नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

August 31, 2011

एक खबर एक दुविधा




आज एक खबर पढ़ी की आई आई टी के दाखिले फॉर्म लड़कियों को बिना फीस के मिलेगे और वही लडको के लिये फीस बढ़ा डी गयी हैं । लडको के अनुपात मे लड़कियों की घटती संख्या और इंजीनियरिंग पढने के लिये कम लड़कियों का आना इस का करना कहे जा रहे हैं ।

क्या आप को ये सही लगा । मुझे नहीं लगा । क्युकी मुझे इसका क़ोई फायदा नहीं समझ आया ।

इस प्रकार के निर्णय के पीछे की मानसिकता क्या वही हैं जो दिख रही हैं या कहीं कुछ और भी हैं ?

शायद सही हो

आप क्या कहते हैं



August 26, 2011

भारतीये संस्कृति का हवाला दे कर लड़कियों के खिलाफ भेद भाव हमेशा से समाज करता आया हैं जो सही नहीं हैं


जब भी शराब या धुम्रपान की बात होती हैं तो लोगो का जेंडर बायस तुरंत दिखता हैं । सबको लगता हैं लड़कियों को इन चीजों का सेवन नहीं करना चाहिये ।
ना जाने पिछले ५ सालो में कितनी ही हिंदी ब्लॉग पोस्ट पर आपत्ति जतायी हैं की नहीं ये केवल लड़कियों / महिलाओ के लिये ही नहीं लडके / पुरुषो के लिये भी उतना ही हानिकारक हैं

लोग कभी क़ोई भी गलत चीज़ को रोकने के लिये पुरुषो पर प्रतिबन्ध लगाना सही नहीं समझते और इस बात को कहते ही की दोनों के लिये गलत हैं तुरंत अपना पक्ष रख देते हैं की आप लड़कियों को गलत रास्ते पर जाने की सलाह देती हैं । आप महिला के लिये जो सही हैं उस पर कभी बात नहीं होने देती ।

महिला के लिये "सही " और पुरुष के लिये "सही " दोनों अलग अलग कैसे हो गए ?
अगर सिगरेट और शराब का सेवन सेहत के लिये हानिकारक हैं तो दोनों के लिये हैं अन्यथा किसी के लिये भी नहीं हैं ।

बहुधा देखा गया हैं की अगर क़ोई हम से क़ोई प्रश्न पूछता हैं जैसे शराब नीट ले या सोडा का साथ , सिगरेट ज्यादा बेहतर हैं या सिगार तो हम उस प्रश्न का उत्तर तो देते नहीं हैं हाँ नैतिकता का एक लम्बा लेक्चर जरुर देते हैं , सिगरेट और शराब नहीं लेते हैं ,, अभी तुम छोटे हो इत्यादि ।

अब हमारे ना बताने { मै उनकी बात नहीं कर रही जो बता ही नहीं सकते } से क्या वो व्यक्ति सिगरेट और शराब नहीं लेगा ? होसकता ना ले पर बहुत संभव हैं ले । इस लिये क्या ये बेहतर ना हो की हम अपने से छोटो को उनके प्रश्नों का उत्तर दे ना की नैतिकता का भाषण ।

कम से कम सही उत्तर मिलने से वो गलत तरीका अपनाने से बच जाएगा ।



लोगो का ये कहना की सिगरेट और शराब का सेवन स्त्रियाँ पुरुष से बराबरी करने के लिये करती हैं कुछ अंशो में सही हैं । इन दोनों चीजों का सेवन के प्रकार की आज़ादी का द्योतक हैं और आज़ादी की चाह किसे नहीं हैं ?

साइंस भी आज ये मान चुकी हैं की पेसिव स्मोकिंग से नॉन स्मोकर को उतना ही नुक्सान होता हैं जितना स्मोकर को इस लिये पब्लिक प्लेस पर स्मोकिंग बैन कर दी गयी हैं । इसमे स्त्री या पुरुष के लिये सही और गलत पर बहस करना फिजूल हैं । हां हमारे कानून में इसकी इजाजत हैं दोनों को ।

गर्भ में शिशु को धुये से नुक्सान होता हैं चाहे माँ धुम्रपान करे चाहे पिता ।

मोनाम्मा कोक्कड़ के प्रयासों का नतीजा हैं की भारत में सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान करने पर बैन लगा दिया


ये हमारे अन्दर छुपा हुआ जेंडर बायस हैं जो किसी भी गलत चीज़ को केवल स्त्री के लिये गलत बताता हैं
और हम में से जितने भी स्त्री पुरुष समानता की बात करते हैं वो स्त्रियों को गलत करने के लिये उकसाते नहीं हाँ सोच में बदलाव चाहते हैं जहां स्त्री और पुरुष दोनों के लिये समाज के कानून एक से बनाए जाये ।

मोरल पुलिसिंग का अधिकार भी केवल पुरुषो का नहीं हैं इस बात को आज की लडकियां बार बार कह रही हैं

चाहे वो पिंक चड्ढी कैम्पेन हो जहां लड़कियों को पब जाने से रोकने के विरोध का विरोध था

या सलट वाल्क हो जो लड़कियों के निर्धारित कपड़े ना पहनने का विरोध का विरोध था

मोरल पुलिसिंग दोनों की करे समाज पर कानून और संविधान के दायरे के अन्दर करे । जेंडर बायस मोरल पुलिसिंग लड़कियों में आक्रोश पैदा कर रही हैं और लड़को को इन्सेक्युर बना रही हैं ।

भारतीये संस्कृति का हवाला दे कर लड़कियों के खिलाफ भेद भाव हमेशा से समाज करता आया हैं जो सही नहीं हैं ,
भारतीये संस्कृति लड़कियों के खिलाफ मोरल पुलिसिंग से बहुत ऊपर हैं ।



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August 21, 2011

जेंडर बायस

जेंडर बायस क्या होता हैं , ये बहुत बार व्यंग से पूछा जाता हैं । लोगो को लगता हैं जो लोग जेंडर बायस के खिलाफ लिखते हैं वो समाज के बनाये नियम के खिलाफ लिखते हैं ।

कहां होता हैं जेंडर बायस

लड़की हो लड़की की तरह रहो
लड़की हो सहना सीखो
लड़की हो फिक्क से मत हंसो
लड़की हो देर रात तक घर से बाहर नहीं रहो
लड़की हो खाना बनाना सीखो

लड़की हो भाई / पिता / पति के आते ही उनका सत्कार करो
लड़की हो ये पढो ये मत पढो
लड़की हो सिगरेट शराब का सेवन मत करो
लड़की हो वेस्टर्न कपड़े मत पहनो

जी हाँ ये सब काम अगर क़ोई आप को महज इस लिये मना करता हैं की आप लड़की हैं तो वो व्यक्ति स्त्री हो या पुरुष कंडिशनिंग का शिकार है और जेंडर बायस्ड हैं ।
क्युकी ऊपर लिखी गयी क़ोई भी बात ऐसी नहीं हैं जिसे करना लडको के लिये भी सही /गलत नहीं हैं ।

हर वो काम जो लडके कर सकते हैं लडकियां भी कर सकती हैं ये अधिकार संविधान और कानून उनको देता हैं

ये लिखते ही कुछ लोग झट से कह देते हैं

लडके तो टॉप लेस घूम सकते हैं आप भी घूमिये हम तो तब आप को बराबर समझेगे या शर्ट पहने पुरुष अपने वक्ष को खोल कर दिखाते हुए अक्सर दिख जाते हैं -आईये हमें कोई इतराज नहीं है आप भी ऐसा परिधान पहनिए -आगे आईये हिम्मत दिखाईए -

ये कुतर्क सामाजिक कंडिशनिंग का नतीजा हैं जहां नारी और पुरुष को समान नहीं समझा जाता हैं

जेंडर बायस कहीं ना कहीं हम सबके दिमागे में बहुत गेहरे से घर कर गया हैं । हम इसको एक आम जिन्दगी की तरह जीने लगे हैं । अगर माहोल या समाज बराबरी नहीं देता तो बदलना उस समाज और माहोल को होगा

जागरूक से जागरूक भी इस जेंडर बायस को अपने दिमाग से अलग नहीं कर पाते हैं और स्त्री को ये याद दिला ही देते हैं की उसकी जगह कहां हैं !!!!

अगर आप को लगता हैं समाज में जेंडर बायस हैं तो आप बताये आपने कहां कहां , किन बातो में ऐसा महसूस किया ।



हाँ ये भी ध्यान देने वाली बात हैं की जेंडर बायस केवल नारी के प्रति ही नहीं होता हैं । कभी कभी लडके इसका भयंकर शिकार होते हैं । उनको बहुत से काम केवल इस लिये करने पड़ते हैं क्युकी वो लडके हैं जैसे रात को ९ बजे माँ को याद आता हैं दूध नहीं हैं और वो बेटे को कहती हैं भाग कर ले आ , तू तो लड़का हैं , डर किस बात का ।

या ऑफिस में बॉस का ये कहना की अपनी महिला सहयोगी को घर छोड़ देना देर हो गयी हैं ।

इस प्रकार की कंडिशनिंग लडको में लड़कियों के प्रति गलत सन्देश देती हैं क्युकी उनको लगता हैं की लडकियां एक कम्फोर्ट ज़ोन में हमेशा रहती हैं और इस लिये लड़कियों को सब कुछ आसानी से मिल जाता हैं और लडको को पाना पड़ता हैं ।

इस सोच के दुष्परिणाम बहुत भयंकर होते हैं जो आजीवन विपरीत लिंग संबंधो में दरार डालते हैं ।

बराबरी की हर बात तभी कारगर होगी जब ये दो तरफ़ा होगी ।


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August 19, 2011

पत्नी को जेब खर्च क्यूँ नहीं, --- क्युकी कानून सही नहीं हैं

ना जाने कितनी बार ये प्रश्न दिमाग में आता हैं की जहां नारी धन अर्जित नहीं करती वहाँ उसको अपने खर्चे के लिये पैसा कौन देता हैं ?

बहुत बार ऐसी गृहिणिया जो धन खुद अर्जित नहीं करती हैं वो उस पैसे को अपने लिये रखती हैं जो उनको तीज त्यौहार मायके से मिलता हैं

कुछ घर खर्च से बचा लेती हैं और पति से छुपा कर रख लेती हैं

कुछ को पति / पुत्र / पुत्री पैसा देते हैं उनके खर्च के लिये

लेकिन एक प्रश्न बार बार लौट कर आता हैं की धन अर्जित ना करने वाली नारियों के लिये उनके पति क्यूँ नहीं अलग से क़ोई खाता खोल देते हैं जो केवल उस नारी का हो
जोइंट खातो की परम्परा भी नयी हैं , अच्छी पहल हैं पर इस में भी एक जवाब देही बन जाती हैं

चोखेर बाली ब्लॉग , नारी ब्लॉग और जील ब्लॉग पर ये मुद्दा कई बार उठा और हमेशा एक बहस में इसका अंत हुआ , हर महिला ने चाहा की अलग पैसा मिले पर पुरुष या तो चुप रहे या उन्होने कहा की जो कमाता हैं उसको देखना पड़ता हैं जितनी चादर इत्यादि और कुछ ने जिसमे पुरुष और स्त्री दोनों हैं इसको महज एक विवाद वाली पोस्ट मान कर मुद्दे को ही ख़ारिज कर दिया

हमारे देश के कानून ऐसे बनाये गए हैं जिस में ये ध्यान रखा गया हैं की नारी इस समाज में दोयम हैं इस लिये उसको सुरक्षित करो इस नज़रिये से एक कानून ऐसा हैं जहां पत्नी की मृत्यु के पश्चात उसकी संपत्ति पर उसके पति का क़ोई अधिकार नहीं हैं पत्नी की संपत्ति पर केवल उसके बच्चो का अधिकार हैं

इसके उल्ट पति की मृत्यु के पश्चात पत्नी , माँ और संतान सब समान अधिकारी होते हैं उसकी संपत्ति के

यानी एक डर कहीं ना कहीं जरुर रहता होगा ससुराल वालो के मन में , पति के मन में , की अगर पत्नी के नाम कुछ कर दिया और पति की मृत्यु हो गयी तो जो पत्नी के नाम हैं उस पर किसी का क़ोई अधिकार नहीं होगा

आज भी कम उम्र में जो नारियां विधवा हो जाती हैं बहुधा मायके चली जाती हैं और कई बार दोबारा विवाह भी कर लेती हैं ऐसे में अगर वो अपने पूर्व पति की बिमा पालिसी , बैंक अकाउंट , शयेर , अफ डी इत्यादि में नॉमिनी हैं तो पति के माता पिता को कुछ भी नहीं मिलता हैं


पत्नी को जेब खर्च क्यूँ नहीं का प्रश्न करना जितना आसान लगा था मुझे जब मैने उसके समाधान खोजने की जगह कारण की खोज की तो मुझे इस कानून का पता चला

इस कानून में बदलाव की आवश्यकता हैं ताकि जो अधिकार पत्नी को हैं अपने पति की संपत्ति पर , पति को भी हो अपनी पत्नी की संपत्ति पर

मेरा मानना हैं की पत्नी के पति की मृत्यु हो जाने पर दुबारा विवाह करने पर जो भी पहले पति का उसको नॉमिनी होने की वजह से मिला हैं वो सब पति के घरवालो को वापस जाना चाहिये और अगर पत्नी मायके वापस जाती हैं तो भी उसको वो सम्पत्ति जो नॉमिनी होने की वजह से "केवल उसको " मिली हैं उसको अपनी सास के साथ बराबर से बाँट लेना चाहिये अगर बच्चे नहीं हैं तो

सरकारी नौकरी में शायद ये प्रावधान हैं की विधवा को अगर पति की जगह नौकरी दी जाती हैं तो वो दूसरी शादी के बाद ख़तम हो जाती हैं और पेंशन पर भी अधिकार नहीं रहता { किसी के पास पूरी जानकारी हो तो बाँट दे सब से कमेन्ट में }

इस का एक दुष्परिणाम हैं की विधवा जो नौकरी पा जाती हैं वो दुबारा विवाह से कतराती हैं यानी उनकी जिंदगी वही रुक जाती हैं इस विषय पर गहन चिंतन की आवश्यकता हैं

इस पोस्ट पर आप के कमेन्ट/ विचार और प्रश्न देख कर इस पर विस्तार से बात की जा सकती हैं


अंत में मै यही मानती हूँ की हर नारी कोशिश करनी चाहिये की वो धन भी अर्जित कर सकेअपना अर्जित धन ही वास्तव में अपना होता हैं क्युकी उस पर क़ोई प्रश्न चिन्ह कभी नहीं लगता जो बेटियाँ अविवाहित हैं और उन्होने कमाना शुरू कर दिया हैं उनको घर खर्च में पैसा अवश्य देना चाहिये जो बहू हैं और कमाती हैं यानी जो सास ससुर के साथ रहती हैं उनको भी घर खर्च में योगदान देना ही चाहिये
अगर हम समानता की बात करते हैं तो हमको सबसे पहले उस नियम को अपने ऊपर ही लागू करना चाहिये



those woman who dont earn have to understand that the money their husbands give them or deposit in their name or where ever they are nominee legally after their death the money/ property will not go to husband but only to their children .

in case of death of married man , the property is divided between his mother , wife and children equally but in case a married woman dies the property is inherrited by her children

i always recommend that woman should work and earn so that actual equality of gender prevails and dependency become obsolete


चलते चलते आप को एक किस्सा बता रही हूँ , आज से ३० साल पहले की बात हैं
एक ससुर ने अपनी सारी सम्पत्ति का वारिस अपनी बहू को बना दिया ससुर के बेटा और बेटी थी लेकिन वारिस उन्होने अपनी बहू को घोषित किया बाकयदा विल बना कर चल अचल संपत्ति में एक घर और एक फैक्ट्री थी
एक दिन उनकी बहू जो आज खुद ६० साल की महिला हैं और जिनके विवाहित बेटे और तलाक शुदा बेटी हैं से बात हुई और उन से प्रश्न किया की आखिर आप के ससुर ने आप पर इतना विश्वास किया तो कैसे
उनका जवाब था ससुर अपनी पूरी सम्पत्ति केवल अपने पोतो {यानि बेटे के बेटो } को ही देना चाहते थे वो उस में अपनी बेटियों का क़ोई अधिकार नहीं मानते थे इस लिये उन्होने सारी सम्पत्ति बहू के नाम कर दी क्युकी बहू की सम्पत्ति पर केवल बहू और उसके बच्चो का अधिकार होगा ससुर के मरने के बाद सास का भी अधिकार नहीं रहेगा अन्यथा उनके हिस्से का पैसा वो चाहे तो बेटियों को दे सकती थी

किस्सा अभी ख़तम नहीं हुआ हैं जब बहू ने अपनी बेटी की शादी की तो साल भर के अन्दर ही दामाद ने कहा की जो भी उसकी पत्नी का हिस्सा हैं वो पत्नी के नाम कर दिया जाए क्युकी क्या पता बाद में कुछ भी ना मिले

ऐसा नहीं किया गया तो अंत बेटी के तलाक पर जा कर हुआ
पिता और माँ की सम्पत्ति पर बेटी का बराबर का हिस्सा हैं पर समाज अभी भी उसको नकारता हैं कानून बनजाने के बाद भी क़ोई क़ोई तरीका निकाल ही लेता हैं दुभात करने का


कुछ कानूनों को अगर बदलने का समय हैं तो कुछ को सख्ती से पालन करने और करवाने का भी समय हैं

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August 17, 2011

क़ोई भी किसी के जैसा नहीं हो सकता please dont compare


समानता का मतलब एक का दूसरे से compare करना समझ लिया जाता हैं ।
जो फिर कंडिशनिंग का दुष्परिणाम हैं

कितनी बार विवाहित नारी को हम ये कहते सुनते हैं

मेरे पति अपनी माँ , अपनी बहिन के लिये बहुत करते हैं मेरे लिये नहीं , इस लिये वो अच्छे पति नहीं हैं

सवाल उठता हैं की आप अपने पति को अगर किसी से मिलाना या कम्पयेर करना चाहती हैं तो आप को उसको उस पुरुष से कम्पयेर करना चाहिये जो किसी का पति हैं जैसे
आपके पिता
आपके भाई
आपके देवर
आपके नंदोई
अगर ये सब लोग अपनी पत्नियों के लिये जो करते हैं { जो आप को अच्छा लगता हैं } वो आप के पति आप के लिये नहीं करते तो निसंदेह आप के पति वो नहीं हैं जिस की छवि आप के मन में हैं या जिसकी अपेक्षा आप को हैं उनसे ।

वही अगर

आप के पिता ने अपनी बहिन यानी आप की बुआ और अपनी माँ यानी आपकी दादी के लिये

आप के भाई ने अपनी माँ यानी आपकी माँ और अपनी बहन यानी आप के लिये

आप के देवर ने आप की नन्द यानी आपके पति की बहिन और आपकी सास यानी आपके पति की माँ

आप के नंदोई अपनी माँ और अपनी बहिन

के लिये

आप के पति से कम करते हैं यानी
जितना आप ध्यान आपके पति अपनी माँ /बहिन का रखते हैं वो नहीं रखते तो

ये आप के पति का गुण हैं अवगुण नहीं

क्युकी आप इस गुण का मुकबला उनके पति होने के कर्तव्यो से करती हैं आप को लगता हैं वो आप के लिये कम करते हैं

जबकि एक बेटे की तरह और एक भाई की तरह जो इंसान इतना सफल हैं उस इंसान को पाकर आप को खुश होना चाहिये पर अपनी कंडिशनिंग के चलते आप "पति रूप " का मिलान " भाई रूप और बेटे रूप " से कर बैठती हैं

अगर आप के भाई आप को उतना सम्मान नहीं देते जितना आप के पति अपनी बहिन को देते हैं तो आप को नाराज अपने भाई से होना चाहिये पर आप नाराज पति से होती हैं

एक जैसे समान हालत में कौन क्या करता हैं कम्पयेर करते समय अगर इस बात को ध्यान रखा जाये तो सोच में बदलाव आता हैं

घर में बहू काम से वापस आते ही रसोई में घुस जाती हैं पर बेटी काम से आकर अपने कमरे में जा कर आराम करती हैं क्युकी पिता का घर बेटी का नहीं हैं ये उसने बचपन से सूना हैं और बहू ने भी यही अपने मायके में सुना हैं ।

अब अगर आप बेटी को ये कहे की देखो भाभी काम कर रही हैं तो आप को यही सुनने को मिलेगा की "शादी के बाद मै भी कर लूंगी " इस लिये बेटी को ये एहसास ही क्यूँ दिलाये की ये घर उसका नहीं हैं ।


किसी का बेटा अगर कुछ करता हैं और आप की बेटी वो करती हैं तो आप कहती मेरी बेटी उसके बेटे से कम नहीं लेकिन इस कहने से आप अपनी बेटी का वजूद ख़तम कर देती हैं बेटियों के अस्तित्व को हमेशा नकारा जाता हैं जो कंडिशनिंग का दुष्परिणाम हैं क्युकी उंची सीढी पर तुलना में आज भी क़ोई क़ोई बेटा लोगो को दिखता हैं .

बहू बेटी जैसी हैं
दामाद बेटे जैसा हैं
बेटी बेटे जैसी हैं

इत्यादि कह कर हम केवल और कम्पयेर करते हैं क्युकी कोइ भी किसी के जैसा नहीं हो सकता

in science experiments are always done in controlled conditions only then the results are compared . we can never compare two individuals who have been bought up in totally different situations and surroundings . and we should try to break the conditioning of society to make new paths that will help us in creating better living conditions around as .

every child irrespective of the gender does a lot for their parents but not for their in laws because in laws are not parents but in the process they forget the courtesy "law" they are also your parents so you are duty bound to take care of them
treat both set of parents equally .

never compare your wifes attitude towards her inlaws with your sisters attitude towards her parents contrary see how your sister behaves with her in laws and then compare how your wife behaves with her in laws

अपनी बेटी को समझाए की आप के बुढापे में उसको आप का ख्याल रखना हैं ये उसका अधिकार हैं और ये उसका कर्त्तव्य भी आप उस से पूछे अपने विवाह के पश्चात वो आप का ख्याल रखना कैसे मैनेज करेगी ? अगर आप अपनी सेवा का अधिकार केवल अपने पुत्र का समझते हैं तो आप बेटी को कम प्यार करते हैं


अधिकार दे अपनी बेटी को बराबरी का हर कर्तव्य निभाने में भी
कर्तव्यो का बंटवारा भी सामाजिक कंडिशनिंग की वजह से लिंग आधारित हो गया हैं. हर बच्चे का अपने माँ-पिता के लिये कर्तव्य को जब बेटे और बेटी का कह कर अलग अलग कर दिया जाता हैं तो असमान व्यवहार का जनम होता हैं और झुकाव एक तरफ हो जाता हैं



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August 16, 2011

ईश्वर ने जब नर - नारी को समान बनाया नहीं तो समानता की बात की ही क्यूँ जाती हैं

 जब भी नर नारी समानता की बात शुरू की जाती हैं  पहला कमेन्ट आता हैं
ईश्वर ने जब नर - नारी को समान बनाया नहीं तो समानता की बात की ही क्यूँ जाती हैं
ये तर्क वो लोग देते हैं जिनकी सामाजिक कंडिशनिंग नर नारी को केवल और केवल एक ही रूप में देखते हैं यानी शारीरिक संरचना के आधार पर ।

August 15, 2011

"नारी" का वर्गीकरण . Segmentation of women

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देश आज स्वतंत्रता दिवस मना रहा हैं । सबको बधाई ।

आज़ादी जो किसी का भी जन्म सिद्ध अधिकार होता हैं जब छिन्न जाती हैं तो बहुत घुटन होती हैं और ये घुटन मानसिक ज्यादा होती हैं । इस घुटन से मुक्ति पाने के लिये सब जुट जाते हैं कभी एक जुट होकर तो कभी व्यक्तिगत रूप से और आज़ादी को अर्जित कर ही लेते हैं ।

मेरे ब्लॉग की टैग लाइन हैं नारी - जिसने घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित की

नारी इस विषय पर कुछ बात करनी हो , कुछ पूछना हो , कुछ लिखना हो तो समाज की सोच को ध्यान में रखने को कहा जाता हैं यानी वही लिखना चाहिये जो समाज पढना चाहता हैं । आप का अपना नज़रिया , आप की अपनी सोच आप की अपनी जरुरत का क़ोई महत्व हैं ही नहीं क्युकी आप नारी हैं और आप को ये अधिकार हैं ही नहीं की आप सोच सके और आप ना केवल सोच रही हैं अपितु बोल भी रही हैं , तर्क भी कर रही हैं ।

यहाँ से विभाजन / वर्गीकरण/Segmentation शुरू होता हैं "नारी" का ।

नारी
भारतीये नारी / पश्चिमी नारी
मिडल क्लास / हाई सोसाइटी
शादीशुदा नारी / कुंवारी नारी
कुंवारी नारी / परित्यक्ता नारी
शादीशुदा नारी / तलाकशुदा नारी
बीवी / दूसरी औरत
माँ / बिना बच्चो वाली
माँ / बाँझ
स्तन पान करने वाली / नहीं कराने वाली
साडी पहने वाली / नहीं पहनने वाली
गृहणी / नौकरी करती गृहणी
सास / बहू
नन्द / भाभी
माँ / बेटी

यानी किसी भी समस्या पर बात करनी हो पहले आप को तैयार रहना होता हैं इस विभाजन में बंटने के लिये । इस लिस्ट को समाज अपने अनुसार घटा बढ़ा लेता हैं और

हर बार मुद्दा जो " नर - नारी " समानता और स्वतंत्रता का हैं वो ख़तम हो जाता हैं वो स्वतंत्रता वो समानता जो कानून और हमारा संविधान हमे देता हैं और जिसका हनन हर वर्ग में होता हैं ।

ये सब लोग रियल दुनिया से लेकर आभासी दुनिया तक में करते हैंमुद्दे को भटका कर बात ही नहीं होने देते

हर मुद्दे को घुमा कर "नारी " को किसी ना किसी तरह "नर " की और ही मोड़ दिया जाता हैं और उसको अहसास दिलाया जाता हैं की वो स्वतंत्र तो हैं पर सुरक्षित तभी हैं जब वो किसी की माँ , बहिन या पत्नी हैंइसके इतर ना तो नारी का क़ोई भूत हैं ना वर्तमान और ना भविष्यअगर उसको समाज में रहना हैं तो नर की कुछ ना कुछ बन कर ही रहना होगा तभी समाज की स्वीकृति की वो हकदार होगी

पुरुष को अपनी सुरक्षा का जिम्मा जो नारी दे देती हैं वही समाज में सुरक्षित हैं । समाज उसको , उसके काम को स्वीकार तो करता हैं पर "बराबरी का दर्जा " कभी उसको भी नहीं देता हाँ समाज उनके जरिये उन सब नारियों को भी सबक सिखाता हैं जो बराबरी के दर्जे की बात करती हैं । हथियार की तरह इस्तमाल करता है समाज एक नारी को दूसरी के खिलाफ , विभाजन करता हैं समाज नारी - नारी में { ऊपर लिस्ट हैं } । लेकिन हर विभाजन के बाद वही समाज कहता हैं नारी ही नारी की दुश्मन हैं

नारी के विभाजन की प्रक्रिया से जो स्थिति उत्पन्न होती हैं महिला के लिये वही कंडिशनिंग का कारण हैं

आप जब भी कहीं दो स्त्रियों में दुराव देखे तो विभाजन वाली लिस्ट पर ध्यान दे आप को खुद समझ आ जाएगा इस के लिये कंडिशनिंग कितनी जिम्मेदार हैं ।

नारी को कंडीशन करके ,
उसको सामाजिक सुरक्षा का भय दिखा कर उसको ही हथियार बना दिया जाता हैं
और
समानता और स्वतंत्रता की बात यानी नर नारी दोनों को बराबर अधिकार हैं का मुद्दा हमेशा रास्ता भटका दिया जाता हैं ।

नारी जब तक इस कंडिशनिंग को नहीं तोड़ेगी
तब तक वो हमेशा इस भ्रम में जियेगी की उसकी सामाजिक सुरक्षा की जिम्मेदारी पुरुष की हैं कानून और संविधान की नहींतब तक वो मानसिक रूप से कभी स्वतंत्र होगी ही नहीं ।


नारी के सम्बन्ध में स्वतंत्र शब्द आते हैं पर्याय वाची शब्दों की भरमार हो जाती हैं जैसे स्वच्छंद, निरंकुश, प्रगतिशील , नारीवादी ,फेमिनिस्ट और भी ना जाने क्या क्या
ब्लॉग जगत में में वेश्या तक कह दिया गया इस मुद्दे पर बात करने वालो को ।

इन
शब्दों से बचने का आसान तरीका हैं पुरुष की सुरक्षा {क्युकी नारी का उद्धार करना पुरुष कर्तव्यों में गिना जाता हैं } और अपनी कंडिशनिंग के तहत बहुत सी नारियां इसके लिये सहर्ष तैयार होती हैं .

कंडिशनिंग नारी को " एक सामाजिक छवि" में कैद कर देती हैं और इस वजह से नारी केवल वही कहती और करती हैं जो उसको "स्वीकार्य " की परिधि में लाता हो "बराबरी " पर नहीं


Operant conditioning is a form of psychological learning where an individual modifies the occurrence and form of its own behavior due to the association of the behavior with a stimulus. Operant conditioning is distinguished from classical conditioning (also called respondent conditioning) in that operant conditioning deals with the modification of "voluntary behavior" or operant behavior. Operant behavior "operates" on the environment and is maintained by its consequences, while classical conditioning deals with the conditioning of reflexive (reflex) behaviors which are elicited by antecedent conditions। Behaviors conditioned via a classical conditioning procedure are not maintained by consequences.


इस कंडिशनिंग के क्या परिणाम हमारे समाज ने खुद भोगे हैं इस ब्लॉग पर इस पर अब विस्तार से मेरा view यानी नज़रिया पढने को मिलेगा और नारी स्वतंत्रता का सफ़र निरंतर जारी रहेगा । नर नारी , बेटा बेटी , पति पत्नी , भाई बहिन और हर वो सम्बन्ध जहां विपरीत लिंग एक दूसरे से जुड़े हैं वो जुड़े होने के बाद भी अपने आप में एक स्वतंत्र इकाई हैं और उनके सामाजिक और क़ानूनी अधिकार बिलकुल बराबर हैं फिर भी नारी को कंडीशन किया जाता रहा हैं दोयम का दर्जा स्वीकार करने के लिये । उसको मानसिक रूप से मजबूर किया जाता हैं की वो समाज में सुरक्षा की बात करे समानता की नहीं ।

नारी ब्लॉग पर पिछले सालो में बहुत सी समस्या पर बात हुई हैं उन पर मेरी व्यक्तिगत अनालिसिस को पढने के इच्छुक पढ़ कर अपनी राय जोड़ सकते हैं टिपण्णी में आप अपना नज़रिया जोड़ सकते । बस मुद्दे को भटकाने की बात न करे ।


  1. अगर मुद्दा बलात्कार का हैं तो स्त्री के कपड़े उसका कारण हैं ये कह कर स्त्रियों के ऊपर ही उनके प्रति हुए इस अत्याचार के लिये उनको ही दोषी ना बनादे
  2. कन्या भुंण ह्त्या में ये ना कहे दादी को पोता चाहिये ,
  3. बहू के जलाये जाने पर ये ना कहे सास ने उकसाया था
ये सब कह कर आप टिपण्णी नहीं करते हैं आप मुद्दे को भटकाना चाहते हैं ताकि नारी और नर समानता के मुद्दे पर बात ही ना हो ।



मै नर - नारी समानता की पक्षधर हूँ और रहूंगी । मुझे कानून और संविधान की बात मानना , समाज की कंडिशनिंग मानने से ज्यादा अच्छा और सुविधाजनक लगता हैं । मुझे लगता हैं की सदियों से जिन कुरीतियों की वजह से बहन , बेटी , बहू जलायी जाती हैं , लड़कियों को कोख में मारा जाता हैं , घर में रह कर जो महिला घुटन पाती हैं और भी बहुत कुछ उन सब कुरीतिओं से आंखे मूंद लेने से कुछ नहीं होगा ।

एक बार ये मानना होगा की समस्या हैं । नारी को लेकर समाज का नजरिया दोयम का हैं । जब तक आप जान कर भी इस समस्या को समस्या नहीं मानेगे इस बार ना तो खुल कर बात होगी और ना कभी इस को दूर करने का प्रयास होगा ।







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