नारी को शुरू से ही बहुत भावुक माना जाता रहा हैं जो आज के सन्दर्भ में
"इमोशनल फूल " कहा जाता हैं . आप कहेगे इसका क्या मतलब हुआ , भावुक होने से
कोई बेवकूफ नहीं होता हैं . होता हैं जी होता हैं . नारी भावुक हैं इस
लिये ही बेवकूफ हैं .
सालो से सुनती रही हैं "नारी ही नारी की दुश्मन हैं " फिर भी समझती ही नहीं . प्रेक्टिकल हो कर सोचती ही नहीं .
कितना भी समझाओ "बहिनी एक दूसरे के साथ खड़े होना सीखो "
जवाब मिलता हैं "नहीं जी हम तो सही को सही और गलत को गलत कहेगे अब अगर कोई नारी गलत लिखेगी , कहेगी , करेगी , हम तो जी उसके खिलाफ आवाज जरुर उठायेगे जैसे हम पुरुष के खिलाफ उठाते हैं अगर वो गलत लिखता हैं , कहता हैं या करता हैं . "
लो बोलो इसमे नया क्या करदिया . यही तो तुम सदियों से कर रही हो , नारी को तुम कभी "बेनेफिट ऑफ़ डाउट " देती ही नहीं हो . उसको सीधा सूली पर चढ़ा देती हो क्युकी तुम को हमेशा "न्याय प्रिय " रहना और "अच्छे बने रहने " का खब्त सवार रहता हैं .
अब इसमे वैसे तुम्हारी इतनी गलती भी नहीं हैं , यही तो ठोंक ठोंक कर वर्षो तुम्हारे अन्दर कूट कूट कर भर दिया गया हैं . सौम्य रहो , अच्छी बनी रहो और अपनी ही जैसी दुसरो को नीचा दिखाती रहो और अगर उनको नीचा ना भी दिखाना चाहो तो कम से कम उनका साथ तो दो ही मत .
गलत हेमशा गलत ही होता पुरुष करे या स्त्री लेकिन तुमको तो समझाया गया है what is wrong is wrong whether a woman says it or a man says it. in fact it is worse when a woman says it
यानी पुरुष का गलत "माफ़ी के काबिल हैं " स्त्री का नहीं . स्त्री को हमेशा परफेक्ट होना होगा और परफेक्ट वो तभी हो सकती हैं जब वो दुसरो को भी परफेक्ट बनाती रहे . एक दूसरे के खिलाफ खड़ी होती रहे .
सोच कर देखो , आस पास देखो , कितनी जल्दी पुरुष समाज प्रेक्टिकल होजाता हैं और एक दूसरे के साथ खडा हो जाता हैं अगर उन मे से कोई गलत भी होता हैं तो असंख्य उसके साथ खड़े होजाते और फ़ील्डिंग करने लगते हैं . और जो नहीं होते हैं उन पुरुषो को "नारी वाद का हिमायती " कह कर जमात से अलग कर दिया जाता हैं . वही तुम सही , अच्छी बनी रहने के चक्कर में पुरुषो के गलत कृत्यों को इग्नोर करती हो लेकिन नारी की मामूली सी गलती को "सुधारे" बिना नहीं रहती हो .
अब बताओ अगर तुम ये ना करो , तो क्या प्रलय आ जाएगी ?? अगर जिस शिद्दत से तुम "दूसरो की गलती " को इग्नोर करती हो क्या अपने आस पास की नारियों की नहीं कर सकती .
कभी कोई नारीवादियों को "रांड" कह जाता हैं
लिंक
और तुम चुप रहती हो क्युकी तुम "इन जैसो के " बातो को इग्नोर करना चाहती हो .
लेकिन वही अगर किसी स्त्री ने किसी स्त्री के खिलाफ कुछ लिख दिया तो तुम सबसे पहली होती हो जो उस स्त्री को "असंस्कारी से संस्कारी " बनाने की होड़ में सबसे आगे होती हो .
कभी सोच कर देखना अगर तुम अपने आस पास की हर नारी को "बेनिफिट ऑफ़ डाउट " देना शुरू कर दो और हर उस जगह जहां पुरुष समाज , पूरे स्त्री समाज को "रांड " कह रहा हैं वहाँ आवाज उठाने लगो तो क्या तस्वीर होगी आने वाले समाज की .
कभी प्रेक्टिकल बन कर सोचो की संस्कार देने की जरुरत किसी को हैं
कभी प्रेक्टिकल बन कर सोचो की किस के साथ खड़े होने से समाज में सुधार होगा
क्युकी ये जो बार बार नारी को "उसका सही स्थान दिखाते हैं " किस कोख से आये हैं भूल जाते हैं
कम से कम तुम तो उस कोख की लाज रखो .
वैसे जानती हूँ बोलोगी तो तुम आज भी नहीं पर सावधान हो जाओ , इस लिये लिंक के साथ सूचना दे रही हूँ
हो सकता आज जितनी "रांड " नारिवादियाँ हैं कल को "छिनाल" कह दी जाए . जो सुहागिने हैं ब्लॉग जगत में वो सब "विधवा " बना दी जाए . उस से पहले अगर तुम ब्लॉग जगत से जाना चाहो तो चली जाओ वरना तुम्हारी बेटियाँ शायद ही तुमको माफ़ कर सके
लिंक क्लिक करो
दिस्क्लैमेर
"रांड " शब्द उस विधवा के लिये इस्तमाल होता हैं जो विधवा होने के बाद अपनी दैहिक भूख मिटाने के लिये पुरुष का इस्तमाल करती हैं .
"रांड" शब्द भ्रष्ट हिंदी का शब्द हैं और बेहद अपमान जनक हैं एक गाली हैं .
ज़रा इस शब्द को गूगल कर के देखे , ये कहां कहां प्रयोग होता हैं और किस किस रूप में और किस किस सन्दर्भ में https://www.google.co.in/search?q=%22%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A1%22+&ie=utf-8&oe=utf-8&aq=t&rls=org.mozilla:en-US:official&client=firefox-a
सालो से सुनती रही हैं "नारी ही नारी की दुश्मन हैं " फिर भी समझती ही नहीं . प्रेक्टिकल हो कर सोचती ही नहीं .
कितना भी समझाओ "बहिनी एक दूसरे के साथ खड़े होना सीखो "
जवाब मिलता हैं "नहीं जी हम तो सही को सही और गलत को गलत कहेगे अब अगर कोई नारी गलत लिखेगी , कहेगी , करेगी , हम तो जी उसके खिलाफ आवाज जरुर उठायेगे जैसे हम पुरुष के खिलाफ उठाते हैं अगर वो गलत लिखता हैं , कहता हैं या करता हैं . "
लो बोलो इसमे नया क्या करदिया . यही तो तुम सदियों से कर रही हो , नारी को तुम कभी "बेनेफिट ऑफ़ डाउट " देती ही नहीं हो . उसको सीधा सूली पर चढ़ा देती हो क्युकी तुम को हमेशा "न्याय प्रिय " रहना और "अच्छे बने रहने " का खब्त सवार रहता हैं .
अब इसमे वैसे तुम्हारी इतनी गलती भी नहीं हैं , यही तो ठोंक ठोंक कर वर्षो तुम्हारे अन्दर कूट कूट कर भर दिया गया हैं . सौम्य रहो , अच्छी बनी रहो और अपनी ही जैसी दुसरो को नीचा दिखाती रहो और अगर उनको नीचा ना भी दिखाना चाहो तो कम से कम उनका साथ तो दो ही मत .
गलत हेमशा गलत ही होता पुरुष करे या स्त्री लेकिन तुमको तो समझाया गया है what is wrong is wrong whether a woman says it or a man says it. in fact it is worse when a woman says it
यानी पुरुष का गलत "माफ़ी के काबिल हैं " स्त्री का नहीं . स्त्री को हमेशा परफेक्ट होना होगा और परफेक्ट वो तभी हो सकती हैं जब वो दुसरो को भी परफेक्ट बनाती रहे . एक दूसरे के खिलाफ खड़ी होती रहे .
सोच कर देखो , आस पास देखो , कितनी जल्दी पुरुष समाज प्रेक्टिकल होजाता हैं और एक दूसरे के साथ खडा हो जाता हैं अगर उन मे से कोई गलत भी होता हैं तो असंख्य उसके साथ खड़े होजाते और फ़ील्डिंग करने लगते हैं . और जो नहीं होते हैं उन पुरुषो को "नारी वाद का हिमायती " कह कर जमात से अलग कर दिया जाता हैं . वही तुम सही , अच्छी बनी रहने के चक्कर में पुरुषो के गलत कृत्यों को इग्नोर करती हो लेकिन नारी की मामूली सी गलती को "सुधारे" बिना नहीं रहती हो .
अब बताओ अगर तुम ये ना करो , तो क्या प्रलय आ जाएगी ?? अगर जिस शिद्दत से तुम "दूसरो की गलती " को इग्नोर करती हो क्या अपने आस पास की नारियों की नहीं कर सकती .
कभी कोई नारीवादियों को "रांड" कह जाता हैं
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और तुम चुप रहती हो क्युकी तुम "इन जैसो के " बातो को इग्नोर करना चाहती हो .
लेकिन वही अगर किसी स्त्री ने किसी स्त्री के खिलाफ कुछ लिख दिया तो तुम सबसे पहली होती हो जो उस स्त्री को "असंस्कारी से संस्कारी " बनाने की होड़ में सबसे आगे होती हो .
कभी सोच कर देखना अगर तुम अपने आस पास की हर नारी को "बेनिफिट ऑफ़ डाउट " देना शुरू कर दो और हर उस जगह जहां पुरुष समाज , पूरे स्त्री समाज को "रांड " कह रहा हैं वहाँ आवाज उठाने लगो तो क्या तस्वीर होगी आने वाले समाज की .
कभी प्रेक्टिकल बन कर सोचो की संस्कार देने की जरुरत किसी को हैं
कभी प्रेक्टिकल बन कर सोचो की किस के साथ खड़े होने से समाज में सुधार होगा
क्युकी ये जो बार बार नारी को "उसका सही स्थान दिखाते हैं " किस कोख से आये हैं भूल जाते हैं
कम से कम तुम तो उस कोख की लाज रखो .
वैसे जानती हूँ बोलोगी तो तुम आज भी नहीं पर सावधान हो जाओ , इस लिये लिंक के साथ सूचना दे रही हूँ
हो सकता आज जितनी "रांड " नारिवादियाँ हैं कल को "छिनाल" कह दी जाए . जो सुहागिने हैं ब्लॉग जगत में वो सब "विधवा " बना दी जाए . उस से पहले अगर तुम ब्लॉग जगत से जाना चाहो तो चली जाओ वरना तुम्हारी बेटियाँ शायद ही तुमको माफ़ कर सके
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"रांड " शब्द उस विधवा के लिये इस्तमाल होता हैं जो विधवा होने के बाद अपनी दैहिक भूख मिटाने के लिये पुरुष का इस्तमाल करती हैं .
"रांड" शब्द भ्रष्ट हिंदी का शब्द हैं और बेहद अपमान जनक हैं एक गाली हैं .
ज़रा इस शब्द को गूगल कर के देखे , ये कहां कहां प्रयोग होता हैं और किस किस रूप में और किस किस सन्दर्भ में https://www.google.co.in/search?q=%22%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%A1%22+&ie=utf-8&oe=utf-8&aq=t&rls=org.mozilla:en-US:official&client=firefox-a
रचना ये वह समाज है जहाँ पर हर हाल में नारी पर अगर अंगुली उठाई जाती है तो फिर बगैर सत्य को समझे लोग ये कहते नजर आते हें 'जरूर कोई कमी होगी तभी तो लोग कह रहे हें' उसके सत्य को जानने की किसी को जरूरत नहीं होती है. मैं ऐसे मामले में कभी सहमत नहीं हो पाई हूँ. अगर हम किसी बात के साक्षी नहीं है तो फिर किसी के इल्जाम पर मुहर तो नहीं लगा सकती. नारीवादियों के लिखे को या उनकी बातचीत को "रांड टाइप स्यापा' कहने वाले कमेन्ट को मैंने भी पढ़ा है और इस पर यही कहना चाहूंगी कि उन सारे लोगों को नारी के विषय में समुचित बात लिख रहे हें इस तरह के अपशब्दों को कहना या लिखना आपके सम्मान को बढ़ा नहीं सकता है. आपके चार चाटुकार वाह वाह कहें तो वह उनकी बुद्धिमत्ता नहीं है. नारीवादी सिर्फ ब्लॉग पर नहीं होते हें बल्कि समाज में और भी लोग हें जो इस दिशा में सकारात्मक प्रयत्न कर रहे हैं. अगर आप बुद्धिजीवी होकर अपने कलम पर संयम नहीं बरत सकते हैं तो जरूर ही आपको अपनी वाणी पर संयम नहीं होगा और ऐसे लोगों का समाज में कितना सम्मान होता है ये बात किसी से छिपी नहीं है. जो गलत है सो गलत है किसी के साथ देने या न देने से वह सही नहीं बन जाता है.
ReplyDeleteजिनको अपने परिवेश से सही संस्कार नहीं मिले , वे अक्सर स्त्रियों का अपमान करते फिरते हैं यत्र-तत्र ! ऐसे लोग उस कोख ko क्या याद रखेंगे जिन्हें हर स्त्री उपभोग की वस्तु नज़र आती है , चाहे वो माँ हो अथवा उनकी खुद की बहन ! वे सबको भोग लेना चाहते हैं ! वे सिर्फ स्त्री के अंगों को पहचानते हैं , उन्हें किसी कोख, किसी मर्यादा , किसी लज्जा, किसी शालीनता से कोई सरोकार नहीं होता ! समाज पर कलंक हैं ऐसे कुत्सित विचारों वाले पुरुष ! और उनसे भी अधिक निंदनीय हैं वे स्त्रियाँ जो किसी स्त्री की बेईज्ज़त होते हुए देखती हैं फिर भी उस पुरुष के साथ सम्बन्ध त्याग नहीं करतीं, बल्कि उनसे मित्रता निभाती हैं ! ऐसी स्त्रियाँ , इन पुरुषों की गलत प्रवित्तिओं को बढ़ावा देती है और एक दिन स्वयं भी इन्हीं के हाथों मानसिक अथवा शारीरिक बलात्कार का शिकार होती हैं ! ऐसे पुरुष त्याज्य हैं और इन कुत्सित पुरुषों का साथ देने वाली स्त्रियाँ भी त्याज्य हैं ! अश्लील गालियाँ इनके संस्कार और इनके व्यक्तित्व की परिचायक हैं !
ReplyDeleteबिलकुल सही कह रही हैं आप. अगर एक साथ सभी नारियाँ प्रतिरोध करें, तो इनकी हिम्मत ही ना हो, इस तरह के शब्दों का प्रयोग करने की. आमतौर पर मैं ज़ील के ब्लॉग पर कम ही जाती हूँ. उक्त कविता तो मैंने देखी भी नहीं थी, लेकिन उसे आधार बनाकर नारीवादियों पर इल्जाम लगाना और फिर टिप्पणियों में ऐसी भाषा का प्रयोग- इस सबका मैं भी विरोध करती हूँ. हालांकि मैं ज़ील द्वारा किसी पर व्यक्तिगत लांछन लगाने का भी समर्थन नहीं करती. क्योंकि राजनीतिक विरोध एक अन्य बात है, पर व्यक्तिगत आरोप लगाना गलत मानती हूँ, चाहे वो स्त्री हो या पुरुष.
ReplyDeleteमैंने अपनी टिप्पणी में प्रवीण जी से पूछा है कि अगर आपको दिव्या द्वारा किसी स्त्री पर व्यक्तिगत आरोप लगाने पर नारीवादियों का चुप रह जाना दोहरा मानदंड लगता है, तो आप स्वयं संतोष जी के 'रंडापा टाइप स्यापा' शब्द का समर्थन करके वही क्यों कर रहे हैं? क्या ये दोहरा मानदंड नहीं है.
ReplyDeleteमैंने अपनी टिप्पणी में प्रवीण जी से पूछा है कि अगर आपको दिव्या द्वारा किसी स्त्री पर व्यक्तिगत आरोप लगाने पर नारीवादियों का चुप रह जाना दोहरा मानदंड लगता है, तो आप स्वयं संतोष जी के 'रंडापा टाइप स्यापा' शब्द का समर्थन करके वही क्यों कर रहे हैं? क्या ये दोहरा मानदंड नहीं है.
oos namakul sawal ke ye makul jabaw hai....
pranam.
रचना जी ऐसे लोगों को और कोई काम नही होता सिवाय नारियों के पीछे पडने के और उन्हे नीचा दिखाने के तभी उन्हें सब जगह गन्दगी ही नज़र आती है क्योंकि बचपन से मानसिकता ही ऐसी होती है या कहिये शायद सीखा ही ऐसा होता है तो जो सीखा देखा और किया वो ही तो समाज को देंगे …………इनसे अच्छाई की उम्मीद मत करिये बस अपने काम पर ध्यान दीजिये ………आज ज़माना वो है कि अपने काम से अपने को सिद्ध करिये बेकार के लोगों से हम क्यों बहस करें और अपना कीमती वक्त इन पर ज़ाया करें । अगर कोई इंसान सही है तो उसे जरूरत नही अपने को सही सिद्ध करने की खुद -ब-खुद सामने आ जाती है हकीकत………दो ही रास्ते हैं या तो उनकी भाषा मे उन्हे जवाब दो या फिर अपने काम से सिद्ध करो खुद को अपने आप बोलती बंद हो जायेगी।
ReplyDeleteरचना जी,आपने कई बातें मिला दी है बाद में ठीक से पढ़कर ही कुछ कह पाऊँगा हालाँकि मुझे नहीं लगता आज की महिला प्रेक्टिकल नहीं है अब उसे समझ में आ रहा है कि कब क्या करना है और क्या करते हुए दिखाना है और क्या छुपाना है।
ReplyDeleteमुक्ति जी की बात से सहमत हूँ।
अपमान जनक शब्दों के प्रयोग की आवश्यकता ही क्यों हम क्यों ठेकेदार बनें हम ही सब कुछ हैं हमारे मर जाने के बाद सब रुक जायेगा ?
ReplyDeleteमैं तो हैरान हूँ ऐसे प्रसंग से की सोचने और लिखने के लिए यही एक मुद्दा बचा है हमारे पास ?
सच में रचना जी हमें अपना कीमती वक्त ऐसे लोगों पर जाया नही करना चाहिये । पर आपकी बात भी सच है कि ऐसे मे प्रतिरोध के लिये सबको एकजुट होने की आवश्यकता है ।
ReplyDeleteराजन ने उचित कहा है.
ReplyDeleteनारी आज पूर्व की अपेक्षा अधिक भारी है.
रचना जी
ReplyDeleteदिव्या जी ने जो लिखा वो अपने आप में गलत हो सकता है ( ये बात मैंने वहा साफ लिखा भी है ) किन्तु उस मुद्दे को नारीवादियो से जोड़ना मुझे बिल्कुल भी समझ नहीं आया प्रवीण जी उसे नारीवाद से तब जोड़ते जब हम उन्हें हर बात पर समर्थन दे रहे होते , जिन मुद्दों पर जरूरत थी उनका सर्थन भी किया है और जिन पर उनका विरोध करना चाहिए था उस पर हम सब ने विरोध भी किया है फिर भी पता नहीं किस बात पर उनके लिखे पर नारीवाद पर ही सवाल उठा दिया गया और जब किसी अन्य पुरुष ने पूरे नारीवाद के लिए ही गलत शब्द का प्रयोग किया तो उन्हें कुछ भी बुरा नहीं लगा रहा है , प्रवीण जी का ये दोहरा मानक देख कर अफसोस हुआ उनसे ऐसी उम्मीद नहीं थी |
किसी एक नारीवादी (चाहे वह दोहरे मापदण्ड वाला ही हो) के बारे में वे यह शब्द कहते तब क्या वह सही कहलाता?बात तो ये है कि उन्होंने वहाँ ये घटिया शब्द प्रयोग किया ही क्यों ?विरोध करना ही था तो स्वस्थ तरीके से करते।बात ये नहीं है कि किसके खिलाफ इस शब्द का प्रयोग किया गया है।अपने बचाव में संतोष जी ये ही तो कह रहे है कि मैंने पूरे नहीं बल्कि कुछ नारीवादियो की बात की थी जबकि ये कोई मुद्दा है ही नहीं।
Deleteरचना जी, कोई महिला दूसरी महिला का विरोध इसलिए करे कि उसने कोई गलत बात कही है या कोई गलत काम किया है न कि इसलिए कि वह महिला है और इसीलिए उसका ऐसा करना ज्यादा गलत है।विरोध करने का मतलब ये नही है कि उससे कोई दुश्मनी निकाली जा रही है या उसे कोई सबक सिखाया जा रहा है,फिर ये बेनिफिट ऑफ डाउट वाली बात बीच में कहाँ से आ गई।हाँ किसी बात पर दो महिलाएँ आपस में लड़ भी रही है तो इसमें मुझे कोई विशेष बात नहीं लगती पुरूष भी आपस में लड़ते ही है।नारी एकता कोई हिन्दुत्व या इस्लाम नहीं है बात बात में खतरे में पड़ जाए।
ReplyDeleteप्रवीण जी के खुद उस पोस्ट के बारे में क्या विचार है इस पर उन्हें पोस्ट लिख देनी चाहिए थी।दूसरे इस पर क्या सोचते है टिप्पणी से पता चल जाता।किसके दोहरे तिहरे मापदंड है तो वो सब सामने आ जाता।उनकी पोस्टस् पर तो वैसे भी अच्छा ही विचार विमर्श होता है।सोनिया गाँधी का बहुत से पुरुष जो काग्रेस के खिलाफ है वो इस तरह की बात पता नहीं कितनी बार लिख चुके है पर वहाँ भी विरोध में मैंने किसी महिला की टिप्पणी नहीं देखी।तो दिव्या जी का ही स्पेशल विरोध कोई क्यों करेगा?और वैसे भी कई बातों पर जो उनका पहले विरोध करते थे वो अब नहीं करते।इसका मतलब ये नहीं है कि उनकी हर बात से सहमति हो ही।ऐसे ही बहुत से पुरुषों का भी हर बार विरोध नहीं किया जाता खासकर तब जब हमें पता है कि इससे दूसरा ही विवाद खड़ा हो जाएगा और सामने वाले पर कोई असर ही नहीं होगा।हाँ कोई व्यक्तिगत मामला हो या बात हद से ज्यादा आगे बढ जाए तो बात अलग है।
ReplyDeleteरांड शब्द विधवा के लिए प्रयोग में लिया जाता है , लेकिन राजस्थान में यह आत्मीय गालियों के रूप में भी जाना जाता है हालाँकि मैं इस शब्द के प्रयोग किये जाने पर कई बार लड़ चुकी हूँ !!
ReplyDeleteऔर अक्सर यह गाली महिलाएं ही एक दूसरे के लिए प्रयोग करती हैं , लिखना रह गया था !
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