कल से चर्चा का विषय बना हुआ हैं एक विडिओ जिसमे एक लड़की को सारे आम सड़क पर मोलेस्ट किया जा रहा हैं और मज़ा लिया जा रहा हैं
लिंक ये देखिये
चर्चा यहाँ भी देखिये
कितनी आसानी से एक नहीं कई सारे मेढक राज कुमारी की गोद में कूद कर राजकुमार बनाना के लिये तैयार हो गए कितनी आसानी से लोग इस कहानी को महज कहानी मान कर मेढ़को को बचाने की पैरवी करते हैं रचना जी नें मेंढक की सहज कूद को अनावश्यक ही एक दुखद किस्से से जोड दिया, यदि मार भुन कर खाना मात्र प्रतीकात्मक है तो मेंढक की कूद में तो ऐसा कोई प्रतीक तक नहीं, चर्चा को इमोशनल चुपी देने के उद्देश्य से नाहक और असंगत अरूणा शानबाग का उल्लेख किया गया।
{हंसराज जी लिंक दिया हैं आप पर कोई व्यक्तिगत आक्षेप नहीं किया हैं ये कमेन्ट किसी भी बहस में कोई भी कभी भी दे सकता हैं और पहले भी दिया हैं }
ख़ैर इस विडियो से नेट पर उपस्थित समुदाय को अपनी बेटी के लिये एक डर का एहसास हुआ .
अपनी बेटी अपनी दूसरे की लड़की या औरत .
अपनी बेटी , अपना अंश या अपनी इज्ज़त
दूसरे की बेटी महज शरीर एक विपरीत लिंग .
इस पोस्ट का मसकद हैं वो विज्ञापन जो आज कल टी वी पर आ रहा हैं
विज्ञापन हैं aircel कम्पनी का जहां वो मोबाइल पर विडियो बनाना कितना सस्ता और आसन हैं बता रही हैं .
एक विज्ञापन में एक लडके को सामान लाते दिखाया जा रहा है और उसका मित्र विडियो बना रहा हैं पर किस बात का
उसके पेंट उतारने का . फिर ये विडियो आपस में बांटा जायेगा .
इस प्रकार के वाहियात विज्ञापन को हटवाना जरुरी हैं क्युकी ये ही सब प्रेरणा देते हैं हमारे बच्चो को की वो इस प्रकार के विडिओ बनाये और अपलोड और शेयर करे
ये सब हास्य नहीं हैं
नारी ब्लॉग पर मैने ये लिंक पहले भी दिया हैं फिर दे रही हूँ
इस लिंक पर जा कर अपनी आपत्ति दर्ज करने मे आप को महज कुछ मिनट ही लगेगे .
advertising Standards Council of India
जिस कम्पनी के खिलाफ आपत्ति दर्ज करनी हैं वो हैं http://www.aircel.com/AircelWar/
आप से आग्रह हैं की अपनी आपत्ति दर्ज करवा दे
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ऐसी परिस्थितियों में तो वह लडकी सचमुच प्रतिक्रियात्मक होकर एक दो का संहार कर डाले तो कम से कम मुझे इसमें न तो कोई बुराई नजर आती है और न कोई आश्चर्य होता है.हाँ ये अलग बहस का विषय हैं कि इससे पुरूष सुधरेंगे या नहीं या ये तरीका खुद महिलाओं के लिए भी आसान है या नहीं और वो मानसिक रुप से ऐसे पुरुषों को दंड देने ही सबक सिखाने के लिए कितना तैयार है.होना तो ये चाहिए कि लडकों को बचपन से ही सिखाया जाए कि स्त्री का भी अपना एक अलग अस्तित्व है,अपनी एक गरीमा है और उन्हें(लडकों को) नियंत्रण में रखा जाए.और ये काम केवल स्त्री के करने से नहीं होगा यह एक कडवी सच्चाई है तो फिर ये काम करेगा कौन? क्या पुरुष ?जो खुद ही इस तरह की सोच रखे हुए है और जो ऐसी सोच नहीं रखते वो इस मामले में असंवेदनशील (कृप्या इस शब्द से कनफ्यूज न हों यह ऐसे पुरुषों के लिए कहा है जो छेडछाड को गलत मानते है खुद नहीं करते है लेकिन इसे सामजिक समस्या के बजाए सिर्फ स्त्रियों का मुद्दा मानते हैं) और लापरवाह बने हुए हैं या फिर वह व्यवस्था जो खुद स्त्री विरोधी मानसिकता से ग्रस्त है?
ReplyDeleteएक एड में लडकी दुर्घटनाग्रस्त लडके का हालचाल पूछने के लिये फोन करती है तो लडका अपने दोस्त से कहता है कि "दो पैसे में दो पट रही हैं।"
ReplyDeletecompany kaa naam daekar please complain karna shuru karae
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ReplyDeleteरचना जी,
ReplyDeleteउपरोक्त कमेंट का अंश व्यक्तिगत आक्षेप हो तब भी क्या है? मैं इतना द्वेष पालता भी नहीं कि सभी को एक समान द्वेषपूर्ण नजर से देखने का दंश संग्रह करूँ। और इस तरह द्वेष की अगन में दुर्जनो के साथ साथ सज्जनों स्नेहीयों को भी आंच में दग्ध करूँ।
कहानी के काल्पनिक पात्रों को सजा देने के लिए किसी सजीव पीडित के प्रति सम्वेदनशील हुआ जाय।
बाकी अश्लीलता को सामान्य बनाकर परोसा जाना बंद होना चाहिए। लोगों में आक्रोश, द्वेष, हिंसा, अत्याचार, असहिष्णुता का शनै शनै आरोपण रूकना ही चाहिए, मैं सहमत हूँ।
सुधार्……
Delete@कहानी के काल्पनिक पात्रों को सजा देने के लिए किसी सजीव पीडित के प्रति सम्वेदनशील हुआ जाय।
को……>
"कहानी के काल्पनिक पात्रों को सजा देने के लिए किसी सजीव पीडित के प्रति क्यों असम्वेदनशील हुआ जाय।"
मुद्दा काल्पनिक कहानी में भी संवेदनशीलता v/s सजा का था और मुद्दा असली भुक्त भोगी में भी वही हैं . और कहानियाँ / साहित्य जब रचा जाता हैं उस समय वो काल्पनिक नहीं होता हैं .
Deleteसंवेदनशील होजाना काफी नहीं हैं सजा देना भी जरुरी हैं
काली का अवतार ही नारी ले तब ही शायद मुक्ति संभव हैं
कल की पोस्ट में कुछ लिंक दूंगी जहां इसी तरह की मोलेस्टेशन की वारदात पर ब्लॉग जगत ने क्या क्या कहा हैं आप देख सकेगे और आप को पता चलेगा की कितना "संवेदनशील " हैं आम समाज
उफ्फ्फ... यह जानकार कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं रही है... आँखों में आंसू और जुबां पर ताला सा पड़ गया है... हम मर्द जल्लाद से कम नहीं हैं...
ReplyDeleteहमारा समाज जिम्मेदार हैं जो "मर्द " को संस्कार देना भूल जाता हैं शाहनवाज . ये बताना भूल जाता हैं की नारी और पुरुष के सब अधिकार बराबर हैं इस लिये सीमा में रह कर व्यवहार करो
Deleteदोष उन लड़कों का नहीं बल्कि पूरी मर्द कौम की सोच का है, हम कब तक महिलाओं को पर्सनल प्रोपर्टी समझते रहेंगे?
ReplyDeleteसही आव्हान ,समाज में नारी की गरिमा को बनाये रखने के लिए यह जरूरी है अन्यथा समाज गर्त में चला जायेगा.जो लोग आज यह सब कर रहे हैं या इसे किसी भी रूप में बढ़ावा दे रहें हैं ,उन्होंने आगे की जरा भी कल्पना नहीं की है ,इन हालत में यह सब किसी के भी साथ हो सकता है,अपमान का यह भस्मासुर सभी को भसम कर देगा और तब रोने पछताने से कुछ भी नहीं होगा.
ReplyDeleteअसली भारत यही है, तसवीरें झूठ नहीं कहतीं, अगर ऐसा नहीं है तो शाम होते ही अपने बच्चों की चिंता क्यों होती ???? क्या नहीं है यहाँ भ्रटाचार, अराजकता, गुंडाराज वैगरह वैगरह वैगरह......
ReplyDeleteअच्छाईयाँ गिनना चाहे तो सिफ़र ही हाथ आएगा....कोशिश कीजिये, अगर मैंने ग़लत कहा है तो....
संस्कार की पुंगी बजाने वालों से ये जानना चाहूँगी..क्या यही संस्कार लिए हैं हमारी भावी पीढ़ी ने ??
याद होगा अभी अभी एक पोस्ट पर मैंने कहा था की पुरुष मजबूर कर रहा है की स्त्री को क्रूर हिंसक बनने के लिए और हालत नहीं बदले तो ये समय जल्द ही आयेगा किन्तु ये नहीं पता था की मात्र दो चार दिन बाद ही मुझे ये कहना पड़ेगा की महिलाओ को हिंसक और क्रूर होने का समय आ गया है |
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