नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

December 31, 2008

सफर यादो से उम्मीदों का २००८ -२००९

२००९ का आगमन हो रहा हैं
आप सब को नया साल शुभ हो
हमारे देश मे सदा शान्ति रहे और हम हमेशा हर जरुरत पर एक दूसरे के लिये खडे हो
हर आने वाला साल नई उम्मीदे लाता हैं
पर
बीते साल की यादे भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं
यादो को याद रखेगे तो उम्मीदे भी पूरी होगी
क्युकी
आज जो उम्मीद हैं कल वह ही याद होगी
२००८ को याद करते हुए चलिये चलते हैं २००९ मे
सफर यादो से उम्मीदों का

December 30, 2008

समय बदलेगा और जरुर बदलेगा उस दिन जिस दिन हर महिला उठ कर किसी भी नारी के प्रति कहे गए अप शब्दों मे पूरी नारी जाति का अपमान देखेगी ।

नारी को नारी की जगह दिखानी बहुत जरुरी हैं . और नारी को ये जगह केवल और केवल उसके शरीर को याद दिला कर ही दिखाई जा सकती हैं . विषय कोई भी हो , बहस किसी भी चीज़ के ऊपर हो लेकिन अगर बहस पुरूष और स्त्री मे होगी तो पुरूष बिना स्त्री के शरीर की बात किये उसको कैसे जीत सकता हैं क्युकी वो सोचता हैं की "नंगा कर दो फिर देखे साली क्या करती हैं , बहुत बोल रही हैं " इस लिये जरुरी हैं की हम अपनी बेटियों को "नंगा " किये जाने के लिये मानसिक रूप से तैयार कर दे ताकि आने वाली पीढी की बेटिया अपनी लड़ाई नंगा करने के बाद भी लड़ सके और ये समझ सके की जो उन्हे नंगा कर रहा हैं वो उन्हे नहीं अपने आप को "नंगा ' कर रहा हैं .
२ साल से हिन्दी ब्लोगिंग मे हूँ और यही देख रही हूँ सभ्य और सुसंस्कृत लोग कैसे अपने पुरूष होने को prove करते हैं .
लेकिन तारीफ़ करनी होगी ब्लॉग लेखन करते पुरुषों की क्युकी उनमे एका बहुत हैं और कहीं से भी एक दो आवाजो को छोड़ कर चन्द्र मौलेश्वर प्रसाद की टिपण्णी के विरोध मे कोई आवाज नहीं आयी हैं पुरूष समाज से . क्या मौन का अर्थ स्वीकृति हैं . रही बात ब्लॉग लिखती महिला के विरोध करने की और एक जुटता से इसके विरोध मे अपनी आवाज उठाने की तो दोष उनका उतना नहीं हैं जितना उनको "सिखाने और कन्डीशन " करने वालो का हैं ।

समय बदलेगा और जरुर बदलेगा उस दिन जिस दिन हर महिला उठ कर किसी भी नारी के प्रति कहे गए अप शब्दों मे पूरी नारी जाति का अपमान देखेगी गंदगी को इग्नोर करना या ये कहना की कीचड मे पत्थर मारने से कीचड अपने ऊपर आएगा से ज्यादा जरुरी हैं गंदगी को साफ़ करना चाहे हमारे हाथ इस प्रक्रिया मे कितने भी गंदे क्यों ना हो जाए ।


December 29, 2008

ये कहना "आगे बढ़कर अपने लिए एक रेड लाईट एरिया[ चाहें तो रंग बदल लें] खोल लें" एक गाली ही हैं

लगता है महिलाएं भी पुरुषों का मुकाबिला गाली-गलौच में भी करना चाहती हैं! करें, जरूर करें, कौन रोकता है। पुरुषों की तरह सिगरेट पियें [पश्चिम में तो पुरुषों से अधिक महिलाएं ही पीती हैं तो भारत में पीछे क्यों रहें], शराब पियें, आगे बढ़कर अपने लिए एक रेड लाईट एरिया[ चाहें तो रंग बदल लें] खोल लें .... तभी ना, यह कहा जा सकेगा कि स्त्री भी पुरुष से कम नहीं!!
ये कमेन्ट हैं श्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी का चिटठा चर्चा पर और सन्दर्भ हैं "गाली गलोज" पर चल रही गाली गलोज

एक सीधी साधी बात की अगर पुरूष नहीं चाहते की महिला गाली दे तो पुरूष को भी गाली देना बंद करना होगा । लेकिन बिना बात की तह तक जाए सीधा ये समझ लिया गया की महिला गाली देने की छुट चाहती हैं ।

जिसका सीधा सरल जवाब हैं की महिला स्वतंत्र हैं कुछ भी करने के लिये । नारी को बार बार ये समझाने का हक़ पुरूष को किसने दिया हैं की नारी के लिये क्या क्या वर्जित हैं और क्या क्या करना सही हैं ?
ये जितनी भी वर्जनाये नारी के लिये हैं उनको पुरूष अपने ऊपर क्यूँ नहीं लगाते । बेटी के लिये नियम की गाली मत दो और बेटे के लिये नियम "क्या फरक पड़ता हैं "

औरश्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी तो शिष्टा की सीमा ही लाँघ गए क्युकी उन्होने सब महिला जो इस विषय पर लिख रही हैं उनको सीधा सीधा कह दिया " रेड लाईट एरिया खोल लो "
इस सुसंस्कृत भाषा और "जाओ चकले पर बैठ जाओ या जाओ कोठा खोल लो " दोनों मे कोई ख़ास अन्तर नहीं दिख रहा ।

कभी किसी पुरूष को जब वह गाली देता हैं शायद ही किसी ने कह होगा की जाओ अपना शरीर बेचो ।
नारी के साथ बहस का अंत हमेशा उसके शरीर पर आकर ही क्यूँ ख़तम होता हैं । बहुत अफ़सोस हुआ ये देख कर की ब्लॉग लेखन मे भी ब्लॉग लिखती महिला को आप गाली देना सही मानते हैं क्युकी ये कहना "आगे बढ़कर अपने लिए एक रेड लाईट एरिया[ चाहें तो रंग बदल लें] खोल लें" एक गाली ही हैं



December 25, 2008

ब्लॉग जगत में नारी शक्ति

हिन्दी ब्लॉग जगत में महिला चिट्ठाकारों के कदम तेजी से बढ़ रहे हैं। साहित्य ही नहीं, समसामयिक और तकनीकी विषयों पर भी वे ब्लॉग जगत में अपनी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। पिछले दिनों हिन्दी ब्लॉग संसार में छाईं ऐसी ही छह प्रबुद्ध महिला चिट्ठाकारों से चर्चा का सौभाग्य मिला। इस चर्चा को मैंने कलमबद्ध किया और मेरी इस प्रस्तुति को राजस्थान पत्रिका ने आज (बुधवार, 24 दिसंबर 2008) के अंक में प्रकाशित किया है।

आप इसे यहां पढ़ सकते हैं। बड़े आकार में देखने के लिए नीचे दी गई तस्वीर पर क्लिक करें।



इस चर्चा में छह अलग क्षेत्रों से जुड़ी महिला चिट्ठाकारों को शामिल किया गया है, इसलिए कुछ अन्य प्रबुद्ध महिला चिट्ठाकारों के नाम छूटना लाजिमी है। जिन ब्लॉगर्स को यहां मैं जगह नहीं दे पाया, उनसे क्षमा चाहते हुए उनके योगदान को भी सलाम करता हूं।
आशीष खण्डेलवाल




प्रिये
आशीष
आप को रंजना , रचना , अल्पना , गरिमा , पूजा और कविता की तरफ से धन्यवाद । हम सब केवल और केवल उन महिला का प्रतिनिधित्व मात्र कर रही हैं जो आज ब्लॉग पर उपस्थित हैं ।
कुछ नाम जिनका ब्लॉग लेखन मे जो योगदान हैं उसको शायद शब्दों मे बंधना बहुत मुश्किल होगा ।
पूर्णिमा , घुघूती , अनीता , सुजाता , नीलिमा , पारुल , बेजी , प्रत्यक्षा , अनुजा , अनुराधा , मीना , सुनीता , वर्षा , पल्लवी , मनविंदर , लावण्या , ममता , शायदा , फिरदोस , अनुजा , रेखा , मीनाक्षी ,

प्रिय पाठक
आप सभी से निवेदन हैं की आप को जो भी नाम याद आए टिपण्णी मे दे दे बाद मे इस पोस्ट मे जोड़ दिया जायेगा इस प्रकार से एक लिस्ट तैयार हो सकती हैं


December 24, 2008

क्या विवाह करना , बच्चो को बड़ा करना , सास ससुर की सेवा करना कर्तव्य नहीं सक्रिफाईस हैं

अविवाहित स्त्री और विवाहित स्त्री दोनों एक ही संसथान मे कार्यरत । विवाहित स्त्री चाहती हैं की उसको कुछ ख़ास रियायते दी जाए क्युकी उसके ऊपर एक पारिवारिक ज़िम्मेदारी भी हैं । क्युकी वो विवाहित हैं सो अगर समाज चाहता हैं की वो अपने कार्य क्षेत्र मे आगे जाए तो समाज को / सरकार को उसके लिये अलग से सोचना होगा । उसको घर जल्दी जाने देने का प्रावधान होना चाहिये क्युकी उसके बच्चे हैं , सास ससुर हैं जिनके लिये उसको सोचना जरुरी हैं । इसी प्रकार की और भी बहुत सी रियायते हो सकती हैं जो केवल maternity leave तक ही सिमित नहीं हैं .

क्या इस तरह का वर्गीकरण सही हैं ?? क्या विवाहिता का विवाहित होना मात्र एक कर्तव्य नहीं हैं और क्या एक अविवाहित स्त्री के प्रति ये अन्याय नहीं होगा अगर विवाहिता को ख़ास रियायत सिर्फ़ इसलिये मिलाए क्युकी वो विवाहित हैं ।

एक अविवाहित स्त्री पारिवारिक सुख को छोड़ कर नौकरी / अपनी तरक्की की कामना करती हैं यानी वो पहले ही कुछ कम पाती हैं और एक विवाहिता को पारिवारिक सुख के साथ नौकरी का भी सुख हैं फिर क्यूँ विवाहिता को "special considerations " मिलने चाहिये कर्तव्य पूर्ति के लिये ?

क्या विवाह करना , बच्चो को बड़ा करना , सास ससुर की सेवा करना कर्तव्य नहीं सक्रिफाईस हैं जिसके लिये विवाहित स्त्रियों के लिये एक अलग लाइन { रिज़र्वेशन } की जरुरत हैं । अब कुछ आप भी कहें ।

कल छात्राओं के लिए प्रश्नपत्र पढ़ा और नामो के नाम एक स्त्री की चिट्ठी भी पढ़ी । आप भी पढे और अपने विचार भी दे ।

December 21, 2008

ऐसी मिसाले कम ही मिलती हैं पर इनसे ही प्रेरणा भी मिलती हैं ।

एक समाजवाद ऐसे भी .....एक सत्य घटना ....
नथिया बुआ ने २६ वर्ष की अवस्था से लेकर ७० वर्ष तक अपना वेध्वय अकेले ही काट दिया था ना पीहर मैं कोई रहा ना ससुराल मैं ,ब्याह होते ही जिस हवेली मैं आई थी उसी के दो छोटे कमरों और एक रसोई के लिए रख कर गुजारा करती रही हवेली बड़ी थी ,एक-एक करके आठ किरायेदार हो गये थे ,७७ की उम्र के आस -पास जब बीमार पड़ी और बचने की कोई उम्मीद ना रही तो दूर-दूर के और आस-पास के तमाम लोग रिश्ते-नाते दार बन कर सेवा मैं जुट गये,हवेली का सवाल था बुआ सब कुछ देख समझ रही थी जब उसे लगा अन्तिम समय आने ही वाला है तो उसने अपने आठों किरायेदारों को बुलाकर कहा ,हवेली के जिस-जिस हिस्से में जो- जो रहता है उसकी रजिस्ट्री वो अपने नाम करा ले .मेरा हिस्सा नगर-निगम को यह कह कर दे दिया जाय की उसमे एक दवाखाना रहे.सब किरायदारों ने अपने-अपने नाम रजिस्ट्री करा ली वकील को बुलाकर.बुआ का हिस्से मैं उनकी मर्जी मुताबिक अस्पताल खुल गया, लालची और बनावटी रिश्तेदार देखते रह गए,बुआ ने ना लेनिन पढा था,ना मार्क्स ,फिर भी समाजवाद ले आई


ये घटना रायपुर की हैं और नारी पर पोस्ट के लिये विधु लता ने भेजी हैं । ऐसी मिसाले कम ही मिलती हैं पर इनसे ही प्रेरणा भी मिलती हैं । विधु लता जी पिछले ८ वर्षो से "औरत " नाम से एक पत्रिका का संपादन कर रही हैं । ये कथा उन्होने ३ वर्ष पूर्व अपनी पत्रिका मे प्रकाशित की थी ।

December 20, 2008

बैंकिंग सेक्टर , नो जेंडर बायस , इनीशियल एडवाण्टेज और इन्हे चाँद चाहिये

बैंकिंग सेक्टर शायद पहला ऐसा सेक्टर बन गया हैं जहाँ टॉप लेवल पर कोई जेंडर बायस नहीं दिख रहा हैं ।

आईसीआईसीआई बैंक की चन्दा कोचर

जे पी मोर्गन चेस बैंक की कल्पना मोरपारिया

अच् अस बी सी बैंक की नैना लाल किदवई

सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया बैंक की होमी दरुवाल्ला

ऐ बी अन एम्ब्रो बैंक की मीरा एच सान्याल

ये सब नारियां पिछले कई वर्षो से निरंतर अपने कार्य छेत्र मे आगे बढ़ रही हैं और आज उस मुकाम पर हैं जहाँ कारपोरेट वर्ल्ड का हर कोई होना चाहता हैं । इनकी मेहनत और लगन ही इनको यहाँ ले आयी हैं । हमे खुशी हैं की ये सब भारतीये महिला अपने अपने छेत्र मे इतना आगे गयी हैं । जिन्दगी की दौड़ मे किसी को कोई इनीशियल एडवाण्टेज नहीं मिलता ये हम सब पर निर्भर हैं की हम कितनी मेहनत कर सकते हैं और कितना आगे जा सकते हैं । और ये कहना तो बिल्कुल ग़लत हैं की अगर चाँद की कामना करोगी तो गरिमा को ठेस लगेगी ।

इन सब ने चाँद की कामना जरुर की और आज पा भी लिया अब आगे ये सब क्या और करेगी आने वाला वक्त ही बतायेगा ।

December 15, 2008

हमारे देश की त्रासदी ये हैं की यहाँ कानून मे तो गुनाहगार को सजा देने का प्रावधान हैं पर समाज मे सजा उसको दी जाती हैं जो गुनाह नहीं करता हैं।

सेंट्रल गवर्मेंट , राज्य सरकारों के साथ मिल कर एक कानून बनाए जाने पर विचार कर रही हैं जिसके तहत "एक विवाहिता " अगर अपने पति के अलावा किसी गैर पुरूष से सम्बन्ध बनाती हैं तो वो कानून दंडनिये अपराध होगा । लेकिन वूमन सैल इस का विरोध कर रहा हैं { क्यूँ इसका कोई जिक्र अखबार की सूचना मे नहीं था सो नहीं बता सकती } ।
अभी तक ये कानून केवल "विवाहित पुरुषों" पर लागू था । अगर कोई विवाहित पुरूष , अपनी पत्नी के अलावा किसी भी पर स्त्री से शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करता हैं तो वो कानून दंडनिये अपराध होता हैं ।

हमारे देश की त्रासदी ये हैं की यहाँ कानून मे तो गुनाहगार को सजा देने का प्रावधान हैं पर समाज मे सजा उसको दी जाती हैं जो गुनाह नहीं करता हैं।

जैसे एक विवाहित पुरूष / स्त्री जो विवाह के बाहर शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं कानून उन्हें दोषी मानता हैं और सजा का प्रावधान रखता हैं
लेकिन हमारा समाज दोषी मानता हैं उस स्त्री या पुरूष को जो विवाहित नहीं हैं पर जिसके साथ एक विवाहित पुरूष /स्त्री सम्बन्ध बनाते हैं ।
एक अविवाहित पुरूष या स्त्री को दोषी माना जाता हैं किसी की शादी के बीच मे आने के लिये जबकि शादी को बनाए रखने की जिम्मेदारी केवल और केवल पति - पत्नी की होती हैं । जिस दिन कोई भी पति या पत्नी अपनी शादी से बाहर जा कर मानसिक या शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करते हैं शादी उसी दिन ख़तम हो जाती हैं लेकिन उसको ख़तम होने का दोष समाज कभी उनको नहीं देता बल्कि इसे केवल और केवल एक गलती माना जाता हैं ।

क्यूँ हमारे समाज के नियम हमारे कानून के नियम से अलग हैं । क्यूँ हम दंडनिये अपराध को केवल "एक गलती कह कर छोड़ देते हैं ।

अब आप अगर आप का मन कह रहा हैं की परिवार भी तो बचाना हैं , बच्चो का भी तो सोचना हैं तो आप इस आलेख को भी पढ़े लिंक १

और कैसे एक ख़बर भ्रान्ति और मजाक बनती हैं जानना हो तो ये पढ़े लिंक २ ये उन लोगो के विचार हैं जो लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी तोर से मान्यता देने के सख्त खिलाफ हैं ।

December 14, 2008

महिला सशक्तिकरण की अनूठी मिसाल

जयंती देवी पूर्णिया में महिला सशक्तिकरण की अनूठी मिसाल पेश कर रही है। अपने स्टील के कारखाना में वे न सिर्फ अलमारी को पेन्टिंग करने का काम करती है बल्कि गेट ग्रील को स्वयं वेल्डिंग भी करती है।

पूर्णिया के फार स्टार सिनेमा हाल के बगल वाली गोकुल आश्रम सड़क। कुछ दूर चलने के बाद सड़क के दाहिने ओर अलमारी से पटे जयंती स्टील व‌र्क्स में एक महिला कभी वेल्डिंग तो कभी अलमारी की रंगाई करती नजर आती है।

1987 में इंटर तक की पढ़ाई करने के बाद अपने परिवार में जयंती देवी व्यस्त हो गयी। उनके पति बस स्टैड में किरानी का काम करते है। जयंती बताती है कि अपने किसी बच्चे को इस काम में नहीं लगाऊंगी। वे पढ़ लिखकर अपने लिये खुद अच्छा रास्ता ढूंढ लेंगे। पर वे यह जरूर कहती है कि हमारे काम में पति हमेशा सहयोग करते है।


आप खुद से वेल्डिंग और अलमारी पेन्टिंग का काम क्यों करती है? वे बताती है कि स्टाफ को काम करते देख हमने सारा काम सीख लिया। पार्टी का आर्डर समय पर पूरा कर लिया जाये इसको ले स्टाफ गंभीर नहीं रहते थे। स्टाफ कभी आता कभी नहीं आता। इसलिये मैंने खुद यह काम करना शुरू कर दिया। अब मैं कारखाना के स्टाफ पर निर्भर नहीं हूं। ऐसा नहीं कि यह काम केवल पुरुष ही कर सकते है। आज के दौर में महिला सभी काम कर सकती है, केवल साहस व प्रोत्साहन की जरूरत है।

हाल ही में वकालत की पढ़ाई करने के लिये ला कालेज में दाखिला करा चुकी जयंती देवी कहती है कि हमारे यहां कोई महिला अगर काम सीखने की नीयत से आये तो उसे मैं काम सीखाने को भी तैयार हूं। जयंती स्वयं भारी हथौड़ा चलाकर चदरा और लोहे को काटने का भी काम करती है। इनके द्वारा प्रेशर मशीन से रंगाई किया हुआ अलमारी देखने में मानों किसी स्तरीय कंपनी जैसा ही मालूम होता है। कहानी यहीं खत्म नहीं हो जाती। मरीजों को सलाईन और इंजेक्शन लगाने के अलावा महिलाओं को प्रसव कराने में भी सक्षम है यह महिला।


पोस्ट आभार अनुभव

December 12, 2008

नये ज़माने के जोधा अकबर सावधान

जो भी नारी हिंदू हैं और गैर हिंदू से शादी करना चाहती हैं वो ध्यान रखे कि

हिंदू की किसी गैर हिंदू से की गई परंपरागत शादी हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के तहत वैध नहीं मानी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में ये कहा हैं ।

ऐसे लोग स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत कोर्ट मैरिज कर सकते हैं। कोर्ट के जरिए होने वाली यह शादी पूरी तरह वैध होगी।

शादी जैसा गंभीर फैसला लेने से पहले हर जोधा अकबर उसके वैध और अवैध होने का कानूनी पक्ष जरुर देखा ले ।

ज्यादा जानकारी यहाँ उपलब्ध हैं

डॉ कुसुम लता जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की

डॉ कुसुम लता जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की । नहीं इस महिला का कोई लिंक या चित्र मै उपलब्ध नहीं करा सकती । अब या तो आप मेरी बात पर व्विश्वास कर सकते हैं या अविश्वास ।
क्यूँ मै आज डॉ कुसुम लता पर लिखना चाहती हूँ , क्यूँ उनको इस ब्लॉग पर आप सब के सामने लाना जरुरी हैं क्युकी मुझे दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापको से आने वाले academic council के लिये चुनाव मे इनके लिये वोट चाहिये ।
मै कुसुम को १९९९ से जानती हूँ । मेरी माँ दिल्ली विश्विद्यालय मे दौलत राम कॉलेज मे पढाती थी और एक दिन कुसुम अपने पति डॉ आर ऐ शर्मा के साथ हमारे घर आयी थी । उन्होने नए हमारे घर के पास एक फ्लैट खरीदा था और उसी के लिये दावत देने आयी थी ।
बातचीत के दौरान उन्होने बताया की वो किरोडी मल कॉलेज मे प्राध्यापिका हैं और उनके पति राम लाल आनन्द कॉलेज मे हिन्दी के प्राध्यापक हैं । उनके दो बेटियाँ भी हैं । कुसुम बताती जा रही थी और मै सुनती जा रही थी , उम्र मे मुझसे छोटी हैं सो दीदी कह रही थी ।
मै सोच रही थी की कैसे उन्होने अपनी जिन्दगी को इतनी ऊँचाइयों पर लाया होगा । मै देख रही थी उनके जीने की इच्छा को और मै अभिभूत थी ।
कुसुम और उनके पति दोनों नेत्रहीन हैं और उनसे जुड़ कर मुझे जिन्दगी की लडाइयों को जीतने का नया जज्बा मिलता हैं ।
परसों कुसुम और उनके पति दोनों आए थे मम्मी से आशीर्वाद लेने क्युकी कुसुम दिल्ली विश्वविद्यालय केacademic council के चुनाव मे खड़ी हो रही हैं । मै केवल और केवल अपना फ़र्ज़ निभा रही हूँ ब्लॉग के जरिये उनके लिये वोट मांग कर ।
वोट इस लिये नहीं की कुसुम नेत्र हीन हैं बल्कि इसलिये क्युकी वो जिन्दगी मै आगे बढ़ना चाहती हैं और हम उसके इस सपने को पूरा कर सकते हैं ।
कुसुम अपने रेसिडेंट वेलफेयर सोसाइटी की अध्यक्षा भी रह चुकी हैं और एक बहुत ही सक्षम व्यक्तित्व की मालकिन हैं । मोबाइल फ़ोन , कंप्यूटर इत्यादि उनको पुरी तरह से आता हैं । दोनों बेटिया पूरी तरह स्वस्थ हैं और दोनों ही शालीन हैं ।
कुसुम से आप किरोडी मल कॉलेज मे मिल सकते हैं । वोट करने के लिये १९ दिसम्बर को चुनाव हैं और उनका
BALLOT NUMBER 09 हैं .

December 10, 2008

"जाने क्या बात हुई "

"जाने क्या बात हुई" नाम हैं कलर्स चैनल पर शुरू हुए नए धारावाहिक का । इस धारावाहिक के बारे मे इस लिये नारी ब्लॉग पर लिख रही हूँ क्योकि इस सीरियल मे कुछ ऐसा दिखा जो पहले टीवी पर किसी भी सीरियल मे इतनी गंभीरता से नहीं दिखाया गया हैं ।

इस धारावाहिक मे दिखाया हैं की कैसे एक पुरूष अपनी पत्नी के होते हुए भी दूसरी औरत से सम्बन्ध बनाता हैं । अब शायद आप सोचेगे इसमे नया क्या हैं , सब धारावाहिक यही सब दिखाते हैं । लेकिन नहीं बात ये नहीं हैं . इस सीरियल को जो एपिसोड मैने देखा उस मे दिखाया गया की दो पीढियों मे एक ही समस्या हैं ।

कहानी की नायिका हैं अनुराधा और अनुराधा को पति हैं शैलेन्द्र जिसके शारीरिक सम्बन्ध हैं अपनी ऑफिस मे काम कर रही मेनेजर के साथ ।

शैलेन्द्र की माँ के साथ भी शैलेन्द्र के पिता ने वही किया था जो शैलेन्द्र अपनी पत्नी के साथ कर रहा हैं । शैलेन्द्र के माता पिता साथ रहते हैं एक ही छत के नीचे और " the ideal husband wife happily married " का नाटक सालो से निभा रहे हैं । शैलेन्द्र की माँ ने उसके पिता की "गलती !!!" को माफ़ नहीं किया , भूली भी नहीं और घर परिवार बचाने के लिये साथ रही !!!!!

लेकिन अंत क्या हुआ इस परिवार को बचाने का, शादी को निभाने का जबकि वर्तमान मे उनके परिवार का लड़का भी वही कर रहा हैं । यानी पिता की "गलती" को दोहरा रहा हैं ।

जो भी लोग ये सोचते हैं की शादी को बचाने से परिवार बच जाता हैं उनको ये धारावाहिक जरुर देखना चाहिये , एक कड़वा और घिनोना सच कि एक बार शादी मे दरार आजाये तो वो कभी नहीं भरती और जिन बच्चो के लिये आप ग़लत आदमी /औरत के साथ रहते रहते हैं वो बच्चे , बड़े हो कर , निर्भीक हो कर वही काम करते हैं क्यों कि उनको ये पता हैं कि शादी तो कभी टूटेगी ही नहीं । वो जानते हैं कि सामजिक दबाव के चलते शादी अपने आप निभ जाएगी । !! ।

आगे क्या दिखाया जाएगा पता नहीं पर अब धारावाहिक मे भी कुछ सच दिखाया जा रहा हैं । हो सकता हैं कुछ चेतना आए लोगो मे और लोग गलत जगह रह कर गलतियां करने कि जगह अपनी जिन्दगी को सही तरीके से दुबारा शुरू करने कि सोचे ।

December 06, 2008

अपने सुझाव इस ईमेल पर भेजे

आप अगर आंतक से लड़ना चाहते हैं तो आप क्या करना चाहते हैं , इस विषय पर आप अपने सुझाव fightingterror@hindustantimes.com पर १०० शब्दों मे भेज दे । ज्यादा जानकारी आप को इस लिंक पर मिल जायेगी http://cj.ibnlive.in.com/citizen-against-terror/

December 05, 2008

पहल करे और एक हादसा बचाये - इस समय नेतृत्व करे , नेतृत्व खोजे नहीं ।

आतंकवाद के ख़िलाफ़ जंग । सब चाहते हैं पर क्या करे ?
नारी ब्लॉग की राय हैं की हम सब अपने ब्लॉग पर जब हो सके एक पोस्ट के जरिये किस चीज़ को बदलने से हम सुरक्षित हो सकते हैं उस पर जरुर लिखे । हो सकता हैं छोटी लगने वाली बात किसी बडे हादसे को हमारे आस पास होने से रोक सके । जिन्दगी रुकती नहीं , दिनचर्या बदली नहीं जा सकती और आजीविका के लिये कोई भी हादसा हो हम उसको भूल कर आगे बढ़ते ही हैं । लेकिन अगर हम एक मकसद की तरह ब्लोगिंग पर अपने विचारों को एक संजीदगी के साथ रखे तो शायद हम इस लड़ाई को आगे ले जा सके।

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हम मे से कितने हैं जो जब बैंक जाते हैं तो वहाँ "सिक्यूरिटी गार्ड " को दरवाजे पर खड़ा ना पाकर मैनेजर से प्रश्न करते हैं या गार्ड से प्रश्न करते हैं ।
गार्ड को हमेशा attention या सावधान की मुद्रा मे चुस्ती से बैंक के दरवाजे पर होना चाहिये लेकिन ज्यादातर बैंक मे गार्ड कुर्सी पर बैठा होता हैं या बैंक के किसी काउंटर के पीछे खड़ा सील लगा रहा होता हैं ।
आप सब से निवेदन हैं आप किसी भी बैंक मे ऐसा देखे तो आवाज उठाए और लिख कर मनेजर के पास शिकायत दर्ज करे ।
सिर्फ़ और सिर्फ़ आवाज उठाने की पहल करनी होगी और आवाजे ख़ुद आजायेगी । शोर मचेगा तभी सुधार होगा पर पहली आवाज आपकी हो तभी शोर मचेगा ।
पहल करे और एक हादसा बचाये
अपने अपने ब्लॉग पर कुछ आप भी बताये की और कहां कहां पहल करनी हैं । इस समय नेतृत्व करे , नेतृत्व खोजे नहीं । एक छोटी सी पहल बहुत बदलाव ला सकती हैं ।

December 04, 2008

नारी ब्लॉग की पोस्ट का जिक्र हिंदुस्तान दैनिक मे

नारी ब्लॉग की पोस्ट एक बार पढे जरुर और बताये क्यूँ खफा हैं सब भारतीये अपनी डेमोक्रेसी से ? का जिक्र हिंदुस्तान दैनिक मे ११ नवम्बर २००८ को किया गया हैं । हमारी बात को प्रिंट मीडिया के जरिये आगे ले जाने के लिये हम रविश कुमार जी के आभारी हैं । उनके इस आलेख मे और भी बहुत से ब्लॉग का जिक्र किया गया हैं । हर ब्लॉग का नाम और ब्लॉगर का नाम स्पष्ट दिया हैं केवल नारी ब्लॉग के ब्लॉगर का नाम नहीं दिया गया हैं । कारण क्या हो सकता हैं पता नहीं पर ब्लॉग का नाम हैं और बात आगे गयी हैं आम आदमी तक ये नारी ब्लॉग सदस्याओं के लिये अपने विचार खुल कर रखने का और ज्यादा लिखना का कारण बने तो अच्छा होगा । किसी के पास इस अखबार की प्रति हो तो स्कैन कर के भेज दे ।


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तैयार करना होगा नयी पीढी को की वो सैनिक बने डरपोक नागरिक ना बने


किसी भी जंग को जीतने के लिये पुरानी पीढी को तैयार होना होगा की वो नयी पीढी के साथ बैठ कर बात करे । हर विचार को सुनना होगा और तैयार करना होगा नयी पीढी को की वो सैनिक बने डरपोक नागरिक ना बने . ताकत और अकल दोनों की जरुँत होती हैं जंग मे . ताकत नवयुवक और नवयुवती मे हैं अगर आप चाहते हैं जंग जीतना तो उस ताकत को जागने वाले बने . जिस दिन हम मे से कोई भी नयी पीढी को अपने साथ लेकर आगे बढेगा जंग ही ख़तम हो जायेगी .अभी तो हर समय हमारा समाज पीढियों और लिंग विभाजन और धर्मं की लड़ाईयां ही लड़ रहा हैं . बच्चो को बड़ा बनाईये उनके हाथ मे "आक्रोश " दीजिये और आप उस आक्रोश को सही दिशा दीजिये . जिन्दगी की हर जंग आप और हम जीतेगे.
सर पर कफ़न बाँध कर जो मारने को नहीं "मरने को " तैयार हो वही लड़ाई लड़ भी सकता हैं और जीत भी सकता हैं । जो मर सकता हैं वही मार भी सकता हैं ।
केवल अपने लिये नहीं हर उसके साथ खडे हो जो कहीं भी सच के लिये लड़ रहा हैं क्युकी वो एक मकसद से लड़ रहा हैं । साथ दे आज तक की इस मुहीम का अगर जीना हैं और स्वंत्रता से जीना हैं और इस मुहीम को अपने अपने तरीके से अपनी मुहीम बना कर लड़ने की ताकत जगाये ।
ये संदेसा घर घर पहुचाये
हिन्दुस्तान हमारा हैं , हिन्दुस्तान का हर नागरिक पहले हिन्दुस्तानी हैं और बाद मे हिंदू मुसलमान सिख ईसाई नारी , पुरूष या बच्चा हैं ।
देश का नमक खाया हो तो उसके प्रति वफादार रहें और उन सब को समाने लाये जो वफादार नहीं हैं । जिस दिन हम अपने बीच मे रहने वाले ग़लत लोगो को बिना डरे कर्तव्य समझ कर सामने लायेगे उस दिनगलती करने वाला डरेगा आप से हम से ।

December 01, 2008

"ये लिपस्टिक-पाउडर लगाकर क्या विरोध करेंगी।" मुख्तार अब्बास नकवी

मुंबई के आतंकवादी हमले के बाद नेताओं के नाम पर इतनी थू-थू हुई है कि लगता है राजनेता बौखला गए हैं। इसी बौखलाहट में अजीब-ओ-गरीब बयान सामने आ रहे हैं। नया कारनामा बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नकवी का है। नकवी ने मुंबई में राजनेताओं के खिलाफ नारेबाजी कर रहीं कुछ महिलाओं के बारे में कहा कि ये लिपस्टिक-पाउडर लगाकर क्या विरोध करेंगी। नकवी ने इन महिलाओं की तुलना कश्मीर के अलगाववादियों से कर दी। उन्होंने कहा कि नेताओं के विरोध में नारे लगाने वाले ग्रुपों की जांच होनी चाहिए। नकवी के इस बयान पर बीजेपी भी मुश्किल में आ गई है। आनन-फानन में बीजेपी नेता राजीव प्रताप रूड़ी ने बयान जारी किया कि यह नकवी के अपने विचार हैं और बीजेपी का इससे कोई लेना-देना नहीं है।
आगे यहाँ पढे ,
अब हम को अपने मन का आक्रोश भी इनकी सलाह से करना होगा । लिपस्टिक लगा कर विरोध करना , मोमबती जला कर विरोध करना पाश्चात्य सभ्यता हैं ।

"मेरा बेटा देश के लिये मरा हैं , केरल के लिये नहीं मरा हैं । मेरे बेटे की मौत पर राजनीति मत करो । "


"मेरा बेटा देश के लिये मरा हैं , केरल के लिये नहीं मरा हैं । मेरे बेटे की मौत पर राजनीति मत करो । "ये शब्द हैं शहीद Major Sandeep Unnikrishnan के पिता के । मेजर संदीप कमांडो थे और उनकी जान आम आदमियों को बचाते हुए गयी मुंबई आतंकवादी हमले मे । उनके पिता ने किसी भी पॉलिटिकल पार्टी के नेता से बात करने से इनकार कर दिया । जब दाह संस्कार हुआ तो चीफ मिनिस्टर साहब नहीं आए बाद मे अपने कुत्ते मेजर साहब के घर भेजे की पता कर आओ कोई आतंकवादी तो नहीं घुसा हैं एक शहीद के घर मे मेजर संदीप के पिता ने अपने घर की तलाशी करवाने से इनकार कर दिया और मुख्यमंत्री को घर मे ही नहीं घुसने दिया
सलाम हैं मेजर संदीप को और उससे भी ज्यादा सलाम हैं उनके पिता को जो देश प्रेम का सही मतलब समझते हैं ।
क्या अधिकार हैं एक मुख्यमंत्री को एक शहीद के घर तलाशी करवाने का ?? शर्म आती हैं इन पर और हर उस नेता पर जिसे हम ही चुन कर लाते हैं और वो हम से ही अपना बचाव चाहता हैं

November 30, 2008

आम आदमी की जिंदगी की कोई सरकारी इंश्योरंस नहीं होती ??

मुंबई मे मरने वालो की संख्या २०० . शहादत का दर्जा मिला केवल ३ पुलिस कर्मियों को जो मुंबई के थे । ऐसा क्यूँ । क्यूँ केवल उनके ही परिवारों को आर्थिक सहायता दी जा रही रही हैं । वो आम आदमी जो स्टेशन पर , सडको पर , अस्पताल मे , होटल के अंदर और बाहर मरा हैं क्या उसकी जिन्दगी की कोई कीमत नहीं हैं ? क्यों बराबर के मुआवजे का अधिकारी वो नहीं हैं । सरकारी खजाने एक आम आदमी के टैक्स से भरे जाते हैं । हर विपदा आपदा मे प्रधान मंत्री कोष मे दान एक आम आदमी करता हैं फिर केवल और केवल सुरक्षाकर्मी को क्यूँ "ओन ड्यूटी " माना जाता हैं ।


हम हर शहीद को नमन करते हैं और दिल से आभारी हैं की उन्होने अपनी जान पर खेल कर लोगो की जान बचाई पर एक आम आदमी की जान की क्या कोई कीमत नहीं हैं । जो ड्यूटी पर थे वो अपना फ़र्ज़ निभा रहे थे पर जो आम आदमी मरा वो किसी की लापरवाही से मरा ?

अगर "ओन ड्यूटी " मरने पर मुआवजा हैं तो ड्यूटी मे कोताही पर कोई आर्थिक दंड क्यूँ नहीं हैं ? किस की ड्यूटी हैं की देश सुरक्षित हैं , देश की सीमाए सुरक्षित हैं ये जानकारी रखने की ? क्यूँ उनको दण्डित नहीं किया जाता ? क्यों उन पर आर्थिक दंड नहीं होता ?

और सब से बड़ी बात क्यूँ आम आदमी की जिंदगी की कोई सरकारी इंश्योरंस नहीं होती ??

November 28, 2008

ये चित्र हमारी कमजोरी का नहीं , हमारे विलाप का नहीं हमारे क्रोध और आक्रोश का प्रतीक हैं ।



अपनी एक जुटता का परिचय दे रहा हैं हिन्दी ब्लॉग समाज । आप भी इस चित्र को डाले और अपने आक्रोश को व्यक्त करे । ये चित्र हमारे शोक का नहीं हमारे आक्रोश का प्रतीक हैं । आप भी साथ दे । जितने ब्लॉग पर हो सके इस चित्र को लगाए । ये चित्र हमारी कमजोरी का नहीं , हमारे विलाप का नहीं हमारे क्रोध और आक्रोश का प्रतीक हैं । आईये अपने तिरंगे को भी याद करे और याद रखे की देश हमारा हैं ।


November 27, 2008

आज टिपण्णी नहीं साथ चाहिये ।


आज टिपण्णी नहीं साथ चाहिये । इस चित्र को अपने ब्लॉग पोस्ट मे डाले और साथ दे । एक दिन हम सब सिर्फ़ और सिर्फ़ हिन्दी ब्लॉग पर अपना सम्मिलित आक्रोश व्यक्त करे । चित्र आभार

November 26, 2008

२५ नवम्बर को विश्व नारी उत्पीड़न दिवस -- हैना फ़ॉस्टर

कल २५ नवम्बर को विश्व नारी उत्पीड़न दिवस मनाया गया और कल ही हैना फ़ॉस्टर{Hanaah Foster } का रेप और मर्डर करने वाले मनिंदर पल सिंह कोहली को २४ साल की सजा सुनाई गयी ।

हैना फ़ॉस्टर केवल १७ साल की थी जब ४१ के कोहली ने टूशन पढ़ कर रात को घर आते समय हैना फ़ॉस्टर को उसके घर के पास से जबरन अपनी संडविच डिलिवरी वैन मे खीच लिया । उसके बाद निर्ममता से उसका रेप और मर्डर किया और फिर उसके शरीर को एक जगह फ़ेंक कर कोहली अपने घर चला गया ।

कुछ दिन बाद पुलिस का शिकंजा जब कसने लगा तो बिना अपनी पत्नी को बताये कोहली इंडिया आगया और यहाँ नाम और भेष बदल कर अपनी जिन्दगी गुजारने लगा । हैना फ़ॉस्टर के माता पिता ने अपनी लड़ाई नहीं छोड़ी और कल पाँच साल बाद ठीक नारी विश्व नारी उत्पीड़न दिवस के दिन उनकी बेटी के कातिल को सजा सुनाई गयी । सजा यू के मे सुनाई गयी ।

कोहली को सजा दिलाने मे जो प्रूफ़ बहुत काम आये वो थे

सीसीटीवी का फुटेज जिसमे साउथ हैम्पटन की सडको पर संडविच डिलिवरी वैन चक्कर लगाती दीखी

हैना फ़ॉस्टर के मोबाइल का सिग्नल उसी जगह से उसी समय मिला

हैना फ़ॉस्टर के मोबाइल से की गयी कॉल ९९९ पर जिसमे कुछ बाते कंप्यूटर से रिकॉर्ड हुई ।

पूरी ख़बर पर मेरा ध्यान करीब दो साल से रहा हैं , कुछ दिन पहले मसिजीवी जी ने एक पोस्ट मे सीसीटीवी पर कुछ सवाल उठाये थे उसदिन टिपण्णी मे भी मै इस केस मे सीसीटीवी की भूमिका के बारे मे लिखना चाहती थी पर नहीं लिखा ।

कल जब इस के का फैसला आया तो लगा की न्याय हुआ ।

फिर दिमाग मे प्रश्न उठा क्या अगर ऐसा हादसा इंडिया मे होता तो भी यही फैसला होता ?

क्यों हमारी न्याय प्रणाली इतनी सशक्त नहीं हैं की इतना घिनोना अपराध करने वाले अक्सर bail पर खुले घुमते दिखाई देते हैं ।
क्यूँ हमारे समाज मे माता पिता केवल इस लिये लड़ाई नहीं लड़ते की अब तो बच्ची रही ही नहीं और रेप हुआ था ये नहीं बताओ { नॉएडा का चर्चित हत्या काण्ड ले ले } ।

भगवान् हैना फ़ॉस्टर की आत्मा को शान्ति दे और उसके माता पिता को आगे का जीवन जीने की ताकत दे । नमन हैं उनकी लड़ाई को जिसे उन्होने ६ साल तक निरंतर जारी रखा और तारीफ़ है ब्रिटइश न्याय प्रणाली और पुलिस की जिन के परिश्रम से ये केस सुलझा ।

आप क्या कहते हैं ??

November 25, 2008

खरीद कर पुस्तके पढे और हिन्दी लेखिकाओं का उत्साह वर्धन करे

"इन्द्रधनुष के पीछे पीछे " आर । अनुराधा के अथक परिश्रम का परिणाम हैं । ये एक डायरी हैं एक कैंसर के मरीज की और ये मरीज ख़ुद अनुराधा हैं । उन्होने ना केवल कैंसर को जीता वरन उसको जीया और उस एक एक पल को इस तरह से लिखा हैं की पढ़ने वाला अगर किसी भी बीमारी का मरीज़ हैं तो एक सिपाही की तरह उस बिमारी से लड़ना सीखेगा और अगर कैंसर का मरीज हैं तो उसको इस पुस्तक मे अपनी बीमारी के इलाज से सम्बंधित बहुत सी जानकारी मिल जाती हैं । ये पुस्तक किसी भी हिन्दी प्रेमी पाठक की लाइब्रेरी मे जरुर होनी चाहिये । पेपर बेक का मूल्य हैं मात्र ६०/- रुपए और हार्ड बाउंड का १५०/- रुपए । किताब कुरिएर से भेजी जायेगी उसके पैसे आर्डर मिलने पर बता दिये जायेगे. ।

"साया" कविता संग्रह हाल मे प्रकाशित हुआ हैं और इस पुस्तक को बहुत ही सरल हिन्दी मे हैं । अहिन्दी भाषी भी इन कविताओं को बहुत आसानी समझ सकते हैं । पुस्तक का मूल्य १२० रुपए हैं । किताब कुरिएर से भेजी जायेगी उसके पैसे आर्डर मिलने पर बता दिये जायेगे
रेकी स्पर्श तरंग { वैकल्पिक चिकित्सा } पुस्तक बहुत ही सरल हिंदी मे है । पुस्तक की कीमत मात्र २०० रुपये है । किताब कुरिएर से भेजी जायेगी उसके पैसे आर्डर मिलने पर बता दिये जायेगे

किताबे केवल अग्रिम राशि भेजने पर ही भेजी जायेगी ।
तीनो किताबे एक साथ मंगाने पर १०% की छुट हैं ।
खरीद कर पुस्तके पढे और हिन्दी लेखिकाओं का उत्साह वर्धन करे

किताब खरीदने के इच्छुक कमेन्ट मे अपना संपर्क सूत्र दे और जिन्होने ये किताबे पढी हैं अपनी विवेचनात्मक टिपण्णी दे ।
धन्यवाद
रचना

विश्व नारी उत्पीड़न दिवस!

आज विश्व नारी उत्पीड़न दिवस मनाया जा रहा है। बड़े-बड़े आयोजन होंगे, लंबे चौड़े भाषण दिए जायेंगे और दावे किए जायेंगे की हम इस नारी उत्पीड़न को शत प्रतिशत ख़त्म करने की कसम खाते हैं। इनमें महिला आयोग और मानवाधिकार आयोग के कार्यक्रम भी जरूर होंगे। फिर क्या होगा , यही न कि आज के बाद एक साल तक ये सारे वादे भूल जायेंगे और फिर अगले साल भाषण के पुराने मुद्दों को उठा कर बोलना शुरू कर दिया जायेगा।

मैं इन सब की गतिविधियों पर प्रश्न चिह्न नहीं लगा रही हूँ , बल्कि यह सोच रही हूँ कि जितना इलाज किया मर्ज उतना ही बढ़ता गया। अगर खबरें उठा कर देखें तो हमें यह मिलता है।

कानपूर में दो बहनों की साथ विवाह के लिए पिता ने आयोजन किया और सिर्फ एक बेटी की बारात आई और दूसरे परिवार ने कह दिया की लड़का गायब हो गया और दूसरे बेटे के लिए बारात लाने के लिए उन्हें २ लाख रुपये और चाहिए।
उस पिता की मनःस्थिति को कौन समझ सकता है। बराबर सजे दोन मंचों पर एक ही जोड़ा बैठा था और दूसरा खाली पड़ा था । उस लड़की की मनःस्थिति तो शायद ही कोई समझ सकता है।
पुलिस को इस बारे में रिपोर्ट करने को कहा गया तो उनका जवाब था की शादी करना या न करना लड़के वाले की मर्जी की बात है इसमें पुलिस क्या कर सकती है। दूसरे दिन लड़का वापस घर आ गया और पुलिस को सूचित करने पर उसे थाने बुला कर छोड़ दिया गया। जब ऊपर अधिकारीयों के दरवाजे पर गुहार लगायी तो पुलिस हरकत में आई।

मिस्टर शर्मा ने अपनी बेटी का रिश्ता किया और सारी शर्तें के पूरी होने पर उन्होंने सगाई की रस्म पूरी की, लेकिन यह क्या बारात लाने के एक दिन पहले ही उन्होंने चार पहिये के गाड़ी की मांग कर दी। क्या हर पिता इतना सक्षम होता है की वह पूरी तयारी के बाद ३-४ लाख रुपये की गाड़ी खरीद कर दे दे, नहीं फिर भी अगर बेटी की डोली उठानी है तो उन्होंने गले तक कर्ज में डूब कर किश्तों पर गाड़ी उठा कर दी, क्योंकि बारात न आने या फिर लौट जाने का सदमा वे सहने के लिए तैयार नहीं थे। इसके बाद वर्षों तक इस कर्ज की अदायगी करते रहेंगे और रिटायर होने के बाद भी इससे मुक्त नहीं हो पायेंगे.


क्या सिर्फ दहेज़ के लिए इस तरह से लड़कियाँ रुसवा होती ही रहेंगी , मानवता और नैतिकता के मायने बदल गए हैं। इसको कोई भी क़ानून नहीं लागू करवा सकता है, इसको बदलने के लिए संकल्प इस समाज का ही होना चाहिए। सम्पूर्ण समाज गिरा हुआ नहीं है और न ही सम्पूर्ण परिवार ख़राब है। क्या करना है इसके लिए इस अन्याय के लिए एकजुट होना है। आप प्रबुद्ध है और इस बात का निर्णय करने का आपको पूरा हक़ है की ग़लत क्या है और सही क्या है? फिर ऐसे निकृष्ट व्यक्तियों का सामजिक बहिष्कार करने की आवश्यकता है। हम पूरे समाज को नहीं बदल सकते हैं लेकिन एक प्रयास और वह भी समाज और नैतिकता के हित में कर ही सकते हैं। मत कीजिये ऐसे परिवार में अपने रिश्ते जो एक रिश्ते को छोड़ चुके हों- आप क्या समझते हैं की वे कल आपको ऐसी स्थिति में लाकर नहीं कर सकते हैं और फिर जो रिश्ता उन्होंने तोडा है वे भी आपकी तरह से एक बेटी के माता - पिता हैं।

आज इस नारी उत्पीड़न दिवस के अवसर पर इतना तो संकल्प ले सकते हैं की जिनसे हम मिलते हैं जिन्हें हम जानते हैं उनको अपनी दलीलों से इतना मानसिक रूप से तैयार करें की वे भी इस नारी उत्पीड़न के इस रूप को हटाने में अपना सहयोग दें और एक स्वस्थ मानसिकता वाले समाज के निर्माण में अपना सहयोग दें। यही सबसे सार्थक प्रयास होगा आज के दिन का और आज के संकल्प का कि हम इस अन्याय और उत्पीड़न में शामिल लोगों को सम्मान देना बंद कर देंगे। सामाजिक बहिष्कार एक मानसिक दंड है और कारगर भी, बस इसका प्रयोग करके देखें।

November 15, 2008

दिल्ली हाट भाग ३ -- हर माँ का सपना है सुजाता जैसी बेटी

कल की पोस्ट पढ़ कर सुजाता ने कहा "किसी और के कहने को कुछ नही छोड़ा आपने !जम रही है ,आगे चलें !" । सो आगे की दास्ताँ सुजाता की लेखनी से कहां और कब !!!!!!!!!!!!! मिलेगी आप की तरह मै भी इंतज़ार करुगी और चैट बॉक्स पर आप को सुजाता मिल जाए तो उन तक मेरा भी ये संदेशा पहुचा दे की "रनिंग कमेंट्री " अभी बाकि हैं दोस्त।

सुजाता के अलावा रंजना , अनुराधा और मनविंदर के पास भी बहुत कुछ हैं जो लिख कर उनको हम सब से बांटना होगा क्युकी तभी इन्द्रधनुष के सातो रंग खुल कर चमकेगे .

मै आज आप सब से वो बाटना चाहती हूँ जो मीनाक्षी ने हमे बताया ।

मीनाक्षी ने बताया की जब शादी के बाद वो साउदी अरेबिया की राजधानी रियाध पहुची { आज के समय से २० साल पीछे जाए } तो उनके पति उनको एक दूकान मे ले गए और उनसे "अब्ब्या " खरीदने के लिये कहा । "अब्ब्या "यानी बुरका । रियाध मे "अब्ब्या " पहनना जरुरी हैं और महिला किसी भी देश की क्यों ना हो , किसी भी रंग की क्यों ना हो , किसी भी धर्म की क्यों ना हो , बिना "अब्ब्या" पहने बाहर नहीं निकल सकती । "अब्ब्या "भी ऐसा की सर के बाल तक ना दिखे । और रियाध मे आज भी इसको माना जाता हैं और इसका उलघन करने वालो को सख्त सजा दी जाती हैं । अगर वो दुसरे देश के नागरिक हैं तो उनके आई कार्ड पर निशान लगा दिया जाता हैं और तीन निशान लगने का मतलब होता हैं " पैक यौर बग्स एंड गो होम " ।

इसके अलावा जिन जिन मुस्लिम संस्कृति और सभ्यता और कानून को मानने वाले देशो मे रहने का मौका मीनाक्षी को मिला वहाँ ज्यादातर जगह महिला के लिये कानून बहुत सख्त हैं । शरीर का कोई हिस्सा नहीं दिखना चाहिये । होठ पर लाली यानी लिपस्टिक का प्रयोग नहीं होना चाहिये { मीनाक्षी ने बताया की वहाँ की औरते भी कम नहीं हैं और अगर कोई पुलिस वाला उनसे लिपस्टिक लगाने पर प्रश्न करता हैं तो वो उस की पिटाई भी कर देती हैं ये कह कर की " तुमने मुझे देखा कैसे , तुम मारे होठ देख रहे थे " }। लेकिन दूसरे देश के नागरिको को वहाँ कानून मानने के लिये बाध्य हैं ।

कार मे आगे की सीट पर केवल और केवल पति पत्नी ही बेठ सकते हैं । आप अपना धार्मिक संगीत नहीं बजा सकते हैं , एअरपोर्ट पर ही किसी भी प्रकार की सीडी या चित्र आप से ले लिया जाता हैं । बच्चो को पूरा ज्ञान दिया जाता हैं की किबला किस तरफ़ हैं और जन नामाज़ दरी पर बैठ कर नमाज कब पढी जाती हैं।

"अब्ब्या"के प्रचलन के बारे मे पता था पर रियाध मे इतनी सख्ती से इसका पालन होता हैं नहीं पता था । शायद इसके पीछे महिला और औरतो की सेफ्टी हो उस देश मे । कुछ कह नहीं सकती पर सुन कर लगा की हर देश की सभ्यता और संस्कृति का पता केवल किताबो से नहीं चलता हैं । शायद हर सभ्यता और संस्कृति की जरूरते वहाँ के लोगो की मानसिकता पर निर्भर हो गयी हैं ।

मानसकिता की बात से याद आया की ब्लोगिंग पर चर्चा कुछ बाते सामने आयी

हिन्दी ब्लॉग अग्ग्रीगेटर पर होने की वज़ह से ब्लॉग की निजता बिल्कुल समाप्त हो गयी हैं । अगर कोई भी ब्लॉगर अपनी डायरी लिखना चाहे तो नहीं लिख सकता । अनाम हो कर भी लिखने से कोई फायदा नहीं हैं क्युकी अग्ग्रीगेटर पर आने के बाद ब्लॉग ट्रैक हो जाता हैं । RSS फीड से ब्लॉग को कही भी जोड़ा जा सकता हैं । इस लिये अगर आप नहीं चाहते हैं की आप का ब्लॉग जुड़े तो RSS फीड बंद रखे ।

ये बात सब ने मानी की हिन्दी ब्लोगिंग मे दोहरी मानसिकता बहुत हैं और लोग ब्लॉग कम और ब्लॉग लेखक की जिंदगी के बारे मे ज्यादा जानना चाहते हैं । इस पर भी बहुत अफ़सोस जाहिर हुआ की हिन्दी ब्लोगिंग मे जो ब्लॉगर हैं वो एक परिपक्व उम्र के हैं और काफी पढे लिखे हैं पर सोच बहुत ही संकुचित और संकिण हैं जिस की वज़ह से किसी भी बात पर खुल कर बहस नहीं हो सकती ।

ब्लॉग लिखती महिला के ब्लॉग पर कमेन्ट का कंटेंट बहुत ही गिरा हुआ होता हैं कभी कभी , सो खुल कर व्यक्त करना बहुत ही कठिन होता जा रहा हैं ।

और चलते चलते ये तय हुआ की अगली मीटिंग जल्दी रअखी रखी जाये और कुछ सार्थक बाते हो जिस से ब्लॉग लेखन को हम सब उपयोगी तरीके से इस्तेमाल कर सके। उस के अलावा कोई ऐसा संगठन बनाया जाये जहाँ हम सब एक साथ सामाजिक रूप से पिछडे वर्ग की साहयता कर सके । इश्वर ने हम सब को बहुत दिया हैं सो उसमे से कुछ हम बाटे।

इस मीटिंग के बाद और मीनाक्षी की पोस्ट और अपनी पोस्ट पर हुई मनविंदर की टिपण्णी के बाद मैने पाया की एक बेटी के रूप मे " सुजाता जैसी बेटी " हर माँ चाहती हैं । मै , मनविंदर और मीनाक्षी उम्र के जिस पढाव पर हैं वहाँ सुजाता की उम्र की बेटी हमारी हो सकती हैं पर ब्लॉगर सुजाता जैसे बेटी यानि तीखा और सच कहने वाली , रुढिवादी परमपरा के विरोध मे बोलने वाली बहस करने से ना डरने वाली बेटी की चाहत मीनाक्षी को भी हैं । मुझे तो सुजाता मे अपना बचपन हमेशा दिखा पर उस जैसी बेटी कामना अगर किसी भी माँ की हैं तो सच मानिये समय को बदलने मे देर नहीं हैं । नारी ब्लॉग की पहली पोस्ट बदलते समय का आह्वान एक माँ की पाती बेटी के नाम आज फिर याद आगयी ।

नीचे लिखी चंद लाइन मेरी निज की विश्लेषनात्मक सोच की अभिव्यक्ति हैं और आप की राय की ज़रूरत हैं

हर माँ का सपना है सुजाता जैसी बेटी यानी हर नारी चाहती हैं एक चोखेर बाली बेटी । ये सौहार्द चर्चा इतनी सफल होगी कभी नहीं सोचा था । और नारी और चोखेर बाली केवल दो ब्लॉग नहीं हैं शायद दो पिढ़ियाँ हैं माँ और बेटी की जो सामाजिक बदलाव के लिये अग्रसर हैं ।

फिर मिलेगे क्युकी अभी मन नहीं भरा हैं

November 14, 2008

दिल्ली हाट - भाग २ .. चोखेर बाली और नारी गले मिली

यहाँ से आगे
तभी आर अनुराधा की तेजस्वी छवि दिखी और मन मे हर्ष की लहर दौड़ गयी । मेरे लिये अनुराधा एक आइडियल हैं , मुझे हमेशा लगा की जिंदगी अगर कभी अपनी लड़ाई हार जाए तो अनुराधा के पास आकर जिन्दगी भी दुबारा जीना सीख सकती हैं । अनुराधा ने बड़ी जोर से हाथ उठा कर वेव किया और रंजना एक दम से ऐसे खड़ी हो गयी जैसे एक स्प्रिंग लगी गुडिया । सबसे पहले अब तक हर आने वाले का स्वागत गले मिल कर रंजना ही कर रही थी । इतनी फुर्ती की मै , मीनाक्षी और मनविंदर सब पीछे !!!

मैने अनुराधा से हाथ मिलाया और मनविंदर और मीनाक्षी दोनों ने गले मिली अनुराधा से । सौहार्द चर्चा के निमंत्रण के समय से ही अनुराधा का आग्रह था की चर्चा ब्लॉग से बाहर निकल कर होगी सो उनके आते ही विषय परिवर्तन किया गया और मैने और रंजना ने हर सम्भव कोशिश की !!! की हम ब्लॉग , ब्लोगिंग की बात ना करे !!! ।

अनुराधा के आते ही मेरा पहला सवाल था " आप अपनी किताब लाई " मैने तुंरत ६० रुपए देकर किताब ली एक एक प्रति मीनाक्षी , रंजना और मनविंदर ने भी ली । मेरी मम्मी का ख़ास आग्रह था इस किताब को पढ़ना का सो मुझे लगा भाई तुंरत लेलो , पता नहीं बाद मे प्रति कम होगई तो घर कैसे जाउंगी । मेरे अलावा सबने अनुराधा के हस्ताक्षर लिये किताब पर ।

मीनाक्षी ने फिर पर्स खोला , फिर हलवे का पैकेट निकला , फिर अनुराधा को खिलाया , फिर तारीफ़ पाई और फिर रेसिपे बताई । फिर पैकेट बंद हुआ , फिर पर्स खुला , पैकेट अंदर । मै देखती रही , उन्होने पैकेट मेज पर एक बार भी नहीं छोड़ा ।

और उसके बाद किताबो पर बातचीत शुरू हुई , अनुराधा और मीनाक्षी ने काफी देर तक इस विषय पर जानकारी का आदान प्रदान किया की जहाँ मीनाक्षी रहती हैं और जहाँ अनुराधा काम करती हैं दोनों कैसे एक दूसरे की साहयता कर सकती हैं किताबो के आदान प्रदान और नयी किताबो के छपने मे ।

धूप बढ़ रही थी , गर्मी भी हो गयी थी और मनविंदर को भूख लग रही थी जो स्वाभाविक लगा मुझे क्युकी वो सुबह बहुत जल्दी निकली थी अपने घर से । तुंरत मीनू कार्ड मंगाया गाया । काफी देर से हम लोगो को घूरते हुए वेटर के होठो पर एक मुस्कराहट आई और सामने से मुस्कराती सुजाता आती दिखी ।

उनको देखते ही बाकि सब के चेहरों पर अलग अलग रंग आए । अनुराधा के चेहरे पर एक गर्म जोशी भरी मुस्कराहट , मनविंदर के चेहरे पर एक नई "फ्रेंड" से मिलने की खुशी , मीनाक्षी के चेहरे पर आश्चर्य और मुस्कान, रंजना के चेहरे पर एक गभीर चिंतन दिखा
और
मै तुंरत खड़ी हुई और सुजाता से गले मिली । मुझे उम्मीद नहीं थी की सुजाता आयेगी . उनको देख कर लगा नहीं की ये सुजाता हैं ।

मैने तुंरत अपना कैमरा निकला और फोटो रंजना या मनविदर {याद नहीं हैं} ने मेरी और सुजाता की खीची . अनुराधा का ताली बजाना आप को स्लाइड शो मे भी दिख सकता हैं . उसके बाद सब ने उठ कर सुजाता का स्वागत किया और खूब तस्वीरे खीची गयी अपने अपने मोबाइल के कैमरे से जो अभी तक भी किसी ने अपने ब्लॉग पर नही दी हैं !!!!!!!!

सुजाता के आते ही वेटर को भी लगा अब शायद वी आई पी गेस्ट आ गया हैं !! और उसने उनको तुंरत एक नया मेनू कार्ड दिया ।

मीनाक्षी ने फिर हलवा निकला और सुजाता का मुंह मीठा करवाया और तुंरत ६ ग्लास फ्रूट बियर का आर्डर दिया ये कहते हुए "ये मेरी तरफसे " । मनविंदर ने नॉन वेज थाली का आर्डर दिया और सुजाता ने अप्पम मंगाया जो शायद फिश कर्री के साथ था ।

ये भी विचार हुआ की चित्र ब्लॉग पर मै ना डालू क्युकी यहाँ मानसकिता अच्छी नहीं हैं काफी विकल्प सोचे गए जिसमे चेहरा ना दीखे और नाम तो बिल्कुल ही नही दिया जायेगा ।

मै सुनती भी रही और हाँ मै हाँ भी मिलाती रही । इस मिलन का कोई भी विवरण ना दिया जाए इस पर भी विचार किया गया फिर वही मानसिकता । अब नारी और चोखेर बाली की सद्स्याए भी मानसकिता से दुखी हैं ये एक दमसाफ़ नज़र आ रहा था ।

ख़ैर फ्रूट बियर के ग्लास आते ही माहोल भी ठंडा हुआ और फिर चर्चा शुरू हुई अपने विषय मे बताये" । सब ने खुल कर वो क्या कर रहे हैं और जीविका कैसे चलती हैं इत्यादि का विवरण दिया जिसको यहाँ नहीं बाँटूगी आप सबसे क्युकी वो सबकी निजता का प्रश्न हैं ।

लीजिये अभी सुजाता , मनविंदर और रंजना का परिचय हुआ ही था कि मुस्कान बिखेरती सुनीता आयी । आते ही उन्होंने देर से आने कि क्षमा मांगी ।

उसी समय खाना भी सर्व किया गया और मीनाक्षी ने एक प्लेट स्प्रिंग रोल्स वेज और एक प्लेट स्प्रिंग रोल्स नॉन वेज मंगवाए क्युकी बाकी लोग ज्यादा खाना नहीं खाना चाहते थे।

खाना खाते खाते अपने बारे मे विस्तार से जानकारी देने का सिलसिला चलता रहा जो मीनाक्षी पर आ कर ख़तम हुआ । बहुत से व्यक्तिगत प्रश्न भी एक दूसरे से पूछे गये और निस्कोंच जवाब भी तुंरत दिये गये । ऐसा लगा जैसे आवरण सब घर पर ही छोड़ कर आए हैं सो मैंने कहा अब सब ये बताए कि जब आप यहाँ आ रहे थे तो एक दुसरे के बारे मे क्या perceive कर के आए थे यानी आप को सच सच ये बताना हैं कि आप दूसरे के बारे मे क्या सोचते हैं और जब इस चर्चा के लिये आए तो उस व्यक्ति के प्रति आप के क्या भाव थे ।

सब को लगा ये मुश्किल होगा लेकिन फिर मीनाक्षी ने अनुराधा के बारे मे अपना परसेप्शन बताना शुरू किया
और
इस के आगे किसने क्या क्या perceive किया ये जरुर बताउंगी
कब ??
जब आप कहेगे "आगे क्या हुआ ? ""

November 13, 2008

दिल्ली हाट भाग १ - जानने वालो को पहचानना

९ नवम्बर २००८ सुबह सुबह तैयार हो रही थी तो देखा मनविंदर जी की मिस्ड कॉल हैं । लगा शायद कुछ प्रोग्राम उनका बदल गया हैं और वो दिल्ली हाट नहीं पहुचेगी । सो तुंरत फ़ोन किया , लेकिन वो तब तक मेरठ से चल कर हिंडन नदी पार करके गाजियाबाद के आस पास थी । समय केवल सुबह के १०.०० ही बजे थे , यानि वो अपनी घर से तक़रीबन ८.३० बजे निकली होगी यानी सब से मिलने की तीव्र उत्सुकता उनमे भी थी ।
मनविंदर २ दिन से कह रही थी की वो मुझे मेरे घर से लेती हुई चलेगी सो मैने तुंरत उनको घर आने के लिया कहा क्युकी दिल्ली हाट मे मिलने का समय १२ - १२.३० तय था । १०.४५ सुबह मनविंदर घर पर थी , लगा ही नहीं की मे उनसे पहली बार मिल रही हूँ । बड़ी विनम्रता से उन्होने मेरी मम्मी के पैर छूये । कुछ देर मम्मी के साथ हिन्दी विषय , मनविंदर के पेपर , उनके परिवार के बारे मे मम्मी उनसे जानकारी लेती रही और फिर मम्मी ने अपनी लिखी कुछ किताबे मनविंदर को उपहार स्वरुप दी । इतनी देर मे हम सब एक एक प्याली गरम चाये पी चुके थे और चलने का समय भी हो गया था सो मनविंदर और मै निकल पड़े उनसब से मिलने जिन को जानते थे पर पहचानते नहीं थे ।

रास्ते मे हम दोनों ने ब्लोगिंग पर काफी बाते की । विषय था कम समय मे ज्यादा ब्लोगिंग करने के तरीके और हिन्दी ब्लोगिंग मे और महिला को कैसे आगे लाये ।

११.५५ सुबह हम दिल्ली हाट पहुच गए और १५ -१५ रुपए का टिकिट लेकर हम अंदर दाखिल हुए । एक पूरा चक्कर लगाया पर कोई ऐसा चेहरा नहीं दिखा जिस पर इंतज़ार की रेखा हो !!!

ख़ैर देखने के लिये बहुत कुछ था , सूट , साडी, पर्स , ताजमहल , दरी , पर्दे , मूर्तियाँ और ओरगेनिक दाल और सब्जियाँ और भी बहुत कुछ , एक तरह से भारत { इंडिया नहीं भारत यानी एक पारंपरिक सभ्यता } पूरा बिखरा था और बहुत से विदेशी उसको बटोर कर ले जा रहे थे । बहुत से भारतीये भी साज सज्जा का समान देख कर अपनी आदत अनुसार मोल भाव कर रहे थे ।

रंजना को फ़ोन किया पता लगा रास्ते मे हैं पहुच रही हैं । मनविंदर और मै एक ऐसी जगह बैठ गए जहाँ से आने वालो को हम दिखाई दे । कुछ देर बाद हमेशा मुस्कुराती , मंद मंद , रंजना आती दिखी । पहले हाथ मिलाया पर मन नहीं भरा सो फिर गले मिला गया । उनकी किताब साया देखी ।

जहाँ दो ब्लॉगर मिले ब्लोगिंग पर बात ना हो !!!!!!!!!! फिर यहाँ तो तीन थे सो ब्लोगिंग मे महिला ब्लॉगर की पोस्ट पर कमेन्ट का स्तर कितना गिरा हुआ होता हैं इस पर बात हुई । नारी और चोखेर बाली पर बहुत कम महिला नियमित लिखती हैं इस पर भी बात हुई ।

महिला आधारित मुद्दों पर और लिखना होगा जब तक हम इस पर चर्चा करे तबतक मीनाक्षी आती हुई दिखी , बड़े बड़े काले गोगल्स लगाए , हम लोगो को देखते ही उन्होने झट गोगल्स हटाये और अपना चश्मा पहना ताकि हम उनको पहचान ले !!!!!!!!!! अब जानने वालो को पहचाना शुरू हुआ ।

रंजना ने आगे बढ़ कर उनको गले लगा लिया और मनविंदर का नम्बर दूसरा हो गया । हम बैठे रहे की भाई तसल्ली रखो और मीनाक्षी को भी चांस दो की वो भी गले लगा सके सो मेरा नम्बर भी आया , बड़ी गर्म जोशी से मीनाक्षी मिली बहुत अच्छा लगा ।

मैने उनसे बैठते ही पूछा दुबई से आयी हैं क्या लाई { भाई घर के लोग जब विदेश से आते हैं तो यही सवाल होता हैं } !!!!

उन्होने तुरत पर्स खोला और अपने हाथ का बना हलवा निकाला । तुंरत चखा गया और कहा गया इसकी रेसिपी "दाल रोटी चावल " ब्लॉग पर दी जाए !!!!!!!!!!!

लेकिन सोने के सिक्के , डायमंड और दीनार के लालची ब्लॉगर मै और रंजना का मन हलवे से कहां भरता सो मीनाक्षी से वादा लिया गया की अगर हम दुबई उनके घर जायेगे तो वो अपनी बहनों की विदाई { यानि मै और रंजना , क्युकी मनविंदर तो हलवे से ही खुश हो गयी थी} डायमंड दे कर करेगी ।
बात चीत का सिलसिला चल निकला और मीनाक्षी ने तुरत "साया" और रेकी स्पर्श तरंग " किताबो को देखा और पैसे दे कर उन पर अपना नाम लिखवाया । किताबे देखते ही मीनाक्षी सब को भूल गयी और एक एक पन्ना पलटने लगी । याद दिलाने पर की हम भी हैं उन्होने बताया की बेटे वरुण की तबियत मे सुधार हैं और वो प्रो वूमन हैं और इस मीटिंग मे भी सबसे मिलने आना चाहता था । वरुण की तबियत को ले कर हम सब मे एक चिंता थी क्युकी सब ही उम्र की उस देहलीज पर हैं जहाँ बच्चे की तकलीफ से मन ज्यादा विचलित होता हैं और यूँ भी लड़की हो या महिला किसी भी आयु की हो ममत्व उसके अंदर होता ही हैं । काफी दे हम सब वरुण के बारे मे मीनाक्षी से पूछते रहे और वो निसंकोच बताती रही ।

तभी आर अनुराधा की तेजस्वी छवि दिखी और मन मे हर्ष की लहर दौड़ गयी । मेरे लिये अनुराधा एक आइडियल हैं , मुझे हमेशा लगा की जिंदगी अगर कभी अपनी लड़ाई हार जाए तो अनुराधा के पास आकर जिन्दगी भी दुबारा जीना सीख सकती हैं ।

आगे और क्या हुआ , कल बातउंगी वो भी तब जब इस पोस्ट पर आप कमेन्ट दे कर कहेगे की अभी आप बोर नहीं हुए हैं !!!!

November 11, 2008

सतरंगी चर्चा के बाद शायद हो पचरंगी खट्टी-मीठी अचारी

मिला हमें जब नेह निमंत्रण,
जा पहुँचे हम दिल्ली हॉट,
टिकिट कटा भागे भीतर को,
जहाँ सब देख रहे थे बाट।

सबने बोला हल्लो हाय
हाथ मिले और गले लगाय,
बैठा अपने पास हमें फ़िर
शुरू किया अगला अध्याय।

जान-पहचान हुई सबकी
नये पुराने सब फ़रमायें
कौन लगा किसको कैसा
बिना डरे सच-सच बतलायें।

प्रेम ही सत्य है प्रेम करो
मीनाक्षी जी ने समझाया
उठो नारी के सम्मान में सब
सुजाता जी ने फ़रमाया।

रन्जू जी कविता के जैसे
महक रही थी महफ़िल में
अनुराधा भी दिखा रही थी
रंग-बिरंगे जीवन के सपने।

मनविन्दर जी आई मेरठ से
सबका स्नेह बतायें
चेहरे से था रोब झलकता
भीतर-भीतर मुस्कायें।

रचना जी ने कहा सभी से
अब सक्रिय हो जायें
योगदान दें सभी लेखन में
अपना फ़र्ज निभायें।

काव्य की गंगा में बही जब
सुजाता जी की मीठी बोली
छेड़ा तार मीनाक्षी जी ने
गीतों में मिश्री सी घोली।

रन्जू जी की प्यारी कविता
सुनकर रचना जी भी जागी
सपने तो सपने होते है
झट पुरानी कविता दागी।

छेड़ हृदय की सरगम तब
मन पखेरू फ़िर उड़ चला
हुई सभा सम्पन्न और ये
सौहार्द मिलन लगा बहुत भला।

आधी मीटिंग ही कर पाये थे
सो चर्चा रही अधूरी हमारी
सतरंगी चर्चा के बाद शायद हो
पचरंगी खट्टी-मीठी अचारी।


सुनीता शानू

सतरंगी मुलाकात दिल्ली हाट मे

दिल्ली हाट की गुनगुनी धूप में ब्लॉग जगत की सतरंगी किरणों से मिलने का एक अलग ही आनन्द था. हर किरण की अपनी एक अलग चमक थी.
रचनाजी, मनविन्दरजी और रंजनाजी पहले से ही दिल्ली हाट पहुँच चुकी थीं. हमें देखते ही पहचान लिया. एक पल के लिए भी नहीं लगा कि सबसे पहली बार मिल रहे हैं.
रचनाजी को मिलकर ऐसा लगा जैसे दूर दूर तक फैली बर्फ पर सूरज की रोशनी पड़ते ही आँखें चौंधिया जाएं, गज़ब की उर्जा शक्ति दिखाई दी उनमें ... मनविन्दरजी का मुस्कुराता मौन उस मौसम में मन्द मन्द बयार जैसा दिल को लुभा रहा था. मौन में शक्ति साफ साफ दिख रही थी।

रंजनाजी, शांत सौम्य मुस्कान के साथ बैठी थीं. लग रहा था शायद मन ही मन कविता बुन रही हैं।

कुछ देर में इन्द्रधनुष ब्लॉग की आर. अनुराधा आ गईं. उस दौरान किताबों पर चर्चा होने लगी. रंजनाजी के कविता संग्रह ‘साया’ पर बात हुई तो रचनाजी की माताजी डा.मंजुलता की रेकी की किताब पर चर्चा हुई. कैंसर विजेता आर. अनुराधा द्वारा लिखी किताब ‘इन्द्रधनुष के पीछे पीछे’ देखकर पढ़ने की उत्सुकता जागी. लिखने पढ़ने वालों का किताबों से स्वाभाविक मोह होता है सो फौरन पुस्तकों का आदान प्रदान हुआ.
रचनाजी के कारण यह सभा सम्भव हो पाई तो बाकि सदस्यों ने उस सभा की रौनक बढ़ा दी।

चोखेरबाली ब्लॉग की सुजाता को सामने से आते देखकर एक पल को लगा जैसे साँझ की बेला में दामिनी दमक उठी हो. मेरी बेटी होती तो ऐसी होती की पुरानी चाह फिर से चहक उठी।

वैसे कुछ वक्त के बाद तो दो बेटियाँ घर की रौनक बन कर आ ही जाएँग़ी. (आप सबको जानकर हैरानी होगी कि चोखेरबाली की नियमित पाठिका होते हुए एक बार भी टिप्पणी न देना शायद एक रिकॉर्ड कहा जा सकता है. ऐसा करने का कोई खास कारण नहीं है, शायद बिना चीनी या शहद के कड़वी दवा खाने या खिलाने की आदत नहीं हैं।)

खैर कुछ इंतज़ार के बाद उत्तरी दिल्ली से सुनिता ‘शानू’ भी पहुँच गई.. खाने-पीने के दौरान सुनिता ‘शानू’ ने अपनी मधुर आवाज़ में कविता पाठ किया तो सुजाता ने अपने मीठे सुर में गीत गुनगुनाया. हम कहाँ पीछे हटने वाले थे, हम भी उसी के सुर में सुर मिलाने लगे. रंजना ने अपने साया कविता संग्रह से एक कविता सुनाई. रचना और अनुराधा अपनी मीठी मुस्कान बिखेरते हुए स्वर लहरी का आनन्द ले रही थीं.
किताबों का आदान प्रदान तो हुआ लेकिन किताब लिखने पर भी चर्चा हुई. अनुराधा ने अलग अलग विषयों पर किताब लिखने की बात करके किसी भी तरह की सहायता का आश्वासन दिया. सुजाता ने हिन्दी ब्लॉग जगत की मानसिकता पर बात की जिसे बदलने में अभी बहुत वक्त लगेगा. सभी किसी न किसी रूप में समाज में कमज़ोर पक्ष की सहायता के लिए तत्पर लगे।

अभी आगे बहुत कुछ हैं और भी हैं मंजिले , कारवां बन रहा हैं , समय कम हैं काम ज्यादा फिर कहूंगी क्या क्या पाया किस किस से , अभी इंतज़ार हैं बाकि सब के मौन के टूटने का , सुजाता , रंजना , मनविंदर , अनुराधा और सुनीता आलेखों का ।

November 10, 2008

"वॉर ऑफ द वर्ड्स"

हाउस वाइफ क्यों, हाउस मेकर क्यों नहीं। हमारे शब्दकोष में बहुत से ऐसे शब्द हैं जो लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा देते हैं। गृहणी यानी हाउसवाइफ शब्द स्त्री की मेहनत, उसकी घर-समाज के प्रति उत्पादकता को नहीं दर्शा पाता और उसकी दिनरात की मेहनत का गृहणी शब्द में कोई मायना नहीं है। अगर हाउस वाइफ की जगह हाउस मेकर शब्द का इस्तेमाल करें तो ये घर के अंदर औरत के दिन-रात की मेहनत को ज्यादा बेहतर तरीके से बता पाता है। एक रिसर्च के बारे में पढ़ा था कि कुछ बच्चों को एक वैज्ञानिक की तस्वीर बनाने का काम दिया गया। ज्यादातर बच्चों ने एक अधेड़ व्यक्ति का चित्र बनाया जिसके हाथ में टेस्ट ट्यूब थी,किसी भी बच्चे के दिमाग़ में वैज्ञानिक के नाम पर किसी औरत का चित्र नहीं उभरा। स्कूल की किताबों में भी सीता सिलाई करती है और राम स्कूल जाता है, जैसे उदाहरण होते हैं। बचपन से ही gender dicrimination का बीज दिमाग़ में बो दिया जाता है।
लंदन में ऐसे शब्दों को पॉलीटिकली करेक्ट करने की मुहिम शुरू हुई है। एक समाचार एजेंसी की ये ख़बर मैंने पढ़ी।
क्लीनिंग लेडी, टेन मैन टीम, वन मैन शो जैसे शब्दों की जगह क्लीनर, टेन स्ट्रॉंग टीम, वन परसन शो जैसे टर्म का इस्तेमाल किया जा सकता है। हमारे यहां पत्नी को अर्धांगिनी तो कहते हैं लेकिन वो पति का आधा हिस्सा बन जाती है, अगर पति-पत्नी को पार्टनर शब्द से रिप्लेस कर दिया जाए तो बराबरी का भाव आता है।
शब्द से भाव उपजते हैं, बनते हैं-बिगड़ते हैं, शब्दों को सुधार कर भाव को भी सुधार जा सकता है। वन मैन शो होता है, वन वुमन शो नहीं। वन परसन शो ज्यादा बेहतर अभिव्यक्ति देता है। अपने शब्दकोष में हम भी कुछ सुधार कर सकते हैं।

November 09, 2008

आज एक दिन बहुत सार्थक बीता । महिला जो ब्लॉग लिखती हैं दिल्ली हाट मे मिली ।

सात एक बहुत अच्छी संख्या मानी जाती हैं ।
षड़ज, ऋषभ, गांधोर, मध्यम, पंचम, धैवत तथा निषाद ये सात स्वर
अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल ये सात तल
मरीचि, अंगिरा, अत्रि, पुलह, केतु, पौलस्त्य और वैशिष्ठ ये सात ऋषि
भू, भुवः स्वः, महः, जन, तप और सत्य नाम के सात लोकों
गोरोचन, चंदन, स्वर्ण, शंख, मृदंग, दर्पण और मणि सात पदार्थ
इन्द्रधनुष के सात रंग और सात समुद्र
आज एक दिन बहुत सार्थक बीता । महिला जो ब्लॉग लिखती हैं दिल्ली हाट मे मिली । संख्या ७ थी !!
नाम हैं
मनिवंदर ,रंजना ,सुजाता ,अनुराधा ,सुनीता , मीनाक्षी और रचना
अभी के लिये एक स्लाइड शो , विस्तृत रिपोर्ट बहुत शीघ्र ।

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