दिल्ली विश्विद्यालय के कॉलेज में एक प्रावधान हैं की जिस कॉलेज में आप प्राध्यापक या प्राध्यापिका हैं उस कॉलेज में आप के वार्ड यानी बच्चे के लिये एक सीट होती हैं जो कट ऑफ से कम अंक होने पर भी उसको एडमिशन दिलाती हैं . ये उसी तरह हैं जैसे सरकारी नौकरी में कई प्रावधान हैं पत्नी और बच्चो को नौकरी मिलने के .
जी हाँ ये एक प्रकार का रेसेर्वेशन ही हैं लेकिन इसको प्रेव्लीज कहा जाता हैं क्युकी माना जाता हैं की साल दो साल मे कोई एक सीट किसी कॉलेज में इस तरह भरी जाती हैं .
अब जानिये किरोड़ीमल कॉलेज दिल्ली का हाल , यहाँ भी ये प्रावधान हैं और इसके साथ साथ ये भी प्रावधान हैं की प्राध्यापक या प्राध्यापिका की ग्रैंड चाइल्ड को भी ये लाभ दिया जाएगा अगर उनके बच्चे ने ये लाभ पहले नहीं उठाया हो तो .
लेकिन केवल और केवल लडके के बच्चे इस लाभ को उठा सकते हैं लड़की के बच्चो को इस का फायदा नहीं मिलेगा क्युकी वो आप के खानदान के नहीं होते हैं . वो पराये खानदान के हैं .
ये यू जी सी का नियम नहीं हैं , कॉलेज का अपना बनाया नियम हैं . ये उनलोगों का बनाया नियम जिनकी पढाई , लिखाई , मानसिक स्तर और सोच पर ऊँगली उठाना ही गलत माना जाता हैं . ये टीचिंग कम्युनिटी के लोग हैं जिनसे समाज मे ये उम्मीद की जाती हैं की वो बेटे और बेटी में विबेध नहीं करते होंगे .
लड़की के बच्चे आप के खानदान के नहीं हैं इस लिये आप की किसी भी चीज़ पर उनका अधिकार कैसे हो सकता हैं . कॉलेज की सीट भी अब बेटो और उनके खानदान का प्रीव्लेज हैं .
बहुत सी बाते हैं जैसे मान लीजिये किसी प्राध्यापक या प्राध्यापिका के केवल लडकियां ही हो और वो चाहे की उसके ग्रांड चिल्ड्रेन उसके कॉलेज मे पढ़े तो ये नहीं संभव हैं क्युकी उनको इसके लिये बेटा पैदा करना चाहिये ही था अब क्युकी वो बेटा पैदा करने मे अक्षम थे तो उनकी लड़की के बच्चे उनके नहीं हुए . उनको प्रीव्लेज नहीं मिल सकता
कल जब वो प्राध्यापक या प्राध्यापिका वृद्ध होगे और अपने नातिन / नाती के साथ रहना चाहेगे क्युकी पोता पोती तो हैं नहीं {और ये अब कानून नाती / नातिन को करना होगा लिंक देखे } तो उनके नाती / नातिन उनसे पूछ तो सकते ही हैं की जब हम आप के हैं ही नहीं तो किस अधिकार से आप को हम अपने साथ रखे
कितनी अजीब बात हैं की जब भी किसी प्रेव्लीज की बात होती हैं केवल बेटा और उसके बच्चे ही याद आते हैं .
कितने माँ बाप हैं जो ऐसी परिस्थिति मे बेटियों को जनम देना चाहेगे
शायद जो जितना ज्यादा पढ़ा हैं वो उतना ज्यादा बेटियों से नफरत करता हैं और उनको बेटे के समान मानता ही नहीं हैं .
किसी भी प्रकार का रिजर्वेशन गलत हैं ये मानते हुए इस सुविधा को पूरी तरह ना लागू किया गया होता तो ठीक था लेकिन सुविधा दे कर लिंग विभेद करना और वो भी आज के समय मे , और सिविल सोसाइटी के उनलोगों द्वारा जो दूसरो को शिक्षित करते हैं .
क्या शिक्षा मिल रही हैं महज ये की बेटी अपनी नहीं हैं ?? उसके बच्चे अपने नहीं हैं ? उनको आप के खानदान का नहीं माना जा सकता हैं .
एक तरफ कानून लड़की से उम्मीद करता हैं की वो अपने माता पिता का ख्याल रखे , वही दूसरी तरफ बेटियों को मूल भूत बराबरी के अधिकार से ही वंचित किया जाता हैं .
आज भी कितना विभेद हैं और आज भी मानसिक रूप से कितने अपरिपक्व हैं हमारे समाज के वो लोग जो सबसे ज्यादा शिक्षित हैं
कभी कभी जब बच्चे कहते हैं हमारे टीचर को कोई समझ ही नहीं हैं तो लगता हैं इन बच्चो को तमीज ही नहीं सीखी गई हैं , आज की पीढ़ी अध्यापको का सम्मान ही नहीं करती हैं
फिर जब ऐसा कुछ सामने आता हैं तो लगता हैं टीचर्स से ज्यादा दक्यानुसी , कानून की अवेहलना करने वाले शायद ही कोई और हो . पढाई लिखाई से मानसिक चक्षु खुलते हैं ऐसा सुना था पर अब लगता हैं ये गलत हैं .
चलते चलते बता दू किसी भी कॉलेज मे ये नियम कॉलेज के अध्यापक ही बनाते हैं स्टाफ कौंसिल की मीटिंग मे और मुझे आश्चर्य हैं की जिस कॉलेज मे इतनी वोमन टीचर्स भी वहाँ इस प्रकार के कानून को ना केवल बनाया गया अपितु उसको निभाया भी जा रहा हैं
चिराग तले अँधेरा इसी को कहते हैं
All post are covered under copy right law . Any one who wants to use the content has to take permission of the author before reproducing the post in full or part in blog medium or print medium .Indian Copyright Rules
जी हाँ ये एक प्रकार का रेसेर्वेशन ही हैं लेकिन इसको प्रेव्लीज कहा जाता हैं क्युकी माना जाता हैं की साल दो साल मे कोई एक सीट किसी कॉलेज में इस तरह भरी जाती हैं .
अब जानिये किरोड़ीमल कॉलेज दिल्ली का हाल , यहाँ भी ये प्रावधान हैं और इसके साथ साथ ये भी प्रावधान हैं की प्राध्यापक या प्राध्यापिका की ग्रैंड चाइल्ड को भी ये लाभ दिया जाएगा अगर उनके बच्चे ने ये लाभ पहले नहीं उठाया हो तो .
लेकिन केवल और केवल लडके के बच्चे इस लाभ को उठा सकते हैं लड़की के बच्चो को इस का फायदा नहीं मिलेगा क्युकी वो आप के खानदान के नहीं होते हैं . वो पराये खानदान के हैं .
ये यू जी सी का नियम नहीं हैं , कॉलेज का अपना बनाया नियम हैं . ये उनलोगों का बनाया नियम जिनकी पढाई , लिखाई , मानसिक स्तर और सोच पर ऊँगली उठाना ही गलत माना जाता हैं . ये टीचिंग कम्युनिटी के लोग हैं जिनसे समाज मे ये उम्मीद की जाती हैं की वो बेटे और बेटी में विबेध नहीं करते होंगे .
लड़की के बच्चे आप के खानदान के नहीं हैं इस लिये आप की किसी भी चीज़ पर उनका अधिकार कैसे हो सकता हैं . कॉलेज की सीट भी अब बेटो और उनके खानदान का प्रीव्लेज हैं .
इस से बड़ा क्या प्रूफ हो सकता हैं की लड़कियों को आज भी हमारा समाज अपना नहीं मानता हैं ,
जहां कानून अब मार्कशीट पर माँ का नाम मांगता हैं वहाँ कोई कॉलेज अपने प्राध्यापक के ग्रैंड चिल्ड्रेन मे लिंग भेद कर रहा हैं और पिछले कई सालो से कर रहा हैं .
बहुत सी बाते हैं जैसे मान लीजिये किसी प्राध्यापक या प्राध्यापिका के केवल लडकियां ही हो और वो चाहे की उसके ग्रांड चिल्ड्रेन उसके कॉलेज मे पढ़े तो ये नहीं संभव हैं क्युकी उनको इसके लिये बेटा पैदा करना चाहिये ही था अब क्युकी वो बेटा पैदा करने मे अक्षम थे तो उनकी लड़की के बच्चे उनके नहीं हुए . उनको प्रीव्लेज नहीं मिल सकता
कल जब वो प्राध्यापक या प्राध्यापिका वृद्ध होगे और अपने नातिन / नाती के साथ रहना चाहेगे क्युकी पोता पोती तो हैं नहीं {और ये अब कानून नाती / नातिन को करना होगा लिंक देखे } तो उनके नाती / नातिन उनसे पूछ तो सकते ही हैं की जब हम आप के हैं ही नहीं तो किस अधिकार से आप को हम अपने साथ रखे
कितनी अजीब बात हैं की जब भी किसी प्रेव्लीज की बात होती हैं केवल बेटा और उसके बच्चे ही याद आते हैं .
कितने माँ बाप हैं जो ऐसी परिस्थिति मे बेटियों को जनम देना चाहेगे
शायद जो जितना ज्यादा पढ़ा हैं वो उतना ज्यादा बेटियों से नफरत करता हैं और उनको बेटे के समान मानता ही नहीं हैं .
किसी भी प्रकार का रिजर्वेशन गलत हैं ये मानते हुए इस सुविधा को पूरी तरह ना लागू किया गया होता तो ठीक था लेकिन सुविधा दे कर लिंग विभेद करना और वो भी आज के समय मे , और सिविल सोसाइटी के उनलोगों द्वारा जो दूसरो को शिक्षित करते हैं .
क्या शिक्षा मिल रही हैं महज ये की बेटी अपनी नहीं हैं ?? उसके बच्चे अपने नहीं हैं ? उनको आप के खानदान का नहीं माना जा सकता हैं .
एक तरफ कानून लड़की से उम्मीद करता हैं की वो अपने माता पिता का ख्याल रखे , वही दूसरी तरफ बेटियों को मूल भूत बराबरी के अधिकार से ही वंचित किया जाता हैं .
आज भी कितना विभेद हैं और आज भी मानसिक रूप से कितने अपरिपक्व हैं हमारे समाज के वो लोग जो सबसे ज्यादा शिक्षित हैं
कभी कभी जब बच्चे कहते हैं हमारे टीचर को कोई समझ ही नहीं हैं तो लगता हैं इन बच्चो को तमीज ही नहीं सीखी गई हैं , आज की पीढ़ी अध्यापको का सम्मान ही नहीं करती हैं
फिर जब ऐसा कुछ सामने आता हैं तो लगता हैं टीचर्स से ज्यादा दक्यानुसी , कानून की अवेहलना करने वाले शायद ही कोई और हो . पढाई लिखाई से मानसिक चक्षु खुलते हैं ऐसा सुना था पर अब लगता हैं ये गलत हैं .
चलते चलते बता दू किसी भी कॉलेज मे ये नियम कॉलेज के अध्यापक ही बनाते हैं स्टाफ कौंसिल की मीटिंग मे और मुझे आश्चर्य हैं की जिस कॉलेज मे इतनी वोमन टीचर्स भी वहाँ इस प्रकार के कानून को ना केवल बनाया गया अपितु उसको निभाया भी जा रहा हैं
चिराग तले अँधेरा इसी को कहते हैं
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बहुत अच्छी बात बताई है रचना, ये हमारे उस वर्ग की पोल खोल रहे हें जो बुद्धिजीवी और आने वाली पीढ़ी के भविष्य को एक आकार देते हें. ये आकार शायद इसी तरह से दिया जा रहा है तभी तो हम लड़की और लड़के के भेद को नहीं मिटा पा रहे हें. कॉलेज की इस नीति को कोर्ट में चुनौती देना चाहिए और उनसे पूछा जन चाहिए कि इस तरह के प्रावधान का औचित्य क्या है? कैसे उस कॉलेज के टीचर आँखें मूँद कर इन नियमों को चलने दे रहे हें.
ReplyDeleteबेटियाँ दूसरे खानदान में जाकर अगर उस परिवार का हिस्सा बन जाती हें तो अपने माँ बाप के खून के रिश्ते से अलग तो नहीं हो जाती हें. उन्हें संपत्ति में अधिकार है तो फिर इन सुविधाओं में क्यों नहीं ? ये भारतीय क़ानून व्यवस्था के लिए एक चुनौती है. एक तरफ सरकार सरकारी कर्मचारियों की अविवाहित / परित्यक्ता या विधवा बेटी को पिता या माता की पेंशन का हकदार बना रही है वहीं दूसरी ओर ऐसी नीति के अस्तित्व को कैसे मना जा सकता है?
बड़ा गंभीर मुद्दा उठाया है आपने। इसकी लड़ाई तो लड़नी ही चाहिए। यह सरकारी संस्थानों में भी है कि बेटी की शादी हुई नहीं कि वह फैमिली मेम्बर नहीं रह जाती।
ReplyDeleteइस पर सुधार की ज़रूरत है।
कुछ नियम /कानून पर पुनर्विचार की आवश्यकता है . जब आज कानून महिलाओं को पैतृक संपत्ति में हिस्सा दे रहा है ,अभिभावकों के प्रति बेटियों की जिम्मेदारी भी निर्धारित कर रहा है तो इसे अन्य सुविधाओं पर भी लागू किया जाना चाहिए .
ReplyDeleteपहली बात तो मै इस बात का विरोध करती हूं की जो सुविधा आप के बच्चो ने नहीं ली तो वो आप के एक और पीढ़ी आगे बढ़ा जाये , ये गलत नियम है मै इस नियम का ही विरोध करती हूं | आज के समय में जब अन्य बच्चो के लिए कही पर प्रवेश लेना इतना मुश्किल हो रहा है तो किसी एक को सुविधा दो पीढियों तक जारी रखना बहुत ही गलत है | आप की इस बात से बिल्कुल सहमत हूं की जब सुविधा दिया ही है तो बाद बेटे के बच्चो तक क्यों समित है निश्चित रूप से ये गलत है जब क़ानूनी रूप से बेटी को पिता की संपत्ति पर बराबर हक़ है तो फिर इस सुविधा पर क्यों ना हो | जब हमारे देश में पढ़े लिखो का ये हाल है तो बाकियों को क्या कहा जाये |
ReplyDeleteअच्छा मुद्दा उठाया हैं.
ReplyDeleteऐसे पता नहीं कितने स्तरों पर भेदभाव हो रहा हैं जिनका हमें पता ही नहीं चलता.उपरोक्त सभी टिप्पणीकारों से सहमत हूँ.
Pardon my language.
ReplyDeleteThis is utter BULLSHIT.
शैक्षणिक संस्थान ही इस तरह का लिंग विभाजन करेंगे..कल्पना से परे की बात है..शिक्षा क्या देते होंगे ये...?
इस नियाम का जम कर विरोध होना ही चाहिए..मैं इसका तहे दिल से भर्त्सना करती हूँ...
डिग्रियां हासिल करने से मानसिक चक्षु नहीं खुलते, इसमें कोई शक नहीं,करोड़ीमल कॉलेज जो कर रहा है वो बिल्कुल गलत कर रहा है।
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