नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

February 25, 2013

एक असुंतलन की स्थिति की और हम बढ़ रहे हैं

 PART THREE
1. RUMBLINGS OF THE STORM

This was my first voyage with my wife and children. I have often observed in the course of this
narrative that on account of child marriages amongst middle class Hindus, the husband will be
literate whilst the wife remains practically unlettered. A wide gulf thus separates them, and the
husband has to become his wife's teacher. So I had to think out the details of the dress to be
adopted by my wife and children, the food they were to eat, and the manners which would be
suited to their new surroundings. Some of the recollections of those days are amusing to look
back upon.
A Hindu wife regards implicit obedience to her husband as the highest religion. A Hindu
husband regards himself as lord and master of his wife, who must ever dance attendance upon
him.

Mahatma Gandhi - Autobiography
8 9

आप इस को महज संयोग ही कह सकते हैं की आज मैने गाँधी जी की आत्मकथा में ये पढ़ा .
पिछ्ले कुछ दिन से चल रही ब्लॉग - बहस जो नारी ब्लॉग की पोस्ट से शुरू हो कर रश्मि रविजा के ब्लॉग से होती हुई अंशुमाला के ब्लॉग तक पहुंची पूरी मेरी नज़र में दुबारा घूम गयी .

जिस अंश को ऊपर मैने दिया हैं वो आज सुबह किताब में पढ़ा था , फिर नेट पर खोज कर यहाँ पेस्ट किया . ये किताब 19 2 7 में पहली बार पब्लिश हुई थी और जिस समय का ये विवरण हैं वो साल था 18 9 7 , यानी आज से तक़रीबन 1 1 5 साल पहले .

गाँधी जी कहते हैं भारत में
बाल विवाह के कारण ,
पति पढ़ा लिखा ,
पत्नी बिलकुल निरक्षर ,
होने के कारण
उनके बीच गहरी खाई
जिसकी वजह से
पति को पत्नी का "टीचर " बनना पड़ता था


कितनी अजीब बात हैं आज ११ ५ साल बाद भी समाज की    यही सोच हैं की पति को अपनी पत्नी को अपने हिसाब से सक्षम बना लेना चाहिये

एक तरफ हम नारी सशक्तीकरण की बात करते हैं , स्त्री पुरुष लिंग विबेध से ऊपर उठ कर समानता की बात करते हैं और दूसरी तरफ हम पुरुषो से ये भी उम्मीद करते हैं की वो अपनी पत्नी के टीचर बने .

क्या ये कुछ ज्यादा उम्मीद करना नहीं हुआ ?
आज के युग में जब समानता की बात हो रही हैं तो हम कैसे  ये सोच सकते हैं की वो लड़के जो आज 2 ५ -30 वर्ष के हैं वो अपनी पत्नी को " सक्षम " बनाने के लिये उनके "टीचर " बन जाए . इन लड़को ने अपने बचपन से लेकर विवाह तक यही सुना हैं की लड़किया लड़को के बराबर हैं . बेटे और बेटी के अधिकार बराबर हैं . कानून और संविधान में स्त्री और पुरुष के अधिकार बराबर हैं फिर वो कैसे और क्यूँ अपनी पत्नी को "कुछ सिखाने " में अपना समय दे . क्यूँ उनको ये उम्मीद नहीं होनी चाहिये की उनकी पत्नी उनके समान ही सब कुछ करने में सक्षम होंगी .

और अगर वो "टीचर" बनता भी हैं तो फिर क्या गाँधी जी के कथन अनुसार एक हिन्दू पत्नी के लिये उसका सबसे बड़ा धर्म अपने पति की बात मानना होता हैं आज भी मान्य नहीं होना चाहिये .


हम कुछ ज्यादा की उम्मीद कर रहे हैं उस आधी आबादी से जिसके बराबर हम मानते हैं की हम हैं .

अपने जीवन साथी को उसके गुण दोष के साथ कोई तब ही अपना सकता हैं जब दोनों साथी बराबर हो .
 लेकिन
 आज भी ये उम्मीद तो यही हैं की एक साथी यानी पति अपने हिसाब से अपने जीवन साथी को "सीखा पढ़ा कर " अपने और अपने परिवार के लिये "ढाल" ले
और
दूसरा साथी यानी पत्नी "सहनशीलता"  से अपने साथी से "सीख पढ़ कर " उस के परिवार के योग्य अपने को बनाले .


समानता और बराबरी के युग में , ये दोनों साथी गुरु और शिष्य , पूज्य और पूजक बने रहे तो फिर साथी कैसे रह पायेगे क्युकी दोनों आज भी दो अलग अलग सीढ़ियों पर ही खड़े हैं बस फरक इतना हैं की दोनों को एक बात समझ आ चुकी हैं की वो बराबर हैं .

इस बराबरी की बात से लडके उम्मीद करने लगे हैं की उनकी पत्नी हर प्रकार से सक्षम हो कर उनकी जीवन साथी बन रही हैं लेकिन वास्तविक स्थिति बिलकुल भिन्न हैं .

कारण बहुत से हैं , जिनकी चर्चा पिछली बहस में हो चुकी हैं
मुझे तो गाँधी जी का कथन पढ़ कर बस इतना लगा की ११ ५ साल में भी हमारे समाज की सोच में बदलाव बहुत कम हुआ हैं . जो हुआ भी हैं उसकी वजह से एक असुंतलन की स्थिति की और हम बढ़ रहे हैं

February 23, 2013

मै तुमको वुमन सेल में जाने की सलाह नहीं दे सकती . क्युकी इस निर्णय को लेने में तुमने बहुत देर कर दी

ये ईमेल दो तीन ईमेल में था इस लिये इसको "वार्तालाप " की तरह दे रही हूँ


मेरी परिचित महिला ब्लॉगर  "रचना क्या तुम्हारे पास वुमन सेल का नंबर है "

February 18, 2013

क्या हैं कोई कानून ? या और आप क्या कहना चाहते हैं इस परिस्थिति में खड़े व्यक्ति को


Meenu Rana <rana.meenu@gmai.com>

to me
Hello Rachnaji,

I am Meenu Rana, 29 yrs old from Delhi. I am a doctor by profession.
I need your help to get justice.

I have been cheated by a guy for 9 yrs in the name of a relationship, he promised that he will marry me, his family was also aware of our relationship but now i have learnt from one of our common friend that he recently got married. I was waiting for him to get marry to me and now he is not even talking to me.

There are so many youngsters going through this phase, but even the breakups should be with mutual consent this is what i feel. I am not sure whether there is any law for such frauds or not but there should be some. Physical injuries can be treated but such emotional and mental traumas pain a lot. Some people take relationships as a game, they will spend time with each other, go for  a movie and then suddenly they realize that our family will not accept this. This should be stopped somewhere.

Please if you could help me in this, i will be very every thankful to you.

Thanks & Regards,
Meenu rana 
Mobile # 9xxxxxxxxxxxxx

हेलो रचना जी
मेरा नाम मीनू राणा , 29 वर्ष , दिल्ली निवासी , एक डॉक्टर हूँ
मुझे आप की मद्दत चाहिये अपने लिये न्याय पाने के लिये
9 साल से रिलेशन शिप के नाम पर एक व्यक्ति ने मुझे ठगा हैं , उसने मुझसे शादी का वायदा किया था . उसका परिवार भी इस बात को जानता था . अभी मुझे एक कोमन दोस्त से पता चला हैं की उसकी शादी होगयी हैं . मै इंतज़ार कर रही थी की वो मुझ से शादी करेगा पर वो तो बात भी नहीं कर रहा
बहुत लोग इस प्रक्रिया से गुजरते हैं अपनी जिंदगी में , पर मुझे लगता हैं की रिलेशनशिप में ब्रेकअप भी आपसी रजामंदी से ही होना चाहिये .
मै नहीं जानती ऐसा कोई कानून हैं या नहीं जो इस प्रकार की धोखा धडी को रोक सकता हो , अगर नहीं हैं तो होना चाहिये .
शारीरिक चोट का इलाज हो जाता हैं पर इस प्रकार का भावनात्मक और मेंटल ट्रौमा बहुत तकलीफ देता हैं .
कुछ लोग रिलेशन शिप को एक खेल मात्र लेते हैं , एक दुसरे के साथ समय बिताया , सिनेमा देखा , और एका एक उनको समझ आया की उनका परिवार ये नहीं मानेगा .
ये सब कहीं रुकना चाहिये ,
क्या आप मेरी मद्दत कर सकती हैं इस मामले में . मे बहुत शुक्रगुजार रहूंगी
मीनू राना 


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मुझे ये ईमेल मिली थी . आप सब से बाँट रही हूँ ताकि आप लोग भी अपनी राय यहाँ दे सके . आप की बात ना केवल मीनू को अपितु उस जगह खडी / खड़े किसी युवती / युवक के काम आ सकती हैं 

क्या हैं कोई कानून ? या और आप क्या कहना चाहते हैं इस परिस्थिति में खड़े व्यक्ति को 

निसंकोच राय दे 

February 17, 2013

मुक्ति का कमेन्ट

पिछली पोस्ट पर मुक्ति ने ये कमेन्ट देना चाहा था पोस्ट नहीं हो पाया
उनकी इच्छा अनुसार इसको पोस्ट के रूप में विचारों के लिये यहाँ दे रही हूँ
2013/2/17 आराधना चतुर्वेदी <a@gmail.com>
बड़ी मेहनत से ये टिप्पणी लिखी. तीन बार कोशिश की, पब्लिश नहीं हुयी. आप कर दीजिए. या पोस्ट के रूप में डाल दीजिए-

मैं लोगों से यही बात बार-बार कहना चाहती हूँ कि इस लड़के की समस्या को एक व्यक्ति की समस्या की तरह न लेकर समाज की एक प्रमुख समस्या की तरह लिया जाय. लाख बातें होंगी, जिससे यह सिद्ध किया जा सके कि गलती लड़के की है और उसे इसका खामियाजा भुगतना होगा. लेकिन ऐसी परिस्थिति आयी क्यों? इस पर विचार करना होगा क्योंकि मेरे आसपास बहुत से ऐसे उदाहरण हैं, जहाँ लड़के-लड़कियाँ अपने इस तरह के बेमेल विवाह को निभाने के लिए मजबूर हैं. प्लीज़ इस समस्या को व्यापक रूप में देखें. इसे अगर बिन्दुवार देखें, तो यह एक केस इतने मुद्दे उठाता है-
- दहेज की समस्या- हम इसके लिए सिर्फ लड़के वालों को दोषी नहीं मान सकते. लड़की के माँ-बाप भी उतने ही दोषी हैं क्योंकि अक्सर ये देखा जाता है कि जिसके पास थोड़ा ज्यादा पैसा होता है, वो उसके द्वारा "अच्छा लड़का" खरीद लेना चाहता है. ऐसे में कई बार ये नहीं देखा जाता कि लड़की लड़के में मेल है या नहीं. ये सोचा जाता है कि शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा.
- अरेंज्ड मैरिज- ऐसी शादियाँ गाँवों में आज भी होती हैं, जिसमें बिचौलिया एक-दूसरे पक्ष को बहुत सी बातें नहीं बताता. उत्तर प्रदेश और बिहार राज्यों में लड़की वाले लड़का देखने जाते हैं, तो वह उसके गाँव से उसके 'घर-दुआर, ज़मीन-जायदाद' के बारे में पूछ लेते हैं, लेकिन अक्सर लड़के वाले ये सब बातें अच्छी तरह नहीं जान पाते. क्योंकि पहली बात, तो आज भी लोग "किसी तरह लड़की की शादी हो जाय" ये सोचकर बहुत सी बातें छिपा जाते हैं. जबकि अब परिस्थितियाँ पहले जैसी नहीं रहीं. पहले अक्सर ऐसा होता था कि लड़का बाहर नौकरी करता था और उसकी पत्नी गाँव में रहती थी या घर में भी रहती थी, तो बाहरवालों से बात तक नहीं करती थी. 
अगर लड़का-लड़की माँ-बाप पर इतना भरोसा कर रहे हैं कि अपना जीवनसाथी उन्हें चुनने के लिए कह रहे हैं, तो उन्हें भी पूरी तरह से देख-सुनकर शादी करनी चाहिए. मैं आपको अपना उदाहरण बताती हूँ. मेरा भाई मुझसे एक साल छोटा था. इंजीनियर था और बड़ा शर्मीला. बाऊ ने तो हमलोगों को पूरी छूट दे रखी थी अपना साथी खुद ढूँढने की, लेकिन ये मेरे भाई के बस की बात नहीं थी. तो उसने ये ज़िम्मेदारी मुझ पर छोड़ दी क्योंकि मैंने साफ कह दिया था कि मुझ पर मेरी शादी के लिए ज़ोर न डाला जाय. चाहे तो भाई शादी कर ले. अब भाई की डिमांड वही थीं, जो ऊपर वाले केस में भाई साहब की हैं. उन्हें स्मार्ट, अंग्रेजी बोलने वाली, पढ़ी-लिखी, कम से कम साढ़े पाँच फुट की (क्योंकि भाई छः फुट का था) देखने में आकर्षक (सांवली-गोरी से कोई ज्यादा मतलब नहीं) और दुबली-पतली लड़की चाहिए थी. (दहेज, हमारे यहाँ कोई मुद्दा नहीं था क्योंकि मैंने कह दिया था कि दहेज नहीं लिया जाएगा) अब समस्या ये थी कि हमारे यहाँ लड़के वाले लड़की वाले के यहाँ नहीं जाते, 'देखहरू' आते हैं, लड़की की ओर से. खैर, हम बस लोगों से लड़की का बायोडेटा और फोटो ले लेते थे.लड़की से मिलना हमने तब तय किया जब ये पक्का हो गया कि लड़की भाई द्वारा बताए गए मानकों पर सही उतरती है. पहले मैं लड़की से मिली और जब आश्वस्त हो गयी, तब भाई से कहा कि वो भी मिलकर पक्का कर ले कि लड़की उसके लायक है कि नहीं. बाद में मुझे दोष न दे कि उसमें ये कमी है या वो कमी है. मुझे बड़े पापड़ बेलने पड़े भाई की शादी करवाने में. खैर, लड़की भाई को पसंद आ गयी और शादी हो गयी. बाद में लड़की का व्यवहार हमलोगों के प्रति बदल गया, लेकिन मैं इस बात से संतुष्ट थी कि पति-पत्नी में सामंजस्य बना था.
यहाँ मेरा कहना ये है कि आज के ज़माने में जब लड़का या लड़की अरेंज्ड मैरिज करने को तैयार होते हैं, तो घरवालों की ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है. उन्हें ठीक से जाँच-पड़ताल करके शादी करनी चाहिए.
-तीसरी बात, लड़की की शिक्षा-दीक्षा- आज भी गाँवों में लड़के को बाहर भेज दिया जाता है पढ़ने के लिए और लड़कियों को नहीं. और अपेक्षा ये की जाती है कि लड़की की शादी ऐसे लड़के से हो कि वो उसे शहर में अपने साथ रखे. लड़की बेचारी तो आज भी गाय है, उसे जहाँ कह दिया जाता है कर लेती है शादी. लेकिन लड़के ‘स्मार्ट’ लड़की चाहते हैं. यहाँ ये बात कहना चाहती हूँ कि यू.पी. बिहार से आये लड़कों को महानगरों में पली-बढ़ी लड़कियाँ पसंद नहीं आतीं. उन्हें अपने जैसी लड़की ही चाहिए होती है, जो हो तो छोटे शहर या गाँव की लेकन उसकी शिक्षा-दीक्षा अच्छी हुयी हो और उसे पहनने-ओढ़ने, बोलने-चालने का ढंग मालूम हो. मुझे नहीं लगता कि इसमें किसी को कि ऐतराज होना चाहिए कि लड़का ऐसी इच्छा क्यों कर रहा है क्योंकि बाहर पढ़ी-लिखी लड़कियाँ भी किसी कम पढ़े-लिखे लड़के से शादी नहीं करना चाहेंगी. और मेरे आस-पास ऐसी भी लड़कियाँ हैं, जिन्होंने दिल्ली में रहकर सिविल की तैयारी की है और अब उनकी अपने माँ-बाप से डिमांड है कि लड़का न सिर्फ सिविल की नौकरी कर रहा हो, बल्कि उसने दिल्ली में ही तैयारी की हो.
चौथी बात, माँ-बाप और बच्चों के बीच संवादहीनता और वैचारिक मतभेद- आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि आज भी शादी जैसे महत्त्वपूर्ण निर्णय के मामले में लड़का या लड़की का बोलना ‘बेशर्मी’ समझा जाता है और अपनी मर्जी से जीवनसाथी चुनना अपराध. अपने छोटे शहर या गाँवों से महानगरों में पढ़ने आये बच्चों का मानसिक स्तर अपने माँ-बाप से कहीं ज्यादा अलग हो जाता है, वहीं माता-पिता अपने आस-पास के परिवेश से पूरी तरह जुड़े होते हैं. माँ-बाप बच्चों के लिए अपने समुदाय में साथी ढूँढते हैं और बच्चे अपने जैसे मानसिक स्तर वाला. एक बात और बता दूँ, आज भी दोनों परिवारों में लेन-देन की क्या बात हुई, कितना दहेज लिया गया और उसका क्या हुआ, इसके बारे में न लड़के को पता होता है ना लड़की को. और अगर अरेंज्ड मैरिज होती है, तो दहेज तो लिया-दिया जाता है, ये एक कड़वा सच है. मेरे भाई की शादी में जबकि मैंने दहेज लेने से साफ मना कर दिया था, तब भी लड़की के माँ-बाप और बाऊ के बीच कुछ बात हुयी और उन्होंने कुछ पैसे नगद दिए. ये बात अलग है कि उसे लड़का-लड़की के एकाउंट में बराबर-बराबर जमा कर दिया गया. 
आज भी मेरे कुछ साथी अपने माँ-बाप से इस मुद्दे पर लड़ाई लड़ रहे हैं कि उन्हें अपने मनपसंद अंतरजातीय साथी से ब्याह करने दिया जाय. माँ-बाप अपनी जिद पर अड़े हैं कि इससे उनकी बदनामी होगी. शायद आपको बुरा लगे जब मैं ये कहूँ कि माँ-बाप अगर बच्चे को महानगर में दस साल रखकर पढ़ा सकने के लिए तैयार हो जाते हैं, तो अंतरजातीय विवाह के लिए क्यों नहीं? लेकिन फिलहाल इस मुद्दे को बाद के लिए रखते हैं. 
अभी मैं एक दूसरे दोस्त के बारे में लिख रही हूँ, जिसने माँ-बाप के कहने पर आँखें मूंदकर उनकी पसंद की हुयी लड़की से शादी कर ली. माँ-बाप ने दहेज के लालच में उसकी शादी एक ऐसी लड़की से करा दी, जो दिमागी रूप से बहुत कमज़ोर है. शादी के बाद जैसा कि होता है लड़का अपनी पत्नी को दिल्ली ले आया. एक साल दोनों साथ रहे, लेकिन कुछ ठीक नहीं हुआ. लड़की कुछ समझती ही नहीं थी. लड़के को मैं व्यक्तिगत रूप से जानती हूँ कि वो बहुत ही केयरिंग, औरतों का सम्मान करने वाला, इमोशनल और प्यारा सा बन्दा है. अगर उसकी लड़की से नहीं पटी तो इसका सीधा समत्लब है कि लड़की 'उसके लायक' थी नहीं, हालांकि मुझे ये बात कहना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता. हम कहने को कह सकते हैं कि धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा, लेकिन कब? लड़का मेरी उम्र का है. तैतींस साल की उम्र में वो लड़की को ट्रेंड करना शुरू करेगा, तो बच्चे कब होंगे? और परिवार कब शुरू होगा? अब मैं बता दूँ कि जो हुआ उसमें लड़के की कोई गलती नहीं थी. लड़का लड़की को घर छोड़ आया. लड़की ने ससुराल वालों के साथ रहने को मना कर दिया और मायके वाले तलाक देने को तैयार नहीं हैं. हमारे यहाँ  माहौल ऐसा नहीं है कि लड़के वाले जो चाहे कर ले. ऐसे मामलों में लोग बिना जाने सुने लड़की वालों के पक्ष में हो जाते हैं. लकड़ी वाले बहुत धनी और दबंग हैं. तलाक नहीं होगा और लड़का दूसरी शादी नहीं कर सकता. दोनों की ज़िंदगी चौपट, तो इसमें कौन ज़िम्मेदार है?
मैं माँ-बाप से पूछती हूँ कि आप बच्चों को अपनी मर्ज़ी से शादी करने देंगे नहीं, शादी करते समय उनकी पसंद को तवज्जो नहीं देंगे और उनके लिए उनके लायक जीवनसाथी ढूँढेंगे नहीं. जिससे शादी कर देंगे, चाहेंगे कि वो साथ निभाए. क्या बच्चों की अपनी कोई मर्ज़ी नहीं? उन्हें आपने खुले आसमान में छोड़ दिया अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए, तो वापस फिर परम्परा, जाति, समुदाय, रीति-रिवाज के बंधनों में क्यों डाल रहे हैं? और कम से कम उन बच्चों की ज़िंदगी पर तरस खाइए, जिन्होंने अपनी जिंदगी का इतना बड़ा निर्णय आपके हाथों में सौंप दिया है. 



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February 15, 2013

अब आप बताये क्या करूँ

रचना जी
नमस्ते
एक समस्या हैं ,मेरी , ब्लॉग पर पोस्ट कर दे . शायद कुछ समाधान मिले .

"
मै एक 30 वर्ष का नव युवक हूँ और मैने ऍम सी ऐ किया हुआ हैं . पिछ्ले 7 साल से में दिल्ली मे रहता हूँ और नौकरी करता हूँ . मेरे परिवार में मुझसे 4 साल छोटा एक भाई हैं जो नॉएडा में नौकरी करता हैं .
मेरे माता पिता दिल्ली से दूर लखनऊ के पास रहते हैं

तकरीबन 1 साल पहले मेरा विवाह उन्होने बलिया में रहने वाली एक लड़की से तय किया था, लड़की 28 साल की हैं  . लड़की बी एस सी बी एड हैं . लेकिन नौकरी नहीं करती थी . मेरी इच्छा नौकरी करने वाली और दिल्ली में रहने वाली लड़की से शादी करने की थी पर मै अपने पिता के आगे नहीं बोल पाया , उनके तय किये रिश्ते से ही मेरी  शादी हुई .

मै लड़की से केवल एक बार मिला था शादी से पहले लेकिन शादी के बाद मेरा ताल मेल उस लड़की से बिलकुल नहीं बैठ रहा हैं .
उस लड़की का मेंटल मेकप मेरी सोच से बिलकुल नहीं मिलता हैं . उसको खाना बनाना बिलकुल नहीं आता हैं . मुझे उससे कोई ख़ास फरक नहीं पडा क्युकी मुझे लगा वो कुछ समय में ये सीख जायेगी पर ऐसा नहीं हुआ , उसके लिये माइक्रोवेव , वाशिंग मशीन  इत्यादि बिलकुल नयी तकनीक हैं और मेरे सीखने के बाद भी उसको सीखने मे बहुत समय लगता हैं जो दिल्ली की भागम भाग जिन्दगी में किसी के पास नहीं हैं .
मेरे कहने से उसने वेस्टर्न कपड़े पहनने शुरू करदिये हैं लेकिन उसकी बोल चाल मे कोई फरक नहीं हैं .
मै उसे अपने दोस्तों के बीच में नहीं ले जा पाता हूँ क्युकी मुझे उसके बोलचाल का तरीका पसंद नहीं आता हैं . वो साथ में बैठ कर ड्रिंक इत्यादि भी सही तरीके से कम्पनी के लिये भी नहीं ले पाती हैं . हम पूरे एक साल में भी कभी एक साथ अकेले कहीं घुमने नहीं गए क्युकी मेरी इच्छा ही नहीं होती उसके साथ कहीं भी जाने की { हनीमून पर हम बस 1 हफ्ते के लिये गए थे }
मै चाहता हूँ वो किसी प्रोफेशनल की तरह कहीं नौकरी करे , किसी स्कूल में नहीं लेकिन ये संभव नहीं हो रहा हैं क्युकी उसकी शिक्षा का स्तर बहुत फरक हैं .
मेरे माँ पिता चाहते हैं वो उनके साथ रह कर कोई सरकारी नौकरी कर ले लेकिन इसके लिये लड़की के परिवार वाले तैयार नहीं हैं . वो उसे मेरे साथ दिल्ली मे ही रखना चाहते हैं .
मुझे उस लड़की मे कोई रूचि नहीं हैं .
मेरे लिये जिन्दगी में क्या ऑप्शन अब हैं ?
क्या मुझे ना चाहते हुए भी इस रिश्ते की आजन्म ढोना होगा ??

हमें शादी के समय बताया गया था की लड़की बहुत काबिल हैं और पी सी ऐस की त्यारी कर रही हैं , मेरे माता पिता खुद उसको इम्तिहान दिलवाने गए थे लेकिन उसने प्रीलिम नहीं पास कर पाया . अब उसकी इंग्लिश देख कर लगता हैं की दिल्ली में तो 8 पास बच्चे भी इस से बेहतर इंग्लिश लिखते हैं .

हां चलते चलते ये भी बता दूँ शादी पूरे रीति रिवाजो से हुई थी , यानी दान दहेज़ के साथ . लेकिन वो दान देहेज तो सब मेरे अभिभावक के पास हैं और मेरी पत्नी जिस से मेरा सामंजस्य कभी नहीं हो सकता मेरे पास हैं .

मेरी गलती इतनी हैं की मै अपने पिता के निर्णय का विरोध नहीं कर सका ,

अब मेरे लिये क्या जिन्दगी मे सब रास्ते बंद हो गए जो मुझे जीवन साथी से ख़ुशी मिल सके .
आज कल मे सुबह 6 बजे घर से जाता हूँ , और शाम को 10 बजे के बाद आता हूँ
अपनी एक जानकार के यहाँ मैने अपनी पत्नी को नौकरी पर रखवा दिया हैं . लेकिन उनका कहना हैं की वो ज्यादा दिन उसको नहीं रख सकेगी क्युकी उसको काम करना नहीं आता हैं और ना ही वो कुछ सीख पा रही हैं . उनको भी लगता हैं की किसी स्कूल में शायद वो कुछ बेहतर कर सके . मुझे स्कूल टीचर अपनी पत्नी नहीं चाहिये , कभी नहीं .

अब आप बताये क्या करूँ

सादर
आ बा सा
"

update
read following links which took forward the decision from here on
link one 
link two 

February 09, 2013

आप भी पढ़े

कुछ पढ़ा हैं

आप भी पढ़े

और वहाँ कुछ कमेन्ट भी दे


लिंक 

February 03, 2013

वुमन एनाटोमी से वुमन ऑटोनोमी तक का सफ़र

वुमन एनाटोमी से वुमन ऑटोनोमी तक का सफ़र

आज तक ब्लॉग पर जब भी बाते हुई हैं नारी की एनाटोमी को लेकर होती आयी हैं .
ज्योति सिंह पाण्डेय की हिम्मत , जी हाँ अगर ज्योति हिम्मत छोड़ देती और तुरंत मर जाती तो फिर एक युवती की मौत की खबर आ जाती लेकिन ऐसा नहीं हुआ . अब तक के सबसे भयंकर गैंग रेप से लड़ कर वो 15 दिन तक अपनी जीवन शक्ति को बनाए रही और उसने मजबूर किया की हम सब "एनाटोमी" से ऊपर उठ कर "ऑटोनोमी " की बात करे . ये उसकी लड़ाई थी जिसने मजबूर किया आम जनता के उस तबके को जो औरत को "शरीर " समझ कर केवल और केवल " एनाटोमी " की बात करता रहा हैं सोचने पर की वो नारी के " ऑटोनोमस " होने को भूल चुका हैं

आप कहेगे ये ऑटोनोमी क्या हैं
ऑटोनोमी को समझना हैं तो इन लिंक को पढ़े

लिंक 1
लिंक 2 
लिंक 3 

अब कमेन्ट में लिखे अपने विचार .

ऑटोनोमी का सीधा और सरल मतलब हैं की हम कुछ भी करने को स्वतंत्र हैं . स्वतंत्रता मौलिक अधिकार हैं . जिस प्रकार से एक लड़की शादी करने को स्वतंत्र हैं उसी प्रकार से दूसरी अविवाहित रहने को .
जिस प्रकार से एक लड़की साड़ी पहने को स्वतंत्र हैं उसी प्रकार से दूसरी बिकनी पहने को स्वतंत्र हैं .
जिस प्रकार से एक केवल एक पुरुष से सम्बन्ध बनाने को स्वतंत्र हैं दूसरी कई पुरुषो से सम्बन्ध बनाने के लिये स्वतंत्र हैं .
जिस प्रकार से एक नारी बच्चा पैदा करने के लिये स्वतंत्र हैं उसी प्रकार से दूसरी अबोर्शन करवाने के लिये स्वतंत्र हैं

बस ध्यान ये देना चाहिये की जो भी किया जाये वो कानून और संविधान को मान्य हो . 

समाज को ये अधिकार है ही नहीं की वो किसी भी नारी को कुछ भी करने के मजबूर करे या कुछ भी करने से रोके .

स्वतंत्रता का सही अर्थ अब शुरू हुआ हैं . जब हम शरीर की संरचना से ऊपर उठ कर लिंग विबेध से हट कर
ऑटोनोमी
{ स्वराज्य  स्वायत्तता (f) स्वत्व अधिकार  स्वयं शासन }
 की बात कर रहे हैं

नारी ब्लॉग पर ये सब कई बार लिखा जा चुका हैं एक बार फिर सही 

February 02, 2013

किसी को भी नारी को परतंत्र कहने का अधिकार नहीं हैं

हर महिला को ये समझना चाहिये की वो  दुनिया में  "आज़ाद " ही पैदा हुई . उसको किसी से भी आज़ादी नहीं चाहिये . जिस दिन ऐसे आलेख जहां ये लिखा होता हैं " महिला को आज़ादी मिली हैं , दी गयी हैं , किस से चाहती हैं " इत्यादि ख़तम होंगे उसदिन शोषण खुद बा खुद ख़तम होगा .


नारी और पुरुष एक दूसरे के पूरक नहीं हैं , केवल वो नारी पुरुष जो शादी के बाद पति पत्नी बनते हैं एक दूसरे के पूरक बनते हैं .

नारी और पुरुष दो इकाई हैं जो अपने अपने आप एक दम स्वतंत्र हैं


किसी को भी नारी को परतंत्र कहने का अधिकार नहीं हैं
लिंक 1 
लिंक 2 

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