आप मे से कितनी महिलाए ये जानती हैं की जो जेवर / कपडा आप को शादी के समय ससुराल से आता हैं उसके लिये आप के माता पिता पहले ही वर पक्ष को पैसा दे चुके होते हैं ।
यू पी मे ये रसम "तिलक " कहलाती हैं और यहाँ वर पक्ष को तय की हुई कैश राशि दी जाती हैं ताकि वो वधु के लिये तय किये हुए जेवर और कपड़े ला सके । बहुत जगह खुद कन्या पक्ष अपनी पसंद के जेवर और कपड़े दे देता हैं अलग से और वही वर पक्ष वाले शादी के समय लड़की के लिये लाते हैं ।
शायद यही कारण हैं की वधु के जेवर "स्त्री धन " कहलाते हैं और वो उसकी सम्पत्ति मानी जाती हैं क्युकी उसका पैसा उसके माता पिता ही देते हैं
क्या वधु पक्ष के लोगो का ये शोषण कभी ख़तम होगा ??
क्या आने वाली पीढ़ी की लडकियां कभी इसके खिलाफ आवाज उठायेगी ??
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
May 20, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
copyright
All post are covered under copy right law . Any one who wants to use the content has to take permission of the author before reproducing the post in full or part in blog medium or print medium .Indian Copyright Rules
Popular Posts
-
आज मैं आप सभी को जिस विषय में बताने जा रही हूँ उस विषय पर बात करना भारतीय परंपरा में कोई उचित नहीं समझता क्योंकि मनु के अनुसार कन्या एक बा...
-
नारी सशक्तिकरण का मतलब नारी को सशक्त करना नहीं हैं । नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट का मतलब फेमिनिस्म भी नहीं हैं । नारी सशक्तिकरण या ...
-
Women empowerment in India is a challenging task as we need to acknowledge the fact that gender based discrimination is a deep rooted s...
-
लीजिये आप कहेगे ये क्या बात हुई ??? बहू के क़ानूनी अधिकार तो ससुराल मे उसके पति के अधिकार के नीचे आ ही गए , यानी बेटे के क़ानूनी अधिकार हैं...
-
भारतीय समाज की सामाजिक व्यवस्था के अनुसार बेटी विदा होकर पति के घर ही जाती है. उसके माँ बाप उसके लालन प...
-
आईये आप को मिलवाए कुछ अविवाहित महिलाओ से जो तीस के ऊपर हैं { अब सुखी - दुखी , खुश , ना खुश की परिभाषा तो सब के लिये अलग अलग होती हैं } और अप...
-
Field Name Year (Muslim) Ruler of India Razia Sultana (1236-1240) Advocate Cornelia Sorabji (1894) Ambassador Vijayalakshmi Pa...
-
नारी ब्लॉग सक्रियता ५ अप्रैल २००८ - से अब तक पढ़ा गया १०७५६४ फोलोवर ४२५ सदस्य ६० ब्लॉग पढ़ रही थी एक ब्लॉग पर एक पोस्ट देखी ज...
-
वैदिक काल से अब तक नारी की यात्रा .. जब कुछ समय पहले मैंने वेदों को पढ़ना शुरू किया तो ऋग्वेद में यह पढ़ा की वैदिक काल में नारियां बहुत विदु...
-
प्रश्न : -- नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट {woman empowerment } का क्या मतलब हैं ?? "नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट " ...
यही तो दुख है कि कोई इसके खिलाफ़ आवाज़ नही उठाता …………अभी दहेज पर एक आलेख लिख कर चुकी हूँ फ़ेसबुक पर्।
ReplyDeleteहाँ रचना यह तिलक ही कहलाता है और ये वर पक्ष वाले बड़ी धूम धाम से करते हैं ताकि लोग देख सकें कि कितना और क्या क्या आया है? इसका विरोध शुरू हो चुका है बशर्ते कि माता पिता अपनी इज्जत का ढकोसला न सामने रखें. लड़कियाँ जागरुक हैं और हो रही हैं. इसके लिए हमें जाति के बंधन से भी बाहर आना होगा तभी ये रस्में बन चुकी हैं जो बेड़ियाँ वो टूट सकें. अपनी सोच को लड़कियों के साथ माता पिता को भी बदलनी होगी. कर्ज देकर शादी करना और फिर उसको चुकाते हुए जीवन गुजारने से अच्छा है कि बड़ी हैसियत न देख कर लड़के की काबिलियत देख कर शादी करें. उसके पास गाड़ी बंगला न हो लेकिन इज्जत के साथ जीवन बिताने के लिएआय के साधन हों. उसके पिता बहुत बड़े अफसर न हों लेकिन अपने कर्म और साख से भले आदमी हों. आपकी बेटी को बहू के साथ बेटी का प्यार भी दें. पैसे के बल पर बेटी को बहू बनाने वाले प्यार नहीं देते बल्कि और पैसे लाने वाली मशीन समझ लेते हैं.
ReplyDelete--
आधुनिक युग में यह असंभव सा दीखता है !
ReplyDeleteरचना जी ,
ReplyDeleteमेरी जानकारी अलग है -अपनी पुत्रवधू के लिए लोग अपने सामाजिक स्टेटस के अनुरूप आभूषण लाते हैं -इसका तिलक से कोई सम्बन्ध नहीं होता -तिलक तो वर का चयन है और उसे उपहार का मौका -
हाँ लोगों ने इसमें तरह तरह की विकृतियाँ जरुर ला दी हैं !
पांच गहना तो हम ले गए थे। आज भी “उनके” पास वही पांच हैं। अधिक की ज़रूरत शायद उनको न हो .. या हमारी हैसियत।
ReplyDelete*** वैसे आपकी बात में दम है। हमारे इधर इसको ‘घोघट’ - ‘साकर’ के नाम पर ले लेते हैं -- वर पक्ष वाले। बोलेंगे हमने कुछ नहीं लिया बस ‘घोघट’ - ‘साकर’ और बारात आने-जाने का खर्चा।
आपकी इस बात से भी सहमत हूं कि लड़्कियों को आगे आना ही चाहिए।
अभी कुछ दिन पहले की एक शादी के हुए अनुभव बताता हूं। लड़का-लड़की दोनों कमाते हैं, प्रेम विवाह टाइप का ही था, मतलब दोनों एक दूसरे से मिले और शादी की बात तय कर ली।
बाद में इसे जब अरेंज मैरेज का रूप दिया गया तो लड़के बाप ने ‘घोघट’ - ‘साकर’ और बारात आने-जाने का खर्चा ले ही लिया। क्यों नहीं प्रातिकार की लड़की? यह प्रश्न मुझे बहुत सालता रहा।
तिलक में वही रकम दी जाती है जो दहेज़ में तय की गई होती है और फल फुल मेवे साडी और कपडे वर पक्ष वालो के लिए होते है | हा जो रकम मिलती है उसी से दुलहन के गहने कपडे आदि ख़रीदे जाते है ये दहेज़ ही है उसके आलावा कोई अन्य चीज नहीं है | वैसे आज के समय में ये परम्परा अब लगभग बंद हो गई है इसकी जगह लडके वाले अब विवाह के बाद अपने यहाँ रिसेप्शन पार्टी देते है किन्तु दहेज़ के लिए तय रकम तो वो ले ही लेते है | जितना लड़की के ऊपर और विवाह में खर्च हुआ ठीक बाकि रकम लड़की के ससुराल वाले खुद ही रख लेते है वो लड़की को कभी नहीं मिलता है | ये सारी रस्मे दहेज़ का ही एक रूप है और इसको रोकने के लिए युवा पीढ़ी को ही आगे आना होगा |
ReplyDelete@Manoj Kumar,
ReplyDelete...बाद में इसे जब अरेंज मैरेज का रूप दिया गया तो लड़के बाप ने ‘घोघट’ - ‘साकर’ और बारात आने-जाने का खर्चा ले ही लिया। क्यों नहीं प्रातिकार की लड़की? यह प्रश्न मुझे बहुत सालता रहा।
She would have definitely resisted this but the groom would have reasoned "I chose the bride and deprived my parents of their right to bring in their own DIL so shouldn't they be able to fulfill at least their cultural/traditional desire." And at other times couple's are sexually involved and women find it difficult to walk out of relationship even when they see such nonsense being demanded of them.
http://girlsguidetosurvival.wordpress.com/2011/04/08/desi-sex-ratio-and-marriage-nirmala-1925-to-2011/
Peace,
Desi Girl