अनामिका की समस्या का क्या क़ोई समाधान हैं ?
मैने आप से मिलवाने के लिये उसका नाम अनामिका रख दिया हैं । आज मिलने आई थी मुझसे । टैरो कार्ड से समस्या का निदान चाहती थी ।
अनामिका ३१ वर्ष की हैं और विवाहित हैं । २ बच्चे भी हैं । अपने पति का "डिपार्टमेंटल स्टोर" चलाती हैं । यानी एक किराना की दूकान । खुद बी कॉम हैं , पति १२ वे पास हैं ।
समस्या हैं की पति से उनकी नहीं बनती हैं कारण एक तो उनकी शादी झूठ बोल कर हुई हैं , पति को बी कॉम बताया गया था । दूसरा कारण हैं की पति दूसरी औरतो के साथ बहुत उठते बैठे हैं और मना करने पर भी उनमे क़ोई सुधार नहीं हुआ हैं ।
वो पति के साथ खुश नहीं हैं पर बच्चो की वजह से डिवोर्स नहीं देना चाहती हैं और ये भी मानती हैं की जो उनके पति करते हैं वो अमूमन सब पति करते हैं इस लिये उस बिना पर डिवोर्स करना बेकार हैं ।
अपने पति से अनामिका के शारीरिक सम्बन्ध नोर्मल हैं
इस बैक ग्राउंड के बाद समस्या की बात करते हैं
समस्या ये हैं की अनामिका आज कल किसी को पसंद करने लगी हैं और उसके साथ दोस्ती / सम्बन्ध बनाना चाहती हैं ।
जिस को वो पसंद करती है वो अनामिका की दूकान में दूध की सप्लाई का काम करता हैं । अभी अनामिका ने उससे बात नहीं की हैं पर उनको लगता हैं वो भी उनको पसंद करता हैं । उम्र में वो अनामिका से कम हैं ।
अनामिका का मानना हैं की अगर वो अपनी सबसे बड़ी बहिन तो उनसे २० वर्ष बड़ी है से बात करे तो वो कहेगी इस में कुछ बुरा नहीं हैं क्युकी अगर पति कर रहा हैं तो पत्नी भी कर सकती हैं ।
अनामिका सम्बन्ध बनाने की इच्छुक तो हैं पर दूसरा विवाह करने की नहीं ।
सम्बन्ध बनाने में उन्हे गर्भवती होने का डर नहीं हैं क्युकी वो ओपरेशन करवा चुकी हैं ।
उनके कुछ डर हैं की
कही वो व्यक्ति उनको बाद में ब्लैक मेल ना करे
कहीं उनके पति को पता न चले
इसके अलावा अनामिका के पास प्रीवैसी मे मिलने की जगह भी नहीं हैं ।
अनामिका ये कोशिश कर चुकी हैं की किसी तरह इन बातो से उनका ध्यान हट जाए पर नहीं हो पा रहा हैं ।
अब अनामिका की उलझन हैं की वो क्या करे ??
{ सत्य घटना हैं ये कहानी नहीं और आप निसंकोच इस पर राय दे सकते हैं }
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Indian Copyright Rules
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
November 29, 2011
November 24, 2011
आप रोक सकते हैं अगर आप चाहे तो टी वी पर अश्लीलता .
भारतीये महिला अगर पोर्न स्टार बनती हैं और इस बात को निसंकोच कहती हैं तो क्या वो
बेशर्म हैं
भारतीये नहीं हैं
महिला ही नहीं हैं
महिला के नाम पर धब्बा हैं
क्या किसी हार्ड कोर पोर्न स्टार को हम कलाकार मान सकते हैं
क्या किसी हार्ड कोर पोर्न स्टार को भारतीये टी वी पर किसी प्रोग्राम में आना चाहिये
{ अब ये प्रश्न बेकार हैं क्युकी एक बिग बॉस में आ चुकी हैं }
पोर्न फिल्मो का बाज़ार बहुत बड़ा हैं और केवल पुरुष ही नहीं महिला भी इसको बड़े चाव / inquisitiveness से देखती हैं और बच्चो की बात तो रहने ही दे । किसी भी घर के कंप्यूटर पर कुछ शब्द डाल कर सर्च करे कंप्यूटर को अनगिनत शब्द दिख जाते हैं जिनको डाल कर इन साईट पर पहुचा जाता हैं
लेकिन टी वी पर आना और नेट पर देखना दो अलग अलग बाते हैं । नेट पर जो देखते हैं वो स्वेच्छा से उन साईट पर जाते हैं और टी वी पर देखना कई बार थोपा जाना होता हैं । यानी जैसे बिग बॉस के दर्शको के लिये एक पोर्न स्टार का आना या वीणा मालिक जैसी पाकिस्तानी अभिनेत्री का स्वयम्बर टी वी पर होना । क्या भारतीये परिवेश में एक पाकिस्तानी लड़की का स्वयंबर होना सही हैं । क्या ये एक प्रकार का आमत्रण नहीं हैं की हमारे यहाँ के युवा के लिये वो आये और खुले रूप में विना मालिक के साथ नाचे गाये । चलिये लोग कहेगे ये काम हैं और मै भी यही मानती हूँ रियल्टी शो मात्र एक काम हैं लेकिन वो काम हमारे यहाँ के लोगो को दिया जाये { वीणा मालिक को ४ करोड़ की डील देना कितना जायज़ हैं जबकि हमारे यहाँ भी कलाकार हैं जो ये नकली स्वयम्बर रच सकते हैं } । बड़ी बात ये हैं की क्या इस प्रकार के स्वयंबर होने ही चाहिये । क्या पोर्न स्टार को टी वी के जरिये हमारे घरो में प्रवेश करना चाहिये ??
अगर आप समझते हैं नहीं तो ये लिंक आप के काम के हैं जहां जा कर आप अपनी आपत्ति दर्ज तो करवा ही सकते है
लिंक १
लिंक २
आज कल अगर आप ने ध्यान दिया हो तो हर प्रोग्राम में जिसमे न्यूज़ भी शामिल हैं बराबर एक टिंकर दिखाया जाता हैं की अगर दर्शक को आपत्ति हैं तो यहाँ दर्ज कर के । वो लिंक http://ibfindia.com का हैं वहाँ जा कर अपनी बात कहने के लिये इस लिंक को क्लिक करे ।
आपत्ति हो और दर्ज ना करवाई जाये तो आपत्ति होनी ही नहीं चाहिये । हमे नहीं पसंद हैं ये सब , ये सब बदला जाए कौन बदलेगा ? आप बदलने के एक कंप्लेंट तो कर ही सकते हैं
अनुग्रह मानिये और करिये ।
लिंक ३
लिंक ४
Contact
The Secretary
Broadcasting Content Complaints Council
C/o Indian Broadcasting Foundation,
B-304, Ansal Plaza, New Delhi 110047
Phone Nos. 011-43794488
Fax No. 011-43794455
Email : bccc@ibfindia.com
Website: www.ibfindia
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बेशर्म हैं
भारतीये नहीं हैं
महिला ही नहीं हैं
महिला के नाम पर धब्बा हैं
क्या किसी हार्ड कोर पोर्न स्टार को हम कलाकार मान सकते हैं
क्या किसी हार्ड कोर पोर्न स्टार को भारतीये टी वी पर किसी प्रोग्राम में आना चाहिये
{ अब ये प्रश्न बेकार हैं क्युकी एक बिग बॉस में आ चुकी हैं }
पोर्न फिल्मो का बाज़ार बहुत बड़ा हैं और केवल पुरुष ही नहीं महिला भी इसको बड़े चाव / inquisitiveness से देखती हैं और बच्चो की बात तो रहने ही दे । किसी भी घर के कंप्यूटर पर कुछ शब्द डाल कर सर्च करे कंप्यूटर को अनगिनत शब्द दिख जाते हैं जिनको डाल कर इन साईट पर पहुचा जाता हैं
लेकिन टी वी पर आना और नेट पर देखना दो अलग अलग बाते हैं । नेट पर जो देखते हैं वो स्वेच्छा से उन साईट पर जाते हैं और टी वी पर देखना कई बार थोपा जाना होता हैं । यानी जैसे बिग बॉस के दर्शको के लिये एक पोर्न स्टार का आना या वीणा मालिक जैसी पाकिस्तानी अभिनेत्री का स्वयम्बर टी वी पर होना । क्या भारतीये परिवेश में एक पाकिस्तानी लड़की का स्वयंबर होना सही हैं । क्या ये एक प्रकार का आमत्रण नहीं हैं की हमारे यहाँ के युवा के लिये वो आये और खुले रूप में विना मालिक के साथ नाचे गाये । चलिये लोग कहेगे ये काम हैं और मै भी यही मानती हूँ रियल्टी शो मात्र एक काम हैं लेकिन वो काम हमारे यहाँ के लोगो को दिया जाये { वीणा मालिक को ४ करोड़ की डील देना कितना जायज़ हैं जबकि हमारे यहाँ भी कलाकार हैं जो ये नकली स्वयम्बर रच सकते हैं } । बड़ी बात ये हैं की क्या इस प्रकार के स्वयंबर होने ही चाहिये । क्या पोर्न स्टार को टी वी के जरिये हमारे घरो में प्रवेश करना चाहिये ??
अगर आप समझते हैं नहीं तो ये लिंक आप के काम के हैं जहां जा कर आप अपनी आपत्ति दर्ज तो करवा ही सकते है
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आज कल अगर आप ने ध्यान दिया हो तो हर प्रोग्राम में जिसमे न्यूज़ भी शामिल हैं बराबर एक टिंकर दिखाया जाता हैं की अगर दर्शक को आपत्ति हैं तो यहाँ दर्ज कर के । वो लिंक http://ibfindia.com का हैं वहाँ जा कर अपनी बात कहने के लिये इस लिंक को क्लिक करे ।
आपत्ति हो और दर्ज ना करवाई जाये तो आपत्ति होनी ही नहीं चाहिये । हमे नहीं पसंद हैं ये सब , ये सब बदला जाए कौन बदलेगा ? आप बदलने के एक कंप्लेंट तो कर ही सकते हैं
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November 18, 2011
पुरुष के लिये गुण , नारी के लिये दुर्गुण - महत्वाकांक्षा क्यूँ ??
महिला का शारीरिक शोषण सदियों से होता आया हैं . सदियों से वो दोयम दर्जे पर रही हैं .
यौन शोषण महिला की ही इसकी वजह हैं . एक बार यौन शोषण होने के बाद कुछ महिला अपने शरीर को जरिया बना लेती हैं
बात केवल महत्वाकांक्षा की ही नहीं हैं बात हैं की उनको इस रास्ते पर लाया कौन हैं
मधुमिता , रूपं या भावरी सबका पहले शोषण हुआ , फिर उनको " अपनाने " का भ्रम दिया गया और उस भ्रम के चलते उनको ताकत दी गयी . अपनायी तो वो गयी नहीं हाँ ताकत का इस्तमाल अवश्य सीख गयी ।
पहले यौन शोषण हटाए , पहले समानता लाये फिर महत्वाकांक्षा की बात हो . क्युकी महत्वाकांक्षा स्त्री पुरुष दोनों में बराबर होती हैं
हाँ समाज स्त्री की महत्वाकांक्षा को ही गलत मानता हैं ।
महत्वकांक्षा स्त्री को नहीं रखनी चाहिये या संभल कर रखनी चाहिये क्युकी वो स्त्री हैं . यही भावना स्त्री को दोयम का दर्जा दिलवा रही हैं सदियों से .
सुरक्षित नहीं हैं स्त्री समाज में इस लिये वो महत्वकांक्षा ना ही रखे वरना जो बात एक पुरुष के लिये गुण मानी जाती हैं यानी महत्वाकांक्षा वो स्त्री के लिये दुर्गुण क्यूँ बन जाती हैं
फिर से सोचिये जरुर
हम क्यूँ हर समय , हर बात में ये भेद भाव करते हैं की क्युकी वो स्त्री हैं इसलिये उसका ये करना गलत हैं यानी अगर वो पुरुष होती तो सही था ।
हाँ ये भी ध्यान रहे की अगर स्त्री क़ोई गैर कानूनी काम करती हैं तो इस लिये सजा कम नहीं होगी की वो स्त्री हैं और कोर्ट ने भी कनिमोज़ी केस में यही कहा हैं । अगर राजा जेल में हैं तो कनीमोज़ि भी जेल में हैं । कुकर्मो की सजा बराबर हैं क्युकी महत्वाकांक्षा बराबर थी ।
बराबर सजा का प्रावधान सही हैं तो बराबर महत्वाकांक्षा रखना क्यूँ गलत हुआ ।
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यौन शोषण महिला की ही इसकी वजह हैं . एक बार यौन शोषण होने के बाद कुछ महिला अपने शरीर को जरिया बना लेती हैं
बात केवल महत्वाकांक्षा की ही नहीं हैं बात हैं की उनको इस रास्ते पर लाया कौन हैं
मधुमिता , रूपं या भावरी सबका पहले शोषण हुआ , फिर उनको " अपनाने " का भ्रम दिया गया और उस भ्रम के चलते उनको ताकत दी गयी . अपनायी तो वो गयी नहीं हाँ ताकत का इस्तमाल अवश्य सीख गयी ।
पहले यौन शोषण हटाए , पहले समानता लाये फिर महत्वाकांक्षा की बात हो . क्युकी महत्वाकांक्षा स्त्री पुरुष दोनों में बराबर होती हैं
हाँ समाज स्त्री की महत्वाकांक्षा को ही गलत मानता हैं ।
महत्वकांक्षा स्त्री को नहीं रखनी चाहिये या संभल कर रखनी चाहिये क्युकी वो स्त्री हैं . यही भावना स्त्री को दोयम का दर्जा दिलवा रही हैं सदियों से .
सुरक्षित नहीं हैं स्त्री समाज में इस लिये वो महत्वकांक्षा ना ही रखे वरना जो बात एक पुरुष के लिये गुण मानी जाती हैं यानी महत्वाकांक्षा वो स्त्री के लिये दुर्गुण क्यूँ बन जाती हैं
फिर से सोचिये जरुर
हम क्यूँ हर समय , हर बात में ये भेद भाव करते हैं की क्युकी वो स्त्री हैं इसलिये उसका ये करना गलत हैं यानी अगर वो पुरुष होती तो सही था ।
हाँ ये भी ध्यान रहे की अगर स्त्री क़ोई गैर कानूनी काम करती हैं तो इस लिये सजा कम नहीं होगी की वो स्त्री हैं और कोर्ट ने भी कनिमोज़ी केस में यही कहा हैं । अगर राजा जेल में हैं तो कनीमोज़ि भी जेल में हैं । कुकर्मो की सजा बराबर हैं क्युकी महत्वाकांक्षा बराबर थी ।
बराबर सजा का प्रावधान सही हैं तो बराबर महत्वाकांक्षा रखना क्यूँ गलत हुआ ।
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November 17, 2011
शादी जिसकी , निर्णय उसका पर कितना प्रतिशत
शादी के तय करते समय लडके और लड़की दोनों को एक दूसरे को दिखाया जाता हैं और उनसे उनकी पसंद और ना पसंद उनके अभिभावक पूछते हैं तब ही विवाह किया जाता हैं ,
उसके बाद जब भी बात चीत होती हैं तो केवल दोनों तरफ के अभिभावकों में ही होती है जिस मै शादी से सम्बंधित सब बाते तय की जाती हैं ।
उस समय क्यूँ नहीं उन दोनों व्यक्तियों को जिनकी शादी हो रही हैं बिठाया जाता हैं । क्यूँ वो अनिभिज्ञ रखे जाते हैं या रहते हैं शादी के खर्चो से ।
यहाँ तक की अगर प्रेम विवाह भी हो रहा हैं तब भी एक बार बात अभिभावकों तक आ जाती हैं तो फिर खर्चो से लेकर सब इन्तेजाम तक बात उनके बीच ही रहती हैं
पहले शादियाँ एक तरह से बाल विवाह होते थे इस लिये जिनकी शादी होती थी वो "नासमझ " माने जाते थे पर आज के समय में जिनकी शादी होती हैं वो ना केवल बालिग़ होते हैं बल्कि आर्थिक रूप से सक्षम भी होते हैं फिर क्यूँ उनको सबसे महत्व पूर्ण बातो से ही अलग रखा जाता हैं
शादी का खर्चा , लेन देन ये सब बाते क्यूँ उनके सामने नहीं की जाती हैं ?
या की जाती हैं पर वो अनभिज्ञ ही बने रहना चाहते हैं और अपने को निर्णय की जिम्मेदारियों से मुक्त रखना चाहते हैं ताकि आगे अगर शादी / परिवार में क़ोई समस्या हो तो वो अपने अभिभावकों को दोष दे सके ।
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उसके बाद जब भी बात चीत होती हैं तो केवल दोनों तरफ के अभिभावकों में ही होती है जिस मै शादी से सम्बंधित सब बाते तय की जाती हैं ।
उस समय क्यूँ नहीं उन दोनों व्यक्तियों को जिनकी शादी हो रही हैं बिठाया जाता हैं । क्यूँ वो अनिभिज्ञ रखे जाते हैं या रहते हैं शादी के खर्चो से ।
यहाँ तक की अगर प्रेम विवाह भी हो रहा हैं तब भी एक बार बात अभिभावकों तक आ जाती हैं तो फिर खर्चो से लेकर सब इन्तेजाम तक बात उनके बीच ही रहती हैं
पहले शादियाँ एक तरह से बाल विवाह होते थे इस लिये जिनकी शादी होती थी वो "नासमझ " माने जाते थे पर आज के समय में जिनकी शादी होती हैं वो ना केवल बालिग़ होते हैं बल्कि आर्थिक रूप से सक्षम भी होते हैं फिर क्यूँ उनको सबसे महत्व पूर्ण बातो से ही अलग रखा जाता हैं
शादी का खर्चा , लेन देन ये सब बाते क्यूँ उनके सामने नहीं की जाती हैं ?
या की जाती हैं पर वो अनभिज्ञ ही बने रहना चाहते हैं और अपने को निर्णय की जिम्मेदारियों से मुक्त रखना चाहते हैं ताकि आगे अगर शादी / परिवार में क़ोई समस्या हो तो वो अपने अभिभावकों को दोष दे सके ।
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November 16, 2011
एक वार्तालाप के अंश
एक वार्तालाप के अंश
कुछ दिन पहले २ समधी साथ बैठ कर चाय पी रहे थे । बैठक लड़की के पिता के घर पर थी । एक मित्रवत चाय संध्या ।
दोनों समधी ७५-८० वर्ष के आस पास थे । लड़की के पिता के लडकियां ही थी और लडके के पिता के लडके ही थे ।
दोनों समधी जिन्दगी के पहलु पर बात कर रहे थे की कैसे दोनों की तनखा १९६७ में लगभग ६०० रूपए प्रतिमाह होती थी ।
लडके के पिता ने कहा आज भी उनको अपना एक प्लाट बेचना हैं जिसकी कीमत इस समय ९० लाख हैं । इससे पहले भी वो एक प्लाट बेच चुके हैं यानी उन्होने अपनी कमाई में से सावधानी से काफी कुछ बचा लिया था और जोड़ कर भी रखा हैं ।
लड़की के पिता को समझ नहीं आया वो इस गणित का क्या और कैसे जवाब दे । बचाया तो उन्होने भी था , दो प्लाट तो उन्होने भी खरीदे थे लेकिन अब उनके पास बेचने के लिये वो प्लाट हैं नहीं । दोनों प्लाट बेच कर ही तो उन्होने अपनी दोनों बेटियों की शादी की थी । २०० गज का अपना प्लाट बेच कर ही तो १९८८ में २५०००० रुपये में इन्हीं के यहाँ उन्होने अपनी बड़ी बेटी का विवाह किया था । हाँ दहेज़ "नहीं माँगा " गया था । अगर वो प्लाट आज होता तो ९० लाख से ऊपर का ही होता ।
यही फरक हैं बेटे के पिता में और और बेटी के पिता मे। बेटे के पिता को बचत कर के सम्पत्ति जोडने का अधिकार हैं और वही बेटी का पिता सम्पत्ति बेच कर बेटी ब्याहता हैं ।
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कुछ दिन पहले २ समधी साथ बैठ कर चाय पी रहे थे । बैठक लड़की के पिता के घर पर थी । एक मित्रवत चाय संध्या ।
दोनों समधी ७५-८० वर्ष के आस पास थे । लड़की के पिता के लडकियां ही थी और लडके के पिता के लडके ही थे ।
दोनों समधी जिन्दगी के पहलु पर बात कर रहे थे की कैसे दोनों की तनखा १९६७ में लगभग ६०० रूपए प्रतिमाह होती थी ।
लडके के पिता ने कहा आज भी उनको अपना एक प्लाट बेचना हैं जिसकी कीमत इस समय ९० लाख हैं । इससे पहले भी वो एक प्लाट बेच चुके हैं यानी उन्होने अपनी कमाई में से सावधानी से काफी कुछ बचा लिया था और जोड़ कर भी रखा हैं ।
लड़की के पिता को समझ नहीं आया वो इस गणित का क्या और कैसे जवाब दे । बचाया तो उन्होने भी था , दो प्लाट तो उन्होने भी खरीदे थे लेकिन अब उनके पास बेचने के लिये वो प्लाट हैं नहीं । दोनों प्लाट बेच कर ही तो उन्होने अपनी दोनों बेटियों की शादी की थी । २०० गज का अपना प्लाट बेच कर ही तो १९८८ में २५०००० रुपये में इन्हीं के यहाँ उन्होने अपनी बड़ी बेटी का विवाह किया था । हाँ दहेज़ "नहीं माँगा " गया था । अगर वो प्लाट आज होता तो ९० लाख से ऊपर का ही होता ।
यही फरक हैं बेटे के पिता में और और बेटी के पिता मे। बेटे के पिता को बचत कर के सम्पत्ति जोडने का अधिकार हैं और वही बेटी का पिता सम्पत्ति बेच कर बेटी ब्याहता हैं ।
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November 13, 2011
शोषण - एक दुधारी तलवार हैं
चाइल्ड लबर की मेरी पोस्ट पर एक कमेन्ट में कहा गया मध्यम वर्ग कहां "जब मध्यम वर्गीय लोग, घरेलू कार्य के लिए किसी को रखते हैं। तो उसे एक अलग कमरा॥पंखा...नहीं मुहैया करवाते....और हर महीने दो सेट कपड़े भी नहीं देते हैं...साबुन शैम्पू पर भी २०० तो खर्च नहीं किए जाते..." { कमेन्ट को केवल एक सोच की तरह देखा जाए जिस से आगे मंथन करने में आसानी होगी इस पोस्ट को कमेन्ट लेखक पर व्यक्तिगत आक्षेप नहीं माना जाए }
अगर ऐसा हैं तो फिर हम शोषण की बात करते ही क्यूँ हैं जबकि हम खुद अपने घरो में अपने से कम आर्थिक स्तर वाले लोगो का शोषण ही करते हैं ।
आज भी माध्यम वर्ग में ही सबसे ज्यादा प्रचलन हैं काम के लिये बाई रखने का । ऊपर के वर्ग में भी घर में काम करने वाले रखे जाते हैं पर "casual labor " की तरह नहीं ।
झाड़ू पोछा बर्तन करने के लिये ये लोग आती हैं तो इनके बच्चे कहां रहते हैं ??
कितने घर हैं जो इनके बच्चो को अन्दर आने देते हैं ??
कहां जाते हैं ये बच्चे जब इनकी माँ काम पर आती हैं ??
कौन से क्रेश / शिशु गृह इन के लिये खुला हैं जहां ये माँ के ना रहने पर ये रहते हैं ?
ऐसी ज्यादा माँ के बच्चे कबाड़ ही बीनते हैं या कहीं नौकरी करते हैं ।
क्या जरुरी नहीं हैं की हम कम से कम उतनी तनखा जरुर दे जो मिनिमम वेज कहीं जाती हैं ??
क्या केवल ये कह देने से की हम घर की तरह रखते हैं से बात ख़तम हो जाती हैं , जब आप बेसिक सहूलियत नहीं दे सकते , जब आप मिनिमम वेज नहीं दे सकते तो फिर नौकर रख कर आप केवल और केवल उसका शोषण ही कर रहे हैं ।
अब इसका दूसरा रुख देखिये । अगर आप ने मिनिमम वेज दिये और सहुलियते भी दी तो उसको काम भी पूरा करना होगा पर ऐसा नहीं हो रहा हैं आप से पैसा लिया जाता हैं बड़े आदमी का और काम करता हैं क़ोई बच्चा । अब आप ने पैसे पूरे दिये हैं सहुलियते भी तो फिर शोषण कैसे हुआ ।
आज कल हर काम करने वाली बाई ४ छुट्टी मांगती हैं और आप से उम्मीद करती हैं की उस दिन के बर्तन आप खुद धो कर रखेगे । ४ दिन की छुट्टी क्यूँ , क्युकी सब काम करने वालो को मिलती हैं । सही पर सब काम करने वाले यानी जो ऑफिस में हैं अपना काम खुद करते हैं उनकी छुट्टी पर उनका काम कौन करता हैं और उनकी छुट्टी का पैसा भी उनकी सैलिरी ही समझा जाता हैं । लेकिन बाई को ये छुट्टी तो अपना अधिकार लगता हैं पर उस दिन का काम अगले दिन करना नहीं ??
अब कौन किस का शोषण कर रहा हैं ये आप खुद सोचिये ।
समस्या हैं की हम भावना प्रधान समाज हैं जबकि काम भावना से नहीं कर्त्तव्य से जुडा होता हैं । हम घर के काम को प्रोफेशन की तरह नहीं लेते हैं इसी वजह से हमारे यहाँ सर्विस इंडस्ट्री के लिये क़ोई रुल नहीं हैं । ना रुल हैं काम करने वालो के लिये ना कराने वालो के लिये ।
काम वाली बाई से बात करो की समय पर क्यूँ नहीं आयी वो कहेगी " उधर वाली भाभी के यहाँ , मेहमान थे उन्होने कहा नाश्ता बनवा दो " सो देर होगयी । उधर वाली भाभी से पूछा तो उत्तर मिला " काम किया तो क्या मैने तो तुरंत पैसे दिये और नाश्ता अलग करवाया " । अब ऐसे में उनलोगों का क्या जिनके यहाँ वो बाई देर से पहुची । अगर उनमे से क़ोई बाहर नौकरी करती हो तो ???
उधर वाली भाभी ने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया पैसा दिया , बाई ने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया नाश्ता बनवा दिया पर और लोगो को जो परेशानी हुई उसकी भरपाई कैसे होगी ।
बाई के बच्चो की फीस भर दी एक भाभी ने तो दूसरी भाभी को जा कर बाई ने सूना दिया । अगर उसने बच्चो की उनिफ़ोर्म के पैसे नहीं दिये तो वो बुरी होगई ।
क्या जरुरी नहीं हैं इस सब में सुधार हो ?? अपनी सुविधा के लिये कुछ भी करना चाहे उस से दूसरो को असुविधा ही क्यूँ ना हो भी शोषण ही हैं ।
१४ साल तक के बच्चो को ही सरकार बच्चा मानती हैं और केवल उनको ही आप काम पर रखेगे तो आप कानून के अपराधी हैं उसके ऊपर की उम्र के बच्चों से काम लिया जा सकता हैं ।
चाइल्ड लबर के खिलाफ सबसे पहले आवाज विदेशो में उठी थी और उन्होने हमारे उद्योग में जहां बच्चे काम करते थे उन पर पाबंदी लगा दी और समान लेना बंद करदिया । लाखो घरो में चूल्हा जलना बंद होगया । सरकार जगी और इन बच्चो के बारे में सोचना शुरू किया पर हुआ कुछ नहीं । क्युकी जन संख्या इतनी तेजी से बढ़ती हैं की कुछ करना संभव ही नहीं हैं ।
गैर क़ानूनी तरीके से कुछ भी करना पड़ता हैं तो क्या बेहतर हो की सर्विस इंडस्ट्री के लिये कानून बना दिये जाए । बच्चो से काम लेना गैर कानूनी ना हो हां उनको क्या क्या सहूलियत देनी होगी इस पर बात हो ।
समीर लाल { उड़न तश्तरी } ने अपनी किताब में लिखा हैं जो देश , इंडिया में चाइल्ड लबर के खिलाफ बात करते हैं वही देश अपने यहाँ बच्चो से काम करवाने में उरेज नहीं करते । विदेशो में बच्चे बड़े बड़े रेस्तराओ में काम करते हैं और इसको स्वाबलंबन माना जाता हैं ।
आज यूरोप , इकोनोमिक डिसास्टर के कगार पर हैं , सबसे पहले बच्चो से काम ना करवाये , पल्स्टिक में सामान ना बचे इत्यादि नियम के ऊपर बात वही से उठी थी । उस से सारे सामान की कीमत में बढ़ावा हुआ और भारत से समान जाना काम हुआ या मेहंगा हुआ ।
हमारे देश की cotton से बनी वस्तुये जो cottage industry यानी जहां पूरा परिवार काम करता था ख़तम होगई । सबसे सस्ती वही बिकती थी । आज यूरोप उनको खरीदना चाहता हैं पर अब वो काम बंद ही हो गया हैं क्युकी इतने नियम और कानून उन्होने बना दिये की परिवारों ने वो काम छोड़ ही दिया ।
गरीबी की बात करना , गरीबी हटाने की बात करना और बच्चो और काम वालो के शोषण की बात करना इस सब को करने से पहले सोचना होगा की हमारे देश की स्थिति को देखते हुए क्या सही हैं ??
कुछ नियम कानून हम सब को खुद बनाने होगे सर्विस इंडस्ट्री के लिये । अगर हम शोषण करना नहीं चाहते तो हमे अपने शोषण को भी बचाना चाहिये ।
कानून बनाने होगे की हमारे घर के उद्योग बंद ना होजाये और परिवार भुखमरी पर ना पहुँच जाये । बच्चो से काम लेना बुरा नहीं हैं अगर आप उनके काम का पूरा मेहनताना दे । जो मूल भूत सुविधा हैं वो सब उनको मुहिया कराये ।
i would prefer to have rules of our own that will benefit us and protect us . i would prefer that if we employe someone as domestic help we give them exactly the same amount that is minimum wage . and i would prefer to take work accordingly . i feel exploitation is a 2 way process and has nothing to do with class or cadre . its a human tendency and we need to rise over it
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अगर ऐसा हैं तो फिर हम शोषण की बात करते ही क्यूँ हैं जबकि हम खुद अपने घरो में अपने से कम आर्थिक स्तर वाले लोगो का शोषण ही करते हैं ।
आज भी माध्यम वर्ग में ही सबसे ज्यादा प्रचलन हैं काम के लिये बाई रखने का । ऊपर के वर्ग में भी घर में काम करने वाले रखे जाते हैं पर "casual labor " की तरह नहीं ।
झाड़ू पोछा बर्तन करने के लिये ये लोग आती हैं तो इनके बच्चे कहां रहते हैं ??
कितने घर हैं जो इनके बच्चो को अन्दर आने देते हैं ??
कहां जाते हैं ये बच्चे जब इनकी माँ काम पर आती हैं ??
कौन से क्रेश / शिशु गृह इन के लिये खुला हैं जहां ये माँ के ना रहने पर ये रहते हैं ?
ऐसी ज्यादा माँ के बच्चे कबाड़ ही बीनते हैं या कहीं नौकरी करते हैं ।
क्या जरुरी नहीं हैं की हम कम से कम उतनी तनखा जरुर दे जो मिनिमम वेज कहीं जाती हैं ??
क्या केवल ये कह देने से की हम घर की तरह रखते हैं से बात ख़तम हो जाती हैं , जब आप बेसिक सहूलियत नहीं दे सकते , जब आप मिनिमम वेज नहीं दे सकते तो फिर नौकर रख कर आप केवल और केवल उसका शोषण ही कर रहे हैं ।
अब इसका दूसरा रुख देखिये । अगर आप ने मिनिमम वेज दिये और सहुलियते भी दी तो उसको काम भी पूरा करना होगा पर ऐसा नहीं हो रहा हैं आप से पैसा लिया जाता हैं बड़े आदमी का और काम करता हैं क़ोई बच्चा । अब आप ने पैसे पूरे दिये हैं सहुलियते भी तो फिर शोषण कैसे हुआ ।
आज कल हर काम करने वाली बाई ४ छुट्टी मांगती हैं और आप से उम्मीद करती हैं की उस दिन के बर्तन आप खुद धो कर रखेगे । ४ दिन की छुट्टी क्यूँ , क्युकी सब काम करने वालो को मिलती हैं । सही पर सब काम करने वाले यानी जो ऑफिस में हैं अपना काम खुद करते हैं उनकी छुट्टी पर उनका काम कौन करता हैं और उनकी छुट्टी का पैसा भी उनकी सैलिरी ही समझा जाता हैं । लेकिन बाई को ये छुट्टी तो अपना अधिकार लगता हैं पर उस दिन का काम अगले दिन करना नहीं ??
अब कौन किस का शोषण कर रहा हैं ये आप खुद सोचिये ।
समस्या हैं की हम भावना प्रधान समाज हैं जबकि काम भावना से नहीं कर्त्तव्य से जुडा होता हैं । हम घर के काम को प्रोफेशन की तरह नहीं लेते हैं इसी वजह से हमारे यहाँ सर्विस इंडस्ट्री के लिये क़ोई रुल नहीं हैं । ना रुल हैं काम करने वालो के लिये ना कराने वालो के लिये ।
काम वाली बाई से बात करो की समय पर क्यूँ नहीं आयी वो कहेगी " उधर वाली भाभी के यहाँ , मेहमान थे उन्होने कहा नाश्ता बनवा दो " सो देर होगयी । उधर वाली भाभी से पूछा तो उत्तर मिला " काम किया तो क्या मैने तो तुरंत पैसे दिये और नाश्ता अलग करवाया " । अब ऐसे में उनलोगों का क्या जिनके यहाँ वो बाई देर से पहुची । अगर उनमे से क़ोई बाहर नौकरी करती हो तो ???
उधर वाली भाभी ने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया पैसा दिया , बाई ने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया नाश्ता बनवा दिया पर और लोगो को जो परेशानी हुई उसकी भरपाई कैसे होगी ।
बाई के बच्चो की फीस भर दी एक भाभी ने तो दूसरी भाभी को जा कर बाई ने सूना दिया । अगर उसने बच्चो की उनिफ़ोर्म के पैसे नहीं दिये तो वो बुरी होगई ।
क्या जरुरी नहीं हैं इस सब में सुधार हो ?? अपनी सुविधा के लिये कुछ भी करना चाहे उस से दूसरो को असुविधा ही क्यूँ ना हो भी शोषण ही हैं ।
१४ साल तक के बच्चो को ही सरकार बच्चा मानती हैं और केवल उनको ही आप काम पर रखेगे तो आप कानून के अपराधी हैं उसके ऊपर की उम्र के बच्चों से काम लिया जा सकता हैं ।
चाइल्ड लबर के खिलाफ सबसे पहले आवाज विदेशो में उठी थी और उन्होने हमारे उद्योग में जहां बच्चे काम करते थे उन पर पाबंदी लगा दी और समान लेना बंद करदिया । लाखो घरो में चूल्हा जलना बंद होगया । सरकार जगी और इन बच्चो के बारे में सोचना शुरू किया पर हुआ कुछ नहीं । क्युकी जन संख्या इतनी तेजी से बढ़ती हैं की कुछ करना संभव ही नहीं हैं ।
गैर क़ानूनी तरीके से कुछ भी करना पड़ता हैं तो क्या बेहतर हो की सर्विस इंडस्ट्री के लिये कानून बना दिये जाए । बच्चो से काम लेना गैर कानूनी ना हो हां उनको क्या क्या सहूलियत देनी होगी इस पर बात हो ।
समीर लाल { उड़न तश्तरी } ने अपनी किताब में लिखा हैं जो देश , इंडिया में चाइल्ड लबर के खिलाफ बात करते हैं वही देश अपने यहाँ बच्चो से काम करवाने में उरेज नहीं करते । विदेशो में बच्चे बड़े बड़े रेस्तराओ में काम करते हैं और इसको स्वाबलंबन माना जाता हैं ।
आज यूरोप , इकोनोमिक डिसास्टर के कगार पर हैं , सबसे पहले बच्चो से काम ना करवाये , पल्स्टिक में सामान ना बचे इत्यादि नियम के ऊपर बात वही से उठी थी । उस से सारे सामान की कीमत में बढ़ावा हुआ और भारत से समान जाना काम हुआ या मेहंगा हुआ ।
हमारे देश की cotton से बनी वस्तुये जो cottage industry यानी जहां पूरा परिवार काम करता था ख़तम होगई । सबसे सस्ती वही बिकती थी । आज यूरोप उनको खरीदना चाहता हैं पर अब वो काम बंद ही हो गया हैं क्युकी इतने नियम और कानून उन्होने बना दिये की परिवारों ने वो काम छोड़ ही दिया ।
गरीबी की बात करना , गरीबी हटाने की बात करना और बच्चो और काम वालो के शोषण की बात करना इस सब को करने से पहले सोचना होगा की हमारे देश की स्थिति को देखते हुए क्या सही हैं ??
कुछ नियम कानून हम सब को खुद बनाने होगे सर्विस इंडस्ट्री के लिये । अगर हम शोषण करना नहीं चाहते तो हमे अपने शोषण को भी बचाना चाहिये ।
कानून बनाने होगे की हमारे घर के उद्योग बंद ना होजाये और परिवार भुखमरी पर ना पहुँच जाये । बच्चो से काम लेना बुरा नहीं हैं अगर आप उनके काम का पूरा मेहनताना दे । जो मूल भूत सुविधा हैं वो सब उनको मुहिया कराये ।
i would prefer to have rules of our own that will benefit us and protect us . i would prefer that if we employe someone as domestic help we give them exactly the same amount that is minimum wage . and i would prefer to take work accordingly . i feel exploitation is a 2 way process and has nothing to do with class or cadre . its a human tendency and we need to rise over it
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November 10, 2011
बेटियाँ क्यूँ नापसंद की जाती हैं - वो कारण जो पाठको ने दिये हैं
- शिल्पा ने कारण दिया की बेटियाँ इस लिये ना पसंद हैं क्युकी वो बुढ़ापे में साथ नहीं होती हैं यानी माँ पिता का ख्याल नहीं रख सकती।
- विजय जी ने कारण स्पष्ट नहीं दिया पर उनका कहना की शादी के खर्च का इन्तेजाम हो जाता हैं भगवन भरोसे , निष्कर्ष देता हैं की शादी का खर्चा भी कारण हो सकता हैं
- ihm ने कारण दिये हैं
- १. बेटियां घर की इज्ज़त होती हैं, उन्हें संभालना बहुत मुश्किल होता है, उनकी एक ज़रा सी चूक से परिवार के पुरुष सदस्यों की नाकें कट सकती है. जो नाकें बहुओं के जलने, और भ्रूण हत्या को झेल जाती है वो एक पुत्री के किसी सहयोगी या सहपाठी से हंस कर बोल लेने से खतरे में पड़ जाती है.
२. परेशानियाँ ज्यादा, फायदे कुछ नहीं, पढ़ायें लिखायें माँ-बाप, तन्ख्य्वा पर हक़ होता है ससुराल वालों का. पालने पोसने में मेहनत तो उतनी ही लगती है, खर्चा भी बराबर होता हो, आजकल बहुत से माता-पिता लड़कियों को ट्रेनिंग देने के बहाने उन्हें स्कूल से आते ही काम में भी नहीं लगाते. इतना सब करते समय जो पारंपरिक परिवार हैं उन्हें फिर भी डर रहता है की इतना लाड़ प्यार दे रहे हैं, कहीं इंसानियत व आदर की आदत पड़ गयी तो ससुराल में कैसे निभेगी.
3. हमारी परंपरा है की जब तक कुछ वापस मिलने की उपेक्षा ना हो, माता पिता भी प्यार नहीं करते. - राजन ने कारण दिया बेटी के माँ बाप को समाज में बहुत बेचारा समझा जाता है।उन्हें दयनीय और कमतर माना जाता है. और बेटी बुढापे में साथ नहीं रह पाती क्योंकि उसे विवाह के बाद ससुराल जाना पडता है
- G Vishwanathजी का कहना हैं समाज में पुत्र मोह हैं ख़ास कर पुरुषो में पुत्र के लिये लालसा ज्यादा हैं बेटियां आश्रित मानी गई हैं,अर्जक नहीं।
- कुमार राधारमण जी के अनुसार कारण हैं की बेटियां आश्रित मानी गई हैं,अर्जक नहीं।और जोबेटी कमाती भी हैं वो भी अपने परिवार के लिये कुछ नहीं करती हैं { करनहीं सकती की बात से अलग हैं ये बात की अभी भी समाज में बेटियाँ अपने माँ पिता के लिये अपने कर्तव्यो का पालन नहीं करती हैं } ।
- डॉ॰ मोनिका शर्मा ने कारण दिया हैं की नापसंद होती हैं आज भी बेटियाँ क्युकी माँ पिता के उनकी सुरक्षा के लिये चिंतित रहते हैं और घर में ही उन्हे सुरक्षित मानते हैं जिस के कारण वो आर्थिक भार की तरह होती हैं।
- वाणी जी के अनुसार दो प्रमुख कारण हैं -- लड़कियों के सम्मान या इज्ज़त के कड़े मानदंड और असुरक्षित समाज ....
- अमित चन्द्र ने दो कारण दिये हैं . पहले तो लडकियों के प्रति समाज की दोहरी निति और जो सबसे बड़ा कारण है वो है दहेज
ना पसंद हैं बेटी इस समाज को आज भी क्यूँ - एक फेरिहिस्त कारणों की - आप बना दे - विमर्श होता रहेगा
इस पोस्ट पर केवल कारण पूछे थे अब लगता हैं कुछ विमर्श भी होना चाहिये की ये जो कारण बताये गये हैं इनको कैसे निरस्त्र किया जा सकता हैं । क्या क्या करना चाहिये समाज को की ये कारण ख़तम हो जाए और बेटियों को कोख में ना मारा जाये ।All post are covered under copy right law । Any one who wants to use the content has to take permission of the author before reproducing the post in full or part in blog medium or print medium .
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November 07, 2011
चाइल्ड लेबर
आज सुबह अखबार खोला तो खबर थी की एक १४ साल की लड़की को जिनके यहाँ वो काम करती थी वो अस्पताल में भर्ती करा गये । लड़की की कमर में चोट हैं और वो उठ बैठ नहीं पा रही ।
लड़की का बयान हैं की वो जिनके यहाँ नौकरी करती थी वहाँ उससे एक भरी ट्रंक उठवाया गया जो उसके ऊपर गिर गया । उसके बाद तुरंत क़ोई इलाज नहीं हुआ बस दर्द निवारक दवा दी गयी ।
लड़की के पिता को बुलवाया गया हैं orissa से । पिता का कहना हैं की उसने गरीबी के चलते ये किया और सोचा था की उसकी लड़की अच्छी तरह रहेगी और मालिक के दो छोटे बच्चो की देखभाल करेगी लेकिन उसकी तो लड़की की जिन्दगी ही खराब कर दी गयी । लड़की के ७ भाई बहिन और भी हैं और वो शायद सबसे बड़ी हैं ।
पूरे प्रकरण में कहीं भी ये नहीं बताया गया हैं की लड़की को कितने रूपए पर नौकरी दी गयी थी ??
आप कहेगे ये तो रचना बड़ी ही असंवेदन शील बात आप ने कह दी लेकिन मै सच में जानना चाहती हूँ की जब लोग किसी बच्चे को नौकरी पर रखते हैं रखवाते हैं तो क्या एक व्यसक जितनी तनखा देने / लेने के बाद ये संभव हो सकता हैं उस से क़ोई काम ही ना लिया जाये । कानून बच्चो से काम करवाने को जुर्म मानता हैं फिर भी लोग रखवाते हैं और लोग रखते हैं ।
आप कहेगे इस मै सैलिरी मुद्दा हैं ही नहीं , मुझे लगता हैं अगर इस पर सोचा जाये तो बेहतर होगा
अभी कुछ दिन पहले माँ के बीमार होजाने से मै क़ोई लड़की सहायक उनके लिये खोज रही थी जो उनके साथ २४ घंटे रहे । घर के आस पास बहुत ऐसे परिवार हैं जहां के बच्चे काम कर रहे हैं उन्हे पता चला तो एक महिला अपनी १४ साल की लड़की को ले कर आगयी । रखना मुझे था नहीं क्युकी मै १८ वर्ष से कम की आयु के किसी भी बच्चे से काम कराने की पक्षधर नहीं हूँ फिर भी बात करनी थी ।
लड़की चुप खड़ी थी , उसकी माँ कह रही थी की आप इसको रख लो । मैने पूछा अपना खाना बना लेगी क्युकी मै बना कर नहीं खिला सकती । उसकी माँ बोली हाँ और आप कहोगी तो आप के लिये रोटी बना देगी । माता जी के कपड़े भी धो देगी और झाड़ू पोछा भी कर देगी ।
मेरी माँ ने पूछा कितने दिन काम करेगी तो वो बोली अभी तो मै बिहार जा रही हूँ १५ दिन मै आयुंगी तब तक तो आप रख लो क्युकी आप के यहाँ क़ोई आदमी नहीं हैं इस लिये ही हम इसको रात में आप के यहाँ छोड़ सकते हैं । मेरी माँ ने पूछा उसके बाद तो बोली लौट कर अगर लड़की ने कहा आप ने उसको अपनी बेटी की तरह रखा हैं तो फिर वो काम करती रहेगी ।
मैने पूछा ये सब छोडो ये बताओ तनखा कितनी चाहिये । मै केवल २००० रूपए और २ समय का खाना और २ समय का नाश्ता दूंगी । काम बस माता जी के साथ रहने का हैं क़ोई झाड़ू पोछा वगरह नहीं करना हैं हाँ माँ के कपड़े तो धोने ही होंगे ।
मेरे इतना कहने पर बोली नहीं जी हम तो ४००० रुपया लेगे खाना कपडा सब देना होगा काम आप जो चाहे लो ।
महज १४ साल की बच्ची के लिये १०००० रुपया महिना खर्च करना { 4000 salary + 6000 boarding , lodging , clothes , soap , shampoo and other products } बेहद गलत लगा मुझे ।
विमर्श ये हैं की अगर क़ोई १०००० रुपया खर्च कर के किसी बच्चे को नौकरी पर रखता हैं तो क्या उस से क़ोई काम ही नहीं लेगा ??? क्या ये संभव भी हैं ??
child labor is punishable offense . please don't employ a child .
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लड़की का बयान हैं की वो जिनके यहाँ नौकरी करती थी वहाँ उससे एक भरी ट्रंक उठवाया गया जो उसके ऊपर गिर गया । उसके बाद तुरंत क़ोई इलाज नहीं हुआ बस दर्द निवारक दवा दी गयी ।
लड़की के पिता को बुलवाया गया हैं orissa से । पिता का कहना हैं की उसने गरीबी के चलते ये किया और सोचा था की उसकी लड़की अच्छी तरह रहेगी और मालिक के दो छोटे बच्चो की देखभाल करेगी लेकिन उसकी तो लड़की की जिन्दगी ही खराब कर दी गयी । लड़की के ७ भाई बहिन और भी हैं और वो शायद सबसे बड़ी हैं ।
पूरे प्रकरण में कहीं भी ये नहीं बताया गया हैं की लड़की को कितने रूपए पर नौकरी दी गयी थी ??
आप कहेगे ये तो रचना बड़ी ही असंवेदन शील बात आप ने कह दी लेकिन मै सच में जानना चाहती हूँ की जब लोग किसी बच्चे को नौकरी पर रखते हैं रखवाते हैं तो क्या एक व्यसक जितनी तनखा देने / लेने के बाद ये संभव हो सकता हैं उस से क़ोई काम ही ना लिया जाये । कानून बच्चो से काम करवाने को जुर्म मानता हैं फिर भी लोग रखवाते हैं और लोग रखते हैं ।
आप कहेगे इस मै सैलिरी मुद्दा हैं ही नहीं , मुझे लगता हैं अगर इस पर सोचा जाये तो बेहतर होगा
अभी कुछ दिन पहले माँ के बीमार होजाने से मै क़ोई लड़की सहायक उनके लिये खोज रही थी जो उनके साथ २४ घंटे रहे । घर के आस पास बहुत ऐसे परिवार हैं जहां के बच्चे काम कर रहे हैं उन्हे पता चला तो एक महिला अपनी १४ साल की लड़की को ले कर आगयी । रखना मुझे था नहीं क्युकी मै १८ वर्ष से कम की आयु के किसी भी बच्चे से काम कराने की पक्षधर नहीं हूँ फिर भी बात करनी थी ।
लड़की चुप खड़ी थी , उसकी माँ कह रही थी की आप इसको रख लो । मैने पूछा अपना खाना बना लेगी क्युकी मै बना कर नहीं खिला सकती । उसकी माँ बोली हाँ और आप कहोगी तो आप के लिये रोटी बना देगी । माता जी के कपड़े भी धो देगी और झाड़ू पोछा भी कर देगी ।
मेरी माँ ने पूछा कितने दिन काम करेगी तो वो बोली अभी तो मै बिहार जा रही हूँ १५ दिन मै आयुंगी तब तक तो आप रख लो क्युकी आप के यहाँ क़ोई आदमी नहीं हैं इस लिये ही हम इसको रात में आप के यहाँ छोड़ सकते हैं । मेरी माँ ने पूछा उसके बाद तो बोली लौट कर अगर लड़की ने कहा आप ने उसको अपनी बेटी की तरह रखा हैं तो फिर वो काम करती रहेगी ।
मैने पूछा ये सब छोडो ये बताओ तनखा कितनी चाहिये । मै केवल २००० रूपए और २ समय का खाना और २ समय का नाश्ता दूंगी । काम बस माता जी के साथ रहने का हैं क़ोई झाड़ू पोछा वगरह नहीं करना हैं हाँ माँ के कपड़े तो धोने ही होंगे ।
मेरे इतना कहने पर बोली नहीं जी हम तो ४००० रुपया लेगे खाना कपडा सब देना होगा काम आप जो चाहे लो ।
महज १४ साल की बच्ची के लिये १०००० रुपया महिना खर्च करना { 4000 salary + 6000 boarding , lodging , clothes , soap , shampoo and other products } बेहद गलत लगा मुझे ।
विमर्श ये हैं की अगर क़ोई १०००० रुपया खर्च कर के किसी बच्चे को नौकरी पर रखता हैं तो क्या उस से क़ोई काम ही नहीं लेगा ??? क्या ये संभव भी हैं ??
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November 05, 2011
November 04, 2011
ईव टीसिंग - क्यूँ , कारण बताए
अभी पिछली पोस्ट पर कुछ और कारणों के आने का इंतज़ार हैं उसके बाद उन सब पर क्यों ?? का मंथन शुरू करते हैं तब तक सोचा एक और विषय हैं जिस पर "क्यूँ होता हैं के कारण " की एक सूची बना ली जाए । आत्ममंथन के लिये ब्लॉग से बेहतर मंच कौन सा हो सकता हैं ??
ईव टीसिंग , मोलेस्टेशन और रेप
ईव टीसिंग से शुरुवात होती हैं और मोलेस्टेशन से बढ़ कर रेप तक भी पहुँच जाती हैं ।
ईव टीसिंग को एक बहुत ही मामूली बात माना जाता हैं और इसकी शिकायत करने पर ज्यादा सजा का प्रावधान भी नहीं हैं । बहुदा लड़कियों को ही कहा जाता हैं "इग्नोर " कर दो , अलग हट जाओ और कभी कभी तो यहाँ तक भी कहा जाता हैं "इतनी ही सटी सावित्री हो तो घर से ही क्यूँ निकली " और कई बार लडकिया इसका शिकार घर में हो रहे तीज त्यौहार , शादी -ब्याह , जन्मदिन इत्यादि में ही बन जाती हैं ।
ईव टीसिंग
ईव यानी लड़की और महिला
टीसिंग यानी छेड़ छाड़ , टीसिंग का सीधा अर्थ हैं आपस में हंसी मजाक के साथ खीचाई
लेकिन ईव टीसिंग को महिला के खिलाफ एक हथियार की तरह इस्तमाल किया जाता रहा हैं और इसके जरिये महिला का यौन शोषण किया जाता हैं यानी सेक्सुअल हरासमेंट लेकिन फिर भी इसकी सज्जा बहुत ही कम हैं ।
आज क्या आप सब वो कारण दे सकते हैं जो ईव टीसिंग की वजह हैं ? क्यूँ होती हैं इव टीसिंग और क्या हासिल होता हैं उनको जो ईव टीसिंग करते हैं ?
आप खुले मन से इस पर विमर्श करे और कारण यहाँ दे ।
एक कारण मै दे रही हूँ
ईव टीसिंग का कारण हैं महिला को एक वासना पूर्ति की वस्तु मात्र समझना ।
बहुत बार हम बहुत कुछ देख कर सुन कर उसको गन्दा , गलत तो कह देते हैं पर क्यूँ होता हैं जैसे मामूली विषय पर बात ही नहीं करते हैं
जैसे जैसे कारण आते जायेगे मै पोस्ट में जोडती जाउंगी । विमर्श नहीं चाहती बस कारण की लिस्ट बन जाए तब ही विमर्श हो जिस से ये ना लगे की किसी पूर्वाग्रह के तहत ये सब लिखा जाता हैं ।
रश्मि के अनुसार कारण हैं हमारी सामाजिक व्यवस्था...जहाँ लड़के और लड़कियों को सहज रूप से मिलने की आजादी नहीं होती..
G Vishwanath के अनुसार कारण हैं पुरुषों में हीन भावना और सफल महिलाओं से ईर्ष्या
मनोज जी के अनुसार कारण हैं मानसिक रूप से कमज़ोरी का होना।
तरुण के हिसाब से इव टीसिंग लडको के ग्रुप में होने पर ही होती हैं
ग्लोबल जी के अनुसार कारण हैं हमारे समाज में जाने अनजाने लड़कों को नैतिकता के मामले कुपोषित बनाया जा रहा है| और लड़कियों को दब्बू
Zeal अनुसार कारण हैं संस्कारों और नैतिक मूल्यों का गिरता स्तर ।
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ईव टीसिंग , मोलेस्टेशन और रेप
ईव टीसिंग से शुरुवात होती हैं और मोलेस्टेशन से बढ़ कर रेप तक भी पहुँच जाती हैं ।
ईव टीसिंग को एक बहुत ही मामूली बात माना जाता हैं और इसकी शिकायत करने पर ज्यादा सजा का प्रावधान भी नहीं हैं । बहुदा लड़कियों को ही कहा जाता हैं "इग्नोर " कर दो , अलग हट जाओ और कभी कभी तो यहाँ तक भी कहा जाता हैं "इतनी ही सटी सावित्री हो तो घर से ही क्यूँ निकली " और कई बार लडकिया इसका शिकार घर में हो रहे तीज त्यौहार , शादी -ब्याह , जन्मदिन इत्यादि में ही बन जाती हैं ।
ईव टीसिंग
ईव यानी लड़की और महिला
टीसिंग यानी छेड़ छाड़ , टीसिंग का सीधा अर्थ हैं आपस में हंसी मजाक के साथ खीचाई
लेकिन ईव टीसिंग को महिला के खिलाफ एक हथियार की तरह इस्तमाल किया जाता रहा हैं और इसके जरिये महिला का यौन शोषण किया जाता हैं यानी सेक्सुअल हरासमेंट लेकिन फिर भी इसकी सज्जा बहुत ही कम हैं ।
आज क्या आप सब वो कारण दे सकते हैं जो ईव टीसिंग की वजह हैं ? क्यूँ होती हैं इव टीसिंग और क्या हासिल होता हैं उनको जो ईव टीसिंग करते हैं ?
आप खुले मन से इस पर विमर्श करे और कारण यहाँ दे ।
एक कारण मै दे रही हूँ
ईव टीसिंग का कारण हैं महिला को एक वासना पूर्ति की वस्तु मात्र समझना ।
बहुत बार हम बहुत कुछ देख कर सुन कर उसको गन्दा , गलत तो कह देते हैं पर क्यूँ होता हैं जैसे मामूली विषय पर बात ही नहीं करते हैं
जैसे जैसे कारण आते जायेगे मै पोस्ट में जोडती जाउंगी । विमर्श नहीं चाहती बस कारण की लिस्ट बन जाए तब ही विमर्श हो जिस से ये ना लगे की किसी पूर्वाग्रह के तहत ये सब लिखा जाता हैं ।
रश्मि के अनुसार कारण हैं हमारी सामाजिक व्यवस्था...जहाँ लड़के और लड़कियों को सहज रूप से मिलने की आजादी नहीं होती..
G Vishwanath के अनुसार कारण हैं पुरुषों में हीन भावना और सफल महिलाओं से ईर्ष्या
मनोज जी के अनुसार कारण हैं मानसिक रूप से कमज़ोरी का होना।
तरुण के हिसाब से इव टीसिंग लडको के ग्रुप में होने पर ही होती हैं
ग्लोबल जी के अनुसार कारण हैं हमारे समाज में जाने अनजाने लड़कों को नैतिकता के मामले कुपोषित बनाया जा रहा है| और लड़कियों को दब्बू
Zeal अनुसार कारण हैं संस्कारों और नैतिक मूल्यों का गिरता स्तर ।
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November 02, 2011
ना पसंद हैं बेटी इस समाज को आज भी क्यूँ - एक फेरिहिस्त कारणों की - आप बना दे - विमर्श होता रहेगा
बेटी नहीं चाहिये
कन्या भ्रूणहत्या इस बात का प्रमाण हैं ।
नकोशी कह कर कन्या को नकार देना भी इसी बात का प्रमाण हैं
पर क्यूँ लोग बेटी नहीं चाहते , कुछ तो कारण होगे ही क्या इस पोस्ट के जरिये निस्पक्ष भाव से उन कारणों की गिनती करवाई जा सकती हैं ।
समस्या हैं , निदान भी सब चाहते हैं , अपनी अपनी जगह हर क़ोई इस पर लिखता हैं तो क्या आज गिन ले हम सब वो कारण जो बेटी को इतना अप्रिय बनाते हैं की उसकी माँ उसको नकोशी ही कह देती हैं या परिवार वाले माँ कन्या भ्रूणहत्या के लिये ही विवश कर देते हैं । कन्या भ्रूणहत्या को स्वेच्छा से किया गया गर्भपात न समझा जाए और कारणों की लिस्ट बना ली जाये की क्यूँ ना पसंद हैं बेटी हमारे समाज में की लोग उसके जनम लेने को ही रोकना चाहते हैं । क्या इन सब की भी क़ोई मज़बूरी हैं शौक से तो क़ोई करेगा नहीं ।
जब लिस्ट बन जाये तो विमर्श करने में आसानी होगी ।
मेरे ख़याल से सबसे पहला कारण हैं की माँ पिता आजन्म पुत्री की सुरक्षा करने में अपने को अक्षम पाते हैं इस लिये कन्या भ्रूणहत्या ही कर देते हैं
अब देखिये इस कारण पर विमर्श आगे करेगे आज आप से आग्रह और निवेदन हैं की आप इस प्रकार का क़ोई भी कारण जो आप को सही समझ में आता हैं उसकी एक लिस्ट बना दे यहाँ
ना पसंद हैं बेटी इस समाज को आज भी क्यूँ - एक फेरिहिस्त कारणों की - आप बना दे - विमर्श होता रहेगा
लिस्ट जो पाठक दे रहे हैं कमेन्ट में
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कन्या भ्रूणहत्या इस बात का प्रमाण हैं ।
नकोशी कह कर कन्या को नकार देना भी इसी बात का प्रमाण हैं
पर क्यूँ लोग बेटी नहीं चाहते , कुछ तो कारण होगे ही क्या इस पोस्ट के जरिये निस्पक्ष भाव से उन कारणों की गिनती करवाई जा सकती हैं ।
समस्या हैं , निदान भी सब चाहते हैं , अपनी अपनी जगह हर क़ोई इस पर लिखता हैं तो क्या आज गिन ले हम सब वो कारण जो बेटी को इतना अप्रिय बनाते हैं की उसकी माँ उसको नकोशी ही कह देती हैं या परिवार वाले माँ कन्या भ्रूणहत्या के लिये ही विवश कर देते हैं । कन्या भ्रूणहत्या को स्वेच्छा से किया गया गर्भपात न समझा जाए और कारणों की लिस्ट बना ली जाये की क्यूँ ना पसंद हैं बेटी हमारे समाज में की लोग उसके जनम लेने को ही रोकना चाहते हैं । क्या इन सब की भी क़ोई मज़बूरी हैं शौक से तो क़ोई करेगा नहीं ।
जब लिस्ट बन जाये तो विमर्श करने में आसानी होगी ।
मेरे ख़याल से सबसे पहला कारण हैं की माँ पिता आजन्म पुत्री की सुरक्षा करने में अपने को अक्षम पाते हैं इस लिये कन्या भ्रूणहत्या ही कर देते हैं
अब देखिये इस कारण पर विमर्श आगे करेगे आज आप से आग्रह और निवेदन हैं की आप इस प्रकार का क़ोई भी कारण जो आप को सही समझ में आता हैं उसकी एक लिस्ट बना दे यहाँ
ना पसंद हैं बेटी इस समाज को आज भी क्यूँ - एक फेरिहिस्त कारणों की - आप बना दे - विमर्श होता रहेगा
लिस्ट जो पाठक दे रहे हैं कमेन्ट में
- शिल्पा ने कारण दिया की बेटियाँ इस लिये ना पसंद हैं क्युकी वो बुढ़ापे में साथ नहीं होती हैं यानी माँ पिता का ख्याल नहीं रख सकती।
- विजय जी ने कारण स्पष्ट नहीं दिया पर उनका कहना की शादी के खर्च का इन्तेजाम हो जाता हैं भगवन भरोसे , निष्कर्ष देता हैं की शादी का खर्चा भी कारण हो सकता हैं
- ihm ने कारण दिये हैं
- १. बेटियां घर की इज्ज़त होती हैं, उन्हें संभालना बहुत मुश्किल होता है, उनकी एक ज़रा सी चूक से परिवार के पुरुष सदस्यों की नाकें कट सकती है. जो नाकें बहुओं के जलने, और भ्रूण हत्या को झेल जाती है वो एक पुत्री के किसी सहयोगी या सहपाठी से हंस कर बोल लेने से खतरे में पड़ जाती है.
२. परेशानियाँ ज्यादा, फायदे कुछ नहीं, पढ़ायें लिखायें माँ-बाप, तन्ख्य्वा पर हक़ होता है ससुराल वालों का. पालने पोसने में मेहनत तो उतनी ही लगती है, खर्चा भी बराबर होता हो, आजकल बहुत से माता-पिता लड़कियों को ट्रेनिंग देने के बहाने उन्हें स्कूल से आते ही काम में भी नहीं लगाते. इतना सब करते समय जो पारंपरिक परिवार हैं उन्हें फिर भी डर रहता है की इतना लाड़ प्यार दे रहे हैं, कहीं इंसानियत व आदर की आदत पड़ गयी तो ससुराल में कैसे निभेगी.
3. हमारी परंपरा है की जब तक कुछ वापस मिलने की उपेक्षा ना हो, माता पिता भी प्यार नहीं करते. - राजन ने कारण दिया बेटी के माँ बाप को समाज में बहुत बेचारा समझा जाता है।उन्हें दयनीय और कमतर माना जाता है. और बेटी बुढापे में साथ नहीं रह पाती क्योंकि उसे विवाह के बाद ससुराल जाना पडता है
- G Vishwanathजी का कहना हैं समाज में पुत्र मोह हैं ख़ास कर पुरुषो में पुत्र के लिये लालसा ज्यादा हैं
- कुमार राधारमण जी के अनुसार कारण हैं की बेटियां आश्रित मानी गई हैं,अर्जक नहीं।और जोबेटी कमाती भी हैं वो भी अपने परिवार के लिये कुछ नहीं करती हैं { करनहीं सकती की बात से अलग हैं ये बात की अभी भी समाज में बेटियाँ अपने माँ पिता के लिये अपने कर्तव्यो का पालन नहीं करती हैं } ।
- डॉ॰ मोनिका शर्मा ने कारण दिया हैं की नापसंद होती हैं आज भी बेटियाँ क्युकी माँ पिता के उनकी सुरक्षा के लिये चिंतित रहते हैं और घर में ही उन्हे सुरक्षित मानते हैं जिस के कारण वो आर्थिक भार की तरह होती हैं।
- वाणी जी के अनुसार दो प्रमुख कारण हैं -- लड़कियों के सम्मान या इज्ज़त के कड़े मानदंड और असुरक्षित समाज ....
- अमित चन्द्र ने दो कारण दिये हैं . पहले तो लडकियों के प्रति समाज की दोहरी निति और जो सबसे बड़ा कारण है वो है दहेज
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