नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

September 30, 2010

क्यूँ

अगर कोई पुरुष समाज विरोधी लिखता हैं तो वो जागरूक कहलाता हैं और स्त्री लिखती हैं तो विरोधी क्यूँ ???

September 29, 2010

क्या ये सही हैं

क्या ये सही हैं अगर बेटी के माता पिता पैसे वाले हैं तो

वो अपनी शारीरिक रूप से अक्षम या
दिमागी रूप से अक्षम या
कम लम्बाई वाली या
किसी बीमारी से ग्रस्त या
कोई ऐसी लड़की जो पैसे के मद मे चूर हो और कोई भी काम यहाँ तक की घर का काम करना भी ना जानती हो या सामान्य स्तर मे वो कुरूप कही जाती हो ,

उसका विवाह पैसे के दम पर किसी गरीब से कर दे ???

हमारे समाज मे सदियों से ऐसा होता रहा हैं दहेज़ के नाम पर गरीब लडको को ख़रीदा जाता हैं सामाजिक सुरक्षा के नाम पर लड़कियों का विवाह करना जरुरी माना जाता हैं और इसके लिये लड़का अपने से नीचे स्तर का खोजा जाता हैं
नीचा स्तर यानी गरीब ,
कम पैसे वाला ,
कम पढ़ा लिखा


क्या ऐसे लोगो का दाम्पत्य जीवन सुखी रहता हैं ? क्या वो वास्तविक रूप से एक दूसरे के जीवन साथी बन पाते हैं ? क्या ये गरीब लडको का शोषण नहीं हैं ?? अगर हैं तो क्यूँ इस तरह के विवाह को हमारा समाज सदियों से मान्यता देता रहा हैं ??

आज भी ऐसे विवाह हो रहे हैं कब इन पर अंकुश लगेगा या कभी नहीं लगेगा ??
क्या पैसे वाले हमेशा कम पैसे वालो का शोषण करते रहेगे ??

एक प्रश्न लडके इस प्रकार के विवाह क्यूँ करते हैं ???


September 27, 2010

कंपनी का नाम माइक्रोमेक्स मोबाइल का नाम क्यूब , विज्ञापन हटवाने में सहयोग करे




अपने सैनिक तो ये हैं नहीं लेकिन हम अपने सैनिको के प्रति कितने निर्मम हैं ये विज्ञापन इस बात का प्रतीक हैं । असंवेदनशीलता की हर सीमा को तोड़ता हैं ये विज्ञापन । वो सैनिक जो हमारी सुरक्षा मे पहरा देते हैं उनके प्रति इस प्रकार का रवाया रखना एक बेहद गिरी हुई सोच हैं ।

इस लिंक पर जा कर अपना आक्रोश व्यक्त करे और इस विज्ञापन को शीघ्र बंद करवाने की कोशिश मे अपना योगदान दे ।

मै ऐसे हर विज्ञापन की भर्त्सना करती हूँ जिस मे देश के गौरव को एक बफून बनाया गया हैं । आप के सहयोग की प्रतीक्षा हैं ।

इस पोस्ट को जितने लोगो को पढवा सके और उनसे ऊपर दिये लिंक पर मेल करवा सके तो अच्छा होगा

कंपनी का नाम माइक्रोमेक्स
मोबाइल का नाम क्यूब हैं


Please go on this link
to get the advertisement off air .
company name micromax
model Qube

September 23, 2010

नारी पहचान पहेली

इस चित्र को देखिये और बताइये क्या आप इन्हे पहचानते हैं ?

आशा हैं सब जवाब एक दम सही होगे । इतनी आसान जो हैं ये पहेली । हां केवल नाम देने मात्र से काम नहीं चलेगा । कुछ विस्तार से लिखियेगा ।



September 19, 2010

Best Among Equals दिव्या


दिव्या अजीत कुमार ने इतिहास रच दिया हैं वो बन गयी हैं पहली महिला कैडेट जिसको सोर्ड ऑफ़ ओनर दिया गया हैं ।
शनिवार को यहां 21 वर्षीय दिव्या को ऑफीसर्स ट्रेनिंग एकेडमी (ओटीए) की पासिंग आउट परेड में थल सेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह ने सॉर्ड ऑफ ऑनर प्रदान किया ।

इस चित्र मे आप दिव्या को उनके माता पिता के साथ देख सकते हैं ।

Talking on the sidelines of the Pipping Ceremony, when asked about Divya’s bagging of the rare honour, Gen Singh said the Army never looked at the gender and only valued a person’s merit irrespective of the gender. “It is not a question of man or woman. It is a question of merit. It shows how the system works and we don’t look at the gender and look at how good a person is and that is what has happened today,” he said.

यानी अब आर्मी मे भी जेंडर बायस से ऊपर उठ कर स्त्री पुरुष को उनकी क्षमता के हिसाब से काम और पुरस्कार देने की बात पर जोर दिया जा रहा हैं हैं ।

इसे ही कहते हैं the indian woman has arrived

दिव्या को बधाई और असंख्य दिव्या इस देश के नाम रोशन करे यही कामना हैं

September 11, 2010

ईश्वर और अल्लाह की साजिश , हिन्दू मुसलमान के खिलाफ



आज सुबह ईमेल से एक विज्ञापन मिला जिस मे हाई टैक गणेश जी थे बरबस मुस्कान आगई सो आप भी मुस्कुराईये

वैसे अब समय ही बदल गया हैं । ईश्वर और अल्लाह एक ही दिन छुट्टी करवाने लगे हैं । साजिश कर हैं दोनों हिन्दू और मुसलमान के खिलाफ !!!! क्यूँ हैं ना । आम आदमी खुश हैं जो हिन्दू और मुसलमान से ज्यादा इंसान हैं क्युकी मोदक और सेवियां एक ही दिन खाने को मिल रही हैं ।

सबको उनके आस्था से जुड़े पर्व कि बधाई



September 08, 2010

देश की पहली महिला जिला प्रमुख " नगेन्द्र बाला "

देश की पहली महिला जिला प्रमुख निधन



kota news

कोटा। देश की पहली महिला जिला प्रमुख, स्वाधीनता सैनानी और दो बार विधायक रही 84 वर्षीय नगेन्द्र बाला का बुधवार सुबह निधन हो गया। वे पिछले कई दिनों से अस्वस्थ थी। शाम को कोटा के किशोरपुरा मुक्तिधाम पर पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया।
फूलों से सजे वाहन पर किशोरपुरा मुक्तिधाम के लिए उनकी अंतिम यात्रा शुरू हुई। मुक्तिधाम पर पुलिस के जवानों ने सशस्त्र सलामी दी और हवाई फायर किए। उनके पुत्र रमन दीपावत ने मुखाग्नि दी। अंतिम यात्रा शुरू होने से पहले उनके निवास पर शहर के स्वाधीनता सैनानियों, राजनीतिज्ञों, प्रशासनिक अधिकारियों और गणमान्य नागरिकों ने पार्थिव देह पर पुष्प चक्र चढाकर श्रद्धांजलि अर्पित की। अंतिम संस्कार के समय पूर्व मंत्री भुवनेश चतुर्वेदी, जुझार सिंह, रामकिशन वर्मा, पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल, जिला प्रमुख विद्याशंकर नंदवाना, कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता पंकज मेहता, प्रदेश सचिव रविंद्र त्यागी, भाजपा शहर अध्यक्ष श्याम शर्मा, उपमहापौर राकेश सोरल व अतिरिक्त जिला कलक्टर [शहर] बी.एल. कोठारी मौजूद रहे। महापौर रत्ना जैन, पूर्व विधायक पूनम गोयल व उप जिला प्रमुख रेखा शर्मा भी उनके निवास पर पहंुचे और श्रद्धांजलि दी।
जीवन परिचय
क्रान्तिकारी केसरी सिंह बारहठ की पौत्री और प्रताप सिंह बारहठ की भतीजी नगेन्द्र बाला का जन्म 13 सितम्बर 1926 को हुआ था। उनकी शुरू से ही जनसेवा, राजनीति और महिला उत्थान में विशेष रूचि रही। 1942 के स्वाधीनता आंदोलन में उन्होंने बढ-चढकर भाग लिया। महात्मा गांधी के निधन पर वह दिल्ली से अस्थि कलश लेकर कोटा आई और चम्बल में उनकी अस्थियां विसर्जित की। पंचायतीराज व्यवस्था लागू होने के बाद वह 1960 में कोटा की पहली जिला प्रमुख बनी।
वह देश की पहली महिला जिला प्रमुख भी थी। दो साल तक जिला प्रमुख रहने के बाद वह 1962 से 1967 तक छबडा-शाहाबाद और 1972 से लेकर 1977 तक दीगोद से विधायक रहीं। वह 1982 से 1988 तक समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष रहने के साथ राज्य महिला आयोग की सदस्य भी रही। विनोबा भावे के साथ पदयात्रा में शामिल नगेन्द्र बाला ने कोटा में करणी नगर विकास समिति की स्थापना भी की तथा समिति के भवन के लिए अपने परिवार की जमीन उपलब्ध कराई।



ये लिंक मुझे ईमेल से कुमार राधारमण जी ने नारी ब्लॉग पर पोस्ट करने के लिये दिया हैं । सूचना पोस्ट करने मे विलम्ब हुआ हैं उसके लिये क्षमा और ऐसी महान नारी को नमन

September 07, 2010

" ना" न समझाने कि भूल ना करे

अगर आप को किसी पुरुष कि कोई बात अच्छी नहीं लगती तो तुरंत "ना" कह कर अपना विरोध दर्ज कर देमौन का अर्थ सहमति ही समझा जाता हैं और माना जाता हैं कि आप बढ़ावा दे रही हैं । " ना " कहना बहुत आसन होता हैं
आप " ना " कह कर अगर बुरी बनती हैं तो भी कोई बात नहीं क्युकी "ना " कह कर आप अपने को एक सोफ्ट टारगेट बना लेती हैं

अगर कोई महिला आप कि किसी बात पर आप को "ना " कह देती हैं तो उस "ना " को सम्मान दे अन्यथा आप यौन शोषण के दोषी बन जाते हैं
किसी भी रिश्ते मे चाहे वो रिश्ता कितना भी गहरा क्यूँ ना हो अगर कोई नारी किसी भी समय ये महसूस करती हैं कि वो इस जगह से आगे नहीं जाना चाहती हैं और आप से "ना " कहती हैं तो आप को अपने अहम् को त्याग कर "ना " को समझना होगा
अगर आप इस के बाद उस स्त्री के प्रति कहीं भी कोई भी अपशब्द लिखते हैं या कहते हैं तो ये यौन शोषण हैं

आज से कुछ समय पहले ये माना जाता था कि सार्वजनिक जगहों पर अगर अपने निज संबंधो , पत्रों या चित्रों का अनावरण होता हैं तो बदनामी स्त्री कि होती हैं और पुरुष का कुछ नहीं बिगड़ता क्युकी हर हाल मे चरित्र हीन तो नारी ही हुई
आज ऐसा नहीं हैं आज कि नारी सक्षम हैं , शिक्षित हैं और इस लिये वो खुद उन बातो को सामने लाना चाहती हैं जहां यौन शोषण हुआ हैं

सहज सहमति से किया हुआ प्रेम भी यौन शोषण हो जाता हैं अगर उसमे किसी भी समय नारी "ना" कह देजहां से "ना" हो वहाँ से आगे बढ़ कर जिन्दगी जीये "ना" कि जगह जगह उस नारी के खिलाफ आवाहन करे

September 06, 2010

ये हीरो...

अभी कुछ दिनों से लगातार ही समाचार पत्र में छप रहे कुछ समाचार न केवल ध्यानाकर्षण के केंद्र थे,बल्कि बहुत कुछ सोचने को भी बाध्य कर रहे थे...ऐसी बातें जो सोचने को बाध्य करें, प्रेरणा दें और जीवन की दिशा तय करने में सहायक हों, उन्हें यूं ही नहीं गुजर जाने देना चाहिए...

जमशेदपुर के निकट ही एक गाँव की घटना है एक आदिवासी महिला जिनका नाम नागी मार्डी है,ने अपनी माता को मरणोपरांत मुखाग्नि दी जिसे आदिवासी ही नहीं,हिन्दू धर्म में भी आजतक मान्यता नहीं है.महानगरों में तो कुछेक स्त्रियाँ भी अब शवगृह तक जाती हैं,परन्तु छोटे शहरों ,कस्बों और गाँवों में तो शव यात्रा में स्त्रियों का जाना सर्वथा निषिद्ध है भले मृतक स्त्री हो या पुरुष या मृतक के अपने घर का कोई पुरुष संबंधी हो या न हो.ऐसे में नागी द्वारा माता का अंतिम संस्कार करना निश्चित ही असाधारण घटना है...

नागी अपनी माता पिता की अकेली संतान है.जीवन भर अपनी माता को उसने पुत्र की भांति सम्हाला.नागी के अनुसार उसकी माता की इच्छा थी कि वही उसका अंतिम संस्कार करे , परन्तु फिर भी जब उसकी माता की मृत्यु हुई तो उसने अपने चचेरे भाइयों की चिरौरी की अपनी माता के संस्कार के लिए..परन्तु उसे संकट में देख प्रसन्नता पाने के इच्छुक उसके भाइयों ने उससे किनारा कर लिया..तब ग्राम प्रधान से सलाह कर और उसकी सहमति ले नागी ने एक पुत्र की भांति अपनी माता का अंतिम संस्कार किया..

कई माह बीत गए हैं इस घटना को परन्तु आज के दिन भी नागी और उसका साथ देने वाले ग्राम प्रधान को चैन से रहने नहीं दिया जा रहा है..एक तरफ जहाँ झारखण्ड के दिग्गज नेता,जिनकी आदिवासी समाज में गहरी पैठ है और लोग इनकी आँखें मूँद कर सुनते हैं, इस मामले में चुप्पी साधे बैठे हैं, वहीँ कई छोटे बड़े नेता नागी तथा उसका साथ देने वाले को कठोर दंड दे परंपरा को दूषित होने से बचाने की मुहिम छेड़े हुए हैं...

यूँ तो कई गैर आदिवासी महिला संगठनों ने नागी को पुरुष्कृत किया है,परन्तु जबतक उसे अपने समाज का समर्थन नहीं मिलेगा,बात नहीं बनेगी.सबसे चिंताजनक बात यह है कि यदि विरोधियों की दण्डित करने की मंशा सफलता पाती है, तो एक बहुत बड़ा सुधार जिसकी पृष्ठभूमि इस एक घटना से बन रही है,नष्ट हो जायेगी.तुष्टिकारक सरकार से हम किसी प्रकार की उम्मीद रख ही नहीं सकते कि वह सही कुछ करने में सही का साथ दे, तो अब हमें ही इसके लिए स्त्री पुरुष के भेद से ऊपर उठकर आवाज़ बुलंद करना होगा..

यह केवल एक घटना नहीं है..आज भी देश में ऐसी कई बेटियां हैं जो अपने अभिभावकों की देख भाल एक बेटे की तरह या उस से भी बढ़कर करती हैं. तो उसे पुरुषों के एकाधिकार वाले इन अधिकारों से वंचित रखना कहाँ तक उचित है.जब एक स्त्री ही स्त्री पुरुष दोनों को जन्म देती है,एक स्त्री पुरुष के सामान कर्तब्य निर्वहन करती है, तो उसे अधिकारों से वंचित रखनाया केवल एक संतान न मानना ,सही है क्या ? हिसाब तो सीधा सीधा होना चाहिए जो कर्तब्य करेगा ,अधिकार भी उसे ही मिलेगा..

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राष्ट्रीय समाचार चैनलों में भी स्थान और सुर्खियाँ पा चुका, एक पूर्व मुख्यमंत्री सहित पांच झारखंडी मंत्रियों के हजारों कड़ोर के भ्रष्टाचार का मामला जगजाहिर है.यूँ तो झारखण्ड का एक बच्चा भी झारखंडी मंत्रियों के भ्रष्टाचार की पोल पट्टी जानता है,पर शायद ही किसीमे हिम्मत है कि वह आगे बढ़कर इसे उजागर करे या नाम लेकर आवाज उठाये .पर इसी राज्य में एक व्यक्ति ने यह दुस्साहसपूर्ण कार्य किया और पांच मंत्रियों के विरुद्ध जनहित याचिका दायर कर दी.कई महीनो तक शीबू सरकार ने इस मामले को सी बी आई के पास जाने से रोके रखा,पर राष्ट्रपति शासन में अंततः यह केस सी बी आई के हाथों चला ही गया और फिर पूरे राष्ट्र को गबन हेराफेरी के जो आंकड़े मिले और अभी भी मिल रहे हैं,कोई ऐसा नहीं जो दांतों तले उंगली न दबा ले...

अब जब काफी कुछ उजागर हो चुका है,दोषी मंत्रियों ने मामला उठाया कि दुर्गा उरांव नाम का वह याचिकाकर्ता जिसने याचिका दायर की थी,वास्तव में कोई है ही नहीं..इसलिए यह मामला पूरी तरह से इन्हें फ़साने का विरोधियों द्वारा षड़यंत्र है.हालाँकि कोर्ट ने इसे कोई ठोस आधार नहीं माना फिर भी दुर्गा उरांव की खोज आरम्भ हो गई..आज के दैनिक समाचारपत्र में दुर्गा उरांव का पूरा परिचय सचित्र छपा है...और उसमे जो भी लिखा हुआ है, पढ़कर मन नतमस्तक हो गया इस व्यक्तित्व के ..

यह व्यक्ति एक साधारण किसान है और इसकी आर्थिक अवस्था ऐसी है कि यह अपने दो बच्चों को पढ़ा भी नहीं पा रहा.इसकी पत्नी राजमिस्त्री का काम करती है और माता बकरियां चराती है.वर्तमान स्थिति ने इसे इतना क्षुब्ध किया था कि इसने सब कुछ बेनकाब करने की ठानी.सच्चे अर्थों में यह उल-गुलान (विद्रोह) करना चाहता था..यह सही है कि दुर्गा उरांव इसका वास्तविक नाम नहीं है.परन्तु इससे इसके किये गए असाधारण काम पर कोई बट्टा नहीं लगता. बड़े लोगों के कोप से अपनी तथा परिवार की रक्षा के लिए भले इसने अपना नाम गलत बताया लेकिन इसने झारखंड ही नहीं पूरे देश के लिए जो किया वह ऐतिहासिक है.देश की जनता सदा इसकी आभारी रहेगी..

समाज के ऐसे ही असंख्य अनाम हीरो हैं जो हमें बताते सिखाते हैं कि कुछ अच्छा ,कुछ सार्थक करने के लिए बड़े बड़े साधन नहीं चाहिए ,सिर्फ नीयत और जज्बा चाहिए..

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रंजना.

September 05, 2010

चंद्र्नखा से सुपनखा तक कुछ चित्र




पिछली पोस्ट से आगे
नख यानी नाख़ून का आकर चंद्रमा में दिख जाता हैं
तब चंद्र्नख बनता है
जब चेहरे का आकर नाख़ून के आकर के जैसा होता हैं तो उसकी तुलना चाँद से कर दी जाती हैं और चाँद कि सुन्दरता उस चेहरा मे देखने वाले उस चंद्र्नखा रख देते हैं

चंद्र्नखा के जब नाक कान कट गए तो उसका चेहरा सूप जैसा दिखने लगा और वो सूर्पनखा /शूर्पणखा कहलाने लगी । सूप यानी जिस से हम गेहूँ इत्यादि फटक कर सा करते हैं । आज कल सूप इत्यादी घरो मे होते ही नहीं हैं सो उनका आकार बहुत लोगो को पता ही नहीं हैं
आप कह सकते हैं कि nail shaped like a moon , मै कह सकती हूँ moon shaped like a nail !!!!!
लेकिन नाम अगर किसी को दिया जाएगा तो उसके नाखुनो के आकर को देख कर नहीं उसके चहरे के आकर को देख कर जो नाख़ून जो चंद्रमा के जैसा सुंदर आकार लिये हुए हैं
सभी चित्र गूगल से लिये हैं

September 04, 2010

सूर्पनखा /शूर्पणखा के नाक कान राम के कहने पर लक्ष्मण ने नहीं काटे थे ।



सूर्पनखा /शूर्पणखा के नाक कान राम के कहने पर लक्ष्मण ने नहीं कांटे थेनाक और कान चंद्र्नखा के काटे गये थे और फिर उसका नाम सूर्पनखा /शूर्पणखा हो गया था । चंद्र्नखा कहते हैं जब पैदा हुई थी तो बहुत सुंदर थी और इसीलिये उसका नाम चंद्र्नखा रखा गया था । सूर्पनखा /शूर्पणखा नाम ही नाक कान कटने से हुआ तो नकटी के नाक कान कैसे काटे जा सकते हैं

वैसे कलयुग मे सब संभव हैंलोग आज कल सूर्पनखा /शूर्पणखा जिनके नाक कान है ही नहीं उनको काटने मे लगे हैंक्या करे कलयुग के काम देव को नकटी ही सुहाती हैं अपना अपना स्तर हैं अपनी अपनी पसंद हैं


वैसे एक बात हैं नकटी की नाक कटने मे कौन सा पौरुष हैं समझ नहीं आताकभी कभी किसी किसी मे इतनी दिव्य आभा होती हैं कि सामने वाले कि आंखे चौधिया जाती हैं और फिर नाक वाली और नकटी मे अंतर ही नहीं दिखता
दुनिया सत युग से कलयुग मे आगई हैं तभी तो चंद्र्नखा और सूर्पनखा /शूर्पणखा के बीच मे फरक ही नहीं कर पाते हैं
अब बात करते हैं कि राम ने लखन को कुमार कहा यानी कुंवारा इस दृष्टि से तो
अशोक कुमार
किशोर कुमार
अक्षय कुमार
और जितने भी कुमार हैं सब आजीवन अविवाहित ही माने जाते रहेगे



डिस्क्लेमर
ये पोस्ट समसामयिक ब्लॉग प्रसंगों से उपजी हुई नहीं हैं

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तुलसी कि मानस के इतर भी माइथोलोजी हैं पौराणिक कथा के पात्रो का चरित्र चित्रण जगह जगह दिया हैं अलग अलग तरह से । मेरी ये पोस्ट किसी भी पात्र या आस्था से जुड़ी नहीं हैं । जिन्दगी जीने और समझने के बहुत से नज़रिये हैं लिंक

हां इस ब्लॉग जगत मे कुछ लोग अपने को बहुत विद्वान समझते हैं शायद नहीं हैं

नारी ट्विटर


नारी ब्लॉग की ट्विटर यहाँ हैं

September 03, 2010

प्रेम से ऊपर भी कुछ सत्य हैं

पढ़ा था प्रेम मे केवल देना होता हैं लेने कि कामना करना ही व्यर्थ होता हैं ।
प्रेम करने कि कोई आयु सीमा तो निर्धारित हैं ही नहीं सो जिस उम्र मे चाहो कर लो ।
संस्कारवान प्रेम करता हैं तो उसको दिल मे छुपा कर रखता हैं । लोग उसके संस्कारित प्रेम कि छवि तलाशते हैं और वो कविता कहानी और पेंटिंग मे गढ़ता जाता हैं एक दिन पता चलता हैं वो छवि एक कल्पना थी एक छलावा थी उसके मन का और लोग "सच" मान बैठे ।हां उसका सच ये होता हैं कि वो दूसरो से ये मनवा लेता हैं कि उसका प्रेम प्रतीक उसकी कल्पना कि उपज हैं ।
अब दो पीढ़ियों का अंतर हो उम्र मे तो प्रेम , क्यूँ नहीं पर सच या छलावा या महज "कन्धा प्रेम " जी हाँ कन्धा अँधा नहीं क्युकी एकदूसरे के कंधे पर पैर रख कर ऊपर चढ़ने कि चाह ।
विवाह योग्य पुत्री का पिता , खुले मंच / ब्लॉग मंच पर अपने को काम देव का अवतार माने और बाकी विवाह योग्य पुत्रियों के पिता उसको जगह जगह "चीयर अप " करे ये भी प्रेम का एक सच हैं या इस का सच हैं इन्फिदेलिटी कि पहली सीढ़ी कालजाई ब्लॉग कृतियों के रचियता जब अपनी पुत्री के लिये वर खोजेगे तब कहीं कोई काल जाई कृति उस पुत्री के वैवाहिक जीवन का काल बन गयी तो उसका प्रेम सच और झूठ मे हिचकोले लेगा और पिता का कन्धा प्रेम पीगे ले क्या यही प्रेम हैं ।

सच को साबित करना पडे तो वो सच नहीं हैं क़ानूनी साक्ष्य पर आधारित एक कानून कि प्रतिलिपि हैं । आप ने बहुत बार दोस्ती और दोस्तों के प्रेम मे सच के तथ्य को जाने बिना वहाँ वहाँ टीपा हैं जहाँ से आप को प्रतिदान मिला हैं कभी वहाँ भी टीपे जहां प्रतिदान नहीं दोस्ती का सच्चा प्रेम हैं .

प्रेम का फेसबूकी करण उनको शोभा देता हैं जो फेसबुक युग के हैं । फेसबुक पर एक १६ वर्ष के किशोर / किशोरी को इ लव यू कहते और सुनते देख कर उस प्रेम कि चाह जब वो करते हैं जिनके युग मे फेसबुक नहीं थी तो प्रेम मिले ना मिले फ ... आफ सुनने को मिलता हैं नहीं बर्दाशत होता बुढ़ापे मे उबाल आता हैं और वो { बुढ़ापा } हम किसी से कम नहीं गाता हैं । ।
ब्लॉग पर परिवार कि बात करने वाले , संस्कारो कि बात करने वाले अपने खुद के परिवार के प्रति अपने बच्चो के प्रति कितने निष्ठांवान हैंकहीं पढ़ा था infidelity दिमाग मे होती हैं सहज संभाव्य सत्य हैं । There are two areas in a close relationship where infidelity mostly occurs: physical intimacy and emotional intimacy. Infidelity is not just about sex outside the relationship, but about trust, betrayal, lying and disloyalty.[1] What makes infidelity so painful is the fact that it involves someone deliberately using deception to violate established expectations within a relationship.

September 02, 2010

रास्ते और भी हैं चलिये प्रेम से

क्या आप mango people हैं यानी आम आदमी तो यहाँ जांये लिंक
क्या आप संवेदना संसार के प्राणी हैं तो आप यहाँ जाए लिंक
क्या आप शब्दों के पंख खोज रहे हैं तो आप यहाँ जाए लिंक 3
क्या आप हस्ताक्षर करना चाहते हैं तो आप यहाँ जाये लिंक
क्या आप यथार्थ मे जीते हैं तो आप यहाँ जाए लिंक

बाकी बहुत से रास्ते हैं उन पर चले , घर मे पत्नी हो तो प्रेम घर मे ही करे । राधा और कृष्ण का प्रेम कृष्ण की शादी से पहले ही था । जब आप किसी के कृष्ण बनने कि कामना रखते हैं तो क्या आप सोचते हैं कि अगर आप की रुक्मिणी भी किसी की राधा बन कर रह रही हो तो आप क्या करेगे । शुचिता का दावा अगर दावानल बन जाए तब क्या होगा ।

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