पहले कुश के ब्लॉग पर एक मार्मिक कविता और फिर मीनाक्षी जी द्वारा नारी पर लिखी गई रचना- तोड़ दो सारे बंधन और अपने बल पर मुक्ति पाओ....देखी। दोनों को पढ़ने के बाद मुझे यही अहसास हुआ कि जब तक स्त्री खु़द अपनी कोमलता को कमज़ोरी की शक्ल में सामने रखती रहेगी उसे मदद के लिए हमेशा गुहार ही लगानी होगी। ये उसकी कि़स्मत पर है कि उसे सुनकर कोई मदद के लिए आता है या नहीं। यहां यह एतराज जायज़ हो सकता है कि क्या किसी मदद लेना या अपनों को मदद के लिए पुकारना कमज़ोरी है....बिलकुल कमज़ोरी नहीं है क्योंकि तकलीफ़ में हर इंसान मदद के लिए गुहार लगाता ही है, लेकिन मेरा आशय उस कमज़ोरी से है जो औरत होने के नाते महसूस की जाती है, अबला भाव से। इस भाव का ख़ात्मा ज़रूरी है क्योंकि, अगर किसी वजह से आपका वो अपना जिसे आप पुकार रहे हैं मदद न भी करे, तो आप कम से कम इतनी सक्षम ज़रूर हों कि खु़द अपनी मदद कर सकें। अपने दुख से बाहर निकल सकें, न कि खु़द को सिर्फ़ इसलिए तबाह कर दें कि हमारी मदद के लिए तो कोई आया नही नहीं था। साथ ही इतनी हिम्मत भी खुद में जगा पाएं कि अत्याचार का सामना चुप रहकर न करें।
यहां मैं आपको दो ऐसी लड़कियों से मिलवा रही हूं जो साहस, इच्छा-शक्ति और हौसले की जीती जागती मिसाल हैं। इन्होंने अपने ऊपर से अबला का लेबल हटाया और लोगों को दिखा दिया कि अगर मन में मजबूती हो तो कोई राह मुश्किल नहीं है। इन दिनों पंजाब और उससे लगते इलाक़ों में इनके चर्चे हैं। ये दोनों चंडीगढ़ शहर के मशहूर डिस्कोथेक स्कोर-8 में बाउंसर हैं। देश का तो मुझे पता नहीं, लेकिन ये इस इलाके की पहली महिला बाउंसर हैं और लोग इनसे लाइन लगाकर ऑटोग्राफ लेते हैं-
अमनदीप कौर-
ये पंजाब के संगरूर शहर के एक गांव से चंडीगढ़ पहुंचीं। देखा कि डिस्कोथेक में पुरुष बाउंसर्स ही काम करते हैं। उसके मन में सवाल था मैं यहां काम क्यों नहीं कर सकती। काम के लिए पूछा तो जवाब मिला-लड़कियां ये काम नहीं कर सकतीं। अमनदीप निराश नहीं हुई और बार-बार कोशिश करती रही। वो बताना चाहती थी कि मैं किसी भी तरह पुरुषों से कम नहीं हूं, लेकिन कोई मानने को तैयार न था। एक दिन बाज़ार में उसकी दोस्त को कुछ मनचलों ने छेड़ दिया। ये देख अमनदीप ने छेड़ने वाले लड़के की पिटाई शुरू की और इतना मारा कि उसे उसके दोस्त उठाकर ही ले जा सके, पांव पर चलाकर नहीं। ये बात स्कोर-8 तक पहुंची। बस उसी वक़्त अमनदीप को वहां से जॉब की कॉल आ गई और वे बन गईं एरिया की पहली महिला बाउंसर। अमनदीप कहती हैं-मैं बारह-पंद्रह मेल बाउंसर्स के साथ काम करती हूं और मुझे कभी इस बात को लेकर समस्या नहीं आई कि मैं एक लड़की हूं। वे मानती हैं कि शारीरिक रूप से हम कमज़ोर हैं यह मानकर चलना ही सबसे बड़ी कमज़ोरी है। जब हम मानसिक रूप से खुद को सशक्त कर लेते हैं तो वही सशक्तिकरण होता है और वहीं से सारी राह आसान होनी शुरू हो जाती हैं।
मनप्रीत कौर-
बीस बरस की इस लड़की को बाउंसर बनने के लिए दो साल तक कड़ी मेहनत करनी पड़ी। स्कोर-8 में ही तैनात बाउंसर, मनप्रीत का कहना है कि हम मानसिक रूप से बहुत मजबूत हैं। इसी मजबूती को बढ़ाकर हम इतना आगे जा सकती हैं कि लोग रश्क करें। मनप्रीत भी जब जॉब मांगने स्कोर पहुंची तो उन्हें कहा गया कि तुम फिजि़कली मजबूत नहीं दिखती। सुनकर मनप्रीत ने हौसला नहीं गंवाया इसे चुनौती की तरह लिया। रोज मीलों की दौड़ लगाने से लेकर जिम जाना और मार्शल आर्ट सीखना उसके रुटीन में शामिल हो गया। एक दिन फिर स्कोर-8 पहुंची और इस बार उसने उन्हें कन्विंस कर लिया था काम के लिए। मनप्रीत कहती हैं-हमें खु़द को निडर बनाना होगा और मन से इस बात को पूरी तरह निकाल फेंकना होगा कि जो काम पुरुष कर सकते हैं वो हम नहीं कर सकते। हम कमज़ोर हैं और हमारे लिए ऐसी जॉब्स का दरवाज़ा बंद है जहां पुरुषों की ही चलती है। लड़कियों को अपने अंदर की शक्ति को पहचानना होगा जिससे कि कोई उन्हें अबला कभी न कह सके और इसके लिए सबसे पहले उन्हें अपने बल के बारे में जानना होगा।
तो ये थे उस सशक्तिकरण के उदाहरण जिसकी हम बात किया करते हैं। अपनी मर्जी़ से काम चुन सकने का अधिकार, अपनी मर्जी़ से जी सकने की आज़ादी और अपनी तरह से फै़सला ले पाने का साहस तभी आ पाता है जब स्त्री अपने अंदर छिपी शक्ति को पहचान कर अबला का लेबल हटा फेंकती है। और शायद तभी संभव हो पाता है कि किसी भी अत्याचार का सामना कर पाना अपने बल पर।
नोट-वैसे दाद तो रचना जी के हौसले की भी देनी चाहिए क्योंकि इन दिनों उन सभी से कुछ न कुछ लिखवा लेने में सफल हो गई हैं जो जल्दी से पकड़ में नहीं आते थे। उन्होंने अनिता जी के साथ मिलकर बड़े-बड़े ब्लॉगर्स से दाल, ऑमलेट और दूसरे व्यंजन बनवा डाले। यहां तक कि मुझ जैसी आलसी से भी उन्होंने कुछ न कुछ लिखवा ही लिया। हां अभी, मुझे इंतजार है कि कब वे प्रमोद जी से गोभी पुलाव बनवाने में सफल हो पाती हैं।
photographs- courtesy Daninik Bhaskar chandigarh.
शायदाजी, बस यही तो चाहिए... अपने अन्दर की ताकत को पहचानना... आपने इतनी प्यारी हौसले की जीती जागती चिंगारियों से मिलवा कर दिल में रोशनी पैदा कर दी.. बहुत बहुत शुक्रिया...
ReplyDeleteरचनाजी के बारे में आपने सही कहा..अब देखना है कब प्रमोदजी गोभी पुलाव बनाते हैं...
नारी शारीरिक रूप से कमजोर है यह धारणा ही उसे कमजोर बनाती है। पर ऐसा नहीं है। पुरुषों में भी यह धारणा होने पर वे कमजोर सिद्ध होते हैं। यदि इस धारणा को हटा दें तो नारी और पुरुष दोनों ही समान स्तर पर आ जाएंगे।
ReplyDeleteशायदा मेरा आग्रह आपने माना , थैंक्स . बाकी इन दो " सुकुमारियों " से परिचय करवाया . बहुत प्रेरणा मिलती हैं इन सब को देख कर . बस समाज नारी को उन्कोन्वेन्तीओनल मे देख कर खुश हो ये ही कामना हैं . सब को चोखेरबाली ना कहा और समझा जाए क्योकि जिन्दगी को हर इंसान अपनी तरह जी सके तब ही किसी भी समाज का उत्थान सम्भव हैं , और प्रमोद पुलाव बनाये या ना बनाये ये उनकी खुशी पर निर्भर हैं क्योकि हम किसी को भी बाध्य नहीं करे कुछ करने के लिये , आग्रह करना , रेकुएस्ट करना मेरा काम है , याद दिलाना और करवा पाना मेरा कर्तव्य हैं और मेरे आग्रह को जो मान देते हैं वोह सब आदर के पात्र ही हैं
ReplyDeleteshayda ji achha laga apko yahan bhi padhkar. vese humne to suna hai ki apko apke ofc me jhansi ki rani kaha jata hai...sach hai kya?
ReplyDeleteshyada jab jwaab dae paayegee jarur daegi par mae itna jarur kahugee agar anam bandhu aap shyaada ko karibb sae jantey haen to naam kae sath bhi likh saktey thae aur anythaa na lae par vyaktigat kaments ko ek saarvjanik manch par kehna kitan uchit hotaa haen . sab ki apni vyaktigat kamiyaan uar khubiyaa hotee hae .
ReplyDeletecomment kae liyae dhnyavaad
अनानिमस जी आप तो बहुत अच्छी तरह जानते हैं मुझे, फिर अनाम रहकर क्यों बात कर रहे हैं। झांसी की रानी नाम से नवाज़ा जाना तो सम्मान की बात है, मुझे बहुत ख़ुशी कि आपने इस बात को यहां शेयर किया। धन्यवाद आपका।
ReplyDeleteनारी कहीं भी अब पीछे नही हैं बर्शते वह ख़ुद को कमजोर न समझे ..और यह लडकियां तो मिसाल है आने वाले सुखद भविष्य की ...
ReplyDeleteबिल्कुल सही है. ज़रूरत है ये ठान लेने की कि अपनी मदद ख़ुद करनी है, और अत्याचार को चुप रहकर सहना नहीं है, जैसा आप ने कहा. In fact, to a great extent, its a mental, rather than a physical state of being.
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