अभी पिछली पोस्ट पर कुछ और कारणों के आने का इंतज़ार हैं उसके बाद उन सब पर क्यों ?? का मंथन शुरू करते हैं तब तक सोचा एक और विषय हैं जिस पर "क्यूँ होता हैं के कारण " की एक सूची बना ली जाए । आत्ममंथन के लिये ब्लॉग से बेहतर मंच कौन सा हो सकता हैं ??
ईव टीसिंग , मोलेस्टेशन और रेप
ईव टीसिंग से शुरुवात होती हैं और मोलेस्टेशन से बढ़ कर रेप तक भी पहुँच जाती हैं ।
ईव टीसिंग को एक बहुत ही मामूली बात माना जाता हैं और इसकी शिकायत करने पर ज्यादा सजा का प्रावधान भी नहीं हैं । बहुदा लड़कियों को ही कहा जाता हैं "इग्नोर " कर दो , अलग हट जाओ और कभी कभी तो यहाँ तक भी कहा जाता हैं "इतनी ही सटी सावित्री हो तो घर से ही क्यूँ निकली " और कई बार लडकिया इसका शिकार घर में हो रहे तीज त्यौहार , शादी -ब्याह , जन्मदिन इत्यादि में ही बन जाती हैं ।
ईव टीसिंग
ईव यानी लड़की और महिला
टीसिंग यानी छेड़ छाड़ , टीसिंग का सीधा अर्थ हैं आपस में हंसी मजाक के साथ खीचाई
लेकिन ईव टीसिंग को महिला के खिलाफ एक हथियार की तरह इस्तमाल किया जाता रहा हैं और इसके जरिये महिला का यौन शोषण किया जाता हैं यानी सेक्सुअल हरासमेंट लेकिन फिर भी इसकी सज्जा बहुत ही कम हैं ।
आज क्या आप सब वो कारण दे सकते हैं जो ईव टीसिंग की वजह हैं ? क्यूँ होती हैं इव टीसिंग और क्या हासिल होता हैं उनको जो ईव टीसिंग करते हैं ?
आप खुले मन से इस पर विमर्श करे और कारण यहाँ दे ।
एक कारण मै दे रही हूँ
ईव टीसिंग का कारण हैं महिला को एक वासना पूर्ति की वस्तु मात्र समझना ।
बहुत बार हम बहुत कुछ देख कर सुन कर उसको गन्दा , गलत तो कह देते हैं पर क्यूँ होता हैं जैसे मामूली विषय पर बात ही नहीं करते हैं
जैसे जैसे कारण आते जायेगे मै पोस्ट में जोडती जाउंगी । विमर्श नहीं चाहती बस कारण की लिस्ट बन जाए तब ही विमर्श हो जिस से ये ना लगे की किसी पूर्वाग्रह के तहत ये सब लिखा जाता हैं ।
रश्मि के अनुसार कारण हैं हमारी सामाजिक व्यवस्था...जहाँ लड़के और लड़कियों को सहज रूप से मिलने की आजादी नहीं होती..
G Vishwanath के अनुसार कारण हैं पुरुषों में हीन भावना और सफल महिलाओं से ईर्ष्या
मनोज जी के अनुसार कारण हैं मानसिक रूप से कमज़ोरी का होना।
तरुण के हिसाब से इव टीसिंग लडको के ग्रुप में होने पर ही होती हैं
ग्लोबल जी के अनुसार कारण हैं हमारे समाज में जाने अनजाने लड़कों को नैतिकता के मामले कुपोषित बनाया जा रहा है| और लड़कियों को दब्बू
Zeal अनुसार कारण हैं संस्कारों और नैतिक मूल्यों का गिरता स्तर ।
All post are covered under copy right law । Any one who wants to use the content has to take permission of the author before reproducing the post in full or part in blog medium or print medium .
Indian Copyright Rules
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
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मुझे लगता है...हमारी सामाजिक व्यवस्था...जहाँ लड़के और लड़कियों को सहज रूप से मिलने की आजादी नहीं होती...दोनों के अलग-अलग ग्रुप होते हैं...यही वजह है कि लड़के, लड़कियों के साथ सहज व्यवहार नहीं कर पाते..और उनका ध्यान आकर्षित करने के लिए इस तरह की हरकतें करते हैं..
ReplyDeleteअगर बचपन से ही उन्हें एक साथ खेलने-पढ़ने -घूमने की आजादी होगी तो इस तरह के वाकये बहुत कम होंगे.
एक कारण है पुरुषों में हीन भावना और सफल महिलाओं से ईर्ष्या
ReplyDeleteजी विश्वनाथ
jamana badal gaya hai..aaj kal ladkiya ईव टीसिंग ladko se jayada karti hai .....
ReplyDeletejai baba banaras.....
मानसिक रूप से कमज़ोरी का होना।
ReplyDelete१. लड़कों में इस समझ का अभाव की लडकियों के साथ कैसे व्यवहार करें | इसका कारण रश्मि रविजा जी ने दिया है |
ReplyDelete२. जब लड़के ग्रुप में होते हैं, ९९% तभी ऐसा होता है |
१. हमारे समाज में जाने अनजाने लड़कों को नैतिकता के मामले कुपोषित बनाया जा रहा है| इस ओर बुद्धिजीवी बिलकुल ध्यान नहीं दे रहे और देंगे भी नहीं ......पता नहीं क्या उदेश्य हैं इनके ?
ReplyDelete२. लड़कियों तथाकथित संस्कारी परिवार संस्कार के रूप में केवल दब्बू बने रहना सिखाते हैं , जबकी निर्भयता सबसे जरूरी गुण है |
किसी भी अपराध पर उसके अपराधी को सजा तो दी जानी चाहिए पर उसकी मानसिकता ऐसी क्यों हुयी इस बारे में भी सोचना चाहिए , हमारे देश के लोग मुझे इस एनालिसिस में हमेशा पीछे ही दिखाई दिए
ReplyDelete_______________
3. हलके साहित्य , फिल्मों , गानों का कथित खुलेपन के नाम पर महिलाओं का जो चित्रण किया जाता है वो भी एक वजह है, ये आज भी बेधड़क चल रहा है , हम इसे इग्नोर करके बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं
आज के हीरो[?]युवा कुछ इस तरह भी सोचते है........
कब तक रूठेगी चीखेगी चिल्लाएगी,
दिल कहता है एक दिन हसीना मान जायेगी
क्या ये लाइन्स आपने ही कहीं सुनी हैं ??
रश्मि दीदी की बात से असहमत
ReplyDeleteरश्मि से आंशिक रूप से सहमत हूँ ...
ReplyDeleteसहशिक्षा में साथ पढ़ने वाले बच्चे/बड़े एक जैसे माहौल में बड़े होते हैं , आपस में हंसी- मजाक सामान्य मित्रों की तरह करते हैं , उसे कुछ अन्यथा रूप में नहीं लिया जाता .. वही अलग -अलग वातावरण में पले बच्चे/बड़े इसे छेड़छाड़ या इव टीजिंग की तरह ले लेते हैं या फिर उनमे एक भिन्न प्रकार की उत्सुकता होती है , जो उन्हें असामान्य व्यवहार के लिए उकसाती है ...
इसका एक दूसरा पहलू यह भी है कि अधिकांश मामलों में सेक्सुअल हैराश्मेंट की शिकार लड़कियों के अपराधी उनके परिचित ही होते हैं , वे सहपाठी , परिचित या रिश्तेदार हो सकते हैं ! क्योंकि अनजान लोगो से बातचीत या संपर्क में सभी सावधानी बरतते हैं , धोखा नजदीकी में ज्यादा होता है!
यदि इसे पूर्ण सहमति दूं तो ये सोचना पड़ता है कि जिन देशों में स्त्री -पुरुष में कोई भेद नहीं है , क्या वहां स्त्रियाँ इव टीजिंग की शिकार नहीं होती !!!
.
ReplyDeleteसंस्कारों और नैतिक मूल्यों का गिरता स्तर ही इसका कारण है। टेलिविज़न और चलचित्रों में जो अश्लीलता परोसी जा रही है। शीला की जवानी और मुन्नी बदनाम जैसे अभद्र गाने , हिस जैसी मल्लिका की फिल्में ही आज के नौयुवकों को दिग्भ्रमित कर रही हैं। स्त्री के शरीर की जो नुमाईश की जा रही है वह कमज़ोर चरित्र वाले पुरुषों में उसे पा जाने की लालसा जगा रही है है। क्यूंकि स्त्री , बाज़ार-हाट में खरीदी जाने वाली वास्तु नहीं है अतः यथार्थ में वह अनुपलब्ध है। फिर भी उसे पा लेने, छू लेने की हसरत उन्हें eve teasing और molestation के लिए प्रेरित करती है।
ऐसी परिस्थियों में लड़कियों का चुप रह जाना इन लफंगों की हिम्मत बढाता रहता है। और ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति घटने के बजाये बढती रहती है। लड़कियों को स्वयं में थोडा हिम्मत लाने की ज़रुरत है। ऐसे मनचलों के मुंह पर दो सैंडल जमाने की ज़रुरत है , ये पूरी ज़िन्दगी के लिए सुधर जायेंगे।
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"यदि इसे पूर्ण सहमति दूं तो ये सोचना पड़ता है कि जिन देशों में स्त्री -पुरुष में कोई भेद नहीं है , क्या वहां स्त्रियाँ इव टीजिंग की शिकार नहीं होती !!!"
ReplyDeleteबहुत कम, और तभी जब लडके ग्रुप में होते हैं , लेकिन लड़कियां वहां पलट कर जवाब दे देती हैं |
मुझे सबसे बुरी बात जो लगती है वो है ...... किसी मजनू [?] या मजनुओं [?] को देख कर बोडी लेंग्वेज बदल जाना [नर्वस हो जाना ] और पर्स में अन्य सामानों के साथ स्प्रे आदि ना रखना , ये चीज तो लूटपाट में भी मदद कर सकती है |
ReplyDeleteजैसा संस्कार वैसा घर..जैसा घर वैसा समाज...जैसा समाज वैसा आचरण..कारण अनगिन...सभी दोषी हैं। मूल मंत्र...हम सुधरेंगे जग सुधरेगा।
ReplyDeleteरश्मि रवीजा जी से पूर्णतया सहमत
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