ब्रेस्ट इम्प्लांट करना ना करना किसी का अपना अधिकार हैं जो उसको संविधान और कानून ने दिया हैं
इस पर बहस करना फिजूल हैं अगर क़ोई एडल्ट हैं और ये करना चाहता हैं तो उसकी अपनी मर्ज़ी हैं
ब्रेस्ट इम्प्लांट किये भी जाते हैं और निकाले भी जाते है क्युकी ये महज एक साइंस की तकनीक हैं
अब किस की क्या जरुरत हैं ये उस पर छोड़ देना बेहतर होगा .
विरोध किस बात का हैं , इंडिया टुडे ने जिस प्रकार का कवर छापा हैं उसका हैं . क्या ब्रेस्ट इम्प्लांट को समझाने के लिये ब्रेस्ट को दिखाना जरुरी हैं वो भी कवर पेज पर . यहाँ क़ोई साइंस की कक्षा नहीं चलरही हैं .
प्ले बॉय मैगजीन और इंडिया टुडे में क्या फरक हैं , क्या दोनों मैगजीन आम भारतीये घरो में सेंटर टेबल पर रखी जा सकती हैं ?? ब्लू फिल्म क्या आम आदमी अपनी पत्नी और बच्चो के साथ एक आम भारतीये घर में देख सकता हैं ??
नारी देह के अश्लील चित्र { अब अश्लील की परिभाषा भी ब्लोगर से ब्लोगर बदल रही हैं . कुछ लोग पोर्न साईट का लिंक अपने ब्लॉग पर लगा कर एडल्ट होने का दावा करते हैं } जगह जगह लगाए जाते हैं , विज्ञापन में भी और नैतिकता की बात अगर होती हैं तो उस मोडल की ज़िम्मेदारी कह दी जाती हैं जिसका चित्र होता हैं पर उस खरीदार का क्या जो अपनी आखे सेंकता हैं ???
आदिवासियों का शोषण हो रहा हैं उनके चित्र और विडियो टूरिस्ट को लुभाने के लिये डाले जा रहे और बाकयदा टूरिस्ट पैकेज बन रहे हैं . क्या सही हैं की हम आदिवासियों के चित्र डाल कर उनकी निजता का नेट के जरिये अपमान करे ?
क्या फरक हैं हम में और मीडिया में . ब्लॉग वैकल्पिक मीडिया इसीलिये बना हैं क्युकी यहाँ हम मीडिया का विरोध कर सकते हैं
नारी अपने चित्र रखे , खरीदे , बेचे , अपने शरीर को बेचे वो सब उसकी चीज़ हैं , और सदियों से बिकते बिकते वो इतना समझ गयी हैं की अब उसको दलाल नहीं चाहिये वो अपनी मार्केटिंग खुद कर सकती हैं { अफ़सोस हैं } लेकिन उसकी इस सोच के लिये कौन जिम्मेदार हैं ?? कौन सा समाज .
ब्रेस्ट इम्प्लांट की जरुरत क्यूँ , क्युकी सौंदर्य की उपासना करने वाले उपासक हैं . ये उपासक ना होते , सौंदर्य का महत्व ना होता तो ब्रेस्ट इम्प्लांट , रंग बदल कर उजला करने वाली क्रीम और भी ना जाने क्या क्या सब होते ही ना .
मंशा बस इतनी होनी चाहिये की हम अपने निज के आचरण और सोच से समाज के हित में काम कर सके . समाज की गलत बातो के खिलाफ खड़े हो सके और सही का साथ दे सके . मित्र अगर गलत हो तो उसके साथ खड़े ना होकर ही हम उसका भला कर सकते हैं . सुधार खुद में खुद से आता हैं लेकिन कारण अनेक होते हैं . अपनी कथनी और करनी का फरक ब्लॉग पोस्ट और अपने घर में अपने आचरण / व्यवहार से पता चलता हैं . अपनी कथनी और करनी एक हो जाए यानी तो ब्लू फिल्म , पोर्न इत्यादि के हिमायती हैं वो अपने घर में अपनी बेटी और बहू के साथ बैठ कर देखे और पोप कोर्न खाये उसके बाद उन चित्रों को यानि अपने परिवार के साथ ख़ुशी से ये सब एन्जॉय करना डाले तब दूसरो को सौन्दर्य बोध का पाठ पढाये , वाह वाह करने हम भी आयेगे क्युकी तब नीति एक सी होगी . अपनी पत्नी को घर की चार दिवारी में रखना और दूसरी महिला के ब्रेस्ट इम्प्लांट की चर्चा करना बहुत आसन हैं सदियों से हो रहा हैं नया क्या हैं
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