राखी सावंत मीडिया पर चिल्ला चिल्ला कर राम को खोज रही हैं । राखी से सीता बनने के सफर पर चल रही हैं !!! लेकिन क्या राखी सीता बन कर राम को पाकर वनवास के लिये भी तैयार हैं ?
बहुत से ब्लॉग पर राखी के अबला , बला और ना जाने किन किन शब्दों का प्रयोग हो रहा हैं जो ये शत प्रतिशत सिद्ध करता हैं की लोग "राखी का स्वयम्बर" नामक धारावाहिक को देख जरुर रहे हैं ।
वास्तव मे राखी का सफर एक लोअर मिडिल क्लास लड़की की अम्बिशन का सफर हैं जो बार बार ये दिखाती हैं की वो अपने परिवार के लिये कितना कुछ सक्रिफ्हैस करके मिडिल क्लास तक पहुच गयी हैं और अब हर मिडिल क्लास लड़की की तरह अपने लिये एक राम खोज कर घर बसा कर एक सीता की तरह जिन्दगी यापन करना चाहती हैं ।
राखी अपनी अम्बिशन को पूरा करने की लिये अपनी निज की जिंदगी को जेड गुड्डी की तरह बेच रही हैं ताकि वो अपने लिये वो सब जुगाड़ कर सके जो उसको नहीं मिल सकता । राखी चाहती हैं लोग ऐश्वर्या राय कि तरह उसकी सुन्दरता को भी मानदंड माने । राखी ऐश्वर्या राय से इतनी प्रभावित हैं कि ऐश्वर्या राय के कपडे जिसने डिजाइन किया उसी डिजाइनर से राखी अपने कपडे अपनी शादी के लिये बनवा रही हैं । वही ज्वेलरी डिजाइनर जो ऐश्वर्या राय के लिये गहने बनाती हैं राखी के लिये भी बनायेगी ।
यानी शादी हो ना हो पर राखी ने इस धारावाहिक के माध्यम से इतना पैसा , गहने और कपडे जरुर जोड़ लेगी कि आगे आने वाली उसकी जिंदगी आसानी से बीतेगी ।
पता नहीं इस धारावाहिक मे कोई मानक थे या नहीं उनलोगों के लिये जो विवाह के लिये आये थे पर लगता तो नहीं हैं । कहीं कहीं ये जरुर लगता हैं कि बहुत कम लोग इस धारावाहिक का हिस्सा बनने के लिये आए होगे इसीलिये चॅनल और राखी के पास कोई रिजेक्ट और सेलेक्ट का आप्शन ही नहीं होगा ।
राखी आज घर घर मे जानी जा रही हैं और उसके बारे लोग बात कर रहे हैं ये उपलब्धि राखी के लिये बहुत बड़ी हैं पर पब्लिक मेमोरी बहुत शोर्ट होती हैं और इन gimmick से राखी को पैसा और जीवन यापन के बहुत से सामान तो जरुर मिल जायेगे पर क्या वो प्रसिद्दि मिलेगी जो किसी आर्टिस्ट या डांसर को मिलती हैं ।
जिंदगी अगर प्रसिद्दि से चलती तो शायद सारी दुनिया प्रसिद्ध लोगो से भरी होती हैं पर नहीं जिंदगी कि बेसिक ज़रूरत होती हैं घर चलने के लिये , आराम से रहने के लिये रुपए कि आवश्यकता होती हैं और आज रियल्टी शो के जरिये ये आर्टिस्ट अपने लिये उतना पैसा जमा कर रहे शायद तब के लिये जब पब्लिक मेमोरी से वो गयाब हो चुके हो । हमारे पुराने आर्टिस्ट नाम कमाने के बाद बहुत बार भुखमरी मे अपना बुढापा काट कर रहे हैं , इसलिये ये नयी पीढी अपने लिये धन इकठा कर रही हैं ।
फिर चाहे वो "राखी का स्वयम्बर " हो या "सच का सामना " या "मुझे इस जंगल से बचाओ " मकसद सिर्फ़ इतना हैं कि पैसा हो ताकि जिंदगी आसान हो
पर दर्शक क्यूँ ये सब देख रहे हैं क्युकी आज कल कोई मकसद नहीं हैं किसी की जिंदगी का , सब के लिये जिंदगी केवल और केवल हँसी मज़ाक हैं , हमारे पास कोई मुद्दा नहीं हैं जिसके प्रति हम अपना समय लगा सके सो टी वी
जरिया हैं दुनिया से जुडे रहने का शायद हां , शायद नहीं पता नहीं
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
July 22, 2009
फिर चाहे वो "राखी का स्वयम्बर " हो या "सच का सामना " या "मुझे इस जंगल से बचाओ " मकसद सिर्फ़ इतना हैं कि पैसा हो ताकि जिंदगी आसान हो ।
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पर दर्शक क्यूँ ये सब देख रहे हैं क्युकी आज कल कोई मकसद नहीं हैं किसी की जिंदगी का , सब के लिये जिंदगी केवल और केवल हँसी मज़ाक हैं , हमारे पास कोई मुद्दा नहीं हैं जिसके प्रति हम अपना समय लगा सके सो टी वी
ReplyDeleteजरिया हैं दुनिया से जुडे रहने का शायद हां , शायद नहीं पता नहीं
shaayad aap theek kah rahi hai. adhikaansh logon ki yahi sthiti hai
yah bat bhi sahi hai ki paisa ho to jindgi aasan hone ka matalab ki aapke pas dicision making ek aurat ko mil jayegi our jindgi aasan ho jaayegi par mujhe aisaa lagataa hai aaj bhi samaj ke maansikata ka badalana aawashyak hai kyoki samaj sirf paisa se nahi bana hai soch se bana hai isliye mujhe aisa lagata hai ki samaj ko aurat ke prati soch ko badalana hoga anyatha paisa sirf sahi maayane me sukha kaa karana nahi banega......ek aurat jitana pyaar our mamata dene ki kshamata rakhati uatani wah pyaar our wishwas aapano se pana chahati hai .........so samaj ke manasikata me pahala soch lana aawshyak hai .......jisake liye mai bhagawan se prathana karunga kee samaaj ki soch badale ......isake liye wyaktigat label se shuruaat hona chahiye so mai karata hu......apane taraf se
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट ने बहुत प्रभावित किया.....पूरी तरह सहमत हूँ आपकी बातों से.....
ReplyDeleteshi kha hai aapne .mai to khugi "rakhi ka svymvar bajarvad ki atiranjna"
ReplyDeleterhi dekhne ki bat to 9bje ka samy aisa hota hai jab privar sath hota hai aur t v ak aisa madhyam hai ya yu khiye ho gya hai.ki har koi rimot chlata hai rakhi dikh jati hai to thhrkar use dekhne lgte hai sab log .chhe surygrhan ke bare me kitni hi
achhi jankari kyo na ho?
आपने इस मुद्दे को उठाया बहुत अच्छा लगा। हमने भी पहले सोचा था कि आपको मेल करें कि इस विषय ‘‘राखी सावंत का स्वयंवर’’ पर जरूर लिखें पर लगा कि कहीं यहाँ भी नारी स्वतन्त्रता परपूरुष वर्ग का पहरा लगाने का आरोप न लग जाये।
ReplyDeleteचलिए ऐसा कुछ नहीं हुआ। आपकी पहल का स्वागत है। अब हम भी बेफिक्र होकर लिख सकते हैं।
आज वाकई इस तरफ सोचने की जरूरत है। क्या आज समाज में सिर्फ और सिर्फ पैसा ही महत्वपूर्ण है? राखी जैसी महिलायें क्या संदेश देना चाह रहीं हैं। ये सामाजिक परिवर्तन तो नहीं है।
आज भी पढ़े लिखे होने के बाद भी समाज में दहेज की जड़े, लड़के होने का दम्भ इतना गहरा है कि यह सब आसानी से हजम नहीं होता। यहाँ देखिये कैसे लड़के अपने लड़के वाले होने का एहसास भुला कर नाच भी रहे हैं, सवालों के जवाब भी दे रहे हैं।
इनमें से शादी (यदि होती है तो) किसी एक की होगी, शेष तो बापस ही जायेंगे। क्या बापस गये लड़के अब शादी के लिए अन्य सामान्य लड़की से भी इसी तरह का बर्ताव करेंगे?
शायद ही नारी को इतना सशक्त तरीके से कहीं और अभिव्यक्त किया गया हो जैसा की नारी के इस ब्लॉग पर मैंने पाया है.मेरे लाख साधुवाद भी आपके ब्लॉग की प्रशंसा में कम पड़ेंगे.पता नहीं क्यों हम पुरुष के दोहरे मानदंडो को सहजता से लेते है.पुरुष के कदम बहक जाए तो मर्दानगी या छोटी सी भूल समझा जाता है नारी के बहक जाएँ तो अक्षम्य कर्म?पुरुष पैसे के लिए कुछ करे तो पुरुषार्थ और नारी करे तो सबकी नजरों में ओछी हरकत मानी जाती है.फिर नारी की आजादी की बात करने वाले अपने घर की नारी की आजादी पर खानदान की दुहाई देने लगते है.मुझे आपका आलेख बहुत अच्छा लगा.और जिस प्रभावशीलता के साथ लिखा गया है वह तारीफ़ के काबिल है.
ReplyDeleteमेरी बधाई स्वीकार करें..!
प्रकाश पाखी
डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
ReplyDeleteचलिए ऐसा कुछ नहीं हुआ। आपकी पहल का स्वागत है। अब हम भी बेफिक्र होकर लिख सकते हैं।
अरे डॉ साहिब आप तो हमेशा से ही खुल कर
लिखते हैं बस कभी कभी आप भी नारी को मात्र
संतुष्टि का सामन समझ कर कुछ पोस्ट लिख देते
हैं तब बहुत कष्ट होता हैं
प्रकाश पाखी
ReplyDeleteआप ने ब्लॉग की प्रशंसा मे इतना कह दिया की
अब थैंक्स कह कर आप को पराया करने का मन
नहीं हैं
रंजना
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट ने बहुत प्रभावित किया.....पूरी तरह सहमत हूँ आपकी बातों से.....
आप को सवा साल हो गया ब्लॉग लिखते और
उतना ही समय होगया मुझे इंतज़ार करते
आप के इस कमेन्ट का , आती रहे . हमारा आप
का नजरिया फरक हो सकता हैं पर नारी होना
एक बोंड हैं जिसे आप और मे चाह कर भी नहीं
तोड़ सकते
thanks to other people who liked the post and who were benovelent enough to post a comment here
ReplyDeleteमहोदयाजी
ReplyDeleteआपने कहा लिखा पुर्णतय सत्य है। बहुत सटीक बाते लिखी जो अच्छी लगी।
इसी विषय पर आपको समय मिले तो मेरे विचार मुम्बई टाईगर पर प्रसारित हुआ है समीक्षा करे।
राखी का राम मन का मोहन स्वयवर से भागा: दुल्हे ने कहा ना बाबा ना
प्रस्तुतकर्ता MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगर
आभार/शुभकामानाऍ
मुम्बई टाईगर
एक नारी होकर दूसरी नारी के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहती ...मगर बहुत अजीब लगा ...जब राखी कहती है ...अपने संभावित दुल्हों के साथ डांस परफॉर्मेंस पर..की मैं देखना चाहती हूँ ...किसका स्पर्श मुझमे वो भाव जगाता है ....मगर फिर भी यही सच है...कार्यक्रम को नौटंकी बताते हुए भी हम लोग इसे देख रहे हैं ...क्यों ...पता नहीं ...??
ReplyDeleteमैं सीरियल नहीं देखती इसलिए राय देना कठिन है। फिर भी यदि देखने वाले देख रहे हैं और अपनी इच्छा से देख रहे हैं तो कहने को क्या रह जाता है? जिस चीज के लिए दर्शक या खरीददार मिलेंगे उसका उत्पादन तो होगा ही। अकारण तो हम जीते भी हैं तो बिन मुद्दों के टी वी देखने में क्या बुराई है? वैसे अकेले व वृद्ध लोगों के लिए सीरियल भी जीवन जीने क एक मकसद बन जाते हैं। यदि कोई कुछ पल के लिए vicariously ही जी लेता है तो बुराई क्या है? यदि लगे हाथ किसी व्यक्ति की कमाई भी हो जाए तो और भी अच्छा है।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
राखी किसी को अपना पति नहीं चुनेंगी! राखीअपनी अपनी निजी जिंदगी को बेच रही हैं ताकि वो अपने लिये वो पर्याप्त धन का जुगाड़ कर सके! राखी वह सब पाना चाहती है जो उसको नहीं मिल सकता है क्योंकि उनका चरित्र, आचार-विचार एवं व्यवहार के अतिरिक्त उनकी अभिनय क्षमता, खूबसूरती भी बहुत अच्छी नहीं है!
ReplyDeleteदेखना ना देखना अपनी अपनी पसंद है और वही चीजें ज्यादा देखी जाती है जिनका विरोध होता है या जिसमें कुछ गड़बड़ हो. बढ़िया चीजें देखने के उदाहरण कम है. मनोरंजन के नाम पर अब सब बिकता है. मनोरंजन अब कमाई का जरिया ही नहीं बड़ा व्यापर बन गया है...
ReplyDelete