रानी थी सो गोली हुई
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मैने पिछली पोस्ट पर कुछ सवाल उठाये थे पति पत्नी के संबधों को ले कर, उसी कड़ी में कुछ और बातें, आज सवाल नहीं कर रही, कुछ अपने आस पास देखी सुनी बातें आप से बांट रही हूँ।
एक बात जो मैने अक्सर नोट की है वो ये कि मीडिया नारी उत्पीड़ीन की जब भी बात करता है तो 99% बहू पर हुए अत्याचार की बात करता है, शायद इस लिए कि ये स्टोरी बिकती है, ज्यादा सहानुभूति बटौरती है। कभी किसी मीडिया में ये नही कहा जाता कि सास को बहू के हाथों क्या क्या यातनाएं सहनी पड़ती हैं , शायद आप में से भी कई लोगों को मेरा इस दूसरी नारी की व्यथा की ओर ध्यानाकर्षण करना पसंद न आये पर मेरे परिवेश के जो अनुभव हैं वो भी उतने ही सच है जितने मीटिया में रिपोर्ट किए हुए बहू या पत्नी के साथ हुए अत्याचार। मेरा परिवेश शायद पूरे भारत का प्रतिनिधत्व नही करता लेकिन फ़िर भी भारत के एक बड़े हिस्से का प्रतिनिधतव तो करता ही है। मैने देखा है कि आज कल की सासें अपनी बहुओं से डरती हैं। मेरे ही कॉलेज में एक समय में दो टीचरों के बच्चों की शादियां हो रही थीं( एक दूसरे के साथ नहीं) एक के लड़के की शादी थी और दूसरे की लड़की की। हमने नोट किया कि शादी तय होते ही लड़के की मां के चेहरे पर तो हवाइयां उड़ी हुई थी और लड़की की मां ठ्सके से इधर उधर उड़ रही थी। और ये हाल उनका मैने शादी के हॉल में भी देखा।
ये तो थी बम्बई की बात , अभी हाल ही में मेरी एक अंतरंग सहेली अपने एक नजदीकी रिश्तेदार की शादी में देहली गयी थी, लौट कर बता रही थी कि पूरी शादी में लड़की वालों ने एक रुपया भी नही खर्चा और ऐसे घूमते रहे जैसे वो मेहमान हों और लड़के की मां ने अपनी ईज्जत के अनुसार सारा इंतजाम किया। लड़के की मां के माथे पर फ़िर भी शिकन तक न थी वो यही कहती रही कि चलो इतनी तो गनीमत है कि लड़की के घरवाले आ तो गये, ईज्जत बच गयी, नहीं तो लोग क्या कहते कहीं भगा के तो नहीं लाया ल्ड़की को या अनाथ तो नहीं। वैसे अगर ऐसा होता भी तो क्या फ़र्क पड़ जाना था। उनकी बातें सुन कर मेरी आखों के सामने पिक्चरों में देखे वो सारे सीन घूम रहे थे जिसमें लड़की का बाप दहेज के रुपये जमाने के चक्कर में अपना सत्यानाश कर लेता है।क्या वो पुरानी बातें नहीं हो गयीं। शायद नहीं, मुझे लगता है कि कुछ प्रातों में अभी भी दहेज की प्रथा है। बम्बई में तो दहेज की बात करने का मतलब है खुद को जलील करना।
एक और किस्सा सुनिए। हमारी एक मित्र कई दिनों बाद मिली, उसके इकलौते लड़के की शादी के बाद उसने बड़े चाव से अपनी बहू से हमें मिलवाया था। बहू बेहद सुंदर और बातचीत करने में शालीन। हमने उसे बधाई दी थी। अब एक साल बाद मिली तो हमने पूछा भई क्या हाल, तुम तो मजे मना रही होगी। उसने लंबी सांस भरी और चुप हो ली। बहुत कुरेदने पर बताया कि उसका बेटा मिलिट्री में होने के कारण साल में एक हफ़ते के लिए ही घर आ पाता है। बहू बेटे के साथ ही उस एक हफ़्ते के लिए आती है और वही एक हफ़्ता ऐसा होता है जब मेरी सहेली सोचती है कि मैं कहां चली जाऊँ घर छोड़ के। उसे समझ नहीं आ रहा कि अपनी इक्लौती बहू को कैसे खुश रक्खे। एक बार की बात बताते हुए बोली कि उस एक हफ़्ते में वो अपने लड़के पर पूरा लाड़/ममतत्व उडेल देना चाह्ती है पर उसकी बहू को ये बिल्कुल पसंद नहीं इस लिए वो मन मसौस कर रह जाती है , बेटे से प्यार के दो शब्द भी नहीं बोलती। उसी एक हफ़्ते में एक दिन सुबह का वक्त था, नाशते का वक्त हो चुका था, मां ने बेटे से पूछा क्या नाश्ता खाना पसंद करोगे और उसने कहा ऑमलेट टोस्ट, मां ने बड़े प्यार से ऑमलेट बनाया, और परोसा, इतने में बहू भी उनींदी आखों को मलती आ गयी। सास ने कहा कि तुम भी साथ में नाश्ता कर लो। वो खुशी खुशी नाशता कर गयी। दूसरे दिन सुबह लड़का बड़ा चिंतित सा आता दिखाई पड़ा , मां ने पूछा क्या हुआ तो लगभग मां पर इलजाम लगाते हुए उसने कहा कि मां बेकार में घर की शांती भंग करती रहती हैं। वो हैरान कि मैने क्या किया या क्या कहा। वो बोला कि मेरी पत्नी नाराज हो कर कोप भवन में बैठी है। बहुत पूचाने पर बोली कि सास बेटे और बहू में फ़र्क करती है, सास ने कहा ऐसा मैने क्या कर दिया, बहू बोली, कल नाशते में आप जानबूझ कर मुझे जले हुए टोस्ट दे रहे थे और अच्छे से सिके टोस्ट अपने बेटे को। सास तो मानों आसमान से गिर पड़ी। सफ़ाई देते हुए कहा कि ऐसा तो मैने कुछ नही किया फ़िर भी अगर तुम्हे ऐसा लग रहा था तो पति की प्लैट से टोस्ट बदल लेतीं।अब वो मेरी सहेली उन लोगों के आने का नाम सुन ही डर जाती है। शादी में इकलौता बेटा दान में दे आई जैसे, कन्यादान लिया नहीं, पुत्र दान दिया।
ये सुनते ही हमारे मन में कर्वाचौथ की कथा गूंज गयी और मन कह उठा, रानी थी सो गोली हुई, गोली थी सो रानी हुई।
हमें तो आज कल की बड़ी बूढ़ी औरतों की तरफ़ ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है, फ़िर वो चाहे मां हो या सास्। आज हर लड़की नौकरीपैशा है, ऐसे में सास को आराम देने का तो सवाल ही नहीं आता, नाती नाते, पोते पोती को पालने का जिम्मा भी हक्क से इन पर ढकेला जाता है, बिचारी माएं बेटियों के, बहुओं के घर भी संभालती हैं और बच्चे भी। पूरी जिन्दगी निकल जाती है बुढ़ापे को संवारने के यत्न में और सपने देखने में कि जब हम फ़्री होगें तो कहां कहां जाएगें। क्या वो फ़्री हो पाते हैं।
हमने अपनी पहली पोस्ट के एक कमैंट के जवाब में पूछा है कि ऐसा क्युं होता है कि अगर ननंद शादी के बाद किसी प्रकार की मुसीबत में पड़ जाए और मां बाप उसकी मदद करना चाहें तो सबसे पहला और सबसे तीव्र एतराज उसकी भाभी से आता है। भाभी खुद भी नारी है फ़िर भी। केस बताने की जरुरत नहीं, हमारा समाज ऐसी कई कहानियों से पटा पड़ा है।
एक बार फ़िर मुझे लगता है कि सारा खेल ताकत बटौरने, अपने अहं की तुष्टी करने का ही है।
बाकी बातें फ़िर कभी, अभी के लिए इतना ही…॥:)
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
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सही सवाल उठाया है, सास को हमेशा ललिता पवार की नजर से देखा गया है और यही पर समस्या शुरू होती है, बढउआ देने खातिर मीडिया तंत्र तो है ही।
ReplyDeleteइस लेख को पढ़ने के बाद केवल एक ही क्याल आया की लेखिका ने एक चश्मा पहन रखा हैं जो आज भी देखना चाहता हैं की लड़की के पिता की पगडी बेटे के माँ के पेरो मे हो . बहु को सास जब चाहे धका दे कर अलग कर सके . श्याद लेखिका को लगता हैं की आज कल की नारियां अपनी बच्चो को पालने मे समर्थ नहीं हैं लेखिका की विचार धारा का पता नहीं चल रहा क्योकि जहाँ वो एक तरफ वृद्ध लोगो के क्याल की बात करती हैं वही दूसरी तरफ नाती पोतो को पालने से भी आतंकित हैं . कहीं ऐसा भी लगता हैं की लेखिका को जैसे भविष्य अपना अंधकारमय लगता हैं अगर लेखिका पुत्रवती हैं क्योकि लेखिका के अनुसार पुत्र की माँ का भविष्य बहुत खराब हैं . इसके अलावा अपने इस आलेख से लेखिका ने बदले हुए वक्त को सही समेटा हैं वक्त बदल रहा हैं और बहुत तेजी से और लेखिका को इसकी आहट हैं और वह अपने को इसके लिये सक्षम नहीं पा रही हैं क्योकि उसको आदत हैं देखने की समाज को बंधे हुए नज़रिये से
ReplyDeletebilkul sahmat hu is post se...kahani ka ye dusra phalu bahut se logo ko aasani se nahi pach taa ..par such hai....utna hi jitna iska pahla pahlu jo har koi janta hai...
ReplyDeleteआप की पोस्ट से सहमत हूँ....आप ने एक एक शब्द सही लिखा है बिना किसी अतिशयोक्ति के....एक कड़वी सच्चाई जिसे शायद अभी समाज में व्यक्त नहीं किया गया.
ReplyDeleteनीरज
आप के लेख मे जो भी बात उठाई है। वो हर घर में देखी जा रही हैं। मेरी एक परिचित महिला की भी यही कहानी हैं। आज के लडकों को अपनी मां से ज्यादा अपनी बीबी प्यारी हैं। और बीबीया अपने पतियों को काबू मे रखना चाहती हैं।
ReplyDeleteअनीता जी,वेसे तो मे इस मुहल्ले मे आता नही,लेकिन आप का नाम ओर लेख का टाईटल देख कर आ गया, आप का लेख सच मे आंखे खोलने के काविल हे, ओर जिन पर बीतती हे उन का कया हाल होगा...लेकिन इन सब मे गलती किस की हे....कही ना कही मां बाप की ही गलती हे जो उन्हे बचपन से ही उलटी शिक्षा देते हे, ओर ऎसे घर ज्यादा दिन नही चलते,लेकिन अभी भी अच्छे शरीफ़ लोग मिलते हे,ओर संस्कारी लडकिया भी मिलती हे, मेरी भगवान से प्रार्थना हे दुशमन को भी ना दे ऎसे रिश्तेदार ओर ऎसी बंहुये.
ReplyDeleteइस सुन्दर ओर सच्चे लेख के लिये आप का धन्यवाद
अनीता जी बहुत हद तक सच्चाई है आपकी बातों आज भी समाज का रवैय्या नही बदला है, पर समय के साथ बदलाव सही दिशा में हो रहे हैं, ये ब्लॉग बहुत बढ़िया है, ये भी एक सार्थक प्रयास है .
ReplyDeleteसजीव सारथी aap ko blog saarthak prayaas lagaa iskae liyae thanks
ReplyDeleteइसमें दोष बहु का कम और बेटे का ज्यादा होता है. वैसे तो पति-बेटा होना बड़ी मुश्किल डगर है, पत्नि तो घर छोड़ आ जाती है, लेकिन पति-बेटे को तो अपने घर में मां-बीवी दोनों के बीच रहना, ऐसे कि वो दोनों खुश रहें
ReplyDeleteजो बेटा मां का ख्याल नहीं रख सकता, वो पति बीवी का भी नहीं रखेगा
सबसे पहली बात की बेटा अगर मां-बाप का ख्याल रखता दिखेगा, तो बीवी खुद सीखेगी, लेकिन वो पुत्र जो पीठ पीछे बीवी से अपने मां-बाप की बुराई करते है, या सुनते हैं, न वो मां के घर रह सकते हैं, और न मां उनके घर
सबसे पहले तो बेटों की ज़िम्मेदारी है मां की वैल्यू करना, बहु का नम्बर बाद में है
नि:संदेह मां-बाप के सम्मन की ज़िम्मेदारी बेटों की पहले है
समाज सबसे मिल कर बना है और सब यहाँ अपनी अहम् की संतुष्टि चाहते हैं ...किसी भी घर की बेटी दुखी हो कर वापस आए या तो कोई भी नही चाहता पर यदि दुर्भाग्य वश कोई ऐसी परिस्थति आ जाती है तो समस्या दोनों तरफ़ से उत्पन्न् हो जाती है बात तब भाभी ननद की नही अधिकार और फ़र्ज़ की हो जाती है .और फ़िर शायद जीत उसी की होती होती है जिसका सिक्का चल जाए .बहुत से मेरे आस पास ही ऐसे कई उदहारण हैं ....
ReplyDeleteअनिता दी, आपके इस लेख में एक ही पहलू पर चर्चा है जो किसी हद तक सच है लेकिन सिर्फ यही सच नहीं...समाज में सभी रिश्ते कहीं कमज़ोर है तो कही शक्तिशाली है...
ReplyDeleteकहीं सास-ससुर का शासन है तो कही बहू और दामाद अपना रौब दिखाते हैं.. कहीं पुत्र रिश्तों मे तालमेल नही बिठा पाता तो कहीं पुत्री को रिश्तो को निभाने की तालीम नहीं मिलती... जो भी होता है वह हमारे दिए हुए संस्कारों का ही दर्पण है.
Hamara desh vibhinnta mein ekta ka pratik hai. ham desh mein badlav lane ki baat karte hein aur samaj ki ek ikai parivaar mein hi ekta nahi dikh rahi hai wahan desh mein badlav lane ya ekta sthapit karne ki baat karne se aisa nahi lagta hai ki ham din mein chalte huye sapne dekhte hein like mungeri laal ke haseen sapne!
ReplyDeleteDusri baat, her ek bahu ko ye smajhna ati avshyak hai ki sas aur maa mein koi anter nahi hai, aur her sasu maa ko bhi yeh samajhna padega ki bahu, beta aur beti mein koi different nahi hai. In fact saas ko bete se jyada bahu ko pyar dena chahiye.
Tesri baat sabse badi kamjori, jo mujhe isme dikha wo ye ki ghar ki baaten ghar mein na suljhakar bahar walon ko batana...ye kaam agar saas/maa jaisi mahilayen karegi to wo apne bahu betiyon se kya ummeed kar sakti hein? Ise main sabse badi kamjori kahungi jo parivaar ko jodne ke bajay todta hai.
Chouthi, Where is dear dear mr. husband? Uska farz banta hai ki wo maa aur bahu aur nanad ko aapas mein baithakar ek dusre ka importance smajhaye, aur ye bhi ehsaas dilaye ki her riston ka apna mayna hai aur parivar mein her ek ka importance apni jagah hai.
Aur panchvi baat, bahu raniyon/betiyon mein yah sanskar dalna chahiye ki wo badon ke sath kaise vartaav kare aur use thoda sahansheel bhi banna sikhaye jiska abhav ajkal ke nariyon mein dekhne ko milta hai.
And last but not the least, dusron ko change karne se pahle khud ko analyse karna ati aavashyak hai. Her koi dusron ki khamiyan nikalte hein, agar khamiyon ko nazar andaaz kar uske gunon ko protsahan mile to shayad parivar atoot pyar ke bandhan mein bandhega. Bcos all fingers are not equal.
Ab mera question ye hai ki ye sari uljhane saas, bahu aur nanad ke beech mein hi kyun hota hai? Kyun nahi sasur aur bahuon ke beech hota hai? Koi is per prakash dalne ka kasht karengi?
rgds.
anita mam
ReplyDeleteplease post your final commnets so that i can carry forward the discussion in next post
regds
rewa
i will surely answer your last question in my next post
मैंने बहुत से परिवारों में ऐसा होते देखा है कि बहू और उस के घर वालों न भरे पूरे परिवारों को तहस नहस कर दिया है. लेकिन ऐसे भी परिवार बहुत हैं जहाँ सास, ननद और जेठानी द्बारा बहू पर जम कर अत्त्याचार किए जाते हैं. अगर नारी द्बारा नारी पर अत्त्याचार बंद हो जाए तो समाज का रूप ही बदल जाएगा. कोई पुरूष फ़िर नारी पर अत्त्याचार करने की सोच भी नहीं सकेगा.
ReplyDeleteआपने सत्य कहा है समय बदल रहा है. मैं भी एक ऐसा उदाहरण जानता हूं जहां एक नारी अपने पति से अलग दूसरे के बच्चे की मां बनी पति मजबूरी मैं दूसरे के बच्चे को प्यार दे रहा है किन्तु महिला में कोई सुधार नही आया है, पूरा परिवार डर के कारण अब भी सेवा करता है, उसे सास-ससुर ही नहीं पति को परेशान करने मे आनन्द आता है और स्पष्ट रूप से कहती है, ये पति मुझे पसन्द नहीं किन्तु तलाक भी नहीं देतीं. महिलाओं पर अत्याचार की बात तो सभी करते हैं किन्तु महिलाओं के अत्याचार को हवा में उडा दिया जाता है.
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