नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

August 05, 2008

नारी अविवाहित ३० के ऊपर और सुखी ?? हो ही नहीं सकता

आईये आप को मिलवाए कुछ अविवाहित महिलाओ से जो तीस के ऊपर हैं { अब सुखी - दुखी , खुश , ना खुश की परिभाषा तो सब के लिये अलग अलग होती हैं } और अपने आप मे पूर्ण हैं ।
मदर टेरेसा
लता मंगेशकर
पीनाज़ मसानी
बरखा दत्त
सोनल मान सिंह

ये कुछ नाम हैं खोजेगे तो बहुत लम्बी लिस्ट बन सकती हैं लेकिन एक बात बता दूँ की कही भी आप अगर खोजते हैं " achievers list " तो शादी critereia नहीं होता हैं . किसी भी बायोडाटा को आप शादी के आधार या अविवाहित के आधार पर नहीं खोज सकते । सब permutations combinations डाल लिये गूगल सर्च मे , पर शादी / अविवाहित महिला से कुछ भी पता नहीं चला !!!!!!!
शादी किसी भी तरीके से कोई माप दंड नहीं हैं समाज मे अपना स्थान बनाने के लिये । शादी करना या ना करना अपना व्यकिगत निर्णय होना चाहिये । इसे सामाजिक व्यवस्था का निर्णय मान कर जो लोग अविवाहित महिला को " असामाजिक तत्व " , "अल्फा वूमन ", "प्रगतिशील नारी !!!" , "फेमिनिस्ट " , "दूसरी औरत " , "होम ब्रेकर " , "वो " , इत्यादि नामो से नवाजते हैं उनको जरुर एक बार इन सब के चरित्र को पढ़ना चाहीये ।
हां ये सही हैं की पारंपरिक रूप से भारत मे नारी को केवल माँ - बहिन - बाटी और पत्नी के रूप मे देखा जाता हैं और सम्मान दिया जाता हैं समाज मे लेकिन क्या इसका मतलब ये हैं की जो महिला गैर पारंपरिक रूप मे नहीं हैं वो ग़लत हैं ?? बहुत सी विवाहित महिला हैं जो "वूमन अचीवर " मानी जाती हैं और जो निरंतर अपने को आगे लाने के लिये संघर्ष करती हैं घर मे भी बाहर भी लेकिन "सुपर वूमन " बनकर क्योकि वो आर्थिक रूप से सशक्त रहने के महत्व को जानती हैं । लेकिन ना जाने कितनी महिला ऐसी भी हैं जिनको अपना करियर दाव पर लग्न पड़ता हैं क्योकि समाज को "उनके विवाह " की फ़िक्र हैं । माता पिता का कर्तव्य हैं की बच्चो को शिक्षित करे , आत्म निर्भर बनाए , और उसके बाद अपने जीवन के निर्णय ख़ुद लेने दे ।
ये कहना की "मैं सब कर सकती हूँ, मुझमें पूरी काबिलियत है" का अहं कई बार उसे अपने ही सुख से वंचित रखता है।" नितांत गलत हैं क्योकि सबके सुख अलग अलग होते हैं , सुख को अगर परिभाषित करे तो " कोई भी इंसान जब अपनी मन की करता हैं / कर पाता हैं शायद तभी वह सबसे सुखद स्थिती मे अपने को देख पाता हैं । "
कही भी अगर शादी की बात पर बहस होती हैं तो शादी की जरुरत के कई कारण बताये जाते हैं कई आवाजे हैं जैसे नयी सृष्टि की रचना , भावनात्मक सुरक्षा , सामाजिक व्यवस्था , औरत माँ बन कर ही पूरी होती हैं , नारी पुरूष एक दूसरे के पूरक हैं , समाज मे अराजकता रोकने मे सहायक । ये सब आवाजे शादी को महज एक जरुरत का दर्जा देती हैं क्यों कभी भी कहीं भी कोई आवाज ये कहती नहीं सुनाई देती की " हमने शादी अपनी खुशी के लिये की हैं " ।
इसलिये ये प्रश्न ही बड़ा बेमानी हैं यदि कोई किसी ऐसी महिला को जानता हो जो ४० पार कर चुकी हो लेकिन फिर भी शादी न की हो तो कृपया उनसे पूछकर बताये कि क्या वे वाकई में खुश हैं?
ख़ुद अविवाहित हूँ और साथ की अपनी हम उम्र विवाहित ब्लॉगर महिलो से जब बात करती हूँ तो पता चलता हैं की वो सब अपने बच्चो की शादी करने वाली हैं , उनके लेखो पर जो कैमेंट आते हैं उन मे कही भी उनके वस्त्रो पर , उन के रहन सहन पर व्यक्तिगत टिका टिपण्णी नहीं होती पर मेरे बारे मे जिस प्रकार से टिपण्णी की जाती हैं उस से बिल्कुल पता चलता हैं की मुझे एक "असामाजिक तत्व " समझा जाता हैं । लेकिन ये महज टिपण्णी करने वाले की मानसकिता को दिखाता हैं उनके अंदर बसे पूर्वाग्रह को दिखाता हैं ।

आप शादी करके सुखी हैं या दुखी हैं ?? नहीं जानना जरुरी हैं लेकिन अगर शादी इतनी जरुरी हैं तो आपने शादी क्यों की ?? इस को जानने की इच्छा जरुर हैं अपने हम उम्र ब्लॉगर दोस्तों से । क्या लिख सकते हैं चन्द शब्दों मे की आप के क्या क्या कारण थे शादी करने के या केवल समाजिक व्यवस्था के चलते ही सब शादी करते ।

32 comments:

  1. 'अब सुखी - दुखी , खुश , ना खुश की परिभाषा तो सब के लिये अलग अलग होती हैं }--
    तो आप मानती है कि सुख दुख की परिभाषा सबके लिए अलग अलग होती है....
    ब्लॉगजगत समाज का कितना प्रतिशत है, बहुत कम...उससे आप मन खराब न करें...

    हाँ आपने रोचक सवाल किया है अपने मित्रों से तो उस पर एक पोस्ट बनाने का विचार किया जा सकता है.

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  2. रचना जी, जो विवाह करना चाहते हैं और यदि स्वयं अपने लिए साथी नहीं ढूँढ पाए किन्हीं भी कारणों से, उनके लिए किसी मित्र, रिश्तेदार, या विग्यापन आदि द्वारा साथी ढूँढना सही है। अन्यथा विवाह तभी करना चाहिए जब आप किसी को इतना चाहें कि उसके साथ जीवन बिताना चाहें। जिसे रुचि न हो उसे कभी भी नहीं करना चाहिए। विवाहित हूँ परन्तु न स्वयं विवाह किसी के कहने से किया, प्रेम था सो किया। बच्चियों के लिए भी कभी भी वर ढूँढने नहीं निकलती। उन्होंने भी इसलिए किया क्योंकि कोई उन्हें पसन्द था व वे उनके साथ जीवन बिताना चाहती थीं। ऐसे में भी खुशी मिलेगी ही नहीं कहा जा सकता। खुशियाँ चुननी पड़ती हैं जीवन में। कोई हाथ में रख नहीं देता। खुशियाँ पाने का हम सभी यत्न करते हैं कभी सफल होते हैं तो कभी असफल।
    विवाह करना या न करना व्यक्ति का निजी मामला है। इसमें कोई कुछ नहीं कह सकता।
    घुघूती बासूती

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  3. विवाह न सुख की, न दुख की गारंटी है। मूल बात तो जीवन को अपनी रीति से जीने की है और रीति को भी परिस्थितियाँ तय करती हैं। महिलाओं के विवाह के अनुभव रोमांचक होंगे और कुछ न कुछ नया सिखा ही जाएँगे।

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  4. "महिलाओं के विवाह के अनुभव रोमांचक होंगे और कुछ न कुछ नया सिखा ही जाएँगे।"
    दिनेश जी इस पोस्ट मे , अनुभवों को बांटने की बात नहीं कर रही हूँ . हम उम्र ब्लॉगर मित्र , स्त्री और पुरूष दोनों , ने आज से तक़रीबन १५-२० साल पहले विवाह किया होगा उस समय उनके विवाह करने के " कारण " को जानने की खोज हैं ये पोस्ट . विवाह के अनुभव नितांत निज होते हैं और किसी की निज की जिंदगी मे झाकना इस पोस्ट का मकसद नहीं हैं .

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  5. @meenaakshi
    ब्लॉगजगत समाज का कितना प्रतिशत है, बहुत कम...उससे आप मन खराब न करें...
    blogjagat ek padaa likha hissa haen issi samj ka

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  6. विवाह करना या न करना व्यक्ति का निजी मामला है। इसमें कोई कुछ नहीं कह सकता।
    GB Mam
    Thsnks for commenting on the post

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  7. रचना, मै घुघुती जी की बात से सहमत हूँ.

    हमारे समाज मे, शादी शुदा, अविवाहित, और सम्लैगिको के लिये व्यक्ति के स्तर पर समान इज़्ज़त होनी चाहिये, और कोई क्या चुनता है, ये व्यक्तिगत मसला ही होना चाहिये. ऐसा मेरा मानना है और हर तरह के लोगों को मै समान इज़्ज़त देती हू. मनुष्य को सबसे पहले और सबसे आखिर मे भी मनुष्य की तरह ही देखा जाना चाहिये.

    मै शादी-शुदा, दो बच्चो की मा हूँ, काम-काज़ी भी हूँ. शादी भी इसिलिये की क्योंकि उस इंसान के साथ जीवन बांट्ना चाह्ती थी, और शादी फिलहाल दो लोगों के साथ रहने का सबसे सम्मान जनक तरीका है, एक फ्रेम. उस फ्रेम के भीतर की तस्वीर हम खुद तराशते रहते है. कोशिश रहती है कि दो व्यक्तियो का सम्मान बना रहे. मतभेद भी होते है, पर इतने बडे नही कि सुल्झाये न जा सके.

    बिना शादी के भी साथ रह सकती थी, पर उस स्थिति मे अपनी ऊर्ज़ा का एक बडा भाग उस रिश्ते को सही ठहराने मे अपव्यय होता. दूसरा है कानूनी स्थिति, बच्चे के ऊपर असर, और उनको बिन-बात के असहज स्थिति मे डालना. इसीलिये शादी मेरे लिये एक सामाजिक स्वीक्रिति का सर्टिफिकेट है, कि लोगों शांती रखो, और मेरे परिवार मे अपनी टांग़ मत घुसाओ!! और मै अपनी ऊर्ज़ा किसी ऐसे काम मे लागऊ जो मुझे पसन्द है.

    फिलहाल इतना कह सकती हूँ कि जिस तरह अपने प्रोफेशन मे सफलता के लिये दिन-रात मेहनत करनी पडती है, समय देना पडता है, उसी तरह ग्रिहस्थी मे भी समय-समय पर नये-नये फेज़ आते है. उनसे डील करना पडता है, नयी चीज़े सीखनी पड्ती है, सुननी पडती है. प्राथमिकताये भी बार-बार बदलनी पडती है. सफलता का नियम है फ्लेक्शिबीलीटी.
    सुख और दुख कोई स्थायी भाव नही है, और ये सिर्फ इसी से तय नही है कि मिया-बीबी मे प्यार है , कद्र है कि नही. जब खुशी आती है, तो लगता है कि जीवन का एक हिस्सा सार्थक है, जब दु:ख आता है तो मुझे थोडा और ज्यादा मनुश्य बना देता है, दूसरो के प्रति सम्वेदंशीलता बढा देता है, और जीवन की समझ को गहरा करता है. और साथ ही जो कुछ अच्छा है मेरे पास मुझे उसकी कद्र करना सिखाता है.

    जीवनसाथी की ज़रूरत इन्ही सुख और दु:ख को बिन कहे बाटने के लिये होती है. और जीवन के संघर्ष मे यही एक सुख उन लोगों को मिलता है, जो शायद शादी-शुदा हो, सिर्फ इस शर्त पर की जीवन साथ् जीना है.
    बाकि
    "और भी गम है जमाने मे मुहब्बत के सिवा"

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  8. "ख़ुद अविवाहित हूँ और साथ की अपनी हम उम्र विवाहित ब्लॉगर महिलो से जब बात करती हूँ तो पता चलता हैं की वो सब अपने बच्चो की शादी करने वाली हैं , उनके लेखो पर जो कैमेंट आते हैं उन मे कही भी उनके वस्त्रो पर , उन के रहन सहन पर व्यक्तिगत टिका टिपण्णी नहीं होती पर मेरे बारे मे जिस प्रकार से टिपण्णी की जाती हैं उस से बिल्कुल पता चलता हैं की मुझे एक "असामाजिक तत्व " समझा जाता हैं ।"


    Waise ek baat bolun, hamare smaaj mein aap hamesha payenge ki jo bhi nariyan thoda alag hatkar kuch kiya hai to unper samaj ke kuch thekedaron dwara kichad uchalne ka prayash kiye gaye hein, aur ab bhi uchale jate hein. ye katu satya hai!

    Dusri baat, samaj ke in thekedaron ko hamesha apne se jyada dusron ki chinta rahti hai, shayad unhe apne life or apne zindagi ki to fikra nahi hoti bus dusron ko nishana banane mein hi apni bahaduri smajhte hein or ye sab karne mein hi unhe shakun milta hai.

    Bus last mein itna kahungi, "KUTTA BHUKHE HAZAR HATHI CHALE BAZAR!":-)

    www.rewa.wordpress.com

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  9. @Rachna ji,

    Ek baat aur; agar aap aaj her shadi suda vaivahik jeevan jeene wali nari ko puchenge ki kya wo ek NARI ke roop mein khush hai to aap sat pratishat answer yahi payengi ki NO/Nahi. Bhale hi ye sach unke munh se na nikle kyunki log apne ego ko boost karne mein hi sukh anubhav karte hein but ye sach hai.

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  10. "इसीलिये शादी मेरे लिये एक सामाजिक स्वीक्रिति का सर्टिफिकेट है, कि लोगों शांती रखो, और मेरे परिवार मे अपनी टांग़ मत घुसाओ!! " swapandarshi
    आप ने ये कह कर एक आइना दिखाया हैं सबको . सच स्वीकार करना , अपना सच एक सुलझे हुए व्यक्तित्व की तरफ़ इंगित करता हैं .
    और आप का ये कहना " हमारे समाज मे, शादी शुदा, अविवाहित, और सम्लैगिको के लिये व्यक्ति के स्तर पर समान इज़्ज़त होनी चाहिये, और कोई क्या चुनता है, ये व्यक्तिगत मसला ही होना चाहिये. ऐसा मेरा मानना है " मेरी बात को जो मे पिछले कई पोस्ट मे लिख रही हूँ को सही सिद्ध कर रहा हैं .

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  11. rewa
    aap ki likhi har baat mae bahut dhyaan sae padjhtee hun kyoki aap next generation ki haen . bahut achcha lagtaa haen ki aap nirentar yahaan aakar post padhtee haen aur apne vichaar daetii haen . aap ki ek ek baat bilkul sahii hae jisey maene tab bhi mehsoos kiya jab mae aap ki umar kii thee
    so pidhi badal gayee par samaj ki dakiyanus soch narri kae liyae nahin badlee
    please keep putting in your views because future belogs to you

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  12. मुझे तो यह लगता है की यह हर इंसान की अपनी सोच है की वह की वह क्या करे अपनी जिंदगी के साथ ..विवाह ,प्रेम यह वक्तिगत सोच है और हर किसी के पाने विचार है इस पर ...सबकी राय इस पर एक हो यह जरुरी नही है ..किसी के वह बात सही हो सकती है किसी के वही ग़लत सो आज़ाद देश के नागरिक की तरह हर कोई सोचे की उसने अपनी जिंदगी बितानी कैसे हैं ...इस पर बहस क्यों? जिंदगी का हर अनुभव कुछ न कुछ सिखा कर ही जाता है ..

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  13. रचना जी आपकी इस बात से मैं सहमत हूँ कि शादी किसी भी तरीके से कोई माप दंड नहीं हैं समाज मे अपना स्थान बनाने के लिये. शादी करना या ना करना अपना व्यकिगत निर्णय होना चाहिये. इसे सामाजिक व्यवस्था का निर्णय मान कर किसी अविवाहित महिला को " असामाजिक तत्व " , "दूसरी औरत " , "होम ब्रेकर " , "वो " , इत्यादि नामो से नवाजना ग़लत हैं. मेरे अपने आफिस में कई महिला सहकर्मियों ने शादी नहीं की, पर कभी किसी पुरूष सहकर्मी ने उनके बारे कोई ग़लत बात नहीं कही. हम सब उनका बहुत आदर करते हैं. वह हर तरह से एक सफल व्यक्तित्व हैं. हम जब भी साथ-साथ आडिट करने जाते थे, हमारी क्लाइंट कम्पनियाँ उनकी बहुत तारीफ़ करती थीं. मेरे दूर की रिश्तेदारी में दो कजिन्स ने शादी नहीं की. दोनों अध्यापिकाएं थीं. स्कूल में और समाज में उनको पूरा आदर मिला. आज भी वह जब शादी या किसी अन्य उत्सव में आती हैं सब उनका पूरा सम्मान करते हैं.

    बैसे मेरी अपनी व्यक्तिगत राय यह है कि शादी जरूरी है.

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  14. chhahe naari ho ya purush uske vivah karne ya na karne ka nirnay uska niji nirnay tab tak nahi ho sakta jab tak vo kisi samaj ka ang hai. ham sab kisi na kisi samaj ki ikai ke roop me samajik praani hai. prashna yeh uthta hai ki vivah ki aavashyakta kyo? athva yadi har koi avivahit rahne ka hi nirnay le le to iske kya parinaam ho sakte hai.
    mere vichar me vivah ki avashykta isliye mahsoos ki gaye kyo ki aarambh me to parivar ki avdharna hi nahi rahi hogi. kisi bhi nar ya nari ki nishtha kisi ke prati nahi rahi hogi aur na hi santan ka uttardayitva raha hoga. samaj ki sabse chhoti ikai hoti hai paivar jiske liye pati-patni jo ek doosre ke poorak samjhe gaye vo mil kar rahne lage. viviah ka uddeshya keval santati utpadan hi nahi hai apitu manavo ki vasna ko niyantrit evam nigamit karne ke uddeshya se bhi vivah ki aavashkata uttpanna hui. kyoki maanv ki vasna pashu pakshi se bhinna hai. is tathya ko asweekar nahi kiya ja sakta ki kuchh apvado ke atirikt nar ho ya nari, manushya daihik sambandho ki aavashyakta, anivaryata, kaamna se mukta nahi ho sakta. yeh ek katu satya hai ki nar-nari kaam ki granthi se svayam ko mukta nahi kar sakte. isi aadim pravatti (basic instinct) ko niyantrit karne ke liye bhi vivah namak sanstha ki sthapna ki gaye jise dharm-arth-kaam-mooksha ke chaar purushartho me sthan dekar dharmik kartavya ki bhavna se isliye jod diya gaya ki vyakti kaam ko galat athva nindaneeya na samjhe. aisa nahi hai ki vivah ke kaaran samaj avaidh samabandh (maatra vivah ke sandarbh me) athva apradh se mukta ho gaya parantu yeh sambandh tatha apradh kafi seema tak nyoon avashya ho gaye. vivah ke dushprabhavo me talaq athva anchahe saathi ke saath poora jeevan katne ki vivashta hai phir bhi sabhya samaj me vivah ki anivaryata se muh nahi moda ja sakta.
    sara jeevan avivahit rahne ka nirnay tab uchit hai jab kisi uchcha uddeshya ki poorti ke liye vivah na kiya jaye aur apna jeevan sahitya. sangeet, lalit kala, shodh, uchcha lakshya (literature, music, arts and fine arts, research, mission) aadi ke liye samarpit karna ho anyatha maatra mauj-masti karne, samajik sanrachna aur sangathan ka uphaas karne, niymo se pare nirdwand swachand jeevan jeene, pashchimi vichardhara se prerit naari mukti ke paimano ka andhanukaran karne ke liye avivahit rahna uchit nahi hai.
    ANEK KAMIYO KE UPRAANT BHI VIVAH KAR PARIVARIK SAMAJIK SANSTHA KO SUDRARH KARNA TATHA MANAV MAN KI KAAM SAMBANDHI AADIM PRAVATTI KO NIYANTRIT RAKHNA UCHIT HAI.

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  15. रचनाजी नारी ही नहीं, अविवाहित पुरुषों को भी अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता, मकानमालिक कमरा देने को तैयार नहीं होते. भेद केवल नर-नारी का नहीं, पीढियों का भी है, स्वतंत्रता की आकांक्षा नर को भी है. मेरी समझ में नहीं आता आप नर-नारी के भेद-भाव के चश्मे को हर समय क्यों पहने रहती हो. आप अविवाहित हैं, इसका आशय यह तो नहीं कि संसार की महिलाओं को अविवाहित ही रहना चाहिये या केवल अविवाहित महिलायें ही सुखी हैं तथा विवाहित महिला या पुरुष कष्ट भोग रहें हैं. आप से विनम्र निवेदन है कि भारतीय संसकृति के मूल तत्वों को समझिये, संभव हो तो पारिवारिक सुख व दायित्वों का अनुभव लेने पर विचार कीजियेगा, जीवन मूल्यों को समझिये, कालान्तर में जो कुप्रथायें सम्मिलित हो गयीं हैं, उनके विरोध में आवाज इसी प्रकार उठाते रहिये एक समय ऐसा आ सकता है, जो अभी आपको महिलाओं के शत्रु लगतें हैं वही मित्र भी लगने लग सकते हैं. हां कुछ अनुचित लगे तो छोटा समझ कर माफ़ कर दीजियेगा.

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  16. शादी व्यक्तिगत मामला नहीं, सामाजिक मामला है. शादी समाज का आधार है. वैयक्तिक सम्बंध को प्यार या कोई भी नाम दिया जाय किन्तु शादी नहीं कहा जा सकता.

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    1. issi liye apna bhavishya bachane ke liye ,chote bhai ki bina uski ijajat ke 10 badi vidhva bhabi se shadi kara dete hai ....yahi samaj hai n vidhwa hone se pahle wahi bhabi maa hoti hai ur use hi vidhwa hone ke baad jabadasti wife bana dete hai ,............... kya yahi sanaj hai ..........samaj kuch nahi hai ye sab apne apne kaam nikale ke tarike hai

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    2. आपकी बात भी सही है, समय के साथ सामाजिक रीति-रिवाजों में बदलाव की भी आवश्यकता है और कुछ सीमा तक विद्रोह की भी किन्तु व्यक्ति अकेला नहीं रह सकता? सामाजिक रीति-रिवाज बदले जा सकते हैं, नये रूप में ही सही किसी न किसी रुप में स्त्री व पुरुष को साथ-साथ तो रहना ही होगा ना?

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  17. राष्ट्रप्रेमी जी
    आप ने इतना लंबा कमेन्ट इस विषय मे तो दिया की मुझे क्या करना चाहिए पर मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया की " जब आपने शादी की थी उस समय आप की सोच मे शादी क्या थी , क्या मतलब था उस समय शादी का आप के लिये . आज आप क्या सोचते हैं या शादी के आप के क्या अनुभव हैं इससे कोई सारोकार नहीं हैं हाँ जिस उम्र पर आप की शादी हुई थी उस समय शादी करने का क्या कारण था . " या आपने केवल इस लिये विवाह किया था की मकान मालिक आप को कमरा दे दे !!!! शादी का ये भी एक कारन होता हैं आज पता लगा !!!!!!!!

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  18. "आप अविवाहित हैं, इसका आशय यह तो नहीं कि संसार की महिलाओं को अविवाहित ही रहना चाहिये या केवल अविवाहित महिलायें ही सुखी हैं तथा विवाहित महिला या पुरुष कष्ट भोग रहें हैं. आप से विनम्र निवेदन है कि भारतीय संसकृति के मूल तत्वों को समझिये,"

    राष्ट्रप्रेमी जी,

    Who have given you right to target anybody here? If you are really a rashtra premi then try to respect rashtra word, otherwise don't use this word!

    Aapse sawal ye nahi puche gaye the ki Rachna ji ne shadi ki hai ya nahi ki hai? Na hi unhone ye hi kaha hai kisi ko ki shaid mat karo..post dobara padhiye, uska adhyan kijiye fir apni shabdon ko yahan rakhiye, isse aapke shabdon mein bhi vajan aayega aur baat bhi pate ki karenge. Faltoo comment karne se koi bahadur nahi ho jata hai or na hi samjhdari nazar aati hai. Life ka main uddeshya hai khushi rahna jo her ek insan chahta hai, khud se puchiye aur khud ko janchiye ki aap kitne khushi hein, tab aapko her sawal ka uttar mil jayega.

    Aur sabhi logon se anurodh hai ki please thoda soch smajhkar shabdon ka use kare taki samne walon ko hurt na ho, warna ye blogging karna koi bematlab ki baat hai. Ise anyatha na lekar positively socha jaye.

    dhayawad.

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  19. Jaylalita, Mayavatii tathaa tamaam sarii filmii abhinetriyan aadi bhii isii men aatii hain par kay samaaj men pariwar ka concept vakai bekar ho chuka hai?

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  20. राष्ट्रप्रेमी जी,हम आपको बहुत मान देते हैं क्योंकि आपकी टिप्पणियाँ प्रभावित करती हैं लेकिन शायद इस लेख को आपने ध्यान से पढ़ा नहीं. प्लीज़ एक बार फिर पढ़िए और सभी टिप्पणियाँ भी देखें.
    किसी को ठहरी शांत झील पसन्द है तो किसी को बहती नदी की तेज़ धारा... कोई ऊँचे पर्वत से नीचे गिरते झरझर करते झरने का गान सुन कर आनन्द पाता है तो कोई सीमा में बँधे सागर की गहराई नापने की कोशिश करता है. सबकी भावनाओ का आदर करते हुए अपनी बात रखी जाए तो वह अपना असर ज़रूर छोड़ती है. मुझे विश्वास है आप मेरी बात को सहज रूप से लेंगे.

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  21. रचनाजी,स्मृतिजी व मीनाक्षी जी
    आपके निर्देशानुसार मैने पोस्ट को दुबारा पढ लिया है. इसके बाद कुछ स्पष्टीकरण देने की आवश्यकता लग रही है-
    १- सर्वप्रथम स्पष्ट करना चाहता हूं कि किसी को भी अपमानित करने का या किसी को तारगेट बनाने का मेरा आशय नहीं था, हां पोस्ट में 'मैंने शादी नहीं की की बात करके...... उस पर टिप्पणी करने को गलत नहीं माना जाना चाहिये. जब एक व्यक्ति या चन्द लोग सम्पूर्ण समाज को ही निशाना बना रहे हों, ऐसी स्थिति में वैयक्तिक टिप्पणी भी नहीं की जायेंगी मेरे विचार से यह विचार उचित नहीं लगता.
    २- हो सकता है कि मेरे या आपके समझने में भूल हुई हो किन्तु समाज एक व्यक्ति से बढकर है. "हाथी के पांव में सबका पांव" समाज की या राष्ट्र की सुरक्षा के लिये किसी व्यक्ति या समुदाय को कुछ त्याग करना पडता है तो, हिचकना नहीं चाहिये, जब राष्ट्रीय परंपराओं, संस्कृति व विरासत को ही चोट पहुंचाने के प्रयास हों, जाने में या अन्जाने में तो इस प्रकार की टिप्पणी मजबूरी में करनी पडतीं हैं. राष्ट्र का आशय केवल चन्द नर या नारियों से नहीं लिया जा सकता. राष्ट्र का बहुसंख्यक समुदाय नर और नारी शादी, परिवार व समाज की व्यवस्थाओं पर विश्वास रखते हैं.
    ३- कमरे की बात करके मैंने केवल इतना स्पष्ट करने का प्रयास किया था कि नर-नारी में प्रत्येक बात पर भेद-भाव करना उचित नहीं, व्यवस्थायें केवल नारी को ही नहीं नर को भी प्रभावित करती हैं, मुख्य बात यह है कि समाज के मानकों से अलग हट कर हमने समाज को ही ठोकर मारी है, ऐसी स्थिति में समाज को कमेण्ट करने से नहीं रोका जा सकता.
    ४- रही बात खुशियों की, जब तक हम समुदाय या समाज से जुडकर नहीं चलेंगे हमें दीर्घकालीन खुशियां नहीं मिल सकती, वह भले ही आप हों या मैं? सभी को खुशियां देकर ही हम खुश रह सकते हैं, वैयक्तिक खुशी अल्पकालिक होती है और सभी महिलायें मायावती नहीं बन सकतीं, अपवाद नियम नहीं बन सकते. वही व्यवस्था ठीक कहनी चाहिये जो बहुसंख्यकों को खुशियां दे सके.मैं अपने आप से व अपने काम से सन्टुष्ट हूं और दुखी होने के लिये मेरे पास समय नहीं है.
    ५- रही मेरी शादी की बात, केवल मेरी शादी ही नहीं उसके साथ दूसरी का भी नाम जुडा है. अत: मैं सार्वजनिक रूप से चर्चा नहीं कर सकता. मैं स्वयं सब कुछ झेल सकता हूं किन्तु पत्नी के स्वाभिमान की रक्षा करना भी मेरा कर्तव्य है. हां इतना अवश्य बता सकता हूं कि शादी के समय अशिक्षित थी, आज आठ वर्ष बाद वह स्नातक अन्तिम वर्ष की नियमित छात्रा के रूप में अध्ययन कर रही है और इस उद्देश्य से हम में विचारात्मक मतभेद भी है, वह सामान्यत: मौज-मस्ती में रहना चाहती है और मेरा उद्देश्य ही समाज व जन-सामान्य के हित को ध्यान में रखकर निरंतर कर्मरत रहना है. अतः हो सकता है कि हम कभी साथ न भी रह पायें उसके बाबजूद एक-दूसरे के दुश्मन कभी नहीं बनेंगे. मैने शादी पारंपरिक रूप से नहीं की, किन्तु लव मैरिज भी नहीं की. मेरा विचार आपके लिये इतना काफ़ी होगा और अधिक जानने की इच्छा हो तो ९४६०२७४१७३ पर बात कर सकतीं हैं.
    मेरे कमेण्ट से किसी को भी भावनात्मक चोट पहुंची हो तो क्षमा चाहता हूं किन्तु मैनें सही लिखा था केवल सन्दर्भ के कारण अर्थ समझने में भूल हो सकती है. जहां विवाद की बात हो वहां-
    त्यजेद एकं कुलस्यार्थे, ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेद
    ग्रामं जनपदस्यार्थे, आत्मार्थे पृथ्वी त्यजेद..

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  22. 1. 'मैंने शादी नहीं की की बात करके...... उस पर टिप्पणी करने को गलत नहीं माना जाना चाहिये.

    Jab aap ise galat nahi manenge to aapke bare mein kuch bhi likha jaye to aapko bhi galat nahi manna chahiye...right? Aur han kuch bhi means kuch bhi....Aur yaad rakhiye kuch bhi ka koi limitation nahi hota hai!


    2.जब राष्ट्रीय परंपराओं, संस्कृति व विरासत को ही चोट पहुंचाने के प्रयास हों, जाने में या अन्जाने में तो इस प्रकार की टिप्पणी मजबूरी में करनी पडतीं हैं.

    Aap kis parampra ki baat kar rahe hein? Jahan vidhwa vivah uchit nahi mana jata hai, jahan betiyon ko janm lete mara jata hai, jahan dahej ke karan bahuon ko jalaya jata hai, jahan ghar mein bibi ko pita jata hai ya aap use parampara ki baat kar rahe hein jisme log astin ke saanp(snake) bane baithe hein? Sanskriti...kis sanskriti ki baat kar rahe hein....jahan lakhon logon ki mout ek bomb visphot se ho jata hai, jahan bachche sadak per bhukhe bachche mar rahe hein, kahan gaya aapka sanskritik virasat? Jahan bachche ko tan dhakne ke liye kapde aur bhukh mitake ke liye do tuk roti bhi nahi milti hai. Haan ab ise kismat ka khel mat kahiyega, aur haan ye bhi mat kahiyega ki mazboori ka naam mahtma gandhi...ok!


    4.रही बात खुशियों की, जब तक हम समुदाय या समाज से जुडकर नहीं चलेंगे हमें दीर्घकालीन खुशियां नहीं मिल सकती, वह भले ही आप हों या मैं?

    Nahi, jabtak hamsabme samjhadari nahi aayegi ham khush nahi rah sakte...isliye smajhdar banne ki jarrurat hai, tabhi hi dirghkalin khushi milegi.


    5.- रही मेरी शादी की बात, केवल मेरी शादी ही नहीं उसके साथ दूसरी का भी नाम जुडा है. अत: मैं सार्वजनिक रूप से चर्चा नहीं कर सकता.मैं स्वयं सब कुछ झेल सकता हूं किन्तु पत्नी के स्वाभिमान की रक्षा करना भी मेरा कर्तव्य है.

    Ok; aap shadi shuda ho to aapke sath dusri yani aapki patni ka name juda hai aur jo shadi suda nahi hai uske sath koi nahi hai kya? unka name kisi se juda hua nahi hota hai kya? Maa - papa ka name bhi bachchon se juda hota hai? Parents ka swabhiman nahi hota hai kya? Ya parents ka swabhiman beech bazar mein bechne ke liye hote hein? Agar nahi to fir aap kaise kisi ke personal life ko sarvjanik bana diye? Ye haq aapko kisne diya? Ye samaz ne ya yeh blogworld ne?


    इस उद्देश्य से हम में विचारात्मक मतभेद भी है, वह सामान्यत: मौज-मस्ती में रहना चाहती है और मेरा उद्देश्य ही समाज व जन-सामान्य के हित को ध्यान में रखकर निरंतर कर्मरत रहना है. अतः हो सकता है कि हम कभी साथ न भी रह पायें उसके बाबजूद एक-दूसरे के दुश्मन कभी नहीं बनेंगे.

    Ab dekhiye aap dono ke vichar mein hi matbhed hai, aur apaki patni ko aapka way pasnd nahi hai jaisa apane apne cmnt mein kaha hai...lekin aap ye mat sochiye ki aap jo kah rahe hein wahi sahi hai....kabhi-2 dusron ki suna kijiye tab hi sachcha rashtrapremi sabit honge, aur esh ke liye anvarat sahaz roop se kaam karenge.

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  23. And worst thing is You have not understood the post so can't help out at all.

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  24. राष्ट्र प्रेमी जी
    ये पोस्ट विवाह ना करने या करने पर नहीं हैं . ये प्सोत केवल इस बात को लेकर हैं की क्या अविवाहित स्त्री खुश नहीं रह सकती और क्या समाज मे विवाह से ही सम्मान पाया जा सकता हैं . जो प्रश्न हैं वोह भी बहुत आसान हैं और सीधा हैं की जिस आयु मे आपने विवाह किया था उस समय आप ने क्यों किया था .
    आप बिल्कुल मुद्दे से हट कर कमेन्ट कर रहे हैं अगर किसी पोस्ट मे लिंक्स दिये हैं तो कमेन्ट करनी से पहले उन लिंक्स को भी देखना चाहेये ताकि किस बात पर वो पोस्ट आधारित हैं ये साफ़ हो जाए .
    meenu and smrit thanks for your clarifications but it seems he is not understanding the actual post points or may be our thoughts are being reflected in his wifes thoughts as well so he is not too happy with out thoughts because according to him all this will make the society un fit for ceratin people

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  25. वैसे तो आप ने अपनी हम उम्र नारियों से पूछा है कि उन्होंने शादी क्युं की लेकिन हमें बीच में बोलने की आदत है तो कैसे चुप रहें जी। हम भी बतायेगें कि आज से 30 साल पहले हमने शादी की थी सिर्फ़ इस लिए कि मैं और मेरे भावी पति इतने अच्छे दोस्त थे कि एक मिनिट भी एक दूसरे से दूर नहीं रहना चाह्ते थे। हमें एक दूसरे के साथ में सकून मिलता था और हम ये सकून जिन्दगी भर के लिए अपने पास रखना चाहते थे एक दूसरे के साथ रह कर। बिन शादी किये भी साथ रह सकते थे लेकिन हम दोनों शादी के प्रथा में विश्वास रखते थे और आज भी रखते हैं।

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  26. Jab aap ise galat nahi manenge to aapke bare mein kuch bhi likha jaye to aapko bhi galat nahi manna chahiye...right? Aur han kuch bhi means kuch bhi....Aur yaad rakhiye kuch bhi ka koi limitation nahi hota hai!
    निःसन्देह जिस विषय को में ब्लोग पर ले जाता हूं, उस पर आपको टिप्पणी करने का पूर्ण अधिकार है.



    Aap kis parampra ki baat kar rahe hein? Jahan vidhwa vivah uchit nahi mana jata hai, jahan betiyon ko janm lete mara jata hai, jahan dahej ke karan bahuon ko jalaya jata hai, jahan ghar mein bibi ko pita jata hai ya aap use parampara ki baat kar rahe hein jisme log astin ke saanp(snake) bane baithe hein? Sanskriti...kis sanskriti ki baat kar rahe hein....jahan lakhon logon ki mout ek bomb visphot se ho jata hai, jahan bachche sadak per bhukhe bachche mar rahe hein, kahan gaya aapka sanskritik virasat? Jahan bachche ko tan dhakne ke liye kapde aur bhukh mitake ke liye do tuk roti bhi nahi milti hai. Haan ab ise kismat ka khel mat kahiyega, aur haan ye bhi mat kahiyega ki mazboori ka naam mahtma gandhi...ok!

    आप जो भी स्पष्ट कर रहीं हैं, ये सब भारतीय संस्कृति का अंग नहीं है, ये तो कुप्रथायें इन्हें मिटाने के लिये सबको मिलकर काम करना होगा. मैने विधवा विवाह ही नहीं किया वरन अन्तर्जातीय विवाह भी था किन्तु प्रेम विवाह नहीं था. मेरे घर पर बहिन के जन्म पर उत्सव मनाया गया था, गांव को दावत दी गई थी, हम जो चाहते हैं वह ब्लोगिंग से नहीं आचरण में लाने से ही प्राप्त हो सकेगा, कुप्रथाओं को मिटाया जा सकेगा.

    Nahi, jabtak hamsabme samjhadari nahi aayegi ham khush nahi rah sakte...isliye smajhdar banne ki jarrurat hai, tabhi hi dirghkalin khushi milegi.
    आप की बात एकदम सही है हमें समझदारी के साथ दूसरों के विचारों को सम्मान देते हुए प्रसन्न रहना होगा. खुशी तो मानसिक स्थिति है जो हमारे ऊपर ही निर्भर है.


    Ok; aap shadi shuda ho to aapke sath dusri yani aapki patni ka name juda hai aur jo shadi suda nahi hai uske sath koi nahi hai kya? unka name kisi se juda hua nahi hota hai kya? Maa - papa ka name bhi bachchon se juda hota hai? Parents ka swabhiman nahi hota hai kya? Ya parents ka swabhiman beech bazar mein bechne ke liye hote hein? Agar nahi to fir aap kaise kisi ke personal life ko sarvjanik bana diye? Ye haq aapko kisne diya? Ye samaz ne ya yeh blogworld ne?
    किसी का भी स्वाभिमान बीचबाजार में बेचने के लिये नहीं होता पर्सनल लाइफ़ को ब्लोग पर लाना ही नहीं चाहिये.


    Ab dekhiye aap dono ke vichar mein hi matbhed hai, aur apaki patni ko aapka way pasnd nahi hai jaisa apane apne cmnt mein kaha hai...lekin aap ye mat sochiye ki aap jo kah rahe hein wahi sahi hai....kabhi-2 dusron ki suna kijiye tab hi sachcha rashtrapremi sabit honge, aur esh ke liye anvarat sahaz roop se kaam karenge.

    आप सच कहती हैं दूसरों के दृष्टिकोण को समझना निश्चित ही आवश्यक है किन्तु मेरी पत्नी से मेरा केवल इस बात पर मतभेद है कि उसका मानना है कि उसे पढने की आवश्यकता नहीं है, नर-नारी समान नहीं हैं, वह आभूषणों के मोह व करवाचोथ के व्रत को नहीं छोड पा रही और शिक्षा को केवल आजीविका का साधन मानती है.मुझे ये उचित नहीं लगता और आपके सुझाव का सम्मान करते हुए उसकी बात पर पुनः विचार करूंगा. रचनाजी ने भी अपने विचारों को उसके समान या उसके विचारों को अपने साथ सोचा है.
    इसी के साथ मैं आप लोगों से माफ़ी चाहता हूं किन्तु मुझे इस बात का अफ़सोस भी है कि यदि मैंने कुछ गलत लिखा था तो पुरुष मित्रों के द्वारा भी मेरे विचारों पर विरोध जताया जाना चाहिये था यह हमारा भी दायित्व है कि नारी स्वाभिमान को कोई चोट पहुंचाता है तो उसका विरोध करें तभी नर-नारी समंबंध मधुर रह सकेंगे. यदि आप लोग अनुमति दे और सहमत हों तो इस विषय को यहीं बन्द किया जाय.

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  27. मैने विधवा विवाह ही नहीं किया वरन अन्तर्जातीय विवाह भी था किन्तु प्रेम विवाह नहीं था.

    @राष्ट्रप्रेमी जी,

    Hats of to you!!! Aapne jo kiya hai wo bahut-bahut hi kam log karte hein. Aapka sukarm aapko bahut aage le jayega...aur logon ko aapse sikh milegi. Bharat varsh ko aaj aap jaise karmath logon ki hi jarrurat hai! Main sach mein bahut khush hui.


    उसका मानना है कि उसे पढने की आवश्यकता नहीं है, नर-नारी समान नहीं हैं, वह आभूषणों के मोह व करवाचोथ के व्रत को नहीं छोड पा रही और शिक्षा को केवल आजीविका का साधन मानती है.मुझे ये उचित नहीं लगता.


    Aap bilkul sahi hein, actually ye sab manyatayen hi aaj aurat ko bahut peeche kar diya hai. Aabhushano ke moh ke karan hi dahej roopi danav abtak muh failaye baitha hua hai. Shiksha sirf aajivika ka sadhan nahi hai aur ye ham sabko samjhna hoga. We need to understand the value of education. Have you heard about Jeevan Vidya? JV value of education per researc bhi kar rahe hein aur isper kaam bhi kar rahe hein. Aapko kabhi mouka mile to iska ek shivir aap jarrur attend kijiye. Aur iske bare mein kuch janna chahen to aapko main ek contact number dungi.


    Mafi mangne ki jarrurat nahi hai, kyunki hamsab abhi ek dusre se sikh rahe hein. Aur sikhne ke karam mein abhi bahut sari galtiyan hoti raheggi hamsabse. Lekin hame sabke post aur bhav ka respect dena chahiye.


    rgds.

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  28. me ek unmarried woman par research kar rahi hu . mera topic hai avivahit mahilao ki manosamajik sthiti ka adhayan agar aapke pas koi matter ho to plz dijiye .

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  29. my e mail i.d deepikatomar88@gmail.com

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  30. में आपकी भावना का सम्मान करता हूँ बहन
    लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा की में विधवा से विवाह करना चाहता हूँ
    यदि उस विधवा के केतनी भी बेटी बेटा है में स्वीकार करूँगा में उसका आधार बनूंगा
    में अविवाहित हूँ ग्रेजुएट हूँ कर्मकांड करता हूँ ब्राह्मण समाज से हूँ
    आयु ३३ वर्ष
    कों. ९६३०४५३८४८

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