हर जनम मोहे बिटिया ही कीजो
हर जनम मे मुझे शक्ति इतनी ही दीजो की जब भी देखू कुछ गलत , उसे सही करने के लिये होम कर सकू , वह सब जो बहुत आसानी से मुझे मिल सकता था /है /होगा ।
चलू हमेशा अलग रास्ते पर जो मुझे सही लगे सो दिमाग हर जनम मे ऐसा ही दीजो की रास्ता ना डराए मुझे , मंजिल की तलाश ना हो ।
बिटियाँ बनाओ मुझे ऐसी की दुर्गा बन सकू , मै ना डरू , ना डराऊँ पर समय पर हर उसके लिये बोलू जो अपने लिये ना बोले , आवाज बनू मै उस चीख की जो दफ़न हो जाती है समाज मे।
रोज जिनेह दबाया जाता है मै प्रेरणा नहीं रास्ता बनू उनका । वह मुझसे कहे न कहे मै समझू भावना उनकी बात और व्यक्त करू उन के भावो को अपने शब्दों मे।
ढाल बनू , कृपान बनू पर पायेदान ना बनू ।
बेटो कि विरोधी नही बेटो की पर्याय बनू मै , जैसी हूँ इस जनम मै ।
कर सकू अपने माता पिता का दाह संस्कार बिना आसूं बहाए ।
कर सकू विवाह बिना दान बने ।
बन सकू जीवन साथी , पत्नी ना बनके ।
बाँट सकू प्रेम , पा सकू प्रेम ।
माँ कहलायुं बच्चो की , बेटे या बेटी की नहीं ।
और जब भी हो बलात्कार औरत के मन का , अस्तित्व का , बोलो का , भावानाओ का या फिर उसके शरीर का मै सबसे पहली होयुं उसको ये बताने के लिये की शील उसका जाता है , जो इन सब चीजो का बलात्कार करता है ।
इस लिये अभी तो कई जनम मुझे बिटिया बन कर ही आना है , शील का बलात्कार करने वालो को शील उनका समझाना है । दूसरो का झुका सिर जिनके ओठो पर स्मित की रेखा लाता है सर उनका झुकाना हैं । वह चूहे जो कुतर कर बिलो मे घुस जाते हैं , बाहर तो उन्हें भी लाना है ।
दाता हर जनम मोहे बिटिया ही कीजो ।
हर जनम मे मुझे शक्ति इतनी ही दीजो की जब भी देखू कुछ गलत , उसे सही करने के लिये होम कर सकू , वह सब जो बहुत आसानी से मुझे मिल सकता था /है /होगा ।
चलू हमेशा अलग रास्ते पर जो मुझे सही लगे सो दिमाग हर जनम मे ऐसा ही दीजो की रास्ता ना डराए मुझे , मंजिल की तलाश ना हो ।
बिटियाँ बनाओ मुझे ऐसी की दुर्गा बन सकू , मै ना डरू , ना डराऊँ पर समय पर हर उसके लिये बोलू जो अपने लिये ना बोले , आवाज बनू मै उस चीख की जो दफ़न हो जाती है समाज मे।
रोज जिनेह दबाया जाता है मै प्रेरणा नहीं रास्ता बनू उनका । वह मुझसे कहे न कहे मै समझू भावना उनकी बात और व्यक्त करू उन के भावो को अपने शब्दों मे।
ढाल बनू , कृपान बनू पर पायेदान ना बनू ।
बेटो कि विरोधी नही बेटो की पर्याय बनू मै , जैसी हूँ इस जनम मै ।
कर सकू अपने माता पिता का दाह संस्कार बिना आसूं बहाए ।
कर सकू विवाह बिना दान बने ।
बन सकू जीवन साथी , पत्नी ना बनके ।
बाँट सकू प्रेम , पा सकू प्रेम ।
माँ कहलायुं बच्चो की , बेटे या बेटी की नहीं ।
और जब भी हो बलात्कार औरत के मन का , अस्तित्व का , बोलो का , भावानाओ का या फिर उसके शरीर का मै सबसे पहली होयुं उसको ये बताने के लिये की शील उसका जाता है , जो इन सब चीजो का बलात्कार करता है ।
इस लिये अभी तो कई जनम मुझे बिटिया बन कर ही आना है , शील का बलात्कार करने वालो को शील उनका समझाना है । दूसरो का झुका सिर जिनके ओठो पर स्मित की रेखा लाता है सर उनका झुकाना हैं । वह चूहे जो कुतर कर बिलो मे घुस जाते हैं , बाहर तो उन्हें भी लाना है ।
दाता हर जनम मोहे बिटिया ही कीजो ।
आमीन .....सही लिखा है आपने
ReplyDeleteएक एक शब्द दिल को छू गया। उन ऒरतों के लिये प्रेरणादायी हॆ जो अगले जन्म में ऒरत नहीं बनना चाहती। एक राजस्थानी भजन याद आ गया: 'म्हारो तिरिया जनम छुडाय दे रे पहाडां का बदरीनाथ' जल्द ही पोस्ट करूंगी।
ReplyDeletesach dil ko chu gaya ye lekh,kitna sahi kaha rachanaji bahut khubsurat,har janam beti hi banaye parampita,jo roushani ki raah ho.
ReplyDeleteरचना जी
ReplyDeleteआपने बहुत ही सुन्दर भाव व्यक्त किए हैं। मैं भी आफकी ही तरह हर जनम में नारी ही बनना चाहती हूँ। इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई स्वीकारें।
वाह ! भगवान करे आप की एक एक इच्छा पूर्ण हो……।
ReplyDeletesach hai..bahuton se suna hai ki agale janam me aourat na banaye bhagwaan..unke liye ye achha misaal hai..aapka lekh.
ReplyDeleteवाह..बहुत खूब.. ऐसा ही होगा... क्योंकि आपकी तीव्र इच्छा शक्ति दिखाई देती है.
ReplyDeleteसुन्दर और दिल की बात ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव.मेरे विचार आपसे बहुत मिलते जुलते हैं.प्रभावी पोस्ट के लिये बधाई.
ReplyDeleteअच्छा लगा हैं ये जानकर की इतने लोगो की मन की बात लिख सकी
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