tag:blogger.com,1999:blog-57257861893296236462024-03-13T08:43:55.208+05:30नारी , NAARI" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
"The Indian Woman Has Arrived "
एक कोशिश नारी को "जगाने की " ,
एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता हैरेखा श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comBlogger1186125tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-84616017643370322992019-07-31T11:01:00.001+05:302019-07-31T11:01:31.991+05:30तीन तलाक गैर कानूनी हैं।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
तीन तलाक गैर कानूनी हैं। संसद के दोनों में बी जे पी सरकार ने इसको पास करवा लिया हैं। तारीफ़ हैं उन मुस्लिम महिला की जिन्होंने अपने हक़ की लड़ाई को लड़ा और जीता। <br />
लेकिन ये खबर उन महिला तक भी पहुंचनी चाहिये जो कम पढ़ी लिखी हैं। आपने आस पास काम करती महिला तक ये सन्देश पहुंचाए। उनको पता होना चाहिये की अब उनको तीन तलाक नहीं दिया जा सकता हैं। इसके खिलाफ पुलिस चौकी में रपट लिखवा सकती हैं। <br />
राष्ट्रपति के साइन करने के बाद ही इस बिल पर कानून बनेगा तब तक इस खबर को आगे लाए ले जाए। </div>
रचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-82353165834446486822018-10-16T11:34:00.000+05:302018-10-18T12:34:00.527+05:30 आज भी वो अपनी आहुति ही दे रही हैं , क्युकी ना तो समाज ने उनको पहले न्याय दिया हैं और ना अब देने को तैयार हैं। <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">लोग मीटू को समझ ही </span>नहीं <span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, helvetica, sans-serif;">पा रहे हैं। ये अभियान सजा दिलवाने के लिये नहीं शुरू किया गया हैं। ये अभियान उन महिला ने शुरू किया हैं जिन्हे लगा की उन्होंने सही समय पर आवाज नहीं उठाई। उन्होंने अपने अंदर के दर्द को सबसे साझा किया हैं और ये भी बताया हैं की वो क्यों नहीं बोल सकी जब वो सेक्सुअल हरस्मेंट का शिकार हुई। </span><br />
<div style="color: #222222; font-family: arial, helvetica, sans-serif;">
हर व्यक्ति को इस दुनिया में समान अधिकार हैं वो स्त्री हो या पुरुष या किसी और लिंग का। विश्व भर में महिला का यौन शोषण हो रहा हैं सदियों से क्युकी पुरुष महिला को अपने बराबर नहीं मानता हैं। वो या तो महिला का रक्षक हो सकता हैं या महिला का भक्षक। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, helvetica, sans-serif;">
महिला का रक्षक होने के लिये उसके साथ किसी सम्बन्ध का होना आवश्यक हैं , पिता , भाई , बेटा , मामा , चचा , ताऊ , भतीजा , भांजा , दोस्त यही कुछ सम्बन्ध हैं जहां पुरुष स्त्री के रक्षक की मुद्रा में आता हैं। बाकी वो सब जगह अपने को विपरीत लिंग का समझता और नारी के साथ सेक्सुअल रिलेशन बनाने को उत्सुक रहता हैं। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, helvetica, sans-serif;">
महिला का नौकरी करना पुरुष को कभी नहीं भाता हैं क्युकी उसको लगता हैं महिला अगर आर्थिक रूप से स्वतंत्र होगयी तो निरंकुश हो गयी। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, helvetica, sans-serif;">
लोग कह रहे हैं अगर किसी महिला को नौकरी करते समय किसी जगह सेक्सुअल अंदेशा हो तो उसको नौकरी छोड़ देनी चाहिये। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, helvetica, sans-serif;">
कभी सोच कर देखिये दो विपरीत लिंग के बच्चे एक साथ पढ़ रहे हैं , बड़े हो रहे हैं। दोनों अपनी अपनी पढ़ाई पूरी करके नौकरी करने जाते हैं। दस साल बाद जब दोनों मिलते हैं तो पता चलता हैं समान क्वालिफिकेशन में बाद लड़का तो अपने करियर में बहुत आगे हैं पर लड़की ने घर से काम करना शुरू कर दिया हैं क्युकी उसको समझ आ गया था की एक पोजीशन पर पहुंचने के बाद अगर उसको आगे जाना हैं तो शारीरिक कोम्प्रोमाईज़ करना होगा। उसने रास्ता बदल दिया पर जब उसने अपने सहपाठी की तरक्की देखी तो उसको लगा उसको ये ोपपरटूनिटी केवल इसलिये नहीं मिली क्युकी वो लड़की थी। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, helvetica, sans-serif;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, helvetica, sans-serif;">
ये अपने आप में एक हरस्मेंट हैं। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, helvetica, sans-serif;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, helvetica, sans-serif;">
ये कहना उन महिला ने जो मीटू पर पोस्ट दे रही हैं अपने करियर के लिये कोम्प्रोमाईज़ किया बिलकुल गलत हैं। उनको मजबूर लिया गाया। उनका उस समय ना बोल सकना महज अपना नाम बचाना था। नाम के साथ उनका करियर जुड़ा था। अगर वो उस समय बोलती तो आर्थिक रूप भी अक्षम हो जाती। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, helvetica, sans-serif;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, helvetica, sans-serif;">
न केवल उनके शरीर को वॉइलेट , एब्यूज किया गया अपितु उनके नाम को करियर को भी किया गया। इसलिये उनके पास चुप रहने के अलावा कोई ऑप्शन था ही नहीं। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, helvetica, sans-serif;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, helvetica, sans-serif;">
आज वो इसलिये नहीं बोल रही हैं की वो सजा दिलवा देगी। आज वो इसलिये बोल रही हैं ताकि वो समाज को बता सके उनके साथ भीषण ज्यादती की गयी हैं क्युकी वो नारी थी। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, helvetica, sans-serif;">
आज वो इसलिये बोलरही हैं ताकि वो अपने आदर के दर्द को बाहर निकाल सके। ताकि वो दूसरी लड़कियों को इस रास्ते के कांटे कंकरो के विषय में आगाह करसके। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, helvetica, sans-serif;">
सबसे ज्यादा तो दुःख तब होता हैं जब और नारियां इस अभियान को गलत बता कर उन सब विक्टिम को ही कटघरे में खड़ा कर रही हैं </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, helvetica, sans-serif;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, helvetica, sans-serif;">
आज भी वो अपनी आहुति ही दे रही हैं , क्युकी ना तो समाज ने उनको पहले न्याय दिया हैं और ना अब देने को तैयार हैं। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, helvetica, sans-serif;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, helvetica, sans-serif;">
#metoo , #metooindia </div>
</div>
रचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-66495703602191466052018-09-29T11:57:00.000+05:302018-09-29T11:58:11.366+05:30धारा ३७७ को यानी होमोसेक्सुअलिटी को अब क्रिमिनल ओफ्फेंस नहीं माना जायेगा।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कुछ समय से सुप्रीम कोर्ट ने कुछ नए निर्णय लिये हैं या यूँ कहिये जजमेंट दिये हैं<br />
<span style="background-color: white; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 14px;"><span style="color: red;">धारा ३७७ को यानी होमोसेक्सुअलिटी को अब क्रिमिनल ओफ्फेंस नहीं माना जायेगा।</span></span><br />
<div class="_1dwg _1w_m _q7o" style="background-color: white; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 12px; padding: 12px 12px 0px;">
<div style="font-family: inherit;">
<div class="_5pbx userContent _3ds9 _3576" data-ft="{"tn":"K"}" id="js_c" style="border-bottom: none; color: #1d2129; font-family: inherit; font-size: 14px; line-height: 1.38; margin-top: 6px; padding-bottom: 12px;">
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px;">
देश बदल रहा हैं या समय के साथ चल रहा हैं या समय के साथ हमारी संस्कृति नष्ट हो रही हैं बड़े सारे प्रश्न गूँज रहें हैं। शायद तब भी उठे होंगे जब नारी और पुरुष की समानता की बात पहली बार हुई होगी , जब हरिजन शब्द का इस्तमाल पहली बार हुआ होगा , जब ठाकुर के कुयें से दलित को पानी भरने का अधिकार पहली बार मिला होगा और भी बहुत सी पहली बार.... .<br />
धारा ३७७ को यानी होमोसेक्सुअलिटी को अब क्रिमिनल ओफ्फेंस नहीं माना जायेगा। किसी की सेक्सुअलिटी ईश्वर की देने हैं इस लिये उसके अनुरूप उसको भी जीने का उतना ही अधिकार हैं जितना हम सब को।<br />
ये धारा १८६१ में ब्रिटिश राज्य में लागू की गयी थी और तब से इसके तहत बहुत से लोगो पर ज्यादतियां होती रही हैं।<br />
कभी किसी ने सोचा हैं क्यों ब्रिटिशर्स इस रूल को इंडिया में लाये ? पता नहीं लोग क्या सोचते हैं पर मुझे लगता हैं की उनकी संस्कृति में ये अमान्य था सो उन्होंने इसको यहां भी अमान्य किया। वहां Buggery Act 1533, था जो इस लिये लाया गया था ताकि sodomization के लिये सजा दी जा सके। sodomization यानी समलैंगिक बलात्कार।<br />
शायद ब्रिटिशर्स को ऐसा लगा होगा की उनके यहां के लोग जो अपने घर से महीनो और सालो दूर रह रहे हैं वो अपनी सेक्स रिलेटेड इच्छा sodomization से ना पूरी करे।</div>
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
ब्रिटिशर्स तो चले गए रह गया कानून और वो सब जो हर बात में ब्रिटिशर्स को गाली देते हैं उनके बनाये कानून से चिपके रहे।</div>
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
क्या समलैंगकिता हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं हैं ?<a data-ft="{"tn":"-U"}" data-lynx-mode="asynclazy" href="https://l.facebook.com/l.php?u=http%3A%2F%2Fdevdutt.com%2Farticles%2Fapplied-mythology%2Fqueer%2Fdid-homosexuality-exist-in-ancient-india.html&h=AT2qx-g6-gPD-Z1Ye6xb2J8-hgVjLv2_hu_5tJUrswbQkauswTAVKlwiOiSKEndvTsiaUKG47KGWa8DquLsJLHguSMsXOH3pAuVgS8rtdjuRSGtBdTr5EwC_Aog1OZpJSi279WDzPkYHsoQ5NTP6maY" rel="noopener nofollow" style="color: #365899; cursor: pointer; font-family: inherit; text-decoration-line: none;" target="_blank">http://devdutt.com/…/did-homosexuality-exist-in-ancient-ind…</a></div>
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
जिस देश में आशीर्वाद देने मात्र से सूर्य का पुत्र पैदा हो सकता कवच और कुण्डल पहन कर लेकिन नदी में बहा दिया जाता हैं वहाँ हम संस्कृति की किस नैतिकता और उसके नष्ट होने की बात कर रहे हैं।</div>
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
नैतिकता हैं की हम अगर किसी को प्यार करते हैं तो उसकी रक्षा करे। समलैंगिकता को फैशन की तरह ना प्रदर्शित करे ना इस्तमाल करे।<br />
कोई समलैंगिक हैं तो उसको ये अधिकार नहीं मिल जाता हैं कि वो अगर पावर में हैं तो दुसरो को sodomize करे क्युकी आपके लिये जो नेचुरल हैं वो दूसरे के के लिये अप्राकृतिक हैं।</div>
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
सबसे बड़ी बात हैं की होमोसेक्सुअलिटी dicriminalized हुई हैं sodomization नहीं।<br />
अभी कानून को बदला जाना हैं और इस में समय लगेगा।</div>
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
रेनबो केवल LGBT तक सिमित नहीं हैं LGBT कम्युनिटी को ये रेनबो ऐसा बनाना होगा की इसके नीचे sodomization की जगह ही ना रहे।<br />
बात समलैंगिक विवाह और बच्चो के एडॉप्शन तक ही सिमित नहीं हो सकती क्युकी आप एक समाज का हिस्सा हैं जहां आप की ख़ुशी के आप के अधिकार आप तक नहीं सिमित होंगे अगर आप समलैंगिक शादी करेंगे और बच्चा गोद लेंगे।</div>
<div style="font-family: inherit; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
उस बच्चे के अधिकारों का क्या जिसको आप गोद लेंगे ? क्या वो समलैंगिक अभिभावक चाहता हैं ? या फिर आप किसी समलैंगिक को ही गोद लेंगे ? तब तो आप एक नया कोना बनायेगे अपने लिये। अगर आप को ये सही लगता हैं तो आप की लड़ाई सही दिशा में हैं अन्यथा मेरे दृष्टि में नहीं क्युकी आप अपनी ख़ुशी के लिये किसी और की ख़ुशी का हनन कर रहे हैं</div>
<div style="display: inline; font-family: inherit; margin-top: 6px;">
Homosexuality is thought to be unnatural sex hence it was treated as criminal offence. Not just homosexuality all types of of sexual relations which happened between any form other than woman and man was classified as unnatural. Hence it was a criminal offence but Keeping Homosexuality in same category was what creating issues. The court has merely scrapped the criminal offence section<br />
#377 <a class="_58cn" data-ft="{"type":104,"tn":"*N"}" href="https://www.facebook.com/hashtag/lgbt?source=feed_text" style="color: #365899; cursor: pointer; font-family: inherit; text-decoration-line: none;"><span class="_5afx" style="direction: ltr; font-family: inherit;"><span aria-label="hashtag" class="_58cl _5afz" style="font-family: inherit; unicode-bidi: isolate;">#</span><span class="_58cm" style="font-family: inherit;">lgbt</span></span></a> <a class="_58cn" data-ft="{"type":104,"tn":"*N"}" href="https://www.facebook.com/hashtag/%E0%A4%A7%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE_377?source=feed_text" style="color: #365899; cursor: pointer; font-family: inherit; text-decoration-line: none;"><span class="_5afx" style="direction: ltr; font-family: inherit;"><span aria-label="hashtag" class="_58cl _5afz" style="font-family: inherit; unicode-bidi: isolate;">#</span><span class="_58cm" style="font-family: inherit;">धारा_377</span></span></a> <a class="_58cn" data-ft="{"type":104,"tn":"*N"}" href="https://www.facebook.com/hashtag/section377?source=feed_text" style="color: #365899; cursor: pointer; font-family: inherit; text-decoration-line: none;"><span class="_5afx" style="direction: ltr; font-family: inherit;"><span aria-label="hashtag" class="_58cl _5afz" style="font-family: inherit; unicode-bidi: isolate;">#</span><span class="_58cm" style="font-family: inherit;">section377</span></span></a> <a class="_58cn" data-ft="{"type":104,"tn":"*N"}" href="https://www.facebook.com/hashtag/pride?source=feed_text" style="color: #365899; cursor: pointer; font-family: inherit; text-decoration-line: none;"><span class="_5afx" style="direction: ltr; font-family: inherit;"><span aria-label="hashtag" class="_58cl _5afz" style="font-family: inherit; unicode-bidi: isolate;">#</span><span class="_58cm" style="font-family: inherit;">pride</span></span></a> <span class="_5afx" style="color: #365899; cursor: pointer; direction: ltr; font-family: inherit;"><a class="_58cn" data-ft="{"type":104,"tn":"*N"}" href="https://www.facebook.com/hashtag/rainbow?source=feed_text" style="color: #365899; cursor: pointer; font-family: inherit; text-decoration-line: none;"><span aria-label="hashtag" class="_58cl _5afz" style="color: #365899; cursor: pointer; font-family: inherit;">#</span><span class="_58cm" style="color: #365899; cursor: pointer; font-family: inherit;">rainbow</span></a></span></div>
</div>
<div class="_5pbx userContent _3ds9 _3576" data-ft="{"tn":"K"}" id="js_c" style="border-bottom: none; color: #1d2129; font-family: inherit; font-size: 14px; line-height: 1.38; margin-top: 6px; padding-bottom: 12px;">
<span style="color: red; font-family: inherit;">धारा ४९७ </span><span style="color: red; font-family: inherit;"> को यानी अडल्ट्री </span><span style="color: red; font-family: inherit;"> को अब क्रिमिनल ओफ्फेंस नहीं माना जायेगा। </span></div>
<div class="_5pbx userContent _3ds9 _3576" data-ft="{"tn":"K"}" id="js_c" style="border-bottom: none; font-family: inherit; font-size: 14px; line-height: 1.38; margin-top: 6px; padding-bottom: 12px;">
<div style="display: inline; font-family: inherit; margin-top: 6px;">
adultery क्या थी इसकी परिभाषा। section 497 के अनुसार अगर एक विवाहित पुरुष किसी की पत्नी के साथ सम्बन्ध बनाता हैं " बिना उसके पति की परमिशन के " तो वो सजा का अधिकारी होगा। पुरुषो को ये धारा अपने लिये गलत लगी क्युकी उनके अनुसार सजा दोनों को होनी चाहिये थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जज के हिसाब से इस धारा में सबसे गलत बात थी की पत्नी को पति की संपत्ति मान लिया गया था , पति उसका मास्टर था यानी अगर पति चाहता हैं तो पत्नी के साथ कोई अन्य पुरुष भी दैहिक सम्बन्ध बना सकता हैं। इस लिए सुप्रीम कोर्ट को इसमे स्त्री पुरुष समानता नहीं दिखी जो की हमारे कंस्टीटूशन में हैं। </div>
</div>
<div class="_5pbx userContent _3ds9 _3576" data-ft="{"tn":"K"}" id="js_c" style="border-bottom: none; font-family: inherit; font-size: 14px; line-height: 1.38; margin-top: 6px; padding-bottom: 12px;">
<div style="display: inline; font-family: inherit; margin-top: 6px;">
सुप्रीम कोर्ट ने माना हैं की अडुल्टेरी डाइवोर्स की प्रक्रिया में मान्य होगा अन्यथा ये क्रिमिनल ओफ्फेंस नहीं हैं। </div>
</div>
<div class="_5pbx userContent _3ds9 _3576" data-ft="{"tn":"K"}" id="js_c" style="border-bottom: none; font-family: inherit; font-size: 14px; line-height: 1.38; margin-top: 6px; padding-bottom: 12px;">
<div style="display: inline; font-family: inherit; margin-top: 6px;">
<br /></div>
</div>
<div class="_5pbx userContent _3ds9 _3576" data-ft="{"tn":"K"}" id="js_c" style="border-bottom: none; font-family: inherit; font-size: 14px; line-height: 1.38; margin-top: 6px; padding-bottom: 12px;">
<div style="display: inline; font-family: inherit; margin-top: 6px;">
भारतीये संस्कृति की बुराई को अच्छाई में बदलने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी हैं। अपनी सोच बदले नारी पुरुष और बाकी सब जेंडर को बराबर समझे </div>
</div>
<div class="_5pbx userContent _3ds9 _3576" data-ft="{"tn":"K"}" id="js_c" style="border-bottom: none; color: #1d2129; font-family: inherit; font-size: 14px; line-height: 1.38; margin-top: 6px; padding-bottom: 12px;">
<div style="display: inline; font-family: inherit; margin-top: 6px;">
<br /></div>
</div>
<div class="_5pbx userContent _3ds9 _3576" data-ft="{"tn":"K"}" id="js_c" style="border-bottom: none; color: #1d2129; font-family: inherit; font-size: 14px; line-height: 1.38; margin-top: 6px; padding-bottom: 12px;">
<div style="display: inline; font-family: inherit; margin-top: 6px;">
<br /></div>
</div>
<div class="_3x-2" data-ft="{"tn":"H"}" style="color: #1d2129; font-family: inherit;">
<div data-ft="{"tn":"H"}" style="font-family: inherit;">
</div>
</div>
<div style="color: #1d2129; font-family: inherit;">
</div>
</div>
</div>
<div style="background-color: white; color: #1d2129; font-family: Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 12px;">
<form action="https://www.facebook.com/ajax/ufi/modify.php" class="commentable_item" data-ft="{"tn":"]"}" id="u_0_1c" method="post" rel="async" style="margin: 0px; padding: 0px;">
<div class="_sa_ _gsd _fgm _5vsi _192z _1sz4 _1i6z" style="color: #90949c; font-family: inherit; margin-top: 0px; padding-bottom: 4px; position: relative;">
<div class="_37uu" style="font-family: inherit;">
<div style="font-family: inherit;">
<div class="_57w" style="font-family: inherit;">
<div class="_3399 _1f6t _4_dr _20h5" style="border-bottom: 1px solid rgb(229, 229, 229); clear: both; font-family: inherit; line-height: 20px; margin: -2px 12px 0px; padding: 0px 0px 10px;">
<div class="_524d" style="font-family: inherit;">
<div class="_ipn clearfix _-5d" style="color: #606770; font-family: inherit; zoom: 1;">
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</div>
</form>
</div>
<br /></div>
रचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-35804857045220956612017-11-13T09:02:00.002+05:302017-11-13T09:02:46.289+05:30नयी पीढ़ी बिलकुल दिशा हीन हो चली हैं। उनके पास कोई दिशा निर्देश नहीं हैं की सही और गलत क्या हैं। <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
ना जाने कितनी बार डाइवोर्स पर बहस होती रही हैं लेकिन भारतीये समाज इसको एक सहज सम्भावना मानने से इंकार करता रहा हैं। <br />
हमेशा बच्चो का हवाला दे कर साथ रहने के समझौते को करते रहना ही शादी में बने रहने के लिये जरुरी समझ लिया जाता हैं।<br />
कल एक नाबालिग बच्चे ने , जिसने अपने ही स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे की निर्मम हत्या की हैं जुविनाइल बोर्ड को अपनी अन्य बातो के अलावा ये भी कहा की उसके घर का माहौल अच्छा नहीं हैं। माँ पिता की निरंतर लड़ाई के कारण उसका पढ़ाई में मन नहीं लगता। <br />
<br />
<br />
क्या सही हैं इस केस में क्या नहीं लेकिन कहीं ना कहीं समाज के पुराने नियमो को या तो सख्ती से लागू करने का समय हैं या उन्हे बदलने का समय हैं। <br />
<br />
नयी पीढ़ी बिलकुल दिशा हीन हो चली हैं। उनके पास कोई दिशा निर्देश नहीं हैं की सही और गलत क्या हैं। <br />
<br /></div>
रचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-66602196658267769712017-09-22T10:50:00.001+05:302017-09-22T10:50:18.567+05:30कंडीशनिंग करने में हमारा समाज कोई कसर नहीं छोड़ता हैं। <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आज कल टी वी पर जितने भी सीरियल या प्रोग्राम आ रहे हैं उन सब में एक थीम बड़ा कॉमन दिख रहा हैं<br />
अच्छी शिक्षित और नौकरी करती महिला / लड़की /नारी को कहीं ना कहीं अपने से कम शिक्षित , कम उम्र और कम कमाने वाले लड़को से विवाह करने को प्रेरित किया जा रहा हैं। <br />
<br />
कितनी चालकी से नारी की उलटी कंडीशनिंग शुरू हो गयी हैं। समाज फिर नारी को कंडीशन करने में लग गया हैं।<br />
<br />
जिस हिसाब से लडकियां पढ़ लिख कर ऊँची नौकरी कर रही हैं समाज को दिख रहा हैं की पुरुष के बराबर नहीं नारी उससे कहीं बहुत आगे जा रही हैं। सो उसका दिमाग कंडीशन करना जरुरी हैं। <br />
<br />
उस पर भी तारीफ़ पुरुष की हो रही हैं जो घर संभालता हैं आज भी वो नारी पर अहसान करता हैं अगर नौकरी ना करके घर सभाले तो।<br />
<br />
कल k b c में एक डिप्टी कलेक्टर महिला हॉट सीट पर थी और उनके पति भी आये थे। जब शादी हुई थी तो महिला स्कूल टीचर थी और पति १२ वी पास , महिला के पैर पोलियो ग्रस्त थे। <br />
अमिताभ जी ने भी कसीदे पढ़ दिये इन सज्जन की तारीफ़ में। <br />
<br />
एक स्कूल टीचर का विवाह एक १२ वी पास से हो गया और तारीफ़ सब पुरुष की हो रही हैं की उसने एक पोलियो ग्रस्त से विवाह किया और उसको आगे भी बढ़ने दिया।<br />
<br />
कंडीशनिंग करने में हमारा समाज कोई कसर नहीं छोड़ता हैं। लोगो को नहीं दिखता हैं। </div>
रचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-75788247846183314582017-01-07T10:21:00.000+05:302017-01-09T09:24:00.463+05:30फेमिनिस्ट या माइसोजिनिस्ट स्त्री कहना हमेशा नारी को समझाने जैसा होता हैं कभी पुरुष को भी समझाए <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h2 style="text-align: left;">
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , sans-serif; font-size: x-small;">किसी भी हादसे के बाद तमाम तरह के विचार , मंथन पढ़ने को मिलते हैं। रेप या मोलेस्टेशन के बाद भी यही होता हैं।</span><span style="background-color: white; color: #222222; font-family: "arial" , sans-serif; font-size: x-small;"> </span></h2>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
कुछ महिला और पुरुष इस समय एक ही सुर में लड़कियों के कपड़े और उनके रहन सेहन को जिम्मेदार मानते हैं और नसीहत देते हैं। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
कुछ पुरुष मखोल की मुद्रा में व्यंग करते हैं </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
कुछ पुरुष सीरियस होकर औरत के नंगे नाच पर पोस्ट देते हैं और भारतीये संस्कृति के पतन के लिये विलाप करते हैं </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
वहीं कुछ पुरुष इस सब के विरोध में लिखते हैं नॉट आल मेन का नारा देते हैं </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
और स्त्रियां कोख से पुत्री के अन्याय से ले कर पूरी जिंदगी तक के अन्याय पर लिखती हैं </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
यानी सब कहीं ना कहीं इस सब से परेशान तो जरूर हैं। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
मुझे लड़कियों को सबक की तरह सही समय पर आना , सही कपडे पहनना इत्यादि नसीहत भरी पोस्ट से बड़ी चिढ़ होती हैं क्योंकि इन सब में दोषी को नहीं जिसके साथ दोष हुआ उसको सजा की बात लगती हैं। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
पर मुझे ये काउंसलिंग जब स्त्रियां लड़कियों की करती हैं तो कम बुरा लगता हैं क्योंकि हर के स्त्री कहीं ना कहीं कभी ना कभी बचपन से ले कर मरने तक में इस प्रकार के दुर्व्यवहार से गुजरी हैं , बस कम ज्यादा की बात होती हैं। पीढ़ी आती हैं जाती हैं बस समस्या वहीँ की वहीँ रहती हैं। इस लिये बिना अपनी पीड़ा को बताये नारी दूसरी नारी को समझाती हैं की बेटी देर से मत आओ , तन को ढाँक कर रखो , दूरी बना कर रखो। नारी जानती हैं नारी शरीर को किस पीड़ा से निकलना होता हैं अनिच्छित स्थिति में और वो दूसरी नारी को काउन्सिल करना चाहती हैं। बहुत बार हम इन स्त्रियों को mysogynist कह देते हैं , ये कुछ वैसा ही हैं जैसे नारी अधिकारों की बात करने वाली नारी को feminist कहना। दोनों ही स्थिति में नारी की छवि को negative बना दिया जाता हैं। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
नारी , नारी को काउंसिल कर रही हैं , कंडीशन कर रही हैं गलत कर रही हैं , बदलाव आ रहा हैं नारी की सोच में और भी आएगा , दूर नहीं हैं वो समय जब आज के जनरेशन यानी २० वर्ष - २५ वर्ष की लड़की अपनी लड़की को पिस्तौल का लाइसेंस दिलवा देगी और कानून भी अपनी हिफाज़त में बेनिफिट ऑफ़ डाउट देगा। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
लेकिन पुरुषो का क्या औचित्य हैं लड़कियों को काउन्सिल करने का . क्यों नहीं वो पुरुषो की काउंसिलिंग करते हैं , क्यों नहीं वो पुरुषो के बायोलॉजिकल डिसऑर्डर पर बात करना चाहते हैं , क्यों नहीं वो आपस में डिसकस करना चाहते हैं की जब बरमूडा पहने टॉप लेस पुरुष को , सड़क के किनारे खड़े होकर अपने को हल्का करते पुरुष देख कर लड़कियां उनको रेप या मोलेस्ट नहीं करती हैं तो क्यों पुरुष क्यों करता हैं। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
क्यों नहीं पुरुष को पुरुष द्वारा कॉउंसिल किया जाता हैं की अपनी नीड्स को कैसे कण्ट्रोल किया जाए। हर पिता अपनी बेटी को ले कर किसी पुरुष से क्यों डरा रहता हैं। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
</div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
सोचिये http://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2011/08/segmentation-of-women.html</div>
</div>
रचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-84870684662233795952016-10-21T10:51:00.003+05:302016-10-21T10:53:34.736+05:30एक दूसरे के साथ खड़ी हो कर देखिये <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: left;">
<span style="background-color: white; color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: x-small;">आज भी जब पढ़े लिखे लोग , स्त्री और पुरुष दोनों , समानता की , बराबरी की बात को आज़ादी की बात कहते हैं तो अजीब लगता हैं। जन्म से हर कोई "आज़ाद " ही पैदा होता हैं लेकिन उसको बराबरी का दर्जा नहीं मिलता हैं। लोग स्त्री की बराबरी / इक्वलिटी की बात को गुलामी से आज़ादी की बात कहते हैं। स्त्री कंडिशन्ड हो सकती हैं और उसको इस कंडीशनिंग को तोड़ना पड़ता हैं ताकि वो बराबरी की बात करे। </span><br />
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
जिन लोगो ने करवा चौथ नहीं रखा वो भी उतनी ही आज़ाद हैं जितनी जिन्होने रखा। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
अगर रखने वालो का मखोल उड़ाया गया हैं और उनको गुलाम और रूढ़िवादी कहा गया हैं तो </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
ना रखने वालो का भी मखोल उड़ाया गया हैं और उन्हे आधुनिक और मॉडर्न इत्यादि कहा गया हैं। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
दोनों बाते कहने वाली ज्यादा नारी ही हैं। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
और दोनों ही कंडिशन्ड हैं क्योंकि दोनों अपनी पसंद दूसरे पर थोपना चाहती हैं और दूसरे का मखोल उड़ा कर और लोगो को ख़ास कर पुरुष वर्ग को ये मौका देना चाहती हैं की वो दोनों का का मज़ाक बनाये। दोनों महज और महज अपने आस पास के पुरुष वर्ग को शायद खुश करना चाहती हैं एक रीति रिवाजो को मान क्र और एक उनकी आलोचना कर के। </div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
<br /></div>
<div style="color: #222222; font-family: arial, sans-serif; font-size: small;">
एक दूसरे के साथ खड़ी हो कर देखिये , आप स्वयं को बराबर महसूस करेगी , एक दूसरे का मखोल उड़ा कर आज भी आप वही हैं जहां थी </div>
</div>
</div>
रचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-57664919632066304532016-10-19T10:03:00.001+05:302016-10-19T10:03:49.759+05:30 जबरन व्रत रखवाना या जबरन व्रत ना रखने देना दोनों में ही नारी के अधिकारों का हनन हैं। <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
सुबह ८ बजे का संवाद<br />
<br />
माँ उम्र ७८ वर्ष , प्रीति उनकी मैड उम्र २२ वर्ष<br />
<br />
माँ " प्रीति व्रत नहीं रखा<br />
प्रीति " नहीं रखा "<br />
माँ " मेहंदी भी नहीं लगाई "<br />
प्रीति " नहीं लगाई "<br />
<br />
प्रीति " औरत ही क्यों भूखी <b>मरे</b> , सजे धजे , और व्रत करे "<br />
<br />
माँ " "........ "<br />
<br />
<br />
अब इस संवाद के बाद क्या रहा बताने के लिये<br />
बहुत कुछ जो प्रीति से कहा वहीँ कुछ जोड़ कर यहां कह रही हूँ<br />
<br />
ये सब व्रत इत्यादि जिस समय शुरू किये गए थे उस समय नारी के लिये केवल घर में रहना और घर के काम करना जीवन था। उसके लिये "सुख " का मतलब उसके पति के जिन्दा होने से ही जुड़ा था। विधवा का जीवन http://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2012/09/blog-post_24.html बहुत ही निकृष्ट था उस समय इसलिये विवाहित जीवन लंबा हो इसकी जरुरत हर विवाहित स्त्री की थी।<br />
अगर पति ना रहे तो कम से कम पुत्र तो रहे सो उसके लिये व्रत। फिर देवी देवता रुष्ट ना हो उसके लिये व्रत। <br />
<br />
और इन्ही व्रतों में सजना , गाना बजाना , आपस में हंसी ठिठोली नारी का जीवन कुछ बदलाव हो जाता होगा.<br />
<br />
<br />
<br />
आज समय दूसरा हैं , शिक्षा ने नारी को सही गलत समझने में सक्षम किया। अब ये व्रत उपवास अपनी मर्जी से करना या ना करना इसकी समझ नारी को हैं। <br />
<br />
<br />
वुमन एम्पावरमेंट का मतलब ही यही होता हैं की नारी को ये अधिकार हो जो वो करना चाहे करे अगर आज वो व्रत करना चाहती हैं तो हमे उसको आज के दिन केवल और केवल उसके लम्बे विवाहित जीवन की बधाई देनी चाहिये। <br />
<br />
<br />
जबरन व्रत रखवाना या जबरन व्रत ना रखने देना दोनों में ही नारी के अधिकारों का हनन हैं। </div>
रचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-48628710015728625832016-10-10T13:10:00.000+05:302016-10-10T13:10:05.748+05:30कुछ नये बदलाव आ रहे हैं , देखिये , पढिये और समझिये<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कुछ नये बदलाव आ रहे हैं , देखिये , पढिये और समझिये<br />
<br />
कुछ दिन हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति को उसकी पत्नी से इस लिये डाइवोर्स लेने की सहमति दे दी क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने ये माना की पत्नी का पति से उसके वृद्ध माता पिता से अलग होकर रहने का आग्रह करना गलत हैं। कोर्ट ने ये माना की अगर बेटा अपने वृद्ध माता पिता के साथ रहना चाहता हैं तो पत्नी को भी वही रहना होगा { अगर को ख़ास वजह नहीं हो तो अलग होने की } क्योंकि ये एक स्थापित सत्य हैं की पत्नी को अपने मायके से विवाह के बाद अपने पति के घर रहना होता हैं। पति को उसके माता पिता से अलग होने के लिये ज़िद करना मानसिक कलह और मानसिक प्रतारणा हुआ और इसके आधार पर डाइवोर्स दिया जा सकता हैं<br />
<br />
http://www.firstpost.com/india/restricting-son-to-fulfil-duties-to-aged-parents-a-valid-ground-for-divorce-sc-3040124.html<br />
<br />
दूसरा फैसला आया हैं जिस में अब डोमेस्टिक वोइलेंस का केस सास अपनी बहु और नाबालिग पोते पोती पर लगा सकती हैं। कोर्ट ने ये माना हैं की डोमेस्टिक वोइलेंस बहु भी करती हैं पति पर दबाव बनाने के लिये। अभी तक केवल बहु का अधिकार था की वो अपने पति और परिवार की स्त्रियों पर जो की कोर्ट के अनुसार एक तरफ़ा था। इसके अलावा "एडल्ट मेल " का कोर्ट के हिसाब से कोई मतलब नहीं हैं क्योंकि डोमेस्टिक वोइलेंस ना बालिग बच्चे भी करते हैं<br />
http://www.hindustantimes.com/india-news/daughter-in-laws-minors-can-be-tried-for-domestic-violence-says-sc/story-xyyfs2PUJRLwmCe4lte6sO.html<br />
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<br /></div>
रचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-66325522381197779692016-09-28T11:01:00.001+05:302016-09-28T11:09:04.988+05:30 चलिये समझ लीजिये यही बहुत हैं हाँ नारी का कहा कब समझेंगे पता नहीं <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><span style="background-color: white; color: #1d2129; font-size: 14px;">For ages woman have been shouting from roof top , from books , from blogs that their bodies belong to them and when they so no they mean it .But none was willing to understand . The entire bhartiye Sanskrit was ruined because woman wanted to have a life of their own. And then comes Pink movie where a fictious male character makes people understand A woman's no is no . The movie where the original end was changed the climax was reversed to suit today's scenario is needed to ma</span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-size: 14px;">ke Indian man understand the Basics. If a real woman says it on various medium they can't understand and call that woman as feminist or pragatsheel or charitrheen but the moment a man even if its ficticious and filmy says so they drool over him . Its surprising that director could not find a woman lawyer to plead the case . Think again and see what the movie is actually promoting a typical patriarchal society and highlighting mans role in protecting woman. Amitabh bachchan wrote a letter to his grand daughter or was he promoting his movie because that letter no where mentioned the role of woman of his family in his grand daughters life.</span></span><br />
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-size: 14px;"><br /></span></span>
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-size: 14px;">इसी ब्लॉग को लेकर ना जाने इन्ही बातो पर कितनी बार बहस हुई और हर बार हम सब को गलत साबित किया गया। वहीँ ब्लॉगर अब फेस बुक पर पहुँच कर पिंक देखने के बाद स्टेटस दे रहे हैं "ना को ना समझे " . </span></span><br />
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-size: 14px;">कुछ वो जो नारी की "ना " यानी "चॉइस " को गिनते ही नहीं थे आज "ना को ना " समझने को को कह रहे हैं </span></span><br />
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-size: 14px;"><br /></span></span><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-size: 14px;">चलिये समझ लीजिये यही बहुत हैं हाँ नारी का कहा कब समझेंगे पता नहीं </span></span><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-size: 14px;"><br /></span></span>
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-size: 14px;"><br /></span></span>
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-size: 14px;">ना को ना समझने का अर्थ सीधा हैं की नारी को चॉइस या चुनने का सम्मान अधिकार हैं। आप उसको ये नहीं समझा सकते की स्वतंत्रता का अर्थ क्या हैं , कपडे कैसे पहनो , नौकरी कितने बजे तक करो , अकेली घुमोगी तो यही होगा , शादी नहीं करोगी तो चरित्रहीन हो। उसको अधिकार हैं की अपनी समझ के हिसाब से अपनी जिंदगी जिये। </span></span><br />
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-size: 14px;"><br /></span></span>
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-size: 14px;">नाबालिग लड़के और लड़की के लिये सब नियम कानून अगर एक से होगे तो उनके बड़े होने के बाद उनमें समानता का भाव भी होगा। </span></span><br />
<span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;"><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #1d2129; display: inline; font-size: 14px;"><br /></span></span></div>
रचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-71199027309953431032016-08-15T14:42:00.001+05:302016-08-15T14:42:34.848+05:30मैटरनिटी लीव को गलत ढंग से परिभाषित करके नारी को एक बार फिर केवल और केवल " माँ बनने में सक्षम " बना दिया गया हैं। <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मैटरनिटी लीव २६ हफ्ते की कर दी गयी हैं। अच्छा हैं जच्चा और बच्चा को आराम मिलेगा। लेकिन जब देश के प्रधान मंत्री लाल किले की प्राचीर से झंडा फहराते हुए कहते हैं की मैटरनिटी लीव इस लिये २६ हफ्ते कर दी गयी हैं ताकि माँ बेटे को पाल सके तो लगता हैं हम मानसिक रूप से अभी अभी कितने पिछड़े हैं। <br />
<br />
मैटरनिटी लीव का मकसद क्या केवल यही हैं की बच्चो को पाला जाए ?<br />
हम कब तक माँ की सेहत पर कभी बात नहीं करते ?<br />
<br />
क्या नारी का बच्चे को जनम देना और उसको पालना मात्र ही इस लीव का उद्देश्य हैं ?<br />
<br />
शायद नहीं<br />
जच्चा को आराम की सख्त जरुरत होती हैं , सही समय पर सही पोष्टिक भोजन करना जच्चा के लिये बेहद जरुरी हैं ताकि जब वो काम पर वापस जाए उसके शरीर मए ताकत हो काम और माँ के कर्त्तव्य को निभाने की।<br />
<br />
मैटरनिटी लीव को गलत ढंग से परिभाषित करके नारी को एक बार फिर केवल और केवल " माँ बनने में सक्षम " बना दिया गया हैं। <br />
<br /></div>
रचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-50734597180459109712016-08-11T08:59:00.002+05:302016-08-11T08:59:52.641+05:30 इस फैसले से काफी रुके हुए डाइवोर्स केसेस पर जल्दी ही फैसला संभव हैं। <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आज मद्रास हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला लिया जिसका सिंपल शब्दो में अर्थ हैं कि कोर्ट को डाइवोर्स के केस में ये पूछने का कोई अधिकार ही नहीं हैं कि डाइवोर्स क्यों चाहिये। अगर किसी विवाहित जोडें ने म्यूच्यूअल कंसेंट से डाइवोर्स की मांग की हैं तो उनको साथ रहने के लिये मजबूर नहीं किया जा सकता हैं और ना ही उनसे कारण पूछा जा सकता हैं। कोर्ट का अधिकार केवल और केवल क़ानूनी कार्यवाही तक ही सिमित है। <br />
<br />
<br />
http://timesofindia.indiatimes.com/If-couple-wants-divorce-courts-cannot-ask-for-reasons-says-HC/articleshow/53644037.cms?<br />
<br />
<br />
इस फैसले को अगर सही अर्थ में समझा जाए तो विवाह और डाइवोर्स एक पर्सनल मैटर हैं किसी भी कपल / दम्पति के लिये। किसी को भी उनको साथ रहने या अलग होने के लिये राय देने का अधिकार नहीं हैं। अगर शादी किसी भी कारण से टूट गयी हैं और आपस में साथ रहना संभव नहीं हैं उस केस में अलग होने के लिये कोई "ठोस" कारण हो और उसको बताया या प्रूव किया जाए ये जरुरी नहीं हैं कानूनन। <br />
<br />
इस फैसले से काफी रुके हुए डाइवोर्स केसेस पर जल्दी ही फैसला संभव हैं। <br />
और दूसरी अहम बात इस से फॅमिली कोर्ट की भी महता कम होगी। <br />
<br />
हमारे समाज में "फॅमिली" को लेकर बड़ी भ्रान्ति हैं जितनी जल्दी दूर हो उतना बेहतर </div>
रचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-16265928962447777352015-09-23T10:26:00.001+05:302015-09-26T12:25:41.108+05:30नारी के लिये निर्धारित आधे हिस्से पर भी पुरुष का ही अधिकार माना जाता हैं और इसमे कुछ भी गलत नहीं माना जाता। <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px;">
<a class="profileLink" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=100004027097500" href="https://www.facebook.com/anuraj.nair.585" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Anulata Raj Nair</a> <a class="profileLink" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=732545518" href="https://www.facebook.com/shikha.varshney.12327" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Shikha Varshney</a> <a class="profileLink" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=591247215" href="https://www.facebook.com/rashmi.ravija" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Rashmi Ravija</a> <a class="profileLink" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=638181270" href="https://www.facebook.com/ranju.bhatia1" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Ranju Bhatia</a> <a class="profileLink" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=100002139663071" href="https://www.facebook.com/anju.choudhary.39" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Anju Choudhary</a> <a class="profileLink" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=1437998485" href="https://www.facebook.com/nirmla.kapila" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Nirmla Kapila</a> <a class="profileLink" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=100000349928852" href="https://www.facebook.com/shobhana.chourey" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Shobhana Chourey</a> <a class="profileLink" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=100000401932547" href="https://www.facebook.com/neelima.chauhan.334" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Neelima Chauhan</a> <a class="profileLink" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=1392876798" href="https://www.facebook.com/sujata.tewatia" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Sujata Tewatia</a> <a class="profileLink" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=1578505451" href="https://www.facebook.com/rosered8flower" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Vandana Gupta</a> <a class="profileLink" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=1517447719" href="https://www.facebook.com/aradhana.chaturvedi" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Aradhana Chaturvedi Mukti</a> <a class="profileLink" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=1806788208" href="https://www.facebook.com/vani.sharma1" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">वाणी गीत</a> <a class="profileLink" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=1042664165" href="https://www.facebook.com/saras.darbari" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Saras Darbari</a><a class="profileLink" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=1333142229" href="https://www.facebook.com/rekha.srivastava.984" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Rekha Srivastava</a> <a class="profileLink" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=100005056446228" href="https://www.facebook.com/drmonica.sharrma" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Dr-Monika S Sharma</a> <a class="profileLink" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=100001131683205" href="https://www.facebook.com/HeerHarkirat" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Harkirat Heer</a></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px;">
ऊपर टैग किये नामो को मैने ५ मिनट के समय में फ्रेंड लिस्ट में से खोजा हैं।<br />
इनकी रचनाओ के पाठक गण में<br />
सतीश सक्सेना <a class="profileLink" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=1037033614" href="https://www.facebook.com/anup.shukla.14" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">अनूप शुक्ल</a> <a class="profileLink" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=528846927" href="https://www.facebook.com/udantashtari" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Udan Tashtari</a> <a class="profileLink" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=100001232891929" href="https://www.facebook.com/salil.varma.5" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">सलिल वर्मा</a> <a class="profileLink" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=100000101178257" href="https://www.facebook.com/girishpankaj1" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Girish Pankaj</a> <a class="profileLink" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=1739157139" href="https://www.facebook.com/ismat.shefa" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Ismat Zaidi Shifa</a></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
शामिल हैं <span style="line-height: 19.32px;">और मित्र सूची मे भी शायद हैं </span></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<span style="line-height: 19.32px;"><br /></span></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<span style="line-height: 19.32px;"><br /></span></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<span style="line-height: 19.32px;">फिर भी इन</span><span class="text_exposed_show" style="display: inline; line-height: 19.32px;">मे से किसी ने भी इन महिला के लेखन को इस योग्य नहीं समझा की उनका नाम <a class="profileLink" data-hovercard="/ajax/hovercard/user.php?id=100000509618604" href="https://www.facebook.com/FOUNDATIONANANDAHIANANDA" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">Ananda Hi Ananda</a><a class="profileLink" href="https://www.facebook.com/Vivekjii/photos/a.10150339646279303.363227.170976869302/10153556284649303/?type=3" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">https://www.facebook.com/Vivekjii/photos/a.10150339646279303.363227.170976869302/10153556284649303/?type=1&fref=nf</a></span></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<span class="text_exposed_show" style="display: inline;">राष्ट्रीय भाष्य गौरव पुरस्कार के लिये नॉमिनेट करे।</span></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<span class="text_exposed_show" style="display: inline;"><br /></span></div>
<div style="background-color: white; color: #141823; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<span class="text_exposed_show" style="display: inline;"><br /></span></div>
<div class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #141823; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px;">
<div style="margin-bottom: 6px;">
इस वर्ष ७ पुरूस्कार दिये गए लेकिन एक भी नाम महिला का नहीं हैं। पिछले साल एक महिला को दिया गया था उसकी और इस विषय पर और विस्तृत चर्चा करुँगी अभी रिसर्च कर रही हूँ और सेलेक्टर्स से इस सिलेक्शन के रूल्स और चयन की प्रक्रिया के विषय में बात कर रही हूँ। ३ से कर चुकी हूँ। बाकी सब का इंतज़ार हैं क्युकी मेरे बार में कहा जाता हैं की मैं नकारात्मक सोच रखती हूँ और सकारात्मक नहीं इसलिये बता दूँ की मेरी सोच न्यूट्रल होती हैं और उसमे केवल और केवल महिला और पुरुष की समानता की ही बात होती हैं। </div>
<div style="margin-bottom: 6px;">
<br /></div>
<div style="margin-bottom: 6px;">
<br /></div>
<div style="margin-bottom: 6px;">
जहां भी महिला को केवल मातृ शक्ति मान कर पवित्रता की बात की जाती हैं मुझे वहाँ केवल और केवल महिला की उपलब्धियों को दबाने की बात ही नज़र आती हैं।<a href="https://www.facebook.com/satish1954/posts/10205853510190222?comment_id=10205899810667705&offset=0&total_comments=29&comment_tracking=%7B%22tn%22%3A%22R2%22%7D" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">https://www.facebook.com/satish1954/posts/10205853510190222…</a></div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
न्यूट्रल हो कर सोचना मेरे लिये बड़ा आसान हैं<br />
अगली कड़ी शीघ्र ही जो नाराज होना चाहे हो सकते हैं क्युकी हम जो आवाज उठाते हैं उसका फायदा हमारी आने वाली पीढ़ी की लड़कियों को अवशय होगा वो उस कंडीशनिंग को तोड़ सकेगी जिस मे चुप रह कर अन्याय सहने को "त्यागमय " की उपाधि दी जाती हैं</div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
हाँ मैं ईमेल देकर लिंक देकर चैट पर अपनी साथी महिला को सूचित करती हूँ की कहाँ क्या हो रहा हैं ताकि वो जान सके की उनको कहाँ कहाँ आवाज उठानी हैं ताकि हमारी अगली पीढी की लडकियां बराबरी की इस लड़ाई को ना लड़े</div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
<div style="line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px;">
सोशल मीडिया के आने से अब कुछ भी छुपाना मुश्किल हैं</div>
<div style="line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
ये शायद एक व्यक्ति की व्यक्तिगत पसंद ना पसंद के पुरूस्कार हैं। उनको अधिकार हैं अपनी पसंद को पुरुस्कृत करने का पर सोशल मीडिया पर चयनकर्ता के नाम देना और इसको एक पारदर्शी प्रक्रिया का भरम देना गलत हैं।<br />
<a class="profileLink" href="https://www.facebook.com/Vivekjii/photos/a.10150339646279303.363227.170976869302/10153556284649303/?type=3" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">https://www.facebook.com/Vivekjii/photos/a.10150339646279303.363227.170976869302/10153556284649303/?type=3</a><br />
जिन चयन करता के नाम ऊपर हैं उन मे से दो ने ये कन्फर्म किया हैं की उनको नाम दे कर पूछा गया था की क्या इसको दे दे और उन्<span class="text_exposed_show" style="display: inline;">होंने ने हाँ कह दिया था और ये उन्होंने पुरानी मित्रता के तहत किया हैं । नाम ना तो उन्होने चुने ना नॉमिनेट किये। जिन महिला को पिछली बार मिला था उनका नाम जिन महिला मेंबर ने बताया था उन्हें मेंबर भी केवल नाम देने के लिये ही बनाया था और उन्होंने कहा की वो एक्टिव मेंबर नहीं हैं और उन्होंने महिला को ही चुना था।</span></div>
<div class="text_exposed_show" style="display: inline; line-height: 19.32px;">
<div style="margin-bottom: 6px;">
चयन करता की सहमति सब नाम पर नहीं ली गयी हैं हर चयन करता को दो नाम या एक नाम दे कर औपचारिकता पूरी की गयी थी। नाम पहले से चयनित ही थे और चयनकर्ता के नाम महज और महज खानापूर्ति थे { मेरी समझ } .</div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
किसी भी महिला का ना होना ७ पुरुस्कृत व्यक्तियों में केवल और केवल इस बात का सूचक हैं की इस साल कोई भी महिला आयोजक / प्रेसीडेन्ट को योग्य लगी नहीं। उनका ये कहना की चयनकर्ता ने कोई नाम दिया नहीं केवल और केवल एक वक्तव्य हैं और उसके ऊपर कुछ नहीं।<br />
<a href="https://www.facebook.com/satish1954/posts/10205853510190222?comment_id=10205899810667705&offset=0&total_comments=29&comment_tracking=%7B%22tn%22%3A%22R2%22%7D" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">https://www.facebook.com/satish1954/posts/10205853510190222…</a></div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
जो महिला पिछली बार मेंबर थी उन्होंने एक महिला का ही चयन किया था और सुझाव भी दिया था की महिला और पुरुष के लिये दो अलग क्षेणी हो और आधे आधे पुरूस्कार दिये जाए पर ऐसा नहीं हुआ और क्युकी अब वो एक्टिव मेंबर नहीं हैं इस लिये उनको इस वर्ष का कोई पता नहीं हैं की क्या प्रक्रिया रही।<a href="https://www.facebook.com/naari.naari.3/posts/1643542085914367" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;">https://www.facebook.com/naari.naari.3/posts/1643542085914367</a></div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
कभी कभी सोचती हूँ बेटियों के हिस्से में इतना कम क्यों आता हैं। क्या इन ७ जिनको पुरूस्कार मिला उनको खुद ये महसूस नहीं होता हैं की उन्होने महिला के आधे हिस्से पर कब्जा किया हैं। </div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
बहुत घरो में बचपन में बहिन के हिस्से का दूध भाई को दिया जाता था और भाई की देखभाल उसकी बहिन करती थी उसको दूध मिले ना मिले भाई के लिये गरम दूध का गिलास एक छोटी सी बच्ची ले जाती थी। यही होता था एक पत्नी के साथ पति का जूठा खाना , पति के बाद खाना , खाना ना होने पर भूखे सोना और माँ के लिये तो बच्चे का मतलब ही बेटा होता था </div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
आज भी वो सब जारी हैं बस आयाम बदल गए हैं नारी के लिये निर्धारित आधे हिस्से पर भी पुरुष का ही अधिकार माना जाता हैं और इसमे कुछ भी गलत नहीं माना जाता। <br />
<br />
<span style="line-height: 19.32px;">महिला के हक़ की बात यानी महिला आधारित मुद्दो को उठाने पर हमेशा उसे " पुरुष विरोध " कह कर भटकाया जाता हैं। पुरुष वर्ग को हमेशा लगता हैं उसको कटघरे मे खड़ा किया जाता हैं क्युकी पुरुष वर्ग को अपने को इम्पोर्टेन्ट समझने की आदत हैं और वो हमेशा ये दिखाते हैं की "वो टारगेट हैं " .</span></div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
</div>
<div style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
</div>
</div>
रचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-26366677146470521022015-08-14T12:40:00.001+05:302015-08-14T12:40:39.195+05:30फिर सयुंक्त परिवार का विघटन हुआ ही क्यों ?? <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कल देश ६९ इंडिपेंडेंस डे मना रहा हैं<br />
६९ साल पहले पूरा परिवार एक साथ रहता था कई पीढ़िया<br />
१९६० के दशक में परिवार से सयुंक्त परिवार खत्म हुआ और एकल परिवार आया यानी माता पिता बच्चे और फिर बेटे का परिवार।<br />
धीरे धीरे परिवार का अर्थ बदला<br />
आज का परिवार कुछ अलग हैं<br />
यहां पुरुष और स्त्री डाइवोर्स के बाद अलग अलग विवाह कर चुके हैं और उनके अपने परिवार हैं लेकिन होली दिवाली सब साथ खाते पीते हैं<br />
पति उसकी दूसरी पत्नी और उसका परिवार<br />
पत्नी उसका दूसरा पति और उसका परिवार<br />
पति के पहली पत्नी के बच्चे , दूसरी पत्नी के बच्चे<br />
पत्नी के पहले पति के बच्चे और दूसरे पति के बच्चे<br />
और अगर बच्चे विवाहित हुए तो उनके परिवार<br />
<br />
कहीं कोई मन मुटाव नहीं<br />
<br />
फिर सयुंक्त परिवार का विघटन हुआ ही क्यों ?? <br />
</div>
रचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-81471545702571902952015-05-16T11:39:00.000+05:302015-05-16T11:39:09.033+05:30कल्चरल शॉक <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div>
<div>
<div>
<div>
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<div>
<div>
आज एक ख्याति प्राप्त नेशनल अवार्ड विनर अभिनेत्री ने एक इंटरव्यू में कहा हैं की वो जब मुंबई आयी थी उनके पास १५०० रूपए थे। </div>
जब
भी लोग ये कहते हैं तो कहीं ना कहीं ये समझ आता हैं की कितने कम पैसे में
मुंबई मे आकर "जमा" जा सकता हैं और एक "बुलंदी को भी छुआ जा सकता हैं। </div>
इस
प्रकार के बयान दूसरी लड़कियों के लिये प्रेरणा स्रोत्र बन जाते हैं और वो
भी "सुनहरे " सपने आँखों में लिये मुंबई के लिये प्रस्थान कर देती और सोचती
हैं "टॉप की स्टार " बन जाएगी। </div>
अधूरा सच हमेशा ये अभिनेत्रियां
बताती हैं। इस अभिनेत्री ने भी ये नहीं बताया की आते ही वो एक मैरिड
अभिनेता के साथ जो उम्र में इनके पिता की उम्र का था लिव इन रिलेशनशिप में
रही। सालो उसके फ्लैट और घर पर ये आराम से " अपने १५०० रूपए" के सहारे
रहती रही। </div>
उसके बात जब इस रिलेशनशिप में " अब्यूज " का सामना
करना पड़ा तो ये एक दूसरे अभिनेता के साथ रहने लगी जिसने उस समय एक भी फिल्म
नहीं की थी शायद एक दो कामयाब फिल्म दे चुकी थी और वो अभिनेता इन से उम्र
में छोटा था। शायद अब भी इनके " १५०० रूपए का इन्वेस्टमेंट " इनके काम आ
रहा था। <br /></div>
फिर दो तीन साल बाद उससे भी ये अलग हो गयी और आज ये एक अच्छी सफल अभिनेत्री हैं। </div>
वो
अपनों निजी ज़िंदगी में जो करती हैं उनकी अपनी ज़िंदगी हैं लेकिन उनका ये सच
सब लडकियां नहीं जानती हैं जो सोचती हैं मात्र १५०० रूपए जेब में होने से
मुंबई जैसे महानगर में बिना अपने शरीर का सौदा किये वो आराम से रह पाएगी। </div>
वो
जब मुंबई पहुचती हैं तो ये कल्चरल शॉक उनके लिये बहुत बड़ा होता हैं। और
फिर घर लौट आये तो बेहतर अन्यथा दो ही रास्ते रह जाते हैं </div>
एक वो भी किसी दिन नामी अभिनेत्री बन कर अपने १५०० रूपए का बखान करेगी </div>
दूसरा मुंबई में वो कहाँ खो जाएगी पता नहीं होगा<br />
पाठको से आग्रह हैं अगर आप इस अभिनेत्री का नाम जानते हैं तो भी यहाँ ना दे क्युकी मेरा मकसद किसी पर व्यक्तिगत आक्षेप नहीं हैं </div>
रचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-77067441699884155492015-04-21T09:28:00.001+05:302015-04-21T09:37:30.522+05:30प्रकृति ने दोनों को एक सा बनाया हैं पर समाज ने दोनों को बड़े होने के एक से अवसर प्रदान नहीं किये हैं। <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एक महिला डॉक्टर ने आत्महत्या कर ली अपने सुसाइड नोट में उसने कारण दिया की उसका पति "गे" हैं और इस वजह से उसका वैवाहिक जीवन कभी सही नहीं रहा। ५ साल के वैवाहिक जीवन के बाद भी वो सहवास सुख से वंचित हैं। उसका ये भी कहना हैं की जब उसने अपने पति से पूछा तो उसको प्रताड़ित किया गया और उस से और उसके परिवार से दहेज़ माँगा जाने लगा। उस ने अपना पूरा पत्र फेसबुक पर भी पोस्ट किया। <br />
कल का पूरा दिन सारा सोशल मीडिया इसी बात से गर्म गर्म बहस में उलझा रहा। बहस ये होती रही की " गे " पति की वजह से एक स्त्री का जीवन नष्ट हो गया।या बहस ये होती रही की " गे " होने को अपराध क्यों मानते हैं लोग और क्यों नहीं "गे " लोग अपनी बात अपने परिवार से कह देते हैं और क्यों किसी स्त्री का जीवन नष्ट करते हैं। और बहस का तीसरा मुद्दा ये भी रहा की समाज इतना असहिष्णु क्यों हैं और क्यों नहीं लोगो को अपनी पसंद से जीवन जीने देता हैं। <br />
सवाल जिस पर बहस नहीं हुई<br />
क्या किसी पति ने कभी आत्महत्या की हैं अपनी पत्नी के "लिस्बन " होने के कारण ? <br />
क्या स्त्रियां "लिस्बन " होती ही नहीं हैं ?<br />
एक नौकरी करती प्रोफेशनल क्वालिफाइड डॉक्टर महिला सुसाइड कर सकती हैं अपने पति के " गे " होने के कारण पर ये जानने के बाद भी की उसका पति "गे " हैं वो उससे अलग नहीं होना चाहती हैं क्युकी उसको प्यार करती हैं। क्या ये प्यार हैं ? अगर प्यार हैं तो समझ कर और "गे " होने को बीमारी ना मान कर उसका इलाज ना करके अपने पति से अलग क्यों नहीं हुई ?<br />
अगर महिला आर्थिक रूप से सक्षम थी तो इतना भय किस बात का डाइवोर्स की मांग करने से। <br />
<br />
स्त्री पुरुष के प्रति समाज का रव्या हमेशा से दोहरा रहा हैं और इस बात पर चर्चा ही नहीं होती हैं। <br />
आज से नहीं सदियों से अगर स्त्री प्रजनन में अक्षम है तो पति तुरंत दूसरा विवाह कर लेता हैं लेकिन अगर पुरुष प्रजनन में अक्षम हैं तो स्त्री को निभाना होता हैं<br />
इसी प्रकार से अगर पुरुष सहवास के सुख से वंचित हैं विवाह में तो कई बार पत्नी की बिना मर्जी के भी उस से सम्बन्ध बनाता हैं { आज कल ये बलात्कार की क्षेणी में आता हैं } लेकिन स्त्री के लिये ऐसा कुछ भी नहीं हैं। <br />
<br />
इसी विभेद के चलते स्त्रियां कभी मानसिक रूप से सशक्त नहीं हो पाती हैं उनके लिये शादी आज भी एक "सामाजिक सुरक्षा कवच " हैं जिसको वो पहन कर खुश होती हैं। <br />
<br />
कभी उन कारण पर भी बात होनी चाहिये जहां एक लड़का "गे " हो सकता हैं पर एक लड़की " लिस्बन " नहीं होती हैं। <br />
प्रकृति ने दोनों को एक सा बनाया हैं पर समाज ने दोनों को बड़े होने के एक से अवसर प्रदान नहीं किये हैं। <br />
<br /></div>
रचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-61326433943484167642015-04-11T10:10:00.002+05:302015-04-11T10:10:26.708+05:30जब तक महिला आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होती हैं तब तक उसको " माय चॉइस " मिल ही नहीं पाती हैं।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कुछ दिन पहले दीपिका पादुकोण ने एक वीडियो में " माय चॉइस " की बात कहीं। उनकी कहीं बातो के बहुत से मतलब निकाले गए , पक्ष विपक्ष मे बहुत कुछ लिखा गया।<br />
लोगो ने वुमन एम्पावरमेंट के विरोध में बहुत लिखा पर लिखने वाले ये भूल गए की वुमन एम्पावरमेंट का सीधा सरल मतलब हैं आर्थिक रूप से सक्षमता। <br />
दीपिका आर्थिक रूप से सक्षम हैं इस लिये "माय चॉइस " की बात कर सकती हैं दीपिका तो फिर भी एक सेलेब्रिटी हैं घरो में काम करके अपने को आर्थिक रूप से सक्षम करने वाली महिलाए भी आज कल " माय चॉइस " की सीधी वकालत करती हैं।<br />
"माय चॉइस " यानी अपनी बात , अपनी पसंद , अपनी ना पसंद कहने / करने का सीधा अधिकार। <br />
किसी भी महिला की "माय चॉइस " तभी मान्य हो पाती हैं जब वो अपने दम पर जिंदगी को जीने का माद्दा रखती हो। <br />
दीपिका पादुकोण ने अपने को आज जिस मुकाम पर स्थापित किया हैं वो उनकी अपनी मेहनत हैं। आज आर्थिक रूप से वो सक्षम हैं। इस दौरान उन्होने ना जाने क्या क्या नहीं सुना कभी अपने रिलेशनशिप को लेकर तो कभी अखबारों में अपने वक्ष की तस्वीरो को लेकर। क्या इस सब का जवाब देना जरुरी नहीं हैं ? सो उन्होने जवाब दिया " माय चॉइस " .<br />
----------------------------<br />
८ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता हैं। आज कल जगह जगह दुकानो पर सेल इत्यादि लगा दी जाती हैं और महिला को प्रोत्साहित किया जाता हैं की वो आ कर सामान ख़रीदे खुद। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस वास्तविक वर्किंग वुमन डे था। इस दिन आर्थिक रूप से सक्षम महिला अपनी आर्थिक आज़ादी का जश्न मानती हैं। और लोगो ने फिर इसको सुन्दर महिला , खूबसूरत महिला इत्यादि को बधाई देने का दिन बना दिया। लोग भूल गए की इस दिन उन महिला को बधाई देनी चाहिये जो आर्थिक रूप से सक्षम हैं। <br />
<br />-----------------------------<br />
<br />
<br />
आज कल परिवारो में कलह का कारण हैं नारी सशक्तिकरण या वुमन एम्पवेर्मेंट क्युकी इसको स्त्री पुरुष की समानता का परिचायक मान कर आपसी लड़ाई का मुद्दा बनाया जाता हैं। एक पत्नी का घर में रह कर घर संभालना और एक महिला का बाहर जा कर नौकरी करना दोनों में बहुत अंतर हैं। बात घर के काम के छोटे बड़े या नौकरी करना बड़ी बात की हैं ही नहीं बात हैं की अगर आप समानता की बात करते हैं तो सबसे पहले आर्थिक रूप से सक्षम हो कर ही समानता की बात जरुरी हैं। <br />
जब तक महिला आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होती हैं तब तक उसको " माय चॉइस " मिल ही नहीं पाती हैं। <br />
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर अगर आप अपने पति से पैसा लेकर खरीदारी कर रही हैं तो आप अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का अर्थ ही नहीं जानती हैं। ये तो आप करवा चौथ पर भी करती हैं और बाकी दिन भी करती हैं फिर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस और बाकी दिनों में क्या अंतर हुआ ज़रा सोचिये। <br />
-------------------------------------<br />
<br />
नर और नारी दोनों आज़ाद हैं , बराबर हैं इस लिये उस मुद्दे पर बार बार बहस करना गलत हैं। दोनों को तरक्की के समान अधिकार मिले , पढ़ाई के समान अधिकार हो , रोजगार के समान अधिकार हो , समान काम के एवज में समान तनखा हो बात इन सब मुद्दो पर होनी चाहिये। <br />
<br />
---------------------------<br />
नारी शारीरिक रूप से कमजोर होती हैं ऐसा लोग मानते हैं क्यों नहीं होगी क्युकी उसको परवरिश ही ऐसी मिलती हैं की वो कमजोर रहे। घर में पनपने वाला पौधा और खुली हवा में पनपने वाले पौधे मे अंतर होता ही हैं। जिस दिन एक लड़की को वही परवरिश मिलेगी जो एक लड़के को मिलती हैं तो ताकत भी खुद बा खुद आ जाएगी। </div>
रचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-65967398249920031932015-03-07T10:30:00.000+05:302015-03-07T10:30:02.446+05:30एक फिल्म से पुरुष समाज में इतनी हल चल क्यों ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div>
<div>
<div>
<div>
<div>
हर मुद्दे को भटकना कितना आसान हैं </div>
रेप
पर बनी फिल्म का विरोध सरकार इस लिये कर रही कर रही थी की कहीं फिल्म देख
कर फिर से वो स्थिति ना पैदा हो जाए जहां पर जनता सड़को पर उतर आये जैसे तब
हुआ जब रेप हुआ। खुद पुलिस विभाग ने इसके प्रदर्शन पर रोक की मांग की। </div>
लेकिन फिर भी एक जेल में बंद रेप के आरोपी को १०००० लोगो की भीड़ ने बाहर निकाल कर पीट कर मौत के घाट उतार दिया। </div>
फेसबुक पर लोग पूछ रहे हैं क्या पुरुष केवल रेप करने वाले दरिँदै हैं या पिता , भाई , पति इत्यादि भी हैं </div>
लो
बोलो पूछने वाले अखबार लगता पढ़ते ही नहीं हैं जो रेप करता हैं वो भी किसी
का भाई बेटा और पति होता हैं और इसीलिये वो सजा से बचता आया हैं क्युकी यही
सब उसके कवच बन जाते हैं कानून भी नरम रुख लेता हैं इस बुढ़ापे की लाठी ,
एक ही कमाने वाले के लिये। </div>
<div>
एक फिल्म से पुरुष समाज में
इतनी हल चल क्यों ? बात समाज की हो रही थी , बात सिस्टम की हो रही थी आप
की नहीं। आप को ऐसा क्यों हमेशा लगता हैं की स्त्री के साथ कहीं भी कुछ
गलत हुआ हैं लोग आप को जिम्मेदार मानेगे। <br /></div>
<div>
अपने अंदर
नहीं आपने आस पास झाँकिये और देखिये कैसे अपनी बेटी की दोस्त के साथ एक
"पिता" शारीरिक सम्बन्ध बनाने की बात करता हैं या कैसे एक नेता वोट के लिये
"लड़के /गलती " की बात करता हैं। ये सब भी आप के ही सभ्य समाज का हिस्सा
हैं। </div>
हमको जगाने के लिये किसी फिल्म की जरुरत नहीं है क्युकी सोई हुई आत्मा फिल्म से क्या जागेगी। <br />
<br />
आइये मिल कर उन सब लोगो को बैन दे जो रेप जैसे घिनोने शब्द के बारे मे
बात करते हैं। रेप करने वाले क्या सोचते है इसको दिखा कर क्या हासिल होगा।
हम तो रोज आईना देखते हैं फिर कोई विदेशी महिला जो खुद रेप का शिकार हुई
हैं उसको क्या हक़ हैं हम को आईना दिखाने का।<br />
<br />
लोग कहते हैं हम अपनी अगली पीढ़ी को बहुत से संस्कार दे कर जा रहे हैं और
खबरों पढ़िये तो पता चलता हैं की नोबल पुरूस्कार विजेता , भारतीये रतन
विजेता इत्यादि बड़ी बड़ी ना इंसाफियां करते हुए अपने मकाम तक पहुचे हैं। <br /> किसी पर यौन शोषण का आरोप हैं , किसी पर धांधली का तो किसी पर धर्म परिवर्तन करवाने का। <br /> वो जो जितने ऊंचाई के पायदान पर खड़े दिखते वो उतने ही रसातल में दबे हैं। <br /> लोग ये भी कहते हैं मीडिया का क्या हैं किसी के खिलाफ कुछ भी लिख देता हैं<br />
एक ७४ साल के आदमी पर एक २४ साल की लड़की यौन शोषण का आरोप लगाती हैं और हम
आज भी रिश्तो की दुहाई ही देते नज़र आते हैं। ७४ और २४ साल में कितनी
पीढ़ियों का अंतर हैं पता नहीं पर ७४ वर्ष में ये पहला आरोप होगा क्या ये
संभव </div>
रचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-73505049980732712512015-02-09T14:42:00.004+05:302015-02-09T14:42:52.314+05:30प्रि-नेटल सेक्स डिटरमिनेशन: थैक्यू सुप्रीम कोर्ट <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h3 class="post-title entry-title" itemprop="name">
प्रि-नेटल सेक्स डिटरमिनेशन: थैक्यू सुप्रीम कोर्ट
</h3>
<div class="post-header">
</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="font-family: Times,"Times New Roman",serif;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjUDBLpXg7ziKKpCVDeDtoERSxPIOKL9AxrfbHQ6PXV8XQOKHNznTfKWN5o1zHfVshhTAjj3oFzbJNjdtIA9hRX-joFS9kxBdSSj0BM51sBJAFEXGjLlt-adS41CcTdC2QWvcN0XNKxHnrT/s1600/girl-child.jpg" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjUDBLpXg7ziKKpCVDeDtoERSxPIOKL9AxrfbHQ6PXV8XQOKHNznTfKWN5o1zHfVshhTAjj3oFzbJNjdtIA9hRX-joFS9kxBdSSj0BM51sBJAFEXGjLlt-adS41CcTdC2QWvcN0XNKxHnrT/s1600/girl-child.jpg" width="400" /></a></span></div>
<span style="font-family: Times,"Times New Roman",serif;">अगर
आप वेब मीडिया से जुड़े हैं तो अब आपको प्रि-नेटल सेक्स डिटरमिनेशन से
जुड़े विज्ञापन या इससे संबंधित सामग्री देखने को नहीं मिलेगी। </span><br />
<br />
<span style="font-family: Times,"Times New Roman",serif;">कल <a href="http://supremecourtofindia.nic.in/" target="_blank">सुप्रीम कोर्ट</a>
ने कन्या भ्रूण हत्या से संबंधित वेब सर्चिंग पर अपना अहम निर्णय देते
हुए भारत में प्रचलित गूगल, याहू , माइक्रोसॉफ्ट, बिंग जैसे वेब सर्च
इंजिन्स पर भ्रूण से संबंधित किसी भी तरह की जानकारी देने वाले विज्ञापनों
को पाबंद करने का आदेश दिया है ताकि भ्रूण से संबंधित जानकारी की आड़ में
प्रि-नेटल सेक्स डिटरमिनेशन संबंधी विज्ञापनों के जरएि इस कुप्रथा को
बढ़ावा देने पर रोक लगाई जा सके। <br /> </span><br />
<span style="font-family: Times,"Times New Roman",serif;">अभी
तक किसी शब्द को खोजते ही ये सर्च इंजिन उस शब्द से संबंधित वेब सामग्री तो
दिखाते ही थे साथ ही इससे संबंधित सामग्री के ठीक ऊपर दो या तीन मुख्य
विज्ञापन और सर्च पेज के साइड में फिर उन्हीं विज्ञापनों की लंबी फेहरिस्त
हुआ करती है। यदि एक ही तरह के या इससे मिलते जुलते शब्द सर्च किये जाते
हैं तो उससे संबंधित डाटा सर्च इंजिन्स में दर्ज़ हो जाता है। ऐसे में जब
भी आप सर्च करेंगे तो उससे संबंधित विज्ञापनों पर नजर पड़ना स्वाभाविक है।<br /> </span><br />
<span style="font-family: Times,"Times New Roman",serif;">ज़ाहिर
है कि इन विज्ञापनों के कारण प्रि-नेटल सेक्स डिटरमिनेशन यानि जन्म से
पहले भ्रूण की स्थिति का पता लगाने संबंधी वेबसाइटों के लिंक्स आसानी से
उपलब्ध होते हैं और यही लिंक्स भ्रूण के लिंग का पता लगाने वाली वेबसाइट्स
का भी पता देती हैं। यानि सब- कुछ कानून के दायरे में आए बिना आसानी से
मिलता रहा है। आईटी एक्ट में भी ऐसा कोई प्राविधान अभी तक नहीं है कि जन्म
से पहले भ्रूण की स्थिति जानना वर्जित माना जाता हो और इसी का फायदा सर्च
इंजिन्स ने उठाया है। <br /> </span><br />
<span style="font-family: Times,"Times New Roman",serif;">इसके
अलावा भ्रूण परीक्षण कानून (पीसी पीएनडीटी एक्ट) की धारा 22 में भी वेब
सर्च इंजिन्स या इंटरनेट से जुड़ी किसी भी माध्यम की भागीदारी से संबंधित
कोई दिशा- निर्देश नहीं दिये गये हैं। ये शायद इसलिए संभव था क्योंकि यह
कानून 1994 में बना था और तब इंटरनेट के आम या इतने वृहद उपयोग के बारे में
सोचा भी नहीं गया किंतु आज सर्च इंजिन्स पर सारी सूचनाएं लगभग मुफ्त में
ही मिल जाती हैं। <br /> </span><br />
<span style="font-family: Times,"Times New Roman",serif;">गौरतलब
है कि पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम के अंर्तगत एफ-फॉर्म भरा जाता है। इसमें
गर्भवती महिला का पूरा नाम, पता, सोनोग्राफी का प्रकार, तारीख, गर्भस्थ
शिशु की स्थिति , बीमारी, सोनोग्राफी करने वाली संस्था और डॉक्टर सहित
विस्तृत जानकारी कुल 19 कॉलम में भरकर देनी होती है। उस समय बनाए गए इस
कानून के अंतर्गत चोरी छिपे भ्रूण लिंग परीक्षण करने वाले डॉक्टरों के
खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत कार्यवाही करने का
प्राविधान है।<br /> </span><br />
<span style="color: #cc0000;"><span style="font-family: Times,"Times New Roman",serif;"><b>नई चुनौती के रूप में अब इंटरनेट इसमें नया कारक बन के उभरा है। </b><br /> </span></span><br />
<span style="font-family: Times,"Times New Roman",serif;">हालांकि
सुप्रीम कोर्ट में कल दिए गये सरकारी हलफनामे के तहत ऐसी साइट्स को बिना
यूआरएल व आईपी एड्रेस के ब्लॉक करने में असमर्थता जताई गई क्योंकि जब तक
आईपी एड्रेस और संबंधित साइट्स के यूआरएल सरकार को मुहैया नहीं कराए जाते
तब तक वह इन्हें प्रतिबंधित नहीं कर सकती। इसका हालिया समाधान जस्टिस दीपक
मिश्रा व पी सी पंत ने यही दिया कि जब तक आई टी एक्ट में नये प्राविधान
क्लैरीफाई नहीं होते तब तक सर्च इंजिन पर आने वाले विज्ञापनों को हटा लिया
जाए या फिर कंपनियां उन पर स्वयं ही अंकुश लगायें। <br />इस पर समाज के लिए
अपनी जिम्मेदारी से बचते हुए गूगल, याहू व अन्य कंपनियों की ओर से बेहद
लापरवाह दलील दी गई कि भ्रूण परीक्षण की पूरी जानकारी देने वाली इन
वेबसाइट्स के बारे में देखना होगा कि कानून में ऐसा कोई प्राविधान है कि
नहीं। कंपनियों की ओर से एक बात और बेहद महत्वपूर्ण कही गई कि '' विज्ञापन
देना अलग बात है और कोई चर्चा या लेख दूसरी बात है ''। इसका सीधा- सीधा
मतलब तो यही निकलता है कि वे भारत में अपना बाजार पाने के लिए सामाजिक
जिम्मेदारी की परवाह नहीं करेंगी।<br /> </span><br />
<span style="font-family: Times,"Times New Roman",serif;">गौरतलब
है कि जन्म से पहले भ्रूण के लिंग का पता लगाने की कुप्रवृत्ति के कारण
इस समय तक न जाने कितनी बच्च्यिों को जन्म से पहले ही मारा जा चुका है। देश
के अधिकांश प्रदेशों में इस कुप्रवृत्ति ने अपनी जड़ें जमा रखी हैं। अभी
तक तो यही समझा जाता था कि कम पढ़े-लिखे या अनपढ़ व ग्रामीण लोगों में
लड़कियों की पैदाइश को बुरा मानते हैं मगर शहरी क्षेत्रों से आने वाले
आंकड़ों ने सरकार और गैरसरकारी संगठनों के कान खड़े कर दिए हैं कि यह
प्रवृत्ति कमोवेश पूरे देश में व्याप्त हो चुकी है और इसके खात्मे के लिए
हर स्तर पर जागरूकता प्रोग्राम चलाए जाने चाहिए, साथ ही कड़े दंड का
प्राविधान भी होना चाहिए । <br /> </span><br />
<span style="font-family: Times,"Times New Roman",serif;">आमिर खान के शो <a href="http://www.satyamevjayate.in/" target="_blank">'' सत्यमेव जयते''</a>
में भी तो शहरी क्षेत्रों से आए लोगों ने इस सच को और शिक्षितों में भी
बढ़ रही इसकी क्रूरता को बखूबी बयान किया था, अब साबू मैथ्यू जॉर्ज की
याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय इंटरनेट के बढ़ते दायरे, इसके
सदुपयोग और दुरुपयोग पर फिर से बहस की जरूरत को रेखांकित करता है कि आखिर
संचार का जो जाल विशाल से विशालतर होता जा रहा है वह जिस जनता के दम पर
अपना बाजार स्थापित कर रहा है उसके हित में वह कितना योगदान दे रहा है। <br />कन्या
भ्रूण हत्या को लेकर वेब मीडिया और सर्च इंजिन्स को भी कठघरे में लाकर
साबू मैथ्यू जॉर्ज की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जो नेक काम किया है, वह
निश्चित ही इस कुप्रथा को कम से कम एक नये एंगल से सोचने पर विवश अवश्य
करेगा । <br /> </span><br />
<span style="font-family: Times,"Times New Roman",serif;">दूरदराज
के इलाकों वाले अशिक्षित समाज में कन्या भ्रूण हत्या को अंजाम देने वालों
से ज्यादा शहरी और शिक्षित परिवारों में बेटा और बेटी के बीच फ़र्क किये
जाने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट का ये नया तमाचा है जो उनके शिक्षित होने
पर भी सवाल खड़े करता है क्योंकि अब भी इंटरनेट का सर्वाधिक उपयोग
शिक्षित समाज ही करता है और सर्च इंजिन्स का यही सबसे बड़ा उपभोक्ता है। <br /> </span><br />
<span style="font-family: Times,"Times New Roman",serif;">बहरहाल,
सर्च इंजिन कंपनियों द्वारा इस मुद्दे पर चर्चा की बात छेड़े जाने के बाद
यह तो कहा ही जा सकता है कि क्या कोई चर्चा ऐसी भी कराई जानी चाहिए जिसमें
कहा जाए कि हमें लड़कियां चाहिए ही नहीं... या लोगों से कहा जाए कि वो
स्वतंत्र हैं आबादी से लड़कियों को पूरी तरह हटाने को... । ज़ाहिर है कि
कानून पर चर्चा तो होती रहनी चाहिए और समय व जरूरतों के मुताबिक इन्हें
तब्दील भी किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यही करने का व कहने का प्रयास
किया है। हमें समय की इन नई चुनौतियों के लिए तैयार रहना होगा, साथ ही यह
भी कि बाजार द्वारा समाज को प्रभावित करने के मामले में, ये चलेगा मगर ये
नहीं चलेगा जैसी भ्रामक मानसिकता त्यागनी होगी। एक स्पष्ट सोच के साथ ही
इस सामाजिक बुराई का अंत संभव है क्योंकि कोर्ट हमें रास्ता तो दिखा सकते
हैं पर घर-घर जाकर सोच पर ताला नहीं जड़ सकते।<br /> </span><br />
<span style="font-family: Times,"Times New Roman",serif;">- अलकनंदा सिंह</span><br />
<br />
<span style="font-family: Times,"Times New Roman",serif;">Alaknanda Singh has sent you a link to a blog:
<br /><br />
rachna ji, NAARI ke liye ye meri post. thnx
<br /><br />
Blog: अब छोड़ो भी
<br />
Post: प्रि-नेटल सेक्स डिटरमिनेशन: थैक्यू सुप्रीम कोर्ट
<br />
Link: <a href="http://abchhodobhi.blogspot.com/2015/01/blog-post_29.html" target="_blank">http://abchhodobhi.blogspot.<wbr></wbr>com/2015/01/blog-post_29.html</a>
</span></div>
रचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-68629778035476652832015-02-07T10:25:00.000+05:302015-02-07T10:25:07.353+05:30मुझे हमेशा लगता हैं हम उनको गरीब कह कर और अपने को अमीर कह कर खुद एक खाई बनाते हैं। <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
ब्लॉग , फेसबुक और अन्य जगहों पर बातचीत के दौरान जब भी "गरीब" काम
करने वालो की बात होती हैं मुझे लगता हैं हम "बड़े" दिखने के लिये उन्हे
छोटा होने का एहसास कराते हैं। <br /> मुझे हमेशा लगता हैं हम उनको गरीब कह कर और अपने को अमीर कह कर खुद एक खाई बनाते हैं। <br />
मुझे लगता हैं अब प्रधान मंत्री जन धन योजना के तहत खाते बहुत खुल गए हैं।
इसलिये अब जिन घरो में सर्विस प्रोवाइडर यानी आम भाषा में मैड , ड्राइवर ,
सर्वेंट इत्यादि काम करते हैं और उनकी सैलेरी ५००० रूपए महिने से ऊपर हैं
उन सब को ह<span class="text_exposed_show">में चेक से पेमेंट करना चाहिये और महिने की ४ तारीख तक ये हो जाना चाहिये। </span><br />
<div class="text_exposed_show">
इस से दो सुविधा होंगी<br />
१ एडवांस की आदत से छुट्टी दोनों की। एडवांस की वजह से दो नुक्सान होते
हैं एक काम करने वाला एक तरह बंधक हो जाता हैं { सोचिये } और दूसरा देने
वाला उसको हटा नहीं सकता हैं<br /> २ पैसा बैंक में नियमित जाने से खाताधारी को बैंक की सुविधा भी ज्यादा मिलेगी<br />
इसके अलावा आप इन सब लोगो को एक प्रोफेशनल की तरह मान कर काम लेंगे , गरीब नहीं। <br />
आप सब से आग्रह हैं १४ वर्ष से काम के बच्चो से काम ना करवाये ये कानूनन
अपराध हैं। आप काम देना बंद करेगे तभी उनके जीवन में बदलाव संभव हैं।
सरकारी योजना का लाभ उनको तब ही मिलेगा जब आप और हम कुछ करेगे <br /> <a href="http://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2011/11/blog-post_07.html" rel="nofollow" target="_blank">http://indianwomanhasarrived.blogspot.in/…/blog-post_07.html</a><br /> <a href="http://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2011/11/blog-post_12.html" rel="nofollow" target="_blank">http://indianwomanhasarrived.blogspot.in/…/blog-post_12.html</a></div>
</div>
रचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-48876282512743349222014-12-10T11:23:00.000+05:302014-12-10T11:23:01.061+05:30जब लड़कियां पीटेगी बदलाव अब तभी आएगा वरना नहीं आएगा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div>
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जिस दिन लड़कियां सहने की जगह मारने को सही मानेगी , डरने की जगह डराने
को सही मानेगी उस दिन समाज उन्हे "पुरुष जैसा " " स्त्री जैसी नहीं "की पदवी देता हैं। पुरुष जैसा यानी अमानुषिक व्यवहार।<br /> रोहतक की दोनों बेटियां कहीं भी अन्याय सहन नहीं करती हैं वो खुल कर कहती हैं हम अपने साथ ये अमानुषिक व्यवहार नहीं बर्दाश्त करेगे। हम मारेगे अगर कोई<span class="text_exposed_show"> बदतमीज़ी करेगा। पर छेड़ना , घूरना , छूना , मोलेस्ट करना , रेप करना तो पुरुष के वो अधिकार हैं जो समाज ने उसको " स्त्री का पूरक " बनाते समय दिये<br /> हैं। और यहां तो ऊँची जाति के सुपुत्रो की बात हैं सो गलत तो लड़कियां ही हैं।</span><br />
<br />
सच सामने हैं बस उस सच को बर्दाश्त करने की ताकत समाज में नहीं हैं</div>
<div>
</div>
<div>
मुलायम सिंह यादव ने कहा था " लड़को से गलती हो जाती हैं " और उन के जिले मैनपुरि के शिव यादव निरंतर टैक्सी ड्राइवर बन कर ये गलती कर रहे हैं और कानून से बच रहे हैं। उनको
रेपिस्ट दरिंदा कह कर समाज अपने कर्तव्य की इत्ति कर लेता हैं। टी वी पर
लम्बी बहसों में पोलिटिकल पार्टी एक दूसरे पर उसी तरह इल्जाम लगाती हैं
जैसे पुलिस चौकी पर ऑफ आई आर दर्ज करते समय इलाका निश्चित किया जाता हैं। </div>
</div>
अगर
शिव यादव जैसे रोहतक की बहादुर बेटियों की बैल्ट से पीट जाए और खत्म कर
दिये जाए तो समाज फ़ौरन रिवर्स जेंडर बायस का रोना रोता हैं। <br /></div>
सीरियल
रेपिस्ट , सीरियल मोलेस्टर , या सीरियल सिटी बजाने वाले , घूरने वाले ,
अश्लील कॉमेंट देने वाले सबका इलाज कानून नहीं कर सकता। <br /></div>
इनको बीच सड़क पर नंगा करके जब <span class="text_exposed_show">लड़कियां</span> पीटेगी बदलाव अब तभी आएगा वरना नहीं आएगा </div>
रचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-23103412912925516862014-10-27T12:03:00.002+05:302014-10-27T12:03:19.181+05:30कुछ खबरे पढ़ कर दिमाग बस सुन्न हो जाता हैं <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कुछ खबरे पढ़ कर दिमाग बस सुन्न हो जाता हैं<br>
<br>
</div><a href="https://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2014/10/blog-post_27.html#more">Read more »</a>रचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-46947483615821466972014-10-13T13:17:00.001+05:302014-10-13T13:17:21.621+05:30होटल के मालिक हम नहीं हैं अपने घर के हैं। <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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डिसिप्लिन की जरुरत हैं। जन
संख्या पर रोक की। किया क्या गया हैं लड़की होने पर सरकारी पैसे से ऍफ़ डी ,
किस लिये लड़की की शादी सुविधा से हो। फिर शादी फिर वही </div>
बच्चे। अब सब को लगता हैं इनको होटल में साथ खाने दो। इस से क्या होगा। जिस चीज़ को वो खुद अफ़्फोर्ड नहीं कर सकते उसकी आदत। </div>
होटल में दूसरे क्या खा रहे हैं इसको देख कर लालच। क्या पहने हैं इसको देख कर जलन। </div>
होटल और माल के गेट पर भीख मांगते और खाने का सामान डिमांड करना। <br /><br /></div>
मै
अकेली कही कहती हूँ तो पैक करवा कर इनमे बाहर बाँट देती हूँ और जब भी कभी
घर में कन्या खिलानी होती हैं तो पेप्सी और नूडल्स के पैकेट , चिप्स के
पैके देती हूँ पूरी सब्जी हलवा इत्यादि नहीं। अपने पापा की १३व्हीन पर आज
से २१ साल पहले मैने बच्चो को बुलावा कर जितन उनका मन था उनको पेप्सी
पिलवाई और साथ में तरबूज। पेप्सी पर घर में सबने बहुत आलोचना की " इसने तो
पार्टी की " लेकिन बच्चे मगन थे. <br /><br /></div>
पिछली दिवाली पर अपने
यहां काम करने वाली १६ साल की लड़की को मिठाई की जगह एक ५० रूपए का ५०
टॉफी वाला २ पैकेट , मैगी ४ वाला पैकेट दिया ४० रूपए का। <br /></div>
उस लड़की ने घर जा कर १०० टॉफी गिनी और दो दिन बाद आकर कहा " इतनी सारी </div>
टॉफी तो कभी मिली नहीं , हम सब रोज गिनते और खाते हैं। <br /><br /></div>
बदलाव
उनको अपने साथ होटल में बिठा कर खिलाने से भी आता हैं और उनको वही चीज़ दे
देने से भी। होटल के मालिक हम नहीं हैं अपने घर के हैं। </div>
रचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-41191801486775914392014-09-29T10:16:00.002+05:302014-09-29T10:16:32.284+05:30कमाल हैं ब्लॉग हो , फेसबुक हो , पत्रकार हो , प्रोफेसर हो या पाठक हो नारी के प्रति नज़रिया एक सा ही हैं , कपड़े ना पहने तो क्यों नहीं पहने , कपड़े पहने तो इतना सजने की क्या जरुरत थी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कैट विंसलेट ने टाइटैनिक फिल्म में न्यूड सीन दिया था। आज भी लोग उस सीन का फोटोशॉट निकाल कर कैट से उस पर ऑटोग्राफ मांगते हैं<br />
कैट ने कहा हैं वो ऐसे किसी भी चित्र पर ऑटोग्राफ नहीं देती हैं<br />
<br />
भारत / इंडिया में ऐसा होता तो लोग कहते "नंगी हो काम कर सकती हैं , उसमे कोई आपत्ति नहीं हैं तो चित्र पर ऑटोग्राफ देने मे क्यों हैं "<br />
<br />
दीपिका पादुकोण का चित्र पत्रकार शूट करके के पेपर में छपवाते हैं और हैडिंग होती हैं " क्लीवेज " दिख रहा हैं दीपिका का। <br />
<br />
जवाब में दीपिका कहती हैं हाँ दिख रहा हैं , मै औरत हूँ मेरे पास छाती हैं , स्तन हैं और क्लीवेज भी हैं , आप को कोई प्रॉब्लम ?<br />
<br />
अखबार कहता हैं जी हम तो तो आप की तारीफ़ कर रहे थे और फिर तमाम वो चित्र डालता हैं जिस में दीपिका के स्तन और क्लीवेज शूट किये गए हैं कभी मर्जी से कभी बिना मर्जी से और वही घिसा पिटा कथन " ऐसे कपडे पहनें क्यों ?<br />
<br />
<br />परसो फेसबुक पर स्टेटस पढ़ते हुए हिंदी के एक प्रोफेसर का स्टेटस दिखा "पीटीएम में माँऐ इतना सजकर पहुँचती हैं कि लगता है पड़ोस के पार्लर को स्पेशल रेट देकर खुलवाना पड़ा होगा सुबह सुबह।"<br />
<br />
अब ये क्या हैं , क्या ये हास्य हैं और इस स्टेटस को ५४ जाने माने फेसबुक लेखको ने पसंद भी किया जिस मे वो लेखिकाएं भी हैं जो निरन्तर अपने को प्रो वुमन कहती हैं। <br />
<br />
कौन कितना तैयार होता हैं कितना सजता हैं ये अधिकार कानून और संविधान ने उसको दिया हैं। <br />
<br />
आपत्ति दर्ज कराई तो इसको " सहजता " माना जाए ऐसा आग्रह हुआ क्युकी जो लोग सहजता नहीं मान सकते वो " केवल " हर समय पोलिटिकली करेक्ट " होते हैं। <br />
<br />
जितने भी कॉमेंट थे वो सब उन माँ का मजाक बना रहे थे जिन पर ये टंच था। एक बहुत ही विद्वान ने तो यहां तक कह दिया हम तो यही सब देखने पी टी ऍम मे जाते हैं। <br />
<br />
<br />
कमाल हैं ब्लॉग हो , फेसबुक हो , पत्रकार हो , प्रोफेसर हो या पाठक हो नारी के प्रति नज़रिया एक सा ही हैं<br />
<br />
कपड़े ना पहने तो क्यों नहीं पहने<br />
कपड़े पहने तो इतना सजने की क्या जरुरत थी<br />
<br />
नारी की अपनी इच्छा अपना मन , क़ानूनी अधिकार , संविधान के अधिकार<br />
<br />इनका क्या मूल्य हैं ? <br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br />
<br /></div>
रचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-5725786189329623646.post-56815200708993562772014-09-17T13:32:00.001+05:302014-09-17T13:51:46.816+05:30सूचना <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span class="userContent">नेट पर हिंदी मे ब्लॉग पर लिखने के लिये १०
हिंदी ब्लॉगर को ABP न्यूज़ ने हिंदी दिवस पर शील्ड देकर सम्मानित किया। इस
के लिये ABP न्यूज़ ने एंट्री मांगी थी , और उनके अनुसार तकरीबन १००
ब्लॉगर ने अपनी एंट्री प्रेषित की जिस मे से उन्होने अलग अलग <span class="text_exposed_show">विषयों
पर १० ब्लॉगर का चयन किया। उन दस ब्लॉगर में मेरा नाम भी था। </span></span><br />
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh3_N3iCd4h1HquB8B9ak2CbPoBpNDk3MltVQYieOL38rTbnQ_AkL963qm98SbcwY4EYx1SQKnJPVT9evBubM3IhaRuuFWWUEs1tvlLQJZUM-IpdTV37kjHjKEC-79izCvCTLiepytkx-U/s1600/blograc4.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh3_N3iCd4h1HquB8B9ak2CbPoBpNDk3MltVQYieOL38rTbnQ_AkL963qm98SbcwY4EYx1SQKnJPVT9evBubM3IhaRuuFWWUEs1tvlLQJZUM-IpdTV37kjHjKEC-79izCvCTLiepytkx-U/s1600/blograc4.jpg" height="229" width="320" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhzUhRAEuEUtwQcPteg1MxzQz5efUSh78MIdz4gsWb-FkCjlR6p89E6mB5IhwL5O7hr1k2atMtHztfjAhe7lyUKWI2F24X-pnWd7MFU8OtEn2J3htm2pl5ey1SXPMTEKtQmWuS3_GAuUaQ/s1600/P1140375+(Copy).JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhzUhRAEuEUtwQcPteg1MxzQz5efUSh78MIdz4gsWb-FkCjlR6p89E6mB5IhwL5O7hr1k2atMtHztfjAhe7lyUKWI2F24X-pnWd7MFU8OtEn2J3htm2pl5ey1SXPMTEKtQmWuS3_GAuUaQ/s1600/P1140375+(Copy).JPG" height="240" width="320" /></a></div>
<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_PEd11roUctcyIBZk4IdCj_zBagelwdZuJZWROe9n6gReaJ4PnEqM-6ueng5iQIu0zghg6Ni1cSFqD5UmFHAQOlj4TS3Q7CMq03Gelo7ZbJo1WhaSPQCyCh1XF-5k7qpbcvQdMQfDnl0/s1600/blograc2.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_PEd11roUctcyIBZk4IdCj_zBagelwdZuJZWROe9n6gReaJ4PnEqM-6ueng5iQIu0zghg6Ni1cSFqD5UmFHAQOlj4TS3Q7CMq03Gelo7ZbJo1WhaSPQCyCh1XF-5k7qpbcvQdMQfDnl0/s1600/blograc2.jpg" height="272" width="320" /></a></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi8H0YaFuO9x5Y2BdSQGCFx4L2LTaQRDHZv-YS1ZuPfKMYz8aBfrfpRj03Wq8Dh4uLUS_8uqFBCVxd401hOHMhyOYSk3O_i3-ZywrJKSxkJM1Ok1TKFdJVOx-4Iy9zo_a0Rq-IMAQeZIPE/s1600/P1140376+(Copy).JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi8H0YaFuO9x5Y2BdSQGCFx4L2LTaQRDHZv-YS1ZuPfKMYz8aBfrfpRj03Wq8Dh4uLUS_8uqFBCVxd401hOHMhyOYSk3O_i3-ZywrJKSxkJM1Ok1TKFdJVOx-4Iy9zo_a0Rq-IMAQeZIPE/s1600/P1140376+(Copy).JPG" height="240" width="320" /></a></div>
<span class="userContent"><span class="text_exposed_show">http://abpnews.abplive.in/photos/2014/09/14/article399001.ece/hindi-diwas?slide=10#.VBaSEVeiJ2E</span></span><br />
http://bhadas4media.com/web-cinema/1585-hindi-blogger-award.html</div>
http://abpnews.abplive.in/ind/2014/09/15/article399010.ece/award-to-blogger#.VBlB9leiJ2E<br />
<br />
<br /></div>
</div>
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</div>
रचनाhttp://www.blogger.com/profile/03821156352572929481noreply@blogger.com17