नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

November 02, 2011

ना पसंद हैं बेटी इस समाज को आज भी क्यूँ - एक फेरिहिस्त कारणों की - आप बना दे - विमर्श होता रहेगा

बेटी नहीं चाहिये

कन्या भ्रूणहत्या इस बात का प्रमाण हैं ।

नकोशी कह कर कन्या को नकार देना भी इसी बात का प्रमाण हैं


पर क्यूँ लोग बेटी नहीं चाहते , कुछ तो कारण होगे ही क्या इस पोस्ट के जरिये निस्पक्ष भाव से उन कारणों की गिनती करवाई जा सकती हैं ।

समस्या हैं , निदान भी सब चाहते हैं , अपनी अपनी जगह हर क़ोई इस पर लिखता हैं तो क्या आज गिन ले हम सब वो कारण जो बेटी को इतना अप्रिय बनाते हैं की उसकी माँ उसको नकोशी ही कह देती हैं या परिवार वाले माँ कन्या भ्रूणहत्या के लिये ही विवश कर देते हैं । कन्या भ्रूणहत्या को स्वेच्छा से किया गया गर्भपात न समझा जाए और कारणों की लिस्ट बना ली जाये की क्यूँ ना पसंद हैं बेटी हमारे समाज में की लोग उसके जनम लेने को ही रोकना चाहते हैं । क्या इन सब की भी क़ोई मज़बूरी हैं शौक से तो क़ोई करेगा नहीं ।

जब लिस्ट बन जाये तो विमर्श करने में आसानी होगी ।

मेरे ख़याल से सबसे पहला कारण हैं की माँ पिता आजन्म पुत्री की सुरक्षा करने में अपने को अक्षम पाते हैं इस लिये
कन्या भ्रूणहत्या ही कर देते हैं

अब देखिये इस कारण पर विमर्श आगे करेगे आज आप से आग्रह और निवेदन हैं की आप इस प्रकार का क़ोई भी कारण जो आप को सही समझ में आता हैं उसकी एक लिस्ट बना दे यहाँ

ना पसंद हैं बेटी इस समाज को आज भी क्यूँ - एक फेरिहिस्त कारणों की - आप बना दे - विमर्श होता रहेगा

लिस्ट जो पाठक दे रहे हैं कमेन्ट में

  • शिल्पा ने कारण दिया की बेटियाँ इस लिये ना पसंद हैं क्युकी वो बुढ़ापे में साथ नहीं होती हैं यानी माँ पिता का ख्याल नहीं रख सकती
  • विजय जी ने कारण स्पष्ट नहीं दिया पर उनका कहना की शादी के खर्च का इन्तेजाम हो जाता हैं भगवन भरोसे , निष्कर्ष देता हैं की शादी का खर्चा भी कारण हो सकता हैं
  • ihm ने कारण दिये हैं
  • १. बेटियां घर की इज्ज़त होती हैं, उन्हें संभालना बहुत मुश्किल होता है, उनकी एक ज़रा सी चूक से परिवार के पुरुष सदस्यों की नाकें कट सकती है. जो नाकें बहुओं के जलने, और भ्रूण हत्या को झेल जाती है वो एक पुत्री के किसी सहयोगी या सहपाठी से हंस कर बोल लेने से खतरे में पड़ जाती है.

    २. परेशानियाँ ज्यादा, फायदे कुछ नहीं, पढ़ायें लिखायें माँ-बाप, तन्ख्य्वा पर हक़ होता है ससुराल वालों का. पालने पोसने में मेहनत तो उतनी ही लगती है, खर्चा भी बराबर होता हो, आजकल बहुत से माता-पिता लड़कियों को ट्रेनिंग देने के बहाने उन्हें स्कूल से आते ही काम में भी नहीं लगाते. इतना सब करते समय जो पारंपरिक परिवार हैं उन्हें फिर भी डर रहता है की इतना लाड़ प्यार दे रहे हैं, कहीं इंसानियत व आदर की आदत पड़ गयी तो ससुराल में कैसे निभेगी.
    3. हमारी परंपरा है की जब तक कुछ वापस मिलने की उपेक्षा ना हो, माता पिता भी प्यार नहीं करते.
  • राजन ने कारण दिया बेटी के माँ बाप को समाज में बहुत बेचारा समझा जाता है।उन्हें दयनीय और कमतर माना जाता है. और बेटी बुढापे में साथ नहीं रह पाती क्योंकि उसे विवाह के बाद ससुराल जाना पडता है
  • G Vishwanathजी का कहना हैं समाज में पुत्र मोह हैं ख़ास कर पुरुषो में पुत्र के लिये लालसा ज्यादा हैं
  • कुमार राधारमण जी के अनुसार कारण हैं की बेटियां आश्रित मानी गई हैं,अर्जक नहीं।और जोबेटी कमाती भी हैं वो भी अपने परिवार के लिये कुछ नहीं करती हैं { करनहीं सकती की बात से अलग हैं ये बात की अभी भी समाज में बेटियाँ अपने माँ पिता के लिये अपने कर्तव्यो का पालन नहीं करती हैं } ।
  • डॉ॰ मोनिका शर्मा ने कारण दिया हैं की नापसंद होती हैं आज भी बेटियाँ क्युकी माँ पिता के उनकी सुरक्षा के लिये चिंतित रहते हैं और घर में ही उन्हे सुरक्षित मानते हैं जिस के कारण वो आर्थिक भार की तरह होती हैं।
  • वाणी जी के अनुसार दो प्रमुख कारण हैं -- लड़कियों के सम्मान या इज्ज़त के कड़े मानदंड और असुरक्षित समाज ....
  • अमित चन्द्र ने दो कारण दिये हैं . पहले तो लडकियों के प्रति समाज की दोहरी निति और जो सबसे बड़ा कारण है वो है दहेज

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23 comments:

  1. mata pita kee dekh rekh - budhape me - kya betiyan us tarah karti hain - jaise bete ??

    70%bete karte hain - betiyan sirf mehman ban kar aati hain ,,, jabki ,,,

    betiyan hardly 20% hongi jo dekh rekh karti hon mata pita kee jab unhe zaroorat ho |

    (including me - i also am a daughter - who was equally educated as the son - but i am sorry to admit that i am not doing ANYTHING whatsoever for my mom - who is widowed, and > 70)

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  2. शिल्पा ने कारण दिया की बेटियाँ इस लिये ना पसंद हैं क्युकी वो बुढ़ापे में साथ नहीं होती हैं

    शुक्रिया शिल्पा

    इस कारण पर पाठक विमर्श ना करे बस अपने हिसाब से कारण बताते चले मै हर कारण पोस्ट में अपडेट कर दूंगी नाम के साथ

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  3. मुझे तो कोई कारण नज़र नहीं आता कि बेटियों को न जीने देना चाहिए .. ये तो सरासर गलत है .. सीधी सी बात है ,जो ईश्वर का है ,उसे हम क्यों नष्ट करे. और बेटियाँ हमेशा वरदान होती है किसी भी घर के लिये . और ये सत्य भी है कि उनकी शादी और दूसरे सारे खर्चे ,भगवान जी , खुद ही arrange कर देते है ..

    और अगर बेटियाँ नहीं होती तो ये दुनिया भी नहीं होती .. आज ही मैंने अपनी एक पेंटिंग फेसबूक में लगायी है .. ये देखिये ..

    http://www.facebook.com/photo.php?fbid=2137226113744&set=a.1420091105817.2059921.1338842364&type=1&ref=notif&notif_t=photo_comment&theater

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  4. १. बेटियां घर की इज्ज़त होती हैं, उन्हें संभालना बहुत मुश्किल होता है, उनकी एक ज़रा सी चूक से परिवार के पुरुष सदस्यों की नाकें कट सकती है. जो नाकें बहुओं के जलने, और भ्रूण हत्या को झेल जाती है वो एक पुत्री के किसी सहयोगी या सहपाठी से हंस कर बोल लेने से खतरे में पड़ जाती है.

    २. परेशानियाँ ज्यादा, फायदे कुछ नहीं, पढ़ायें लिखायें माँ-बाप, तन्ख्य्वा पर हक़ होता है ससुराल वालों का. पालने पोसने में मेहनत तो उतनी ही लगती है, खर्चा भी बराबर होता हो, आजकल बहुत से माता-पिता लड़कियों को ट्रेनिंग देने के बहाने उन्हें स्कूल से आते ही काम में भी नहीं लगाते. इतना सब करते समय जो पारंपरिक परिवार हैं उन्हें फिर भी डर रहता है की इतना लाड़ प्यार दे रहे हैं, कहीं इंसानियत व आदर की आदत पड़ गयी तो ससुराल में कैसे निभेगी.
    3. हमारी परंपरा है की जब तक कुछ वापस मिलने की उपेक्षा ना हो, माता पिता भी प्यार नहीं करते.

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  6. एक बहुत बड़ा कारन है बेटियों को पढ़ लिखकर समझदार बनाया जाता है पर समय आने पर कुछ बेटियां असी भी होती है जो अपने दहेज़ की लिस्ट खुद बनाती है.जरुरत पड़ने पर माँ बाप का सहारा नहीं बनती.अपने ससुराल वालो के अत्याचारों के आगे खुद भी पिसती है और माँ बाप को भी मजबूर कर देती हैं(इसमें माँ बाप का भी दोष होता है क्यूंकि वो अपनी बेटी बचपन से सिखाते है मन मारना ).कई बेटियां माँ बाप की इज्जत का ख्याल नहीं करती उनके दिए संस्कार भूल जाती है(सब असी नहीं होती पर कुछ के कारन सबको भग्न पड़ता है)

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  8. कमेंट में मामूली सा करेक्सन है,इसे यूँ पढें-
    बेटियाँ माँ बाप
    की सेवा करती नहीं है
    या मजबूरी में चाहते हुए भी कर
    नहीं पाती है?समाज
    की मानसिकता ज्यादा दोषी है.बेटियों से
    सहायता लेना खासकर विवाह
    के बाद
    अभी भी बुरा माना जाता है.यदि बेटी सहायता करना भी चाहे
    तो ससुराल वाले उसके खिलाफ
    हो जाते है.ये बात सही है
    कि बेटी बुढापे में साथ नहीं रह
    पाती क्योंकि उसे विवाह के
    बाद ससुराल जाना पडता है
    जबकि बेटे माँ बाप के साथ
    ही रहते है हालाँकि वे भी कोई
    श्रवण कुमार तो नहीं होते पर
    रोटी के लिए
    माता पिता को उन पर
    ही निर्भर रहना पडता है.इसलिए
    'बेटी का ससुराल'
    वाली अवधारणा भी कन्या भ्रूण
    हत्या के लिए दोषी है.
    इसके अलावा बेटी के माँ बाप
    को समाज में बहुत
    बेचारा समझा जाता है.उन्हें
    दयनीय और कमतर
    माना जाता है.जबकि बेटे के
    अभिभावक होना एक गर्व
    का विषय होता है खासकर व्रत
    त्योहारों और शादियों पर ये
    मानसिकता और भेदभाव खुलकर
    सामने आते है.युवा अपने आस पास
    जब ऐसा वातावरण देखते है
    तो पहले ही समझ जाते है
    कि बेटी का माँ बाप
    होना मतलब कुछ कमतर
    होना.वो कभी नहीं चाहेंगे
    कि उन्हें संतान के रूप में
    बेटी हो या केवल बेटी ही हो.वैसे आजकल ये
    स्थिति बदल रही है.बल्कि मुझे
    तो लगता है पुरुषोँ में
    कही तेजी से बदलाव आ रहा है.
    लडकियों की सुरक्षा भी एक
    कारण है लेकिन दहेज आज
    उतना बडा कारण नहीं रहा.
    (आजकल बहुत व्यस्त हूँ
    जल्दी ही दुबारा लौटता हूँ)

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  9. शिल्पा मेहता की टिपण्णी पढी।
    हमारे यहाँ स्थिती उलटी  है।
    मेरी पत्नी चार बेटियों में से एक है।
    मेरे ससुराल वालों ने एक बेटा पैदा करने की कोशिश में चार बेटियाँ पैदा किये।
    हमारे घर हम तीन भाई थे और मेरी कोई बहन नहीं हैं।
    मेरी शादी के बाद मेरे ससुर और सास रिटायरमेंट के बाद पिछले ३५ साल से हमारे साथ ही रह रहे हैं।
    मेरे पिताजी और मेरी माँ ने कोई आपत्ती नहीं जताई।
    शादी के दो साल बाद मेरी बेटी का जन्म हुआ।
    हम सब की लाडली थी।
    मेरी पत्नि नौ साल तक  एक  ही संतान से संतुष्ट थी। 
    दूसरे बच्चे का निर्णय मैंने पत्नि पर छोड दिया था।

    लेकिन मेरे ससुरजी कहाँ सुधरने वाले थे।
    बेटे की चाह अब पोते की चाह में बदल गई।
    मेरी पत्नी को ब्रेनवाश करना शुरू कर दिया।
    मेरी बेटी अब ८ साल की हो चुकी थी, और उसने भी एक भाई या बहन की इच्छा जाहिर की।
    हारकर मेरी पत्नि मान गई।

    बेटी के जन्म के ९ साल बाद मेरे बेटे का जन्म हुआ।

    यदि दूसरी संतान भी बेटी होती तो मेरे ससुरजी क्या करते

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  10. गार्गी,मैत्रेयी,लोपामुद्रा आदि जैसे चाहे जितने उदाहरण जुटा लिए जाएं,परन्तु पारम्परिक रूप से,बेटियां हमारे यहां पर्दे का विषय ही रही हैं। शायद,उन्हें पर्दे में रखने वाला पिता स्वयं कई पुश्तों से इतने दबाव में है कि अब वह भी थोड़ा अधिक उन्मुक्त जीवन जीना चाहता है।
    बेटियां आश्रित मानी गई हैं,अर्जक नहीं। बदलते आर्थिक समीकरणों के कारण,महिलाएं परिवार में योगदान करने की स्थिति में भले आ गई हों,किंतु उनकी भूमिका सहायक की ही मानी जाती है। अर्थोपार्जन के क्रम में,परिवार के टूटते ताने-बाने और बिखरती मान्यताओं के बीच,नए मूल्य भी सृजित हो रहे हैं किंतु हमारा मन अभी इन सबके लिए पूरी तरह तैयार नहीं है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि स्वयं अर्थोपार्जन करने वाली महिलाओं ने भी कोई आदर्श स्थिति कायम नहीं की है। आत्मनिर्भरता के बावजूद कमाऊ महिलाओं के जीवन में प्रसन्नता की बजाए,कुंठा,घृणा,ईर्ष्या आदि के भाव पहले से कहीं अधिक हैं। इन कारणों से भी,एक पिता अपने भीतर यह विश्वास पैदा नहीं कर पाता कि उसकी बेटी किसी भी तरह बेटे से कमतर नहीं होती।

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  11. हमारे घर में तो हमारी दोनों बहने प्रथम श्रेणी की नागरीक थीं, हैं।
    हमें ही दोयन दर्ज़ा प्राप्त था। पिटते भी हम ही थे। चहे उनकी ग़लती क्यों न हो, और हमसे ज़्यादा तरजीह उन्हें ही दी जाती थी।

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  12. मुझे लगता है ...दहेज़ और सामाजिक असुरक्षा बहुत बड़े कारण हैं..... सामाजिक असुरक्षा यानि बेटियां घर के बाहर ही नहीं घर में असुरक्षित हैं ........ इसीलिए बेटी के जन्मते ही लगता है मानों एक सामाजिक और आर्थिक जिम्मेदारी आ गयी है परिवार पर ....

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  13. जिस घर में बेटी का सम्मान न हो वो घर नहीं भूतों का डेरा होता है...

    ऐसे लोगों को ये बात हमेशा याद रखनी
    चाहिए...बेटा तभी तक बेटा रहता है जब तक उसकी शादी नहीं होती...लेकिन बेटी ताउम्र बेटी रहती है...

    जय हिंद...

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  14. मेरे अनुसार दो प्रमुख कारण हैं -- लड़कियों के सम्मान या इज्ज़त के कड़े मानदंड और असुरक्षित समाज ...

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  15. मेरे अनुसार दो कारण हो सकते है. पहले तो लकडियों के प्रति समाज की दोहरी निति और जो सबसे बड़ा कारण है वो है दहेज. हमारे समाज में जयादातर लोग मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते है. जहाँ लकडियाँ पैदा हुई नहीं कि उन्हें दहेज नमक दानव का डर सताने लगता है.

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  16. जहा तक कारणों का सवाल है तो मै ihm जी के कारणों से सहमत हूं वही इज्जत का सवाल , आर्थिक रूप से फायदा कुछ नहीं और दहेज़ के रूप में पैसे का नुकशान |
    कल ही एक रिश्तेदार से मुलाकात हुई मुझे बड़े गर्व से और खुश हो हो कर बता रही थी की पूरे चार महीने तक अपने गर्भवती होने की बात छुपा कर रखी थी जब पुत्र होने का पता चला चेकअप में तब जा कर सभी को बताया उसके पहले भगवान से भी रोज प्रार्थना कर रही थी की पुत्र ही हो , डाक्टर के बताने पर भी पुरा भरोसा नहीं था जब पुत्र हो गया तब जा कर जान में जान आई उन्हें पहले ही एक बेटी थी , चार महीने पहले ही एक और रिश्तेदार से मुलाकात हुई थी उन्हें पहले से एक पुत्र था इस बार जुड़वा बच्चे होने वाले थे मैंने कहा चलो भाई जो भी हो तुम लोगों को सब मंजूर होगा चाहे दो बेटा हो दो बेटी हो या एक बेटा या एक बेटी तो बोले की नहीं नहीं दो बेटिया नहीं चाहिए हा एक बेटा और एक बेटी हो जाये तो ठीक है मै तो यही भगवान से मना रहूँ हूं | अब ऐसे लोगों को मै क्या समझाती समझाती भी तो लगता की भैस के आगे बिन बजा रही हूं मैंने दोनों लोगों से कहा बहुत अच्छा किया | भगवान ने उनकी सुनी और जो उनके असली दिल की तम्मना थी उसे पूरी की और उन्हें दो और बेटे दिये ये खबर सुनते हुए उनकी ख़ुशी बस छलक के बाहर गिरे जा रही थी एक बार भी भूले से नहीं कहा की एक बेटी हो जाती तो अच्छा होता | मेरी भी भगवान से प्रार्थना है की सभी को केवल पुत्र ही पुत्र दो सारी पुत्रिया अपने पास ही रखो |
    रचना जी इस चर्चा में मै आगे भाग नहीं ले सकती क्योकि मै अब खुल कर कन्या भ्रूण हत्या को सही मानती हूं और जितना हो लोगों को इसमे सहायता करने वाली हूं | क्योकि ऐसी चर्चाओ से कानून बनाने से ये आदि आदि करने से ये स्थिति नहीं सुधरने वाली है जब तक की भारत में लोगों को प्रत्यक्ष नुकशान कन्या ना होने से नहीं होगा वो नहीं समझने वाले है और मै चाहती हूं की वो स्थिति जितनी जल्दी आ जाये उतना अच्छा है |

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  17. भारतीय समाज नारियों के लायक नहीं है, इसलिए यहाँ कन्या पैदा नहीं होनी चाहिए |
    Indian society doesn't deserve women/girls.

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  18. कल चर्चा के लिए लिंक तलाशता हुआ इधर आया था , अच्छी पोस्ट लगी, इसलिए लिंक ले लिया लेकिन समयाभाव के कारण अपनी राय नहीं रख पाया, देरी से ही सही मगर आज उपस्थित हूँ
    मेरा मत ----
    भारतीय इतिहास का मध्यकाल अभी तक हावी है। मध्यकाल से पहले भारत में नारी की स्थिति बहुत अच्छी थी । तब जो बंदिशे लगी वो आज तक हट नहीं पाई । पढा-लिखा वर्ग भी यह तो कहता है कि हमारी बेटी तो बेटा ही है लेकिन इस कहन में बेटी का दोयम दर्जा दिखता है और जब तक बेटी का दर्जा दोयम रहेगा बेटी को उसका सही हक मिलना असंभव है। जब बेटी की बेटे से तुलना बंद हो जाएगी, तब हालात बदल जाएँगे
    बिटिया(कविता):-दिलबाग विर्क

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  19. ये सभी जो कारण हैं वो इसी समाज ने बनाए हैं, और उन सभी कारणों का निदान भी समाज को हि करना है... अगर इतना हि नापसंद हो जायेंगी बेटियाँ तो फिर समाज में रहेगा कौन सिर्फ पुरुष? वो कैसे पुरुषों को पैदा कौन करेगा... इन सभी कारणों में मूल ये है कि लोग स्वार्थी हैं, कुछ अपराधी और उत्श्रीखाल स्वभाव के हैं और ये सभी अवगुण पुरुषों के हि हैं जिनसे स्त्रियों को विवाह, प्रतिष्ठा इत्यादि का भय लगा रहता है... दुनिया इतनी विकसित हो चुकी है और यह पता होता है कि गलती कौन कर रहा है... फिर भी दंड महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है...| और विद्वान जन भी इन कारणों को गिना रहे हैं... | जो कि कुछ लगभग १० प्रतिशत उत्श्रीखाल और लोभियों के कर्ण उत्पन्न हुआ है|

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  20. There are many reasons. I am not writing it in details but just mentioning my points here. If anyone wants me to explain it, then I would do that too.

    1. men society still hesitate to treat men and woman equally.
    2. Dowry
    3. Caste system
    4. Insecurity feeling (wont get anything back in return, she wont look after us when we get old)
    5. Caste System
    6. Costly education (higher education will be costly and in some part people think if i pay so much for her education, i wont be left with anything for her marriage.)
    7. Poverty
    8. one problem is interrelated with many other
    9. Mentality and attitude issue
    10. Lack of right understanding(biggest issue)
    and etc...there are many...

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  21. मैने किसी का कमेंट नहीं पढ़ा। सीधे आपके कारण पर आता हूँ...
    (1)..दोगली सामाजिक व्यवस्था। एक तरफ कहते हैं कि बेटी के घर का पानी भी नहीं पीना चाहिए दूसरी ओर कहते हैं बेटा-बेटी एक समान।
    (2)..कन्यादान करने की कुप्रथा। बेटी क्या वस्तु है जिसका दान किया जाय?
    (3)..मनु्ष्य मात्र का लोभी स्वभाव।
    (3)..एक से अधिक पुत्रियों के होने पर बेटे की चाह।
    (4)..पित्र सत्तात्मक समाजिक व्यवस्था।
    (5)..दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही महंगाई में कमर तोड़ती दहेज की कुप्रथा।
    .....और भी होंगे जो साथियों ने लिखे होंगे। विमर्श होना चाहिए..परिणाम और कमियों को सुधारने के संकल्प के साथ।

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  22. मेरे हिसाब से बहाने जितने भी बना लिए जाएँ या तर्क जितने भी दे दिए जाएँ...बेटी को ना चाहने की असली वजह इनसान का पैसे के प्रति अँधा प्रेम है...वो पैसे को अपनी जेब में...अपने घर में आते देखना तो चाहता है लेकिन वही पैसा उसकी जेब से निकल जाए(भले ही किसी भी बहाने से)...ये उसे कतई मंज़ूर नहीं और समाज में चल रही प्रथाओं एवं मान्यताओं के अनुसार बेटी की शादी का मतलब अपनी क्षमता से बढ़कर खर्च करना और बेटे की शादी का मतलब खुद की औकात से बढ़कर धन-दहेज का आना होता है| इसलिए ज़्यादातर लोग यही चाहते हैं की पैसा उनके घर आए तो सही लेकिन जाए नहीं...

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  23. यदि आप मूल कारण देखें तो सिर्फ दो ही कारण दिखते हैं - इज़्ज़त जो उसकी शारीरिक सुरक्षा से जुड़ी होती है और दूसरा - विवाह।

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