शिया धर्म गुरु कल्बे जव्वाद का यह बयान बेहद शर्मनाक है कि महिलाएं सिर्फ़ बच्चे पैदा करें, राजनीति उनका काम नहीं है. जिस समाज के 'ठेकेदार' ऐसे (तुच्छ मानसिकता वाले) हों, वह समाज किस दिशा (गर्त) में जाएगा, कहने की ज़रूरत नहीं.
हालांकि महिला आरक्षण विधेयक को लेकर अनेक गैर मुस्लिम लोग पिछड़ी महिलाओं के साथ ही मुस्लिम महिलाओं के लिए भी आरक्षण की बात कर रहे हैं, लेकिन वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं (हे ईश्वर इन्हें माफ़ करना, यह नहीं जानते कि...यह क्या कर रहे हैं...? (कब मज़हब के ठेकेदार इन नेताओं को इस्लाम का दुश्मन क़रार देकर इनके ख़िलाफ़ फ़तवा जारी कर दें, कहा नहीं जा सकता).
कुछ हिन्दू भाइयों ने कल्बे जव्वाद के बयान पर प्रतिक्रिया जताते हुए हैरत ज़ाहिर की है कि किसी भी मुस्लिम संगठन ने मुस्लिम महिलाओं के बारे दिए गए शर्मनाक बयान के ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठाई... हैरत इस बात की भी है कि हिन्दू भाई अब तक भी नहीं समझे कि "इस्लाम के 'प्रचारक' सिर्फ़ यह बताने का बीड़ा उठाए हुए हैं कि मुस्लिम औरतों को मारना-पीटना मर्दों का 'नैतिक अधिकार' है, मर्दों को चार-चार औरतें रखने की 'विशेष सुविधा' है, और पत्नी 'भोग की सर्वोत्तम वस्तु' (यानि पति की अर्धांगिनी नहीं) है...
-फ़िरदौस ख़ान
क्या इस्लाम और कुऱआन महिलाओं को इंसान भी मानती है?
ReplyDeleteइन फत्वेबाजों ने इस्लाम का मटियामेट ही किया है
ReplyDeleteपता नहीं अपने धर्मनिरपेक्ष देश में इन धर्मगुरुओं को इतनी आज़ादी क्यों मिली हुयी है? इनलोगों ने धर्म को तो बदनाम कर ही रखा है, इनके इस प्रकार के बयानों और फ़तवों से औरतों पर पुरुषों के आधिपत्य को भी समर्थन मिलता है.
ReplyDeleteफिरदौस जी से एकदम सहमत.
ReplyDeleteफिरदौस जी से एकदम सहमत.
ReplyDeleteनमस्कार
ReplyDeleteब्लोगिंग की दुनिया में भरापूरा स्वागत करते हैं.आपके ब्लॉग पर आकर कुछ सार्थकता लगी है.यूहीं लगातार बने रहें और बाकी के ब्लोगों पर सफ़र करके अपनी राय जरुर लिखें.यही जीवन है.जो आपको ज्यादा साथियों तक जोड़ पायेगा.
सादर,
माणिक
आकाशवाणी ,स्पिक मैके और अध्यापन से सीधा जुड़ाव साथ ही कई गैर सरकारी मंचों से अनौपचारिक जुड़ाव
http://apnimaati.blogspot.com
http://maniknaamaa.blogspot.com
अपने ब्लॉग / वेबसाइट का मुफ्त में पंजीकरण हेतु यहाँ सफ़र करिएगा.
http://apnimaati.feedcluster.com/
इनकी बातों पर इनकी बिरादरीवाले भी नहीं चलते जी। किसका ज़िक्र ले बैठीं आप?
ReplyDeleteफिरदौस जी से एकदम सहमत.
ReplyDeletejab aarakshna ko laekar baat thee tab halla thaa minorities ko aarakshan pehlae do aur ab yae vaktavya kamaal haen !!!!
ReplyDeleteनाम गलत लिखा गया है...कृपया सुधार लें
ReplyDeleteकलवे जव्वाद नहीं.....कलवे जल्लाद....
लड्डू बोलता है ....इंजीनियर के दिल से
अंत में नारियों से यही कहना चाहता हूँ --
“ त्याग-प्रेम के पथ पर चल कर मूल न कोई हारा.
हिम्मत से पतवार सम्हालो अब क्या दूर किनारा.”
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_09.html
आप "ईश्वर" लिख रही हैं कहीं आपके ख़िलाफ़ भी फतवा न जारी हो जाए
ReplyDeleteजाओ ..मैंने माफ किया...
ReplyDeleteफिरदौस जी,
ReplyDeleteअन्याय के विरुद्ध बोलना सबसे बड़ा धर्म है, सत्य और मानव हित कभी धर्म से नहीं बदलते हैं, वो तो हम अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए धर्मगुरु बन कर अपने क़ानून बना कर पेश कर देते हैं.
मैं आपसे पूरी तरह से सहमत हूँ.
खुदा के भरोसे न रहो, ऐसे लोगों को सबक सीखाओ, वरना तील तील कर जिन्दा रहो/मरो.
ReplyDeleteकल्वे जव्वाद ने तो वोही बात कही जो की वाकई में इस्लाम में महिलाओं की स्थिति है.
ReplyDeleteफिरदोस जी जैसी महिलाए विरली ही हैं. इस लेख के लिए आपको साधुवाद.
विषयांतर करके एक बात पूछना चाहूँगा कि जब आप "जाति-आधारित-आरक्षण" का विरोध करते हैं तो "लिंग-आधारित-आरक्षण" कैसे जायज़ ठहराया जा सकता है