" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
December 31, 2008
सफर यादो से उम्मीदों का २००८ -२००९
आप सब को नया साल शुभ हो ।
हमारे देश मे सदा शान्ति रहे और हम हमेशा हर जरुरत पर एक दूसरे के लिये खडे हो ।
हर आने वाला साल नई उम्मीदे लाता हैं
पर
बीते साल की यादे भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं ।
यादो को याद रखेगे तो उम्मीदे भी पूरी होगी
क्युकी
आज जो उम्मीद हैं कल वह ही याद होगी
२००८ को याद करते हुए चलिये चलते हैं २००९ मे
सफर यादो से उम्मीदों का
December 30, 2008
समय बदलेगा और जरुर बदलेगा उस दिन जिस दिन हर महिला उठ कर किसी भी नारी के प्रति कहे गए अप शब्दों मे पूरी नारी जाति का अपमान देखेगी ।
लेकिन तारीफ़ करनी होगी ब्लॉग लेखन करते पुरुषों की क्युकी उनमे एका बहुत हैं और कहीं से भी एक दो आवाजो को छोड़ कर चन्द्र मौलेश्वर प्रसाद की टिपण्णी के विरोध मे कोई आवाज नहीं आयी हैं पुरूष समाज से . क्या मौन का अर्थ स्वीकृति हैं . रही बात ब्लॉग लिखती महिला के विरोध करने की और एक जुटता से इसके विरोध मे अपनी आवाज उठाने की तो दोष उनका उतना नहीं हैं जितना उनको "सिखाने और कन्डीशन " करने वालो का हैं ।
समय बदलेगा और जरुर बदलेगा उस दिन जिस दिन हर महिला उठ कर किसी भी नारी के प्रति कहे गए अप शब्दों मे पूरी नारी जाति का अपमान देखेगी । गंदगी को इग्नोर करना या ये कहना की कीचड मे पत्थर मारने से कीचड अपने ऊपर आएगा से ज्यादा जरुरी हैं गंदगी को साफ़ करना चाहे हमारे हाथ इस प्रक्रिया मे कितने भी गंदे क्यों ना हो जाए ।
December 29, 2008
ये कहना "आगे बढ़कर अपने लिए एक रेड लाईट एरिया[ चाहें तो रंग बदल लें] खोल लें" एक गाली ही हैं
ये कमेन्ट हैं श्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी का चिटठा चर्चा पर और सन्दर्भ हैं "गाली गलोज" पर चल रही गाली गलोज ।
एक सीधी साधी बात की अगर पुरूष नहीं चाहते की महिला गाली दे तो पुरूष को भी गाली देना बंद करना होगा । लेकिन बिना बात की तह तक जाए सीधा ये समझ लिया गया की महिला गाली देने की छुट चाहती हैं ।
जिसका सीधा सरल जवाब हैं की महिला स्वतंत्र हैं कुछ भी करने के लिये । नारी को बार बार ये समझाने का हक़ पुरूष को किसने दिया हैं की नारी के लिये क्या क्या वर्जित हैं और क्या क्या करना सही हैं ?
ये जितनी भी वर्जनाये नारी के लिये हैं उनको पुरूष अपने ऊपर क्यूँ नहीं लगाते । बेटी के लिये नियम की गाली मत दो और बेटे के लिये नियम "क्या फरक पड़ता हैं "
औरश्री चंद्रमौलेश्वर प्रसाद जी तो शिष्टा की सीमा ही लाँघ गए क्युकी उन्होने सब महिला जो इस विषय पर लिख रही हैं उनको सीधा सीधा कह दिया " रेड लाईट एरिया खोल लो "
इस सुसंस्कृत भाषा और "जाओ चकले पर बैठ जाओ या जाओ कोठा खोल लो " दोनों मे कोई ख़ास अन्तर नहीं दिख रहा ।
कभी किसी पुरूष को जब वह गाली देता हैं शायद ही किसी ने कह होगा की जाओ अपना शरीर बेचो ।
नारी के साथ बहस का अंत हमेशा उसके शरीर पर आकर ही क्यूँ ख़तम होता हैं । बहुत अफ़सोस हुआ ये देख कर की ब्लॉग लेखन मे भी ब्लॉग लिखती महिला को आप गाली देना सही मानते हैं क्युकी ये कहना "आगे बढ़कर अपने लिए एक रेड लाईट एरिया[ चाहें तो रंग बदल लें] खोल लें" एक गाली ही हैं
December 25, 2008
ब्लॉग जगत में नारी शक्ति
हिन्दी ब्लॉग जगत में महिला चिट्ठाकारों के कदम तेजी से बढ़ रहे हैं। साहित्य ही नहीं, समसामयिक और तकनीकी विषयों पर भी वे ब्लॉग जगत में अपनी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। पिछले दिनों हिन्दी ब्लॉग संसार में छाईं ऐसी ही छह प्रबुद्ध महिला चिट्ठाकारों से चर्चा का सौभाग्य मिला। इस चर्चा को मैंने कलमबद्ध किया और मेरी इस प्रस्तुति को राजस्थान पत्रिका ने आज (बुधवार, 24 दिसंबर 2008) के अंक में प्रकाशित किया है।
आप इसे यहां पढ़ सकते हैं। बड़े आकार में देखने के लिए नीचे दी गई तस्वीर पर क्लिक करें।
इस चर्चा में छह अलग क्षेत्रों से जुड़ी महिला चिट्ठाकारों को शामिल किया गया है, इसलिए कुछ अन्य प्रबुद्ध महिला चिट्ठाकारों के नाम छूटना लाजिमी है। जिन ब्लॉगर्स को यहां मैं जगह नहीं दे पाया, उनसे क्षमा चाहते हुए उनके योगदान को भी सलाम करता हूं।
आशीष खण्डेलवाल
प्रिये आशीष
आप को रंजना , रचना , अल्पना , गरिमा , पूजा और कविता की तरफ से धन्यवाद । हम सब केवल और केवल उन महिला का प्रतिनिधित्व मात्र कर रही हैं जो आज ब्लॉग पर उपस्थित हैं ।
कुछ नाम जिनका ब्लॉग लेखन मे जो योगदान हैं उसको शायद शब्दों मे बंधना बहुत मुश्किल होगा ।
पूर्णिमा , घुघूती , अनीता , सुजाता , नीलिमा , पारुल , बेजी , प्रत्यक्षा , अनुजा , अनुराधा , मीना , सुनीता , वर्षा , पल्लवी , मनविंदर , लावण्या , ममता , शायदा , फिरदोस , अनुजा , रेखा , मीनाक्षी ,
प्रिय पाठक
आप सभी से निवेदन हैं की आप को जो भी नाम याद आए टिपण्णी मे दे दे बाद मे इस पोस्ट मे जोड़ दिया जायेगा इस प्रकार से एक लिस्ट तैयार हो सकती हैं
December 24, 2008
क्या विवाह करना , बच्चो को बड़ा करना , सास ससुर की सेवा करना कर्तव्य नहीं सक्रिफाईस हैं
क्या इस तरह का वर्गीकरण सही हैं ?? क्या विवाहिता का विवाहित होना मात्र एक कर्तव्य नहीं हैं और क्या एक अविवाहित स्त्री के प्रति ये अन्याय नहीं होगा अगर विवाहिता को ख़ास रियायत सिर्फ़ इसलिये मिलाए क्युकी वो विवाहित हैं ।
एक अविवाहित स्त्री पारिवारिक सुख को छोड़ कर नौकरी / अपनी तरक्की की कामना करती हैं यानी वो पहले ही कुछ कम पाती हैं और एक विवाहिता को पारिवारिक सुख के साथ नौकरी का भी सुख हैं फिर क्यूँ विवाहिता को "special considerations " मिलने चाहिये कर्तव्य पूर्ति के लिये ?
क्या विवाह करना , बच्चो को बड़ा करना , सास ससुर की सेवा करना कर्तव्य नहीं सक्रिफाईस हैं जिसके लिये विवाहित स्त्रियों के लिये एक अलग लाइन { रिज़र्वेशन } की जरुरत हैं । अब कुछ आप भी कहें ।
कल छात्राओं के लिए प्रश्नपत्र पढ़ा और नामो के नाम एक स्त्री की चिट्ठी भी पढ़ी । आप भी पढे और अपने विचार भी दे ।
December 21, 2008
ऐसी मिसाले कम ही मिलती हैं पर इनसे ही प्रेरणा भी मिलती हैं ।
एक समाजवाद ऐसे भी .....एक सत्य घटना ....नथिया बुआ ने २६ वर्ष की अवस्था से लेकर ७० वर्ष तक अपना वेध्वय अकेले ही काट दिया था ना पीहर मैं कोई रहा ना ससुराल मैं ,ब्याह होते ही जिस हवेली मैं आई थी उसी के दो छोटे कमरों और एक रसोई के लिए रख कर गुजारा करती रही हवेली बड़ी थी ,एक-एक करके आठ किरायेदार हो गये थे ,७७ की उम्र के आस -पास जब बीमार पड़ी और बचने की कोई उम्मीद ना रही तो दूर-दूर के और आस-पास के तमाम लोग रिश्ते-नाते दार बन कर सेवा मैं जुट गये,हवेली का सवाल था बुआ सब कुछ देख समझ रही थी जब उसे लगा अन्तिम समय आने ही वाला है तो उसने अपने आठों किरायेदारों को बुलाकर कहा ,हवेली के जिस-जिस हिस्से में जो- जो रहता है उसकी रजिस्ट्री वो अपने नाम करा ले .मेरा हिस्सा नगर-निगम को यह कह कर दे दिया जाय की उसमे एक दवाखाना रहे.सब किरायदारों ने अपने-अपने नाम रजिस्ट्री करा ली वकील को बुलाकर.बुआ का हिस्से मैं उनकी मर्जी मुताबिक अस्पताल खुल गया, लालची और बनावटी रिश्तेदार देखते रह गए,बुआ ने ना लेनिन पढा था,ना मार्क्स ,फिर भी समाजवाद ले आई।
ये घटना रायपुर की हैं और नारी पर पोस्ट के लिये विधु लता ने भेजी हैं । ऐसी मिसाले कम ही मिलती हैं पर इनसे ही प्रेरणा भी मिलती हैं । विधु लता जी पिछले ८ वर्षो से "औरत " नाम से एक पत्रिका का संपादन कर रही हैं । ये कथा उन्होने ३ वर्ष पूर्व अपनी पत्रिका मे प्रकाशित की थी ।
December 20, 2008
बैंकिंग सेक्टर , नो जेंडर बायस , इनीशियल एडवाण्टेज और इन्हे चाँद चाहिये
बैंकिंग सेक्टर शायद पहला ऐसा सेक्टर बन गया हैं जहाँ टॉप लेवल पर कोई जेंडर बायस नहीं दिख रहा हैं ।
आईसीआईसीआई बैंक की चन्दा कोचर
जे पी मोर्गन चेस बैंक की कल्पना मोरपारिया
अच् अस बी सी बैंक की नैना लाल किदवई
सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया बैंक की होमी दरुवाल्ला
ऐ बी अन एम्ब्रो बैंक की मीरा एच सान्याल
ये सब नारियां पिछले कई वर्षो से निरंतर अपने कार्य छेत्र मे आगे बढ़ रही हैं और आज उस मुकाम पर हैं जहाँ कारपोरेट वर्ल्ड का हर कोई होना चाहता हैं । इनकी मेहनत और लगन ही इनको यहाँ ले आयी हैं । हमे खुशी हैं की ये सब भारतीये महिला अपने अपने छेत्र मे इतना आगे गयी हैं । जिन्दगी की दौड़ मे किसी को कोई इनीशियल एडवाण्टेज नहीं मिलता ये हम सब पर निर्भर हैं की हम कितनी मेहनत कर सकते हैं और कितना आगे जा सकते हैं । और ये कहना तो बिल्कुल ग़लत हैं की अगर चाँद की कामना करोगी तो गरिमा को ठेस लगेगी ।
इन सब ने चाँद की कामना जरुर की और आज पा भी लिया अब आगे ये सब क्या और करेगी आने वाला वक्त ही बतायेगा ।
December 15, 2008
हमारे देश की त्रासदी ये हैं की यहाँ कानून मे तो गुनाहगार को सजा देने का प्रावधान हैं पर समाज मे सजा उसको दी जाती हैं जो गुनाह नहीं करता हैं।
अभी तक ये कानून केवल "विवाहित पुरुषों" पर लागू था । अगर कोई विवाहित पुरूष , अपनी पत्नी के अलावा किसी भी पर स्त्री से शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करता हैं तो वो कानून दंडनिये अपराध होता हैं ।
हमारे देश की त्रासदी ये हैं की यहाँ कानून मे तो गुनाहगार को सजा देने का प्रावधान हैं पर समाज मे सजा उसको दी जाती हैं जो गुनाह नहीं करता हैं।
जैसे एक विवाहित पुरूष / स्त्री जो विवाह के बाहर शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं कानून उन्हें दोषी मानता हैं और सजा का प्रावधान रखता हैं
लेकिन हमारा समाज दोषी मानता हैं उस स्त्री या पुरूष को जो विवाहित नहीं हैं पर जिसके साथ एक विवाहित पुरूष /स्त्री सम्बन्ध बनाते हैं ।
एक अविवाहित पुरूष या स्त्री को दोषी माना जाता हैं किसी की शादी के बीच मे आने के लिये जबकि शादी को बनाए रखने की जिम्मेदारी केवल और केवल पति - पत्नी की होती हैं । जिस दिन कोई भी पति या पत्नी अपनी शादी से बाहर जा कर मानसिक या शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करते हैं शादी उसी दिन ख़तम हो जाती हैं लेकिन उसको ख़तम होने का दोष समाज कभी उनको नहीं देता बल्कि इसे केवल और केवल एक गलती माना जाता हैं ।
क्यूँ हमारे समाज के नियम हमारे कानून के नियम से अलग हैं । क्यूँ हम दंडनिये अपराध को केवल "एक गलती कह कर छोड़ देते हैं ।
अब आप अगर आप का मन कह रहा हैं की परिवार भी तो बचाना हैं , बच्चो का भी तो सोचना हैं तो आप इस आलेख को भी पढ़े लिंक १
और कैसे एक ख़बर भ्रान्ति और मजाक बनती हैं जानना हो तो ये पढ़े लिंक २ ये उन लोगो के विचार हैं जो लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी तोर से मान्यता देने के सख्त खिलाफ हैं ।
December 14, 2008
महिला सशक्तिकरण की अनूठी मिसाल
पूर्णिया के फार स्टार सिनेमा हाल के बगल वाली गोकुल आश्रम सड़क। कुछ दूर चलने के बाद सड़क के दाहिने ओर अलमारी से पटे जयंती स्टील वर्क्स में एक महिला कभी वेल्डिंग तो कभी अलमारी की रंगाई करती नजर आती है।
1987 में इंटर तक की पढ़ाई करने के बाद अपने परिवार में जयंती देवी व्यस्त हो गयी। उनके पति बस स्टैड में किरानी का काम करते है। जयंती बताती है कि अपने किसी बच्चे को इस काम में नहीं लगाऊंगी। वे पढ़ लिखकर अपने लिये खुद अच्छा रास्ता ढूंढ लेंगे। पर वे यह जरूर कहती है कि हमारे काम में पति हमेशा सहयोग करते है।
आप खुद से वेल्डिंग और अलमारी पेन्टिंग का काम क्यों करती है? वे बताती है कि स्टाफ को काम करते देख हमने सारा काम सीख लिया। पार्टी का आर्डर समय पर पूरा कर लिया जाये इसको ले स्टाफ गंभीर नहीं रहते थे। स्टाफ कभी आता कभी नहीं आता। इसलिये मैंने खुद यह काम करना शुरू कर दिया। अब मैं कारखाना के स्टाफ पर निर्भर नहीं हूं। ऐसा नहीं कि यह काम केवल पुरुष ही कर सकते है। आज के दौर में महिला सभी काम कर सकती है, केवल साहस व प्रोत्साहन की जरूरत है।
हाल ही में वकालत की पढ़ाई करने के लिये ला कालेज में दाखिला करा चुकी जयंती देवी कहती है कि हमारे यहां कोई महिला अगर काम सीखने की नीयत से आये तो उसे मैं काम सीखाने को भी तैयार हूं। जयंती स्वयं भारी हथौड़ा चलाकर चदरा और लोहे को काटने का भी काम करती है। इनके द्वारा प्रेशर मशीन से रंगाई किया हुआ अलमारी देखने में मानों किसी स्तरीय कंपनी जैसा ही मालूम होता है। कहानी यहीं खत्म नहीं हो जाती। मरीजों को सलाईन और इंजेक्शन लगाने के अलावा महिलाओं को प्रसव कराने में भी सक्षम है यह महिला।
पोस्ट आभार अनुभव
December 12, 2008
नये ज़माने के जोधा अकबर सावधान
जो भी नारी हिंदू हैं और गैर हिंदू से शादी करना चाहती हैं वो ध्यान रखे कि
हिंदू की किसी गैर हिंदू से की गई परंपरागत शादी हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के तहत वैध नहीं मानी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में ये कहा हैं ।
ऐसे लोग स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत कोर्ट मैरिज कर सकते हैं। कोर्ट के जरिए होने वाली यह शादी पूरी तरह वैध होगी।
शादी जैसा गंभीर फैसला लेने से पहले हर जोधा अकबर उसके वैध और अवैध होने का कानूनी पक्ष जरुर देखा ले ।
ज्यादा जानकारी यहाँ उपलब्ध हैं
डॉ कुसुम लता जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की
क्यूँ मै आज डॉ कुसुम लता पर लिखना चाहती हूँ , क्यूँ उनको इस ब्लॉग पर आप सब के सामने लाना जरुरी हैं क्युकी मुझे दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापको से आने वाले academic council के लिये चुनाव मे इनके लिये वोट चाहिये ।
मै कुसुम को १९९९ से जानती हूँ । मेरी माँ दिल्ली विश्विद्यालय मे दौलत राम कॉलेज मे पढाती थी और एक दिन कुसुम अपने पति डॉ आर ऐ शर्मा के साथ हमारे घर आयी थी । उन्होने नए हमारे घर के पास एक फ्लैट खरीदा था और उसी के लिये दावत देने आयी थी ।
बातचीत के दौरान उन्होने बताया की वो किरोडी मल कॉलेज मे प्राध्यापिका हैं और उनके पति राम लाल आनन्द कॉलेज मे हिन्दी के प्राध्यापक हैं । उनके दो बेटियाँ भी हैं । कुसुम बताती जा रही थी और मै सुनती जा रही थी , उम्र मे मुझसे छोटी हैं सो दीदी कह रही थी ।
मै सोच रही थी की कैसे उन्होने अपनी जिन्दगी को इतनी ऊँचाइयों पर लाया होगा । मै देख रही थी उनके जीने की इच्छा को और मै अभिभूत थी ।
कुसुम और उनके पति दोनों नेत्रहीन हैं और उनसे जुड़ कर मुझे जिन्दगी की लडाइयों को जीतने का नया जज्बा मिलता हैं ।
परसों कुसुम और उनके पति दोनों आए थे मम्मी से आशीर्वाद लेने क्युकी कुसुम दिल्ली विश्वविद्यालय केacademic council के चुनाव मे खड़ी हो रही हैं । मै केवल और केवल अपना फ़र्ज़ निभा रही हूँ ब्लॉग के जरिये उनके लिये वोट मांग कर ।
वोट इस लिये नहीं की कुसुम नेत्र हीन हैं बल्कि इसलिये क्युकी वो जिन्दगी मै आगे बढ़ना चाहती हैं और हम उसके इस सपने को पूरा कर सकते हैं ।
कुसुम अपने रेसिडेंट वेलफेयर सोसाइटी की अध्यक्षा भी रह चुकी हैं और एक बहुत ही सक्षम व्यक्तित्व की मालकिन हैं । मोबाइल फ़ोन , कंप्यूटर इत्यादि उनको पुरी तरह से आता हैं । दोनों बेटिया पूरी तरह स्वस्थ हैं और दोनों ही शालीन हैं ।
कुसुम से आप किरोडी मल कॉलेज मे मिल सकते हैं । वोट करने के लिये १९ दिसम्बर को चुनाव हैं और उनका
BALLOT NUMBER 09 हैं .
December 10, 2008
"जाने क्या बात हुई "
"जाने क्या बात हुई" नाम हैं कलर्स चैनल पर शुरू हुए नए धारावाहिक का । इस धारावाहिक के बारे मे इस लिये नारी ब्लॉग पर लिख रही हूँ क्योकि इस सीरियल मे कुछ ऐसा दिखा जो पहले टीवी पर किसी भी सीरियल मे इतनी गंभीरता से नहीं दिखाया गया हैं ।
इस धारावाहिक मे दिखाया हैं की कैसे एक पुरूष अपनी पत्नी के होते हुए भी दूसरी औरत से सम्बन्ध बनाता हैं । अब शायद आप सोचेगे इसमे नया क्या हैं , सब धारावाहिक यही सब दिखाते हैं । लेकिन नहीं बात ये नहीं हैं . इस सीरियल को जो एपिसोड मैने देखा उस मे दिखाया गया की दो पीढियों मे एक ही समस्या हैं ।
कहानी की नायिका हैं अनुराधा और अनुराधा को पति हैं शैलेन्द्र जिसके शारीरिक सम्बन्ध हैं अपनी ऑफिस मे काम कर रही मेनेजर के साथ ।
शैलेन्द्र की माँ के साथ भी शैलेन्द्र के पिता ने वही किया था जो शैलेन्द्र अपनी पत्नी के साथ कर रहा हैं । शैलेन्द्र के माता पिता साथ रहते हैं एक ही छत के नीचे और " the ideal husband wife happily married " का नाटक सालो से निभा रहे हैं । शैलेन्द्र की माँ ने उसके पिता की "गलती !!!" को माफ़ नहीं किया , भूली भी नहीं और घर परिवार बचाने के लिये साथ रही !!!!!
लेकिन अंत क्या हुआ इस परिवार को बचाने का, शादी को निभाने का जबकि वर्तमान मे उनके परिवार का लड़का भी वही कर रहा हैं । यानी पिता की "गलती" को दोहरा रहा हैं ।
जो भी लोग ये सोचते हैं की शादी को बचाने से परिवार बच जाता हैं उनको ये धारावाहिक जरुर देखना चाहिये , एक कड़वा और घिनोना सच कि एक बार शादी मे दरार आजाये तो वो कभी नहीं भरती और जिन बच्चो के लिये आप ग़लत आदमी /औरत के साथ रहते रहते हैं वो बच्चे , बड़े हो कर , निर्भीक हो कर वही काम करते हैं क्यों कि उनको ये पता हैं कि शादी तो कभी टूटेगी ही नहीं । वो जानते हैं कि सामजिक दबाव के चलते शादी अपने आप निभ जाएगी । !! ।
आगे क्या दिखाया जाएगा पता नहीं पर अब धारावाहिक मे भी कुछ सच दिखाया जा रहा हैं । हो सकता हैं कुछ चेतना आए लोगो मे और लोग गलत जगह रह कर गलतियां करने कि जगह अपनी जिन्दगी को सही तरीके से दुबारा शुरू करने कि सोचे ।
December 06, 2008
अपने सुझाव इस ईमेल पर भेजे
December 05, 2008
पहल करे और एक हादसा बचाये - इस समय नेतृत्व करे , नेतृत्व खोजे नहीं ।
नारी ब्लॉग की राय हैं की हम सब अपने ब्लॉग पर जब हो सके एक पोस्ट के जरिये किस चीज़ को बदलने से हम सुरक्षित हो सकते हैं उस पर जरुर लिखे । हो सकता हैं छोटी लगने वाली बात किसी बडे हादसे को हमारे आस पास होने से रोक सके । जिन्दगी रुकती नहीं , दिनचर्या बदली नहीं जा सकती और आजीविका के लिये कोई भी हादसा हो हम उसको भूल कर आगे बढ़ते ही हैं । लेकिन अगर हम एक मकसद की तरह ब्लोगिंग पर अपने विचारों को एक संजीदगी के साथ रखे तो शायद हम इस लड़ाई को आगे ले जा सके।
------------------
हम मे से कितने हैं जो जब बैंक जाते हैं तो वहाँ "सिक्यूरिटी गार्ड " को दरवाजे पर खड़ा ना पाकर मैनेजर से प्रश्न करते हैं या गार्ड से प्रश्न करते हैं ।
गार्ड को हमेशा attention या सावधान की मुद्रा मे चुस्ती से बैंक के दरवाजे पर होना चाहिये लेकिन ज्यादातर बैंक मे गार्ड कुर्सी पर बैठा होता हैं या बैंक के किसी काउंटर के पीछे खड़ा सील लगा रहा होता हैं ।
आप सब से निवेदन हैं आप किसी भी बैंक मे ऐसा देखे तो आवाज उठाए और लिख कर मनेजर के पास शिकायत दर्ज करे ।
सिर्फ़ और सिर्फ़ आवाज उठाने की पहल करनी होगी और आवाजे ख़ुद आजायेगी । शोर मचेगा तभी सुधार होगा पर पहली आवाज आपकी हो तभी शोर मचेगा ।
पहल करे और एक हादसा बचाये
अपने अपने ब्लॉग पर कुछ आप भी बताये की और कहां कहां पहल करनी हैं । इस समय नेतृत्व करे , नेतृत्व खोजे नहीं । एक छोटी सी पहल बहुत बदलाव ला सकती हैं ।
December 04, 2008
नारी ब्लॉग की पोस्ट का जिक्र हिंदुस्तान दैनिक मे
नारी ब्लॉग की पोस्ट एक बार पढे जरुर और बताये क्यूँ खफा हैं सब भारतीये अपनी डेमोक्रेसी से ? का जिक्र हिंदुस्तान दैनिक मे ११ नवम्बर २००८ को किया गया हैं । हमारी बात को प्रिंट मीडिया के जरिये आगे ले जाने के लिये हम रविश कुमार जी के आभारी हैं । उनके इस आलेख मे और भी बहुत से ब्लॉग का जिक्र किया गया हैं । हर ब्लॉग का नाम और ब्लॉगर का नाम स्पष्ट दिया हैं केवल नारी ब्लॉग के ब्लॉगर का नाम नहीं दिया गया हैं । कारण क्या हो सकता हैं पता नहीं पर ब्लॉग का नाम हैं और बात आगे गयी हैं आम आदमी तक ये नारी ब्लॉग सदस्याओं के लिये अपने विचार खुल कर रखने का और ज्यादा लिखना का कारण बने तो अच्छा होगा । किसी के पास इस अखबार की प्रति हो तो स्कैन कर के भेज दे ।
पूरा लेख पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करे
तैयार करना होगा नयी पीढी को की वो सैनिक बने डरपोक नागरिक ना बने
December 01, 2008
"ये लिपस्टिक-पाउडर लगाकर क्या विरोध करेंगी।" मुख्तार अब्बास नकवी
आगे यहाँ पढे ,
अब हम को अपने मन का आक्रोश भी इनकी सलाह से करना होगा । लिपस्टिक लगा कर विरोध करना , मोमबती जला कर विरोध करना पाश्चात्य सभ्यता हैं ।
"मेरा बेटा देश के लिये मरा हैं , केरल के लिये नहीं मरा हैं । मेरे बेटे की मौत पर राजनीति मत करो । "
"मेरा बेटा देश के लिये मरा हैं , केरल के लिये नहीं मरा हैं । मेरे बेटे की मौत पर राजनीति मत करो । "ये शब्द हैं शहीद Major Sandeep Unnikrishnan के पिता के । मेजर संदीप कमांडो थे और उनकी जान आम आदमियों को बचाते हुए गयी मुंबई आतंकवादी हमले मे । उनके पिता ने किसी भी पॉलिटिकल पार्टी के नेता से बात करने से इनकार कर दिया । जब दाह संस्कार हुआ तो चीफ मिनिस्टर साहब नहीं आए । बाद मे अपने कुत्ते मेजर साहब के घर भेजे की पता कर आओ कोई आतंकवादी तो नहीं घुसा हैं एक शहीद के घर मे । मेजर संदीप के पिता ने अपने घर की तलाशी करवाने से इनकार कर दिया और मुख्यमंत्री को घर मे ही नहीं घुसने दिया ।
सलाम हैं मेजर संदीप को और उससे भी ज्यादा सलाम हैं उनके पिता को जो देश प्रेम का सही मतलब समझते हैं ।
क्या अधिकार हैं एक मुख्यमंत्री को एक शहीद के घर तलाशी करवाने का ?? शर्म आती हैं इन पर और हर उस नेता पर जिसे हम ही चुन कर लाते हैं और वो हम से ही अपना बचाव चाहता हैं
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