Anonymous said...हँसी आ रही है मुझे नारी ब्लॉग वालों पर कहिये क्यों? एक तो सारे नारी ब्लॉग पुरूष और महिला दोनों के समान होने के नारे बुलंद करते हैं महिलाओं के साथ अत्याचार हुआ है, वो गाली क्यूँ न देन, वो शर्ट उतार के क्यूँ न घुमे दूसरी तरफ़ महिला बस में पुरूष सफर कर रहे होते हैं तो वहां महिला होना याद आ जाता है???????? क्यूँ जब भेद भाव नही तो स्पेशल स्टेटस क्यूँ चाहिए???? रोज पुरूष लात खाते रहते हैं, कोई कुछ नही बोलता, आदत हो गई है एक दिन लड़कियों को लात खाते देख लिया तो तालिबान, श्रीराम सब याद आ गए????? स्त्री का सम्मान याद आ गया?????? बराबरी का हक़ भी चाहिए और स्पेशल स्टेटस भी??? दोगलापन क्यूँ???? या तो स्त्री के पीटने को पुरूष के पीटने जितना नोर्मल लीजिये, या समान होने का ढोंग करना बंद कीजिये? इससे यही प्रतीत होता है कि बाकी नारीवादियों कि तरह आप भी दूकान चला रही हैं स्त्री कि समस्या से कोई लेना देना नही है स्त्री त्रस्त रहे तभी आपकी दूकान चलेगी आप उन नेताओं कि तरह हैं जो गरीबों की बात तो करते हैं लेकिन यह भी चाहते हैं की गरीब गरीब बना रहेमुझे पता है, मेरे इस कमेन्ट पर कोई "जागरूक" "नारीवादी" ब्लॉगर मेरी धज्जियाँ उडाएगी/आ परवाह नहीं प्यारी कोमल टिप्पणियों देने वालों तक बात पहुचनी थी सो पहुच गई रहे आप लोग, आप लोग तो सुधरेंगे नहीं स्त्री को डराकर उसका समर्थन हासिल करते रहेंJanuary 28, 2009 8:25 PM
और इस कमेन्ट को नारी ब्लॉग पर पोस्ट बना कर डाल दिया गया क्युकी इस कमेन्ट मे तमाम वो सवाल थे जिनको आज के समय मे उठाना बहुत जरुरी हैं । कमेन्ट जरुर मंगलोर प्रकरण से जुडा था और उस सन्दर्भ मे ग़लत भी था पर अगर इस कमेन्ट को केवल मंगलोर प्रकरण के साथ जोड़ कर ना देखा जाये तो इसके अंदर बहुत ही सही बात कही गयी हैं । उस पर चर्चा जरुरी हैं और करेगे भी पर खुशी हैं की इस कमेन्ट के जवाब मे बहुत से कमेन्ट आए जिनको आप यहाँ देख सकते हैं । एक अनाम ब्लॉगर ने बहुत ही सटीक जवाब भी दिया हैं ऊपर आए कमेन्ट का ।
Anonymous said...
न कहते हुए भी मुझे अनामी की कुछ बात पर हामी भरनी पड़ रही है। कब तक स्त्री कोमल बनी रहेगी और समाज से संत्वनाएँ मांगती रहएगी अपने अत्याचारों के लिए ?? क्यों उसे अपनी आवाज उठाने के लिए किसी का सहारा चाहिए ?? क्यों उसे अपनी बात रखने के लिए मंच चाहिए ?? और वो अभी तक क्यों अत्याचार सह रही है ??अब ये बातें एक तरफ़, और अब हम बात करते हैं मंगलोर की - अनामी ने कहा "आदत हो गई है एक दिन लड़कियों को लात खाते देख लिया तो तालिबान, श्रीराम सब याद आ गए????? स्त्री का सम्मान याद आ गया?????? बराबरी का हक़ भी चाहिए और स्पेशल स्टेटस भी??? दोगलापन क्यूँ????" अब आप मुझे बताइए - आजतक क्यों pub जाने वाले पुरुषों की पिटाई नहीं हुई ??क्या पुरूष pub जायेंगे तो ठीक है लेकिन महिला जाएँगी तो उनका निरादार किया जाएगा ??मुझे ये बताइए क्यों सिर्फ़ रुढिवादी पुरूष ही भारतीय सभ्यता को बचाने का ढोंग करते हैं?और एक बात, क्या इस तरह से महिलाओं की पिटाई करना किस सभ्यता का अंग हैं??
January 29, 2009 12:46 PM
सार्थक रूप से ब्लोगिंग का मतलब ही यही हैं की हम अपने विचारों का आदान प्रदान करे पर बिना भाषा पर संतुलन खोये । कमेन्ट नाम से हो या अनाम कोई फरक नहीं पड़ता अगर विचार स्पष्ट हो ।
नारी ब्लॉग पर ही नहीं और भी ब्लोग्स पर जिन पर नारी - पुरूष समानता को लेकर विमर्श होता हैं मैने निरंतर इस बात को कहा हैं की नारी को " संरक्षण और समानता की बात एक साथ नहीं करनी चाहिये । अगर नारी पुरूष से संरक्षण चाहती हैं तो उसको पुरूष से समानता की बात नहीं करनी चाहिये । समानता तभी सम्भव हैं जब हम जितना लेते हैं उतना देने की क्षमता रखते हो । बार बार इतिहास को दोहराने से कोई लाभ नहीं होता हैं क्युकी हर वर्तमान की अपनी समस्याए होती हैं ,उन समस्याओं का अपना निदान होता हैं ।
मंगलोर प्रकरण मे समानता से ज्यादा बात थी की क्यूँ नारी हमारे समाज मे सुरक्षित नहीं हैं । क्यों नारी पर प्रतिबन्ध हैं । क्यूँ पुरूष समुदाय गुंडा गर्दी करता हैं नारी शरीर को हथियार बना कर । मंगलोर प्रकरण मे जितना भी अभी तक पढा हैं उसमे जो प्रत्यक्षदर्शी हैं उनके बयान कहते हैं की पब मे जो लडकियां थी उनको ना केवल मारा पीटा गया अपितु उनके कपड़ो के साथ खीचा तानी की गयी यानी खुले आम "मोलेस्टेशन" । नारी को ये बताना की उसकी जगह कहा हैं ।
इस बात को कई बार उठाया गया हैं की अगर आप चाहते हैं की आने वाले समय मे लडकियां वो सब ना करे जो आप को ग़लत लगता हैं तो आप को लड़को को अनुशाषित करना होगा । आप सब ख़ुद इस बात को मानते हैं की लड़किया , लड़का बनाने की कोशिश या होड़ मे ये सब करती हैं तो फिर पुरूष समुदाय और वो स्त्री समुदाय जो इस बात को सही मानता हैं क्यूँ नहीं अपने लड़को पर पाबंदी लगता हैं शराब , सिगरेट और हर उस काम को करने के लिये जिसको करने के लिये वो अपनी लड़कियों को माना करता हैं ।
नारी पुरुष मे वैचारिक मतभेद बहुत बार होता हैं , होगा भी क्योकि दोनों को जीने के आयाम अलग अलग मिले हैं । लेकिन जब भी ये मतभेद होता हेँ तो कभी भी नारी किसी पुरुष के शरीर , वस्त्रों इत्यादी पर ऊँगली नहीं उठाती । विचारो की लड़ाई मे नारी शरीर / परिधान का इतना महत्व पुरुष समुदाय के लिये क्यो हो जाता हैं ?? बलात्कार के लिये क्यों हमेशा आतुर हैं पुरूष ? क्या बलात्कार केवल शरीर का होता हैं ? पाशविक मनोवृति हैं क्या पुरूष की आज भी ? तब तो शायद जो हमारी दादी / नानी यानी सन ६० के दशक मे ६० वर्षीया स्त्रियाँ कहती थी की बेटी पिता से भी दूरी बनाओ सही था । यानी हम आज भी जो ख़ुद दादी नानी बनने की उम्र मे हैं इस लिये खामोश रहे क्योकि हम नारी हैं , महिला हैं और आप गली मे टहलते पशु हैं जो घात लगा कर कभी भी हम को अनावरत कर सकते हैं । सो आप करते रहे ये सब क्योकि ये आप की मानसिकता हैं और हम भी आप सब के खिलाफ आवाज बुलंद करते रहेगे इसलिये नहीं की हम को आप से कोई दुश्मनी हैं बल्कि इसलिये की एक महिला होने के नाते हम आप की बेटी लिये भी समाज मे उतनी ही सुरक्षा चाहते हैं जितनी अपनी बेटी की और हम आप के बेटो के लिये भी एक ऐसा साफ सुथरा समाज चाहते हैं जहाँ उनको हमेशा कटघरे मे ना खडे होना पडे । आज जो पुरूष वर्ग महिला चरित्र हनन कर रहा हैं वह अपने बेटो के लिये खाई खोद रहा हैं । कभी सोच कर देखे आने वाले समय मे आप के बेटो को क्या क्या सुनना पड़ सकता हैं आप की इस मानसिकता की वजह से ।
अगर आप को लगता हैं की स्त्री या नारी चोखेर बाली { यानी आँख की किरकिरी } इस लिये बनती हैं क्युकी वो पुरूष के ग़लत आचरण का अनुसरण करती हैं तो पुरूष के ग़लत आचरण को रोकिये । उस पर प्रतिबन्ध लगाईये , उस पर आक्रोश व्यक्त कीजिये , उसको सजा दीजिये । अगर आप ये मानते हैं की पुरूष एक पेदेस्तल पर खड़ा हैं { मै ये नहीं मानती हूँ व्यक्तिगत रूप से } और नारी उसको देख कर उसके जैसा बनना चाहती हैंताकि वो पुरूष की तरह एक उंचा स्थान पा सके तो पुरूष को अपना आचरण सही करना होगा । भारतीये संस्कृति नारी के आचरण मे सुधार से नहीं पुरूष के ग़लत आचरण पर प्रतिबन्ध से बच सकती हैं ।
अगर पब संस्कृति का विरोध करना हैं तो सरकार का विरोध करे जो इनको लाइसेंस देती हैं । अगर शराब और सिगरेट का विरोध करना हैं तो फिर उस सरकार का विरोध करे जो इसको बढ़ावा देती हैं । घर मे कोई सिगरेट या शराब ना ले चाहे स्त्री , चाहे पुरूष , चाहे अभिभावक , चाहे बच्चे । अगर "western outfit" का विरोध करना हैं तो पुरूष भी ऑफिस कुर्ते पाजामे या धोती मे जाए और महिला भी साड़ी या सूट मे जाए यानी एक नेशनल ड्रेस कोड बनाया जाए ।
सभ्यता या संस्कृति गुंडागर्दी से ना तो बनेगी और ना बचेगी हाँ जितनी जितनी गुंडा गर्दी पुरूष स्त्री पर करेगा उतना उतना स्त्री समाज को गुलाबी गैंग बनाने पर मजबूर करेगा । समय दूर नहीं हैं जब लडकियां हथियारों से लेस हो कर वो सब करेगी जो आज पुरूष कर रहे हैं , हर जगह व्यवस्था बिगडेगी ।
संस्कृति तो आप क्या बचायेगे हाँ कुछ फूलन देवियाँ और समाज मे जरुर दे जायेगे ।
और अंत मे एक बात उस अनाम ब्लॉगर से जो निरंतर इस ब्लॉग पर कमेन्ट मे अपशब्द दे रहे हैं और मै उसको डिलीट कर रही हूँ । आप अपना समय व्यर्थ कर रहे हैं , क्यों नहीं आप खुल कर अपने ब्लॉग पर कुछ भी लिखते हैं आप को लगता हैं नारी उत्पात मचा रही हैं तो आप अपने ब्लॉग पर उस बात को खुल कर लिखे ताकि विमर्श हो।
इसके अलावा विवेक निरंतर हर पोस्ट पर साधू साधू लिखते हैं , वो कमेन्ट भी डिलीट करना पड़ता हैं क्युकी अगर आप विमर्श नहीं करना चाहते हैं तो कोई बात नहीं पर जो कर रहे हैं उनके विचारों मे व्यवधान ना डाले ।
मै अपने दोनों अनाम टिप्पणी देने वालो की आभारी हूँ क्यूँ हर कमेन्ट से मै अपनी सोच मे इजाफा कर पाती हूँ ।
माफ़ कीजियेगा लेकिन संकुचित दिमाग वाली समझ नहीं आए| अगर दोनों प्रेमी युगल हैं तो क्या बुराई है| जो कुछ भी हुआ वह दुखद है, चाहे सुनसान जगह हो या बाजार, सुरक्षा हर जगह होनी चाहिए|
छुप छुप कर मिलना शायद प्रेम करने का ही एक हिस्सा है. इसमें संस्कारों के संकुचित होने जैसा कुछ नहीं है. संस्कारों का संकुचन मैं उन लोगों में पाता हूँ जो ब्लातकर करने जैसा घिनौना कार्य करने में जरा भी नहीं डरते. हमारे देश के बडे ही नहीं ब्लकि छोटे शहरों में भी प्रेमी युगलों का पार्क इत्यादि में अकेले मिलना आम बात है. इसका मतलब यह नहीं है कि उनमें संस्कार नहीं हैं अथवा उनके संस्कार संकुचित हैं. हमारे मन में महिलाओं के प्रती इज्जत और सम्मान की भावना होनी चाहिये.
अगर चोरी छुपे मिलना जैसी आम बात संस्कार पर प्रश्न चिह्न लगाती है तो मुझे शक है हम कभी संस्कारी बन पाएंगे|
रचना तुमने ,सही समय मैं एक सही प्रशन उठाया है,क्योंकि ये समय बच्चों के पढ़ाई का होता है माता -पिता इसके अलावा कुछ और बर्दाश्त नही कर पाते,घर मैं विपरीत सेक्स के दोस्त को शक से देखा जाना,आदि कई कारण से ...वैसे ये सही है की खुले दिल-दिमाग से बच्चों को सहूलियत और सुविधाएं देना चाहिए और दूसरी तरफ उन पर मनोवेइज्ञानिक दवाब भी बनाना चाहिए ...कभी उनके दोस्त बने कभी माता-पिता ...बच्चे चाहे जितना स्मार्ट हो..हमसे उनका अनुभव ज्यादा नही हो सकता,ज्यादा से ज्यादा उनसे बात करके कई मुश्किलों से पार पाया जा सकताहै और इस ग़लत पहमी मैं भी ना रहें की की उन्हें कुछ मालुम ही नही ...हाँ लेकिन कभी-कभी बच्चों के सामने बेवकूफ बन जाने मैं भी भलाई है....
धर्म, जाति भेद व्यक्ति को बाध्य करते है अपने प्रेमी से छुपकर मिलने से.. उन्हे पता है कि हमारे घरवालो कि सोच इतनी वृहद नही है कि वे इसे स्वीकार करे.. कभी कभी इस मामले में हैसियत और पैसा भी देखा जाता है.. परंतु सबसे पहले यदि धर्म या जाति ही अलग हो तो एक दीवार खड़ी हो ही जाति है..
हालाँकि फ़िल्मो के गीतो में इसमे आनन्द कि अनुभूति भी दर्शाई है.. याद करे फिल्म "जान तेरे नाम" का ये गीत "लेकिन छुप छुप के मिलने से मिलने का मज़ा तो आएगा" कहने का मतलब है कि ये भी एक वजह हो सकती है छुप छुप के मिलने क़ी..
माता पिता द्वारा बच्चो को भिन्न जाति अथवा धर्म या हैसियत के प्रेमी से ना मिलने दिया जाना.. और ऐसा होने पर समाज द्वारा बुरा मानना एक संकुचित सोच है.. इसी सोच से हमे बाहर जाना होगा..
हालाँकि इसके लिए आवश्यक है क़ी भावना शुद्ध हो, टिप्पणी सब कुछ कह पाना संभव नही.. फिलहाल इतना ही..
प्रेमी युगल को कुछ समय अकेले बिताने का भी मन करता है, इसमे परिवार, धर्म, जाति मुझे किसी भी कोण से नजर नही आता| भले ही आप दोनों को अपने घर में जगह दें, openness रखें, फ़िर भी उन्हें अकेले वक्त बिताना ही है|
आप के विचार सही हैं। पर क्या घर के बाहर जीने का अधिकार नहीं है, लोगों को?
आप के विचार सही हैं।!!
पर पर समाज द्वारा बुरा मानना एक संकुचित सोच है.. इसी सोच से हमे बाहर जाना होगा..
कोई चीज कम मात्रा में मिले या मुश्किल से मिले तभी तो उसका आनन्द है .
बढ़िया लेख | अभी तक जितने भी लोगो ने टिपण्णी की है सब दुरुस्त है | मैं बस ये कहना चाहूँगा की आप घर में रहे या घर से बाहर हर जगह सुरक्षा होनी चाहिए | कम से कम आपको इतना अधिकार तो होना ही चाहिए की आप कहीं भी बिना रोक टोक के घूम सके , कहीं भी जाने से ना डरे | हम अगर अपने ही देश में उन्मुक्त होकर ना रह सकते हैं तो कहाँ रहेंगे |
हम सब ख़ुद ही समाज का निर्माण करते हैं ...और इस तरह कि छुप छुप कर मिलने की घटनाएं और आदत तब तक बनी रहेंगी जब तक कि ...समाज अपनी सोच का दायरा नही बढाता ....हम ख़ुद ही समाज हैं .....ज्यादातर प्रेमी युगुल अलग अलग जाती के होते हैं ...और इस कारण से बड़ी जाती या विपरीत जाती के लड़के या लड़की के माँ बाप ये कभी कबूल नही कर पाते और तमाम बंधन और लगाम लगाने कि कोशिश करते हैं......कुछ तो इस सदमे में ख़ुद के मरने कि या लड़के/लड़की को मारने कि धमकी तक दे डालते हैं .....ये सबसे बड़ा कारण है जिसकी वजह से प्रेमी युगुल छुप छुप कर मिलते हैं और सब कुछ छुप छुप कर करते हैं .....अगर समाज को इन मामलो में थोड़ा समझदारी पूर्वक और खुले दिमाग के तौर पर कबूला जाए तो इतनी मुश्किलात न आए ......और इसके लिये अंतर्जातीय विवाह के सभी रास्ते खोल देने चाहिए .....और अपने बच्चो को बचपन से खुला माहौल और अच्छी सीख व समझ दे ...यही इसका उपाय है
premi yugal ka chhup chhup kar milna wastav me sankuchit mansikta ka dyotak hai yadi unke hirday patal shuddh or shreshth hain or wo swayam bhi sanskarit hain to chhupne ki jarurat nahin hai balki me to kahungaa ki apne mata pita ke samne hi milen . chhupkar milne main anisht ki sambhawnaa bad jaati hai jo ki yugal main khastor par ladki ke bhavishya par prashan chinh lag jate hain jisko hamara samaj manyta nahin deta .jindgi bahut lambi hai usko sukhpoorvak jeene ke liye har kshetra main sanyam ki jarurat hai .
premi yugal ka chhup chhup kar milna wastav me sankuchit mansikta ka dyotak hai yadi unke hirday patal shuddh or shreshth hain or wo swayam bhi sanskarit hain to chhupne ki jarurat nahin hai balki me to kahungaa ki apne mata pita ke samne hi milen . chhupkar milne main anisht ki sambhawnaa bad jaati hai jo ki yugal main khastor par ladki ke bhavishya par prashan chinh lag jate hain jisko hamara samaj manyta nahin deta .jindgi bahut lambi hai usko sukhpoorvak jeene ke liye har kshetra main sanyam ki jarurat hai .
zarooree aalekh
http://sanskaardhani.blogspot.com/2009/01/blog-post_09.html