नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

March 28, 2012

नारी ब्लॉग के पाठको के लिये कुछ लिंक

 नारी  ब्लॉग के पाठको के लिये कुछ लिंक
लिंक १  
लिंक २  
लिंक ३ 

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March 27, 2012

बोल्डनेस ??

इस बार सोचा सब लोग कमेन्ट कर ही ले तब ही लिखू
पहली बात
क्या ये तस्वीर देनी जरुरी थी ?? क्या इस तस्वीर के बिना आप की पोस्ट की महता कम हो जाती ??
तस्वीर हटा दे क्युकी आप जिस मानसिकता के विरोध में पोस्ट दे रहे हैं खुद उसी चीज़ को जाने अनजाने बढ़ावा भी दे रहे हैं .
यहाँ जितने भी कमेन्ट आये हैं क्यूँ उन सब ने इस तस्वीर को हटा ने की बात नहीं की ?? क्या महज इस लिये की बाहर इस से भी ज्यादा हो रहा हैं या इस लिये की आप की पोस्ट पर आपत्ति नहीं दर्ज करनी चाहिये .
सबसे पहले जो गलत हैं जहां भी गलत हैं उसका वहीँ विरोध करे . सुधार तब ही संभव हैं .

दूसरी बात
बोल्डनेस से मतलब क्या हैं ??
आज से पचास साल पहले जब मै पैदा हुई थी माँ बताती हैं की उनको अपनी ससुराल से लोरेटो कॉन्वेंट कॉलेज जहां वो प्राध्यापिका थी साईकिल रिक्शा से जाना होता था . उनके जेठ का सख्त आदेश था की रिक्शा में पर्दा बंधेगा . रिक्शा वाला आता था परदा बंधता था , बहूजी चले कहता था और माँ बाहर आती थी , सिर पर पल्ला लेकर . गली से बाहर आकर पर्दा खोला जाता था .
लोरेटो कॉन्वेंट कॉलेज में प्राध्यापिका होना बोल्डनेस थी और उसको रिक्शा में पर्दा डाल कर कम किया गया था .
आज ५० साल बाद उसी लखनऊ में उन्ही जेठ की बेटी की बहू अपनी ससुराल में बिना पर्दे के रहती हैं और नौकरी भी करती हैं लेकिन बोल्ड नहीं हैं क्युकी वो सूट पहनती हैं हां बराबर के घर की बहूँ बोल्ड हैं क्युकी जींस और टॉप पहनती हैं .
वही जेठ की बेटी की बेटी की शादी जहां हुई हैं सास बड़ी बोल्ड हैं क्यों उसने कहदिया था की उसकी बहू को ज्यादा साडी सूट ना देकर जींस दे क्युकी उसके बेटो को ये पसंद हैं

बोल्ड कुछ नहीं हैं बस एक बदलाव मात्र हैं . नगनता और बोल्डनेस में अंतर होता हैं .

आज से २० साल पहले जब केबल टी वी आया था तब तमाम ऐसे इंग्लिश चॅनल आते थे जिनमे ऍम टी वी प्रमुख था जहां के गानों की नगनता का जिक्र होता था . देखता कौन था हम सब ही ना फिर हमारे यहाँ के फिल्म और टी वी प्रोग्राम वालों को लगा अगर वो खुद ही ये सब दिखाये तो भी दर्शक हैं .

जो तब नहीं देखते थे वो अब भी नहीं देखते .

सीरियल का प्रोमो सबको पहले बता देता हैं की क्या होना हैं क्यूँ टी वी उस दिन देखा ही जाता हैं ? फिर भी लोग देखते और तो और रिपीट भी देखते हैं .

नेट इन्टरनेट इत्यादि कुछ बुरा नहीं हैं बुरा हैं हमारा केवल उस और आकर्षित होना जहा सो काल्ड बोल्डनेस हैं .
फेस बुक इत्यादि सोशल नेट्वोर्किंग साईट , प्रोनो और भी न जाने क्या क्या हैं होने दीजिये ये बोल्ड नेस नहीं हैं ये सब बदलती जीवन चर्या हैं जो हर पीढ़ी में बदल जाती हैं .
कभी शादी के समय घुघट होता था आज चुन्नी सामने होती ही नहीं हैं ?? फैशन को बोल्डनेस ना कहे


फिल्म को देख कर लोग अपनी जीवन शैली बदलते हैं या अब फिल्मे कणटेमप्रोरी जीवन शैली पर बन रही हैं .
औरत की नंगी देह ना पहले नयी थी ना अब हैं फिर भी देखने वाले हैं खुशदीप और जब तक खरीदार हैं इसको रोकना मुश्किल हैं पर आपत्ति दर्ज होती ही रहनी चाहिये
विनम्र आग्रह हैं
चित्र हटा दे

आप रोक सकते हैं अगर आप चाहे तो टी वी पर अश्लीलता .



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March 24, 2012

The Marriage Laws Amendment Bill 2010

The Marriage Laws Amendment Bill 2010
अगर ये बिल पास हो जाता हैं तो

  1. विवाहित महिला को अपने पति संपत्ति पर समान अधिकार मिल जाएगायानी कोर्ट को ये अधिकार होगा की अलगाव की स्थिति में संपत्ति का किस तरह विभाजित किया जाए
  2. डिवोर्स के लिये "कुलिंग पीरियड " की सीमा भी कौर्ट निर्धारित कर सकता हैं जो अभी ६ महीने हैं
  3. दत्तक बच्चो के अधिकार वही होगे जो अपने जाये बच्चो के होते हैं

तमाम सर्वे ये बताते हैं भारतीये महिला एक गलत शादी में केवल इस लिये रहती हैं क्युकी वो आर्थिक रूप से सक्षम नहीं होती हैं और डिवोर्स इस लिये नहीं देती हैं क्युकी पति की आय को साबित करना उनका जिम्मा हैं अगर उनको अलिमनी चाहिये तो । ८० प्रतिशत के पास तो अपने माता पिता के पास वापस जाने का अलावा को चारा ही नहीं होता हैं ।

पत्नी अब इस लिये भी तलाक ले सकती हैं की किन्ही अपरिहार्य कारणों से शादी नहीं निभ सकती हैं लेकिन इस कारण से अगर पति तालक मांगेगा तो पत्नी को अधिकार हैं की वो मना कर दे

अच्छे कानून बनाने के साथ साथ जरुरत हैं की सरकार नारी को इन कानूनों को लागू करने और समझने की सुविधाये भी उपलब्ध करवाये ।

और मानसिकता बदलना बेहद जरुरी हैं वरना एक टकराव की स्थिति की तरफ हमारा समाज अग्रसर हैं जहां As the country grows, there will be areas where the two Indias, one modernising and progressive and the other regressive and hidebound, will collide. This means that the crimes against women could unfortunately rise. The first priority of the local administrations should be to tackle them through strong action, not kneejerk reactions like the one by the Gurgaon administration. Otherwise, even the best of laws will have no effect. It would be like going one step forward and then many steps backward. Instead, we really need to keep in step with the law as it moves forward.

इंग्लिश का ये अंश आज के हिंदुस्तान टाइम्स का एडिटोरिअल हैं
क्युकी इस एडिटोरिअल का एक एक शब्द वही कह रहा हैं जो मै कई बार कह चुकी हूँ कानून के साथ चलना बहुत जरुरी हैं

मैने उस एडिटोरिअल की कुछ बातो को हिंदी में लिख दिया हैं
अगर आप पूरा इंग्लिश में पढना चाहते हैं तो यहाँ जाए

और एक नज़र इस पोस्ट पर डाले , इंग्लिश में हैं पर पढनी चाहिये


समय के साथ चलिये कानून को मानिये तभी समाज में समानता आयेगी और जेंडर बायस से मुक्ति मिलेगी ।

ज्यादा देर करगे तो हो सकता हैं रिवर्स जेंडर बायस से समाज ग्रसित हो जाए

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आशा हैं पाठक इस ब्लॉग पर अपना नेह बरसाते रहेगे -- ४ साल का हुआ नारी ब्लॉग

शक्ति की देवी माँ दुर्गा की आराधना का 'नवरात्र' प्रारम्भ हो गया है
२००८ की इसी बेला में "नारी ब्लॉग " को शुरू किया था ।

नारी अबला नहीं हैं हमेशा यही बताने की चेष्टा रही हैं इस ब्लॉग पर । पिछले साल १४ अगस्त तक ये ब्लॉग साँझा ब्लॉग था अब केवल मै ही लिखती हूँ ।

कुल जमा ९६२ पोस्ट लिखी जा चुकी हैं । ४ साल का सफ़र एक दिशा देने में अग्रसर रहा हैं ।

ब्लॉग जगत में असंख्य बार इस ब्लॉग लो लेकर टीका टिपण्णी हुई हैं जो खुद बताता हैं की कहीं ना कहीं इस पर लिखी बाते मानसिक उथल पुथल मचाती ही हैं ।

लिखते रहने का इरादा हैं आगे भी , नारी ब्लॉग से एक सफ़र मेरा भी शुरू हुआ हैं , ये जानने का सफ़र की पढ़े लिखे लोगो की सभा में नारी विषय पर बात करना कितना मुश्किल हैं ।
फिर भी जब ये लिख ही दिया हैं" नारी , जिस ने घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित की " तो फिर सफ़र का हर पढाव अगले सफ़र की शुरुवात हैं ।

आशा हैं पाठक इस ब्लॉग पर अपना नेह बरसाते रहेगे
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March 21, 2012

नोर्वे में भारतीये दंपत्ति से बच्चे छीने गए -- अनदेखा सच

जब मैने नोर्वे में भारतीये दंपत्ति से बच्चे छीने गए
पोस्ट नारी ब्लॉग पर पोस्ट की थी तो बहुत सावधानी से लिखा था की सब कुछ उतना साफ़ नहीं हैं जितना दिखता हैंमेरी आशंका निर्मूल नहीं साबित हुईआज बच्चो की पिता ने खुद कहा हैं वो चाहता हैं की बच्चे नोर्वे में रहे और अब इसके लिये उसने अपनी पत्नी को मनोरोगी कह दिया हैं

नारी ब्लॉग पर अपने एक पाठक को जवाब देते हुए मैने कमेन्ट में कहा था
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बात केवल कानून की ही नहीं हैं बात ये सोचने की हैं की अगर वहाँ के सोशल डिपार्टमेंट ने इन माँ पिता के खिलाफ शिकायत की हैं { जैसा की कल खबर मे था } और वहाँ की अदालत का फैसला हैं की क्युकी पाया गया हैं की बच्चो के पास ना तो उचित कपड़े थे और ना ही खिलोने और उनके लालन पोषण में उनके माँ पिता सक्षम नहीं थे इस लिये अदालत किसी भी वजह से उनके माँ पिता को ये बच्चे नहीं देगी और बच्चो के एक अंकल { शायद मामा } अब विदेश जा कर इनकी कस्टडी लेगे .
तरुण और राजन जो बात मेने पोस्ट में नहीं लिखी हैं आप दोनों सोच कर देखे बिना किसी इमोशन को बीच में लाकर कहीं ऐसा तो नहीं हैं की बच्चो के माँ पिता ने आर्थिक कारणों से ये सब होने दिया और पिछले ७ महीने से वो बच्चो के प्रति किसी भी खर्चे से मुक्त हैं और अब क्युकी उनको भारत आना हैं तो वो बच्चो की लड़ाई में भारत सरकार की सहायता ले रहे हैं . अगर पूरा घटना कर्म कोई देखे तो केवल माँ के माता पिता का ही टी वी में उल्लेख हैं कही भी दादा दादी की कोई बात नहीं हो रही हैं
हमारे देश में कानून व्यवस्था के चलते बच्चो की सुरक्षा का कोई कानून ही नहीं हैं पर विदेशो में हैं और नोर्वे में सब से मजबूत हैं

राजन बच्चे फोस्टर केयर मे रखने का कारण ही ये था की बच्चो को पूर्ण सुविधा नहीं मिल रही थी
उनके पास सही ढंग के कपड़े नहीं थे और मैने केवल अपनी सोच को विस्तार दिया हैं आप से और तरुण से बात करके .
भारतीयों में मूलभूत सुविधा और बचत का बहुत बड़ा कारण हैं की भारतीये विदेशो मे पसंद ही नहीं किये जाते हैं . लोग मानते हैं की हम पेट काट कर प्रोपर्टी खरीदने वालो में हैं . हम कम सहूलियतो में रह कर पैसा बचाते हैं और अपने बच्चो पर उतना खर्च नहीं करते हैं जो सही हैं [ बस सही और गलत की परिभाषा क्या हैं ये कौन तय करेगा ?? पता नहीं }

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मूल प्रश्न अब भी वही हैं की हम कानून व्यवस्था को कभी नहीं देखतेहम केवल और केवल सामाजिक व्यवस्था को देखते हैं और उसके ढांचे को खुद ही बिगाडते जा रहे हैंहम झूठ के सहारे अपने गलत काम को जस्टिफाई करते हैं और बहना बनाते हैं की हम परिवार को बचा रहे हैं

विदेशो में परिवार रहे या ना रहे पर कानून के जरिये समाज की व्यवस्था सही रहती हैं और बच्चो की सुरक्षा व्यवस्था , वृद्ध की सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा देश का हैं


हम कितना अक्षम और सक्षम हैं ये हम को खुद सोचना चाहिये



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March 20, 2012

"मै बहू नहीं बेटी लाया हूँ " सतीश सक्सेना -- बधाई

"लोग नयी बहू पर, अपने ऊपर भुगती, देखी, बहुत सारी अपेक्षाएं, आदेश लाद देते हैं और न चाहते हुए भी, आने वाले समय में, घर की सबसे शक्तिशाली लड़की को, अपने से बहुत दूर कर देते हैं !

किसी और घर के अलग वातावरण में पली नन्ही सी बच्ची को , उसकी इच्छा के विपरीत दिए गए आदेशों के कारण, हमेशा के लिए उस बच्ची के दिल में अपने लिए कडवाहट घोलते,सास ससुर यह समझने में बहुत देर लगाते हैं कि वे गलत क्या कर रहे हैं ?

अपनी बहू को,आदर्श बहू बनाने के विचार लिए, अपने से कई गुना समझदार और पढ़ी लिखी बहू को होम वर्क कराने की कोशिश में, लगे यह लोग, जल्द ही सब कुछ खोते देखे जा सकते हैं ! "सतीश सक्सेना

सतीश सक्सेना ने अपने ब्लॉग पर अपने लिये संकल्प की चर्चा की हैं , उसके पूरा होने की चर्चा की हैं और अपनी बेटी यानी अपने बेटे की नव विवाहिता पत्नी की चर्चा की हैं ।

सतीश जी का संकल्प पूरा हुआ इसके लिये उनको शुभकामना और बधाई संकल्प लेना आसन हैं पर समय आने पर उसको निभाना और पूरा करना भी जरुरी हैं ।





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March 14, 2012

रेप की जगह मोलेस्टेशन का क़ानूनी अधिकार गुणगाव प्रशासन ने जारी कर दिया हैं

पता चला हैं की गुणगाव में हुई सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद वहाँ की सरकार ने बयान दिया हैं की अब गुडगाव में महिला रात को ८ बजे के बाद काम नहीं कर सकती हैं ।
यानी रात के ८ बजे के बाद आप को किसी माल , पब या और किसी भी जगह क़ोई महिला काम करती नहीं मिलेगी और अगर क़ोई उनको नौकरी देगा तो उसे लेबर डिपार्टमेंट को लिखित सूचना देनी होगी ।

मै क्युकी प्राइवेट सेक्टर में काफी नौकरी कर चुकी हूँ तो जानती हूँ की लेबर कानून के तहत महिला कर्मचारी जो इस कानून में आते { लेबर की एक परिभाषा हैं इस कानून में } उनको ८ बजे के बाद नहीं रोका जा सकता हैं और अगर रोका जाता हैं तो उनको घर छोड़ना कम्पनी की जिम्मेदारी होती हैं । कानून में शायद ये लिखा हैं की महिला कर्मचारी को मजबूर नहीं किया जा सकता हैं रात में रुकने और काम करने के लिये । लेकिन ये कानून एक आय वर्ग तक ही सिमित हैं उसके ऊपर नहीं ।

अब गुणगाव का प्रशासन और पुलिस बजाये सुरक्षा देने के चाहती हैं की कानून के डर दिखा कर नौकरी देने वालो को महिला को नौकरी देने से रोका जाये । लेबर कानून हर काम करने वाली महिला पर लागू ही नहीं होता हैं फिर इसका डर दिखाना क्यूँ जरुरी हैं ????

और अगर रात में महिला का काम करना गलत हैं तो फिर उसको कब काम करना चाहिये ? क्या दिन में काम करने वाली महिला बलात्कार पीड़ित नहीं होगी इस की गारंटी होगी ?? क्या दिन में केवल महिला काम करेगी और रात में ८ बजे के बाद पुरुषो को काम करना होगा ??

गुणगाव की महिला इस के खिलाफ शीघ्र मोर्चा निकालना चाहती हैं , क्या उनको निकालना चाहिये ?
महिला वो रात को माल में घुमने जाती हैं तो वहाँ की महिला गार्ड उनकी बॉडी सर्च कर सकती हैं लेकिन इस कानून के बाद ये अधिकार पुरुष गार्ड का होगा । यानी रेप की जगह मोलेस्टेशन का क़ानूनी अधिकार गुणगाव प्रशासन ने जारी कर दिया हैं । वाह इसे कहते हैं चित्त भी पुरुष की और पट्ट भी पुरुष की , महिला का क्या हैं वो तो काम चला लेगी !!!!!


आप को क्या लगता हैं , लीजिये खबर का लिंक


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March 12, 2012

What is Empowerment?

What is Empowerment?

Empowerment is the process of enhancing the capacity of individuals or groups to make choices and to transform those choices into desired actions and outcomes. Central to this process are actions which both build individual and collective assets, and improve the efficiency and fairness of the organizational and institutional context which govern the use of these assets.

The World Bank’s 2002 Empowerment Sourcebook set out to bring together the thinking and practice of empowerment as a first step in developing a better understanding of this component of the Bank’s work. It identified empowerment as “the expansion of assets and capabilities of poor people to participate in, negotiate with, influence, control, and hold accountable institutions that affect their lives. Building on this, as the Bank and its partners have continued to develop and apply an empowerment framework to their work, and learn from this experience, both ideas and definitions have evolved. This has brought about a definition rooted in both the long academic discourse on power, and one tested and confirmed through applied experience in a number of countries: Empowerment is the process of increasing the assets and capabilities of individuals or groups to make purposive choices and to transform those choices into desired actions and outcomes.

Empowered people have freedom of choice and action. This in turn enables them to better influence the course of their lives and the decisions which affect them.

However, perceptions of being empowered vary across time, culture and domains of a person's life: in India, a low caste woman currently feels empowered when she is given a fair hearing in a public meeting, which is comprised of men and women from different social and economic groups; in Brazil, in Porto Allegre, citizens – both men and women -- feel empowered if they are able to engage in decisions on budget allocations; in Ethiopia, citizens and civil society groups report feeling empowered by consultations undertaken during the preparation of the poverty reduction support program; in the USA, immigrant workers feel empowered through unionization which has allowed them to negotiate working conditions with employers; and in the UK, a battered woman feels empowered when she is freed from the threat of violence and becomes able to make decisions about her own life.

In essence empowerment speaks to self determined change. It implies bringing together the supply and demand sides of development – changing the environment within which poor people live and helping them build and capitalize on their own attributes. Empowerment is a cross-cutting issue. From education and health care to governance and economic policy, activities which seek to empower poor people are expected to increase development opportunities, enhance development outcomes and improve people's quality of life.

Four Areas of Practice

There are thousands of examples of empowerment strategies that have been initiated by poor people themselves and by governments, civil society, and the private sector. Although there is no single institutional model for empowerment, experience shows that certain elements are almost always present when empowerment efforts are successful. The four key elements of empowerment that must underlie institutional reform are:

While these four elements are discussed separately, they are closely intertwined and act in synergy. Thus although access to timely information about programs, or about government performance or corruption, is a necessary precondition for action, poor people or citizens more broadly may not take action because there are no institutional mechanisms that demand accountable performance or because the costs of individual action may be too high. Similarly, experience shows that poor people do not participate in activities when they know their participation will make no difference to products being offered or decisions made because there are no mechanisms for holding providers accountable. Even where there are strong local organizations, they may still be disconnected from local governments and the private sector, and lack access to information.

Application of Empowerment Areas of Practice

Empowering approaches can be applied across a broad range of the Bank's work. To provide some practical illustrations from Bank operations and non-Bank activities, we focus on applications in five areas:

In the past, the strategies of the World Bank and its clients for improved development and poverty reduction have focused on formal systems, with little connection to citizens and those working at the community level. An empowering approach creates the link between the supply and demand side of development. A demand side approach to improving governance focuses on educating, informing and enabling citizens and poor people's organizations so that they can interact effectively with their governments. A supply side focuses on the macro level institutions and legal framework which determine how poor people can access development opportunity. An empowerment approach ensures that the two act in synergy. This is relevant for investment projects and budget support loans across the five areas of application.


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March 10, 2012

I SALUTE I.A.S MADHURANI TEWATIA WIFE OF SLAIN I.P.S NARENDRA SINGH

ना जाने कितनी पोस्ट आयी हैं महिला दिवस पर । बहुत में कहा गया की दिवस की जरुरत ही क्या हैं , कुछ अन्य में बताया गया की नारी सशक्तिकरण का मतलब क्या हैं और कैसे आज नारी भटक गयी हैं और बराबरी की होड़ में भूल गयी हैं की वो नारी हैं ।

कभी कभी सोचती हूँ
क्या मतलब हैं बराबरी का , महिला दिवस का , समानता का , सशक्तिकरण का ??
international woman's day क्यूँ मानना जरुरी हैं
इस लिये नहीं की एक दिन महिला की उपलब्धियों को याद करना हैं बल्कि इस इस लिये की इस दिन हर महिला एक मकसद को याद करे
उसके अधिकार बराबर हैं इस समाज में ,
वो दोयम नहीं हैं ,
उसको किसी के सहारे की जरुरत नहीं ,
वो इस समाज में उतनी ही सुरक्षित हैं जितना क़ोई और

अंतरराष्ट्रिये महिला दिवस याद दिलाता हैं एक मकसद की , एक लड़ाई की , लड़ाई अपने को सशक्त करने की , अपने को बराबर समझने की और पुरजोर तरीके से दूसरो को इस बात को समझाने की । अपने से अशक्त महिला के साथ खड़े होने की और अपने को एक "मानक " की तरह स्थापित करने की ताकि दूसरी महिला आपको देख कर आप से प्रेरणा ले सके , आप से शक्ति पा सके ।

मधुरानी तेवतिया एक आ ई अस हैं और उनके पति नरेन्द्र सिंह एक आ ई पी अस । नरेन्द्र सिंह का मर्डर ड्यूटी पर हुआ उनको खनन माफिया ने अपने खिलाफ काम करने की सजा दी और मार दिया । महज ३० साल के थे नरेन्द्र कुमार ।

मधुरानी तेवतिया , नरेन्द्र कुमार की पत्नी हैं और २२ मार्च को उनकी डिलीवरी की तारीख तय हैं , पहली डिलीवरी । महज २ साल हुए हैं उनकी शादी को ।

मधुरानी तेवतिया मिसाल हैं क्युकी
वो उतनी ही पढ़ी लिखी हैं जितने उनके पति
उन्होने अपने पति के डाह संस्कार खुद किये और अपने ससुर और अन्य घरवालो के साथ अपने पति को मुखाग्नि भी दी

एक आम महिला हैं वो भी , लेकिन ये हैं वो जीवटता जो उनको बराबर बनाती हैं । ९ मार्च को अपने पति को मुखाग्नि देना जबकि २२ मार्च को पहली जचगी होनी हैं , क्या आसान हैं ?? ये हैं वो मिसाल जो बताती हैं समानता क्या हैं , सशक्त होना क्या हैं ।

महिला दिवस पर अपने पति को खोने वाली महिला हैं मधुरानी तेवतिया पर मेरे मन में कहीं भी उनके लिये टी वी पर सारे समाचार देख कर "बेचारी " का भाव नहीं उभरा । जब उन्होने मुखाग्नि दी तो मन यही किया की उठ कर इनको सलूट करूँ क्युकी ये वो मिसाल हैं जिनको हम नारी ब्लॉग पर " THE INDIAN WOMAN HAS ARRIVED " का खिताब देते हैं और कहते हैं "उसने घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित की " ।

पति की मृत्यु का दुःख , महज विधवा होने का दुःख नहीं होता हैं , वो दुःख होता हैं अपने जीवन साथी को खोने का दुःख और अंतिम विदाई देने के लिये पत्नी का उसको मुखाग्नि देना एक परम्परा की तरह स्थापित होनी चाहिये । और मधुरानी ने ये किया ।

अगर पति अपनी पत्नी को मुखाग्नि देता हैं तो पत्नी क्यूँ नहीं दे सकती । समानता और सशक्तिकर्ण की पहली सीढ़ी हैं ये ।

ईश्वर नरेन्द्र सिंह की आत्मा को शांति दे और मधु तेवतिया के प्रसव में उनकी सहायता करे ताकि उनका पहला बच्चा सकुशल इस दुनिया में आ सके और अपनी बहादुर माँ से सीख सके जीवन को जीने का तरीका ।

I SALUTE I.A.S MADHURANI TEWATIA WIFE OF SLAIN I.P.S NARENDRA SINGH




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March 07, 2012

महिला दिवस की पूर्व संध्या पर -----

८ मार्च को महिला दिवस हैं
क्या क़ोई मुझे बतायेगा की वो हर नारी जो नारी चेतना , अधिकार और बराबरी की बात करती हैं उसको पुरुष विरोधी क्यूँ कहा जाता हैं ?

अगर नारी अधिकार , चेतना , बराबरी , सश्क्तिकर्ण पर लिखना पुरुष विरोधी नहीं हैं तो फिर जो लोग इन सब नारियों को पुरुष विरोधी कहते हैं क्या वो नारी प्रगति के विरोधी माने जाने चाहिये ??




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March 02, 2012

दहेज़ की प्रथा के लिये केवल वर पक्ष जिम्मेदार नहीं । कन्या पक्ष भी उतना ही दोषी हैं ।

आज कल रश्मि एक कहानी लिख रही हैं जहां दहेज़ प्रथा का भी जिक्र हैं कहानी तो आप यहाँ पढ़ ही लेगे । रश्मि की कहानी के विपरीत मीडिया में कल से निशा की कहानी दिखाई जा रही हैं । क्या आप निशा को भूल गये ? वही निशा शर्मा जिन्होने अपनी बारात को दरवाजे से लौटा दिया था क्युकी लडके वालो ने दहेज़ की मांग की थी । भूल गये हो तो लिंक ये हैं
बारात लौटाई और लडके और उसके परिवार को दहेज़ मांगने के जुर्म में पुलिस हिरासत मे भी दिया । मनीष को बेळ मिल गयी लेकिन मुकदमा चलता रहा ।

कल ९ साल बाद मनीष और उसके परिवार के ऊपर से सब आरोप कोर्ट से ख़तम कर दिये गए और मुकदमा ख़ारिज कर दिया गया । दहेज़ मांगने के सबूत ही नहीं मिले । लिंक ये हैं

कल मनीष का इंटरव्यू देख एक चॅनल पर उसका कहना था उसके जिंदगी के नौ साल व्यर्थ गए । निशा को विवाह नहीं करना था इसलिये उसने बारात लौटाई ।
मनीष की माँ ने अपने इंटरव्यू में कहा की पिछले साल से वो और उनका परिवार सामाजिक बहिष्कार की प्रतारणा झेल रहा हैं

दहेज़ विरोधी कानून के दुरूपयोग हो रहा हैं और इस केस का फैसला उनलोगों की साहयता करेगा जो दहेज़ विरोधी कानून के विरोध में हैं

अगर दहेज़ लेना अपराध हैं तो देना भी अपराध हैं फिर सजा केवल लेने वाले को क्यूँ , देने वाले को क्यूँ नहीं ??

जाट देवता (संदीप पवाँर) ने एक बार मुझ से कहा था की आप उन लोगो पर लिखो जो दहेज विरोधी कानून से फायदा उठाते हैं आप लिख सकती होपता नहीं मै लिख सकती हूँ या नहीं पर ये जरुर मानती हूँ दहेज़ की प्रथा के लिये केवल वर पक्ष जिम्मेदार नहींकन्या पक्ष भी उतना ही दोषी हैं
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March 01, 2012

मेरा कमेन्ट , इस में दिये हुए लिंक महत्वपूर्ण हैं

पहली बात ये संवाद संभव ही नहीं हैं पूछे क्यों ?? क्युकी बच्चे होने के समय पुरुष नहीं महिला जच्चा के साथ होती हैं और खबर वो ही देती हैं .
दूसरी बात ये कथाए सदियों से भ्रम ही उत्पन्न करती रही हैं की स्त्री को कन्या होने से दुःख होता हैं जबकि ऐसा नहीं हैं
कभी किसी बुजुर्ग महिला के पास बैठे वो सब जिन्होने यहाँ कमेन्ट दिया हैं और आप भी और उस से पूछे की एक नानी , एक दादी और एक माँ नातिन /पोती / बेटी होने के बाद क्यूँ ये सब कहती हैं आप को कारन स्वयं पता चल जायेगा
पहला कारण होता हैं उस बच्ची की सुरक्षा ताकि और कोई भी उस बच्ची को कुछ ना कहे और वो जिन्दा रहे
दूसरा कारण होता हैं उन का अपना दर्द जो औरत होने के कारण समाज ने उन्हे दिया हैं और वो नहीं चाहती की कोई और उस दर्द को सहे इस लिये वो बेटी कर आते ही उसके दर्द से जो भविष्य उसको देगा , से दुखी हो कर उसको करमजली नाकुशी इत्यादि कह्देती हैं
इस प्रकार की कथाओ को देना अब बंद करना चाहिये ताकि समाज से ये भ्रान्ति ख़तम हो सके की औरत ही औरत की दुश्मन हैं .
सास और बहु में वर्चस्व की लड़ाई हैं जो एक बाप बेटे मे भी होती हैं और अगर दामाद और ससुर की अनबन जो की एक आम बात होती हैं को लेकर समाज चुप रहता हैं और उसको पुरुष को पुरुष का दुश्मन नहीं कहता तो इन कथाओ को पोस्ट ना ही बनाया जाये तो बेहतर होगा
वो भी एक माँ ही होती हैं जो अपनी बेटी का बलात्कार करते अपने पति की हत्या कर देती हैं
वो भी एक सास ही होती हैं जो अपने बेटे की मार पीट से अपनी बहु को बचाती हैं
और वो भी एक माँ और सास ही होती हैं जो जचगी के समय अपनी बहु के दर्द को महसूस कर के इश्वर से कहती हैं की बच्चे के जनम के समय औरत का दूसरा जनम होता हैं भगवान् जच्चा और बच्चा दोनों सलामत रहे

ये कथाये समाज में स्त्री के दोयम के दर्जे की मानक हैं और स्त्री के उस रूप को दिखाते हैं जो मज़बूरी मे बनगया हैं क्यूँ इनका इतना प्रसारण करना हैं

समाज की समस्याओं पर बिना नारी पर हास्य और व्यंग किये भी सुधार लाया जा सकता हैं
या आप को लगता हैं ये संभव ही नहीं हैं

आप नारी सश्क्तिकर्ण के विरोधी नहीं हैं इस लिये आग्रह करती हूँ आगे से सोच कर ये व्यंग बाण चलाये क्यूंकि सदियों से ये बाण स्त्रियों को घायल कर रहे हैं और सहना अब कठिन हैं


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