नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

October 30, 2010

इन्टरनेट ने सीमाए समाप्त कर दी हैं फिर क्यों लेखन मे इतनी संबंधो कि सीमाओ कि सुरक्षा चाहिये ।

ब्लॉग पर जो महिला लिख रही हैं वो सब किसी ना किसी संबोधन मे बंध कर ही सुरक्षित महसूस करती हैं ऐसा क्यूँ । ना जाने कितनी जगह मै देखती हूँ कि कोई किसी कि माँ समान हैं तो किसी कि बहिन समान हैं ।

सबसे पहला प्रश्न ये ही मन मे उठता हैं कि कोई किसी के समान कैसे हो सकता हैं । या तो वो आप का भाई हैं या वो बहिन ये समान कह कर क्या मतलब होता हैं ।
दूसरी बात ये बहुत अच्छी बात हैं कि आप कि सम्बन्ध बनाने मे रूचि हैं लेकिन क्या ये जरुरी हैं कि आप उन संबंधो का जिक्र अपने लेख और कमेन्ट मे भी करे । सम्बन्ध निज कि थाती होते हैं उनका प्रदर्शन कर के दुसरो को प्रभावित करना लेख को मजबूत नहीं कमजोर भी कर सकता हैं । आप कि निज कि ईमेल मे आप एक दूसरे को कैसे भी संबोधित करे , ऑरकुट , फेसबुक इत्यादि पर कितने सोशल नेट्वोर्किंग करे लेकिन ब्लॉग पर क्यूँ ??

ब्लॉग लेखन से जुड़े लोगो से सम्बन्ध हो , मित्रता हो , रिश्ते बनाए , हम एक दूसरे के लिये वक्त जरुरत खड़े हो सके , भाई बहिन के नातो मे बांध सके शायद इस से अच्छा कुछ हो नहीं सकता पर इस सबको हम अपने पोस्ट मे भो प्रदर्शित करे वो भी निरंतर !!?? कभी किसी सम्बन्ध ने हमे छुआ और हमने उसको ब्लॉग पर सहेज दिया तो वो अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता और हमारे स्नेह का प्रतीक हैं लेकिन लेकिन लेकिन !!!!

कल एक ब्लॉग पर एक पोस्ट मे आये कमेन्ट मे पढ़ा

हिंदी ब्लॉग्गिंग में अब तो कुछ दिनों से देखा गया है की रिश्तो की बहार आ गयी है. राखी (काल्पनिक ही सही) भेजी जाती है और मुहबोली बहनों को क्या चाहिए , केवल मनमाफिक कमेन्ट, चाहे वो कहानी किसी सस्ती पत्रिका जैसे मनोरम कहानिया , या मधुर कहानिया से कॉपी की गयी हो या प्रेरित हो . यहाँ ब्लॉग्गिंग कम सोशल नेट्वोर्किंग ज्यादा होती है .

ये समझते हैं लोग ब्लॉगर महिला को ये छवि बन रही हैं आपकी यहाँ ।

"जील" के ब्लॉग पर पढ़ा कि क्युकी वो महिला हैं इसलिये उसको कमेन्ट ज्यादा मिलते हैं
"मुक्ति" काफी दिन संताप मे रही क्युकी जो कल तक उनको दीदी कहता था ब्लॉग पर उनके लिखे को एक दिन अश्लील कह रहा हैं


माँ कि कोई उम्र और सीमा नहीं होती ये सच हैं पर क्या एक ५५ साल का ब्लॉगर एक ५४ साल कि ब्लॉगर को माँ समझ सकता हैं । कानून भी कहता हैं कि १८ वर्ष कि आयुन सीमा का अंतराल होना आवश्यक हैं विपरीत लिंग मे अगर आप किसी के बेटा या बेटी बने !!!!!!!!! और अगर आप को माँ कहने वाला किसी दूसरी ब्लॉगर का अपमान कर रहा हैं तो आप फिर उसको कुछ नहीं कह सकती क्युकी आप का बेटा कुछ गलत कर ही नहीं सकता । ये तो समाज मे पहले से ही व्याप्त सोच हैं । मेरा बेटा , मेरा पति , मेरा भाई कभी गलत हो ही नहीं सकते !!!!!!

इसके अलावा लेखन मे गोड फादर या गोड मदर कि परम्परा हिंदी साहित्यकारों मे बड़ी पुरानी हैं लेकिन ये ब्लोगिंग हैं और यहाँ साहित्यकार ही नहीं बहुत से अहिन्दी भाषी , विदेशी लोग भी हैं सो हिंदी साहित्य कि इस परम्परा को यहाँ थोपना गलत हैं । जो लोग साहित्यकार हैं या अपने को साहित्यकार समझते हैं और ब्लॉग का उपयोग उसके लिये करते हैं उनके ब्लॉग पर जो महज ब्लॉगर हैं वो शायद ही कमेन्ट करते हो क्युकी ब्लॉगर कि अक्ल मे साहित्य नहीं मुद्दे होते हैं ।

आप महिला हैं आप ब्लॉगर हैं सही हैं लेकिन अगर आप अपने संबंधो का प्रदर्शन यहाँ करती हैं तो आप खुद भी चोट खा सकती हैं क्युकी ये आभासी दुनिया हैं अपने को सुरक्षित कर के लिखने कि प्रक्रिया ही गलत लगती हैं क्युकी सुरक्षा सम्बन्ध से नहीं आत्म बल से मिलती हैं

जब ये ब्लॉग बनाया था तो "डॉ.कविता वाचक्नवी " से बात कि इस मंच जुडने के लिये तो उन्होने मुझे "बेटा " कह कर संबोधित किया और मैने उन्हे "मेम " चैट मे बात हुई और जब परिचय आगे बढ़ा तो पता लगा मै उम्र मे उनसे बड़ी हूँ । उन्होने फ़ौरन क्षमा मांगी पर जरुरी नहीं हैं कि जितने सदस्य इस ब्लॉग के हैं वो सब एक दूसरे कि उम्र जानते हो या जो ३२६ फोल्लोवेर हमको पढते हो वो सब हम मे माँ या बहिन खोज रहे हैं ।

इन्टरनेट ने सीमाए समाप्त कर दी हैं फिर क्यों लेखन मे इतनी संबंधो कि सीमाओ कि सुरक्षा चाहिये । सीता ने लक्ष्मण रेखा पर कि थी इसीलिये रावण उसे उठा ले गया था उस युग से हम काफी आगे आ चुके हैं ।

October 28, 2010

आप कहेगे नीशू भाग्यशाली हैं मै कहूंगी कि वो स्वयंसिद्धा हैं ।


आज मिलिये अमित और उनकी पत्नी नीशू से ।
अमित से मेरी मुलाकात ब्लॉग के जरिये ही हुई थी । हम एक दूसरे को २००६ से जानते हैं जब से मैने ब्लॉग लिखना शुरू किया । अमित कि कविताये अच्छी होती हैं हमेशा सो एक दूसरे से बात चीत होती रहती हैं गूगल चैट पर लेकिन आज तक हम मिले नहीं हैं ।
अमित एक मिडिल क्लास फॅमिली से हैं और इनफ़ोसिस मे बंगलौर मे कार्यरत था जब अमित कि शादी नीशू से हुई । अमित कि तनखा अमित एक हिसाब से कम और कम्पनी के हिसाब से ज्यादा !!!!!
नीशू भी एक मिडिल क्लास कि फॅमिली से जहां २ बेटे और १ बेटी हैं ।

शादी के एक साल के अन्दर ही अमित की पोस्टिंग मॉरिशस मे हो गयी और दोनों पति पत्नी के पास इतना भी समय नहीं था कि बंगलौर से मॉरिशस जा कर अपने अपने अभिभावकों से मिल ले । सामान पेक किया और मॉरिशस पहुच गए ।

अब शुरू हुआ नीशू कि नौकरी खोजने का सिलसिला । काफी खोजा पर मॉरिशस मे उसकी क़ाबलियत के हिसाब से{ ऍम बी ऐ मार्केटिंग एंड आई टी } नौकरी नहीं मिली सो उसने दूसरी जगह नौकरी खोजना शुरू किया और एक साल के भीतर ही अपने लिये दोहा मे नौकरी { ओपरेशन कोऔरदीनेटर } खोज ही ली । और हवाई जहाज पकड नीशू दोहा पहुची । अपने लिये मकान का इंतज़ाम किया और नौकरी शुरू कि ।

मैने अमित से पूछा तुमको कोई तकलीफ नहीं हुई उसका जवाब था "मेरी पत्नी बनने के अलावा भी नीशू के अपने कुछ सपने जरुर होगे जो उसको पूरे करने चाहिये । उस ने पढाई कि हैं , वो उस पढाई के जरिये अपनी जिंदगी मे अपने सपनो को साकार कर सकती हैं ।"
अमित ने कहा "मुझ कोई हक़ नहीं हैं कि मै किसी लड़की का करीयर महज इस लिये ख़तम कर दूँ कि वो मेरी पत्नी बन गयी । जो सपने उसने शादी से पहले देखे हैं वो महज इस लिये ना पूरे हो कि अब वो विवाहिता हैं एक जिन्दगी को व्यर्थ गवाने जैसा हैं । "
आगे अमित बोले " उस मे इतनी काबलियत हैं कि वो अपनी नौकरी खोज सके , अपने लिये दोहा मे मकान खोज सके और अकेली रह सके , मै तो ये सब देख कर ही हैरान होता हूँ । "

मेरे ये पूछने पर कि अब फॅमिली लाइफ का क्या ??? अमित का जवाब था "फॅमिली लाइफ से ज्यादा जरुरी हैं अपने सहचर कि ख़ुशी । जब नीशू को लगेगा कि फॅमिली बढ़ने कि जरुरत हैं तब हम उस दिशा मे सोचेगे । "

मेरे ये पूछने पर कि तुम्हारे परिवार वालो का नीशू के परिवार वालो का क्या कहना हैं
अमित का जवाब था " दोनों परिवार खुश नहीं हैं नीशू के दोहा जाने से । उनका मानना हैं कि अकेली लड़की कैसे रहेगी और दोनों परिवारों को हमारे बच्चे कि चाहत हैं और दोनों परिवार ये मानते हैं कि हम पैसा की अंधी दौड़ मे हैं "
"लेकिन सच ये हैं कि हम एक दूसरे कि ख़ुशी कि दौड़ मे हैं । हम नए रास्तो पर चल कर अपनी खुशियों को खोजना चाहते हैं । हम उसके परिणामो के लिये भी तैयार हैं । "

अमित से कभी भी बात करो तो नीशू कि काबलियत और स्वाबलंबन कि बात ना हो ये संभव नहीं हैं हाँ अमित ने एक बात कही कि नीशू कि इस सब काबलियत के पीछे उनके बाबा का हाथ हैं उन्होंने अपनी पोती को बहुत मजबूत बनाया और रही सही कमी भाईओं और पिता ने पूरी कर दी ।

मुझे अमित और नीशू कि लाइफ स्टोरी बहुत प्रेरणा दायक लगी और लगा नई पीढ़ी कि समझदारी पर प्रश्न चिन्ह लगाने वाले अगर उनको अपने रास्ते पर चलने दे तो वो ज्यादा खुश रहेगे ।

आप कहेगे नीशू भाग्यशाली हैं मै कहूंगी कि वो स्वयंसिद्धा हैं । एक घुटन भरी जिंदगी जीने से बेहतर विकल्प उसने चुन लिया ।

October 27, 2010

आस्था और पाखण्ड

आस्था और पाखण्ड मे अंतर समझना जरुरी हैं आस्था हमारी शक्ति हैं और पाखण्ड हमारी कमजोरी आत्मा , ईश्वर हैं या नहीं इस से क्या फरक पड़ेगा ?? फरक इससे पड़ेगा कि आप आत्मा और ईश्वर को आस्था मानते हैं या पाखण्ड

ब्लॉग पर पिछले कुछ दिनों से soul / आत्मा को ले कर कई पोस्ट आई हैं और हर पोस्ट पर अपने तर्क हैं पोस्ट मे भी और कमेन्ट मे भी क्युकी "शिक्षा" ने मजबूर किया हैं कुछ को अपनी "आस्था" को डिस्कस करने के लिए और कुछ को उनकी " शिक्षा " ने मजबूर किये हैं लोगो के " पाखण्ड " को डिस्कस करने के लिये

यानी शिक्षा वो लकीर हैं जो आस्था को पाखण्ड से अलग करती हैं
"राम" हिन्दू आस्था के प्रतीक हैं इस लिये "राम" शब्द से शक्ति मिलती हैं और नश्वर शरीर को लेजाते समय " राम नाम सत्य का उच्चारण " होता हैं
वही अगर हर पुरुष "राम" बन कर "सीता " का त्याग करे तो वो हिन्दू धर्म का पाखण्ड हैं आस्था नहीं

"वर्जिन मेरी " एक आस्था हैं क्युकी ईसा मसी की माँ का कांसेप्ट उनसे जुडा हैं लेकिन क्या एक वर्जिन माँ बन सकती हैं ?? हां आज के परिवेश मे ये संभव हैं क्युकी आज बिना पुरुष के सहवास के भी माँ बनना संभव हैं अब अगर कोई भी साइंटिस्ट इस बात को नकार सकता हैं तो कहे हो सकता हैं उस समय भी वो साइंस का ही चमत्कार हो लेकिन उसको आस्था से जोड़ दिया गया पर अगर हर वर्जिन ये सोचे की वो " ईसा मसी " पैदा कर रही हैं / सकती हैं तो पाखण्ड का बोल बाला होगा


बड़े से बड़ा वैज्ञानिक भी फैथ / आस्था रखता हैं कभी भी जब नासा का लौंच होता हैं तो आप को सीधे प्रसारण मे लोग किसी दैविक शक्ति को याद करते दिखते हैं साइंस अपने आप मे एक फैथ हैं की हम को विश्वास हैं की हम ये खोज कर रहेगे हर वैज्ञानिक QED कह कर अपने विश्वास को पूर्ण करता हैं

एक किताब मे पढ़ा था की आत्मा दो हिस्सों मे होती हैं और जिस दिन दोनों हिस्से मिल जाते हैं उस दिन आप को आप का सोलमेट मिल जाता हैं सोलमेट यानी आप की अपनी छाया उसी किताब मे लिखा हैं की दो लोग जब विवाह मे बंधते हैं तो वो दो लोग बंधते हैं जिन्होने पिछले जनम मे एक दूसरे का बहुत नुक्सान किया था और उनमे आपस मे बहुत नफरत थी इस जनम मे विवाह मे बांध कर वो उस नफरत को ख़तम करते हैं

दूसरी किताब मे पढ़ा था की आत्मा अपने लिए खुद शरीर का चुनाव करती हैं वो ऐसी कोख चुनती हैं जहां वो सुरक्षित रहे यानी आपके बच्चे आप को चुनते हैं {वैसे ज्यादा देखा गया हैं बच्चे कहते हैं हमे क्यूँ पैदा किया }

नारी आधारित विषयों पर अच्छे अच्छे वैज्ञानिक जब हिंदी मे ब्लॉग पर लिखते हैं तो यही कहते हैं नारी को बनाया ही प्रजनन के लिये हैं मुझे इस से बड़ा पाखंड कुछ नहीं लगता

वही जब हिन्दुत्वादी होने की बात होती हैं तो एक दो ब्लॉगर का नाम लिया जाता हैं जबकि शायद ही कोई ऐसा ब्लॉगर होगा जो अगर हिन्दू हो कर अपनी पुत्र आया पुत्री के विवाह के लिये मुस्लिम वर आया वधु खोजे या ये कह कर जाए की मेरे मरने के बाद राम नाम सत्य ना कहना क्युकी मेरी आस्था नहीं हैं ये सब पाखण्ड हैं


वैसे आप कुछ भी कह कर जाए मरने के बाद आप के शरीर का क्या होगा ये जिनके हाथ वो पड़ेगा वही उसकी गति करेगे
आस्था - पाखण्ड
मृत्यु के बाद हिन्दू रीति से संस्कार ---- आस्था
मृत्यु के बाद हिन्दू रीति से संस्कार यानी ब्राह्मणों को भोजन वस्त्र रुपया पैसा -- पाखण्ड

ईश्वर कि शक्ति पर विश्वास --- आस्था
होनी - अनहोनी को टालने के लिये ब्राह्मणों को भोजन वस्त्र रुपया इत्यादि , हवन --- पाखण्ड

आत्मा का होना --- आस्था
आत्मा के होने के प्रमाण के लिये पास्ट लाइफ मे जाना -- पाखण्ड

पुनर्जनम मे विश्वास --- आस्था
अपने निकटतम का पुनर्जनम सुन कर दौड़ना -- पाखण्ड

पूजा , पाठ मे विश्वास - आस्था
पूजा पाठ के लिये हर मंदिर मे चढावा चढ़ाना ---- पाखण्ड

साधू संतो कि सेवा -- आस्था
होनी अनहोनी को जानने के लिये साधू संतो को दान -- पाखण्ड

व्रत उपवास --- आस्था
व्रत उपवास से पति का जीवन, पुत्र का जीवन बढ़ता हैं -- पाखण्ड


बहुत से लोग ये मानते हैं कि हिन्दू धर्मं मे पाखण्ड हैं और वो निरतर हिन्दू धर्मं के विरोध मे प्रचार करते हैं जबकि हर धर्म मे पाखण्ड हैं क्युकी धर्म के नाम पर रोटी सकने वाले अगर पाखंड का प्रचार नहीं करेगे तो रोटी कहा से खायेगेवही आस्था के विरुद्ध अगर वैज्ञानिक लिखते हैं जबकि लिखना ढोंग और पाखण्ड के विरुद्ध चाहिये

किसी भी मान्यता को इस लिये ढोते रहना क्युकी हम से पहले सब कर रहे थे तो मात्र लकीर पीटना होता हैं अगर आप का विश्वास हैं तो वो मान्यता आपकी आस्था हैं और अगर नहीं हैं तो आप एक पाखंड को निभा रहे हैं ताकि दुनिया मे आप कि जो छवि हैं वो अच्छी रहे

इसके अलावा जो लोग ये मानते हैं कि नारी ज्यादा पाखंड मे विश्वास रखती है वो समाज कि रुढिवादिता को दोष दे तो बेहतर होगा

October 26, 2010

पता नहीं ये क्यूँ लिखा हैं ? पर लिखा हैं क्यूंकि मन मे था

  1. आज करवा चौथ हैंहर सुहागन आज के दिन व्रत रखती हैं और कहा जाता हैं की ये व्रत वो पति की लम्बी आयू केलिये रखती हैं लेकिन क्या ये सच हैंशायद नहीं सच तो ये हैं की क्युकी नारियों से सजने और सवारने का अधिकार , रंग बिरंगे कपडे पहने का अधिकार पति की मृत्यु के उपरान्त छीन लिया जाता हैं इस लिये वो पति की लम्बी आयू की कामना करती हैंअगर आप ध्यान से देखेगे तो जिन प्रदेशो मे नारियां साधरण पोशाको मे रहती हैं जैसे पहाड़ीइलाके वहाँ करवा चौथ का प्रचलन नहीं हैं वही पंजाब और उत्तर प्रदेश मे नारियों को गहनों और तमाम ताम झाम सेलदे फंदे देखा जाता हैं ।कहीं ना कहीं अपने को"sellfish intrest "के तहत नारियां ऐसा करती हैं ताकि सजने सवारने का अधिकार बना रहे .
  2. वो नारियां जो पढ़ी लिखी होने के बावजूद नौकरी नहीं कर पाती हैं वो बार बार समाज को याद दिलाती हैं की उन्होने कितनी बड़ी "कुर्बानी " दी हैं जबकि ये कोई क़ुरबानी हैं ही नहीं । वो खुद कमजोर होती हैं और शादी और नौकरी मे से एक ही काम कर सकती हैं , इसके अलावा वो सबकी अच्छी बनी रहना चाहती हैं । अपने पति को वो बार बार याद दिला देती हैं की वो उसकी वजह से नौकरी नहीं कर पायी । इस की वजह से वो जो कुछ भी करती हैं पति को सर झुका कर मान लेना चाहिये और उनके आगे नत मस्तक भी रहना चाहिये क्युकी "क़ुरबानी " देने की वजह से वो माननिये और स्तुत्य हो गयी हैं यानीएक देवी ।कहीं ना कहीं अपने को"sellfish intrest "के तहत नारियां ऐसा करती हैं ताकि वो पूजी जाये

October 23, 2010

दीपावली पर एक मुहीम चलाये - भेट स्वदेशी दे

दिवाली आ रही हैं और एक दूसरे के घर भेट भी ले जाई जाती हैं । मिठाई का प्रचलन कम हो रहा हैं और जिस प्रकार से मिठाई मे मिलावट आ रही हैं तो घर की बनी मिठाई ही एक मात्र आसरा हैं !!!!

आप से आग्रह हैं की हो सके इस दिवाली उन जगहों से समान ले जहाँ हमारे अपने लोगो की बनायी वस्तुए मिलती हैं । मै आज खादी ग्राम शिल्प से बहुत सा समान लाई । नैचुरल चीजों के फैशन को देखते हुए वहाँ तरह तरह के शैंपू , साबुन और सौन्दर्य प्रसाधन जो बहुत कम पैसे के हैं । एक नैचुरल साबुन की टिक्की महज ४० रुपए की हैं जो माल मे २०० रुपए की मिलती हैं क्युकी वो ईजिप्ट या ग्रीस से इंपोर्ट की होती हैं । गिफ्ट पेक भी मिल रहे हैं ।

महिला के लिये साड़ियाँ और सूट हैं जिनके दाम बहुत कम हैं और अब डिजाईन बहुत खुबसूरत हैं । पुरुषों के लिये कोटन की शर्ट केवल ३२५ र मात्र मे हैं और उस पर भी २० % का डिस्काउंट दे रहे हैं ।

अगर आप अपनी कोटेज इंडस्ट्री को बढावा दे तो यहाँ लोगो को कुछ काम ज्यादा मिलेगा । खरीदेगे तो आप हैं ही सो क्यूँ ना ऐसी जगह से खरीदे जहाँ अपने देश की वस्तु मिल रही हैं । इस रिसेशन के दौर मे अपने घर के लोगो को काम मिले यही ख्याल हैं मन मे इस पोस्ट को लिखते समय ।

आप जब भी प्रगति मैदान जाये और वहाँ सरस का पवेलियन देखे तो अन्दर जरुर जाये और कुछ जरुर ले । इस इंडस्ट्री को आप के प्रमोशन की जरुरत हैं । अगर ४० रुपए मे काम हो सकता हैं तो ४०० क्यूँ खर्च किये जाये

सरस और खादी , दोनों जगह स्कर्ट और टॉप भी बहुत ही बढिया मिल रहे हैं और आज की जनरेशन के लिये बहुत सुंदर हैं । कोई भी पहनावा बुरा नहीं होता । पहनावा बस आप पर जंचना चाहिये और आप को उसको पहन कर सुकून मिलना चाहिये । भाषा और पहनावा कोई भी हो पर मन मे अपने देश , अपने संस्कारो के प्रति आस्था होनी चाहिये और जहाँ तक सम्भव हो हर स्वदेशी वस्तु को ही खरीदना चाहिये ताकि अपने लोगो को काम मिले ।

देश मे अमन चैन रहे और हम अपने देश के लिये मरने के लिये तैयार रहे क्युकी देश से बड़ा कुछ नहीं होता ।

हर दिवाली एक दीपक ऐसा जलाए जिस मे अपने अंदर की हर बुराई की बाती बनाये और उसको जलाए । उस दिये मे तैल को अपनी कमजोरियां माने ताकि आप की बुराइयां और कमजोरियां दोनों स्वत ही ख़तम हो जाए

शुभ दीपावली
वंदे मातरम
जय हिंद

October 21, 2010

इस लिंक पर जरुर जाए

"अब चुप रहना कायरता मानी जाती है,
क्रोधित स्वर की शक्ति पहचानी जाती है।"
इस लिंक पर जरुर जाए

October 17, 2010

समझौते से मौत तक !

दहेज़ हत्याओं पर अभी अंकुश नहीं लगा है और ही लगेगा जब तक कि दहेज़ देने और लेने वाले इस समाज का हिस्सा बने रहेंगे. फिर जब देने वाले को अपनी बेटी से अधिक घर और प्रतिष्ठा अधिक प्यारी होती है और समाज में अपनी वाहवाही से उनका सीना चौड़ा हो जाता है तो फिर क्यों आंसूं बहायें? उसके ससुराल वाले बारात लाये थे उसमें बढ़िया बैंड और आतिशबाजी भी थी. साड़ी और जेवर भी ढेर सा लेकर आये थे कि लोग देख कर वाह वाह करने लगे.
आज उसको शादी के सात साल बाद बिल्कुल ही ख़त्म कर दिया गया.फिर मैके वालों को खबर दी कि आपकी बेटी ने फाँसी लगा ली. माँ बाप जब पहुंचे तो उसका शव जमीन पर पड़ा था. गले में रस्सी के निशान थे और उसका सारा शरीर नीला पड़ा हुआ था. उसके पिता ने रोते हुए बताया कि हमने अपनी सामर्थ्य के अनुसार शादी में खूब दहेज़ दिया था और तब ये लोग संतुष्ट भी थे लेकिन उसके बाद फिर उनकी मांगें बढ़ने लगी, जब तक रहा तो पूरा किया उसके बाद दो साल पहले बेटी माँ के घर पहुँच गयी कि वहाँ रही तो वे लोग जान से मार देंगे. उसके पास एक साल का बेटा भी था.रिश्तेदारों ने समझौता करा दिया और उन्होंने बेटी को वापस ससुराल भेज दिया. समाज में लोग अंगुली उठाने लगे थे. उसके बाद भी उसको सताया जाता रहा और आज उसकी हदें पार कर दीं. साल का बेटा माँ को हिला हिला कर जगा रहा था और उसके नाना फूट फूट कर रो पड़े बेटा अब तेरी माँ कभी नहीं उठेगी.
दहेज़ के विवाद को समझौते या किसी तरह से खुद को बेच कर लड़के वालों की मांग पूरी करने की हमारी आदत ही हमारी बेटियों के हत्या का कारण बनता है. जहाँ बेटी सताई जाती है, वहाँ के लोगों की मानसिकता जानने की कोई और कसौटी चाहिए? अगर नहीं तो समझौतों की बुनियाद कब तक उसकी जिन्दगी बच सकती है? इनके मुँह खून लग जाता है वे हत्यारे पैसे से नहीं तो जान से ही शांत कर पाते हैं. ऐसे लोग विश्वसनीय कभी नहीं हो सकते हैं. इसमें मैं किसी और को दोष क्यों दूं? इसके लिए खुद माँ बाप ही जिम्मेदार है , जिन्होंने अपनी सामर्थ्य से अधिक दहेज़ माँगने वालों के घर में रिश्ता किया. उसे अपने पैरों पर खड़ा होने दीजिये. अब मूल्य और मान्यताएं बदल रहीं है. बेटी किसी पर बोझ नहीं है वह अपना खर्च खुद उठा सकती है. दुबारा उस घर में मत भेजिए कि उसके जीवन का ही अंत हो जाये.
सबसे पहले माँ बाप का यही तर्क होता है कि अगर बेटी की शादी नहीं हुई तो समाज उन्हें जीने नहीं देगा. आप किस समाज की बात कर रहे हैं. वह हमसे ही बना है . आपकी बेटी मार दी गयी क्या समाज आपको आपकी बेटी वापस लाकर दे सकता है ? अगर नहीं तो हम उस समाज की परवाह क्यों करें? जब आपकी बेटी ससुराल में कष्ट भोग रही थी और रो रो कर अपनी दास्तान आपसे बताती थी तो क्या इस समाज ने आपसे कहा था कि उसको वापस मरने के लिए भेज दें.? बेटी हमारी है और उसका जीवन उसका अपना है - हमारा हक है कि हम उसको एक अच्छा जीवन दें, कि दहेज़ के हवन कुण्ड में उसकी आहुति दे दें. बेटी अविवाहित रहेगी कोई बात नहीं, अपना जीवन तो जियेगी और फिर ऐसा नहीं कि सारे लोग दहेज़ लोलुप ही होते हैं . आप योग्य वर देखें चाहे वह आर्थिक रूप से सुदृढ़ हो, अपने जीवन में सुख शांति से जी सके उसको स्वीकार कर लीजिये. बड़े घर के लालच में आकर अपनी बेटी खोएं.
संकल्प करें की दहेज़ लोलुप परिवार में बेटी नहीं देंगे उसको सक्षम बना देंगे और उसको आहुति नहीं बनने देंगे.

नारी ब्लॉग के सदस्य ध्यान दे

नारी ब्लॉग कि सदस्यों से आग्रह हैं कि आप सब अपने प्रोफाइल में नारी ब्लॉग को दिखाये जाने वाले ब्लॉग मे रखे । बहुत से सदस्य नारी ब्लॉग से जुड़े हैं पर उनके प्रोफाइल पर ये ब्लॉग नहीं दीखता हैं ।
बहुत से सदस्यों ने एक साल से कोई पोस्ट भी नहीं दी हैं ।
जिन सदस्यों को लगता हैं वो गलती से यहाँ जुड़ गए हैं कृपया सूचित करे ताकि आप का नाम हटाया जा सके ।
अगर सदस्य पोस्ट और कमेन्ट ही नहीं देगे तो उनकी सदस्य होने का कोई मकसद ही लगता हैं

सभी पाठको को और सदस्यों को विजयदशमी की बधाई
नारी ब्लॉग का नया आवरण कैसा लगा बताये

सादर
रचना
नारी ब्लॉग मोडरेटर

October 16, 2010

नारी अर्थात शक्ति (अबला नहीं सबला )

                  पता नहीं कब और कैसे नारी को अबला कहा और  माना जाने लगा. वह भी उस देश में जहाँ  माँ दुर्गा की पूजा की जाती है. माँ दुर्गा - साक्षात् शक्ति का प्रतीक. असंख्य राक्षसों का संहार करने वाली माता दुर्गा सवारी भी करती हैं  तो शेर की जो अपने आप में बल और शक्ति की एक मिसाल है. शेर जंगल का राजा है .ऐसे बलशाली और साहसी प्राणी की सवारी कोई बलशाली  और अदम्य साहसी व्यक्ति ही कर सकता है. माँ दुर्गा एक नारी है और शेर की सवारी करती हैं, अत: नारी को अबला मानाने की धारणा ग़लत है.
               अपने बल ,बुद्धि और पराक्रम से माँ भगवती ने अनेकानेक दानवों का विनाश किया. अकेले ही विभिन्न  रूप धारण कर उन पर विजय प्राप्त की. यह उनका आत्मबल ही था, आत्म विश्वास ही था, जो निरंतर उनका सहायक बना.  नौ दिन तक लगातार महिषासुर से युद्ध करके उस पर जीत हासिल करने वाली, दृढ़ इछाशक्ति और आत्मबल से युक्त माता की बेटियां अबला कैसे हो सकती हैं ?  माँ के गुण तो बच्चे  में स्वभाव से  ही आ जाते हैं. पर कभी-कभी परिस्थितियाँ इन गुणों को उभरने नहीं देती. पर हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि मन में दृढ़ इच्छा हो, स्वयं पर विश्वास हो तो हर काम संभव हो जाता है.
              अत: माँ दुर्गा की बेटियों  को , भारत की नारियों को  अब स्वयं को हीन और क्षीण नहीं मानना है. उन्हें यह जानना है कि वे भी माँ दुर्गा की, माँ काली की शक्तियों को स्वयं में धारण किये हुए हैं. आवश्यकता है तो  मात्र  इन शक्तियों को पुन: स्थापित करने की है . अपने आप को पहचानने की है.
 

October 14, 2010

छेड़छाड़ की समस्या : समाधान के कुछ सुझाव ( 2.)

"मुक्ति " कि पोस्ट छेड़छाड़ की समस्या : समाधान के कुछ सुझाव ( 2.)किसी वजह से सही समय पर चिटठा जगत पर नहीं दिखने के कारण पढने से रह गयी हैं । कृपा कर पढ़ कर अपनी राय यहाँ व्यक्त करे

आप कि राय

October 13, 2010

छेड़छाड़ की समस्या : समाधान के कुछ सुझाव ( 2.)

हम प्रायः इस ग़लतफ़हमी में रहते हैं कि हमारे घर-परिवार के पुरुष सदस्य छेड़छाड़ कर ही नहीं सकते और जब ऐसा हो जाता है, तो हम या फिर आश्चर्य करते हैं या उनके अपराध को छिपाने की कोशिश. ऐसा बहुत से केसों में देखने को मिला है कि अपराधी के घर वाले उल्टा पीड़ित पर ही आरोप लगाने लगते हैं.

अभी कुछ दिनों पहले का चर्चित केस है. पूर्वी यू.पी. के एक लड़के ने गोवा में एक नौवर्षीय रूसी लड़की के साथ यौन-दुर्व्यवहार किया. जब पुलिस लड़के के घर पूछताछ करने पहुँची, तो उसके घर वाले आश्चर्य में पड़ गये. उसकी बूढ़ी माँ ने कहा,"पता नहीं ऐसा कैसे हुआ? लड़का तो ऐसा नहीं था. हमने तो देखा नहीं. पता नहीं सच क्या है?" अब इसमें ग़लती इस माँ की नहीं है. उसने तो अपने बेटे को ये सब सिखाया नहीं.

कोई भी अपने बेटों को ग़लत शिक्षा नहीं देता, पर अगर कुछ बातों का ध्यान रखा जाये, तो ऐसी दुर्घटना से बचा जा सकता है. मेरा ये कहना बिल्कुल नहीं है कि हम अपने घर के पुरुष सदस्यों को शक की निगाह से देखें और उनकी हर गतिविधि पर नज़र रखें. ऐसा करना न व्यावहारिक होगा और न ही उचित. और परिवार की शान्ति भंग होगी सो अलग से. पर विशेषकर किशोरावस्था के लड़कों के पालन-पोषण में सावधानी बहुत ज़रूरी है. मैं अपने अनुभवों और अध्ययन के आधार पर कुछ सुझाव दे रही हूँ, शेष...जो भी लोग इस मुद्दे को लेकर संवेदनशील हैं और कुछ सुझाव देना चाहते हैं, वे दे सकते हैं---
---अपने बेटों को बचपन से ही नारी का सम्मान करना सिखायें, इसलिये नहीं कि वह नारी होने के कारण पूज्य है, बल्कि इसलिये कि वह एक इन्सान है और उसे पूरी गरिमा के साथ जीने का हक़ है.
---उन्हें यह बतायें कि उनकी बहन का भी परिवार में वही स्थान है, जो उनका है, न उससे ऊँचा और न नीचा.
---उसे अपनी बहन का बॉडीगार्ड न बनायें. ऐसा करने पर लड़के अपने को श्रेष्ठतर समझने लगते हैं.
---अपने किशोरवय बेटे की गतिविधियों पर ध्यान दें, परन्तु अनावश्यक टोकाटाकी न करें.
---उन्हें उनकी महिलामित्रों को लेकर कभी भी चिढ़ायें नहीं, एक स्वस्थ मित्रता का अधिकार सभी को है.
---किशोरावस्था के लड़कों को यौनशिक्षा देना बहुत ज़रूरी है. मेरे ख्याल से परिवार इसके लिये बेहतर जगह होती है. यह कार्य उनके बड़े भाई या पिता कर सकते हैं. इसके लिये घर का माहौल कम से कम इतना खुला होना चाहिये कि लड़का अपनी समस्याएँ पिता को बता सके. ( यहाँ मैं यौनशिक्षा पर विचार उतने विस्तार से नहीं रख रही क्योंकि इस विषय में मैं खुशदीप भाई की पोस्ट से शत-प्रतिशत सहमत हूँ)

छेड़छाड़ की समस्या के कारणों और समाधान के पड़ताल की यह समापन किस्त है. मैं दिनोदिन औरतों के साथ बढ़ रहे यौन शोषण और बलात्कार के मामलों से बहुत चिन्तित हूँ. मुझे ये नहीं लगता कि ये सब कुछलोगों की कुत्सित मानसिकता या औरतों के पहनावे का परिणाम है. इस तरह के विश्लेषण ऐसी गम्भीर समस्या को उथला और समाधान को असंभव बना देते हैं. यौन शोषण की समस्या की जड़ें हमारी सामाजिक संरचना में कहीं गहरे निहित हैं. वर्तमान काल की परिवर्तित होती परिस्थितियाँ, सांस्कृतिक संक्रमण, विभिन्न वर्गों के बीच बढ़ता अन्तराल आदि इस समस्या को और जटिल बना देते हैं. इस समस्या के कारण और समाधान खोजने के लिये समाज में एक लम्बी बहस चलाने की आवश्यकता है.

October 12, 2010

ऐसा क्यों ?

कुछ दिनों पहले संयोग से मेरी मुलाकात एक पूर्व सहपाठी  से हो गयी .. जो मेरे ही शहर में नए नए स्थानांतरित हो कर आये थे .. एक दूसरे से मिल कर बहुत अच्छा लगा , कुछ पुरानी यादें ताज़ा हुई , कुछ पुराने दिनों की , कुछ स्कूल -कॉलेज की बाते हुई .. फिर बात आई अन्य सहपाठियों की ...मैंने हमारे  ३-४  सहपाठियों के बारे में पूछा , तो उसने सभी के बारे में बताया ..कि कोई आजकल दिल्ली में है , तो कोई भोपाल में इस पद पर है ... सभी के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा .. पर जब उसने मेरी अन्य सहेलियों के बारे में पूछा तो मुझे उनके बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी .. बस इतना पता था कि फलां की शादी यहाँ हुई .. उसकी शादी वहा हुई , एकाध बार फोन और चिठ्ठी से संपर्क हुआ ,पर बाद में कोई संपर्क नहीं था ..

 एक चीज़ ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया  कि सभी लड़के लगातार एक दूसरे के संपर्क में थे , चाहे वे किसी भी शहर में या कितने ही दूर क्यों न हो . पर हम  लड़कियों का आपस में कोई संपर्क नहीं था ... क्या कारण है की पुरुषों की दोस्ती लगातार बरक़रार रहती है , किन्तु नारी की दोस्ती शादी के बाद मुश्किल से ही बरक़रार रह पाती है .. क्या कारण है कि शादी के बाद भी पुरुषों के वजूद में उतना अंतर नहीं आता , जितना एक नारी की शख्सियत शादी के बाद पूरी तरह से बदल जाती है ..मैंने बहुत लोगों से इसका कारण जानने की कोशिश की ..कई लोगो का कहना है कि शादी के बाद नारी पर इतनी जिम्मेदारिया आ जाती है कि वह अपनी दोस्ती चाहते  हुएभी नहीं निभा पाती .. तो कुछ का कहना था कि स्थान परिवर्तन के कारण ऐसा हो जाता है . पर ये दोनों बातें तो पुरुषों के साथ भी लागू है ... आपके इस बारे में क्या विचार है .. जरूर अवगत कराये ....

छेड़छाड़ की समस्या: समाधान के कुछ सुझाव (1.)

पिछली पोस्ट में मैंने छेड़छाड़ के कारणों को ढूढ़ने का प्रयास किया था. इस बार मैं कुछ समाधान सुझाने की कोशिश कर रही हूँ. इसके पहले मैं स्पष्ट कर दूँ कि छेड़छाड़ से मेरा मतलब उस घटिया हरकत से है, जिसे यौन-शोषण की श्रेणी में रखा जाता है. यह वो हल्की-फुल्की छींटाकशी नहीं है, जो विपरीतलिंगियों में स्वाभाविक है, क्योंकि वह कोई समस्या नहीं है. कोई भी इस प्रकार की हरकत समस्या तब बनती है, जब वह समाज के किसी एक वर्ग को कष्ट या हानि पहुँचाने लगती है.
समस्या यह है कि हम यौनशोषण को तो बलात्कार से तात्पर्यित करने लगते हैं और छेड़छाड़ को हल्की-फुल्की छींटाकशी समझ लेते हैं, जबकि छेड़छाड़ की समस्या भी यौन-शोषण की श्रेणी में आती है. मैं अपनी बात थोड़ी शिष्टता से कहने के लिये छेड़छाड़ शब्द का प्रयोग कर रही हूँ. किसी को अश्लील फब्तियाँ कसना, अश्लील इशारे करना, छूने की कोशिश करना आदि इसके अन्तर्गत आते हैं. लिस्ट तो बहुत लम्बी है. पर यहाँ चर्चा का विषय दूसरा है. मेरा कहना है कि ये हरकतें भी गम्भीर होती हैं. यदि इन्हें रोका नहीं जाता, तो यही बलात्कार में भी परिणत हो सकती हैं.
पिछली पोस्ट में छेड़छाड़ की समस्या के कारणों को खोजने के पीछे मेरा उद्देश्य था, इसे जैविक निर्धारणवाद के सिद्धान्त से अलग करना, क्योंकि जैविक निर्धारणवाद किसी भी समस्या के समाधान की संभावनाओं को सीमित कर देता है. मेरा कहना था कि यह समस्या जैविक और मनोवैज्ञानिक से कहीं अधिक सामाजिक है. समाजीकरण की प्रक्रिया में हम जाने-अनजाने ही लड़कों में ऐसी बातों को बढ़ावा दे देते हैं कि वे छेड़छाड़ को स्वाभाविक समझने लगते हैं. इसी प्रकार हम लड़कियों को इतना दब्बू बना देते हैं कि वे इन हरकतों का विरोध करने के बजाय डरती हैं और शर्मिन्दा होती हैं. चूँकि इस समस्या के मूल में समाजीकरण की प्रक्रिया है, अतः इसका समाधान भी उसी में ढूँढ़ा जा सकता है. वैसे तो सरकारी स्तर पर अनेक कानून और सामाजिक और नैतिक दबाव इसके समाधान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, पर इसे रोकने का सबसे अच्छा और प्राथमिक उपाय अपने बच्चों के पालन-पोषण में सावधानी बरतना है. भले ही यह एक दीर्घकालीन समाधान है, पर कालान्तर में इससे एक अच्छी पीढ़ी तैयार हो सकती है.
मैं यहाँ लड़कियों के प्रति रखी जाने वाली सावधानियों की चर्चा कर रही हूँ, जिससे उन्हें ऐसी हरकतों से बचाया जा सके-
-लड़कियों में आत्मविश्वास जगायें. घर का माहौल इतना खुला हो कि वे अपने साथ हुई किसी भी ऐसी घटना के बारे में बेहिचक बता सकें.
-लड़की के साथ ऐसी कोई घटना होने पर उसे कभी दोष न दें, नहीं तो वह अगली बार आपको बताने में हिचकेगी और जाने-अनजाने बड़ी दुर्घटना का शिकार हो सकती है.
-लड़कियों को आत्मरक्षा की ट्रेनिंग ज़रूर दिलवाएँ. इससे उनमें आत्मविश्वास जगेगा और वो किसी दुर्घटना के समय घबराने के स्थान पर साहस से काम लेंगी.
-लड़कियों को कुछ बातें समझाये. जैसे कि-
-वे रात में आने-जाने के लिये सुनसान रास्ते के बजाय भीड़भाड़ वाला रास्ता चुनें.
-भरसक किसी दोस्त के साथ ही जायें, अकेले नहीं.
-किसी दोस्त पर आँख मूंदकर भरोसा न करें.
-अपने मोबाइल फोन में फ़ास्ट डायलिंग सुविधा का उपयोग करें और सबसे पहले घर का नम्बर रखें.
ऐसी एक दो नहीं अनेक बातें हैं. पर सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात बेटियों को आत्मविश्वासी बनाना है और अति आत्मविश्वास से बचाना है. उपर्युक्त बातें एक साथ न बताने लग जायें, नहीं तो वो या तो चिढ़ जायेगी या डर जायेगी. आप अपनी ओर से भी कुछ सुझाव दे सकते हैं. अगली कड़ी में मैं लड़कों के पालन-पोषण में ध्यान रखने वाली बातों की चर्चा करूँगी.

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