रोज़ जब अखबार पढने बैठो तो एक ख़बर जैसे अखबार का अब हिस्सा ही बन गई है , कभी १२ साल की लड़की का रेप कभी घर में ही लड़की सुरक्षित नही है क्यूँ बढता जा रहा है यह सब ? क्या इंसानी भूख इतनी बढ़ गई ही कि वह अपनी सोच ही खो बैठा है ...और वही बात जब रोज़ रोज़ हमारी आँखों के सामने से गुजरे तो हम उसके जैसे आदि हो जाते हैं फ़िर वही गंभीर बात हमें उतना प्रभावित नही करती है जितना पहली बार पढ़ कर हम पर असर होता है और हम उसको अनदेखा करना शुरू कर देते हैंकुछ दिन पहले अनुराग जी की एक पोस्ट ने जहन को हिला के रख दिया .कैसे कर सकता है कोई ऐसे मासूम बच्ची के साथ
क्यूँ आज अपने ही घर में लड़की सुरक्षित नही है ? यह प्रश्न कई बात दिलो दिमाग पर छा जाता है और फ़िर दूसरी ख़बरों की तरफ़ आँखे चली जाती है ..अब यदि अरुशी हत्याकांड का जो सच बताया जा रहा है वह भी अपने ही घर में असुरक्षित मामले से ही जुडा हुआ है यदि वह सच है तो शर्मनाक है यह सब सोच कर गुलजार की एक कविता याद आ जाती है ..
ऐसा कुछ भी तो नही था जो हुआ करता था फिल्मों में हमेशा
न तो बारिश थी ,न तूफानी हवा ,और न जंगल का समां ,
न कोई चाँद फ़लक पर कि जुनूं-खेज करे
न किसी चश्मे, न दरिया की उबलती हुई फानुसी सदाएं
कोई मौसीकी नही थी पसेमंजर में कि जज्बात हेजान मचा दे!
न वह भीगी हुई बारिश में ,कोई हुरनुमा लड़की थी
सिर्फ़ औरत थी वह, कमजोर थी
चार मर्दों ने ,कि वो मर्द थे बस ,
पसेदीवार उसे "रेप "किया !!!
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
July 14, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
copyright
All post are covered under copy right law . Any one who wants to use the content has to take permission of the author before reproducing the post in full or part in blog medium or print medium .Indian Copyright Rules
Popular Posts
-
आज मैं आप सभी को जिस विषय में बताने जा रही हूँ उस विषय पर बात करना भारतीय परंपरा में कोई उचित नहीं समझता क्योंकि मनु के अनुसार कन्या एक बा...
-
नारी सशक्तिकरण का मतलब नारी को सशक्त करना नहीं हैं । नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट का मतलब फेमिनिस्म भी नहीं हैं । नारी सशक्तिकरण या ...
-
Women empowerment in India is a challenging task as we need to acknowledge the fact that gender based discrimination is a deep rooted s...
-
लीजिये आप कहेगे ये क्या बात हुई ??? बहू के क़ानूनी अधिकार तो ससुराल मे उसके पति के अधिकार के नीचे आ ही गए , यानी बेटे के क़ानूनी अधिकार हैं...
-
भारतीय समाज की सामाजिक व्यवस्था के अनुसार बेटी विदा होकर पति के घर ही जाती है. उसके माँ बाप उसके लालन प...
-
आईये आप को मिलवाए कुछ अविवाहित महिलाओ से जो तीस के ऊपर हैं { अब सुखी - दुखी , खुश , ना खुश की परिभाषा तो सब के लिये अलग अलग होती हैं } और अप...
-
Field Name Year (Muslim) Ruler of India Razia Sultana (1236-1240) Advocate Cornelia Sorabji (1894) Ambassador Vijayalakshmi Pa...
-
नारी ब्लॉग सक्रियता ५ अप्रैल २००८ - से अब तक पढ़ा गया १०७५६४ फोलोवर ४२५ सदस्य ६० ब्लॉग पढ़ रही थी एक ब्लॉग पर एक पोस्ट देखी ज...
-
वैदिक काल से अब तक नारी की यात्रा .. जब कुछ समय पहले मैंने वेदों को पढ़ना शुरू किया तो ऋग्वेद में यह पढ़ा की वैदिक काल में नारियां बहुत विदु...
-
प्रश्न : -- नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट {woman empowerment } का क्या मतलब हैं ?? "नारी सशक्तिकरण या वूमन एम्पोवेर्मेंट " ...
Ranjana ji,
ReplyDeleteapne behad dukhad nabj ko pakda hai, je beemari samaj mai badati hi j rahi hai. hame apne bachho ki pervrish per dhiyaab dena hoga.
Manvinder
रंजना जी
ReplyDeleteइस सब का एक ही उपाय है कि औरत को आत्मविश्वास जगाना होगा और जहाँ भी किसी को अत्याचार करते देखो , आवाज़ उठानी होगी। समाज को बदलने का दुष्कर कार्य भी एक औरत ही कर सकती है।
रंजना आप ने चैट पर पूछा की इस पोस्ट ख़ास क्या हैं "नारी" पर क्यों डालना हैं . कारण हैं अनुराग की पोस्ट की एक लाइन " सॉरी सिस्टर" सर बोले ,धीमे से उठे ओर हम दोनों बाहर चल दिये ...मर्द होने का गुनाह भरा अहसास लिये ............"मेने इस बात को कई बार पहले भी कहा हैं और आज फिर कहती हूँ की समाज मे जरुरत है पुरूष को शिक्षित करने की . शिक्षा से अभिप्राय हैं की हर बेटे को ये समझाया जाए की आज जो पुरूष वर्ग महिला चरित्र हनन कर रहा हैं वह अपने बेटो के लिये खाई खोद रहा हैं । जब तक इस बात को पुरूष समाज नहीं समझेगा वह पुरूष वर्ग आहत होता रहेगा जो महिला के प्रति संवेदनशील हैं और उसे महिला ना समझ कर मनुष्य समझता हैं . मेरे मन मे जो सहानभूती उस बच्ची के लिये हैं उस से ज्यादा अनुराग और उनकर डॉ मित्र के लिये हैं क्योकि इस तरह के केस के बाद कोई भी इंसान कई दिन तक मानसिक रूप से उस से अपने को अलग नहीं करसकता . दोष पुरूष समाज का नहीं अपितु बेटो को खुली छुट और बेटी को टोका टाकी का हैं .
ReplyDeletebahut kadvi sachai
ReplyDeleteranjana ji
ReplyDeletepahale to aurat mein aatmavishwas drid hona chahiye jisase vo aane vale kathinaeeyon ka saamna kar sake.
कुछ ऐसी घटनाएँ होती हैं जिन्हें देखकर बोलती बंद हो जाती है... मर्दों की, औरतों की और शायद सबकी
ReplyDeleteकुछ दिन पहले एक अदालत के बारे मैं ख़बर थी. अदालत ने कहा, नाबालिग़ बच्चियों के बलात्कारियों को सजा न देकर सुधारा जाना चाहिए. बलात्कार और अपराधियों को सजा के बारे में एक एनजीओ के सर्वेक्षण के बारे में भी लिखा गया है. आज जितने बलात्कार होते हैं उन में ५०% बलात्कार नाबालिग़ बच्चियों पर होते हैं. कुल बलात्कारों में केवल ४.८% अपराधियों को सजा मिलती है. इस का मतलब है की १०० बलात्कारियों में से केवल ५ को सजा मिलती है. अदालत के विचार से इन ५ को भी सजा नहीं देनी चाहिए. उन्हें सुधारा जाना चाहिए. इस पूरे प्रकरण में उस नाबालिग़ बच्ची और उस के परिवार के प्रति किसी को कोई चिंता नहीं है, न पुलिस को, न अदालत को, न नेताओं को. कितनी शर्म की बात है की इस खबर पर कोई आगे चर्चा अखबार या किसी और मीडिया में नहीं हुई.
ReplyDeleteऔरतों के प्रति मर्दों के नजरिए को बदलना जरूरी है। उस के साथ ही औरतों के प्रति औरतों का नजरिया भी बदलने की जरूरत है।
ReplyDeleteरंजनाजी
ReplyDeleteनिश्चय ही स्थिति चिन्तनीय है. बच्चियां घर में ही सुरक्षित नहीं हैं, बाहर तो क्या होंगी? बच्चिया ही क्यों बच्चों के साथ भी कुकर्म हो रहै हैं. इसे भी नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता किन्तु बेटियों को छूट देना या बेटों पर नियंत्रण लगाना कोई समाधान प्रस्तुत नहीं करेगा. केवल सिद्धांतों के आधार पर समाज को बदला नहीं जा सकता. व्यवहारिक बात यह है कि शिक्षा को परिवर्तन का आधार बनाकर, नर-नारी दोनों को ही साथ लेकर सुधार के प्रयत्न करने होंगे. केवल नारी या केवल नर न तो इसके लिये उत्तरदायी है और न ही सुधार किसी एक से संभव है. दोनों को अपने-अपने क्षेत्रों मे आगे बढकर काम करके नैतिक मूल्यों को मजबूत करना होगा.
जितना कड़वा सच यह है जो दिल को चीर जाता है ..उतना ही कड़वा सच रचनाजी की टिप्पणी में है.
ReplyDeleteशत प्रतिशत सच है कि बेटे को अच्छे संस्कार देने की ज़्यादा ज़रूरत है.. हालाँकि बेटी में आत्मविश्वास लाना भी उतना ही ज़रूरी है.
bahut accha likha hai
ReplyDelete