tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post1464680862177278712..comments2023-12-02T14:56:14.755+05:30Comments on नारी , NAARI: किरोड़ीमल कॉलेज दिल्ली मानता हैं की बेटी के बच्चे आप पर कोई अधिकार नहीं रखते हैंरेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-75955325799634764802012-07-02T23:37:02.647+05:302012-07-02T23:37:02.647+05:30डिग्रियां हासिल करने से मानसिक चक्षु नहीं खुलते, इ...डिग्रियां हासिल करने से मानसिक चक्षु नहीं खुलते, इसमें कोई शक नहीं,करोड़ीमल कॉलेज जो कर रहा है वो बिल्कुल गलत कर रहा है।Anita kumarhttps://www.blogger.com/profile/02829772451053595246noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-72738018649314346792012-07-02T15:09:07.514+05:302012-07-02T15:09:07.514+05:30Pardon my language.
This is utter BULLSHIT.
शैक्षण...Pardon my language.<br />This is utter BULLSHIT.<br />शैक्षणिक संस्थान ही इस तरह का लिंग विभाजन करेंगे..कल्पना से परे की बात है..शिक्षा क्या देते होंगे ये...?<br />इस नियाम का जम कर विरोध होना ही चाहिए..मैं इसका तहे दिल से भर्त्सना करती हूँ...स्वप्न मञ्जूषा https://www.blogger.com/profile/06279925931800412557noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-49463530661031323842012-07-02T15:06:41.394+05:302012-07-02T15:06:41.394+05:30अच्छा मुद्दा उठाया हैं.
ऐसे पता नहीं कितने स्तरों ...अच्छा मुद्दा उठाया हैं.<br />ऐसे पता नहीं कितने स्तरों पर भेदभाव हो रहा हैं जिनका हमें पता ही नहीं चलता.उपरोक्त सभी टिप्पणीकारों से सहमत हूँ.राजनhttps://www.blogger.com/profile/05766746760112251243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-86282378666850390072012-07-02T11:17:04.677+05:302012-07-02T11:17:04.677+05:30पहली बात तो मै इस बात का विरोध करती हूं की जो सुवि...पहली बात तो मै इस बात का विरोध करती हूं की जो सुविधा आप के बच्चो ने नहीं ली तो वो आप के एक और पीढ़ी आगे बढ़ा जाये , ये गलत नियम है मै इस नियम का ही विरोध करती हूं | आज के समय में जब अन्य बच्चो के लिए कही पर प्रवेश लेना इतना मुश्किल हो रहा है तो किसी एक को सुविधा दो पीढियों तक जारी रखना बहुत ही गलत है | आप की इस बात से बिल्कुल सहमत हूं की जब सुविधा दिया ही है तो बाद बेटे के बच्चो तक क्यों समित है निश्चित रूप से ये गलत है जब क़ानूनी रूप से बेटी को पिता की संपत्ति पर बराबर हक़ है तो फिर इस सुविधा पर क्यों ना हो | जब हमारे देश में पढ़े लिखो का ये हाल है तो बाकियों को क्या कहा जाये |anshumalahttps://www.blogger.com/profile/17980751422312173574noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-57551078387065756562012-07-02T09:55:20.634+05:302012-07-02T09:55:20.634+05:30कुछ नियम /कानून पर पुनर्विचार की आवश्यकता है . जब...कुछ नियम /कानून पर पुनर्विचार की आवश्यकता है . जब आज कानून महिलाओं को पैतृक संपत्ति में हिस्सा दे रहा है ,अभिभावकों के प्रति बेटियों की जिम्मेदारी भी निर्धारित कर रहा है तो इसे अन्य सुविधाओं पर भी लागू किया जाना चाहिए .वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-1563934100854104502012-07-01T23:04:34.348+05:302012-07-01T23:04:34.348+05:30बड़ा गंभीर मुद्दा उठाया है आपने। इसकी लड़ाई तो लड़...बड़ा गंभीर मुद्दा उठाया है आपने। इसकी लड़ाई तो लड़नी ही चाहिए। यह सरकारी संस्थानों में भी है कि बेटी की शादी हुई नहीं कि वह फैमिली मेम्बर नहीं रह जाती। <br />इस पर सुधार की ज़रूरत है।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-91693068872446841862012-07-01T22:58:16.411+05:302012-07-01T22:58:16.411+05:30बहुत अच्छी बात बताई है रचना, ये हमारे उस वर्ग की प...बहुत अच्छी बात बताई है रचना, ये हमारे उस वर्ग की पोल खोल रहे हें जो बुद्धिजीवी और आने वाली पीढ़ी के भविष्य को एक आकार देते हें. ये आकार शायद इसी तरह से दिया जा रहा है तभी तो हम लड़की और लड़के के भेद को नहीं मिटा पा रहे हें. कॉलेज की इस नीति को कोर्ट में चुनौती देना चाहिए और उनसे पूछा जन चाहिए कि इस तरह के प्रावधान का औचित्य क्या है? कैसे उस कॉलेज के टीचर आँखें मूँद कर इन नियमों को चलने दे रहे हें.<br /> बेटियाँ दूसरे खानदान में जाकर अगर उस परिवार का हिस्सा बन जाती हें तो अपने माँ बाप के खून के रिश्ते से अलग तो नहीं हो जाती हें. उन्हें संपत्ति में अधिकार है तो फिर इन सुविधाओं में क्यों नहीं ? ये भारतीय क़ानून व्यवस्था के लिए एक चुनौती है. एक तरफ सरकार सरकारी कर्मचारियों की अविवाहित / परित्यक्ता या विधवा बेटी को पिता या माता की पेंशन का हकदार बना रही है वहीं दूसरी ओर ऐसी नीति के अस्तित्व को कैसे मना जा सकता है?रेखा श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.com