क्या किसी महिला को देख कर आपने सिटी बजायी हैं , फिकरे कसे हैं , गाली दी हैं इस लिये क्युकी वो महिला हैं ??
तो ये मज़ाक नहीं हैं ये यौन शोषण हैं यानी सेक्सुअल हरासमेंट .
स्त्री - पुरुष में बहस के दौरान अगर दोनों अपशब्द कहते हैं तो ठीक हैं लेकिन अगर अपशब्द "लिंग आधारित " हैं तो वो सेक्सुअल हरासमेंट हैं . किसी महिला को ये याद दिलाना की वो महिला हैं इस लिये उसके "अक्ल " नहीं है जैसे "औरतो जैसी बात करना " भी सेक्सुअल हरासमेंट हैं
सेक्सुअल हरासमेंट , जेंडर बायस को दर्शाता हैं , जेंडर बायस यानी स्त्री को कमतर मानना महज इस लिये क्युकी आप पुरुष हैं
रुकिये स्त्री को कमतर मानना केवल और केवल पुरुष नहीं करते हैं , महिला उन से भी ज्यादा करती हैं . हमारे समाज की कंडिशनिंग ही ऐसी हैं की वो नारी को केवल और केवल "खूंटे से बंधी गाय " की तरह देखना चाहती हैं . { आज आर एस एस के प्रधान जी फरमा रहे हैं घर में गाय पाल ले , आप महिला की इज्ज़त करना सीख जायेगे यानी खूंटे से बंधी गाय , जिसको आप दुहते रहते हैं }
नारी ब्लॉग पर जब भी जेंडर बायस पर लिखा , सेक्सुअल हरासमेंट पर लिखा जवाबी पोस्टो में समझया गया की सेक्सुअल हरासमेंट क्या होता हैं . जो बताया गया उसके अनुसार जब तक आप को छुआ ना जाये तब तक वो सेक्सुअल हरासमेंट नहीं होता हैं !!!!! जब समझ इतनी हैं तो सेक्सुअल हरासमेंट तो मज़ाक ही हैं और जिनको इस मज़ाक से आपत्ति हैं वो हास्य को नहीं समझते .
भारत महान में हर घर में हर लड़की किसी ना किसी समय इस सब से रूबरू होती हैं , घर में रहती हैं तो भी और नौकरी करती हैं तो भी .
भद्दे हंसी माजक , गंदे शब्द , सिटी , कोहनी , चुटकी सब एक प्राकर का मोलेस्टेशन हैं जिसकी सुनवाई किसी पुलिस चोकी में तब होंगी जब भारतीये समाज ये मानने को तैयार हो की ये सब गलत हैं . सब इसे विपरीत लिंग का आकर्षण कह कर "मुस्कुरा " देते हैं . एक ऐसी मुस्कराहट जिसका जवाब केवल और केवल "थप्पड़ " ही होता हैं .
आज जगह जगह साइबर कैफे खुल गए अब साइबर कैफे मे जा कर वो वर्ग जिसको हम " लोअर मिडिल क्लास या बिलों पोवर्टी लाइन , या निम्न वर्ग " कहते हैं प्रोनो देखता हैं . प्रोनो देख कर उसको लगता हैं की
एब्नार्मल सेक्स करना फन हैं . प्रोनो में सब फिल्म की तरह होता हैं यानी जो दिखता हैं वो सब फेक हैं नकली हैं . आज हमारे घरो में भी प्रोनो खुल कर देखा जाता हैं . किसी भी कंप्यूटर पर ये चेक करना बड़ा आसन हैं , आप को गूगल सर्च में कुछ शब्द डालने हैं और साईट खुलते ही आप को पता चल जाता हैं की ये साईट कितनी बार पहले खुली हैं . कभी अपने घर के कंप्यूटर को चेक करिये .
एब्नार्मल सेक्स के कारण आज एक लड़की अस्पताल में पड़ी हैं और जीने के लिये लड़ रही हैं . जंग लगी लोहे की रोड उसके अन्दर डाली गयी हैं ताकि " फन " मिल सके दिख सके की एक स्त्री शरीर किस प्रकार से "फन" पाता हैं यानी कैसे "सेक्सुअली अराउज " होता हैं
ये सब मै इस लिये लिख रही हूँ क्युकी मुझ से मेरी माँ जो 75 वर्ष की उन्होंने पूछा की रेप से आंते कैसे बाहर आ गई ? मेरा जवाब था माँ आप नाहीं जाने क्युकी आप समझ नहीं सकती ये रेप नहीं था . फिर भी उनकी जिद्द पर उन्हे बताया तो वो सन्न रह गयी और बोली ऐसा भी होता हैं क्या ??
जब पहली पोस्ट इस केस के बारे में डाली तब भी लिखना चाहती थी पर सोचा सब को समझ आ ही गया होगा पर कमेन्ट से लगा नहीं पता हैं अभी भी बहुत से लोगो को
आप सब से आग्रह हैं एक बार अपने घरो में अपने बच्चो से बात करे . उनमे से बहुत इस सब को जानते हैं . हो सके तो उनके साथ बैठ कर अपने बेटो को ख़ास कर समझाए
और क्या लिखूं ???
तो ये मज़ाक नहीं हैं ये यौन शोषण हैं यानी सेक्सुअल हरासमेंट .
स्त्री - पुरुष में बहस के दौरान अगर दोनों अपशब्द कहते हैं तो ठीक हैं लेकिन अगर अपशब्द "लिंग आधारित " हैं तो वो सेक्सुअल हरासमेंट हैं . किसी महिला को ये याद दिलाना की वो महिला हैं इस लिये उसके "अक्ल " नहीं है जैसे "औरतो जैसी बात करना " भी सेक्सुअल हरासमेंट हैं
सेक्सुअल हरासमेंट , जेंडर बायस को दर्शाता हैं , जेंडर बायस यानी स्त्री को कमतर मानना महज इस लिये क्युकी आप पुरुष हैं
रुकिये स्त्री को कमतर मानना केवल और केवल पुरुष नहीं करते हैं , महिला उन से भी ज्यादा करती हैं . हमारे समाज की कंडिशनिंग ही ऐसी हैं की वो नारी को केवल और केवल "खूंटे से बंधी गाय " की तरह देखना चाहती हैं . { आज आर एस एस के प्रधान जी फरमा रहे हैं घर में गाय पाल ले , आप महिला की इज्ज़त करना सीख जायेगे यानी खूंटे से बंधी गाय , जिसको आप दुहते रहते हैं }
नारी ब्लॉग पर जब भी जेंडर बायस पर लिखा , सेक्सुअल हरासमेंट पर लिखा जवाबी पोस्टो में समझया गया की सेक्सुअल हरासमेंट क्या होता हैं . जो बताया गया उसके अनुसार जब तक आप को छुआ ना जाये तब तक वो सेक्सुअल हरासमेंट नहीं होता हैं !!!!! जब समझ इतनी हैं तो सेक्सुअल हरासमेंट तो मज़ाक ही हैं और जिनको इस मज़ाक से आपत्ति हैं वो हास्य को नहीं समझते .
भारत महान में हर घर में हर लड़की किसी ना किसी समय इस सब से रूबरू होती हैं , घर में रहती हैं तो भी और नौकरी करती हैं तो भी .
भद्दे हंसी माजक , गंदे शब्द , सिटी , कोहनी , चुटकी सब एक प्राकर का मोलेस्टेशन हैं जिसकी सुनवाई किसी पुलिस चोकी में तब होंगी जब भारतीये समाज ये मानने को तैयार हो की ये सब गलत हैं . सब इसे विपरीत लिंग का आकर्षण कह कर "मुस्कुरा " देते हैं . एक ऐसी मुस्कराहट जिसका जवाब केवल और केवल "थप्पड़ " ही होता हैं .
आज जगह जगह साइबर कैफे खुल गए अब साइबर कैफे मे जा कर वो वर्ग जिसको हम " लोअर मिडिल क्लास या बिलों पोवर्टी लाइन , या निम्न वर्ग " कहते हैं प्रोनो देखता हैं . प्रोनो देख कर उसको लगता हैं की
एब्नार्मल सेक्स करना फन हैं . प्रोनो में सब फिल्म की तरह होता हैं यानी जो दिखता हैं वो सब फेक हैं नकली हैं . आज हमारे घरो में भी प्रोनो खुल कर देखा जाता हैं . किसी भी कंप्यूटर पर ये चेक करना बड़ा आसन हैं , आप को गूगल सर्च में कुछ शब्द डालने हैं और साईट खुलते ही आप को पता चल जाता हैं की ये साईट कितनी बार पहले खुली हैं . कभी अपने घर के कंप्यूटर को चेक करिये .
एब्नार्मल सेक्स के कारण आज एक लड़की अस्पताल में पड़ी हैं और जीने के लिये लड़ रही हैं . जंग लगी लोहे की रोड उसके अन्दर डाली गयी हैं ताकि " फन " मिल सके दिख सके की एक स्त्री शरीर किस प्रकार से "फन" पाता हैं यानी कैसे "सेक्सुअली अराउज " होता हैं
ये सब मै इस लिये लिख रही हूँ क्युकी मुझ से मेरी माँ जो 75 वर्ष की उन्होंने पूछा की रेप से आंते कैसे बाहर आ गई ? मेरा जवाब था माँ आप नाहीं जाने क्युकी आप समझ नहीं सकती ये रेप नहीं था . फिर भी उनकी जिद्द पर उन्हे बताया तो वो सन्न रह गयी और बोली ऐसा भी होता हैं क्या ??
जब पहली पोस्ट इस केस के बारे में डाली तब भी लिखना चाहती थी पर सोचा सब को समझ आ ही गया होगा पर कमेन्ट से लगा नहीं पता हैं अभी भी बहुत से लोगो को
आप सब से आग्रह हैं एक बार अपने घरो में अपने बच्चो से बात करे . उनमे से बहुत इस सब को जानते हैं . हो सके तो उनके साथ बैठ कर अपने बेटो को ख़ास कर समझाए
और क्या लिखूं ???
samajhne walo ko ishara hi kafi hai
ReplyDelete:(
ReplyDeleteदुखद मगर विचारणीय
ReplyDeleteआपने जो भी लिखा वो हर्फ़-बा-हर्फ़ एक दम सच है | आज बात करने की बहुत ज़रूरत है घरों में | खास तौर पर उन घरों में जहाँ माता पिता और बच्चों के बीच बातचीत न के बराबर ही होती है | और जो लोग ऐसे जघन्य अपराध करते हैं क्या आप यह कहेंगी के उनके माता पिता ने उन्हें ऐसे संस्कार दिये हैं या उनसे कभी बात नहीं की है? समाज में ऐसी भी घटनाएँ हुई हैं जिसमें गुनाहगार संपन्न परिवारों से थे | पढ़े लिखे थे | उच्च वर्ग के थे | हाई फाई सोसाइटी के थे | मेरी बात कहने का अर्थ सिर्फ इतना है के माता पिता बच्चों से लाख बात कर लें, उन्हें अच्छी शिक्षा, संस्कार, लालन पालन प्रदान कर लें, लेकिन जिस व्यक्ति की प्रवृति ही अपराधिक होती वो कभी भी कहीं भी कुछ भी कर सकता है | आपने पोर्न की बात कही आज पोर्न कौन नहीं देखता, आज इस कलयुग में १२-१३ साल का बच्चा भी जनता है के पोर्न क्या होता है | कहीं यह बंद कमरों में देखा जाता है कहीं यह खुलेआम मोबाइल फोन में | आपने और मैंने भी इससे देखा है | पर क्या हमारी मानसिकता इस प्रकार की ओपन सेक्स वाली है ? क्या हम और आप जैसे वर्ग के लोगों में अनैतिक और अब्नोर्मल सेक्स करने और देखने की इच्छा रखने वालों की कमी है? फिर किसी एक वर्ग के ऊपर आप ऐसे कैसे ऊँगली उठा सकती हैं ? इस सन्दर्भ में मेरा एक और सवाल भी है के लड़कियां भी आजकल वो सब कुछ करती हैं जो तथाकथित लकड़े करते हैं ऐसा कहा गया है | तो मेरा सवाल अब ये है के क्या ऐसे अश्लील मजाक लड़के ही करते हैं ? लड़कियां भी आज कम नहीं हैं ऐसे मजाक और रवैये में | ऐसे मज़क्बाजी आजकल की एक नोर्मल लाइफ का हिस्सा हैं | आप किसी भी युवा से यह सवाल करते हैं तब आपको उनके जवाब सुनकर हैरानी हो जायेगी के यह सब तो कूल है, चलता है | फिर इतना हो हल्ला क्यों ?
ReplyDeleteबात सिर्फ इतनी सी है के समाज में यदि नारी के साथ ऐसे अपराध होते हैं तो उन अपराधों के होने के बाद ही क्यों ऐसे सवाल और दोषारोपण आरम्भ होते हैं | एक ऐसी सज़ा क्यों न बनाई जाये ऐसे लोगों के लिए जो आगे जाकर ऐसे अपराध करने के बारे में सोचने पर भी काँप जाएँ | मैं किसी भी वर्ग को, किसी भी जाती को प्रजाति को इस सबके लिए दोषी नहीं मानता | न मैं नारी को दोषी मानता हूँ न नर को | इसलिए दोषी है एक तो अपराधिक प्रवृति, गन्दी और घिनोनी फितरत | जिनमें यह हैं वो चाहे किसी भी वर्ग के हों वो ऐसे काम करेंगे ही | जिस बच्ची के साथ ऐसा जघन्य अपराध हुआ है मैं तो कहता हूँ उसके दोषियों को सरेआम नंगा कर के उनका लिंग काट देना चाहियें | न होगा बांस न बजेगी बांसुरी | एक बार अपराध की जड़ खत्म हो जायेगी तो आगे कोई अपराध करने का विचार क्या कुछ भी नहीं आएगा | क्या उन्हें यह सज़ा मिलेगी ? अब और मैं क्या लिखूं आप खुद ही समझदार है | मैं भी एक नर हूँ और नारी के दर्द को भली भांति समझता हूँ और महसूस भी करता हूँ | पर प्रशासन, पुलिस और राजनेता ऐसा नहीं समझते उस वर्ग की मानसिकता कुछ और ही है | आप भी यह समझे |
एक आखरी बात मुझे बेहद सहर्ष खुशी होगी अगर मैं भी इस ब्लॉग का एक हिस्सा बन पाऊँ | यदि आप ऐसे लोगों को अपने साथ चलने की अनुमति दें जो नारी, नारी शक्ति, नारी मस्तिष्क और नारी हृदय की समझते हों और उनके साथ कदम से कदम और कधे से कंधा मिलकर चलने में विश्वास रखते हों |
धन्यवाद
इस समस्या के लिए हर तरफ से प्रयास जरूरी है ... ओर शुरुआत पहले घर के लड़कों को समझाने से शुरू करनी चाहिए ... उन्हें सम्मान करना सिखाना होगा ...
ReplyDeleteअत्यंत वहशियाना ,अक्षम्य कुत्सित कृत्य!
ReplyDeleteबेहद प्रभावी पोस्ट। शुरुआत घर से ही करके देखें.
ReplyDeleteरचना जी,ऐसे लडके अपने आस पास जब देखते हैं कि समाज में महिला की कोई इज्जत नहीं करता उसे सिर्फ एक शरीर समझा जाता है।उसका अपना कोई अलग अस्तित्व नहीं है तभी उन्हें लगता है कि उसके साथ इस तरह की ज्यादती में कुछ गलत नहीं है।जो अपने घर और अपने आस पास के पुरुषों को जो करता देखते आए हैं उससे दो कदम आगे बढकर इन्होंने ये कृत्य कर दिया।इसलिए वो लोग भी उतने ही दोषी है जो ऐसा माहौल बनाते हैं और ऐसे राक्षसों को जन्म देते हैं।
ReplyDeleteआपने पोर्नो की बात की लेकिन एक जापानी गेम है जो कि नेट पर तेजी से लोकप्रिय हो रहा हालांकि भारत के लिए ये नया है अतः मैं इसका नाम नहीं लेना चाहता जिसमें टास्क ये दिया जाता है कि आपको तमाम बाधाओं को पार करने के बाद एक लडकी का बलात्कार करना हैं।तभी आप विजेता होंगे।कई देश इस गेम पर रोक लगा चुके हैं पर भारत में अभी इस पर खामोशी है। पर कुछ भी हो इस लिहाज से नेट एक खतरनाक चीज तो है ही।
उस गेम में ळ्ड़का एक परिवार की तीन महिलाओं से रेप करता है और उसे अंक मिलते जाते हैं और अबॉर्शन के लिये मनाने पर बोनस अंक भी।
Deleteसमाज को ऐसे दुष्कृत्यों के प्रति 'used to' करने का यह घिनौना गेम हमारी ब्रेन वाशिंग का एक औजार है। ऐसे प्रछन्न खतरों को हम नजरअंदाज करते हैं, जो बहुत खतरनाक है।
मेरे लिए एक दम नयी जानकारी , लेकिन मै जानती हूँ नयी पीढ़ी इसको जानती होंगी , इस लिये बेहद जरुरी हैं की लोग अपने बच्चो के साथ बैठ कर इन विषयों पर खुल कर बात करे .
Deleteबेहतर लेखन,
ReplyDeleteजारी रहिये,
बधाई !!
" देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान् , कितना बदल गया इंसान " , - में तो अपने वैदिक [ पुराना अध्यात्मिक ] संसार में जीने वाला इंसान हु , मगर आपके इस लेख ने रुला दिया , की अगर समय रहते - इस पीढ़ी ने रास्ता नहीं बदला , तो अंत क्या होगा,,,,,,,? , सच में अपनी आने वाली नस्लों से खुलकर बात करनी होगी , संस्कार रूपी विचार बाटने होंगे ...........
ReplyDeleteएक बात यहाँ अवश्य कहना चाहूंगी - जो शायद अब तक "पुरुष" की सेफ्टी को स्त्री से अधिक समझने वालों के मन में आई नहीं । आएगी - तब शायद वे भी इस विषय में थोड़ी और रूचि लेंगे, जो वे आज नहीं ले रहे हैं ।
ReplyDelete(यहाँ के किसी भी टिप्पणीकार पर नहीं कह रही हूँ - न व्यंग्य कर रही हूँ - सिर्फ एक बात पर ध्यान लाने के प्रयास कर रही हूँ ।
वह यह कि . जब ऐसा "एब्नोर्मल सेक्चुअल बिहेवियर" स्वीकार्य होने लगे, जब इस वीभत्स तरीके से लड़कियों के शरीर से छेड़खानी की जानी लगे - तब वह दिन दूर नहीं जब यह करने वाले हिंसक प्रवृत्ति के लोग पुरुषों के साथ भी ऐसे वीभत्स बलात्कार करने की न सिर्फ सोचने लगें - बल्कि करने भी लगें । क्योंकि जो उस बच्ची के साथ उन दरिंदों ने किया है, वह पुरुष शरीर के साथ भी किया जा सकता है ।
जो क़ानून बनाए जा रहे हैं, जो सुझाव दिए जा रहे हैं - उनमे शायद "पीडिता" ही नहीं, "पीड़ित" के लिए भी प्रावधान बनाने होंगे इस वहशी दुनिया के लिए ।
: (
wery well pointed out shilpa , i have raised issue of sodomisation before also
Deleteआपने जो भी लिखा वो 100% एक दम सच है,
ReplyDeleteदिल की पवित्रता, जीवन में बिजली पैदा करता है।