नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

May 31, 2012

हम कहां जा रहे हैं खुद सोचिये --- धुम्रपान निषेध हैं



मिसाल है मोनाम्मा कोक्कड़ जिन्होने १२ जुलाई १९९९ मे केरल हाई कोर्ट मे पी आई अल { पब्लिक इंटेरेस्ट लिटिगेशन } दाखिल किया था की सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान निषेध हो । उन्होने इस लिटिगेशन मे उस सर्वे का हवाला दिया था जिसमे कहा गया था की ७५ % लंग कैंसर के शिकार व्यक्ति धूम्रपान करते थे ।
एक साल बाद जब फैसला उनके पक्ष मे आया और जस्टिस नारायणा कुरूप और जस्टिस लक्ष्मणन ने सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान करने पर बैन लगा दिया ।
मोनाम्मा कोक्कड़ मानती हैं की इस प्रकार का बैन ज्यादा कारगर नहीं हो पाता क्युकि सिगरेट की सेल से सरकार को आय होती हैं ।

मोनाम्मा कोक्कड़ ६१ वर्ष की अवकाश प्राप्त प्रोफेसर हैं और अब धूम्रपान के नुक्सान पर निरंतर काम कर रही हैं । बिना इनका नाम लिखे इस " धूम्रपान निषेध " के विषय मे लिखना शायद सम्भव ना हो उअर निरर्थक भी हैं ।
पूरी जानकारी के लिये लिंक क्लिक करे
और इसे ही कहते हैं
"The Indian woman has arrived "


और इसके विपरीत
इस खबर को देखिये
3-fold jump in young urban women smokers

Young urban Indian women are puffing away and more women are chewing tobacco than ever before — making them vulnerable to heart disease, stroke and
various forms of cancer. Smoking has risen threefold among young urban women, with one in 10 under the age of 30 smoking in Delhi and

Globally, 250 million women smoke — 22% of women in developed countries and 9% in developing countries are smokers. While smoking among women has declined in developed countries such as the US,  UK and Canada, it is rising sharply in eastern Europe, Asia, South America and Africa.
In India, 24.3% men and 2.9% women smoke, Global Adult Tobacco Survey’s India report — which covered 29 states and the union territories of Chandigarh and Puducherry — said last year.

Chewing tobacco in India has traditionally been a women’s addiction. Its use rose from 11.5% in 2005 to 20.3% in 2010 though overall tobacco use in men dropped from 57.6% to 47.9% during the period.
One in three (35%) adults (274.9 million) use tobacco in India.
Research has established that young women are more likely than men to get addicted to smoking and are at a higher risk of developing heart disease and stroke.
The WHO links smoking with 25 women's cancers — lung, cervix, breast and colon to name a few. Even secondhand smoke raises breast cancer risk in women.
"More than in men, smoking increases risk of stroke and heart disease among young women, with those also taking contraceptive pills increasing their risk 10-fold" says Dr Ravi Kasliwal, chairman, preventive and clinical cardiology, Medanta.
And this upward swing will continue. "With cigarettes being marketed with images of modernity, emancipation… the gender disparity among smokers will soon even out completely and you'll see as many women smokers as men in the next five years," said Dr Samir Parikh, director of behavioural sciences at Fortis Hospitals
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हम कहां जा रहे हैं खुद सोचिये --- धुम्रपान निषेध हैं

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May 25, 2012

बलात्कार क्या महज एक शब्द हैं??

 very disgusting i must say and repulsive to read

I posted a comment , i am sure it will not be published . How can someone be so insensitive

बलात्कार क्या महज एक शब्द हैं?? 
जिसको ले कर आप व्यंग के नाम पर कुछ भी परोस सकते हैं और दुसरो को मुस्कराने के लिये कह सकते हैं . 
हिंदी ब्लॉग जगत में जो ना पढने को मिल जाये .

पिछले एक हफ्ते में कम से कम 6 पोस्ट और अनगिनत टिपण्णी पढ़ चुकी हूँ जहाँ हिंदी ब्लोगिंग मे सौहार्द बनाए रखने की पुरजोर अपील हैं . लोग साधू बनगए हैं . अपने गलत आलेखों के लिये क्षमा मानकर उनको मिटाने का दावा कर रहे हैं . कुछ निरंतर अमन का पैगाम देते हैं , सामाजिक मुद्दों पर लिखने को कहते हैं पर कहीं भी जैसे लिंक मेने ऊपर दिया हैं उस पर किसी की कोई आपत्ति दर्ज होती नहीं दिखती हैं . तर्क होता हैं इग्नोर कर दिया . 
गलत को जो इग्नोर करते हैं वो कभी अपने अन्दर झाँक कर जरुर देखे की जब वो गलत का प्रतिकार करने वालो को सौहार्द और सहिष्णुता का पाठ पढ़ाते हैं तो वो कितना सही हैं . 




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May 21, 2012

एक प्रश्न हैं , उत्तर की प्रतीक्षा मे


एक प्रश्न हैं , उत्तर की प्रतीक्षा मे

क्या किसी विवाहित स्त्री या पुरुष को , जिनके बच्चे शादी योग्य हो , प्रेम करने का अधिकार होता हैं ? प्रेम भी अपने बच्चो की उम्र के पुरुष या स्त्री से . क्या उम्र में बड़े होना , एक जिम्मेदारी नहीं लाता हैं व्यक्ति के ऊपर .

हो सकता हैं आप कहे जब दूसरे पक्ष को क़ोई आपत्ति नहीं हैं तो बड़े विवाहित व्यक्ति को क्यूँ सोचना चाहिये ? मेरा प्रश्न हैं जो छोटा हैं वो उम्र में छोटा हैं , वो गलती कर सकता हैं पर क्या बड़े को उसकी गलती सुधारनी चाहिये या उसको बढ़ावा देना चाहिये ?
क्या जो विवाहित हैं वो अपने परिवार को छोड़ सकता हैं , क़ोई सेलेब्रिटी हो तो अलग बात हैं पर आम आदमी नहीं छोड़ सकता हैं . फिर वो अपने से छोटे अविवाहित व्यक्ति { स्त्री / पुरुष } को क्या दे सकता हैं ?

एक समाचार आज पढ़ा की १५ डिवोर्स के केस में कम से कम एक केस ५० साल से ऊपर की आयु के व्यक्ति का होता हैं और वो किसी भी कौन्सेलर की बात नहीं सुनते हैं और केवल सम्बन्ध विछेद चाहते हैं . क्या अगर क़ोई ५५ - ६० साल का विवाहित  व्यक्ति किसी से प्रेम करे तो ये जरुरी नहीं हैं की वो पहले अपनी पत्नी से सम्बन्ध विच्छेद कर ले और फिर अपनी जिन्दगी दुबारा शुरू करे .

नारी ब्लॉग को केवल निमंत्रित पाठको के लिये रखा जायेगा

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May 20, 2012

नारी ब्लॉग को केवल निमंत्रित पाठको के लिये रखा जायेगा


 नारी ब्लॉग पर तकरीबन 980 पोस्ट आ चुकी हैं . 1000 पोस्ट आने के बाद नारी ब्लॉग को केवल निमंत्रित पाठको के लिये रखा जायेगा . जो भी इस ब्लॉग को पढने के इच्छुक हैं वो अपना ईमेल भेज कर इस ब्लॉग से जुड़ सकते हैं . 
 

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May 18, 2012

शुचिता और नैतिकता का पाठ तब पढ़ाए जब खुद पढ़ा हो

 एक बेटी का बाप जब दूसरे की बेटी के प्रति रोमांटिक नज़रिया रखता हैं और उसको ढोल पीट पीट कर जाहिर भी करता हैं , तब कैसे भूल जाता हैं की कहीं क़ोई और किसी और बेटी का बाप उसकी बेटी के प्रति भी ऐसा ही "जायज़ " नज़रिया रखता होगा .

नयी पीढ़ी को बदलने से बेहतर हैं पहले खुद को बदले . शुचिता और नैतिकता का पाठ तब पढ़ाए जब खुद पढ़ा हो  

भावनाए गलती से एक बार बहक सकती हैं बार बार अगर बहकती हैं तो वो मनोविकार हैं और उसका ईलाज किसी 
डॉक्टर के पास होता हैं . हर साल अपनी प्रेमिका खोजना गलती तो हो ही नहीं सकती . 

दो लोगो मे , कभी पढ़ा था , नैतिकता का बोझ उन पर ज्यादा होता हैं जो उम्र में बड़ा हो  पर लगता हैं नैतिकता केवल एक शब्द मात्र हैं जिसको बच्चो को सिखा कर भूल जाना जरुरी होता हैं 

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May 11, 2012

सत्यमेव जयते -अब बंद भी करे आमिर खान का गुण गान करना ब्लॉग पर . इसके लिये मीडिया ही काफी हैं

आमिर खान मुद्दा उठाए तो वो महान हैं
तसलीमा नसरीन मुद्दा उठाए तो देश निकाला हैं
कोई और महिला उठाये तो नारीवादी हैं

कहां का इन्साफ हैं दोस्तों
अमीर खान की दूसरी पत्नी के बच्चा नहीं हो सकता हैं , सो एक सरोगेट माँ की कोख किराए पर खरीदी , उस समय नहीं सोचा ये शोषण हैं किसी की गरीबी का .
उस समय कोई कन्या गोद नहीं ली

सत्यमेव जयते 

अब बंद भी करे आमिर खान का गुण गान करना ब्लॉग पर . इसके लिये मीडिया ही काफी हैं 
नारी के मुद्दे नारी उठाती हैं तो गाली पाती हैं और पुरुष उठाता हैं तो आप { मतलब समाज } उसको सराहता हैं . यानी बात आज भी बस पुरुष की ही सुनी जाती हैं . ये हैं इस पोस्ट का मुद्दा . जब तक हमारी अपनी निज की जिन्दगी सही नहीं होगी हम दूसरो में बदलाव की उम्मीद कैसे कर सकते हैं

सेलिब्रिटी होना एक बात हैं , निज जिंदगी में सही होना दूसरी और कहीं सूना था जो जितना बड़ा गुनाह / पाप करता हैं उतना ज्यादा दान करता हैं
आमिर खान तो उन लोगो में से हैं  जो एक लन्दन की पत्रकार से बेटा पैदा कर सकते हैं पर उसको स्वीकार नहीं कर सकते ,
दोयम का दर्जा हैं स्त्री का जहां स्त्री के मुद्दे अगर स्त्री उठाती हैं तो गलत हैं पुरुष उठाता हैं तो महान हैं 
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May 10, 2012

आप बताओ कैसे मरना सही हैं तिल तिल कर या अपनी माँ के गर्भ में शांति और सुकून से .


आमिर खान कहते हैं कन्या भ्रूण ह्त्या रोको 
मुंबई हाईकोर्ट  के  जस्टिस मजुमदार कहते हैं की सीता की तरह अपने पति के साथ जाओ  

अब अगर क्रम से चले तो लोग कन्या भ्रूण को  ही मार रहे हैं ये निश्चित है क्युकी आमिर खान ने कह दिया . उनके कहने से पहले ऐसा किसी को पता नहीं था . वरना राजस्थान के मुख्यमंत्री पहले ही कुछ करते .

 ख़ैर अगर आमिर खान के प्रयासों से अगर कुछ कन्या भ्रूण बच जाते हैं और लड़की जनम ले ही लेती हैं तो आगे भी उसको या उसके अभिभावक का मरना तय हैं ही

ऐसा मेरठ के सतीश कुमार जो डी आ ई जी पद पर आसीन हैं कह रहे हैं , मान लीजिये हमने कन्या भ्रूण ह्त्या नहीं की और बेटी पैदा की और वो किसी को पसंद करके भाग गयी { अब नाबालिग का भागना , अगवा करना होता हैं और कानून अपराध हैं , डी आ ई जी साहेब को पता होगा ही } तो हमको उसको खोज कर मार देना चाहिये और खुद भी खुदखुशी { ये सुसाइड को ख़ुशी से क्यूँ जोड़ा हैं क़ोई बताये भला , वो इस लिये ताकि डी आई जी बाद में कह सके अपनी ख़ुशी से की } कर लेनी चाहिये .

आगे चलिये आप खुश किस्मत होगे अगर बेटी ना भागे और आप को उसको ना मरना पडे और खुद भी ना मरना पडे , तब आप उसकी शादी कर सकते हैं .

 अब आप ने शादी कर दी { बेटी को सशक्त भी बनाया होगा यानी पढ़ा लिखा दिया होगा } लेकिन बेटी का पति जहां नौकरी करता हैं बेटी नहीं जाना चाहती , या किसी कारण से जैसे घरेलू हिंसा के तहत बेटी नहीं पति के साथ रहना चाहती तो फ़िक्र नॉट , मुबई हाई कोर्ट है ना वो आप की बेटी को सीता की तरह पति के साथ "वनवास" के लिये मजबूर कर सकता हैं .

कभी कभी सोचती हूँ लड़कियों की जरुरत क्यूँ हैं हमारे समाज को , कन्या भ्रूण ह्त्या में कम से मरने या मार दिये जाने का दर्द नहीं होता हैं , एक अपमान का दंश नहीं चुभता हैं .

 आप बताओ कैसे मरना सही हैं तिल तिल कर या अपनी माँ के गर्भ में शांति और सुकून से . अब फैसला इस पर हम सब करे तो बेहतर होगा .

अपनी बहु  मूल्य राय देना ना भूले शायद किसी कन्या भ्रूण को स्वर्ग मिल जाए

मौन का अर्थ स्वीकृति माना जाता हैं , जो सब मौन हैं वो शायद मेरी तरह हैं


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May 05, 2012

इस उड़ान को अब रोकना संभव नहीं हैं .


दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज के प्रिंसिपल चाहते हैं की लडको के लिये कम से कम ४० % कोटा एडमिशन में रखा जाये !!!!!! कारण वहाँ अब ६५  % से ऊपर लडकियां एडमिशन ले रही हैं . लड़कियों के नंबर १२ कक्षा में लडको के मुकाबले बहुत बेहतर हैं . प्रिंसिपल को लगता हैं की अब समय आगया हैं की लडको के अधिकार को कोटा से दिया जाए . अभी ये प्रस्ताव कॉलेज ने खारिज कर दिया हैं और कहा हैं जैसे पहले क़ोई कोटा नहीं था और विद्यार्थी को अंक प्रतिशत से दाखिला मिलता था वैसे ही अब होगा . जो बेहतर होगा वो आगे जाएगा .
sixty-five per cent of students in the city’s prestigious St Stephen’s College are women. Hence, to “fix this skewed sex ratio”, a proposal has been moved to reserve 40% of seats for men.


Principal Valson Thampu sprung this surprise on his faculty at a meeting on Friday. The

decision, he said, had been taken by the supreme council. The faculty immediately shot it down. “The principal called a meeting in the morning to discuss the proposal, which was unanimously rejected. The supreme council does not have the power to make academic decisions,” said faculty member Karen Gabriel.
But her colleagues said the proposal had been shot down only for this year and “it will be back on the table next year”.
“This is a retrograde step. This is a space where women are flourishing and we should encourage it, not restrain it,” said Nandita Narain, another staff member.
Thampu couldn’t be contacted despite repeated attempts.
The supreme council is responsible for maintaining the religious and moral character of the institution as a Christian college. Headed by the bishop of the Church of North India in Delhi, Church members, the diocesan board of education and the principal, it has no jurisdiction over administrative or academic matters.
Teachers said another reason for the proposal was a decision taken way back in 1975 that said 75% of students in the college should be men.


समय अब तेजी से बदलेगा , और लडकियां शिक्षा का महत्व समझ कर इसको खुद बदलेगी . लोग कहते हैं की लड़कियों के पास विकल्प कम होते हैं , शादी ब्याह ससुराल , बच्चे और पति में उनकी जिंदगी की धुरी घुमती रहती हैं , मैने हमेशा कहा हैं की लड़कियों को अपना कम्फोर्ट ज़ोन छोड़ना होगा , उनको संरक्षण को त्यागना होगा और अपने लिये सही विकल्प का चुनाव करना होगा . कब तक हम अबला का टैग लेकर आंसू बहाते रहेगे और चाहते रहेगे की क़ोई हमारे लिये रास्ते खोलता रहे . निरंतर लडकिया कितना प्रतारित की जाती हैं ससुराल में उनका कितना शोषण होता हैं पर लेख , कविता और कहानी लिख कर खुद भी रोना और समाज में प्रदुषण फेलाना अब नारी को बंद कर देना चाहिये क्युकी आज से सालो पहले जब विकल्प कम थे तब केवल साहित्य ही जरिया था लड़कियों में बदलाव लाने का पर अब और भी विकल्प हैं और भी कहानियाँ हैं जहां महिला ने इतना कुछ किया हैं की उस से प्रेरणा ली जासकती हैं और आगे बढ़ा जा सकता हैं





एक ऐसी ही महिला हैं रश्मि सिन्हा जिन्होने सॉलिड शेयर नामक कम्पनी की शुरुवात पांच साल पहले की थी और कल उन्होने उस कम्पनी को ६४० करोड़ रूपए में बेच दिया . रश्मि सिन्हा जैसी महिला के बारे में पढ़ कर पता चलता हैं की शिक्षा और आत्म बल से दिशाए बदली जा सकती हैं . केवल रोने कर ये कह देने से की लडकिया असुरक्षित हैं कुछ नहीं होता .

कल वैशाली के एक माल के बेसमेंट में रेप होने की खबर भी थी , मेरी भांजी जो १८ साल की हैं बोली" मौसी लडकियां बड़ी चालु हो गयी हैं , फंसा देती हैं अपने ही दोस्तों को अगर वो उनकी बात ना माने . मेरी दोस्त की दोस्त ने अपने एक बॉय फ्रेंड को ऐसी धमकी दी थी ."

मेरा आग्रह हैं की जिनके बेटियाँ हैं वो अपनी बेटियों से अवश्य बात करके उनका सही मार्ग दर्शन करते रहे . लड़कियों का सदियों से शोषण हुआ मानसिक भी और शारीरिक भी इस लिये अब वो नैतिकता का उस पाठ को जो सदियों से उनको पढ़ाया गया हैं . "बिचारी " का टैग अब आज की लड़की को पसंद नहीं हैं


लडको के अभिभावकों को लडको को समझना होगा की लड़की को महज शरीर समझना बंद कर दे और आपसी मत भेद किसी लड़की का यौन शोषण और बलात्कार कर के कभी ना करे क्युकी आज की लड़की समझ चुकी हैं की ये होता हैं और कानून में इसके लिये सजा का प्रावधान हैं . इस लिये आज की लड़की अपनी बात मनवाने के लिये कानून से मिली सुविधा का दुरपयोग भी कर सकती हैं . अगर लडके/ पुरुष / समाज अपनी मानसिकता नहीं बदलेगे तो आगे आने वाले समय में उनकी यही मानसिकता और लड़कियों की सबलता और कानून से मिली सुविधा , खुद पुरुष समाज के लिये खतरा बन जाएगी


 चलते चलते इस बार की आ ई अस टोपर  लड़की हैं स्नेह अगरवाल  यहाँ आप उस से मिल सकते हैं 
पिछले साल भी लड़की थी दिव्या दर्शिनी उस से आप यहाँ मिल सकते हैं 

 इस लिंक पर  जानकारी हैं 

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May 01, 2012

NCW में ऑनलाइन आपत्ति दर्ज कराने की सुविधा हैं

आज कल ब्लॉग जगत में महिला ब्लॉगर को "चिकनी चमेली" कहा जा रहा हैं . जिन महिला ब्लॉगर को इस पर आपत्ति हो वो कृपा कर के मुझ से संपर्क कर सकती हैं और लिंक ले कर NCW के  इस लिंक पर जा कर अपनी आपति दर्ज करवा सकती हैं .

इतना भोंडा लिंक   यहाँ नहीं देना चाहती .
इस के अलावा जो महिला ब्लॉगर इंडिया टुडे के कवर के खिलाफ हैं वो भी इस लिंक पर जा कर अपनी आपत्ति दर्ज करवा सकती हैं . 
साइबर मे बढती महिला के प्रति अराजकता को देख कर ये करना महिला हित मे होगा 
मैने पहले भी ये पोस्ट दी थी आज फिर दे रही हूँ . जब पानी सर से ऊपर हो जाए तो व्यवस्था को बदलने का समय आता हैं और वो तभी बदलेगी जब प्रयास कानून के दायरे में होगे . 
तालिबान सभ्यता पाकिस्तान तक आगई हैं , वाघा बोर्डर तक पहुचे उससे पहले सीमा की सुरक्षा जरुरी हैं 
सही समय पर कुछ लोगो के खिलाफ आपत्ति  दर्ज करवाना जरुरी हैं

update
वो लिंक हटा दिया गया हैं .  उसकी जगह अब देह राग अलापा जा रहा हैं ब्लॉग की वजह से कम से पढ़े लिखो का असली चेहरा दिखता हैं जो आज भी नारी को देह समझता हैं 



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