चाइल्ड लबर की मेरी पोस्ट पर एक कमेन्ट में कहा गया मध्यम वर्ग कहां "जब मध्यम वर्गीय लोग, घरेलू कार्य के लिए किसी को रखते हैं। तो उसे एक अलग कमरा॥पंखा...नहीं मुहैया करवाते....और हर महीने दो सेट कपड़े भी नहीं देते हैं...साबुन शैम्पू पर भी २०० तो खर्च नहीं किए जाते..." { कमेन्ट को केवल एक सोच की तरह देखा जाए जिस से आगे मंथन करने में आसानी होगी इस पोस्ट को कमेन्ट लेखक पर व्यक्तिगत आक्षेप नहीं माना जाए }
अगर ऐसा हैं तो फिर हम शोषण की बात करते ही क्यूँ हैं जबकि हम खुद अपने घरो में अपने से कम आर्थिक स्तर वाले लोगो का शोषण ही करते हैं ।
आज भी माध्यम वर्ग में ही सबसे ज्यादा प्रचलन हैं काम के लिये बाई रखने का । ऊपर के वर्ग में भी घर में काम करने वाले रखे जाते हैं पर "casual labor " की तरह नहीं ।
झाड़ू पोछा बर्तन करने के लिये ये लोग आती हैं तो इनके बच्चे कहां रहते हैं ??
कितने घर हैं जो इनके बच्चो को अन्दर आने देते हैं ??
कहां जाते हैं ये बच्चे जब इनकी माँ काम पर आती हैं ??
कौन से क्रेश / शिशु गृह इन के लिये खुला हैं जहां ये माँ के ना रहने पर ये रहते हैं ?
ऐसी ज्यादा माँ के बच्चे कबाड़ ही बीनते हैं या कहीं नौकरी करते हैं ।
क्या जरुरी नहीं हैं की हम कम से कम उतनी तनखा जरुर दे जो मिनिमम वेज कहीं जाती हैं ??
क्या केवल ये कह देने से की हम घर की तरह रखते हैं से बात ख़तम हो जाती हैं , जब आप बेसिक सहूलियत नहीं दे सकते , जब आप मिनिमम वेज नहीं दे सकते तो फिर नौकर रख कर आप केवल और केवल उसका शोषण ही कर रहे हैं ।
अब इसका दूसरा रुख देखिये । अगर आप ने मिनिमम वेज दिये और सहुलियते भी दी तो उसको काम भी पूरा करना होगा पर ऐसा नहीं हो रहा हैं आप से पैसा लिया जाता हैं बड़े आदमी का और काम करता हैं क़ोई बच्चा । अब आप ने पैसे पूरे दिये हैं सहुलियते भी तो फिर शोषण कैसे हुआ ।
आज कल हर काम करने वाली बाई ४ छुट्टी मांगती हैं और आप से उम्मीद करती हैं की उस दिन के बर्तन आप खुद धो कर रखेगे । ४ दिन की छुट्टी क्यूँ , क्युकी सब काम करने वालो को मिलती हैं । सही पर सब काम करने वाले यानी जो ऑफिस में हैं अपना काम खुद करते हैं उनकी छुट्टी पर उनका काम कौन करता हैं और उनकी छुट्टी का पैसा भी उनकी सैलिरी ही समझा जाता हैं । लेकिन बाई को ये छुट्टी तो अपना अधिकार लगता हैं पर उस दिन का काम अगले दिन करना नहीं ??
अब कौन किस का शोषण कर रहा हैं ये आप खुद सोचिये ।
समस्या हैं की हम भावना प्रधान समाज हैं जबकि काम भावना से नहीं कर्त्तव्य से जुडा होता हैं । हम घर के काम को प्रोफेशन की तरह नहीं लेते हैं इसी वजह से हमारे यहाँ सर्विस इंडस्ट्री के लिये क़ोई रुल नहीं हैं । ना रुल हैं काम करने वालो के लिये ना कराने वालो के लिये ।
काम वाली बाई से बात करो की समय पर क्यूँ नहीं आयी वो कहेगी " उधर वाली भाभी के यहाँ , मेहमान थे उन्होने कहा नाश्ता बनवा दो " सो देर होगयी । उधर वाली भाभी से पूछा तो उत्तर मिला " काम किया तो क्या मैने तो तुरंत पैसे दिये और नाश्ता अलग करवाया " । अब ऐसे में उनलोगों का क्या जिनके यहाँ वो बाई देर से पहुची । अगर उनमे से क़ोई बाहर नौकरी करती हो तो ???
उधर वाली भाभी ने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया पैसा दिया , बाई ने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया नाश्ता बनवा दिया पर और लोगो को जो परेशानी हुई उसकी भरपाई कैसे होगी ।
बाई के बच्चो की फीस भर दी एक भाभी ने तो दूसरी भाभी को जा कर बाई ने सूना दिया । अगर उसने बच्चो की उनिफ़ोर्म के पैसे नहीं दिये तो वो बुरी होगई ।
क्या जरुरी नहीं हैं इस सब में सुधार हो ?? अपनी सुविधा के लिये कुछ भी करना चाहे उस से दूसरो को असुविधा ही क्यूँ ना हो भी शोषण ही हैं ।
१४ साल तक के बच्चो को ही सरकार बच्चा मानती हैं और केवल उनको ही आप काम पर रखेगे तो आप कानून के अपराधी हैं उसके ऊपर की उम्र के बच्चों से काम लिया जा सकता हैं ।
चाइल्ड लबर के खिलाफ सबसे पहले आवाज विदेशो में उठी थी और उन्होने हमारे उद्योग में जहां बच्चे काम करते थे उन पर पाबंदी लगा दी और समान लेना बंद करदिया । लाखो घरो में चूल्हा जलना बंद होगया । सरकार जगी और इन बच्चो के बारे में सोचना शुरू किया पर हुआ कुछ नहीं । क्युकी जन संख्या इतनी तेजी से बढ़ती हैं की कुछ करना संभव ही नहीं हैं ।
गैर क़ानूनी तरीके से कुछ भी करना पड़ता हैं तो क्या बेहतर हो की सर्विस इंडस्ट्री के लिये कानून बना दिये जाए । बच्चो से काम लेना गैर कानूनी ना हो हां उनको क्या क्या सहूलियत देनी होगी इस पर बात हो ।
समीर लाल { उड़न तश्तरी } ने अपनी किताब में लिखा हैं जो देश , इंडिया में चाइल्ड लबर के खिलाफ बात करते हैं वही देश अपने यहाँ बच्चो से काम करवाने में उरेज नहीं करते । विदेशो में बच्चे बड़े बड़े रेस्तराओ में काम करते हैं और इसको स्वाबलंबन माना जाता हैं ।
आज यूरोप , इकोनोमिक डिसास्टर के कगार पर हैं , सबसे पहले बच्चो से काम ना करवाये , पल्स्टिक में सामान ना बचे इत्यादि नियम के ऊपर बात वही से उठी थी । उस से सारे सामान की कीमत में बढ़ावा हुआ और भारत से समान जाना काम हुआ या मेहंगा हुआ ।
हमारे देश की cotton से बनी वस्तुये जो cottage industry यानी जहां पूरा परिवार काम करता था ख़तम होगई । सबसे सस्ती वही बिकती थी । आज यूरोप उनको खरीदना चाहता हैं पर अब वो काम बंद ही हो गया हैं क्युकी इतने नियम और कानून उन्होने बना दिये की परिवारों ने वो काम छोड़ ही दिया ।
गरीबी की बात करना , गरीबी हटाने की बात करना और बच्चो और काम वालो के शोषण की बात करना इस सब को करने से पहले सोचना होगा की हमारे देश की स्थिति को देखते हुए क्या सही हैं ??
कुछ नियम कानून हम सब को खुद बनाने होगे सर्विस इंडस्ट्री के लिये । अगर हम शोषण करना नहीं चाहते तो हमे अपने शोषण को भी बचाना चाहिये ।
कानून बनाने होगे की हमारे घर के उद्योग बंद ना होजाये और परिवार भुखमरी पर ना पहुँच जाये । बच्चो से काम लेना बुरा नहीं हैं अगर आप उनके काम का पूरा मेहनताना दे । जो मूल भूत सुविधा हैं वो सब उनको मुहिया कराये ।
i would prefer to have rules of our own that will benefit us and protect us . i would prefer that if we employe someone as domestic help we give them exactly the same amount that is minimum wage . and i would prefer to take work accordingly . i feel exploitation is a 2 way process and has nothing to do with class or cadre . its a human tendency and we need to rise over it
All post are covered under copy right law । Any one who wants to use the content has to take permission of the author before reproducing the post in full or part in blog medium or print medium ।
Indian Copyright Rules
अगर ऐसा हैं तो फिर हम शोषण की बात करते ही क्यूँ हैं जबकि हम खुद अपने घरो में अपने से कम आर्थिक स्तर वाले लोगो का शोषण ही करते हैं ।
आज भी माध्यम वर्ग में ही सबसे ज्यादा प्रचलन हैं काम के लिये बाई रखने का । ऊपर के वर्ग में भी घर में काम करने वाले रखे जाते हैं पर "casual labor " की तरह नहीं ।
झाड़ू पोछा बर्तन करने के लिये ये लोग आती हैं तो इनके बच्चे कहां रहते हैं ??
कितने घर हैं जो इनके बच्चो को अन्दर आने देते हैं ??
कहां जाते हैं ये बच्चे जब इनकी माँ काम पर आती हैं ??
कौन से क्रेश / शिशु गृह इन के लिये खुला हैं जहां ये माँ के ना रहने पर ये रहते हैं ?
ऐसी ज्यादा माँ के बच्चे कबाड़ ही बीनते हैं या कहीं नौकरी करते हैं ।
क्या जरुरी नहीं हैं की हम कम से कम उतनी तनखा जरुर दे जो मिनिमम वेज कहीं जाती हैं ??
क्या केवल ये कह देने से की हम घर की तरह रखते हैं से बात ख़तम हो जाती हैं , जब आप बेसिक सहूलियत नहीं दे सकते , जब आप मिनिमम वेज नहीं दे सकते तो फिर नौकर रख कर आप केवल और केवल उसका शोषण ही कर रहे हैं ।
अब इसका दूसरा रुख देखिये । अगर आप ने मिनिमम वेज दिये और सहुलियते भी दी तो उसको काम भी पूरा करना होगा पर ऐसा नहीं हो रहा हैं आप से पैसा लिया जाता हैं बड़े आदमी का और काम करता हैं क़ोई बच्चा । अब आप ने पैसे पूरे दिये हैं सहुलियते भी तो फिर शोषण कैसे हुआ ।
आज कल हर काम करने वाली बाई ४ छुट्टी मांगती हैं और आप से उम्मीद करती हैं की उस दिन के बर्तन आप खुद धो कर रखेगे । ४ दिन की छुट्टी क्यूँ , क्युकी सब काम करने वालो को मिलती हैं । सही पर सब काम करने वाले यानी जो ऑफिस में हैं अपना काम खुद करते हैं उनकी छुट्टी पर उनका काम कौन करता हैं और उनकी छुट्टी का पैसा भी उनकी सैलिरी ही समझा जाता हैं । लेकिन बाई को ये छुट्टी तो अपना अधिकार लगता हैं पर उस दिन का काम अगले दिन करना नहीं ??
अब कौन किस का शोषण कर रहा हैं ये आप खुद सोचिये ।
समस्या हैं की हम भावना प्रधान समाज हैं जबकि काम भावना से नहीं कर्त्तव्य से जुडा होता हैं । हम घर के काम को प्रोफेशन की तरह नहीं लेते हैं इसी वजह से हमारे यहाँ सर्विस इंडस्ट्री के लिये क़ोई रुल नहीं हैं । ना रुल हैं काम करने वालो के लिये ना कराने वालो के लिये ।
काम वाली बाई से बात करो की समय पर क्यूँ नहीं आयी वो कहेगी " उधर वाली भाभी के यहाँ , मेहमान थे उन्होने कहा नाश्ता बनवा दो " सो देर होगयी । उधर वाली भाभी से पूछा तो उत्तर मिला " काम किया तो क्या मैने तो तुरंत पैसे दिये और नाश्ता अलग करवाया " । अब ऐसे में उनलोगों का क्या जिनके यहाँ वो बाई देर से पहुची । अगर उनमे से क़ोई बाहर नौकरी करती हो तो ???
उधर वाली भाभी ने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया पैसा दिया , बाई ने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया नाश्ता बनवा दिया पर और लोगो को जो परेशानी हुई उसकी भरपाई कैसे होगी ।
बाई के बच्चो की फीस भर दी एक भाभी ने तो दूसरी भाभी को जा कर बाई ने सूना दिया । अगर उसने बच्चो की उनिफ़ोर्म के पैसे नहीं दिये तो वो बुरी होगई ।
क्या जरुरी नहीं हैं इस सब में सुधार हो ?? अपनी सुविधा के लिये कुछ भी करना चाहे उस से दूसरो को असुविधा ही क्यूँ ना हो भी शोषण ही हैं ।
१४ साल तक के बच्चो को ही सरकार बच्चा मानती हैं और केवल उनको ही आप काम पर रखेगे तो आप कानून के अपराधी हैं उसके ऊपर की उम्र के बच्चों से काम लिया जा सकता हैं ।
चाइल्ड लबर के खिलाफ सबसे पहले आवाज विदेशो में उठी थी और उन्होने हमारे उद्योग में जहां बच्चे काम करते थे उन पर पाबंदी लगा दी और समान लेना बंद करदिया । लाखो घरो में चूल्हा जलना बंद होगया । सरकार जगी और इन बच्चो के बारे में सोचना शुरू किया पर हुआ कुछ नहीं । क्युकी जन संख्या इतनी तेजी से बढ़ती हैं की कुछ करना संभव ही नहीं हैं ।
गैर क़ानूनी तरीके से कुछ भी करना पड़ता हैं तो क्या बेहतर हो की सर्विस इंडस्ट्री के लिये कानून बना दिये जाए । बच्चो से काम लेना गैर कानूनी ना हो हां उनको क्या क्या सहूलियत देनी होगी इस पर बात हो ।
समीर लाल { उड़न तश्तरी } ने अपनी किताब में लिखा हैं जो देश , इंडिया में चाइल्ड लबर के खिलाफ बात करते हैं वही देश अपने यहाँ बच्चो से काम करवाने में उरेज नहीं करते । विदेशो में बच्चे बड़े बड़े रेस्तराओ में काम करते हैं और इसको स्वाबलंबन माना जाता हैं ।
आज यूरोप , इकोनोमिक डिसास्टर के कगार पर हैं , सबसे पहले बच्चो से काम ना करवाये , पल्स्टिक में सामान ना बचे इत्यादि नियम के ऊपर बात वही से उठी थी । उस से सारे सामान की कीमत में बढ़ावा हुआ और भारत से समान जाना काम हुआ या मेहंगा हुआ ।
हमारे देश की cotton से बनी वस्तुये जो cottage industry यानी जहां पूरा परिवार काम करता था ख़तम होगई । सबसे सस्ती वही बिकती थी । आज यूरोप उनको खरीदना चाहता हैं पर अब वो काम बंद ही हो गया हैं क्युकी इतने नियम और कानून उन्होने बना दिये की परिवारों ने वो काम छोड़ ही दिया ।
गरीबी की बात करना , गरीबी हटाने की बात करना और बच्चो और काम वालो के शोषण की बात करना इस सब को करने से पहले सोचना होगा की हमारे देश की स्थिति को देखते हुए क्या सही हैं ??
कुछ नियम कानून हम सब को खुद बनाने होगे सर्विस इंडस्ट्री के लिये । अगर हम शोषण करना नहीं चाहते तो हमे अपने शोषण को भी बचाना चाहिये ।
कानून बनाने होगे की हमारे घर के उद्योग बंद ना होजाये और परिवार भुखमरी पर ना पहुँच जाये । बच्चो से काम लेना बुरा नहीं हैं अगर आप उनके काम का पूरा मेहनताना दे । जो मूल भूत सुविधा हैं वो सब उनको मुहिया कराये ।
i would prefer to have rules of our own that will benefit us and protect us . i would prefer that if we employe someone as domestic help we give them exactly the same amount that is minimum wage . and i would prefer to take work accordingly . i feel exploitation is a 2 way process and has nothing to do with class or cadre . its a human tendency and we need to rise over it
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