हर मुद्दे को भटकना कितना आसान हैं
रेप
पर बनी फिल्म का विरोध सरकार इस लिये कर रही कर रही थी की कहीं फिल्म देख
कर फिर से वो स्थिति ना पैदा हो जाए जहां पर जनता सड़को पर उतर आये जैसे तब
हुआ जब रेप हुआ। खुद पुलिस विभाग ने इसके प्रदर्शन पर रोक की मांग की।
एक फिल्म से पुरुष समाज में
इतनी हल चल क्यों ? बात समाज की हो रही थी , बात सिस्टम की हो रही थी आप
की नहीं। आप को ऐसा क्यों हमेशा लगता हैं की स्त्री के साथ कहीं भी कुछ
गलत हुआ हैं लोग आप को जिम्मेदार मानेगे।
अपने अंदर
नहीं आपने आस पास झाँकिये और देखिये कैसे अपनी बेटी की दोस्त के साथ एक
"पिता" शारीरिक सम्बन्ध बनाने की बात करता हैं या कैसे एक नेता वोट के लिये
"लड़के /गलती " की बात करता हैं। ये सब भी आप के ही सभ्य समाज का हिस्सा
हैं।
हमको जगाने के लिये किसी फिल्म की जरुरत नहीं है क्युकी सोई हुई आत्मा फिल्म से क्या जागेगी। आइये मिल कर उन सब लोगो को बैन दे जो रेप जैसे घिनोने शब्द के बारे मे बात करते हैं। रेप करने वाले क्या सोचते है इसको दिखा कर क्या हासिल होगा। हम तो रोज आईना देखते हैं फिर कोई विदेशी महिला जो खुद रेप का शिकार हुई हैं उसको क्या हक़ हैं हम को आईना दिखाने का।
लोग कहते हैं हम अपनी अगली पीढ़ी को बहुत से संस्कार दे कर जा रहे हैं और खबरों पढ़िये तो पता चलता हैं की नोबल पुरूस्कार विजेता , भारतीये रतन विजेता इत्यादि बड़ी बड़ी ना इंसाफियां करते हुए अपने मकाम तक पहुचे हैं।
किसी पर यौन शोषण का आरोप हैं , किसी पर धांधली का तो किसी पर धर्म परिवर्तन करवाने का।
वो जो जितने ऊंचाई के पायदान पर खड़े दिखते वो उतने ही रसातल में दबे हैं।
लोग ये भी कहते हैं मीडिया का क्या हैं किसी के खिलाफ कुछ भी लिख देता हैं
एक ७४ साल के आदमी पर एक २४ साल की लड़की यौन शोषण का आरोप लगाती हैं और हम आज भी रिश्तो की दुहाई ही देते नज़र आते हैं। ७४ और २४ साल में कितनी पीढ़ियों का अंतर हैं पता नहीं पर ७४ वर्ष में ये पहला आरोप होगा क्या ये संभव