क्या किसी विवाहित स्त्री या पुरुष को , जिनके बच्चे शादी योग्य हो , प्रेम करने का अधिकार होता हैं ? प्रेम भी अपने बच्चो की उम्र के पुरुष या स्त्री से . क्या उम्र में बड़े होना , एक जिम्मेदारी नहीं लाता हैं व्यक्ति के ऊपर .
हो सकता हैं आप कहे जब दूसरे पक्ष को क़ोई आपत्ति नहीं हैं तो बड़े विवाहित व्यक्ति को क्यूँ सोचना चाहिये ? मेरा प्रश्न हैं जो छोटा हैं वो उम्र में छोटा हैं , वो गलती कर सकता हैं पर क्या बड़े को उसकी गलती सुधारनी चाहिये या उसको बढ़ावा देना चाहिये ?
क्या जो विवाहित हैं वो अपने परिवार को छोड़ सकता हैं , क़ोई सेलेब्रिटी हो तो अलग बात हैं पर आम आदमी नहीं छोड़ सकता हैं . फिर वो अपने से छोटे अविवाहित व्यक्ति { स्त्री / पुरुष } को क्या दे सकता हैं ?
एक समाचार आज पढ़ा की १५ डिवोर्स के केस में कम से कम एक केस ५० साल से ऊपर की आयु के व्यक्ति का होता हैं और वो किसी भी कौन्सेलर की बात नहीं सुनते हैं और केवल सम्बन्ध विछेद चाहते हैं . क्या अगर क़ोई ५५ - ६० साल का विवाहित व्यक्ति किसी से प्रेम करे तो ये जरुरी नहीं हैं की वो पहले अपनी पत्नी से सम्बन्ध विच्छेद कर ले और फिर अपनी जिन्दगी दुबारा शुरू करे .
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साहित्य के नज़रिये से प्रेम वर्ज्य नहीं होगा. किंतु क़ानूनी तौर पर जहां बहु विवाह को स्थान नहीं ऐसा वर्ज्य ही होगा.
ReplyDeleteप्रेम एक भाव के साथ साथ अधिकार को भी सृजित करता है यानी प्रेम एक अधिकार भी है. जो जन्म जात है. इस कोई रोक सम्भव नहीं लगती पर सामाजिक व्यवस्थाओं के साथ छेड़छाड़ न हो साथ ही अन्य किसी के अधिकारों पर अधिक्रमण की स्थिति न हो अतएव ऐसा प्रेम वर्जित होना ही चाहिये जो एक "पति-पत्नि" का एकाधिकार है. यदि ऐसा होता है तो वो "जारता" है.
I was not aware of the statistics although such cases are heard of. I think stopping a man from divorcing may not work, so simply ensuring in such cases that the wife gets 50% of the marital property and is self reliant is an option.
ReplyDeleteAnd it happens more with men wanting to marry younger women only because they can get away with it - they know they face less stigma than women might in a similar situation and they are generally able to (financially and socially) afford the consequences.
मेरे हिसाब से प्रेम करना कोई गलत बात नहीं क्यूंकि पहली बात प्रेम किया नहीं जाता हो जाता है दूसरी बात प्रेम में किसी तरह कि कोई सीमा तय नहीं होती अर्थात कोई बंदिश नहीं होती कि कब, कहाँ, किस से, कैसे प्यार होना चाहिए या किया जाना चाहिए। मगर हाँ मैं इतना ज़रूर मानती हूँ कि प्यार का असली नाम त्याग है। अपने स्वार्थ के चक्कर में अपनों कि या अपनों से जुड़े कई और लोगों कि ज़िंदगी ख़राब कर देने का हमको कोई हक नहीं।
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
प्रेम कभी भी किसी को किसीसे हो सकता है और यदि दोनो पक्ष सहमत हों तो विवाह भी वर्ज्य नही वहाँ उम्र मायने नही रखती क्योंकि उम्र के उस पडाव पर ही इंसान खुद को सबसे ज्यादा अकेला महसूस करता है और यदि उसका साथी उससे बिछड जाता है तो ऐसे मे यदि वो दूसरा विवाह करना चाहता है तो इसमे बुराई नही ………जहाँ तक उम्र का सवाल है तो इसमे जबरदस्ती नही होनी चाहिये किसी भी पक्ष की किसी से भी …………जहाँ तक घरवालों का सवाल है तो बच्चे जब बडे हो जाते हैं तो वो भी अपनी गृहस्थी मे रम जाते हैं फिर कौन ध्यान देता है इन अधिक उम्र के लोगों पर ऐसे मे यदि वो अपने लिये जीवनसाथी चुनते हैं तो उसमे कोई बुराई नहीं। लेकिन दूसरी के लिये पहली को छोडना गलत बात है क्योंकि वहाँ तो ये हुआ जैसे सामाजिक जिम्मेदारियो से मूंह मोड लिया और वहां देखा जाये तो वास्तविक प्रेम नही होता ………होता है तो सिर्फ़ वासना का आधिपत्य और ऐसे लोग ही लुटते भी देखे गये हैं ।
ReplyDeleteप्रेम, विवाह, विवाह-विच्छेद और न्याय व्यवस्था... इनमें कोई समानता नहीं, न भावनात्मक और ना ही व्यावहारिक.. प्रेम करना कोई ऎसी बात नहीं जिसे करने के पहले कोई योजना बनानी पड़े.. विचार करें कि किसी व्यक्ति को किसी के समक्ष बिठा दिया जाए और कहा जाए कि तुम इस पर गुस्सा करो.. आप कहेंगे पागलपन है. क्यों पागलपन है, क्योंकि गुस्सा सोचसमझकर योजनाबद्ध होकर नहीं किया जा सकता. कोई बहुत सीधा व्यक्ति आपको बुरा लग सकता है और कोई कुटिल व्यक्ति आपका मित्र हो सकता है.
ReplyDeleteजीवन की यह विषमताएं ही जीवन को जीवन बनाती हैं. वरना किसी कुरूप स्त्री से कोई प्रेम न करता यदि सुंदरता ही प्रेम की प्रथम और एकमात्र शर्त होती.. जबकि लैला जैसी अति साधारण स्त्री का प्रेम इतिहास का असाधारण प्रेम बना. इसलिए प्रेम करने से पहले युवक-अधेड, विवाहित-अविवाहित, कारोबारी-बेरोजगार आदि का विचार में में आता ही नहीं और अगर आए तो वह प्रेम नहीं.
विवाह योजना का भाग है, चाहे प्रेम-विवाह हो या आयोजित. और जैसा की हर योजना के साथ होता है कुछ सफल हो जाती हैं, कुछ भंग हो जाती हैं. योजना में कई एजेंसीज होती हैं जैसे पति, पत्नी, घर, ससुराल, समाज, बाल-बच्चे, नाते-रिश्तेदार. और इनमें से कोई भी कारण हो सकता है विवाह-विच्छेद का यानि योजना के विफल हो जाने का. हाँ, सफल योजना तभी संभव है जब आपसी प्रेम पैदा हो जाए. और यह नैसर्गिक प्रेम न सामीप्य से आता है, न बच्चा पैदा करने से, न प्रयास करने से. वह स्वतः उद्भूत है. और विवाह की सफलता की गारंटी. एक और रास्ता है समझौता करने का, यहाँ बाहर से सफलता दिखती है, भीतर से होती नहीं.
विवाह-विच्छेद के जिन मामलों की चर्चा आपने की है और उनमें से वे मामले, जहां पुरुष की उम्र ५० वर्ष से अधिक बताई गयी है उनमें क्या यह तथ्य भी दिया गया है कि वे मामले कितने दिनों से कोर्ट में लंबित हैं. कई बार तो दीवानी कचहरी में आपको बहुत सारे वृद्ध दिख जायेंगे जिनकी जवानी तिरोहित हो गई अदालातों में. कहने वाले तो ये भी कहते हुए पाए जायेंगे कि बुढापा आ गया संपत्ति का मोह नहीं गया!!
उस आलेख में कहा गया है की तलाक के १५ मुकदमो में एक उनका हैं जिनकी उम्र ५० से ऊपर हैं . जहां तक समझ में आया हैं उसका अर्थ हैं की अब ५० साल के ऊपर के लोग भी तलाक ले रहे हैं जिनकी शादी को २५ साल से ऊपर हो चुके हैं . वो अब साथ नहीं रहना चाहते
Deleteमै "चला बिहारी ब्लॉगर बनने" के कथन से पूर्णतय: सहमत हूँ।
ReplyDeleteप्रेम एक बहुत ही टिपिकल चीज है, वश में हो तो करना ही नहीं चाहिए| लेकिन प्रेम करने से तो नहीं होता होगा, हाँ, जिम्मेदारियों पर असर जरूर पड़ सकता है|
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