For ages woman have been shouting from roof top , from books , from blogs that their bodies belong to them and when they so no they mean it .But none was willing to understand . The entire bhartiye Sanskrit was ruined because woman wanted to have a life of their own. And then comes Pink movie where a fictious male character makes people understand A woman's no is no . The movie where the original end was changed the climax was reversed to suit today's scenario is needed to make Indian man understand the Basics. If a real woman says it on various medium they can't understand and call that woman as feminist or pragatsheel or charitrheen but the moment a man even if its ficticious and filmy says so they drool over him . Its surprising that director could not find a woman lawyer to plead the case . Think again and see what the movie is actually promoting a typical patriarchal society and highlighting mans role in protecting woman. Amitabh bachchan wrote a letter to his grand daughter or was he promoting his movie because that letter no where mentioned the role of woman of his family in his grand daughters life.
इसी ब्लॉग को लेकर ना जाने इन्ही बातो पर कितनी बार बहस हुई और हर बार हम सब को गलत साबित किया गया। वहीँ ब्लॉगर अब फेस बुक पर पहुँच कर पिंक देखने के बाद स्टेटस दे रहे हैं "ना को ना समझे " .
कुछ वो जो नारी की "ना " यानी "चॉइस " को गिनते ही नहीं थे आज "ना को ना " समझने को को कह रहे हैं
चलिये समझ लीजिये यही बहुत हैं हाँ नारी का कहा कब समझेंगे पता नहीं
ना को ना समझने का अर्थ सीधा हैं की नारी को चॉइस या चुनने का सम्मान अधिकार हैं। आप उसको ये नहीं समझा सकते की स्वतंत्रता का अर्थ क्या हैं , कपडे कैसे पहनो , नौकरी कितने बजे तक करो , अकेली घुमोगी तो यही होगा , शादी नहीं करोगी तो चरित्रहीन हो। उसको अधिकार हैं की अपनी समझ के हिसाब से अपनी जिंदगी जिये।
नाबालिग लड़के और लड़की के लिये सब नियम कानून अगर एक से होगे तो उनके बड़े होने के बाद उनमें समानता का भाव भी होगा।
इसी ब्लॉग को लेकर ना जाने इन्ही बातो पर कितनी बार बहस हुई और हर बार हम सब को गलत साबित किया गया। वहीँ ब्लॉगर अब फेस बुक पर पहुँच कर पिंक देखने के बाद स्टेटस दे रहे हैं "ना को ना समझे " .
कुछ वो जो नारी की "ना " यानी "चॉइस " को गिनते ही नहीं थे आज "ना को ना " समझने को को कह रहे हैं
चलिये समझ लीजिये यही बहुत हैं हाँ नारी का कहा कब समझेंगे पता नहीं
ना को ना समझने का अर्थ सीधा हैं की नारी को चॉइस या चुनने का सम्मान अधिकार हैं। आप उसको ये नहीं समझा सकते की स्वतंत्रता का अर्थ क्या हैं , कपडे कैसे पहनो , नौकरी कितने बजे तक करो , अकेली घुमोगी तो यही होगा , शादी नहीं करोगी तो चरित्रहीन हो। उसको अधिकार हैं की अपनी समझ के हिसाब से अपनी जिंदगी जिये।
नाबालिग लड़के और लड़की के लिये सब नियम कानून अगर एक से होगे तो उनके बड़े होने के बाद उनमें समानता का भाव भी होगा।