलसिला बदस्तूर जारी है... अंग्रेज़ भारत से सती प्रथा तो मिटा गए, लेकिन बुर्क़ा नहीं...

मज़हब के ठेकेदारों के खौफ़ से हम हिन्दू धर्म अपना लें, ऐसा कभी हो नहीं सकता...क्योंकि

पलायन हमारी फ़ितरत में शामिल नहीं है... यानि 'न दैन्यम न पलायनम'
हमने कट्टरपंथियों के विरोध से घबराकर हिन्दू धर्म अपना लिया तो...हमारी कौम की बहनों का क्या होगा...???

हम बेशक मज़हब के लिहाज़ से मुसलमान हैं, लेकिन सबसे पहले हम इंसान हैं... और मज़हब से ज़्यादा इंसानियत और रूहानियत में यक़ीन करते हैं... हम नमाज़ भी पढ़ते हैं, रोज़े रखते हैं और 'क़ुरआन' की तिलावत भी करते हैं... हम गीता भी पढ़ते हैं और बाइबल भी... क़ुरआन में हमारी आस्था है, तो गीता और बाइबल के लिए भी हमारे मन में श्रद्धा है... हमने कई बार अपनी हिन्दू सखियों के लिए 'माता की कथा' पढ़ी है... और यज्ञ में आहुतियां भी डाली हैं...

अगर इंसान अल्लाह या ईश्वर से इश्क़ करे तो... फिर इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि उसने किसी मस्जिद में नमाज़ पढ़कर उसकी (अल्लाह) इबादत की है... या फिर किसी मन्दिर में पूजा करके उसे (ईश्वर) याद किया है...

हम बचपन से ही सूफ़ियों से मुतासिर रहे हैं... और धार्मिक कट्टरता के विरोधी रहे हैं... वो किसी भी मज़हब में क्यों न हो... (यह अच्छी बात है कि दूसरे धर्मों में सुधारवादी हैं और उन समाज की ख़ामियां दूर हुई हैं... वहां सुधार की गुंजाइश है...) मगर हमारे यहां ऐसा नहीं है, जो भी सुधार की बात करता है, उसे लाईमान (बिना ईमान वाला) घोषित कर दिया जाता है...

समाज के लोग आज भी अपनी अक़ल का इस्तेमाल करने की बजाय मुल्लाओं की बात को ही सर्वोपरि मानते हैं... और इनका कहा ही 'आख़िरी सच' होता है... हद तो यह है ज़्यादातर मामलों (तलाक़) में कि ये कठमुल्ला 'क़ुरआन' तक को ताक़ पर रख देते हैं... ऐसे लोग जब ख़ुद 'क़ुरआन' का पालन नहीं करते, उनकी हर बात को आंख मूंदकर मान लेना कितना सही है...???

मुल्लाओं की बात लोग मानते हैं, इसलिए इन लोगों का फ़र्ज़ होना चाहिए कि ये कौम की भलाई के लिए आदर्श स्थापित करें और लोगों को वो रास्ता दिखाएं जो ख़ुशहाली की तरफ़ जाता हो, लेकिन अफ़सोस कुछ लोग कौम को जहालत की गर्त में ले जाकर 'जेहादी' (तालिबानी)बनाने पर तुले हुए हैं... ऐसी कौम का मुस्तक़बिल (भविष्य) क्या होगा...???

हमारा मानना है... कोई भी इंसान मज़हब के लिहाज़ से अच्छा या बुरा नहीं होता... मज़हब इंसान का इबादत का तरीक़ा तो बदल सकता है, लेकिन किरदार नहीं... हम हिन्दुस्तान में रहते हैं और इस लिहाज़ से 'हिन्दू' हैं... हमारी आस्था इस मुल्क के क़ानून में है... सऊदी अरब के नहीं... और हमें हिन्दुस्तानी मुसलमान कहलाने पर फ़क्र है...

बक़ौल बुल्ले शाह :
करम शरा दे धरम बतावन
संगल पावन पैरी।
जात मज़हब एह इश्क़ ना पुछदा
इश्क़ शरा दा वैरी॥

April 09, 2010

ट्रेनिंग संवेदनाये और सिस्टम

सानिया मिर्ज़ा हो या करीना कपूर या फिर कोई भी ऐसी समर्थ नारी जो अपनी जिन्दगी अपनी शर्तो पर जी सकती हो वो जब सामाजिक रूप से ऐसे मानदंड स्थापित करती हैं जिन से समाज का कोई भला होना संभव ही नहीं हैं तो मन मे केवल और केवल एक मलाल ही उत्पन्न होता हैं ।

करीना कपूर के और सैफ के एयर टेल के विज्ञापन मे जिस प्रकार से करीना एक "बिम्बेट" की तरह पेश आयी हैं उसको देख कर लगता हैं कि क्या दिखना चाह रही हैं कि इनके दिमाग है ही नहीं ?? इस प्रकार के विज्ञापन से बार बार सिद्ध किया जाता हैं लड़कियों के दिमाग होता ही नहीं हैं और जब करीना एक लड़की हो कर इसका हिस्सा बनती हैं तो वो लड़कियों को एक गलत दिशा कि तरफ मोडती हैं कि पुरुष कि चाहत उसी लड़की को मिलेगी जो दिमाग से नहीं चलेगी । क्या यही ट्रेनिग दी जा रही हैं हमारी लड़कियों को ??

सानिया मिर्ज़ा को पूरे पुरुष समाज मे वो पुरुष पसंद आया जिस पर मैच फिक्सिंग का आरोप सिद्ध हो चुका हैं और जो निरंतर झूठ ही बोल रहा हैं । शादी करना एक व्यक्तिगत प्रश्न हैं पर जब एक पब्लिक फिगर शादी करती हैं तो निरंतर उस शादी कि चर्चा होती हैं और आम लड़की जो उस पब्लिक फिगर को मोडल के रूप मे देखती हैं और उस जैसा बनना चाहती हैं वो एक गलत रास्ते पर जाती हैं ।क्या यही ट्रेनिग दी जा रही हैं हमारी लड़कियों को ?? सानिया ने शोहब से विवाह को जो निर्णय लिया वो उनका व्यक्तिगत निर्णय हैं लेकिन इस प्रकार के निर्णय जब एक सशक्त महिला लेती हैं तो अफ़सोस करने के अलावा कुछ नहीं कर सकते हां मन मे ये जरुर आता हैं कि इतने बड़े भारत मे क्या कोई समाचार नहीं रह गया कि न्यूज़ देखें के लिये जब भी कोई भी चॅनल लगाओ सानिया और शोहब कि बकवास ही सुनाई देती हैं

कई दिन से काम के सिलसिले मे दिल्ली से बाहर थी इसलिये नीचे दी हुई खबर पर नारी ब्लॉग पर कोई पोस्ट नहीं सकी इसका अफ़सोस हैं
अफ़सोसजनक दुर्घटना में छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ़ के 75 से ज्यादा जवानों को 1000 से अधिक नक्सलवादियों ने घेर कर मार दिया। समाज का सुधार कर रहे हैं नक्सलवादी क्या वाकयी । मेरी संवेदनाये जवानों के परिवारों के साथ हैं और आज के अखबार कि खबर के हिसाब से चले तो ये जवान जंगल मे ड्यूटी करने के लिये ट्रेन नहीं किये गए थेक्या हम अपने जवानो को केवल और केवल मरने कि ट्रेनिंग ही देते हैं । कौन ज़िम्मेदार हैं इन मौतों का क्या नक्सलवादी या हमारा सिस्टम ।

April 05, 2010

माँ तुझे सलाम....

चंद्रपति देवी एक सीधी साधी ग्रामीण महिला हैं,उनमे ऐसा कुछ भी नहीं,जिससे ये लगे कि वे अपने गाँव के धनाढ्य रसूख वाले लोगों से और अपने गाँव कि पूरी पंचायत से लोहा ले सके. उनके पति फ़ौज में सिपाही थे. उन्होंने देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी और चंद्रपति देवी १८ साल पहले विधवा हो गयी. दो बेटे और दो बेटियों के पालन पोषण की जिम्मेवारी अब उनके ऊपर थी.उन्होंने बखूबी अपने कार्य को अंजाम दिया,खेतों में दिन रात काम किया पर बच्चों को शिक्षा दी. उनका बेटा मनोज स्कूली शिक्षा पूरी कर एक मेकैनिक बन गया . उसी गाँव में रहने वाली एक लड़की बबली उसके प्यार में पड़ गयी और दोनों ने विवाह का फैसला किया. पर उन दोनों के गोत्र एक थे और १०,००० की आबादी वाले उस जिले में एक गोत्र वाले आपस में शादी नहीं कर सकते. यह वहाँ की पंचायत का फैसला है.

इन दोनों ने पंचायत के फैसले के खिलाफ जाकर घर से भाग कर शादी कर ली. और चंद्रपति देवी पर बबली के अमीर घरवालों के गुस्से का कहर टूट पड़ा. बबली के घर वालों ने ,चंद्रपति देवी पर उनकी बेटी के अपहरण का केस कर दिया. पंचायत के दबाव में आकर पुलिस रोज उनके घर पूछताछ के लिए आती. चंद्रपति देवी ने आस पास के गाँवों में जाकर उनकी बहुत खोज की. पर उन दोनों का कुछ पता नहीं चला. आखिर एक महीने बाद मनोज ने उन्हें फोन किया और यह जानने पर कि उसकी माँ पर मुकदमा कर दिया गया है. मनोज ने कहा कि वे लोग कैथल,अपने गाँव आ रहें हैं और बबली वहाँ बयान दे देगी कि उसने अपनी मर्जी से शादी की है. उनके ऊपर का यह केस हटा लिया जायेगा. गाँव के पंचायत 'खप' के प्रमुख ,'गंगाराज' बबली के रिश्तेदारों को उन दोनों प्रेमियों की हत्या करने को उकसाने लगे क्यूंकि यह उन्हें अपनी गाँव की इज्ज़त के खिलाफ लगा. उनलोगों को गाँव आने के लिए पुलिस संरक्षण भी दी गयी .फिर भी उन दोनों प्रेमियों को मौत के घाट उतार दिया गया.

चंद्रपति देवी ने गज़ब की हिम्मत दिखाई और बबली के घरवालों और पंचायत के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाने की कोशिश की.पर पुलिस उनके दबाव में थी और उसने FIR करने से मना कर दिया. पर यह खबर मिडिया में जंगल के आग की तरह फैली और मिडिया के दबाव ने पुलिस को जून,२००७ में केस दर्ज करने पर मजबूर कर दिया.

इसके बाद शुरू हो गया ,चंद्रपति देवी पर विपत्तियों का सिलसिला. उन्हें केस वापस लेने के लिए एक करोड़ रुपये तक ऑफर किए गए. यह धमकी भी दी गयी कि, दो बेटियाँ हैं,उनकी इज्ज़त भी खतरे में आ सकती है. पर चट्टान सी माँ एक पल को नहीं डिगी. उन्होंने अपने बेटे के कातिलों को सजा दिलवाने की ठान रखी थी. गाँव वालों ने उन्हें जात बाहर कर दिया. कोई उनसे बात नहीं करता. बनिया ने समान देने से मना कर दिया .उन्हें दूध और राशन नहीं मिल पाते. रोज धमकियां मिलतीं. पुलिस में शिकायत करने पर मिडिया के दबाव से पुलिस ने उन्हें पुलिस संरक्षण प्रदान किए.और उनके तीन साल पुलिस संरक्षण में ही बीते. वे घर से बाहर पुलिस के साए के बिना कदम नहीं रख सकती थीं.

चंद्रपति देवी का संघर्ष रंग लाया और करनाल सेशन कोर्ट की जज सुश्री 'वाणी गोपाल शर्मा' ने अपने ऐतिहासिक फैसले में पहली बार "ऑनर किलिंग' के दोषी पाए जाने पर 5 लोगों को फांसी और 1 को उम्रकैद सुनायी.

यह पूछने पर कि गाँव के पंचायत से लड़ने की हिम्मत आपमें कहाँ से आई? वे कहती हैं, मैं सारे दिन रो सकती थी, पूरी ज़िन्दगी दुःख मना सकती थी.पर उस से क्या फायदा होता? किसी को कोई सबक नहीं मिलता और यही रीत बार बार दुहराई जाती.इसलिए माँ कितनी भी दुखियारी हो पर उसे अपने बच्चों के न्याय के लिए लड़ना ही चाहिए. मैंने अपना बेटा खो दिया पर शायद मेरे कई बेटे बच जाएँ .

चंद्रपति देवी का कहना है,हमें अपनी शक्ति का अहसास होना चाहिए और अपने ऊपर विश्वास होना चाहिए. जिसके साथ भी यह अत्याचार होता है,उसे हिम्मत जुटा कर इसका विरोध करना चाहिए और किसी भी स्थिति का सामना करने को खुद को तैयार करना चाहिए. पर वे बड़े अफ़सोस से यह भी कहती हैं, "जमाना बदल रहा है पर कोई भी बदलाव कैसे आएगा अगर, पुरुष अपनी बहन और बेटियों की हत्या करने से नहीं हिचकते"

All India Democratic Women 's Association की अध्यक्ष :जगमती सांगवान" का कहना है कि "चंद्रपति देवी" के असीम साहस ने कई नए द्वार खोल दिए हैं. पहले भी 'ऑनर किलिंग' होते आए हैं. पर पीड़ित परिवार ने कभी आगे आ कर शिकायत दर्ज कराने की हिम्मत नहीं दिखाई पर अब चंद्रपति देवी का सहस देख कई लोग आगे आयेंगे और इस अमानवीय प्रथा को जड़ से ख़त्म करने में सहायता मिलेगी.

April 01, 2010

कम नुक्सान वाले नहीं ज्यादा फायदे वाले विकल्प चुनिये

शादी और लिव इन रिलेशन शिप दो विकल्पों मे से किसी एक का चुनाव करना हो तो नारी को शादी का करना चाहिये क्युकी उसमे वो कम नुक्सान मे रहेगी , पिछली दो तीन पोस्ट से नारी ब्लॉग पर इसी प्रकार कि ध्वनि मिल रही हैं कमेन्ट मे । इसके अलावा और ब्लोग्स पर भी जहा इन विषयों पर चर्चा हो रही हैं वहा भी यही बात कही जा रही हैं कि लिव इन रिलेशन शिप मे नारी का ज्यादा नुक्सान हैं और शादी मे कम ।

यानी
नारी को जो भी मिलना हैं उसमे "नुक्सान " ही ज्यादा हैं और उसके विकल्पों के चुनाव मे भी " कम नुक्सान " के विकल्प कि बात होती हैं ।

नारी कभी उन विकल्पों कि और ध्यान क्यूँ नहीं देती हैं , या नारी का ध्यान उन विकल्पों कि और क्यूँ नहीं दिलवाया जाता हैं जहान नारी का फायदा कम या ज्यादा हो । ये नुक्सान कि संस्कृति और परम्परा कि तराजू मे नारी कब तक अपने आप को तौलती रहेगी ।

क्यूँ नारी को हमेशा ये लगता हैं कि उसको "सुरक्षा" चाहिये । दो नारियां अगर कहीं एक साथ जाती हैं या रहती हैं तो क्यूँ कहा जाता हैं " दोनों अकेली रहती हैं या वो दोनों लडकिया अकेली जा रही हैं " ?

किसी भी विकल्प का चुनाव अगर आप इसलिये करते हैं कि आप को पुरुष कि सुरक्षा चाहिये तो आप "सेल्फिश" हैं और दूसरी अहम् बात जब आप किसे सुरक्षा कि दरकार रखते हैं तो आप उसके "नीचे " खुद ही आ जाते हैं । यानी दोयम का दर्जा आप खुद स्वीकारते हैं और अगर आप ये खुद स्वीकारते हैं तो आप को "शोषण " कि शिकायत का कोई अधिकार ही नहीं हैं ।

अपनी जिम्मेदारी जब तक नारी खुद नहीं उठायेगी तब तक हर विकल्प मे वो "कम नुक्सान " खोजेगी ।

कुछ फायदे के विकल्प हैं

१८ साल तक स्कूली शिक्षा मे अच्छे नम्बर
स्नातक कि परीक्षा मे अच्छे नम्बर
उसके साथ साथ कोई ट्रेनिंग जो आप को स्वाबलंबी बना सके
२५ वर्ष तक हर हाल मे अपने आप को स्वाबलंबी बनाकर या तो नौकरी , या कोई भी ऐसा काम जो आप को एक रेगुलर आमदनी दे सके और इसके साथ घर के हर काम मे आप कि निपुणता क्युकी पढने का मतलब ये नहीं होता कि हम को खाना बना ना आये । खाना बनाने से कोई शोषण नहीं होता । हर वो काम जिस पर आप किसी पर भी निर्भर हो उसको सीख कर खुद करे । ताकि आप फक्र से कह सके अगले जन्म मोहे बिटिया ही कीजो
२५ वर्ष कि आयु के बाद हर कोई इतना परिपक्व हो जाता हैं कि वो अपनी आगे कि जिन्दगी के विषय मे रास्ता निर्धारित कर सकता हैं ।


वोमन एम्पावरमेंट यानी नारी सशक्तिकरण इसी दिशा मे एक पहल हैं जहां हर स्त्री को आत्म निर्भर हो कर अपनी रोजी रोटी का जुगाड़ करना आना चाहिये उसके बाद आप किस के साथ और कैसे इस रोटी को बाँट कर खाए ये आप पर निर्बर करेगा

अविवाहित रहना
, विवाह करना , लिव इन रिलेशनशिप रखना या समलैगिक सम्बन्ध रखना इन मे से किसी भी विकल्प को चुनने का अधिकार आज कोर्ट ऑफ़ ला आप को देने को तैयार हैं लेकिन उसके लिये मानसिक परिपक्वता आप को शिक्षा और आप का स्वाबलंबन देगा और आर्थिक रूप से स्वतंत्रता आप को हर परतंत्रता से आजादी देगी
आपनी सोच को स्वतत्र करे और जो कहे वही करे ताकि प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणं

क्यूँ आप ऐसा विकल्प चुनना चाहती हैं जिस मे "घाटा या नुक्सान कितना कम हैं " देखना पडे क्यूँ नहीं उन विकल्पों को अपनाए जिनमे केवल फायदा हैं । और अपनी बेटियों को भी फायदे के विकल्प ही सुझाये ।


अपने को इतना मजबूत करिये कि वो अधिकार जो आप को नहीं हैं आप उनको अपने अभिभावकों से ले सके


आज के लिये इतना ही । इस पोस्ट मे जितने भी लिंक हैं वो सब इन्ही विषयों पर नारी ब्लॉग पर आई पुरानी पोस्ट के हैं । जरुर पढे और अपनी राय दे ।


BE INDEPENDENT IN YOUR MIND BECAUSE ALL THINGS START AND END WITH MIND
ITS YOUR COURAGE THAT WILL PAVE THE PATH FOR OTHER WOMAN AND ITS TIME TO MOVE FORWARD IN FASTER LANE .

FORGET CHANGING THE SOCIETY CHANGE YOURSELF MAKE A NEW SOCIETY WHERE EVERY ADULT IS A INDIVIDUAL WHO HAS EQUAL RIGHTS AND OPPORTUNITIES TO DECIDE WHAT IS GOOD OR BAD FOR THEM WITH THE BIAS OF GENDER , CAST OR CREED .

LEARN AS MUCH YOU CAN , EARN AS MUCH YOU CAN . GOD HAS GIVEN US JUST ONE LIFE TO LIVE SO LIVE IT TO THE MAXIMUM DONT WASTE IT

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