नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

April 29, 2012

ब्रेस्ट इम्प्लांट , इंडिया टुडे का कवर गैर जरुरी


ब्रेस्ट इम्प्लांट करना ना करना किसी का अपना अधिकार हैं जो उसको संविधान और कानून ने दिया हैं
इस पर बहस करना फिजूल हैं अगर क़ोई एडल्ट हैं और ये करना चाहता हैं तो उसकी अपनी मर्ज़ी हैं
ब्रेस्ट इम्प्लांट किये भी जाते हैं और निकाले भी जाते है क्युकी ये महज एक साइंस की तकनीक हैं
अब किस की क्या जरुरत हैं ये उस पर छोड़ देना बेहतर होगा .
विरोध किस बात का हैं , इंडिया टुडे ने जिस प्रकार का कवर छापा हैं उसका हैं . क्या ब्रेस्ट इम्प्लांट को समझाने के लिये ब्रेस्ट को दिखाना जरुरी हैं वो भी कवर पेज पर . यहाँ क़ोई साइंस की कक्षा नहीं चलरही हैं .
प्ले बॉय मैगजीन और इंडिया टुडे में क्या फरक हैं , क्या दोनों मैगजीन आम भारतीये घरो में सेंटर टेबल पर रखी जा सकती हैं ?? ब्लू फिल्म क्या आम आदमी अपनी पत्नी और बच्चो के साथ एक आम भारतीये घर में देख सकता हैं ??
नारी देह के अश्लील चित्र { अब अश्लील की परिभाषा भी ब्लोगर से ब्लोगर बदल रही हैं . कुछ लोग पोर्न साईट का लिंक अपने ब्लॉग पर लगा कर एडल्ट होने का दावा करते हैं } जगह जगह लगाए जाते हैं , विज्ञापन में भी और नैतिकता की बात अगर होती हैं तो उस मोडल की ज़िम्मेदारी कह दी जाती हैं जिसका चित्र होता हैं पर उस खरीदार का क्या जो अपनी आखे सेंकता हैं ???
आदिवासियों का शोषण हो रहा हैं उनके चित्र और विडियो टूरिस्ट को लुभाने के लिये डाले जा रहे और बाकयदा टूरिस्ट पैकेज बन रहे हैं . क्या सही हैं की हम आदिवासियों के चित्र डाल कर उनकी निजता का  नेट के जरिये अपमान करे ?
क्या फरक हैं हम में और मीडिया में . ब्लॉग वैकल्पिक मीडिया इसीलिये बना हैं क्युकी यहाँ हम मीडिया का विरोध कर सकते हैं
नारी अपने चित्र रखे , खरीदे , बेचे , अपने शरीर को बेचे वो सब उसकी चीज़ हैं , और सदियों से बिकते बिकते वो इतना समझ गयी हैं की अब उसको दलाल नहीं चाहिये वो अपनी मार्केटिंग खुद कर सकती हैं { अफ़सोस हैं } लेकिन उसकी इस सोच के लिये कौन जिम्मेदार हैं ?? कौन सा समाज .
ब्रेस्ट इम्प्लांट की जरुरत क्यूँ , क्युकी सौंदर्य की उपासना करने वाले उपासक हैं . ये उपासक ना होते , सौंदर्य का महत्व ना होता तो ब्रेस्ट इम्प्लांट , रंग बदल कर उजला करने वाली क्रीम और भी ना जाने क्या क्या सब होते ही ना .

मंशा बस इतनी होनी चाहिये की हम अपने निज के आचरण और सोच से समाज के हित में काम कर सके . समाज की गलत बातो के खिलाफ खड़े हो सके और सही का साथ दे सके . मित्र अगर गलत हो तो उसके साथ खड़े ना होकर ही हम उसका भला कर सकते हैं . सुधार खुद में खुद से आता हैं लेकिन कारण अनेक होते हैं . अपनी कथनी और करनी का फरक ब्लॉग पोस्ट और अपने घर में अपने आचरण / व्यवहार से पता चलता हैं . अपनी कथनी और करनी एक हो जाए यानी तो ब्लू फिल्म , पोर्न इत्यादि के हिमायती हैं वो अपने घर में अपनी बेटी और बहू के साथ बैठ कर देखे और पोप कोर्न खाये उसके बाद उन चित्रों को यानि अपने परिवार के साथ ख़ुशी से ये सब एन्जॉय करना डाले तब दूसरो को सौन्दर्य बोध का पाठ पढाये , वाह वाह करने हम भी आयेगे क्युकी तब नीति एक सी होगी . अपनी पत्नी को घर की चार दिवारी में रखना और दूसरी महिला के ब्रेस्ट इम्प्लांट की चर्चा करना बहुत आसन हैं सदियों से हो रहा हैं नया क्या हैं 

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April 26, 2012

आज दो समाचार पढ़े हैं आप सब से बाँट रही हूँ

 आज दो समाचार पढ़े हैं आप सब से बाँट रही हूँ
 पहला समाचार
बहुत जल्दी महिला के लिये हेलमेट पहनना अनिवार्य हो जाएगा . कोर्ट से ये आर्डर शीघ्र पास होने जा रहा हैं . मुझे तब बड़ा अजीब लगा था जब महिला के लिये इसको अनिवार्य नहीं किया गया था . पता नहीं क्या कारण रहा होगा , कभी किसी से बात हुई तो हमेशा यही कहा गया की शायद महिला सुंदर दिखने के कारण इसको पहनना ना पसंद करे . वैसे सिख मजहब की अनुयायी महिला के लिये भी ये पहनना अनिवार्य नहीं हैं , उसको भी कर ही देना चाहिये .
जीवन हैं तो सब कुछ हैं

दूसरा समाचार
अब १८ साल से कम आयु के स्त्री या पुरुष के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाना कानून अपराध होगा और उसकी सजा ७ वर्ष होगे . अभी ये महज १६ वर्ष था और इसके बाद सहज सहमति का तर्क माना जाता था . रेप कर के बहुत से अपराधी बच जाते थे क्युकी सहज सहमति के चलते रेप विक्टिम को ही कटघरे मे खडा कर दिया जाता था .
इस कानून को लाना इस लिये भी जरुरी माना जा रहा हैं क्युकी बहुत से बच्चो का यौन शोषण होता हैं , घर में लोग कम आयु के बच्चो से ना केवल काम कराते हैं उनका यौन शोषण भी करते हैं . अब ये सब कानून ७ वर्ष की जेल के प्रावधान में आ जाएगा


नज़र अपनी अपनी समझ अपनी अपनी . ६ साल के बाद हिंदी ब्लॉग लेखन

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April 23, 2012

शादी के यही सुख हैं

 सब मानते हैं की नारी का दर्जा समाज में दोयम हैं .


 क्यूँ हैं के प्रश्न पर तर्क दिया जाता हैं की वो विवश हैं , 
वो कमजोर हैं और 
वो अबला हैं .  

क्या आप को लगता हैं केवल यही कारण हैं नारी को दोयम का दर्जा दिया जाने का . 
लोग कहते हैं लड़कियों की शादी उनके माँ पिता करते हैं इस लिये माँ पिता को कटघरे में लाओ क्युकी अपनी बेटियों की असमय शादी करने के जिम्मेदार वो हैं . वो अपनी बेटियों को अवसर नहीं देते की वो आर्थिक रूप से सक्षम हो सके . 
क्या ये सही हैं ? 

१२ वी की परीक्षा के परिणाम देखे तो पता चलता हैं की लड़कियों ने हमेशा बेहतर रिजल्ट दिया हैं और इस बार तो आ ई आ ई टी मे भी लडकिया बहुत गयी हैं फिर अवसर की बात कहा हैं . 

बहुधा जो लडकिया खुद अपने पेरो पर खडी नहीं होना चाहती और आसान रास्ता चाहती हैं वो अपने माँ पिता के संरक्षण से अपने पति के संरक्षण मे जाने को सबसे ज्यादा उत्सुक होती हैं . 

एक घटना बताती हूँ 
अभी बुक फेयर मे एक महिला की किताब का विमोचन था . महिला रिश्ते में मेरी बहिन सामान हैं और क्युकी मेरी माँ उनकी गुरु हैं और माँ अस्वस्थ थी तो उनकी जगह मुझे विमोचन में जाना था . 
वो महिला अपनी ही पुस्तक के विमोचन में दे से आयी . कारण पहले उन्होने अपने पति का इंतज़ार किया की वो अपनी बड़ी गाडी  एस यू वी ले आये , फिर वो अपनी सास को लेने गयी . उसके बाद प्रगति मैदान पहुच कर पार्किंग नहीं मिली तो पति को गाडी में छोड़ कर वो उनकी सास और उनके बच्चे स्टाल तक पहुचे . इस बीच में वो प्रसाधन कक्ष मे गयी और उन्होने मेकप किया और कपड़े बदले . इतना सब करके जब वो विमोचन के लिये पहुची तो विमोचन हो चुका था . 
ख़ैर वहाँ उनकी सहेली भी थी . सब कहने लगी चलो चलो अब जीजा से ५ स्टार में डिनर लेते हैं . सब मिला कर १२ लोग थे . 
सास की वजह से प्रोग्राम नहीं बना और मुझे ले कर वो अपने साथ अपनी कार से वापस चल दी . उनके पति ने एक बार भी नहीं पूछा , किताब कहां हैं ?? 

दो दिन बाद वो घर आयी और बोली पति ने कहा हैं की घर में रद्दी मत रखो और सारी  किताबे हटाओ . ऐसा उनके साथ बहुत बार हुआ हैं . दस साल से मे उन्हे रोते ही देखती हूँ पर कोई निर्णय वो नहीं लेना चाहती 
उस दिन मेने कहा जब आप के पति को ये सब पसंद नहीं हैं तो आप उस दिन अपनी मित्रो को ५ स्टार कैसे ले जाती . कम से कम २५००० तो जरुर खर्च होता . बोली वो तो पति करते . मेरे इस प्रश्न पर की जो पैसा आप ने कमाया ही नहीं उसको इतने अधिकार से आप कैसे खर्च करने को कह सकती हैं . वो मौन रही और फिर बोली अब शादी के यही सुख हैं , इसी सब के लिये तो इतना सहती हूँ . 
उनकी लड़की जो २१ साल की बोली मौसी मे तो इनलोगों के झगड़ो के इतना तंग हूँ की सोचती हूँ जितनी जल्दी मेरी शादी हो जाए मे यहाँ से चली जायुं और मै ये भी चाहती हूँ की मेरे पति का इन लोगो से कम से कम संपर्क रहे . उनकी लड़की डेंटिस्ट का कोर्स कर रही हैं . 
अपनी लड़की को वो कहती हैं की क्लिनिक नहीं बनवायेगी क्युकी शादी में खर्च करना हैं और डबल खर्चा क्यूँ करना . 

अपने लिये अपने पति से १० लाख के हीरे के कंगन शौक से बनवा लेती हैं ,  २५ हजार में किताब छपवा लेती हैं ये कह कर की किटी का पैसा हैं { अब बिना नौकरी के किटी के लिये पैसा शायद पति की कमायी से ही होगा } लेकिन पति से आग्रह कर के अपनी किताबे घर में रखवा सके इस में वो अक्षम हैं , रो सकती हैं , भरपाई में एक जेवर और ले सकती हैं पर अपनी बात के लिये और अपने आत्म सम्मान के लिये कुछ करने में वो "अबला " हो जाती हैं . 

लोग कहते बच्चो के लिये नारी सहन करती हैं पर यहाँ तो लड़की खुद कह रही हैं की घर की बातो से दुखी हैं फिर सेहन शीलता का क्या काम और मकसद . 

जानती हूँ विचार गड्ड मड्ड हैं पर विचार हैं .

 

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April 20, 2012

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April 07, 2012

"नारी की ज़रूरत"

 आज कल वंदना की कविता को लेकर बड़ा हल्ला चल रहा हैं
वंदना ने फेसबुक से एक लिंक उपलब्ध करवाया 

लो बोलो इतना हल्ला अपना समय भूल गए लोग लगता हैं

पता नहीं लोग अपने को इतने बड़े बड़े नामो से कैसे खुदी नवाज लेते हैं शायद कुछ कुछ वैसे ही जैसे अपनी मूर्ति खुद ही बनवाना और लगवाना और उसका इनोग्रेशन भी खुद ही करना .

एक और लिंक वंदना ने उपलबब्ध करवाया , वो नहीं दे रही कारण वो भी नहीं बता रही हां वहाँ कुछ उनलोगों का विरोध  देखा जो कभी उनसे मेरे ऊपर अश्लील लिखवाते थे , अच्छा लगा उनका विरोध वहाँ देख कर .

वंदना की बस एक गलती लगी , उन्होने कहीं भी केवल एडल्ट का दिस्क्लैमेर नहीं दिया जो की गूगल की नीति हैं .
सबसे बढ़िया बात ये हैं की कुछ महिला केवल इस लिये विरोध करती नज़र आयी क्युकी "नारीवादी " नहीं हैं समाज मे स्वीकार्य और सुंदर बनी रहना चाहती हैं .

ख़ैर समय का बड़ा अभाव हैं वर्ना लम्बी पोस्ट बनती हैं क्युकी विरोध पक्ष में जो खड़े हैं वो कभी वहाँ नहीं दिखते जहां किसी ब्लॉग पर नारी के अश्लील चित्र दिखते हैं , जहां साइंस के नाम पर ना जाने क्या क्या परोसा जाता हैं

चलते चलते वन्दना को एक सन्देश
पढ़े लिखे लोगो के बीच मे हो  , इस सब के लिये तैयार रहो आखिर तुमने "नारी की ज़रूरत" जैसे विषय पर कलम चलाई हैं . हम तो समानता की बात ही करते हैं और गाली खाते हैं तुम तो और आगे हो जरुरत की बात करती हो तुमको गाली ना मिले ये संभव ही नहीं हैं .
पुरुष और स्त्री दोनों की भर्त्सना के लिये तैयार रहो और अगली कविता लिखो



 






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April 03, 2012

कल जान पहचान की एक लड़की की माँ ने उसकी शादी रुकवा दी

कल जान पहचान की एक लड़की की माँ ने उसकी शादी रुकवा दी .शादी २४ अप्रैल को होनी थी.
कारण
लडके वालो ने दिल्ली के अपने मकान से अपना सारा सामान अपने पुश्तैनी मकान जो देहरादून मे भिजवा दिया और लड़की की माँ को संदेशा दिया की हमने घर खाली कर दिया हैं आप शादी से पहले ही जो देना हैं दे कर सजवा दे अपनी लड़की के लिये . अब लड़की के भाई और पिता दोनों नहीं हैं इस लिये उसके हिस्से का जो हैं वो सब दे दे .

माँ ने कहा हम शादी के बाद तो देगे ही अभी कैसे दे सकते हैं ?? माँ की आवाज ये कहते कहते रोने के लिये भरभराई नहीं हाँ थोड़ी तेज होगयी .

लडके वालो ने आगे बात करने से इनकार कर दिया और जब किसी और ने मध्यस्थता करनी चाही तो उन्होने ने कहा   एक तो विधवा ,
ऊपर से कोई लड़का भी नहीं हैं
और इतनी उंची आवाज ,
हम तो फँस ही जाते इनके यहाँ शादी करके , हम तो बच गए .

लड़की के पिता की मृत्यु २ वर्ष पहले हुई थी , लड़की की एक बहिन हैं , दो लडकियां तक़रीबन ५०००० रूपए मासिक तनखा पा रही हैं और बेहद खुबसूरत हैं .

आज लड़की की बड़ी मौसी से बात हुई , वो कह रही थी की उनके भाई यानी लड़की के मामा ने भी लड़की की माँ को दोषी माना और कहा हम बात कर लेते . शादी चाहे ना करते पर बात तो हमे करने दी होती , अब घर में ये सब बात आदमी ही बेहतर करते हैं .

बस आज के लिये इतना ही  

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April 01, 2012

‘Irretrievable breakdown of marriage

अगर  भारत में शादी एक परिवार से होती हैं तो जब डाइवोर्स होता हैं तो पूरी सम्पत्ति का बटवारा क्यूँ नहीं होता हैं तब केवल पति की संपत्ति पर ही पत्नी का अधिकार क्यूँ माना जाता हैं या माना जाना चाहिये ?
अगर शादी दो लोगो की मर्ज़ी का गठबंधन हैं तो फिर एक व्यक्ति अगर डाइवोर्स चाहता हैं तो उसको क्यूँ नहीं मिल सकता ?
जब से संसद ने भारतीये विवाह कानून में बदलाव को मंजूरी दी हैं कुछ इसी प्रकार के सवाल न्यूज़ पेपर में पढने को मिल रहे हैं .
बदलाव का बिल अगर कानून की शकल में आ जाता हैं तो "कोई ऐसी वजह , जिसके कारण शादी नहीं निभ रही हैं यानी’ ‘Irretrievable breakdown of marriage
को  ध्यान  मे रखते हुए कोर्ट सम्पत्ति का बटवारा का आदेश दे सकता हैं .

इस कानून के आने से हमारे समाज में कुछ बदलाव जरुर आ सकते हैं
सबसे पहला बदलाव होगा मानसिक रूप से बेटे के माँ पिता अपनी संपत्ति का वारिस बेटे को नहीं बनायेगे अन्यथा सम्पत्ति के बटवारा होते समय बहु का पूरी संपत्ति पर "बटवारा अधिकार " हो सकता हैं .
इस कानून के आ जाने से हो सकता हैं समाज में बेटी की स्थिति मे भी अंतर आये क्युकी अगर बेटा और बेटी समान होगे , उनके अधिकार समान होगे तो सम्पत्ति पर वारिस का हक़ भी समान होगा .

अभी जब परिवार शादी के लिये बात करते हैं तो सबसे पहले लड़की के माँ पिता ये देखते हैं की लडके के पास घर हैं या नहीं , उसकी नौकरी कैसी हैं , उस पर घर परिवार की कितनी जिम्मेदारी हैं ? बहुत से परिवारों में कम आय या अपना और अपने परिवार का निर्वाह कर करने में असमर्थ यानी कम आय और बिना आय वाले लडको की शादी महज इस लिये होती हैं क्युकी लड़की के माता पिता ये देख लेते हैं की लडके के पिता का घर हैं और पिता घर चला रहे हैं . लड़की अपने दहेज़ के सामान से काम चला सकती हैं [ क्युकी लड़की की शादी करना अनिवार्य हैं इस लिये शादी जरुरी हैं किस से हो रही हैं ये जरुरी नहीं हैं } . इस कानून के आने से इस सोच में भी बदलाव आयेगा क्युकी अगर लडके को वारिस बनाना बंद होगया तो ऐसी शादियों में कमी होगी .

इस के अलावा अभी जो विदेशो में होता हैं यानी contract शादी का यानी जिसमे वकील की मौजूदगी में एक करार किया जाता हैं की शादी के बाद डाइवोर्स की स्थिति में किसको क्या मिलेगा , शायद लडके वाले अब खुद इस बात पर जोर देगे .

अभी तक "दहेज़ " केवल लड़की वाले देते थे और इस लिये लडकियां उनको बोझ लगती थी क्युकी उनको अपनी कन्या का दान करना होता था अब इस कानून के बाद बहुत संभव हैं इस स्थिति में भी सुधार हो और लड़की वाले जागे और अपनी लड़की के आर्थिक संरक्षण की सोचे ना की दहेज़ दे कर लड़की को दान करने की .

पहले के समय में नारी शिक्षित नहीं थी , उसकी शिक्षा से उसमे बदलाव आया हैं , उसकी शिक्षा ने उसको समझाया हैं की गलत का प्रतिकार करो फिर चाहे वो गलत विवाह ही क्यूँ ना हो .

प्रश्न अभी केवल कानून बनाने का नहीं प्रश्न हैं मानसिकता बदलने का जहां हम डाइवोर्स जैसे विषय पर खुल कर बहस और बातचीत कर सके .
शादी का महातम ना डाइवोर्स से कम होगा ना बढ़ेगा हाँ इस डर से की अगर डाइवोर्स होता हैं तो उसमे पति की संपत्ति पर पत्नी का अधिकार होगा जिसमे पैत्रिक संपत्ति भी होगी शायद विवाहित महिला ख़ास कर वो जो आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं का शोषण होना कम हो जाए 

जुल्म  पहला  हो  या सौवा क्यूँ सहना ??? सहने वाला , सह कर खुद ही जुल्म का हिस्सा बनता   हैं . विद्रोह समाज से नहीं सबसे पहले उस कंडिशनिंग से करना होता जो ये समाज करता हैं
सास की कंडिशनिंग की बहु उसकी प्रतिद्वंदी हैं
नन्द की कंडिशनिंग भाभी के आते ही सब बदल जाएगा
पति की कंडिशनिंग पत्नी शरीर मात्र हैं उसके ऊपर का दिमाग "दिखाए " तो पत्नी नहीं पति पर तनी होती हैं सो सबसे पहले उस दिमाग को कुंद कर दो
और
बहु/भाभी / पत्नी की कंडिशनिंग की अगर मे बोली तो निकाल दे गे , फिर कहां जाउंगी अब यही मेरी ससुराल है , माँ के घर सच नहीं बता सकना और भी ना जाने क्या क्या

अगर सौ जुल्म सह लिये तो महाभारत तो अपने घर में खुद ही "जी " ली  , उसके बाद जीने को जीवन शेष नहीं रहता हैं हां सांसे चलती हैं
महज अपना जीवन ख़तम करके टिकठी पर लाल बिंदी लगा कर शादी का जोड़ा पहन कर पति के / पुत्र के कंधे पर चिता तक जाना और समाज में "सुरक्षित और खुश एंड मोस्ट इम्पोर्टेंट अच्छा होने का प्रमाण पत्र" पाना जिन्दगी शायद इस कानून के बाद नारी की ना रहे 

इस कानून से शायद लड़कियों की उस बेचारगी में कमी आये जहां वो अपने को हमेशा लाचार और अबला कहती दिखती हैं . शायद महिला कथाकारों के पास कुछ नये विषय हो नयी कहानी लिखने के लिये जिनमे हमेशा बहु को अत्याचार सहते हुए दिखाया जाता हैं . 


 


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