कैट विंसलेट ने टाइटैनिक फिल्म में न्यूड सीन दिया था। आज भी लोग उस सीन का फोटोशॉट निकाल कर कैट से उस पर ऑटोग्राफ मांगते हैं
कैट ने कहा हैं वो ऐसे किसी भी चित्र पर ऑटोग्राफ नहीं देती हैं
भारत / इंडिया में ऐसा होता तो लोग कहते "नंगी हो काम कर सकती हैं , उसमे कोई आपत्ति नहीं हैं तो चित्र पर ऑटोग्राफ देने मे क्यों हैं "
दीपिका पादुकोण का चित्र पत्रकार शूट करके के पेपर में छपवाते हैं और हैडिंग होती हैं " क्लीवेज " दिख रहा हैं दीपिका का।
जवाब में दीपिका कहती हैं हाँ दिख रहा हैं , मै औरत हूँ मेरे पास छाती हैं , स्तन हैं और क्लीवेज भी हैं , आप को कोई प्रॉब्लम ?
अखबार कहता हैं जी हम तो तो आप की तारीफ़ कर रहे थे और फिर तमाम वो चित्र डालता हैं जिस में दीपिका के स्तन और क्लीवेज शूट किये गए हैं कभी मर्जी से कभी बिना मर्जी से और वही घिसा पिटा कथन " ऐसे कपडे पहनें क्यों ?
परसो फेसबुक पर स्टेटस पढ़ते हुए हिंदी के एक प्रोफेसर का स्टेटस दिखा "पीटीएम में माँऐ इतना सजकर पहुँचती हैं कि लगता है पड़ोस के पार्लर को स्पेशल रेट देकर खुलवाना पड़ा होगा सुबह सुबह।"
अब ये क्या हैं , क्या ये हास्य हैं और इस स्टेटस को ५४ जाने माने फेसबुक लेखको ने पसंद भी किया जिस मे वो लेखिकाएं भी हैं जो निरन्तर अपने को प्रो वुमन कहती हैं।
कौन कितना तैयार होता हैं कितना सजता हैं ये अधिकार कानून और संविधान ने उसको दिया हैं।
आपत्ति दर्ज कराई तो इसको " सहजता " माना जाए ऐसा आग्रह हुआ क्युकी जो लोग सहजता नहीं मान सकते वो " केवल " हर समय पोलिटिकली करेक्ट " होते हैं।
जितने भी कॉमेंट थे वो सब उन माँ का मजाक बना रहे थे जिन पर ये टंच था। एक बहुत ही विद्वान ने तो यहां तक कह दिया हम तो यही सब देखने पी टी ऍम मे जाते हैं।
कमाल हैं ब्लॉग हो , फेसबुक हो , पत्रकार हो , प्रोफेसर हो या पाठक हो नारी के प्रति नज़रिया एक सा ही हैं
कपड़े ना पहने तो क्यों नहीं पहने
कपड़े पहने तो इतना सजने की क्या जरुरत थी
नारी की अपनी इच्छा अपना मन , क़ानूनी अधिकार , संविधान के अधिकार
इनका क्या मूल्य हैं ?
कैट ने कहा हैं वो ऐसे किसी भी चित्र पर ऑटोग्राफ नहीं देती हैं
भारत / इंडिया में ऐसा होता तो लोग कहते "नंगी हो काम कर सकती हैं , उसमे कोई आपत्ति नहीं हैं तो चित्र पर ऑटोग्राफ देने मे क्यों हैं "
दीपिका पादुकोण का चित्र पत्रकार शूट करके के पेपर में छपवाते हैं और हैडिंग होती हैं " क्लीवेज " दिख रहा हैं दीपिका का।
जवाब में दीपिका कहती हैं हाँ दिख रहा हैं , मै औरत हूँ मेरे पास छाती हैं , स्तन हैं और क्लीवेज भी हैं , आप को कोई प्रॉब्लम ?
अखबार कहता हैं जी हम तो तो आप की तारीफ़ कर रहे थे और फिर तमाम वो चित्र डालता हैं जिस में दीपिका के स्तन और क्लीवेज शूट किये गए हैं कभी मर्जी से कभी बिना मर्जी से और वही घिसा पिटा कथन " ऐसे कपडे पहनें क्यों ?
परसो फेसबुक पर स्टेटस पढ़ते हुए हिंदी के एक प्रोफेसर का स्टेटस दिखा "पीटीएम में माँऐ इतना सजकर पहुँचती हैं कि लगता है पड़ोस के पार्लर को स्पेशल रेट देकर खुलवाना पड़ा होगा सुबह सुबह।"
अब ये क्या हैं , क्या ये हास्य हैं और इस स्टेटस को ५४ जाने माने फेसबुक लेखको ने पसंद भी किया जिस मे वो लेखिकाएं भी हैं जो निरन्तर अपने को प्रो वुमन कहती हैं।
कौन कितना तैयार होता हैं कितना सजता हैं ये अधिकार कानून और संविधान ने उसको दिया हैं।
आपत्ति दर्ज कराई तो इसको " सहजता " माना जाए ऐसा आग्रह हुआ क्युकी जो लोग सहजता नहीं मान सकते वो " केवल " हर समय पोलिटिकली करेक्ट " होते हैं।
जितने भी कॉमेंट थे वो सब उन माँ का मजाक बना रहे थे जिन पर ये टंच था। एक बहुत ही विद्वान ने तो यहां तक कह दिया हम तो यही सब देखने पी टी ऍम मे जाते हैं।
कमाल हैं ब्लॉग हो , फेसबुक हो , पत्रकार हो , प्रोफेसर हो या पाठक हो नारी के प्रति नज़रिया एक सा ही हैं
कपड़े ना पहने तो क्यों नहीं पहने
कपड़े पहने तो इतना सजने की क्या जरुरत थी
नारी की अपनी इच्छा अपना मन , क़ानूनी अधिकार , संविधान के अधिकार
इनका क्या मूल्य हैं ?