नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

July 30, 2009

इस लिंक को जरुर देखे और सभी महिलाए तो जरुर ही देखे । हिम्मत हैं इस लड़की मे .

इस लिंक को जरुर देखे और सभी महिलाए तो जरुर ही देखे । हिम्मत हैं इस लड़की मे .

या इस विडियो को देखे


इसी को कहते हैं
THE INDIAN WOMAN HAS ARRIVED

इस बहादुर लडकी का नाम Rali Faihriem हें

July 29, 2009

जेंडर बायस ना फैलाये हिन्दी ब्लॉग जगत मे अलबेला खत्री जी क्युकी हमने इसको दूर करने के लिये बहुत परिश्रम किया हैं

अलबेला खत्री आप हिन्दी ब्लॉग जगत की लेखिकाओ के प्रति जो शब्द इस्तमाल कर रहे हैं मुझे आपति है और ये एक
प्रकार का सेक्सुअल हरासमेंट हैं । हिन्दी ब्लॉग जगत मे पहले भी लेखिकाओ के प्रति इस प्रकार की भाषा का प्रयोग हुआ हैं और तब भी आपति हुई हैं ।

जेंडर बायस ना फैलाये हिन्दी ब्लॉग जगत मे अलबेला खत्री जी क्युकी हमने इसको दूर करने के लिये बहुत परिश्रम किया हैं

July 24, 2009

झारखण्ड के ब्लॉगर बंधुओ से विनम्र आग्रह

कल पटना मे जिस तरह एक झारखण्ड की लड़की के साथ सड़क पर तमाशा हुआ वो कोई नया नहीं हैं । आज कल सबसे ज्यादा "मैड" झारखण्ड इलाके से ही दिल्ली मे काम कर रही हैं ।
प्लेसमेंट एजेन्सी इन मैड को इनके घर से नौकरी दिलाने के लिये लाती हैं । इनके माता पिता साल भर के तक़रीबन १२ हज़ार रूपए प्लेसमेंट एजेन्सी से अडवांस ले लेते हैं । प्लेसमेंट एजेन्सी इन लड़कियों को दिल्ली मे "मैड " का काम करने के लिये घरो मे लगवा देती हैं । हर लड़की के लिये प्लेसमेंट एजेन्सी ६००० रुपए सिक्यूरिटी के तहत लेती हैं और इसको वापस नहीं करती हैं । महीने का २०००-३००० रुपया हर मैड की तनखा होती हैं जिसको ३ महिना का एजेन्सी अडवांस मे लेती हैं ।
लड़कियों पर इसके बाद क्या गुज़रता हैं इस से एजेन्सी का कोई मतलब नहीं होता और लड़किया मुसीबत मे घर भी वापस नहीं जा सकती क्युकी घर पर उनकी सलेरी अडवांस मे ली जा चुकी हैं ।

जो लोग झारखण्ड के हैं वो कृपा करके अपने चारो तरफ़ एक जागृति लाने की कोशिश करे । अपने घरो की महिला को कहे की वो काम वाली बाई से इस विषय मे बात करे और उन्हे समझाए की इस प्रकार से बेटियों को अडवांस पैसा ले कर ना बेचे । जब उनको कोई समझायेगा तो बात फैलेगी और हो सकता हैं कोई एक लड़की भी बच जाए इस ट्रैप से ।

इस विषय मे झारखण्ड के घर घर मे बात होनी जरुरी हैं क्युकी वहाँ की लड़कियों के चरित्र को ले कर समाज मे एक ग़लत धारणा बैठती जा रही हैं ।

July 22, 2009

फिर चाहे वो "राखी का स्वयम्बर " हो या "सच का सामना " या "मुझे इस जंगल से बचाओ " मकसद सिर्फ़ इतना हैं कि पैसा हो ताकि जिंदगी आसान हो ।

राखी सावंत मीडिया पर चिल्ला चिल्ला कर राम को खोज रही हैं । राखी से सीता बनने के सफर पर चल रही हैं !!! लेकिन क्या राखी सीता बन कर राम को पाकर वनवास के लिये भी तैयार हैं ?

बहुत से ब्लॉग पर राखी के अबला , बला और ना जाने किन किन शब्दों का प्रयोग हो रहा हैं जो ये शत प्रतिशत सिद्ध करता हैं की लोग "राखी का स्वयम्बर" नामक धारावाहिक को देख जरुर रहे हैं ।

वास्तव मे राखी का सफर एक लोअर मिडिल क्लास लड़की की अम्बिशन का सफर हैं जो बार बार ये दिखाती हैं की वो अपने परिवार के लिये कितना कुछ सक्रिफ्हैस करके मिडिल क्लास तक पहुच गयी हैं और अब हर मिडिल क्लास लड़की की तरह अपने लिये एक राम खोज कर घर बसा कर एक सीता की तरह जिन्दगी यापन करना चाहती हैं ।

राखी अपनी अम्बिशन को पूरा करने की लिये अपनी निज की जिंदगी को जेड गुड्डी की तरह बेच रही हैं ताकि वो अपने लिये वो सब जुगाड़ कर सके जो उसको नहीं मिल सकता । राखी चाहती हैं लोग ऐश्वर्या राय कि तरह उसकी सुन्दरता को भी मानदंड माने । राखी ऐश्वर्या राय से इतनी प्रभावित हैं कि ऐश्वर्या राय के कपडे जिसने डिजाइन किया उसी डिजाइनर से राखी अपने कपडे अपनी शादी के लिये बनवा रही हैं । वही ज्वेलरी डिजाइनर जो ऐश्वर्या राय के लिये गहने बनाती हैं राखी के लिये भी बनायेगी ।

यानी शादी हो ना हो पर राखी ने इस धारावाहिक के माध्यम से इतना पैसा , गहने और कपडे जरुर जोड़ लेगी कि आगे आने वाली उसकी जिंदगी आसानी से बीतेगी ।

पता नहीं इस धारावाहिक मे कोई मानक थे या नहीं उनलोगों के लिये जो विवाह के लिये आये थे पर लगता तो नहीं हैं । कहीं कहीं ये जरुर लगता हैं कि बहुत कम लोग इस धारावाहिक का हिस्सा बनने के लिये आए होगे इसीलिये चॅनल और राखी के पास कोई रिजेक्ट और सेलेक्ट का आप्शन ही नहीं होगा ।

राखी आज घर घर मे जानी जा रही हैं और उसके बारे लोग बात कर रहे हैं ये उपलब्धि राखी के लिये बहुत बड़ी हैं पर पब्लिक मेमोरी बहुत शोर्ट होती हैं और इन gimmick से राखी को पैसा और जीवन यापन के बहुत से सामान तो जरुर मिल जायेगे पर क्या वो प्रसिद्दि मिलेगी जो किसी आर्टिस्ट या डांसर को मिलती हैं ।

जिंदगी अगर प्रसिद्दि से चलती तो शायद सारी दुनिया प्रसिद्ध लोगो से भरी होती हैं पर नहीं जिंदगी कि बेसिक ज़रूरत होती हैं घर चलने के लिये , आराम से रहने के लिये रुपए कि आवश्यकता होती हैं और आज रियल्टी शो के जरिये ये आर्टिस्ट अपने लिये उतना पैसा जमा कर रहे शायद तब के लिये जब पब्लिक मेमोरी से वो गयाब हो चुके हो । हमारे पुराने आर्टिस्ट नाम कमाने के बाद बहुत बार भुखमरी मे अपना बुढापा काट कर रहे हैं , इसलिये ये नयी पीढी अपने लिये धन इकठा कर रही हैं

फिर चाहे वो "राखी का स्वयम्बर " हो या "सच का सामना " या "मुझे इस जंगल से बचाओ " मकसद सिर्फ़ इतना हैं कि पैसा हो ताकि जिंदगी आसान हो


पर दर्शक क्यूँ ये सब देख रहे हैं क्युकी आज कल कोई मकसद नहीं हैं किसी की जिंदगी का , सब के लिये जिंदगी केवल और केवल हँसी मज़ाक हैं , हमारे पास कोई मुद्दा नहीं हैं जिसके प्रति हम अपना समय लगा सके सो टी वी
जरिया हैं दुनिया से जुडे रहने का शायद हां , शायद नहीं पता नहीं

July 20, 2009

प्रतियोगी परीक्षाओं में महिलाओं की फीस माफ

केंद्र सरकार अपने यहां होने वाली नियुक्तियों के मामले में महिलाओं पर खासा मेहरबान हो गई है। अब केंद्र द्वारा संचालित होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं में महिलाएं बगैर कोई फीस दिए शामिल हो सकती हैं। यानी उनकी फीस माफ कर दी गई है।
सरकार की ओर से कहा गया है कि संघ लोक सेवा आयोग [यूपीएससी] व कर्मचारी चयन आयोग [एसएससी] द्वारा आयोजित होने वाली सीधी भर्ती, विभागीय प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने के लिए महिला प्रत्याशियों को अब फीस नहीं देनी होगी। इसके साथ ही आयोग द्वारा लिए जाने वाले साक्षात्कार के लिए भी उन्हें कोई फीस नहीं देना पड़ेगा। हाल ही में केंद्र सरकार ने सभी मंत्रालयों और विभागीय सचिवों, यूपीएससी और कर्मचारी चयन आयोग के संबंधित अधिकारियों को इस बारे में एक पत्र लिखा है। इसमें केंद्र सरकार की नौकरियों में महिलाओं को ईमानदारी पूर्वक बेहतर प्रतिनिधित्व देना सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है।

सरकारी दिशा-निर्देशों की श्रृंखला में यह भी कहा गया है कि चयन समिति का संयोजन ऐसे किया जाना चाहिए ताकि उसमें महिलाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके। दस या उससे अधिक रिक्तियों के लिए चयन समिति का जब गठन हो तो उसमें एक महिला सदस्य का होना अनिवार्य हो। महिलाओं की नियुक्ति के रुझान पर नजर रखने के लिए सभी मंत्रालयों और विभागों से 31 अगस्त तक कुल पदों व कर्मचारियों की संख्या पर सिलसिलेवार रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है।

गौरतलब है कि राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने संसद के दोनों सदनों के संयुक्त संबोधन के दौरान सरकारी नौकरियों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए ठोस उपाय करने को कहा था। इसी के बाद सरकार ने यह कदम उठाया है। सरकार नौकरियों में शारीरिक रूप से अपंग व्यक्तियों का भी विशेष ध्यान रख रही है। हाल के आदेश में कहा गया है कि नौकरी में आने के बाद अपंग हो जाने वाला सरकारी कर्मचारी जिस दिन इसका उचित प्रमाण पेश कर दे, उसी दिन से वह विकलांग कोटे में आरक्षण का लाभ पाने का हकदार होगा।
(साभार: जागरण)
आकांक्षा यादव

सारे adjustment लड़कियों को ही क्यूँ करने होते हैं या उनसे ही क्यूँ अपेक्षित हैं ?

समय तेजी से बदल रहा हैं और लोग इस बदले समय की रफ़्तार को नहीं पहचान रहे हैं । आज नारी अपना पूर्ण विकास कर रही हैं और अपनी बात को कहने के लिये वो पुरजोर कोशिश ,कर रही हैं ।

इंडियन आर्मी मे एक असोसिएशन हैं जिसको आर्मी ऑफिसर की पत्नियां चलाती हैं । इस असोसिएशन का काम हैं उन जवानों की पत्नियों के लिये पैसा इकट्ठा करना जिनके पति शहीद हो जाते हैं । आर्मी अफसर की पत्नियों से अपेक्षित हैं की वो नाच कर , गा कर और जगह जगह शो करके पैसा इकट्ठा करे । इसके अलावा आर्मी ऑफिसर की पत्नियों से अपेक्षित हैं की शहीदों की विधवाओ को आत्म निर्भर banaane मे भी मद्दत करे ।

जो पत्नियां ये सब नहीं करती हैं उनके पतियों की confidential रिपोर्ट मे ये दर्ज हो जाता हैं और उनका प्रमोशन रुक जाता हैं । आर्मी आज भी १९२० के नियमो के हिसाब से चलती हैं । सव्नीत पाल ने कानूनी नोटिस भेजा हैंआर्मी को और रौसमे चुअबे का भी यही मानना हैं की उनके पति का प्रमोशन इसी वज़ह से रोका गया हैं । दोनों ने कहा की अगर उन्हे पहले से पता होता तो वो किसी भी आर्मी ऑफिसर से शादी ना करती क्युकी वो डांस और गाना नहीं कर सकती और वो ये भी नहीं मानती की आज computer के युग मे शहीदों की विधवाओं को चूडियाँ और चप्पले बनाना सीखा कर आत्म निर्भर बनाया जा सकता
हैं ।

कुछ प्रश्न
आज जब लड़किया MBA , doctor और computer engineer बन कर विवाह करती हैं तो उनसे नाचने और गानेकी उम्मीद रखना कितना सही हैं ?

जब आर्मी मे कार्य कर रहे ऑफिसर को ये बात पता होती हैं तो वो ये बात क्यूँ नहीं ये बात अपनी भावी पत्नी को बता देते हैं की उनसे क्या क्या अपेक्षित होगा ?


आर्मी ऑफिसर विवाह के लिये professionally qualified लडकियां जो महत्वाकांक्षी हैं का चुनाव क्यूँ करते हैं ?

आर्मी के अपने नियम हैं जो सिविलिंस से फरक हैं और मै उनमे किसी भी बदलाव की ना तो कामना रखती हूँ ना अपेक्षा , उस पर ऊँगली उठाना भी मेरा मकसद नहीं हैं , बात हमेशा की तरह उसी प्रश्न पर जाती हैं की सारे adjustment लड़कियों को ही क्यूँ करने होते हैं या उनसे ही क्यूँ अपेक्षित हैं ?

July 18, 2009

जेंडर बायस , "violation of equality", पुरूष मानसिकता - एक चिंतन


आज दो खबरों ने ध्यान खीचा । एक ख़बर हिंदुस्तान टाइम्स के मुख्य प्रष्ट पर हैं । ख़बर पढ़ कर सर शर्म से झुक गया । किस सदी मे जी रहे हैं हम । एक मैडल प्राप्त महिला खिलाडी जो कोच बनने की ट्रेनिंग ले रही हैं उस से पार्टी मे चाय नाश्ता परसवाया जाता हैं और उसको इसके बाद जूठे बर्तन भी धोने होते हैं । पूरी ख़बर यहाँ हैं
मेरा मानना हैं की अगर ये कार्य पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं और दोनों जेंडर इसको बारी बारी करते हैं तो इस को करने मे कोई आपति जनक बात नहीं हैं । परन्तु अगर रेनू गोरा और मोनिका को ये काम केवल इस लिये करना हैं की वो महिला हैं और पारम्परिक रूप से ये काम उनको करना चाहिये तो इस सोच की जितनी निंदा की जाए कम हैं और इसके अलावा ये ख़बर इस लिये भी शर्मनाक हैं कि हम हमारे खिलाड़ियों के लिये कितने निर्मम हैं कि उनसे वो करवाते हैं जो उनको मानसिक कष्ट देता हैं .

दूसरा समाचार हैं की एक अविवाहित लड़का जिसकी उम्र १८ वर्ष की हैं वो अपने हर निर्णय को लेने के लिये आजाद हैं कानूनी रूप से लेकिन एक अविवाहित स्त्री किसी भी उम्र के पढाव पर क्यूँ ना हो उसका पिता उसका कानूनी संरक्षक माना जाता हैं यानी नैचुरल गार्डियन । जिस समय का ये कानून हैं उस समय इसको शायद ये ध्यान मे रख कर बनाया गया होगा की अविवाहित स्त्री को समाज मे पिता का संरक्षण जीवन पर्यंत मिले । लेकिन आज नायाधीश को भी इस कानून मे "violation of equality" लगा । समय के साथ सब परिभाषाये बदल रही हैं और कानून मे बदलाव लाना भी जरुरी हैं । पूरा समाचार यहाँ हैं जो ये भी बताता हैं की एक अच्छा वकील हारे हुए मुकदमे को भी कानून के लूप होल से जीता सकता हैं ।

ब्लॉग समाचार मे एक प्रश्न चर्चा मे हैं " पुरूष मानसिकता " क्या हैं ? जिन को भी इस प्रश्न का उत्तर खोजना हो वो अपने आप से कुछ सीधे सवाल पूछे
  1. क्या आपने कभी अपनी बेटी को ये कह कर किसी काम के लिये मना किया हैं कि "ये लड़कियों का काम नहीं हैं "
  2. क्या आपने कभी किसी महिला को वार्तालाप और वाद विवाद के दौरान ये कहा हैं " मै औरतो से बहस नहीं करता "
  3. क्या आपने कभी किस नारी को किसी भी संवाद , वाद विवाद मे ये याद दिलाया हैं कि उसकी शारीरिक संरचना आप से फरक हैं इस लिये उसको बात अलग तरीके से करनी चाहिये ।
  4. क्या किसी मीटिंग मे जिसके आयोजक आप थे आपने चाय - नाश्ता बनाए और सर्वे करने का काम अपनी महिला सहयोगी / जूनियर को इस लिये दिया क्युकी वो महिला हैं और ये काम ज्यादा अच्छे से कर सकती हैं क्युकी ये महिला का काम हैं
  5. क्या आप ने कभी किसी महिला को ये कहा हैं कि "क्युकी तुम स्त्री हो इसलिये तुमको submissive रहना चाहिये । "
  6. क्या आप ने कभी अपनी पत्नी को ये कहा " औरतो वाली बात मत किया करो "
  7. क्या आप ने कभी अगर एक स्त्री पुरूष एक साथ आपके पास आये हैं तो स्त्री जो पुरूष से ऊँचे पद पर काम कर रही हैं उसको किनारे करते हुए केवल पुरूष से ही बात कि हैं , जबकि सारा काम स्त्री ने किया हैं और पुरूष उसको केवल assist करने के लिये आया था
  8. क्या आप को किसी भी स्त्री को देखते ही केवल और केवल उसके शरीर कि बनावट ही दिखती हैं
  9. क्या हर उस नारी को आप फेमिनिस्ट कह देते हैं जो नारी आधारित विषयों पर अपना स्पष्ट मत रखती हैं या सामाजिक रीति रिवाजो से अलग अपनीं जिन्दगी जीती हैं
और सबसे अहम् बात
जब भी आप कभी किस जगह यौन शोषण और बलात्कार कि ख़बर पढ़ते हैं तो क्या आप के दिमाग मे पहला ख्याल ये आता हैं "अच्छा हुआ , बहुत बराबरी करने चली थी , जिस लायक थी वही हुआ । क्या कपडे पहनती हैं अच्छे अच्छे के मन डोल जाए "

पुरूष मानसिकता केवल और केवल एक रुढिवादी सोच हैं जिसमे स्त्री को बार बार ये बताया जाता हैं उसका "मूल काम " प्रजनन हैं और इसके लिये उसको पुरूष के साथ मिल कर रहना चाहिये । साइंस के आधार पर बार बार स्त्री शरीर को dissect कर के इस बात को prove करने क्या जरुरत हैं कि स्त्री ही माँ बन सकती हैं क्युकी ये जग जाहिर सच हैं पर स्त्री माँ बने या ना बने ये उसकी पर्सनल चोइस हैंअगर आप पुरूष होने कि वज़ह से नारी से उसकी किसी भी पर्सनल चोइस का अधिकार उससे छीनते हैं तो आप पुरूष वादी सोच से ग्रसित हैं पर ध्यान रहे कि सोशल कंडिशनिंग सबसे बड़ी वज़ह हैं इस समस्या कि और पुरूष वादी सोच से स्त्रियों का एक बड़ा तबका पुरुषों से भी ज्यादा ग्रसित हैं

July 14, 2009

हरी भूमि और गजरौला टाइम्स पर नारी ब्लॉग की पोस्ट का जिक्र

कौमार्य परीक्षण या गर्भ परीक्षण दोनों केवल नारी के ही तो हो सकते हैं फिर हाय तोबा क्यूँ ??

सुजाता की बात को आगे बढाते हुए जानने की इच्छा हैं
अगर इश्वर ने नारी को गर्भ धारण करने की शक्ति दी हैं तो उसको इस कार्य के लिये सजा क्यूँ दे जाती हैं । सुजाता ने समाचार पढा और उसको ब्लॉग पर डाला क्युकी क्युकी उसको लगा की वर्जिनिटी टेस्ट { कौमार्य का परीक्षण } करवाना ग़लत था । हम सबने सुजाता को कमेन्ट मे बताया की वहाँ कौमार्य का परीक्षण नहीं प्रेगनैंसी टेस्ट हो रहा था ।
दोनों ही स्थिति मे दोष { यानी पहले से विवाहित होने का } नारी का ही हुआ और इसका प्रमाण केवल और केवल स्त्री का गर्भ ही दे सकता हैं । यानी अगर कोई स्त्री माँ बन चुकी हैं या माँ बनने वाली हैं तो उसको दूसरा विवाह करने
का अधिकार मध्य प्रदेश सरकार नहीं देगी । एक प्राकृतिक देन यानी माँ बन सकने अधिकार जो प्रकृति ने अभी तक केवल नारी के सुरक्षित रखा हैं उसको "सजा " बनाने के लिये क्या केवल सरकार को दोष देना सही हैं ??
क्या हर पुरूष जो इस प्रकार के सामूहिक विवाह का हिस्सा बनते हैं अविवाहित होते हैं , या उन्होने इस विवाह से पहले कभी किसी भी स्त्री के साथ सहवास नहीं किया होता हैं । साइंस के पास क्या कोई तरीका नहीं हैं !!! की ये स्थापित हो सके पुरूष का विवाह नहीं हुआ और उसने कभी भी किसी भी स्त्री के साथ सम्भोग नहीं किया !!!! । अगर नहीं हैं !!! ?? तो इस खोज मे इतनी देर क्या दिखाती हैं ??!!! और अगर हैं तो वो परिक्षण भी क्यूँ नहीं करवाये जाते ।

नारी गर्भवती हैं इसके लिये वो क्यूँ शर्मिंदा की जाती हैं ? एक गर्भवती महिला को तो घर और पति की जरुरत दूसरी महिलाओ से ज्यादा होती हैं समाज मे ऐसी नारियों को दुबारा जिन्दगी जीने का अधिकार मिले कोशिश तो ये होनी चाहिये थी

गर्भ धारण करना विवाहित होने का प्रमाण कैसे हो सकता हैं ? फर्जी जोडे ख़ुद सरकारी मुलाजिम खोज कर लाते हैं { यानी पहले से विवाहित जोडो को ६५०० रुपए का लालच देकर सामूहिक विवाह के मंडप मे दुबारा बिठाना और बाद मे उन्हे १००० रुपया दे कर बाकी पैसा आपस मे बाँट लेना } पर फर्जी जोडे मे परिक्षण केवल और केवल स्त्री का ही होता हैं ।

सुजाता के ब्लॉग पर आए एक कमेन्ट को पढ़ कर बहुत हँसी आयी उसको आप सब के साथ यहाँ बाँट रही हूँ
"लेकिन यदि ‘विवाह’ के लिए चुने गये जोड़े पहले से ही शादी-शुदा पाये जाय और दुल्हन पहले से ही गर्भवती हो या माँ बन चुकी हो तो यह भी विडम्बनापूर्ण है। ऐसी गड़बड़ी को रोकने के लिए ‘गर्भ का परीक्षण’ करा लेने के अतिरिक्त क्या उपाय है यह भी सुझाव आना चाहिए था।"

मेरा सुझाव हैं की नारियों को प्रकृति की दी हुई अनुपम भेट { यानी माँ बन सकने } की ताकत को साइंस के सहारे से ख़तम कर देना चाहिये , ना रहेगा बांस ना बजेगी बासुरी । इस प्रकार से जो अपमान नारी का कौमार्य परीक्षण और "‘गर्भ का परीक्षण’ कराने से होता हैं वो कम से कम बंद होगा । नारी गरिमा को ठेस लगती रही हैं और इसके लिये हमारी सरकार नहीं हम सब ख़ुद जिम्मेदार हैं जो शील का , चरित्र का , सामाजिक पतन का और समाज मे हो रहे हर ग़लत काम का जिम्मा नारी के शरीर और उसकी कोख को देते हैं ।

साहिर लुघियानवी जी की ये ग़ज़ल पढे
औरत ने जनम दिया मर्दों को, मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा कुचला मसला, जब जी चाहा दुत्कार दिया

तुलती है कहीं दीनारों में, बिकती है कहीं बाज़ारों में
नंगी नचवाई जाती है, ऐय्याशों के दरबारों में
ये वो बेइज़्ज़त चीज़ है जो, बंट जाती है इज़्ज़तदारों में

मर्दों के लिये हर ज़ुल्म रवाँ, औरत के लिये रोना भी खता
मर्दों के लिये लाखों सेजें, औरत के लिये बस एक चिता
मर्दों के लिये हर ऐश का हक़, औरत के लिये जीना भी सज़ा

जिन होठों ने इनको प्यार किया, उन होठों का व्यापार किया
जिस कोख में इनका जिस्म ढला, उस कोख का कारोबार किया
जिस तन से उगे कोपल बन कर, उस तन को ज़लील-ओ-खार किया

मर्दों ने बनायी जो रस्में, उनको हक़ का फ़रमान कहा
औरत के ज़िन्दा जल जाने को, कुर्बानी और बलिदान कहा
क़िस्मत के बदले रोटी दी, उसको भी एहसान कहा

संसार की हर एक बेशर्मी, गुर्बत की गोद में पलती है
चकलों में ही आ के रुकती है, फ़ाकों में जो राह निकलती है
मर्दों की हवस है जो अक्सर, औरत के पाप में ढलती है

औरत संसार की क़िस्मत है, फ़िर भी तक़दीर की होती है
अवतार पयम्बर जनती है, फिर भी शैतान की बेटी है
ये वो बदक़िस्मत माँ है जो, बेटों की सेज़ पे लेटी है

July 12, 2009

पलक मुछाल के पास २३४ गुडियां हैं जिनका दिल पलक की वज़ह से धड़क रहा हैं


पलक मुछाल एक टीनएजर हैं जो गाना गाती हैं । इनका जनम १९९२ मे हुआ था और १९९७ से ये गाना गा रही हैं और स्टेज शोव्स कर रही हैं । क्यों ? ताकि वो उन बच्चो के लिये पैसा इकठा कर सके जो गरीब हैं और जिनको दिल की बीमारी हैं । अब तक वो अपने शो के जरिये २३४ बच्चो की जान बचा चुकी हैं । अपने शो से पलक या उनके माँ ता पिता कुछ भी अपने लिये नहीं लेते , हां जितने बच्चो का ऑपरेशन होता हैं उनसे पलक एक गुडिया जरुर लेती हैं । आज पलक के पास २३४ गुडिया हैं । पलक केवल हिन्दी मे ही नहीं बहुत सी भाषाओ मे गाती हैं ।
पलक के ऊपर ज्यादा जानकारी आप को यहाँ और यहाँ मिलेगी ।

July 11, 2009

जाकिर रजनीश कि पोस्ट पर पूछे हुए प्रश्नों के उत्तर

तस्लीम ब्लॉग पर आयी परिचर्चा को आगे बढाते हुए ..........
जाकिर रजनीश कि पोस्ट पर पूछे हुए प्रश्नों के उत्तर

बलात्कार क्या हैं
हिन्दी मे रेप का सीधा ट्रांसलेशन बलात्कार हैं । लेकिन बलात्कार का अर्थ हैं बलपूर्वक अपनी बात को मनवाना । इस मे यौन शौषण , रेप , सेक्सुअल हरासमेंट और क्रिमिनल अस्सुअल्ट सभी कुछ शामिल हैं । यहाँ तक कि किसी को एक ऐसी मेल भेजना जो उसको नहीं चाहिये भी बलात्कार होता हैं । परिभाषाये बदलते परिवेश से बदलती हैं ।

कोई इतना नीचे कैसे गिर जाता है कि बलात्कार जैसी घटना करने पर उतारू हो जाता है?
जाकिर आप श्याद केवल क्रिमिनल अस्सौल्ट कि बात कर रहे हैं जब "बलात्कार" शब्द का प्रयोग कर रहे हैं सो उसका सीधा जवाब हैं स्त्री को भोग्या / सम्पति / वस्तु मान कर जो बडे होते हैं वो बल पूर्वक स्त्री पर अपना स्वामित्व स्थापित करने के लिये बलात्कार करते हैं । और अगर व्यापक परिभाषा मे जाए तो जो लोग स्त्री को घर के अन्दर , अपने नीचे देखने के आदि हैं वो स्त्री के बदलते रूप से भयभीत हैं और बलात्कार { यानी यौन शोषण , अंतरंगता का दिखावा , गलत कमेन्ट , गलत मेल , और भी बहुत कुछ } कर के अपना स्वामित्व स्थापित करते हैं । अपनी इन्सेकुरिटी को जीतने के लिये स्त्री के मन , मस्तिष्क और शरीर पर चोट करके वो उसको निष्क्रिये करना चाहते हैं । वो जानते हैं कि भारतीये समाज व्यवस्था मे स्त्री को "चुप " रहना सीखाया जाता हैं और यही वो बार बार स्त्री को याद दिलाते हैं और इसको याद दिलाने के लिये वो स्त्री के शरीर को माध्यम बनाते हैं ।

बलात्कार पीडित स्त्री समाज की प्रताडना का शिकार क्यों होती है?
क्युकी समाज मे स्त्री का कोई वजूद नहीं हैं । सब दिखावा करते हैं मन मे सबके आज भी स्वामी पुरूष ही हैं , सो बलात्कार से पीड़ित स्त्री को समाज भी दोष देता हैं । और समाज केवल पुरुषों से नहीं बना , औरतो से भी बना हैं लेकिन औरतो को ऐसा "कन्डीशन " किया जाता हैं कि वो पुरूष के पैर कि जुती बन कर रह सकती हैं पर अकेले स्वाभिमान से अपनी जिंदगी नहीं जीना चाहती । पुरूष स्त्री को छोड़ दे तो स्त्री कुलटा , स्त्री पुरूष को छोड़ दे तो भी स्त्री कुलटा । यानी चरित्र हीन केवल और केवल स्त्री ही हैं ।

जैसे-जैसे समाज आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे समाज में ऐसी घटनाएं क्यों बढ़ती जा रही हैं?
नारी सशक्तिकरण से पुरूष insecured होगया हैं उसको लगता हैं औरत को उसकी सही जगह दिखाने के लिये "बलात्कार" सही रास्ता हैं { यहाँ बलात्कार का व्यापक अर्थ लिया जाए } । मेंटल एवोलुशन औरत का ज्यादा हो गया हैं क्युकी वो supressed रही हैं , बलात्कार उसको supressed रखने का आसान तरीका हैं ।
तकनीक , साइंस ने बलात्कार को रुपए कमाने का साधन बनाया हैं । fake बलात्कार के सी डी मार्केट मे ऊँचे दाम पर बिकते हैं । ये सी डी उन लड़कियों के होते हैं जो किसी वज़ह से पैसा कमाने कि अंधी दौड़ मे अपने श्री को माध्यम बनाती हैं । उसके अलावा बलात्कार के वो mms और सी डी भी मिलते हैं जाहाँ लड़की किसी पर विश्वास करती हैं और वो उसके विश्वास का दुरूपयोग करता हैं । गलती दोनों कि हैं पर समाज केवल और केवल लड़की को सजा देता हैं { हाँ कानून दोषी को सजा देता हैं }

इस तरह की घटनाएं जितनी गांवों और कस्बों में होती हैं, उससे ज्यादा घटनाएं आज नगरों और महानगरों में क्यों हो रही हैं?

नहीं ये मात्र भ्रम हैं गाँवों मे स्थिति बहुत ख़राब हैं पर वहां शिक्षा का आज भी अभाव हैं इस लिये बलात्कार को स्त्री को उसका स्थान दिखाने का जरिए मन जाता हैं । मात्र तीन दिन पहले बेटे के दूसरी जाति कि कन्या से विवाह के कारण बेटे कि माँ को सरे आम वस्त्रहीन अवस्था मे घुमाया गया पुरी गाव मे ।
घटनाएं पहले भी होती थी पर तब मीडिया इतना नहीं था और बात दबा डी जाती थी आज बात दबती नहीं हैं ।

बलात्कार से निपटने के लिए सरकारी एवं सामाजिक स्तर पर क्या प्रयास होने चाहिए?

सामाजिक स्तर पर हमे अपने बेटो को ये समझाना होगा कि स्त्री उसकी जूती नहीं हैं । पुरूष को स्त्री के सम्मान का रक्षक नहीं मानना चाहिये क्युकी यहीं से "सम्पति /चीज़ / भोग्या । वस्तु बन जाती हैं स्त्री । स्त्री / नारी को अपने सम्मान के लिये ख़ुद लड़ना चाहिये । हर लड़की को सीखना होगा कि किसी भी गलत हरकत का पुरजोर विरोध करे । समाज मे वो समानता लानी होगी जो संविधान और न्याय प्रणाली मे स्त्री को मिली हैं ।
समाज के नियम और संविधान और न्याय के नियम जब तक same and at par नहीं होगी पुरूष और स्त्री मे समानता नहीं होगी और तब तक पुरूष { और कहीं कहीं स्त्री } का अहम् उसको बलात्कारी बनाता रहेगा ।

क्या बलात्कार पीडिता को किसी तरह का मुआवज़ा मिलना चाहिए?
बिल्कुल , जैसा विदेशो मे भी होता हैं ।

बलात्कारी के लिए क्या सज़ा होनी चाहिए?
फांसी अगर क्रिमिनल अस्सुअल्ट हैं बाकी जो न्याय प्रणाली कहे
हाँ जो लोग विद्रूप मानसिकता के चलते स्त्री पर व्यंग करते हैं ,उसके कपड़ो पर ऊँगली उठाते हैं वो सब दुसरो को बलात्कार करने के लिये उकसाते हैं उनके लिये आप क्या सजा मुकरर करगे जाकिर ये आप पर निर्भर हैं ।

इस सम्बंध में बलात्कारी के प्रति समाज की क्या भूमिका होनी चाहिए?

स्त्री और पुरूष से समाज बनता हैं । स्त्री और पुरूष आज के परिवेश मे केवल पति पत्नी नही हैं और ना ही स्त्री / नारी का रोल बच्चे पैदा करने और पुरूष का रोल बाहर जा कर पैसा कमाने के लिये हैं । जितनी जल्दी समाज ये मान लेगा कि नारी और नर कि भूमिका केवल और केवल एक पूरक कि ही नहीं हैं अपितु दोनों कि अपनी पसंद / ना पसंद भी हैं , उतनी ही जल्दी आने वाली पीढी को ये समझ आये गा कि " पर्सनल चोइस " को आदर देना जरुरी हैं ।







आप सब भी अपनी राय दे । या लिंक देकर चर्चा को आगे बढाए

July 10, 2009

"बलात्कार" विषय पर कुछ प्रश्न उत्तरों की प्रतीक्षा मे . - तस्लीम पर

बलात्‍कार का मनोविज्ञान (Psychology of rape): एक परिचर्चा
जाकिर रजनीश ने अपने ब्लॉग तस्लीम पर एक परिचर्चा रखी हैं जिसमे निम्न प्रश्नों के उत्तर मांगे हैं ।
  1. आपकी नज़र में बलात्‍कार क्‍या है?
  2. कोई इतना नीचे कैसे गिर जाता है कि बलात्‍कार जैसी घटना करने पर उतारू हो जाता है?
  3. बलात्‍कार पीडित स्‍त्री समाज की प्रताडना का शिकार क्‍यों होती है?
  4. जैसे-जैसे समाज आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे समाज में ऐसी घटनाएं क्‍यों बढ़ती जा रही हैं?
  5. इस तरह की घटनाएं जितनी गांवों और कस्‍बों में होती हैं, उससे ज्‍यादा घटनाएं आज नगरों और महानगरों में क्‍यों हो रही हैं?
  6. बलात्‍कार से निपटने के लिए सरकारी एवं सामाजिक स्‍तर पर क्‍या प्रयास होने चाहिए?
  7. क्‍या बलात्‍कार पीडिता को किसी तरह का मुआवज़ा मिलना चाहिए?
  8. बलात्‍कारी के लिए क्‍या सज़ा होनी चाहिए?
  9. इस सम्‍बंध में बलात्‍कारी के प्रति समाज की क्‍या भूमिका होनी चाहिए?
उस पोस्ट पर आप अपने विचार दे । इस पोस्ट पर कमेन्ट की सुविधा नहीं हैं ।

July 09, 2009

टी वी पर न्याय व्यवस्था की धज्जियां उडती हैं और कोई आवाज नहीं उठती ???

"बालिका वधु " सीरियल मे नाबालिक लड़की का विवाह रजिस्ट्रार को करते दिखाया हैं । क्या ये सम्भव हो सकता हैं और अगर नहीं तो क्या न्याय के पेशे से जुडे लोगो को इस प्रकार की भ्रांतियां फेलाने वाली बातो के विरूद्व कोई आवाज नहीं उठानी चाहिये ।

अगर ऐसा विवाह सम्भव ही नहीं हैं { मुझे नहीं पता } तो फिर ये देख कर तो ना जाने कितने और माता पिता सोच सकते हैं अपने ना बालिग़ बेटियों को इस प्रकार से ब्याहने के लिये ।

टी वी पर न्याय व्यवस्था की धज्जियां उडती हैं और कोई आवाज नहीं उठती ???

July 07, 2009

बदलती परिभाषाये

बदलती परिभाषाये


कल
अविवाहित महिला / सिंगल महिला असामाजिक , कुलटा, चरित्रहीन , दूसरी औरत

आज
अविवाहित महिला / सिंगल महिला गे

July 04, 2009

पत्नी की नौकरी या बेटी को पढाने का साक्ष्य क्यूँ चाहिये अपनी सोच को सही साबित करने के लिये ?

ऐसा क्यूँ होता हैं की जब भी हम किसी के साथ वैचारिक मतभेद पर बात करते हैं तो तुंरत सुनाई देता हैं ,

" देखिये मै दकियानूस नही हूँ , मै उनमे से नहीं हूँ जो नारी को समान नहीं मानते या नारी का सम्मान नहीं करते । मेरी तो पत्नी भी नौकरी करती हैं , और मेरे एक बेटी भी भी जिसे मै पढ़ा भी रहा हूँ " ।

पत्नी की नौकरी या बेटी को पढाने का साक्ष्य क्यूँ चाहिये अपनी सोच को सही साबित करने के लिये ?

July 02, 2009

मै बच्चो के साथ नहीं रहूंगा , बच्चे मेरे साथ रहे तो ठीक

आज पड़ोस मे कर्नल अंकल नहीं रहे । १९७७ से हम लोग एक ही कोलोनी मे रह रहे हैं । अंकल की आयु ९० साल थी । ५५० गज की कोठी मे अंकल और आंटी पिछले १५ सालो से अकेले रहते थे । एक बेटा और २ बेटियाँ हैं । परिवार मे सौहार्द हैं , बेटा अपने परिवार के साथ गुडगाव और बेटियाँ एक दिल्ली और दूसरी नॉएडा मे रहती हैं । लेकिन अंकल कभी अपने बेटे के साथ रहने नहीं गए { सम्बन्ध बिल्कुल ठीक हैं } ।

आज अंकल नहीं हैं और आंटी जो की ७५ साल की हैं अपने बेटे के पास रहने जा रही हैं ।

ऐसा क्यूँ होता हैं की पुरूष अपने बच्चो के साथ मे बुढापे मे भी अपना सुख नहीं खोज पता हैं वहीं नारी हँसी खुशी अपने बच्चो के साथ अपना बुढापा गुज़र लेती हैं ।

क्यूँ पुरूष मे अपने बच्चो के साथ रह कर अपना बुढापा जीने की इच्छा नहीं होती ? क्यूँ वो अपने ही घर मे रहना चाहता हैं और चाहता हैं की उसका बेटा उसके साथ रहे और वो बेटे के साथ ना रहे ?



मै बच्चो के साथ नहीं रहूंगा , बच्चे मेरे साथ रहे तो ठीक नहीं तो मै अकेले भी रह सकता हूँ , क्या ये लाइन आप को भी सुनाई देती हैं , कोई जवाब हो तो लिखे जरुर ...............

July 01, 2009

बलात्कार क्यूँ ? काम वाली बाई के कपड़ो मे क्या दोष था ??

आज कल घर मे काम करने वाली बाइयों के ऊपर हो रहे बलात्कार , क्या साबित करते हैं ? हर दिन कम से कम एक ख़बर जरुर पढ़ने को मिल जाती हैं । दो तीन दिन पहले गाजियाबाद मे एक काम वाली बाई का बलात्कार कर के उसको छत से नीचे फेक दिया । तहकीकात चल रही हैं पर घर के मालिक जो एक प्राइवेट बैंक मे मैनेजर हैं उनको पुलिस हिरासत मे लिया गया हैं । लिंक क्लिक करके कमेन्ट दे
ये सब क्यों और कब तक ??? काम वाली बाई के कपड़ो मे क्या दोष था ??

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