चन्द्र कांता जी से मेरा मिलना मेरी माँ की वजह से हुआ हैं । चन्द्र कांता जी ६० वर्ष की हैं । पति की मृत्यु दो वर्ष पहले हुई हैं । ३ बेटे , ३ बहू , १ बेटी के साथ रहती हैं । शिक्षा केवल दसवी कक्षा तक हैं , इंग्लिश का ज्ञान , ना के बराबर ही हैं । अब इस मे ख़ास क्या हैं ? एक आम भारतीये , मिडल क्लास की महिला ........
नहीं खास हैं चन्द्र कांता जी क्युकी इनके ससुर की प्रेशर कुकर की फैक्ट्री हैं । इनके पति के रहते हुए भी इनके ससुर ने इनकी घर चलाने की कार्य कुशलता को देखते हुए वो फैक्ट्री अपने बाद इनके नाम कर दी और कहा की उनको विश्वास हैं की बुरे वक्त मे वो ये फैक्ट्री उनके बेटे से ज्यादा बेहतर चला सकती हैं । उस दिन से चन्द्र कांता जी ये फैक्ट्री चला रही हैं । जब भी कभी घर मे बटवारे की बात होती हैं वो साफ़ कह देती हैं फैक्ट्री उनकी हैं और अगर लड़के चाहे तो अपने लिये कही भी कोई काम कर सकते हैं । उस फैक्ट्री से वो लड़को को सलेरी देती हैं ।
चन्द्र कांता जी की पुत्री का विवाह जब हुआ उस की उम्र उस समय केवल १९ वर्ष थी और शिक्षा केवल स्नातक थी । विवाह के एक वर्ष के अंदर बेटी , माँ बन गयी और ससुराल से घर भी आगई ।चन्द्र कांता जी जी के पति इस घटना से एक दम टूट गए और बीमार पड़ गए लेकिन चंद्र कांता जी ने हिम्मत नहीं हारी । उनकी बेटी ने जब ससुराल मे हो रहे दुर्व्यवहार के बारे मे उनसे बताया और कहा की वो दुबारा उस घर मे नहीं जाना चाहती हैं तो चन्द्र कांता जी ने अपनी बेटी का ही साथ दिया । पति और बेटो के विरोध के बाद भी उन्होने बेटी को ससुराल वापस नहीं भेजा । वो ख़ुद ट्रक ले कर गयी और जितना समान उन्होने दहेज़ मे दिया था सारा वापस लाई ।
इस के अलावा उन्होने कोर्ट से अपनी बेटी के डिवोर्स के लिये भी आवेदन करवाया और २० लाख रुपए अपनी बेटी की बेटी के लिये मेंटीनेंस का खर्चा अपने दामाद से मांगा । ये मुकदमा ५ साल चला , उस दौरान चन्द्र कांता जी ने अपनी बेटी की पढाई दुबारा शुरू करवाई और आज उनकी बेटी दिल्ली के एक ५ स्टार होटल मे काम करती हैं । डिवोर्स भी होगया हैं और कोर्ट ने बच्ची का संरक्षण भी माँ को ही दिया तथा २० लाख रुपए भी बच्ची की देख रेख के लिये उसके पिता से कोर्ट ने दिलवाए हैं ।
चन्द्र कांता जी का कहना हैं की जो दहेज़ दिया था उसको वापस लाना जरुरी हैं ताकि वर पक्ष समझ सके की दहेज़ बेटी को दिया जाता हैं , माँ पिता का आशीर्वाद होता हैं ताकि बेटी अपनी गृहस्थी सही से शुरू कर सके । उस पर केवल और केवल बेटी का ही अधिकार होता हैं । इस के अलावा चन्द्र कांता जी कहती हैं की अगर बेटी के साथ ससुराल मे दुर्व्यवहार हो तो उसको कभी ससुराल दुबारा नहीं भेजना चाहिये । मेंटीनेंस खर्चे के लिये चन्द्र कांता जी कहना हैं की हर पिता का अपने संतान के प्रति जो कर्तव्य हैं ये खर्चा उस कर्तव्य की पूर्ति हैं । उन्होने अपनी बेटी के लिये को खर्चा अपने दामाद से नहीं लिया हैं । अपनी प्रोपर्टी मे से भी उन्होने अपनी बेटी का हिस्सा अलग कर दिया हैं और फैक्ट्री मे से भी अब बेटी को भी तनखा मिलती हैं । वो अपनी बेटी की दूसरी शादी करने के पक्ष मे हैं और इसके लिये अपनी बेटी को मानसिक रूप से तैयार कर रही हैं ।
चंद्र कांता जी जैसी महिलाए ही समाज को बदल सकती हैं और नयी दिशा दे सकती हैं । उन्होने अपने लिये एक नया रास्ता चुन लिया हैं और चल रही हैं बिना ये सोचे लोग क्या कहेगे । जब तक हम चुनने के अधिकार का प्रयोग नहीं करेगे हम केवल और केवल दीन हीन शोषित ही रहेगे । संरक्षण जरुरी हैं पर इतना नहीं की हम गुलामी की आदत ही डाल ले ।
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
January 16, 2009
संरक्षण जरुरी हैं पर इतना नहीं की हम गुलामी की आदत ही डाल ले ।
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बहुत प्रेरक आदर्श प्रस्तुत किया है उन्होंने। बस एक कमी रह गई। अपनी बेटी को आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर बनाये बिना सिर्फ़ दहेज के बल पर उसका इतनी कम उम्र में विवाह कर दिया उन्होंने। पर हम सभी अपने अनुभवों से सीखते हैं। यह प्रसंग प्रकाशित करने के लिये आपका भी आभार।
ReplyDelete'दिल नाउमीद तो नहीं नाक़ाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम,मगर शाम ही तो है।'
बहुत ही प्रेरणादायक प्रसंग है ऐसे प्रसंग बाकी औरतौ के लिये दीप शलाखा है धन्यवाद्
ReplyDeleteचन्द्र्कांता जी को मेरा नमन !
ReplyDeleteसभी भारतीय नारियों को उनसे सीख लेनी चाहिए !
यह प्रकरण प्रकाश में लाने का धन्यवाद !
चंद्रकान्ता जी से अन्य लोग भी प्रेरणा लेंगे..
ReplyDeleteहालाँकि उनकी कुछ बाते मुझे अच्छी नही लगी.. जैसे डाइवोर्स के बाद उन्होने बेटी की पढ़ाई दोबारा शुरू करवाई.. इसका मतलब शादी से पहले बीच में ही पढ़ाई रोक दी गयी थी.. उन्हे बेटी को पढ़ा लिखा कर शादी करनी थी.. और दहेज के लिए सॉफ मना करना था.
बहुत ही प्रेरणादायक प्रसंग है
ReplyDeleteचंद्रकांता जी हर प्रकार से समर्थ थी , सो उन्होने पांच वर्षों तक हौसला रखा , अधिकांश मध्यम वर्गीय परिवार तो बेटी की शादी के बाद ही कर्ज से जूझने लगते हैं , इस कारण बेटी को संभालने का कोई रास्ता उनके पास नहीं होता और वे उसे उसकी हालत पर ही छोडने को बाध्य हो जाते हें।
ReplyDeleteअच्छी प्रेरक पोस्ट. चन्द्रकान्ता जी ने जो भी किया - सही या गलत - सब समय के सापेक्ष्य किया.
ReplyDeleteधन्यवाद.
रचना जी .रोचक प्रेरणा दायक प्रसंग बताने के लिए धन्यवाद ...ये उनलोगों के लिए बेहतर होगा जो अपनी बेटियों को जुल्म सहने जबरन सुसराल भेजने के पक्ष मैं रहतें हैं ..आमीन
ReplyDeleteचन्द्रकांता जी का उदाहरण सटीक है।
ReplyDeleteरचना जी...
ReplyDeleteअगर चंद्रकांता जी दिल्ली या एनसीआर में ही रहती हैं... और उन्हें कोई आपत्ति न हो तो क्या आप मुझे उनका कांटेक्ट नम्बर दे सकती हैं। मैं उनके संघर्ष पर स्टोरी करना चाहती हूं।
aisi naariya hi anya naariyo aur samaj ko disha de sakti hai ...
ReplyDeleteanukarNiya udaharaN hai....
jo log beti ko yah seekh de kar ki ab sasural hi tumhara ghar hai use shoshita bana dete hai..unhe isse seekh leni chahiye
@meenakshi
ReplyDeleteMae chandrakanta ji sae baat karkae aap ko suchit kartee hun
bahut hi accha.log kya kahenge ki beemari se pare chandrakanta ji ne jo kiya thik kiya.ek mahatvapoorna baat jo main sabhi kunwari betiyon ke mata pita se kehna chaahungi ki apni betiyon ko pehle aatmanibhar banaayen tabhi vivah karen.unhen keval aarthik roop se atmanirbhar bana dena hi kafi nahin hai.sabhi tarah se atmanirbhar banayen taaki vo apne chote chote baaharee kaamo ke liye bhi kisi par nirbhar na rahen.unhen kuch had tak bhaavnaatmak roop se atmanirbhar banana bhi zaroori hai.
ReplyDelete@ चन्द्रकान्ता जी जैसी स्त्रियाँ यदि हों तो समाज में ग़लत इरादे रखने वालों का प्रतिशत शून्य के पास आ जाये.... फिर भी यह कथा एक अन्य कोण से देखने पर एक पक्षीय दिखती है.
ReplyDeleteकांता यदि कांतासम्मित आचरण न करे ... तो पुरुष आक्रान्त हो ही जाता है...
इस कारण ...
मैं एक दूसरे पक्ष से कल्पना करने को बाध्य हो रहा हूँ....
यदि समाज में यह रीति होती कि लड़का विवाह करके दहेज़ समेत लड़की के यहाँ रहने जाता .. इस बीच उन्हें एक संतान भी हो जाती.... अचानक फिर कुछ खटपट होती ... लड़के के साथ कन्या-पक्ष के लोग दुर्व्यवहार भी करते ... फिर तलाक तक की नौबत आती...
लड़के की स्वाभिमानी माँ 'सूर्यकांता' ..... लड़के को मयदहेज़ वापस अपने घर लेकर आ जाती.... कोर्ट न उसे संतान सौंपता न ही पत्नी पर कोई हर्जाना लगाता.... साथ ही लड़के से ये कहता कि तुम्हें पत्नी और बच्चे की परवरिश के लिये मासिक धन भी देना होगा... तब तो लड़के के लिये बड़ी मुसीबत होती...
दूसरी बात यथार्थ के धरातल पर सोच रहा हूँ.....
— क्योंकर चन्द्रकान्ता जैसी स्त्रियों की अपने ही परिवार की स्त्रियों से नहीं बनती?
— असहाय असहाय संबंधी हो जाते हैं.... क्या इसी रीति से माँ-बेटी में प्रेम है?... बेटी का दूसरा विवाह हो जाने पर यह प्रेम शायद वैसा ही प्रेम हो जाये जैसा कि बेटे और बहुओं के प्रति है.
मेरा मानना है कि .....यदि परिवार की सभी स्त्रियों में परस्पर सौहार्द हो तो कोई समस्या पैदा ही न हो.
यदि दूसरी पोस्ट न पढी होती तो यही कहता कि हैट्स ऑफ़ और सैल्यूट चंद्रकांता जी के लिए
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