एक बहुत ही बढ़िया पोस्ट हैं पढ़िये और कमेन्ट भी दीजिये .
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
December 31, 2012
December 30, 2012
तुम आम तो हो ही नहीं सकती ,
कौन थी तुम , किस जाति की थी , किस धर्म की थी ? कोई नहीं जानता . तुम्हारा तो नाम भी कोई नहीं जानता . बस सब इतना जानते हैं की तुम एक लड़की थी , एक स्त्री थी , एक महिला थी .
एक आम लड़की थी क्या वाकई ??
किस आम लड़की के लिये
पूरा देश
रोता हैं ,
परेशान होता हैं
दुआ करता है और
उसके बारे मे ऐसे बात करता हैं जैसे कोई परिवार का सदस्य करता हैं
आज हर कोई जानता हैं तुमको क्या पसंद था , तुम कैसी थी , क्या क्या करती थी , तुम्हारे सपने क्या थे , तुम्हारे लक्ष्य क्या थे
कमाल हैं ना ,
इसलिये
तुम आम तो हो ही नहीं सकती ,
किस मिटटी की बनी थी तुम की तुम्हारी "मिटटी " को एअरपोर्ट पर लेने भारत का प्रधान मंत्री जाता हैं
तुम आम नहीं कोई ख़ास ही हो , एक ऐसी आत्मा तो कभी सदियों में एक बार आत्मा से शरीर बन कर इस दुनिया में आती हैं और फिर विलोम हो जाती हैं
आज तुम्हारा नश्वर शरीर अग्नि के हवाले कर दिया गया हैं . अग्नि में सब भस्म हो जाता हैं पर तुम को भस्म कर सके ये अग्नि के वश में भी नहीं हैं
तुम अमर हो ऐसा मुझे लगता हैं
तुम ख़ास हो ऐसा भी मुझे लगता हैं
यश और कीर्ति तुम्हारे हाथ में थी , बस तुम खुद उसको ना देख सकी इसका मलाल हमेशा रहेगा
एक आम लड़की थी क्या वाकई ??
किस आम लड़की के लिये
पूरा देश
रोता हैं ,
परेशान होता हैं
दुआ करता है और
उसके बारे मे ऐसे बात करता हैं जैसे कोई परिवार का सदस्य करता हैं
आज हर कोई जानता हैं तुमको क्या पसंद था , तुम कैसी थी , क्या क्या करती थी , तुम्हारे सपने क्या थे , तुम्हारे लक्ष्य क्या थे
कमाल हैं ना ,
इसलिये
तुम आम तो हो ही नहीं सकती ,
किस मिटटी की बनी थी तुम की तुम्हारी "मिटटी " को एअरपोर्ट पर लेने भारत का प्रधान मंत्री जाता हैं
तुम आम नहीं कोई ख़ास ही हो , एक ऐसी आत्मा तो कभी सदियों में एक बार आत्मा से शरीर बन कर इस दुनिया में आती हैं और फिर विलोम हो जाती हैं
आज तुम्हारा नश्वर शरीर अग्नि के हवाले कर दिया गया हैं . अग्नि में सब भस्म हो जाता हैं पर तुम को भस्म कर सके ये अग्नि के वश में भी नहीं हैं
तुम अमर हो ऐसा मुझे लगता हैं
तुम ख़ास हो ऐसा भी मुझे लगता हैं
यश और कीर्ति तुम्हारे हाथ में थी , बस तुम खुद उसको ना देख सकी इसका मलाल हमेशा रहेगा
तुम्हारी अंतिम यात्रा के चित्र हैं लाड़ो
अंतिम विदाई का लिंक December 29, 2012
बस अब यहाँ ना पैदा होना मेरी लाडो , ये देश लड़कियों के पैदा होने के लिये बना ही नहीं
तुम चली गयी , इस दुनिया से जहां तुम्हारे साथ अत्याचार की हर सीमा को पार कर दिया गया . मै हर दिन प्रार्थना कर रही थी की तुम ना बचो क्युकी मै नहीं चाहती थी की फिर कोई अरुणा शौन्बौग सालो बिस्तर पर पड़ी रहती .
तुम मेरी बेटी की उम्र की थी { काश कह सकती हो } तुम्हारी पीड़ा को मैने हर दिन अखबारों और खबरों के साथ जिया हैं . मन में उम्मीद थी शायद जीवन बचा हो पर नहीं तुम्हारे साथ बलात्कार के अलावा जो कुछ और हुआ उसने तुम्हारे शरीर से हर वो ताकत छीन ली जो जीवन को चलाती हैं
तुम्हारी पीड़ा को पढ़ कर जाना की डिजिटल रेप भी होता हैं कितना आसान हैं हर दुष्कर्म को एक नाम देदेना .
जानती हो तुम भारत की पहली प्राइवेट नागरिक हो जिसको सरकारी खर्चे से इलाज के लिये विदेश भेजा गया . तुमने मर कर भी एक इतिहास रच दिया और एक रास्ता खोल दिया उन बेसहारा औरतो / बच्चियों के लिये जिनके बलात्कार के बाद सरकार कोई हरकत नहीं करती हैं .
तुम्हारा नाम नहीं जानती पर ये जानती हूँ भारत देश महान कहने वाले , औरत को देवी मानने वाले , भारतीये संस्कृति में औरत का स्थान इत्यादि समझाने वाले भी आज कहीं ना कहीं शर्मिंदा हैं . शर्मिंदा हैं की देश की एक बेटी को इतनी पीड़ा मिली की मरने के लिये उसने अपने देश , अपनी जमीन को नहीं चुना .
क्या दिया इस देश ने तुमको जो तुम यहाँ मरती ?
बस अब यहाँ ना पैदा होना मेरी लाडो , ये देश लड़कियों के पैदा होने के लिये बना ही नहीं
ईश्वर तुम्हारी आत्मा को शांति दे और तुम्हारे भाई और माता पिता को शक्ति दे की वो तुम सी बहादुर काबिल बेटी को खोने का गम सह सके . तुम्हारे पिता ने घर की जमीन बेच कर तुमको पढ़ाया था आज वो किस मानसिक स्थिति मे होंगे ?? शायद अब वो कहेगे इस से तो घर में ही रहती , निरक्षर कम से कम रहती तो .
तुम मेरी बेटी की उम्र की थी { काश कह सकती हो } तुम्हारी पीड़ा को मैने हर दिन अखबारों और खबरों के साथ जिया हैं . मन में उम्मीद थी शायद जीवन बचा हो पर नहीं तुम्हारे साथ बलात्कार के अलावा जो कुछ और हुआ उसने तुम्हारे शरीर से हर वो ताकत छीन ली जो जीवन को चलाती हैं
तुम्हारी पीड़ा को पढ़ कर जाना की डिजिटल रेप भी होता हैं कितना आसान हैं हर दुष्कर्म को एक नाम देदेना .
जानती हो तुम भारत की पहली प्राइवेट नागरिक हो जिसको सरकारी खर्चे से इलाज के लिये विदेश भेजा गया . तुमने मर कर भी एक इतिहास रच दिया और एक रास्ता खोल दिया उन बेसहारा औरतो / बच्चियों के लिये जिनके बलात्कार के बाद सरकार कोई हरकत नहीं करती हैं .
तुम्हारा नाम नहीं जानती पर ये जानती हूँ भारत देश महान कहने वाले , औरत को देवी मानने वाले , भारतीये संस्कृति में औरत का स्थान इत्यादि समझाने वाले भी आज कहीं ना कहीं शर्मिंदा हैं . शर्मिंदा हैं की देश की एक बेटी को इतनी पीड़ा मिली की मरने के लिये उसने अपने देश , अपनी जमीन को नहीं चुना .
क्या दिया इस देश ने तुमको जो तुम यहाँ मरती ?
बस अब यहाँ ना पैदा होना मेरी लाडो , ये देश लड़कियों के पैदा होने के लिये बना ही नहीं
ईश्वर तुम्हारी आत्मा को शांति दे और तुम्हारे भाई और माता पिता को शक्ति दे की वो तुम सी बहादुर काबिल बेटी को खोने का गम सह सके . तुम्हारे पिता ने घर की जमीन बेच कर तुमको पढ़ाया था आज वो किस मानसिक स्थिति मे होंगे ?? शायद अब वो कहेगे इस से तो घर में ही रहती , निरक्षर कम से कम रहती तो .
December 28, 2012
ये सब होता आया हैं तो "गलत कैसे " हुआ .
अभिजीत मुख़र्जी ने बयान "dented painted " लड़कियां / औरते छात्रा नहीं हैं और वो बलात्कार की घटना के बाद फैशन की तरह मोमबती ले कर विरोध प्रदर्शन करती हैं
जब उनके इस बयान पर विवाद हुआ , विरोध हुआ तो दूसरा बयान आया की उन्हे पता नहीं था ये सब भाषा बोलना " sexiest remarks " माना जाता हैं
एक दम सही
सदियों से जो लोग औरतो को "कुछ भी " कहने के आदि रहे हैं वो कैसे समझ सकते हैं की ये सब गलत हैं .
अब अभिजीत मुख़र्जी की क्या बात करे हमारे आप के बीच में ही ना जाने कितने ऐसे हैं जो निरंतर ब्लॉग पर ख़ास कर हिंदी ब्लॉग पर ऐसे ना जाने कितने शब्दों और वाक्यों का प्रयोग करते रहे हैं .
उनकी नज़र में ये सब होता आया हैं तो "गलत कैसे " हुआ .
जेल में बंद गैंग रेप के दोषी भी यही कह रहे हैं की उनको समझ नहीं आ रहा हैं की "इतनी ज़रा सी बात का इतना हंगमा कैसे बन गया . औरत के खिलाफ क्रिमिनल एसोल्ट तो वो करते ही रहे हैं , इस मे इतना गलत क्या हैं "
जो सब होता आया हैं वो गलत होता आया हैं , महिला को उसके अधिकार , समानता के अधिकार से हमेशा वंचित किया गया हैं . उसको सुरक्षित रहने की शिक्षा दे कर रांड , छिनाल , कुतिया , और भी ना जाने कितने नाम दे कर "यौन शोषण " उसका किया गया हैं .
लोग ये समझना ही नहीं चाहते की ये किसी भी महिला का मूल भूत अधिकार हैं की वो कुछ भी करे कुछ भी लिखे कैसे भी रहे
आप को ना पसंद हो तो आप उसका विरोध करे लेकिन आप को ये अधिकार नहीं हैं की आप उसको "sexist" रिमार्क्स दे . आप को किसी की भी निजी पसंद ना पसंद पर ऊँगली उठाने का अधिकार हैं ही नहीं . कानून और संविधान के दायरे मे रह कर बात करे और विगत में क्या होता था इसको ना बताये क्युकी विगत गलत था हैं और रहेगा . महिला के कपड़े , सहन , बातचीत इत्यादि को सुधारने की जगह अगर ये ध्यान दिया जाए की आप की भाषा में कभी भी कही भी "सेक्सिस्ट टोन " तो नहीं हैं
कल खुशदीप की एक कविता थी की अगर नगर वधु का अस्तित्व ना होता तो समाज में और दरिन्दे होते जो और बलात्कार करते इस लिये नगर वधु को सलाम
बड़ी ही खराब सोच हैं अपनी जगह { कविता ख़राब हैं मै ये नहीं कह रही } , नगर वधु यानी वेश्या इस लिये चाहिये ताकि पुरुषो की कामवासना तृप्त होती रहे , इस से विभत्स्य तो कुछ हो ही नहीं सकता . समाज में कोई वेश्या ना बने कोशिश ये होनी चाहिये .
कल की पोस्ट पर एक स्टीकर बनाया हैं संभव हो तो उसका उपयोग करे और नारी के प्रति हिंसा का विरोध करे
जब उनके इस बयान पर विवाद हुआ , विरोध हुआ तो दूसरा बयान आया की उन्हे पता नहीं था ये सब भाषा बोलना " sexiest remarks " माना जाता हैं
एक दम सही
सदियों से जो लोग औरतो को "कुछ भी " कहने के आदि रहे हैं वो कैसे समझ सकते हैं की ये सब गलत हैं .
अब अभिजीत मुख़र्जी की क्या बात करे हमारे आप के बीच में ही ना जाने कितने ऐसे हैं जो निरंतर ब्लॉग पर ख़ास कर हिंदी ब्लॉग पर ऐसे ना जाने कितने शब्दों और वाक्यों का प्रयोग करते रहे हैं .
उनकी नज़र में ये सब होता आया हैं तो "गलत कैसे " हुआ .
जेल में बंद गैंग रेप के दोषी भी यही कह रहे हैं की उनको समझ नहीं आ रहा हैं की "इतनी ज़रा सी बात का इतना हंगमा कैसे बन गया . औरत के खिलाफ क्रिमिनल एसोल्ट तो वो करते ही रहे हैं , इस मे इतना गलत क्या हैं "
जो सब होता आया हैं वो गलत होता आया हैं , महिला को उसके अधिकार , समानता के अधिकार से हमेशा वंचित किया गया हैं . उसको सुरक्षित रहने की शिक्षा दे कर रांड , छिनाल , कुतिया , और भी ना जाने कितने नाम दे कर "यौन शोषण " उसका किया गया हैं .
लोग ये समझना ही नहीं चाहते की ये किसी भी महिला का मूल भूत अधिकार हैं की वो कुछ भी करे कुछ भी लिखे कैसे भी रहे
आप को ना पसंद हो तो आप उसका विरोध करे लेकिन आप को ये अधिकार नहीं हैं की आप उसको "sexist" रिमार्क्स दे . आप को किसी की भी निजी पसंद ना पसंद पर ऊँगली उठाने का अधिकार हैं ही नहीं . कानून और संविधान के दायरे मे रह कर बात करे और विगत में क्या होता था इसको ना बताये क्युकी विगत गलत था हैं और रहेगा . महिला के कपड़े , सहन , बातचीत इत्यादि को सुधारने की जगह अगर ये ध्यान दिया जाए की आप की भाषा में कभी भी कही भी "सेक्सिस्ट टोन " तो नहीं हैं
कल खुशदीप की एक कविता थी की अगर नगर वधु का अस्तित्व ना होता तो समाज में और दरिन्दे होते जो और बलात्कार करते इस लिये नगर वधु को सलाम
बड़ी ही खराब सोच हैं अपनी जगह { कविता ख़राब हैं मै ये नहीं कह रही } , नगर वधु यानी वेश्या इस लिये चाहिये ताकि पुरुषो की कामवासना तृप्त होती रहे , इस से विभत्स्य तो कुछ हो ही नहीं सकता . समाज में कोई वेश्या ना बने कोशिश ये होनी चाहिये .
कल की पोस्ट पर एक स्टीकर बनाया हैं संभव हो तो उसका उपयोग करे और नारी के प्रति हिंसा का विरोध करे
December 26, 2012
December 25, 2012
कब ख़त्म होगा यह सब...
दिल्ली में हुए 'गैंग रेप' के विरुद्ध जनाक्रोश चरम पर है। हर शहर में लोगों का आक्रोश दिख रहा है, जुलूस निकल रहे हैं। पर ऐसी घटनाये रोज किसी-न-किसी रूप में घटित हो रही हैं। कल इलाहाबाद में एक इंजीनियरिंग कालेज के स्टूडेंट्स ने चलती बस से बाइक पर जा रहे जोड़े के साथ बद्तमीजी की। विरोध करने पर बस से उतरकर इन भावी इंजीनियरों ने लड़के को जमकर पीटा और लड़की के साथ सरेआम बदसलूकी की। प्रशासन ने इस घटना के लिए बस चालक और परिचालक के विरुद्ध कार्यवाही की है। पर 'भावी इंजीनियर्स' का क्या करेंगें। ऐसे इंजीनियर्स के हाथ में देश का भविष्य कहाँ तक सुरक्षित है ?
एक तरफ देश के कोने-कोने में गैंग-रेप जैसी घटनाओं के विरुद्ध जनाक्रोश है, वहीँ इस तरह की सरेआम घटनाएँ। क्या वाकई हुकूमत का भय लोगों के दिलोदिमाग से निकल गया है। प्रधानमंत्री जी अपनी तीन बेटियों और गृहमंत्री जी अपनी दो बेटियों की बात कर रहे हैं। पुलिस अफसर टी. वी. चैनल्स पर बता रहे हैं कि हमारी भी बेटियां हैं, अत: हमारी भी संवेदनाएं हैं। पर इन संवेदनाओं का आम आदमी क्या करे। कब तक मात्र सहानभूति और संवेदनाओं की बदौलत हम घटनाओं को विस्मृत करते रहेंगें।
लडकियाँ सड़कों पर असुरक्षित हैं, मानो वे कोई 'सेक्स आब्जेक्ट' हों। ऐसे में अब लड़कियों / महिलाओं को भी अपनी आत्मरक्षा के लिए खुद उपाय करने होंगें। अपने को कमजोर मानने की बजाय बदसलूकी करने वालों से भिड़ना होगा। पिछले दिनों इलाहबाद की ही एक लड़की आरती ने बदसलूकी करने वाले लड़के का वो हाल किया कि कुछेक दिनों तक शहर में इस तरह की घटनाये जल्दी नहीं दिखीं।
दुर्भाग्यवश, दिल्ली में शोर है, बड़ी-बड़ी बातें हो रही हैं पर इन सबके बीच भय किसी के चेहरे पर भी नहीं है। तभी तो ऐसी घटनाओं की बारम्बार पुनरावृत्ति हो रही है। संसद मात्र बहस और प्रस्ताव पास करके रह जाती है, प्रधानमंत्री जी कह रहे हैं हिंसा नहीं जायज है, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि, तो क्या हम कानून-व्यवस्था सुधारने हेतु वर्दी पहन लें।.......जब देश के जिम्मेदार पद पर बैठे लोगों का यह रवैया है तो भला कानून और शासन-प्रशासन का भय लोगों के मन में कहाँ से आयेगा। फांसी पर तो चढाने की बात दूर है, समाज में वो माहौल क्यों नहीं पैदा हो पा रहा है कि लड़कियां अपने को सुरक्षित समझें।
और क्या लिखूं ???
क्या किसी महिला को देख कर आपने सिटी बजायी हैं , फिकरे कसे हैं , गाली दी हैं इस लिये क्युकी वो महिला हैं ??
तो ये मज़ाक नहीं हैं ये यौन शोषण हैं यानी सेक्सुअल हरासमेंट .
स्त्री - पुरुष में बहस के दौरान अगर दोनों अपशब्द कहते हैं तो ठीक हैं लेकिन अगर अपशब्द "लिंग आधारित " हैं तो वो सेक्सुअल हरासमेंट हैं . किसी महिला को ये याद दिलाना की वो महिला हैं इस लिये उसके "अक्ल " नहीं है जैसे "औरतो जैसी बात करना " भी सेक्सुअल हरासमेंट हैं
सेक्सुअल हरासमेंट , जेंडर बायस को दर्शाता हैं , जेंडर बायस यानी स्त्री को कमतर मानना महज इस लिये क्युकी आप पुरुष हैं
रुकिये स्त्री को कमतर मानना केवल और केवल पुरुष नहीं करते हैं , महिला उन से भी ज्यादा करती हैं . हमारे समाज की कंडिशनिंग ही ऐसी हैं की वो नारी को केवल और केवल "खूंटे से बंधी गाय " की तरह देखना चाहती हैं . { आज आर एस एस के प्रधान जी फरमा रहे हैं घर में गाय पाल ले , आप महिला की इज्ज़त करना सीख जायेगे यानी खूंटे से बंधी गाय , जिसको आप दुहते रहते हैं }
नारी ब्लॉग पर जब भी जेंडर बायस पर लिखा , सेक्सुअल हरासमेंट पर लिखा जवाबी पोस्टो में समझया गया की सेक्सुअल हरासमेंट क्या होता हैं . जो बताया गया उसके अनुसार जब तक आप को छुआ ना जाये तब तक वो सेक्सुअल हरासमेंट नहीं होता हैं !!!!! जब समझ इतनी हैं तो सेक्सुअल हरासमेंट तो मज़ाक ही हैं और जिनको इस मज़ाक से आपत्ति हैं वो हास्य को नहीं समझते .
भारत महान में हर घर में हर लड़की किसी ना किसी समय इस सब से रूबरू होती हैं , घर में रहती हैं तो भी और नौकरी करती हैं तो भी .
भद्दे हंसी माजक , गंदे शब्द , सिटी , कोहनी , चुटकी सब एक प्राकर का मोलेस्टेशन हैं जिसकी सुनवाई किसी पुलिस चोकी में तब होंगी जब भारतीये समाज ये मानने को तैयार हो की ये सब गलत हैं . सब इसे विपरीत लिंग का आकर्षण कह कर "मुस्कुरा " देते हैं . एक ऐसी मुस्कराहट जिसका जवाब केवल और केवल "थप्पड़ " ही होता हैं .
आज जगह जगह साइबर कैफे खुल गए अब साइबर कैफे मे जा कर वो वर्ग जिसको हम " लोअर मिडिल क्लास या बिलों पोवर्टी लाइन , या निम्न वर्ग " कहते हैं प्रोनो देखता हैं . प्रोनो देख कर उसको लगता हैं की
एब्नार्मल सेक्स करना फन हैं . प्रोनो में सब फिल्म की तरह होता हैं यानी जो दिखता हैं वो सब फेक हैं नकली हैं . आज हमारे घरो में भी प्रोनो खुल कर देखा जाता हैं . किसी भी कंप्यूटर पर ये चेक करना बड़ा आसन हैं , आप को गूगल सर्च में कुछ शब्द डालने हैं और साईट खुलते ही आप को पता चल जाता हैं की ये साईट कितनी बार पहले खुली हैं . कभी अपने घर के कंप्यूटर को चेक करिये .
एब्नार्मल सेक्स के कारण आज एक लड़की अस्पताल में पड़ी हैं और जीने के लिये लड़ रही हैं . जंग लगी लोहे की रोड उसके अन्दर डाली गयी हैं ताकि " फन " मिल सके दिख सके की एक स्त्री शरीर किस प्रकार से "फन" पाता हैं यानी कैसे "सेक्सुअली अराउज " होता हैं
ये सब मै इस लिये लिख रही हूँ क्युकी मुझ से मेरी माँ जो 75 वर्ष की उन्होंने पूछा की रेप से आंते कैसे बाहर आ गई ? मेरा जवाब था माँ आप नाहीं जाने क्युकी आप समझ नहीं सकती ये रेप नहीं था . फिर भी उनकी जिद्द पर उन्हे बताया तो वो सन्न रह गयी और बोली ऐसा भी होता हैं क्या ??
जब पहली पोस्ट इस केस के बारे में डाली तब भी लिखना चाहती थी पर सोचा सब को समझ आ ही गया होगा पर कमेन्ट से लगा नहीं पता हैं अभी भी बहुत से लोगो को
आप सब से आग्रह हैं एक बार अपने घरो में अपने बच्चो से बात करे . उनमे से बहुत इस सब को जानते हैं . हो सके तो उनके साथ बैठ कर अपने बेटो को ख़ास कर समझाए
और क्या लिखूं ???
तो ये मज़ाक नहीं हैं ये यौन शोषण हैं यानी सेक्सुअल हरासमेंट .
स्त्री - पुरुष में बहस के दौरान अगर दोनों अपशब्द कहते हैं तो ठीक हैं लेकिन अगर अपशब्द "लिंग आधारित " हैं तो वो सेक्सुअल हरासमेंट हैं . किसी महिला को ये याद दिलाना की वो महिला हैं इस लिये उसके "अक्ल " नहीं है जैसे "औरतो जैसी बात करना " भी सेक्सुअल हरासमेंट हैं
सेक्सुअल हरासमेंट , जेंडर बायस को दर्शाता हैं , जेंडर बायस यानी स्त्री को कमतर मानना महज इस लिये क्युकी आप पुरुष हैं
रुकिये स्त्री को कमतर मानना केवल और केवल पुरुष नहीं करते हैं , महिला उन से भी ज्यादा करती हैं . हमारे समाज की कंडिशनिंग ही ऐसी हैं की वो नारी को केवल और केवल "खूंटे से बंधी गाय " की तरह देखना चाहती हैं . { आज आर एस एस के प्रधान जी फरमा रहे हैं घर में गाय पाल ले , आप महिला की इज्ज़त करना सीख जायेगे यानी खूंटे से बंधी गाय , जिसको आप दुहते रहते हैं }
नारी ब्लॉग पर जब भी जेंडर बायस पर लिखा , सेक्सुअल हरासमेंट पर लिखा जवाबी पोस्टो में समझया गया की सेक्सुअल हरासमेंट क्या होता हैं . जो बताया गया उसके अनुसार जब तक आप को छुआ ना जाये तब तक वो सेक्सुअल हरासमेंट नहीं होता हैं !!!!! जब समझ इतनी हैं तो सेक्सुअल हरासमेंट तो मज़ाक ही हैं और जिनको इस मज़ाक से आपत्ति हैं वो हास्य को नहीं समझते .
भारत महान में हर घर में हर लड़की किसी ना किसी समय इस सब से रूबरू होती हैं , घर में रहती हैं तो भी और नौकरी करती हैं तो भी .
भद्दे हंसी माजक , गंदे शब्द , सिटी , कोहनी , चुटकी सब एक प्राकर का मोलेस्टेशन हैं जिसकी सुनवाई किसी पुलिस चोकी में तब होंगी जब भारतीये समाज ये मानने को तैयार हो की ये सब गलत हैं . सब इसे विपरीत लिंग का आकर्षण कह कर "मुस्कुरा " देते हैं . एक ऐसी मुस्कराहट जिसका जवाब केवल और केवल "थप्पड़ " ही होता हैं .
आज जगह जगह साइबर कैफे खुल गए अब साइबर कैफे मे जा कर वो वर्ग जिसको हम " लोअर मिडिल क्लास या बिलों पोवर्टी लाइन , या निम्न वर्ग " कहते हैं प्रोनो देखता हैं . प्रोनो देख कर उसको लगता हैं की
एब्नार्मल सेक्स करना फन हैं . प्रोनो में सब फिल्म की तरह होता हैं यानी जो दिखता हैं वो सब फेक हैं नकली हैं . आज हमारे घरो में भी प्रोनो खुल कर देखा जाता हैं . किसी भी कंप्यूटर पर ये चेक करना बड़ा आसन हैं , आप को गूगल सर्च में कुछ शब्द डालने हैं और साईट खुलते ही आप को पता चल जाता हैं की ये साईट कितनी बार पहले खुली हैं . कभी अपने घर के कंप्यूटर को चेक करिये .
एब्नार्मल सेक्स के कारण आज एक लड़की अस्पताल में पड़ी हैं और जीने के लिये लड़ रही हैं . जंग लगी लोहे की रोड उसके अन्दर डाली गयी हैं ताकि " फन " मिल सके दिख सके की एक स्त्री शरीर किस प्रकार से "फन" पाता हैं यानी कैसे "सेक्सुअली अराउज " होता हैं
ये सब मै इस लिये लिख रही हूँ क्युकी मुझ से मेरी माँ जो 75 वर्ष की उन्होंने पूछा की रेप से आंते कैसे बाहर आ गई ? मेरा जवाब था माँ आप नाहीं जाने क्युकी आप समझ नहीं सकती ये रेप नहीं था . फिर भी उनकी जिद्द पर उन्हे बताया तो वो सन्न रह गयी और बोली ऐसा भी होता हैं क्या ??
जब पहली पोस्ट इस केस के बारे में डाली तब भी लिखना चाहती थी पर सोचा सब को समझ आ ही गया होगा पर कमेन्ट से लगा नहीं पता हैं अभी भी बहुत से लोगो को
आप सब से आग्रह हैं एक बार अपने घरो में अपने बच्चो से बात करे . उनमे से बहुत इस सब को जानते हैं . हो सके तो उनके साथ बैठ कर अपने बेटो को ख़ास कर समझाए
और क्या लिखूं ???
December 22, 2012
हम नारी को देवी मानते हैं जिसकी मूर्ति को हम जब चाहते हैं खंडित करके विसर्जित कर देते हैं
1978 में गीता चोपड़ा - संजय चोपड़ा रेप और हत्या काण्ड { लिंक } के बाद दिल्ली विश्विद्यालय के छात्राओं ने दिल्ली में जुलूस निकाला था और अपनी आवाज को उंचा किया था , मै भी उस जूलुस का हिस्सा थी . गीता चोपड़ा अपने भाई के साथ रेडियो स्टेशन जा रही थी जब ये काण्ड हुआ .
2012 में एक 23 साल की लड़की अपने दोस्त के साथ पिक्चर देख कर आ रही थी और उसके साथ जो कुछ हुआ वो आज पूरा देश जानता हैं . आज फिर लडकियां अपनी आवाज बुलंद कर रही हैं और उसमे मेरी भांजी भी हैं सड़क पर एक जुलूस में .
1978 - 2012 यानी 34 साल अंतराल , एक नयी पीढ़ी और फरक "कोई नहीं " तब हमारी पीढ़ी चिल्ला रही थी आज हमारी बेटियाँ चिल्ला रही हैं .
बदलाव कहां आया हैं ???
अरुणा शौन्बौग रेप के बाद 1973 में जब कोमा में चली गयी थी और आज भी उसी बिस्तर पर हैं
2012 मे 23 साल की बेटी जीवन के लिये अस्पताल में जूझ रही हैं पर विज्ञान की तरक्की कर कारण कोमा में नहीं गयी हैं और विज्ञान की तरक्की के कारण लोग कह रहे हैं की उसकी एक आंत जो " एब्नार्मल सेक्स क्रिया " के कारण निकल दी गयी हैं वो रिप्लेस करी जा सकती हैं .
आईये ताली बजाये की विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली हैं हम एक बलात्कार की शिकार लड़की को बचा सकते , ज़िंदा रख सकते हैं . क्यूँ ताली नहीं बजाई आप ने ???
लडके के जनम पर थाली बजने से तो कभी नहीं आप को फरक पडा , सालो से बजा रहे है .
सालो से हर घर में लड़के को वंश चलाने का ठेका आप देते आ रहे हैं , तब भी आप को फरक नहीं पड़ा .
सालो से लड़की का कन्यादान आप करते आ रहे तब भी नहीं आप को फरक पड़ा .
जब मेरी बेटी , बेटे जैसी हैं कहते रहे तब भी नहीं आप को फरक पड़ा तो अब क्या पड़ेगा .?
आप के लिये { इस आप में स्त्री पुरुष यानी समाज शामिल हैं } बेटी का अस्तित्व ना कभी था ना होगा . बेटी आप लिये एक शर्म का प्रतीक हैं , उसके अस्तित्व की आप को कोई फ़िक्र नहीं थी नहीं हैं . आप के लिये बस बेटा ही सब कुछ हैं और उसका किया हर काम आप के लिये सही हैं .
ना ना आज आप नहीं कहेगे जो हुआ सही हुआ , पर सदियों से कह रहे और फिर दो दिन बाद यही कहेगे
34 साल का अंतराल और वही घटनाएं
जो लड़की आज अस्पताल में है जब सड़क से पुलिस उसको अपनी गाडी में उठा कर अस्पताल ला रही थी तो होश में थी , उसने पुलिस से आग्रह किया था किसी भी तरह उसके माँ पिता को ये सच ना बताया जाए की उसके साथ क्या हुआ , पुलिस के ये कहने पर की वो केवल यही कहेगे की वो सड़क दुर्घटना का शिकार हुई हैं उसको शांति पड़ी और वो चुप हुई . आज भी अस्पताल में कोई उस से रेप की बात नहीं करता , माँ पिता भी नहीं , सब सड़क दुर्घटना की ही बात करते हैं
वो लड़की शर्मसार हैं की उसका रेप हुआ , ये हैं हमारी सीख जो हम अपनी बेटियों को देते हैं . ये हैं समाज का डर जो हम अपनी बेटियों के मन में बिठाते हैं .
और इसीलिये 34 साल अंतराल विज्ञान की तरक्की तो ले आया लेकिन मानसिकता वही की वही हैं , नारी के प्रति हिंसा , जेंडर बायस और सेक्सुअल हरासमेंट , यौन शोषण हमारे समाज का हिस्सा थे और आज भी हैं क्युकी
हम नारी को देवी मानते हैं जिसकी मूर्ति को हम जब चाहते हैं खंडित करके विसर्जित कर देते हैं
2012 में एक 23 साल की लड़की अपने दोस्त के साथ पिक्चर देख कर आ रही थी और उसके साथ जो कुछ हुआ वो आज पूरा देश जानता हैं . आज फिर लडकियां अपनी आवाज बुलंद कर रही हैं और उसमे मेरी भांजी भी हैं सड़क पर एक जुलूस में .
1978 - 2012 यानी 34 साल अंतराल , एक नयी पीढ़ी और फरक "कोई नहीं " तब हमारी पीढ़ी चिल्ला रही थी आज हमारी बेटियाँ चिल्ला रही हैं .
बदलाव कहां आया हैं ???
अरुणा शौन्बौग रेप के बाद 1973 में जब कोमा में चली गयी थी और आज भी उसी बिस्तर पर हैं
2012 मे 23 साल की बेटी जीवन के लिये अस्पताल में जूझ रही हैं पर विज्ञान की तरक्की कर कारण कोमा में नहीं गयी हैं और विज्ञान की तरक्की के कारण लोग कह रहे हैं की उसकी एक आंत जो " एब्नार्मल सेक्स क्रिया " के कारण निकल दी गयी हैं वो रिप्लेस करी जा सकती हैं .
आईये ताली बजाये की विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली हैं हम एक बलात्कार की शिकार लड़की को बचा सकते , ज़िंदा रख सकते हैं . क्यूँ ताली नहीं बजाई आप ने ???
लडके के जनम पर थाली बजने से तो कभी नहीं आप को फरक पडा , सालो से बजा रहे है .
सालो से हर घर में लड़के को वंश चलाने का ठेका आप देते आ रहे हैं , तब भी आप को फरक नहीं पड़ा .
सालो से लड़की का कन्यादान आप करते आ रहे तब भी नहीं आप को फरक पड़ा .
जब मेरी बेटी , बेटे जैसी हैं कहते रहे तब भी नहीं आप को फरक पड़ा तो अब क्या पड़ेगा .?
आप के लिये { इस आप में स्त्री पुरुष यानी समाज शामिल हैं } बेटी का अस्तित्व ना कभी था ना होगा . बेटी आप लिये एक शर्म का प्रतीक हैं , उसके अस्तित्व की आप को कोई फ़िक्र नहीं थी नहीं हैं . आप के लिये बस बेटा ही सब कुछ हैं और उसका किया हर काम आप के लिये सही हैं .
ना ना आज आप नहीं कहेगे जो हुआ सही हुआ , पर सदियों से कह रहे और फिर दो दिन बाद यही कहेगे
34 साल का अंतराल और वही घटनाएं
जो लड़की आज अस्पताल में है जब सड़क से पुलिस उसको अपनी गाडी में उठा कर अस्पताल ला रही थी तो होश में थी , उसने पुलिस से आग्रह किया था किसी भी तरह उसके माँ पिता को ये सच ना बताया जाए की उसके साथ क्या हुआ , पुलिस के ये कहने पर की वो केवल यही कहेगे की वो सड़क दुर्घटना का शिकार हुई हैं उसको शांति पड़ी और वो चुप हुई . आज भी अस्पताल में कोई उस से रेप की बात नहीं करता , माँ पिता भी नहीं , सब सड़क दुर्घटना की ही बात करते हैं
वो लड़की शर्मसार हैं की उसका रेप हुआ , ये हैं हमारी सीख जो हम अपनी बेटियों को देते हैं . ये हैं समाज का डर जो हम अपनी बेटियों के मन में बिठाते हैं .
और इसीलिये 34 साल अंतराल विज्ञान की तरक्की तो ले आया लेकिन मानसिकता वही की वही हैं , नारी के प्रति हिंसा , जेंडर बायस और सेक्सुअल हरासमेंट , यौन शोषण हमारे समाज का हिस्सा थे और आज भी हैं क्युकी
हम नारी को देवी मानते हैं जिसकी मूर्ति को हम जब चाहते हैं खंडित करके विसर्जित कर देते हैं
December 18, 2012
अखबार पढ़ कर मेरे मन मे तो बस इतना आया ईश्वर इसे उठा लो .
"अखबार पढ़ कर मेरे मन मे तो बस इतना आया ईश्वर इसे उठा लो . "
December 17, 2012
नौकरी नारी पुरुष से तुलना करने के लिये करती हैं ये कहना भ्रान्ति हैं
नौकरी नारी पुरुष से तुलना करने के लिये करती हैं ये कहना भ्रान्ति हैं
मेरा कमेन्ट
"खुद की तुलना के लिए नौकरी करना, क्या ठीक है ???"
पोस्ट पर आप भी पढिये और संभव हो तो अपनी राय दे
December 12, 2012
क्या माता से उत्तराधिकार में प्राप्त संपत्ति में बेटी का अधिकार होता है?
ये पोस्ट "तीसरा खम्बा " ब्लॉग से साभार ली गयी हैं . दिनेश जी की आभारी हूँ की उन्होने मुझे अधिकार दे रखा हैं की नारी हित में जारी उनकी पोस्ट को नारी ब्लॉग पर मै री पोस्ट कर सकती हूँ .
December 07, 2012
मुझे लगता हैं हिम्मत इसे कहते हैं
मुझे लगता हैं हिम्मत इसे कहते हैं "शिक्षा पाने के लिये लड़ी और जीती "
December 04, 2012
Lets share the ideas to give her justice!
A wife tracks her husband on Facebook - Leading a FB campaign and a procession to her husband's place, the tragic story of Dimple from Bhadohi.
http://in.screen.yahoo.com/bhadohi-girl-uses-facebook-her-121000593.html
November 27, 2012
अगर कभी आप को कहीं कोई { ईश्वर ना करे } ऐसा केस दिख जाए तो आप उस परिवार को उसके अधिकारों से अवगत करा सके
साफिया खातून की मृत्यु एक सड़क हादसे मे होगयी थी . साफिया खातून एक गृहणी थी और उनकी कोई भी आर्थिक आय नहीं थी . इस कारण से रिलायंस बिमा कम्पनी ने उनके परिवार को किसी भी तरह का हर्जाना देने से इनकार कर दिया क्युकी वो कोई भी ऐसा काम नहीं करती थी जिस से आर्थिक आय होती हो .
November 25, 2012
अपनी आवाज को उंचा करे, नारी के प्रति हिंसा का विरोध करे
किसी भी प्रकार की हिंसा के विरुद्ध अपनी आवाज को उंचा करे . हिंसा के पहले पल को रोकना सबसे जरुरी हैं अन्यथा हिंसा करने वाले को लगता हैं की वो हिंसा से आप को दबा सकता हैं .
नारी के प्रति हिंसा को मिटने के लिये आज विश्व कटिबद्ध हैं . आप भी अपनी आवाज ऊँची करे ताकि लोग आप के अन्दर के आक्रोश को समझ सके और ये जान सके की "हिंसा को सहन " करना नारी की नियति नहीं हैं
नारी के प्रति हिंसा को मिटने के लिये आज विश्व कटिबद्ध हैं . आप भी अपनी आवाज ऊँची करे ताकि लोग आप के अन्दर के आक्रोश को समझ सके और ये जान सके की "हिंसा को सहन " करना नारी की नियति नहीं हैं
November 22, 2012
November 19, 2012
धनतेरस के दिन लडकियां बेची जाती हैं, "देव उत्थानी एकादशी " को इस "बिकी हुई " कन्या का विवाह उसके "खरीदार " से
धनतेरस यानी वो पर्व जो दिवाली से पहले आता हैं और जिस दिन "खरीदना " एक परम्परा हैं .
मेवात में भी ऐसी ही एक परम्परा हैं लेकिन "खरीद " होती हैं लड़कियों की .
मेवात में भी ऐसी ही एक परम्परा हैं लेकिन "खरीद " होती हैं लड़कियों की .
November 14, 2012
राखी सावंत ही क्यूँ ????
कुछ दिनों से देश के नेतो में एक दूसरे को अपशब्द से नवाजने का रिवाज शुरू होगया हैं .
ठीक हैं चोर चोर मौसेरे भाई .
ठीक हैं चोर चोर मौसेरे भाई .
November 12, 2012
October 31, 2012
एक सूचना
हिंदी ब्लॉग पोस्ट आयोजन 1 --- एक सूचना
हिंदी ब्लॉग पोस्ट आयोजन 1
अभी तक 50 प्रविष्टि भी नहीं मिली हैं
अगर अंतिम तिथि तक प्रविष्टि नहीं मिली तो
October 27, 2012
हिन्दू स्त्री की संपत्ति का उत्तराधिकार
ये पोस्ट दिनेश जी के ब्लॉग तीसरा खम्बा से साभार कॉपी पेस्ट की गयी हैं . पोस्ट का उतना ही हिस्सा यहाँ दिया हैं जो जानकारी मात्र हैं . पूरी पोस्ट यहाँ पढी जासकती हैं पोस्ट का लिंक
------------
किसी
भी हिन्दू स्त्री की संपत्ति उस की अबाधित संपत्ति होती है। अपने जीवन काल
में वह इस संपत्ति को किसी को भी दे सकती है, विक्रय कर सकती है या
हस्तान्तरित कर सकती है। यदि वह स्त्री जीवित है तो वह अपनी संपत्ति को
किसी भी व्यक्ति को वसीयत कर सकती है। जिस व्यक्ति को वह अपनी संपत्ति
वसीयत कर देगी उसी को वह संपत्ति प्राप्त हो जाएगी। चाहे वह संबंधी हो या
परिचित हो या और कोई अजनबी।
यदि
उस विधवा स्त्री का देहान्त हो चुका है तो हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की
धारा-15 के अनुसार उस की संपत्ति उस के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होगी।
1. किसी भी
स्त्री की संपत्ति सब से पहले उस के पुत्रों, पुत्रियों (पूर्व मृत
पुत्र-पुत्री के पुत्र, पुत्री) तथा पति को समान भाग में प्राप्त होगी। इस
श्रेणी में किसी के भी जीवित न होने पर …
2. उस के उपरान्त स्त्री के पति के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होगी। पति का कोई भी उत्तराधिकारी जीवित न होने पर …
3. स्त्री के माता-पिता को प्राप्त होगी। उन में से भी किसी के जीवित न होने पर …
4. स्त्री के पिता के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होगी। उन में से भी किसी के जीवित न होने पर …
5. माता के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होगी।
क.
किन्तु यदि कोई संपत्ति स्त्री को अपने माता-पिता से उत्तराधिकार में
प्राप्त हुई है तो स्त्री के पुत्र-पुत्री (पूर्व मृत पुत्र-पुत्री के
पुत्र, पुत्री) न होने पर स्त्री के पिता के उत्तराधिकारियों को प्राप्त
होगी।
ख.
यदि कोई संपत्ति स्त्री को पति से या ससुर से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई
है तो स्त्री के पुत्र-पुत्री (पूर्व मृत पुत्र-पुत्री के पुत्र, पुत्री) न
होने पर उस के पति के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होगी।
---------
ये
पोस्ट दिनेश जी के ब्लॉग तीसरा खम्बा से साभार कॉपी पेस्ट की गयी हैं .
पोस्ट का उतना ही हिस्सा यहाँ दिया हैं जो जानकारी मात्र हैं . पूरी पोस्ट
यहाँ पढी जासकती हैं पोस्ट का लिंक
October 25, 2012
कलयुग में अब तक रावण-दहन नहीं हुआ .........
लो दशहरा आया और चला भी गया। खूब पूजा-पाठ व्रत-उपवास किये गए, मौज-मस्ती भी खूब हुई और अंत में लंका दहन के नाम पर रावण के पुतले को जला कर पूरा समाज आत्म-संतुष्टि के भाव से भर गया। रावण-दहन केवल बुराई पर अच्छाई, असत्य पर सत्य, अनीति पर निति की विजय का प्रतीक नहीं बल्कि हमारे समाज के सकारात्मक सोच की पराकाष्ठा का भी ज्वलंत उदाहरण है। हर रोज़ नज़रों के सामने बुराई, असत्य, अनीति को जीतता हुआ देख कर भी हर साल सदियों पूर्व मिले एक जीत की ख़ुशी में हम जश्न मनाना नहीं भूलते इससे बेहतर सकारात्मक सोच का उदहारण क्या हो सकता है भला?
क्यूँ भूतकाल को पीछे छोड़ कर हम वर्तमान में नहीं आ पा रहे? आखिर कबतक हम पुतले को जला जला कर अपनी बहादुरी जताएंगे? क्यूँ नहीं समाज के असली रावणों को पहुंचा पा रहे हम उनके अंजाम तक? क्या इसलिए की हम सब बैठ कर फिर से उस राम के जन्म की प्रतीक्षा कर रहे हैं या फिर इसलिए की रावण की कमजोरी बता कर लंका दाहने वाले विभीषण अब जन्म नहीं ले रहे?
राम के जन्म का तो पता नहीं लेकिन अगर विभीषण का इंतज़ार है तो वो अब कभी नहीं आने वाला क्यूंकि अब कोई भी रावण किसीको विभीषण बनने नहीं देता, उस रावण के पास कमसकम इतना आत्म-स्वाभिमान तो था कि अगर सीता से उसकी वासना पूर्ति होती तो वो उसकी साम्रागी होती पर आज का रावण 'साम्रागी' नहीं 'सामग्री' मानता है वो भी सार्वजनिक, जिसका भोग वो मिल बाँट कर कर सकता है तभी तो गैंग रेप की प्रथा सी चल पड़ी है और इसलिए अब कोई विभीषण भी रावण के खिलाफ खड़ा नहीं होता। इन विभीषण-प्रिय-रावणों से थोडा नज़र हटायें तो और भी ऐसे एक से एक दुराचार-विभूतियाँ मिलेंगी जिन्हें अगर मैं रावण की संज्ञा दूँ तो अपना अपमान समझ कर रावण भी मुझपर मानहानि का दावा ठोंक देगा। जी हाँ मैं वैसे ही पिताओं की बात कर रही हूँ जो अपनी ही मासूम बेटियों को नहीं बख्शते चाहे वो छः माह की हो तीन या फिर चौदह वर्ष की इन लोगों के लिए तो शायद अब तक कोई शब्द किसी भी भाषा में बना ही नहीं।
जिस प्रकार त्रेता युग में रावण का वध करने के पूर्व उसके सारे सहायकों का वध करना पड़ा था ठीक उसी तरह समाज से रावणों का समूल नाश करने के लिए उन विकृत सोच वाले लोगों को भी उचित दण्ड मिलना ही चाहिए जो गाहे बगाहे मेघनाद सा गर्जन करते हुए न सिर्फ सारा दोष स्त्री जाती पर मढ़ देते हैं बल्कि रावण का वेष धरे कामी पुरुषों को संरक्षण के साथ-साथ ये तसल्ली भी दे देते हैं कि जब तक मैं हूँ तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। जब तक रेप के कारणों को ढूंढने के नाम पर सारा दोष लड़कियों की पढाई, कभी उनके खुले विचार, कभी कपडे, कभी विवाह का उम्र, तो कभी बेबुनियादी तरीके से चाउमीन जैसी चीजों पर मढ़ने की छुट देते रहेंगे हम रावणों के पिछलग्गू मेघ्नादों को तबतक इनके पीछे छिप कर रावण अपनी कुकृत्यों को अंजाम देता रहेगा। हम सब बस परंपरा के नाम पर रावण का पुतला जलाएंगे और समाज में असली रावणों की संख्या बढती जायेगी, दहन होगा तो बस सीता और उसके परिजनों का।
याद रखो ये त्रेता नहीं कलयुग है और कलयुग में अब तक रावण-दहन नहीं हुआ .........
October 23, 2012
अधूरे सपनों की कसक
"मेरा
डॉ बनने का जूनून उड़ान भरने लगा ,पर होनी कुछ और थी , मुझे दसवीं के बाद
उस जगह से दूर विज्ञान के कॉलेज में दाखिला के लिए पापा ने मना कर दिया |
ये कह कर की दूर नहीं जाना है पढने|
जो है यहाँ उसी को पढो , और पापा ने मेरी पढ़ाई कला से करने को अपना फैसला
सुना दिया | मैं कुछ दिल तक कॉलेज नहीं गयी | खाना छोड़ा और रोती रही , पर
धीरे -धीरे मुझे स्वीकार करना पड़ा उसी सच्चाई को | "
"सपने देखने शुरू कर दिए मेरे मन ने .कई बार खुद को सरकारी जीप मे हिचकोले खाते देखा पर भूल गयी थी कि मैं एक लड़की हूँ ,उनके सपनो की कोई बिसात नही रहती ,जब कोई अच्छा लड़का मिल जाता हैं |बस पापा ने मेरे लिय वर खोजा और कहा कि अगर लड़की पढ़ना चाहे तो क्या आप पढ़ने देंगे बहुत ही गरम जोशी से वादे किये गये ."
"जब बी ए ही करना है तो यहीं से करो .. मैंने बहुत समझाया ...मुझे बी
ए नहीं करना है वो तो एक रास्ता है मेरी मंजिल तक जाने का पर उस दिन एक
बेटी के पिता के मन में असुरक्षा घर कर गई ..घर की सबसे बड़ी बेटी को बाहर
भेजने की हिम्मत नहीं कर पाए ...और मैं उनकी आँखे देखकर बहस "
"मुझे
हमेशा से शौक था .... विज्ञान विषय लेकर पढ़ाई पूरी करने की क्यों कि कला
के कोई विषय में मुझे रूचि नहीं थी ..... लेकिन बड़े भैया के विचारों का
संकीर्ण होना कारण रहे .... मुझे कला से ही स्नातक करने पड़े ..... ऐसा
मैं आज भी सोचती हूँ .... कभी-कभी इस बात से खिन्न भी होती है...."
"उन्हीं दिनों मेरे दादाजी घर आये हुए थे।
कॉलेज खुलने ही वाले थे, मेरे पिताजी ने दादा जी से भी विचार विमर्श
किया और दादाजी ने निर्णय सुना दिया गया कि कॉलेज नहीं बदलना है . उसी
कॉलेज में आर्ट विषय लेकर पढ़ना है , मानो दिल पर एक आघात लगा था। कुछ दिन
विद्रोह किया लेकिन बाद में उनका फैसला मानना ही पड़ा। "
"न्यायाधीश की बेटी, और हर अन्याय के खिलाफ लड़ने का संकल्प धारण करने वाली
लड़की अपने
प्रति होने वाले इस अन्याय का प्रतिकार नहीं कर पाई और जीवन भर अपनी हार का
यह
ज़ख्म अपने सीने में छिपाये रही !"
रेखा श्रीवास्तव अपने ब्लॉग पर एक सीरीज अधूरे सपनों की कसक पढवा रही हैं .
आप
भी पढिये और सोचिये नर - नारी समानता आने में अभी कितनी और देर आप लगाना
चाहते हैं . कितनी और बेटियों को आप अधूरे सपनों के साथ अपना जीवन जीने के
लिये मजबूर करना चाहते हैं और कितनी बेटियों से आप ये सुनना चाहते हैं की
नियति के आगे सब सपने अधूरे ही रहते हैं .
बेटी
के लिये विवाह कब तक कैरियर का ऑप्शन बना रहेगा . कब तक आप विवाह करके
लडकियां सुरक्षित हैं हैं ये खुद भी मानते रहेगे और लड़कियों से भी मनवाते
रहेगे .
October 20, 2012
October 15, 2012
हिंदी ब्लॉग पोस्ट आयोजन 1 --- एक सूचना
हिंदी ब्लॉग पोस्ट आयोजन 1
आज 15 अक्तूबर 2012 हैं , अंतिम तारीख इस आयोजन की प्रविष्टिया भेजने की . अभी तक 50 प्रविष्टि भी नहीं आई हैं .
अंतिम तारीख अब 15 नवम्बर 2012 तक बढ़ा दी जाती हैं . नियमो में भी कुछ परिवर्तन किये जा रहे हैं
अंतिम तारीख 15 नवम्बर 2012
ब्लॉगर एक की जगह 2 प्रविष्टि भेज सकता हैं
विषय पहले 3 थे
नारी सशक्तिकरण
घरेलू हिंसा
यौन शोषण
अब 3 और बढ़ा दिये गए है
बलात्कार के मुख्य कारण
कन्या भ्रूण ह्त्या के मुख्य कारण
लड़कियों के लिये शादी की जरुरी / गैर जरुरी .
October 14, 2012
शादी गैर जरुरी हैं या शादी ना करे , या लड़कियों को शादी नहीं करनी चाहिये इत्यादि पर ये बहस नहीं हैं ,
विवाह नारी को सुरक्षा प्रदान करता हैं इस लिये नारी को विवाह की आवश्यकता हैं .
सुरक्षा ??? किस चीज़ की सुरक्षा ? कौन सी सुरक्षा ?? किस से सुरक्षा ??
आर्थिक सुरक्षा
आज भी लड़की के माता पिता अपनी बेटी को शादी में हर वो सामान देते हैं जो एक नयी गृहस्थी के लिये जरुरी होता हैं . यानी दहेज़ , स्त्रीधन या आप जो भी नाम देना चाहे . ये चल रहा हैं सदियों से .
अगर जितना सामान इस तरह शादी पर खर्च होता हैं उतना ही किसी भी लड़की को बिना शादी के दे दिया जाए तो भी वो अपनी जिंदगी में आर्थिक रूप से सुरक्षित हो ही जायेगी . जब दिया माँ पिता ने तो ये क्यूँ कहना की लड़की को आर्थिक सुरक्षा , शादी या पति देता हैं ??
सामाजिक सुरक्षा
पति , क्या सामाजिक सुरक्षा कवच हैं की एक लड़की को अगर समाज में सुरक्षित रहना हैं तो उसको शादी करनी ही होगी . अगर ऐसा होता तो किसी भी विवाहित स्त्री के साथ ना तो घरेलू हिंसा होती , ना वो जलाई जाती .
और उन पत्नियों का क्या जिनके पति खुले आम या छुप कर विवाह से इतर सम्बन्ध बनाते हैं और फिर घर आकर पत्नी से भी दैहिक सम्बन्ध बनाते हैं और पत्नी को सामाजिक सुरक्षा / आर्थिक सुरक्षा का डर दिखा कर चुप रहने को मजबूर करते हैं .
आज जिन पोस्ट से इस बात को दुबारा उठाने का मन किया
उनके लिंक हैं
लिंक 1
लिंक 2
सुरक्षा ??? किस चीज़ की सुरक्षा ? कौन सी सुरक्षा ?? किस से सुरक्षा ??
आर्थिक सुरक्षा
आज भी लड़की के माता पिता अपनी बेटी को शादी में हर वो सामान देते हैं जो एक नयी गृहस्थी के लिये जरुरी होता हैं . यानी दहेज़ , स्त्रीधन या आप जो भी नाम देना चाहे . ये चल रहा हैं सदियों से .
अगर जितना सामान इस तरह शादी पर खर्च होता हैं उतना ही किसी भी लड़की को बिना शादी के दे दिया जाए तो भी वो अपनी जिंदगी में आर्थिक रूप से सुरक्षित हो ही जायेगी . जब दिया माँ पिता ने तो ये क्यूँ कहना की लड़की को आर्थिक सुरक्षा , शादी या पति देता हैं ??
सामाजिक सुरक्षा
पति , क्या सामाजिक सुरक्षा कवच हैं की एक लड़की को अगर समाज में सुरक्षित रहना हैं तो उसको शादी करनी ही होगी . अगर ऐसा होता तो किसी भी विवाहित स्त्री के साथ ना तो घरेलू हिंसा होती , ना वो जलाई जाती .
और उन पत्नियों का क्या जिनके पति खुले आम या छुप कर विवाह से इतर सम्बन्ध बनाते हैं और फिर घर आकर पत्नी से भी दैहिक सम्बन्ध बनाते हैं और पत्नी को सामाजिक सुरक्षा / आर्थिक सुरक्षा का डर दिखा कर चुप रहने को मजबूर करते हैं .
विवाह होने के बाद कितना असुरक्षित महसूस करती होंगी ऐसी पत्निया ?? फिर शादी से सुरक्षा मिलती हैं ये कहना क्या कोई मतलब रखता हैं ??
शादी करना या ना करना व्यक्तिगत निर्णय होता हैं
शादी से सामाजिक या आर्थिक सुरक्षा का कोई लेना देना नहीं हैं
शादी लड़कियों के लिये जितनी जरुरी हैं लडको के लिये भी उतनी ही जरुरी हैं या जितनी गैर जरुरी लडको के लिये हैं उतनी ही लड़कियों के लिये भी है
शादी , लड़कियों के लिये जरुरी हैं क्युकी वो लड़की हैं अपने आप में एक गलत सोच हैं
कम नुक्सान वाले नहीं ज्यादा फायदे वाले विकल्प चुन रही हैं आज की पढ़ी लिखी लडकिया .
शादी गैर जरुरी हैं या शादी ना करे , या लड़कियों को शादी नहीं करनी चाहिये इत्यादि पर ये बहस नहीं हैं ,
नारी ब्लॉग पर ये पोस्ट 2010 में आई थी
आज जिन पोस्ट से इस बात को दुबारा उठाने का मन किया
उनके लिंक हैं
लिंक 1
लिंक 2
October 12, 2012
October 10, 2012
बलात्कार करने वाले कभी भी बलात्कार कर के शर्मसार नहीं होते हैं
बलात्कार महज एक शब्द नहीं हैं और ये महज एक यौन हिंसा भी नहीं हैं , ये पुरुष के काम वासना को शांत करने का एक माध्यम भी नहीं हैं .
बलात्कार करने वाले कभी भी बलात्कार कर के शर्मसार नहीं होते हैं क्युकी वो बलात्कार केवल और केवल अपने अहम् को तुष्ट करने के लिये ये करते हैं , उनकी नज़र में बलात्कार एक ऐसा जरिया हैं जिसको करके वो अपना वर्चस्व स्थापित करते हैं , बलात्कार करने वाले किसी भी जाति , आयु , वर्ग या समुदाय के नहीं होते हैं .
ये वो लोग होते हैं जो अपने आप से घृणा करते हैं और उनकी नज़र में वो खुद एक फेलियर होते हैं , नाकाम नकारे .
कौन होते हैं अपनी नज़र में नाकाम नकारे ,
लोग कहते हैं की मीडिया बलात्कार का तमाशा बनाती हैं और बेफिजूल हल्ला मचाती हैं , क्युकी उनको अपना अखबार , अपना चॅनल चलाना होता हैं
नहीं मै नहीं मानती क्युकी मीडिया अपना कर्तव्य पूरा करती हैं और ये मीडिया की ही कोशिश हैं की ये बाते
समाज के मुंह पर एक तमाचे को तरह लगती . बलात्कार हमेशा से होते आये हैं लेकिन उन खबरों को दबाया जाता रहा हैं क्युकी समाज ने कभी सजा बलात्कारी को दी ही नहीं हैं , सजा हमेशा बलात्कार जिसका हुआ उसको मिली हैं उसके परिवार को मिली हैं .
आज मीडिया एक एक बलात्कार की खबर को , मोलेस्ट की खबर को हाई लाईट करके दिखाता हैं और गाली मीडिया को पड़ती हैं उसकी खबरों से सब नाराज हैं , सबको लगता हैं जैसे मीडिया "पीपली लाइव " जैसी फिल्म बनाता हैं और स्पोंसर खोजता हैं . जो लोग ये सोचते हैं वो "बलात्कार " को केवल और केवल एक क़ानूनी अपराध मानते हैं और कुछ तो इसे बलात्कार करने वाले की एक गलती मान कर उसको माफ़ करने की भी फ़रियाद करने लगते हैं
आज कल बलात्कार शब्द का प्रयोग व्यंग , सटायर में लोग करते हैं जो की गलत हैं . बलात्कार जैसा अपराध वो ही करते हैं जो स्त्री के शरीर को रौंद कर अपने को "उंचा " , सुपीरियर साबित करना चाहते हैं . इस शब्द को कहीं भी प्रयोग करने से पहले सोचिये जरुर की कहीं गलती से आप इस घिनोनी मानसिकता वालो को हंसने का मौका तो नहीं दे रहे हैं
कुछ लोग खाप पंचायत 15 साल की उम्र में शादी करने से लड़कियों के रेप को लेकर चिंतित हैं , वो सब एक बार अपने अपने आस पास झाँक कर देखे , कितने ही घर मिल जायेगे जहां घर की अपनी खाप पंचायत हैं ,
जहां लडकियां को अँधेरा होने से पहले घर आना होता हैं ,
जहां लड़कियों को नौकरी से पहले शादी करना जरुरी होता हैं ,
जहां लड़कियों को स्किर्ट पहनना मना होता हैं .
जहां 3 साल की लड़की को पैंटी पहनना जरुरी समझा जाता हैं लेकिन 3 साल का लड़का बिना निकर के भी घूम सकता हैं और माँ / दादी मुस्कराती हैं , लड़का हैं
एक घटना बताती हूँ
बात 1990 की हैं
एक परिवार में एक 3 साल की बच्ची थी , उसके माता पिता थे और उनका एक ड्राइवर था . एक दिन माता पिता ने ड्राइवर को किसी बात पर डांट दिया . अगले ही दिन ड्राइवर ने उस बच्ची का बलात्कार किया लेकिन नौकरी नहीं छोड़ी . उसने माता पिता से कहा जो करना हो करो . पुलिस , थाना चौकी जो मन हो ,मै ये तुम्हारे घर में हूँ . क्या बिगाड़ लोगे मेरा , बोलो ??
माता पिता , बेटी को एक प्राइवेट डॉक्टर को दिखा दिया , अस्पताल भी नहीं ले गए और रातो रात अपना मकान छोड़ दिया . और ड्राइवर का कोई कुछ नहीं कर पाया .
और जो जानते थे वो भी यही कहते रहे अब 3 साल की बच्ची का बलात्कार तो क्या ही हुआ होगा ??? बलात्कार के लिये कुछ औरत जैसा शरीर भी तो होना चाहिये .
ना जाने उस ड्राइवर ने इसके बाद कितनी बार यही सब दोहराया होगा और ना जाने उस बच्ची ने क्या और कब तक भुगता होगा . पता नहीं मरी होंगी की जिंदा होगी .
बलात्कार करने वाले कभी भी बलात्कार कर के शर्मसार नहीं होते हैं क्युकी वो बलात्कार केवल और केवल अपने अहम् को तुष्ट करने के लिये ये करते हैं , उनकी नज़र में बलात्कार एक ऐसा जरिया हैं जिसको करके वो अपना वर्चस्व स्थापित करते हैं , बलात्कार करने वाले किसी भी जाति , आयु , वर्ग या समुदाय के नहीं होते हैं .
ये वो लोग होते हैं जो अपने आप से घृणा करते हैं और उनकी नज़र में वो खुद एक फेलियर होते हैं , नाकाम नकारे .
कौन होते हैं अपनी नज़र में नाकाम नकारे ,
- वो जो जिन्दगी में कुछ कर नहीं पाते , जैसे पढाई , लिखाई नौकरी इत्यदि
- वो जो जिन्दगी में अपने ही माता पिता की नज़र में गिर जाते हैं
- वो जो बन ना चाहते हैं जिन्दगी में पर नाकाम रहते हैं और किसी महिला को वहाँ देखते हैं
- वो जो देखने में सुंदर नहीं होते यानी जो पुरुष की एक बनी हुई छवि के अनुसार अपने को कमतर पाते हैं
- वो जो बेमेल विवाह के शिकार होते हैं यानी जिनकी पत्नी अतिसुंदर होती हैं और वो खुद को उससे कमतर पाते है
- वो जिनके पिता ने उनकी माँ पर अत्याचार किया होता हैं
- वो जिनके यहाँ स्त्री को गाली , गलौज से बुलाया जाता हैं
- वो जिनकी अपने घर में बिलकुल नहीं चलती हैं
- वो जो बहुत पैसे वाले हैं और जिनको लगता हैं की पैसा देकर कुछ भी ख़रीदा जा सकता हैं
- वो जो बेहद शालीन दिखते हैं लेकिन मन में स्त्री के प्रति यौन हिंसा का भाव सदेव रखते हैं क्युकी उनको लगता हैं की स्त्री की जगह उनके पैर के नीचे हैं .
लोग कहते हैं की मीडिया बलात्कार का तमाशा बनाती हैं और बेफिजूल हल्ला मचाती हैं , क्युकी उनको अपना अखबार , अपना चॅनल चलाना होता हैं
नहीं मै नहीं मानती क्युकी मीडिया अपना कर्तव्य पूरा करती हैं और ये मीडिया की ही कोशिश हैं की ये बाते
समाज के मुंह पर एक तमाचे को तरह लगती . बलात्कार हमेशा से होते आये हैं लेकिन उन खबरों को दबाया जाता रहा हैं क्युकी समाज ने कभी सजा बलात्कारी को दी ही नहीं हैं , सजा हमेशा बलात्कार जिसका हुआ उसको मिली हैं उसके परिवार को मिली हैं .
आज मीडिया एक एक बलात्कार की खबर को , मोलेस्ट की खबर को हाई लाईट करके दिखाता हैं और गाली मीडिया को पड़ती हैं उसकी खबरों से सब नाराज हैं , सबको लगता हैं जैसे मीडिया "पीपली लाइव " जैसी फिल्म बनाता हैं और स्पोंसर खोजता हैं . जो लोग ये सोचते हैं वो "बलात्कार " को केवल और केवल एक क़ानूनी अपराध मानते हैं और कुछ तो इसे बलात्कार करने वाले की एक गलती मान कर उसको माफ़ करने की भी फ़रियाद करने लगते हैं
आज कल बलात्कार शब्द का प्रयोग व्यंग , सटायर में लोग करते हैं जो की गलत हैं . बलात्कार जैसा अपराध वो ही करते हैं जो स्त्री के शरीर को रौंद कर अपने को "उंचा " , सुपीरियर साबित करना चाहते हैं . इस शब्द को कहीं भी प्रयोग करने से पहले सोचिये जरुर की कहीं गलती से आप इस घिनोनी मानसिकता वालो को हंसने का मौका तो नहीं दे रहे हैं
कुछ लोग खाप पंचायत 15 साल की उम्र में शादी करने से लड़कियों के रेप को लेकर चिंतित हैं , वो सब एक बार अपने अपने आस पास झाँक कर देखे , कितने ही घर मिल जायेगे जहां घर की अपनी खाप पंचायत हैं ,
जहां लडकियां को अँधेरा होने से पहले घर आना होता हैं ,
जहां लड़कियों को नौकरी से पहले शादी करना जरुरी होता हैं ,
जहां लड़कियों को स्किर्ट पहनना मना होता हैं .
जहां 3 साल की लड़की को पैंटी पहनना जरुरी समझा जाता हैं लेकिन 3 साल का लड़का बिना निकर के भी घूम सकता हैं और माँ / दादी मुस्कराती हैं , लड़का हैं
एक घटना बताती हूँ
बात 1990 की हैं
एक परिवार में एक 3 साल की बच्ची थी , उसके माता पिता थे और उनका एक ड्राइवर था . एक दिन माता पिता ने ड्राइवर को किसी बात पर डांट दिया . अगले ही दिन ड्राइवर ने उस बच्ची का बलात्कार किया लेकिन नौकरी नहीं छोड़ी . उसने माता पिता से कहा जो करना हो करो . पुलिस , थाना चौकी जो मन हो ,मै ये तुम्हारे घर में हूँ . क्या बिगाड़ लोगे मेरा , बोलो ??
माता पिता , बेटी को एक प्राइवेट डॉक्टर को दिखा दिया , अस्पताल भी नहीं ले गए और रातो रात अपना मकान छोड़ दिया . और ड्राइवर का कोई कुछ नहीं कर पाया .
और जो जानते थे वो भी यही कहते रहे अब 3 साल की बच्ची का बलात्कार तो क्या ही हुआ होगा ??? बलात्कार के लिये कुछ औरत जैसा शरीर भी तो होना चाहिये .
ना जाने उस ड्राइवर ने इसके बाद कितनी बार यही सब दोहराया होगा और ना जाने उस बच्ची ने क्या और कब तक भुगता होगा . पता नहीं मरी होंगी की जिंदा होगी .
October 02, 2012
September 29, 2012
हिंदी ब्लॉग पोस्ट संकलन , आयोजन 1 , अंतिम तिथी 15 अक्तूबर 2012
इस आयोजन के लिये प्रविष्टियाँ आनी शुरू हो गयी हैं . मुझे सुखद आश्चर्य हैं की लोग इस से जुड़ रहे हैं .
आयोजन के विषय में पूरी जानकारी इन दो लिंक पर उपलब्ध हैं
आप को बस इतना करना हैं की प्रविष्टि भेजने की अंतिम तिथी 15 अक्तूबर 2012 हैं
अपनी ब्लॉग पोस्ट का लिंक { लेख या
कविता } जो निम्न विषय पर हो
नारी सशक्तिकरण
घरेलू हिंसा
यौन शोषण
यहाँ कमेन्ट में दे दे
नारी सशक्तिकरण
घरेलू हिंसा
यौन शोषण
यहाँ कमेन्ट में दे दे
नियम और प्रक्रिया सम्बंधित कुछ जानकारियाँ
- केवल एक ही ब्लॉग पोस्ट का लिंक दे
- कविता या लेख
- पोस्ट का लिंक दे केवल ब्लॉग यु आर एल नहीं चाहिये
- लिंक के साथ ये अवश्य लिखे की लिंक किस दिये हुए तीन विषयों में से किस के लिये हैं
- केवल और केवल एक प्रविष्टि आमंत्रित हैं जिन पाठको ने दो प्रविष्टि दी हैं उनकी पहली प्रविष्टि इस आयोजन में शामिल कर दी जाएगी और दूसरी निरस्त्र मानी जाएगी . अंतिम तिथि तक आप अपनी प्रविष्टि डिलीट करके नयी भी दे सकते हैं .
- पोस्ट ब्लॉग पर छपी होनी चाहिये , पहले से प्रिंट मीडिया में छपे लेख / कविता { यानी किताब , या न्यूज़ पेपर इत्यादि } जिन्हे आप ने दुबारा ब्लॉग पर दिया हो वो नहीं मान्य होंगे . हां अगर पहले ब्लॉग पर पोस्ट किया हैं बाद में किताब में / न्यूज़ पेपर इत्यादि में दिया है तो वो मान्य हैं
- 100 पोस्ट आते ही प्रविष्टियाँ बंद कर दी जाएगी . नया ब्लॉग बना दिया जायेगा और आप अपनी पसंद के निर्णायक पेज के नीचे अपनी पोस्ट को पेस्ट कर के आंकलित करवा सकेगे . निर्णायक 100 अंक में से नंबर देंगे . निर्णायक आकलन करने से पहले अगर चाहेगे तो कमेन्ट करके कोई प्रश्न भी कर सकते हैं पोस्ट सम्बंधित . अपनी 25 पोस्ट का निर्णय निर्णायक एक निश्चित तिथि पर हर पोस्ट में कमेन्ट मे देंगे या मुझे ईमेल कर देगे और मै वो ईमेल उनके ईमेल आईडी के कमेन्ट मे पेस्ट कर दूंगी . लेकिन 100 पोस्ट का रिजल्ट या अंक एक ही दिन पेस्ट होंगे
- उसके बाद एक और नया ब्लॉग बनेगा जहां 12 टॉप पोस्ट पुनः प्रकाशित होगी और अब पाठक उस पर अंक देगें . केवल उन्ही पाठक के अंक जुडेगे जो 12 मे से हर पोस्ट को अंक देंगे . पाठक को ये अधिकार नहीं होगा की किसी को अंक दे किसी को ना दे . पाठक भी अंक देने से पहले प्रश्न कर सकता हैं . अंक देने और प्रश्न पूछने का माध्यम भी कमेन्ट ही होगा . 0-5 तक के अंक पाठक नहीं दे सकेगे .
- अंत में निर्णायक के अंक और पाठक के अंक जोड़ कर रिजल्ट खुद बा खुद सामने होगा
इसके
बाद एक मीट मे इन 12 पोस्ट को पढने के लिये लेखक आमंत्रित किये जायेगे .
ना आ सकने की स्थिति मे वो दिल्ली मे रहने वाले अपने किसी भी मित्र
ब्लोग्गर को अपनी पोस्ट पढने के लिये नोमिनेट कर सकते हैं . वहाँ उपस्थित
दर्शक जो ब्लोग्गर भी होंगे और किसी कॉलेज के छात्र भी वो किस प्रकार से
अपनी पसंद , अंक के रूप में दे सकेगे इस पर मे जल्दी ही सूचित करुँगी या
केवल 12 पोस्ट पढ़ी जाएगी , विमर्श होगा और जो तीन टॉप पूर्व घोषित हैं उनकी
घोषणा होंगी, या वहां उपस्थित ब्लोगर अंक दे सकेगे बस अभी इस पर मंथन चल
रहा हैं
तब तक अपनी पोस्ट भेज दे और अपने ब्लोगर मित्र को भी कह दे की वो भी भेज दे
आप नारी ब्लॉग की इस पोस्ट को अपने ब्लॉग पर लिंक के साथ दे सकते हैं .
लेबल के जरिये इस विषय से सम्बंधित सब पोस्ट पढ़ कर पूरी जानकारी ले
लेबल के जरिये इस विषय से सम्बंधित सब पोस्ट पढ़ कर पूरी जानकारी ले
September 26, 2012
कब होता हैं विधवा विलाप
पति की अर्थी उठने से पहले हाथो की चूड़िया एक पत्थर पर तोड़ कर अर्थी पर चढ़ाई जाती हैं . हाथो लहू लोहन हो जाए तो विधवा विलाप होता हैं
पैरो के बिछिये खीच कर उतारे जाते हैं चोट लगने पर जो आवाज आती हैं वो होता हैं विधवा विलाप
नाक की कील निकाली जाती हैं , तब जो दर्द होता हैं , जो आवाज निकलती हैं वो होता हैं विधवा विलाप
सर्दी हो या गर्मी सबके सामने बिठा कर सर से पानी डाल कर मांग के सिंदूर को बहाया जाता हैं और तब जो चीत्कार होता हैं वो होता हैं विधवा विलाप
गीली साडी उतरवा कर सफ़ेद साडी पहनाई जाती हैं और सबके बीच बिठा कर आँचल को पसारने को कहा जाता हैं ताकि वहाँ उपस्थित लोग उसमे कुछ आर्थिक राशी डाल सके यानी एक प्रकार की भिक्षा . तब जो आह निकलती हैं वो होता हैं विधवा विलाप .
आग्रह हैं जिन लोगो को अपने आस पास किसी ऐसी परम्परा का पता हो जो विधवा विलाप का कारण हो तो इस पोस्ट में जोड़ दे . कम से कम जो ये नहीं जानते विधवाओ को क्या क्या सदियों से झेलना पडा हैं वो जान सके और संभव हैं तब वो समझ सके जिन्दगी की सचाई भाषा विज्ञान से इतर होती हैं
कल की पोस्ट और उस पर आये कमेन्ट यहाँ देखे . लिंक
September 24, 2012
विधवा विलाप इसे कहते हैं, संतोष त्रिवेदी जी , प्रवीण शाह जी और अरविन्द मिश्र जी
विधुर शायद ही कभी विलाप करते हो , वो उनके परिजन उनके विधुर होते ही उनके
लिये नयी जीवन संगिनी खोजते हैं ताकि उनका जीवन फिर किसी नारी के सहारे
सुखमय कट सके . समाज की नज़र में सधवा का मरना उस सधवा के लिये एक भाग्यशाली
होने की निशानी हैं क्युकी पति के रहते वो स्वर्ग सिधार गयी . यानी स्त्री
का भाग्य उसके पति की कुशलता से जुडा होता हैं और पति का भाग्य . सौभाग्य
कभी भी स्त्री / पत्नी के जीवन से नहीं जुडा होता हैं .
इसीलिये विधवा विलाप एक बहुत ही करुण स्थिति मानी गयी हैं जहां एक स्त्री अपने पति के मरते ही अपनी सुध बुध खो देती हैं और चीख चीख कर अनगर्ल प्रलाप करती हैं क्युकी आने वाले जीवन में समाज उस से बहुत कुछ छीनने वाला हैं .
आज से सालो पहले जब बाल विवाह होते थे , गौना होता था , तब ना जाने कितनी बच्चिया गौने से पहले ही विधवा हो जाती थी और मेरी अपनी दादी { जो मेरी दादी की ममेरी बहिन थी } खुद ९ वर्ष की उम्र में विधवा हो गयी थी . फिर भी ससुराल गयी और ९० वर्ष की उम्र में उनका निधन हमारे पास १९७० ही हुआ था . ९ वर्ष से ९० वर्ष का सफ़र अपनी ममेरी बहिन की ससुराल में उन्होने काटा क्युकी १३ वर्ष की आयु में ही उनकी ससुराल में या मायके में क़ोई भी नहीं बचा था . उनको क़ोई अपने साथ भी नहीं रखना चाहता था क्युकी विधवा का विलाप क़ोई नहीं सुनना चाहता था . हमारी दादी उनको अपने साथ ले आई थी लेकिन क्या स्थिति थी उनकी इस घर में केवल और केवल एक ऐसी स्त्री की जिसको क़ोई अपने साथ ही नहीं रखना चाहता . उनके खाना पकाने के बरतन तक अलग होते थे . तीज त्यौहार पर उनके लिये खाना सब के खाना खाने के बाद ही परोसा जाता था , उनको ये अधिकार नहीं था की वो एक ही चूल्हे पर अपने लिये "कडाई चढ़ा सके { यानि कुछ तल सके जैसे पूरी } . जब घर के पुरुष और सधवा खा लेगी तब उन्हे तीज त्यौहार पर "पक्का खाना" दिया जाता था .
२ रूपए की पेंशन उनके पति की आती थी , उस पति की जिसे ना कभी उन्होने देखा या जाना था , बहिन के चार बेटों और १ बेटी को बड़ा करने में ही उन्होने अपन जीवन लगा दिया फिर भी उस घर की नहीं कहलाई . बस रही एक विधवा दूसरे घर की जिसको सहारा दिया हमारी दादी ने . दादी की पहली बहू , दूसरी बहू तो उनको एक नौकरानी से ज्यादा नहीं समझती थी क्युकी दोनों तकरीबन निरक्षर थी और "संस्कारवान " थी . वो संस्कार जो समाज ने उनको दिये थे की विधवा बस एक विधवा होती हैं . एक ऐसी स्त्री जिससे दूर रहो .
माँ हमारी दादी की तीसरी बहू थी , जब शादी हुई १९५9 तो लखनऊ विश्विद्यालय में प्रवक्ता थी और उम्र थी महज २२ साल . शादी के बाद माँ ने दादी की ममेरी विधवा बहिन यानी मेरी दादी को बहुत मानसिक संबल दिया क्युकी माँ शिक्षित थी . माँ ने कभी उन्हे विधवा नहीं कहा . जब तक माँ ससुराल में रही दादी के लिये जितना सम्मान अर्जित करवा सकती थी उन्होने किया . १९६५ में माँ सपरिवार दिल्ली आगयी और मेरी दादी को साथ लाई . ५ साल दादी हमारे साथ दिल्ली रही और कहती रही ये उनकी जिंदगी के सबसे बेहतर साल रहे . हमारे घर में उन्हे बिना खिलाये खाना नहीं खाया जा सकता था , जो कुछ भी मिठाई इत्यादि अगर कभी कहीं से आत्ती थी तो सीधे दादी के हाथ में दे दी जाती थी ताकि वो अपने लिये पहले निकाल ले और झूठा ना हो जाए , उनके निकलेने के बाद ही हम उसमे से खा सकते थे .
हमारी माँ के बीमार पडते ही हमारी दादी अपने को ही कोसती { विधवा विलाप इसे कहते हैं संतोष त्रिवेदी , प्रवीण शाह और अरविन्द मिश्र } की वो अपशकुनी हैं जिसके पास रहती हैं वो मर जाता हैं . उस समय वो एक एक उस व्यक्ति को याद करती जो मर गया था और उन्हे अपशकुनी , विधवा बना गया था . माँ उनको कितना भी समझाती पर वो यही कहती दुल्हिन हम अपशकुनी हैं तुमको भी खा जायेगे .
हमे तो दादी के देहांत तक कभी ये पता ही नहीं था की वो हमारी दादी की ममेरी बहिन हैं , विधवा , बेसहारा , अपशकुनी .
जिस दिन दादी नहीं रही तो संस्कार करने की बात हुई , अडोस पड़ोस के लोगो ने पापा से और माँ से कहा की आप इनके बड़े बेटे को बुला कर संस्कार करा दे , या सबसे छोटे को , क्युकी मझला बेटा संस्कार नहीं करता . तब माँ - पिता ने कहा की ये हमारी माँ नहीं मौसी हैं . फिर मेरी माँ ने पूरे सनातन धर्म के रीती रिवाजो से उनका संस्कार पापा से करवाया . पापा क्युकी इन सब में विश्वास नहीं रखते थे इस लिये मैने कहा माँ ने करवाया . १३ दिन हम सब जमीन पर सोये वही खाया जो बाहर से पडोसी दे गए .
क्या होता हैं विधवा होना , ये क़ोई उस परिवार से पूछे जहां ऐसी विधवा होती हैं . क्या संतोष त्रिवेदी जानते हैं या प्रवीण शाह जानते हैं या अरविन्द मिश्र जानते हैं की विधवा को पखाना जाने के समय बिना कपड़ो के जाना होता था . विधवा को कोरा कपड़ा पहनाना माना होता था ,
हमने देखा हैं अपनी दादी को बिना कपड़ो के पखाना जाते . दिल्ली आने पर भी वो जाती थी , हज़ार बार पापा ने उनको माना किया पर नहीं उनके विधवा होने के संस्कार उनको अपने को बदल कर रहने की परमिशन नहीं देते थे . कम से कम वो अपना अगला जीवन अपशकुनी हो कर नहीं गुजारना चाहती थी ,
कितनी आसानी से संतोष त्रिवेदी , प्रवीण शाह और अरविन्द मिश्र ने नारीवादियों के लेखन को ""रंडापा टॉइप स्यापा " " कह दिया , और फिर मुझे समझा दिया की रंडवा का मतलब विधवा विलाप होता हैं . बड़ी आसानी से समझा दिया की विधवा विलाप तो स्त्री पुरुष दोनों के लिये आता हैं . क्या जानते हैं वो विधवा विलाप के बारे में ??
क्यूँ हैं आज समाज में नारी वादियाँ क्युकी उन्हे सुनाई देता हैं विधवा विलाप . देखा हैं मैने अपने घर में और भी बहुत से घरो में क्या होता हैं क्या हैं हमारे समाज में विधवा की स्थिति और क्या होता हैं विधवा विलाप . और आप तो उस विधवा का भी अपमान करते हैं क्युकी आप को तो "रंडापा टॉइप स्यापा " लगता हें विधवा का विलाप .
दादी कहती थी माँ से दुल्हिन वो तो तुम्हारी सास ले आयी सो कम से कम एक छत मिल गयी वरना विधवा को रांड बनाने को सब तैयार रहते हैं .
अगली पोस्ट में लिखूँगी उस विधवा के बारे में जो १९८६ में २५ की उम्र में विधवा हुई , क्या विलाप था उसका और क्या बीती उस पर . शायद संतोष त्रिवेदी , प्रवीण शाह और अरविन्द मिश्र की संवेदन शीलता उनको एहसास कराये की नारीवादी लेखन को "रंडापा टॉइप स्यापा " कहना और फिर उसकी तुलना विधवा विलाप से करना गलत हैं .
मुझे से आप नाराज़ हैं , जील से आप नाराज हैं , अंशुमाला से आप नाराज हैं , मुक्ति से आप नाराज हैं , कोई बात नहीं जितने शब्द , अपशब्द कहने हैं हमारा नाम लेकर कहे , लेकिन हमारी वजह से नारीवादियों को विधवा ना कहे , उनके लेखन को विधवा और "रंडापा टॉइप स्यापा " " कह कर उनका अपमान ना करे
हमे कहे और फिर हमारी प्रतिक्रया के लिये तैयार रहे पर जब भी विधवा शब्द "रंडापा टॉइप स्यापा " " और छिनाल इत्यादि का प्रयोग करने " आम " के लिये नहीं नाम लेकर करे . इतनी हिम्मत रखें .
नारीवादी कह कर उपहास करदेना कितना आसान हैं , गाव के रीती रिवाज की जानकारी देना मुझे , गाँव के मुहावरे समझना मुझे बहुत आसन हैं पर उन सब को ही बदलने और उन सब के खिलाफ आवाज उठाने के लिये ही तो मैने ये नारी ब्लॉग बनाया हैं
शब्दकोष और बोलचाल में नारी के अपमान को , नारी के दोयम के दर्जे को ही तो बदलना हैं .
और जितनी तीव्रता से मुझे समझाया जाता हैं उस से दस गुना ज्यादा तीव्रता से मै बदलाव की बयार को लाने की मुहीम चलाने के लिये प्रेरित होती हूँ
प्रवीण शाह की पोस्ट
संतोष त्रिवेदी का कमेन्ट
अरविन्द मिश्र की पोस्ट
संतोष त्रिवेदी का कमेन्ट
प्रवीण शाह का कमेन्ट
जील की पोस्ट
मेरी दादी
इसीलिये विधवा विलाप एक बहुत ही करुण स्थिति मानी गयी हैं जहां एक स्त्री अपने पति के मरते ही अपनी सुध बुध खो देती हैं और चीख चीख कर अनगर्ल प्रलाप करती हैं क्युकी आने वाले जीवन में समाज उस से बहुत कुछ छीनने वाला हैं .
आज से सालो पहले जब बाल विवाह होते थे , गौना होता था , तब ना जाने कितनी बच्चिया गौने से पहले ही विधवा हो जाती थी और मेरी अपनी दादी { जो मेरी दादी की ममेरी बहिन थी } खुद ९ वर्ष की उम्र में विधवा हो गयी थी . फिर भी ससुराल गयी और ९० वर्ष की उम्र में उनका निधन हमारे पास १९७० ही हुआ था . ९ वर्ष से ९० वर्ष का सफ़र अपनी ममेरी बहिन की ससुराल में उन्होने काटा क्युकी १३ वर्ष की आयु में ही उनकी ससुराल में या मायके में क़ोई भी नहीं बचा था . उनको क़ोई अपने साथ भी नहीं रखना चाहता था क्युकी विधवा का विलाप क़ोई नहीं सुनना चाहता था . हमारी दादी उनको अपने साथ ले आई थी लेकिन क्या स्थिति थी उनकी इस घर में केवल और केवल एक ऐसी स्त्री की जिसको क़ोई अपने साथ ही नहीं रखना चाहता . उनके खाना पकाने के बरतन तक अलग होते थे . तीज त्यौहार पर उनके लिये खाना सब के खाना खाने के बाद ही परोसा जाता था , उनको ये अधिकार नहीं था की वो एक ही चूल्हे पर अपने लिये "कडाई चढ़ा सके { यानि कुछ तल सके जैसे पूरी } . जब घर के पुरुष और सधवा खा लेगी तब उन्हे तीज त्यौहार पर "पक्का खाना" दिया जाता था .
२ रूपए की पेंशन उनके पति की आती थी , उस पति की जिसे ना कभी उन्होने देखा या जाना था , बहिन के चार बेटों और १ बेटी को बड़ा करने में ही उन्होने अपन जीवन लगा दिया फिर भी उस घर की नहीं कहलाई . बस रही एक विधवा दूसरे घर की जिसको सहारा दिया हमारी दादी ने . दादी की पहली बहू , दूसरी बहू तो उनको एक नौकरानी से ज्यादा नहीं समझती थी क्युकी दोनों तकरीबन निरक्षर थी और "संस्कारवान " थी . वो संस्कार जो समाज ने उनको दिये थे की विधवा बस एक विधवा होती हैं . एक ऐसी स्त्री जिससे दूर रहो .
माँ हमारी दादी की तीसरी बहू थी , जब शादी हुई १९५9 तो लखनऊ विश्विद्यालय में प्रवक्ता थी और उम्र थी महज २२ साल . शादी के बाद माँ ने दादी की ममेरी विधवा बहिन यानी मेरी दादी को बहुत मानसिक संबल दिया क्युकी माँ शिक्षित थी . माँ ने कभी उन्हे विधवा नहीं कहा . जब तक माँ ससुराल में रही दादी के लिये जितना सम्मान अर्जित करवा सकती थी उन्होने किया . १९६५ में माँ सपरिवार दिल्ली आगयी और मेरी दादी को साथ लाई . ५ साल दादी हमारे साथ दिल्ली रही और कहती रही ये उनकी जिंदगी के सबसे बेहतर साल रहे . हमारे घर में उन्हे बिना खिलाये खाना नहीं खाया जा सकता था , जो कुछ भी मिठाई इत्यादि अगर कभी कहीं से आत्ती थी तो सीधे दादी के हाथ में दे दी जाती थी ताकि वो अपने लिये पहले निकाल ले और झूठा ना हो जाए , उनके निकलेने के बाद ही हम उसमे से खा सकते थे .
हमारी माँ के बीमार पडते ही हमारी दादी अपने को ही कोसती { विधवा विलाप इसे कहते हैं संतोष त्रिवेदी , प्रवीण शाह और अरविन्द मिश्र } की वो अपशकुनी हैं जिसके पास रहती हैं वो मर जाता हैं . उस समय वो एक एक उस व्यक्ति को याद करती जो मर गया था और उन्हे अपशकुनी , विधवा बना गया था . माँ उनको कितना भी समझाती पर वो यही कहती दुल्हिन हम अपशकुनी हैं तुमको भी खा जायेगे .
हमे तो दादी के देहांत तक कभी ये पता ही नहीं था की वो हमारी दादी की ममेरी बहिन हैं , विधवा , बेसहारा , अपशकुनी .
जिस दिन दादी नहीं रही तो संस्कार करने की बात हुई , अडोस पड़ोस के लोगो ने पापा से और माँ से कहा की आप इनके बड़े बेटे को बुला कर संस्कार करा दे , या सबसे छोटे को , क्युकी मझला बेटा संस्कार नहीं करता . तब माँ - पिता ने कहा की ये हमारी माँ नहीं मौसी हैं . फिर मेरी माँ ने पूरे सनातन धर्म के रीती रिवाजो से उनका संस्कार पापा से करवाया . पापा क्युकी इन सब में विश्वास नहीं रखते थे इस लिये मैने कहा माँ ने करवाया . १३ दिन हम सब जमीन पर सोये वही खाया जो बाहर से पडोसी दे गए .
क्या होता हैं विधवा होना , ये क़ोई उस परिवार से पूछे जहां ऐसी विधवा होती हैं . क्या संतोष त्रिवेदी जानते हैं या प्रवीण शाह जानते हैं या अरविन्द मिश्र जानते हैं की विधवा को पखाना जाने के समय बिना कपड़ो के जाना होता था . विधवा को कोरा कपड़ा पहनाना माना होता था ,
हमने देखा हैं अपनी दादी को बिना कपड़ो के पखाना जाते . दिल्ली आने पर भी वो जाती थी , हज़ार बार पापा ने उनको माना किया पर नहीं उनके विधवा होने के संस्कार उनको अपने को बदल कर रहने की परमिशन नहीं देते थे . कम से कम वो अपना अगला जीवन अपशकुनी हो कर नहीं गुजारना चाहती थी ,
कितनी आसानी से संतोष त्रिवेदी , प्रवीण शाह और अरविन्द मिश्र ने नारीवादियों के लेखन को ""रंडापा टॉइप स्यापा " " कह दिया , और फिर मुझे समझा दिया की रंडवा का मतलब विधवा विलाप होता हैं . बड़ी आसानी से समझा दिया की विधवा विलाप तो स्त्री पुरुष दोनों के लिये आता हैं . क्या जानते हैं वो विधवा विलाप के बारे में ??
क्यूँ हैं आज समाज में नारी वादियाँ क्युकी उन्हे सुनाई देता हैं विधवा विलाप . देखा हैं मैने अपने घर में और भी बहुत से घरो में क्या होता हैं क्या हैं हमारे समाज में विधवा की स्थिति और क्या होता हैं विधवा विलाप . और आप तो उस विधवा का भी अपमान करते हैं क्युकी आप को तो "रंडापा टॉइप स्यापा " लगता हें विधवा का विलाप .
दादी कहती थी माँ से दुल्हिन वो तो तुम्हारी सास ले आयी सो कम से कम एक छत मिल गयी वरना विधवा को रांड बनाने को सब तैयार रहते हैं .
अगली पोस्ट में लिखूँगी उस विधवा के बारे में जो १९८६ में २५ की उम्र में विधवा हुई , क्या विलाप था उसका और क्या बीती उस पर . शायद संतोष त्रिवेदी , प्रवीण शाह और अरविन्द मिश्र की संवेदन शीलता उनको एहसास कराये की नारीवादी लेखन को "रंडापा टॉइप स्यापा " कहना और फिर उसकी तुलना विधवा विलाप से करना गलत हैं .
मुझे से आप नाराज़ हैं , जील से आप नाराज हैं , अंशुमाला से आप नाराज हैं , मुक्ति से आप नाराज हैं , कोई बात नहीं जितने शब्द , अपशब्द कहने हैं हमारा नाम लेकर कहे , लेकिन हमारी वजह से नारीवादियों को विधवा ना कहे , उनके लेखन को विधवा और "रंडापा टॉइप स्यापा " " कह कर उनका अपमान ना करे
हमे कहे और फिर हमारी प्रतिक्रया के लिये तैयार रहे पर जब भी विधवा शब्द "रंडापा टॉइप स्यापा " " और छिनाल इत्यादि का प्रयोग करने " आम " के लिये नहीं नाम लेकर करे . इतनी हिम्मत रखें .
नारीवादी कह कर उपहास करदेना कितना आसान हैं , गाव के रीती रिवाज की जानकारी देना मुझे , गाँव के मुहावरे समझना मुझे बहुत आसन हैं पर उन सब को ही बदलने और उन सब के खिलाफ आवाज उठाने के लिये ही तो मैने ये नारी ब्लॉग बनाया हैं
शब्दकोष और बोलचाल में नारी के अपमान को , नारी के दोयम के दर्जे को ही तो बदलना हैं .
और जितनी तीव्रता से मुझे समझाया जाता हैं उस से दस गुना ज्यादा तीव्रता से मै बदलाव की बयार को लाने की मुहीम चलाने के लिये प्रेरित होती हूँ
प्रवीण शाह की पोस्ट
संतोष त्रिवेदी का कमेन्ट
अरविन्द मिश्र की पोस्ट
संतोष त्रिवेदी का कमेन्ट
प्रवीण शाह का कमेन्ट
जील की पोस्ट
मेरी दादी
September 20, 2012
नारी सशक्तिकरण ,घरेलू हिंसा , यौन शोषण - विषयों पर ब्लॉग पोस्ट आमंत्रित हैं
नारी ब्लॉग की कोशिश हैं की नारी आधारित विषयों पर ब्लॉग पर पोस्ट आये . इस लिये नारी ब्लॉग एक आयोजन कर रहा हैं जिसमे 3 विषयों पर ब्लॉग पोस्ट आमंत्रित हैं .
ये तीन विषय हैं
नारी सशक्तिकरण
घरेलू हिंसा
यौन शोषण
अगर आप ब्लॉग लिखते हैं यानी ब्लॉगर हैं . ध्यान दे ब्लॉगर लिंग - न्यूट्रल शब्द हैं इस लिये आप नारी हो या पुरुष या बच्चे या ट्राँस जेंडर आप इस विमर्श का हिस्सा बन सकते हैं आप की प्रविष्टि पहले से प्रिंट मीडिया यानी अखबार , किताब या मैगजीन मे प्रकशित नहीं होनी चाहिये . आप को पहले वो प्रविष्टि अपने ब्लॉग पर पब्लिश करनी होगी फिर नारी ब्लॉग के लिंक पर .
आयोजन के विषय में पूरी जानकारी इन 3 लिंक पर उपलब्ध हैं
लिंक 1
लिंक 2
ये तीन विषय हैं
नारी सशक्तिकरण
घरेलू हिंसा
यौन शोषण
अगर आप ब्लॉग लिखते हैं यानी ब्लॉगर हैं . ध्यान दे ब्लॉगर लिंग - न्यूट्रल शब्द हैं इस लिये आप नारी हो या पुरुष या बच्चे या ट्राँस जेंडर आप इस विमर्श का हिस्सा बन सकते हैं आप की प्रविष्टि पहले से प्रिंट मीडिया यानी अखबार , किताब या मैगजीन मे प्रकशित नहीं होनी चाहिये . आप को पहले वो प्रविष्टि अपने ब्लॉग पर पब्लिश करनी होगी फिर नारी ब्लॉग के लिंक पर .
आयोजन के विषय में पूरी जानकारी इन 3 लिंक पर उपलब्ध हैं
लिंक 1
लिंक 2
प्रविष्टि भेजने की अंतिम तिथी 15 अक्तूबर 2012
September 19, 2012
ये जो बार बार नारी को "उसका सही स्थान दिखाते हैं " किस कोख से आये हैं भूल जाते हैं .
नारी को शुरू से ही बहुत भावुक माना जाता रहा हैं जो आज के सन्दर्भ में
"इमोशनल फूल " कहा जाता हैं . आप कहेगे इसका क्या मतलब हुआ , भावुक होने से
कोई बेवकूफ नहीं होता हैं . होता हैं जी होता हैं . नारी भावुक हैं इस
लिये ही बेवकूफ हैं .
सालो से सुनती रही हैं "नारी ही नारी की दुश्मन हैं " फिर भी समझती ही नहीं . प्रेक्टिकल हो कर सोचती ही नहीं .
कितना भी समझाओ "बहिनी एक दूसरे के साथ खड़े होना सीखो "
जवाब मिलता हैं "नहीं जी हम तो सही को सही और गलत को गलत कहेगे अब अगर कोई नारी गलत लिखेगी , कहेगी , करेगी , हम तो जी उसके खिलाफ आवाज जरुर उठायेगे जैसे हम पुरुष के खिलाफ उठाते हैं अगर वो गलत लिखता हैं , कहता हैं या करता हैं . "
लो बोलो इसमे नया क्या करदिया . यही तो तुम सदियों से कर रही हो , नारी को तुम कभी "बेनेफिट ऑफ़ डाउट " देती ही नहीं हो . उसको सीधा सूली पर चढ़ा देती हो क्युकी तुम को हमेशा "न्याय प्रिय " रहना और "अच्छे बने रहने " का खब्त सवार रहता हैं .
अब इसमे वैसे तुम्हारी इतनी गलती भी नहीं हैं , यही तो ठोंक ठोंक कर वर्षो तुम्हारे अन्दर कूट कूट कर भर दिया गया हैं . सौम्य रहो , अच्छी बनी रहो और अपनी ही जैसी दुसरो को नीचा दिखाती रहो और अगर उनको नीचा ना भी दिखाना चाहो तो कम से कम उनका साथ तो दो ही मत .
गलत हेमशा गलत ही होता पुरुष करे या स्त्री लेकिन तुमको तो समझाया गया है what is wrong is wrong whether a woman says it or a man says it. in fact it is worse when a woman says it
यानी पुरुष का गलत "माफ़ी के काबिल हैं " स्त्री का नहीं . स्त्री को हमेशा परफेक्ट होना होगा और परफेक्ट वो तभी हो सकती हैं जब वो दुसरो को भी परफेक्ट बनाती रहे . एक दूसरे के खिलाफ खड़ी होती रहे .
सोच कर देखो , आस पास देखो , कितनी जल्दी पुरुष समाज प्रेक्टिकल होजाता हैं और एक दूसरे के साथ खडा हो जाता हैं अगर उन मे से कोई गलत भी होता हैं तो असंख्य उसके साथ खड़े होजाते और फ़ील्डिंग करने लगते हैं . और जो नहीं होते हैं उन पुरुषो को "नारी वाद का हिमायती " कह कर जमात से अलग कर दिया जाता हैं . वही तुम सही , अच्छी बनी रहने के चक्कर में पुरुषो के गलत कृत्यों को इग्नोर करती हो लेकिन नारी की मामूली सी गलती को "सुधारे" बिना नहीं रहती हो .
अब बताओ अगर तुम ये ना करो , तो क्या प्रलय आ जाएगी ?? अगर जिस शिद्दत से तुम "दूसरो की गलती " को इग्नोर करती हो क्या अपने आस पास की नारियों की नहीं कर सकती .
कभी कोई नारीवादियों को "रांड" कह जाता हैं
लिंक
और तुम चुप रहती हो क्युकी तुम "इन जैसो के " बातो को इग्नोर करना चाहती हो .
लेकिन वही अगर किसी स्त्री ने किसी स्त्री के खिलाफ कुछ लिख दिया तो तुम सबसे पहली होती हो जो उस स्त्री को "असंस्कारी से संस्कारी " बनाने की होड़ में सबसे आगे होती हो .
कभी सोच कर देखना अगर तुम अपने आस पास की हर नारी को "बेनिफिट ऑफ़ डाउट " देना शुरू कर दो और हर उस जगह जहां पुरुष समाज , पूरे स्त्री समाज को "रांड " कह रहा हैं वहाँ आवाज उठाने लगो तो क्या तस्वीर होगी आने वाले समाज की .
कभी प्रेक्टिकल बन कर सोचो की संस्कार देने की जरुरत किसी को हैं
कभी प्रेक्टिकल बन कर सोचो की किस के साथ खड़े होने से समाज में सुधार होगा
क्युकी ये जो बार बार नारी को "उसका सही स्थान दिखाते हैं " किस कोख से आये हैं भूल जाते हैं
कम से कम तुम तो उस कोख की लाज रखो .
वैसे जानती हूँ बोलोगी तो तुम आज भी नहीं पर सावधान हो जाओ , इस लिये लिंक के साथ सूचना दे रही हूँ
हो सकता आज जितनी "रांड " नारिवादियाँ हैं कल को "छिनाल" कह दी जाए . जो सुहागिने हैं ब्लॉग जगत में वो सब "विधवा " बना दी जाए . उस से पहले अगर तुम ब्लॉग जगत से जाना चाहो तो चली जाओ वरना तुम्हारी बेटियाँ शायद ही तुमको माफ़ कर सके
लिंक क्लिक करो
दिस्क्लैमेर
"रांड " शब्द उस विधवा के लिये इस्तमाल होता हैं जो विधवा होने के बाद अपनी दैहिक भूख मिटाने के लिये पुरुष का इस्तमाल करती हैं .
"रांड" शब्द भ्रष्ट हिंदी का शब्द हैं और बेहद अपमान जनक हैं एक गाली हैं .
ज़रा इस शब्द को गूगल कर के देखे , ये कहां कहां प्रयोग होता हैं और किस किस रूप में और किस किस सन्दर्भ में https://www.google.co.in/search?q=%22%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A1%22+&ie=utf-8&oe=utf-8&aq=t&rls=org.mozilla:en-US:official&client=firefox-a
सालो से सुनती रही हैं "नारी ही नारी की दुश्मन हैं " फिर भी समझती ही नहीं . प्रेक्टिकल हो कर सोचती ही नहीं .
कितना भी समझाओ "बहिनी एक दूसरे के साथ खड़े होना सीखो "
जवाब मिलता हैं "नहीं जी हम तो सही को सही और गलत को गलत कहेगे अब अगर कोई नारी गलत लिखेगी , कहेगी , करेगी , हम तो जी उसके खिलाफ आवाज जरुर उठायेगे जैसे हम पुरुष के खिलाफ उठाते हैं अगर वो गलत लिखता हैं , कहता हैं या करता हैं . "
लो बोलो इसमे नया क्या करदिया . यही तो तुम सदियों से कर रही हो , नारी को तुम कभी "बेनेफिट ऑफ़ डाउट " देती ही नहीं हो . उसको सीधा सूली पर चढ़ा देती हो क्युकी तुम को हमेशा "न्याय प्रिय " रहना और "अच्छे बने रहने " का खब्त सवार रहता हैं .
अब इसमे वैसे तुम्हारी इतनी गलती भी नहीं हैं , यही तो ठोंक ठोंक कर वर्षो तुम्हारे अन्दर कूट कूट कर भर दिया गया हैं . सौम्य रहो , अच्छी बनी रहो और अपनी ही जैसी दुसरो को नीचा दिखाती रहो और अगर उनको नीचा ना भी दिखाना चाहो तो कम से कम उनका साथ तो दो ही मत .
गलत हेमशा गलत ही होता पुरुष करे या स्त्री लेकिन तुमको तो समझाया गया है what is wrong is wrong whether a woman says it or a man says it. in fact it is worse when a woman says it
यानी पुरुष का गलत "माफ़ी के काबिल हैं " स्त्री का नहीं . स्त्री को हमेशा परफेक्ट होना होगा और परफेक्ट वो तभी हो सकती हैं जब वो दुसरो को भी परफेक्ट बनाती रहे . एक दूसरे के खिलाफ खड़ी होती रहे .
सोच कर देखो , आस पास देखो , कितनी जल्दी पुरुष समाज प्रेक्टिकल होजाता हैं और एक दूसरे के साथ खडा हो जाता हैं अगर उन मे से कोई गलत भी होता हैं तो असंख्य उसके साथ खड़े होजाते और फ़ील्डिंग करने लगते हैं . और जो नहीं होते हैं उन पुरुषो को "नारी वाद का हिमायती " कह कर जमात से अलग कर दिया जाता हैं . वही तुम सही , अच्छी बनी रहने के चक्कर में पुरुषो के गलत कृत्यों को इग्नोर करती हो लेकिन नारी की मामूली सी गलती को "सुधारे" बिना नहीं रहती हो .
अब बताओ अगर तुम ये ना करो , तो क्या प्रलय आ जाएगी ?? अगर जिस शिद्दत से तुम "दूसरो की गलती " को इग्नोर करती हो क्या अपने आस पास की नारियों की नहीं कर सकती .
कभी कोई नारीवादियों को "रांड" कह जाता हैं
लिंक
और तुम चुप रहती हो क्युकी तुम "इन जैसो के " बातो को इग्नोर करना चाहती हो .
लेकिन वही अगर किसी स्त्री ने किसी स्त्री के खिलाफ कुछ लिख दिया तो तुम सबसे पहली होती हो जो उस स्त्री को "असंस्कारी से संस्कारी " बनाने की होड़ में सबसे आगे होती हो .
कभी सोच कर देखना अगर तुम अपने आस पास की हर नारी को "बेनिफिट ऑफ़ डाउट " देना शुरू कर दो और हर उस जगह जहां पुरुष समाज , पूरे स्त्री समाज को "रांड " कह रहा हैं वहाँ आवाज उठाने लगो तो क्या तस्वीर होगी आने वाले समाज की .
कभी प्रेक्टिकल बन कर सोचो की संस्कार देने की जरुरत किसी को हैं
कभी प्रेक्टिकल बन कर सोचो की किस के साथ खड़े होने से समाज में सुधार होगा
क्युकी ये जो बार बार नारी को "उसका सही स्थान दिखाते हैं " किस कोख से आये हैं भूल जाते हैं
कम से कम तुम तो उस कोख की लाज रखो .
वैसे जानती हूँ बोलोगी तो तुम आज भी नहीं पर सावधान हो जाओ , इस लिये लिंक के साथ सूचना दे रही हूँ
हो सकता आज जितनी "रांड " नारिवादियाँ हैं कल को "छिनाल" कह दी जाए . जो सुहागिने हैं ब्लॉग जगत में वो सब "विधवा " बना दी जाए . उस से पहले अगर तुम ब्लॉग जगत से जाना चाहो तो चली जाओ वरना तुम्हारी बेटियाँ शायद ही तुमको माफ़ कर सके
लिंक क्लिक करो
दिस्क्लैमेर
"रांड " शब्द उस विधवा के लिये इस्तमाल होता हैं जो विधवा होने के बाद अपनी दैहिक भूख मिटाने के लिये पुरुष का इस्तमाल करती हैं .
"रांड" शब्द भ्रष्ट हिंदी का शब्द हैं और बेहद अपमान जनक हैं एक गाली हैं .
ज़रा इस शब्द को गूगल कर के देखे , ये कहां कहां प्रयोग होता हैं और किस किस रूप में और किस किस सन्दर्भ में https://www.google.co.in/search?q=%22%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A1%22+&ie=utf-8&oe=utf-8&aq=t&rls=org.mozilla:en-US:official&client=firefox-a
September 18, 2012
हिंदी ब्लॉग पोस्ट आयोजन 1 - 23 प्रविष्टियाँ आ चुकी हैं , भेजने वाले ब्लॉगर अपनी प्रविष्टि चेक कर ले और विषय बताये
इस आयोजन के लिये प्रविष्टियाँ आनी शुरू हो गयी हैं . मुझे सुखद आश्चर्य हैं की लोग इस से जुड़ रहे हैं .
आयोजन के विषय में पूरी जानकारी इन 3 लिंक पर उपलब्ध हैं
लिंक 1
लिंक 2
प्रविष्टि भेजने की अंतिम तिथी 15 अक्तूबर 2012
ब्लॉग पोस्ट का लिंक { लेख या
कविता } जो निम्न विषय पर हो
नारी सशक्तिकरण
घरेलू हिंसा
यौन शोषण
ऊपर दिये हुआ लिंक 1 के कमेन्ट मे पेस्ट कर दे
नारी सशक्तिकरण
घरेलू हिंसा
यौन शोषण
ऊपर दिये हुआ लिंक 1 के कमेन्ट मे पेस्ट कर दे
जहां आप ने लिंक पोस्ट किया हैं वहाँ का ईमेल सब्सक्रिप्शन भी ले ले ताकि नयी ईमेल आप को मिलती रहे
इसके अलावा इस से सम्बंधित जानकारियाँ नारी ब्लॉग पर आती रहेगी इस लिये इस ब्लॉग की नयी पोस्ट पर भी नज़र रखे
आप के मन में कोई भी प्रश्न या विचार हो या सुझाव हो तो ईमेल की जगह पोस्ट पर ही कमेन्ट दे दे .
आयोजक हर कमेन्ट को पढ़ते हैं .
आप इस आयोजन में और किस प्रकार से जुड़ना चाहेगे ?? संभव और मन हो तो बताये .
अभी तक प्राप्त प्रविष्टियों के लिंक नीचे हैं , जिन ब्लॉगर ने अपने लिंक का विषय नहीं बताया हैं वो कृपा कर के बता दे . जो प्रविष्टि नहीं भेज सके हैं भेज दे , ऊपर दिये विषयों पर हम ब्लॉग प्रविष्टियाँ चाहिये कम से कम 100 ताकि ये आयोजन किया जा सके , क्युकी ये प्रतियोगिता नहीं हैं इस लिये आप इसकी जानकारी और मित्रो को भी दे जो ब्लॉग लिखते हैं ताकि वो भी अपनी प्रविष्टि भेज सके .
1
2
http://pushymitr.blogspot.in/2012/07/blog-post_10.html
3
http://ajaykumarjha.com/archives/2321...
4
Vibha Rani ShrivastavaSeptember 5, 2012 9:23 AM
http://vranishrivastava1.blogspot.in/2012/02/blog-post.html यौन शोषण
5
http://vandana-zindagi.blogspot.in/2012/01/blog-post_6855.html
6
Vijay Kumar SappattiSeptember 5, 2012 12:14 PM
http://poemsofvijay.blogspot.in/2010/09/blog-post.html
http://poemsofvijay.blogspot.in/2010/09/blog-post.html
7
http://alokitajigisha.blogspot.in/2011/09/blog-post_15.html
8
http://soniyabgaur.blogspot.in/2012/07/blog-post_31.html
9
http://lifeteacheseverything.blogspot.in/2012/07/blog-post_14.html
10
http://gullakapni.blogspot.in/2011/12/blog-post.html
11
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/premras/entry/family-prostitution
12
http://rashmiravija.blogspot.in/2010/09/blog-post_29.html घरेलू हिंसा
13
http://devendra-bechainaatma.blogspot.in/2012/05/blog-post_25.html
14
dheerendra11.blogspot.in/2011/11/blog-post_07.html#links
15
राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ )September 9, 2012 10:10 PM
http://kavikeekavita.blogspot.in/2011/01/blog-post_19.htm
16
http://anamika7577.blogspot.in/2011/12/blog-post_30.html
17
http://jindagikeerahen.blogspot.in/2011/06/blog-post_29.html
18
mridula pradhanSeptember 10, 2012 1:59 PM
http://blogmridulaspoem.blogspot.in/2012/04/blog-post.html
19
http://yehmerajahaan.blogspot.in/2012_04_01_archive.html नारी सशक्तीकरण
20
http://sonal-rastogi.blogspot.in/2012/07/blog-post_10.html
21
http://shobhanaonline.blogspot.in/2011_11_01_archive.html
22
http://mktvfilms.blogspot.in/2011/06/blog-post_27.html(यौन शोषण)
23
September 15, 2012
September 14, 2012
एक प्रश्न शिखा वार्ष्णेय से ???
एक प्रश्न शिखा वार्ष्णेय से ???
मैडम
ज़रा ये तो बताये , किसी सम्मान समारोह में आप को मंच पर बैठने का अधिकार किस ने और कब दिया ???
मैडम
ज़रा ये तो बताये , किसी सम्मान समारोह में आप को मंच पर बैठने का अधिकार किस ने और कब दिया ???
September 12, 2012
September 11, 2012
हिंदी ब्लॉग पोस्ट संकलन , आयोजन 1 - जानकारी
इस आयोजन के लिये प्रविष्टियाँ आनी शुरू हो गयी हैं . मुझे सुखद आश्चर्य हैं की लोग इस से जुड़ रहे हैं .
आयोजन के विषय में पूरी जानकारी इन 3 लिंक पर उपलब्ध हैं
लिंक 1
लिंक 2
प्रविष्टि भेजने की अंतिम तिथी 15 अक्तूबर 2012
ब्लॉग पोस्ट का लिंक { लेख या
कविता } जो निम्न विषय पर हो
नारी सशक्तिकरण
घरेलू हिंसा
यौन शोषण
ऊपर दिये हुआ लिंक 1 के कमेन्ट मे पेस्ट कर दे
नारी सशक्तिकरण
घरेलू हिंसा
यौन शोषण
ऊपर दिये हुआ लिंक 1 के कमेन्ट मे पेस्ट कर दे
जहां आप ने लिंक पोस्ट किया हैं वहाँ का ईमेल सब्सक्रिप्शन भी ले ले ताकि नयी ईमेल आप को मिलती रहे
इसके अलावा इस से सम्बंधित जानकारियाँ नारी ब्लॉग पर आती रहेगी इस लिये इस ब्लॉग की नयी पोस्ट पर भी नज़र रखे
आप के मन में कोई भी प्रश्न या विचार हो या सुझाव हो तो ईमेल की जगह पोस्ट पर ही कमेन्ट दे दे .
आयोजक हर कमेन्ट को पढ़ते हैं .
आप इस आयोजन में और किस प्रकार से जुड़ना चाहेगे ?? संभव और मन हो तो बताये .
September 09, 2012
हिंदी ब्लॉग पोस्ट संकलन , आयोजन 1 , विषय नारी - नियम और प्रक्रिया सम्बंधित कुछ जानकारियाँ
इस आयोजन के लिये प्रविष्टियाँ आनी शुरू हो गयी हैं . मुझे सुखद आश्चर्य हैं की लोग इस से जुड़ रहे हैं .
आयोजन के विषय में पूरी जानकारी इन दो लिंक पर उपलब्ध हैं
लिंक 1
लिंक 2
आप को बस इतना करना हैं की प्रविष्टि भेजने की अंतिम तिथी 15 सितम्बर 2012 हैं की जगह 15 अक्तूबर मान ले और अपनी ब्लॉग पोस्ट का लिंक { लेख या कविता } जो निम्न विषय पर हो
नारी सशक्तिकरण
घरेलू हिंसा
यौन शोषण
ऊपर दिये हुआ लिंक 1 के कमेन्ट मे पेस्ट कर दे
नियम और प्रक्रिया सम्बंधित कुछ जानकारियाँ
- केवल एक ही ब्लॉग पोस्ट का लिंक दे
- कविता या लेख
- पोस्ट का लिंक दे केवल ब्लॉग यु आर एल नहीं चाहिये
- लिंक के साथ ये अवश्य लिखे की लिंक किस दिये हुए तीन विषयों में से किस के लिये हैं
- केवल और केवल एक प्रविष्टि आमंत्रित हैं जिन पाठको ने दो प्रविष्टि दी हैं उनकी पहली प्रविष्टि इस आयोजन में शामिल कर दी जाएगी और दूसरी निरस्त्र मानी जाएगी . अंतिम तिथि तक आप अपनी प्रविष्टि डिलीट करके नयी भी दे सकते हैं .
- पोस्ट ब्लॉग पर छपी होनी चाहिये , पहले से प्रिंट मीडिया में छपे लेख / कविता { यानी किताब , या न्यूज़ पेपर इत्यादि } जिन्हे आप ने दुबारा ब्लॉग पर दिया हो वो नहीं मान्य होंगे . हां अगर पहले ब्लॉग पर पोस्ट किया हैं बाद में किताब में / न्यूज़ पेपर इत्यादि में दिया है तो वो मान्य हैं
- 100 पोस्ट आते ही प्रविष्टियाँ बंद कर दी जाएगी . नया ब्लॉग बना दिया जायेगा और आप अपनी पसंद के निर्णायक पेज के नीचे अपनी पोस्ट को पेस्ट कर के आंकलित करवा सकेगे . निर्णायक 100 अंक में से नंबर देंगे . निर्णायक आकलन करने से पहले अगर चाहेगे तो कमेन्ट करके कोई प्रश्न भी कर सकते हैं पोस्ट सम्बंधित . अपनी 25 पोस्ट का निर्णय निर्णायक एक निश्चित तिथि पर हर पोस्ट में कमेन्ट मे देंगे या मुझे ईमेल कर देगे और मै वो ईमेल उनके ईमेल आईडी के कमेन्ट मे पेस्ट कर दूंगी . लेकिन 100 पोस्ट का रिजल्ट या अंक एक ही दिन पेस्ट होंगे
- उसके बाद एक और नया ब्लॉग बनेगा जहां 12 टॉप पोस्ट पुनः प्रकाशित होगी और अब पाठक उस पर अंक देगें . केवल उन्ही पाठक के अंक जुडेगे जो 12 मे से हर पोस्ट को अंक देंगे . पाठक को ये अधिकार नहीं होगा की किसी को अंक दे किसी को ना दे . पाठक भी अंक देने से पहले प्रश्न कर सकता हैं . अंक देने और प्रश्न पूछने का माध्यम भी कमेन्ट ही होगा . 0-5 तक के अंक पाठक नहीं दे सकेगे .
- अंत में निर्णायक के अंक और पाठक के अंक जोड़ कर रिजल्ट खुद बा खुद सामने होगा
इसके
बाद एक मीट मे इन 12 पोस्ट को पढने के लिये लेखक आमंत्रित किये जायेगे .
ना आ सकने की स्थिति मे वो दिल्ली मे रहने वाले अपने किसी भी मित्र
ब्लोग्गर को अपनी पोस्ट पढने के लिये नोमिनेट कर सकते हैं . वहाँ उपस्थित
दर्शक जो ब्लोग्गर भी होंगे और किसी कॉलेज के छात्र भी वो किस प्रकार से
अपनी पसंद , अंक के रूप में दे सकेगे इस पर मे जल्दी ही सूचित करुँगी या
केवल 12 पोस्ट पढ़ी जाएगी , विमर्श होगा और जो तीन टॉप पूर्व घोषित हैं उनकी
घोषणा होंगी, या वहां उपस्थित ब्लोगर अंक दे सकेगे बस अभी इस पर मंथन चल
रहा हैं
तब तक अपनी पोस्ट भेज दे और अपने ब्लोगर मित्र को भी कह दे की वो भी भेज दे
आप नारी ब्लॉग की इस पोस्ट को अपने ब्लॉग पर लिंक के साथ दे सकते हैं .
September 08, 2012
हिंदी ब्लॉग पोस्ट संकलन , आयोजन 1 , विषय नारी
हिंदी ब्लॉग पोस्ट संकलन , आयोजन 1 , विषय नारी
इस आयोजन के लिये प्रविष्टियाँ आनी शुरू हो गयी हैं . मुझे सुखद आश्चर्य हैं की लोग इस से जुड़ रहे हैं .
आयोजन के विषय में पूरी जानकारी इन दो लिंक पर उपलब्ध हैं
लिंक 1
लिंक 2
आप को बस इतना करना हैं की प्रविष्टि भेजने की अंतिम तिथी 15 सितम्बर 2012 हैं की जगह 15 अक्तूबर मान ले और अपनी ब्लॉग पोस्ट का लिंक { लेख या कविता } जो निम्न विषय पर हो
नारी सशक्तिकरण
घरेलू हिंसा
यौन शोषण
ऊपर दिये हुआ लिंक 1 के कमेन्ट मे पेस्ट कर दे
अंतिम तिथि के बाद एक नया ब्लॉग बना कर आप को सूचित कर दिया जायेगा और फिर आप अपनी पूरी पोस्ट वहाँ दे सकेगे
केवल और केवल एक प्रविष्टि आमंत्रित हैं जिन पाठको ने दो प्रविष्टि दी हैं उनकी पहली प्रविष्टि इस आयोजन में शामिल कर दी जाएगी और दूसरी निरस्त्र मानी जाएगी . अंतिम तिथि तक आप अपनी प्रविष्टि डिलीट करके नयी भी दे सकते हैं .
अब एक राय चाहिये , मै चाहती हूँ ब्लॉग पोस्ट प्रषित करने वाले को ये अधिकार हो की वो सार्वजनिक मंच पर यानी जब आयोजन का ब्लॉग बन जाये , ब्लॉग पोस्ट उस पर संकलित कर दी जाये , अपनी पोस्ट के साथ ये बता सके की निर्णायक मंडल के किस सदस्य से वो अपनी पोस्ट आंकलित करवाने का इच्छुक हैं .
मुझे लगता हैं , हर लेखक ये समझता हैं कौन सा पाठक उसके लिखे को वही / सही समझता हैं जो उसने लिखा हैं , इस लिये वो निर्णायक मंडल से अपनी पसंद का पाठक चुन ले . हर निर्णायक के पास बस 25 प्रविष्टियाँ होंगी इस लिये जैसे ही प्रविष्टि संख्या पूरी होगयी किसी निर्णायक की फी ब्लोगर उसको अपना निर्णायक नहीं घोषित कर सकेगा
इस आईडिया की कमजोरियां और और मजबुतिया { strength &threats } बता दे ताकि इस पर विचार कर सकूँ
इस आयोजन के लिये प्रविष्टियाँ आनी शुरू हो गयी हैं . मुझे सुखद आश्चर्य हैं की लोग इस से जुड़ रहे हैं .
आयोजन के विषय में पूरी जानकारी इन दो लिंक पर उपलब्ध हैं
लिंक 1
लिंक 2
आप को बस इतना करना हैं की प्रविष्टि भेजने की अंतिम तिथी 15 सितम्बर 2012 हैं की जगह 15 अक्तूबर मान ले और अपनी ब्लॉग पोस्ट का लिंक { लेख या कविता } जो निम्न विषय पर हो
नारी सशक्तिकरण
घरेलू हिंसा
यौन शोषण
ऊपर दिये हुआ लिंक 1 के कमेन्ट मे पेस्ट कर दे
अंतिम तिथि के बाद एक नया ब्लॉग बना कर आप को सूचित कर दिया जायेगा और फिर आप अपनी पूरी पोस्ट वहाँ दे सकेगे
केवल और केवल एक प्रविष्टि आमंत्रित हैं जिन पाठको ने दो प्रविष्टि दी हैं उनकी पहली प्रविष्टि इस आयोजन में शामिल कर दी जाएगी और दूसरी निरस्त्र मानी जाएगी . अंतिम तिथि तक आप अपनी प्रविष्टि डिलीट करके नयी भी दे सकते हैं .
अब एक राय चाहिये , मै चाहती हूँ ब्लॉग पोस्ट प्रषित करने वाले को ये अधिकार हो की वो सार्वजनिक मंच पर यानी जब आयोजन का ब्लॉग बन जाये , ब्लॉग पोस्ट उस पर संकलित कर दी जाये , अपनी पोस्ट के साथ ये बता सके की निर्णायक मंडल के किस सदस्य से वो अपनी पोस्ट आंकलित करवाने का इच्छुक हैं .
मुझे लगता हैं , हर लेखक ये समझता हैं कौन सा पाठक उसके लिखे को वही / सही समझता हैं जो उसने लिखा हैं , इस लिये वो निर्णायक मंडल से अपनी पसंद का पाठक चुन ले . हर निर्णायक के पास बस 25 प्रविष्टियाँ होंगी इस लिये जैसे ही प्रविष्टि संख्या पूरी होगयी किसी निर्णायक की फी ब्लोगर उसको अपना निर्णायक नहीं घोषित कर सकेगा
इस आईडिया की कमजोरियां और और मजबुतिया { strength &threats } बता दे ताकि इस पर विचार कर सकूँ
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