नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।

यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का

15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं

15th august 2012

१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं

"नारी" ब्लॉग

"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।

" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "

हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था

November 30, 2013

कितनी बदनामी होती हैं एक परिवार कि जब एक पुरुष एक अश्लील हरकत करता हैं क्यूँ नहीं उस परिवार को कानूनन उस पुरुष को परिवार से बेदखल करने का अधिकार हो और हर्जाना लेने का भी

" ऐसा प्रत्येक पुरुष जिसमे लेशमात्र भी कामाग्नि मौजूद है असावधान स्त्री के लिए खतरनाक है। "



आइये सावधान रहे अपने पिता से http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2013-11-28/mumbai/44546220_1_malwani-eight-year-old-daughter-survivor
आइये सावधान रहे अपने भाई से http://kayceeweezy.wordpress.com/2012/02/15/sisters-kill-own-brother-for-sexual-harassment/
आइये सावधान रहे अपने पति से http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2013-09-07/bhopal/41854188_1_husband-habibganj-khargone

इन रिश्तो के बाद सावधान रहे अपने गुरु से , अपने बॉस से। http://mangopeople-anshu.blogspot.com/2013/11/mangopeople_27.html?showComment=1385789655195#c2859946066595373664


आप सीधा सीधा ये कह रहे हैं कि पुरुष के बायोलॉजिकल डिसऑर्डर के लिये सावधान स्त्री रहे 

क्यूँ सारे समाज में स्त्री ही सावधान क्यूँ रहे ? पुरुष क्यूँ ना कम से अब सावधान हो जाए 
कि अब आज कि नारी अपनी चिंता ना करके उस पुरुष को बेनाकाब करेगी और इतना बेनकाब करेगी वो समाज में मुँह  नहीं दिखा सकेगा।
 

जिस दिन स्त्री ने ये सोच लिया कि "उसको अब फर्क नहीं पड़ता " जो करेगा वो ही दोषी हैं और उसको निर्वस्त्र करके समाज का हित स्त्री कर रही हैं उस दिन समाज बदेलगा। 

बहुत सदियाँ स्त्री को निर्वस्त्र किया जाता रहा हैं और माना जाता रहा कि शर्म भी उसी को आनी चाहिए थी क्युकी वो सावधान नहीं थी 


बस जिस दिन उस पुरुष " जो किसी भी महिला के साथ रेप , मोलेस्ट या अनय कोई भी दुष्कर्म करता हैं " सबसे निकट महिला सम्बन्धी { माँ , बहिन , पत्नी , कुलीग }   उसका बहिष्कार कर देगी और उस पर डिफेमेशन{ मानहानि } करके अपनी बदनामी का हिसाब उस से मांगेगी  उस दिन सब बदल जाएगा। 

 अभी ये जो बीवी और माँ और अन्य के पीछे छुप कर दुष्कर्म करके पुरुष अपने को देवता सिद्ध करता हैं वो ख़तम होगा और वो दिन अब ज्यादा दूर नहीं हैं 


क्यूँ नहीं एक माँ बीवी या बहिन को ये अधिकार होना चाहिये कि वो अपने पुरुष सम्बन्धी के कारण  बदनामी के लिये डिफेमेशन का केस कर सके और हर्जाना प्राप्त कर सके 

कितनी जिल्लत सहनी पड़ती हैं महिला सम्बन्धियों जिन्हे समाज में एक गुनाह गार के साथ रहना पड़ता हैं 

आज लोग सोमा चौधरी पर थूक रहे हैं  अगर सोमा चौधरी के पास ये अधिकार होता कि वो तरुण तेजपाल के कारण हुई अपनी बदनामी का हिसाब हर्जाने के रूप में तरुण तेज पाल  से ले सकती या तरुण तेजपाल कि बेटी टीआ अपनी बदनामी का हिसाब हर्जाने के रूप में अपने पिता से कानून ले सकती तो आज उनको अपना परिवार बचाने के अपराध का दोषी ना बनना पड़ता।  

कितनी बदनामी होती हैं एक परिवार कि जब एक पुरुष एक अश्लील हरकत करता हैं क्यूँ नहीं उस परिवार को कानूनन उस पुरुष को परिवार से बेदखल करने का अधिकार हो और हर्जाना लेने का भी    
अपनी राय दे 

 If A man is involved in a crime of rape , molestation , sexual harassment the woman of his family , mother , daughter and sister face the wrath of society for standing with him . The same society conditions the woman to look after the family . 
Why should these woman be given a legal right to disown the culprit { man } and put up a defamation case against them . 
Why should they not be entitled legally to claim monetary compensation from such man for loss of their repute and prestige in society .
How much social stigma a wife faces when her husband rapes a woman , why should she not be given a legal right for monetary compensation . 
Once such legal right is given to them at least they will have the guts to move ahead from a family that in no way is a family .


November 28, 2013

हम तो उनकी बात सुन कर डर ही गए , क्या कर सकते हैं वो देवता जो हैं , भारतीये नारी कि पूजा करते हैं

चलिये कुछ और बात करते हैं
क्या तरुण तेजपाल कि बात करना जरुरी हैं
ऐसा इन्होने किया भी क्या हैं
एक फ़्लर्ट कर रहा था
अब इसमे शोषण जैसा , रेप जैसा क्या हुआ
सहज सहमति  भी कोई चीज़ हैं
और ऐसा हुआ भी क्या था

और फिर जब माफ़ी मांग ली गयी तो बात तो अपने आप ही ख़तम हो गयी और भारतीये समाज में तो नारी को देवी मानते हैं और कहा जाता हैं जहां नारी कि पूजा होती हैं वहाँ देवता बसते हैं।

यानि इस तरह तो भारत में रहने वाला हर पुरुष देवता हुआ क्युकी नारी को देवी का दर्ज दे कर देवता वो बन गया

तो देवता गलती कैसे कर सकता हैं

वो तो किसी भी देवी के साथ कुछ भी कर सकता हैं क्युकी ऐसा कुछ भी करके वो उसका "सम्मान " बढ़ाता हैं।
तो चलिये इस प्रकरण में कुछ नहीं हैं बेकार हम  सब समय व्यर्थ नष्ट कर रहे हैं ये तो सब काम काजी महिला के चोचले हैं और इन चोचलों के चलते एक "समाजवादी देवता" ने कल ही कहा हैं महिला को अब नौकरी मिलना मुश्किल हैं http://ibnlive.in.com/news/due-to-tejpal-case-companies-scared-of-hiring-women-naresh-agarwal/436417-37-64.html

हम तो उनकी बात सुन कर डर ही गए , क्या कर सकते हैं वो देवता जो हैं , भारतीये नारी कि पूजा करते हैं

स्त्री का एक स्थान हैं और ये उसको बार बार कोई ना कोई देवता बता ही देता हैं

वैसे मुझे कोई ये बता सकता है कानून कि देवी क्यूँ हैं कानून का कोई अंधा देवता क्यूँ नहीं हैं यहाँ इतना जेंडर बायस क्यूँ हैं पुरुष के खिलाफ ?? :)


November 25, 2013

अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस (25 Nov.) !

                          सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि महिला हिंसा आज इतने विकराल रूप में सामने आ रही है कि  विश्व  पटल पर लाने वाली समस्या बन  खड़ी हो चुकी है . बड़े बड़े प्रगतिशील देश , आधुनिकता और समानता  हुंकार भरने वाले देश और इसी के लिए आगे बढ़कर भाषण देने वाले बड़े बड़े लोग इस काम को करने में पीछे नहीं रहते हैं।
                         डॉक्टर , वकील , जज , नेता, साधू-संत और मंत्री तक महिला हिंसा में लिप्त पाये जा रहे हैं।  ऐसा तब हो रहा है जब कि हमारे जैसे देश की नारी चुप रहना अधिक पसंद करती है कि व्यर्थ में उसकी ही बदनामी होगी।  वह चुपचाप सब कुछ सहती रहती है।  ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ गाँव , गरीब और अशिक्षित महिलाओं के बीच होने वाली भावना है बल्कि ये बड़े बड़े परिवारों में , अच्छा खासा कमाने वाली , समाज में अपना एक अलग रुतबा रखने वाली , उच्च  शिक्षित महिलायों के साथ भी हो रहा है . वह अपने संस्कारों के चलते , अपने बच्चों के भविष्य को देखते हुए और फिर पति की प्रतिष्ठा को ठेस लगेगी - ये सब  सोच कर सारी  हिंसा सहन करती रहती है।
                        महिला  हिंसा से मतलब सिर्फ शारीरिक हिंसा नहीं  है बल्कि बल्कि इसके अंतर्गत आती कई स्थितियां और जिनको आज भी नारी सह रही है क्योंकि हमारा समाज भी इस हिंसा को सहते रहने वाली महिला को बहुत सम्मान की दृष्टि से देखता है और इसमें पुरुषों से अधिक महिलाएं भी शामिल होती है।  ये जरूरी नहीं कि महिला हिंसा सिर्फ ससुराल में , पति से या  कार्यक्षेत्र में ही सह रही हो।  वह सिर्फ महिला होने के भी रूप में भुगत सकती है।
                       महिला हिंसा  अंतर्गत किसी भी प्रकार की हिंसा या प्रताड़ना को शामिल किया गया है फिर चाहे  वह शारीरिक , मानसिक , भावात्मक या फिर आर्थिक किसी भी रूप में  क्यों न हो ? उसे महिला हिंसा ही कहा जाएगा। हमारे समाज की जो भावनाएं महिलाओं के प्रति है , वे कितनी ही प्रगतिशील होने के दावे का ढिंढोरा क्यों न पीटें , वह इसमें सबसे पहले कारक बनती हैं। हमारी सामाजिक व्यवस्था ( पता नहीं कौन इसके जिम्मेदार  है ?) प्रताड़ित , परित्यक्त , तलाकशुदा , संतानहीन या फिर सिर्फ लड़कियों की माँ के प्रति अपना एक अलग रुख रखता है।  इस काम के लिए जिम्मेदार भी वही है और फिर महिला आयोग , महिला संगठन के प्रति लोगों के विचार सुने हैं - वे इनको महिलाओं को भड़काने वाला ,  घर तोड़ने वाला और समाज विरोधी करार देते हैं।  क्योंकि औरत की अपनी कोई पहचान नहीं होती - वह तो जिस कुलबहू बनती है उसी कीबन जाती है उसी के नाम से जानी जाती है।  फिर उसका अपना स्वतन्त्र अस्तित्व कहाँ है ?
                        हम विश्व की नहीं सिर्फ भारत की बात करें तो आज भी ३५ प्रतिशत महिलायें ( इसमें बचपन से लेकर बात की जा रही है ) अपने माता-पिता के घर में भी हिंसा का शिकार होती हैं।  एक तो जन्म से ही उनको परिवार में दोयम दर्जे का स्थान देना अभी भी ८० प्रतिशत परिवारों की परंपरा में शामिल है। लड़कों की तुलना में उनकी जो उपेक्षा होती है वह उनको भावात्मक रूप से आहात करती है।  बड़े होने पर भी शिक्षा की दृष्टि से उनकी शिक्षा पर कम खर्च करने की सोची जाती है।  घर के अंदर के कामों में साडी जिम्मेदारी उनके सिर पर डाल  दी जाती है। उनके जन्म से ही परिवार वाले ही नहीं बल्कि  दूसरे लोग भी पराया धन , परायी अमानत कह कर परिचय करते हैं।
                    इस महिला हिंसा को सहने के लिए मजबूर क्यों है आज की नारी क्योंकि हमारी सामाजिक व्यवस्था और उसकी आर्थिक परतंत्रता या फिर अगर वह कमाती भी है तो जरूरी नहीं कि वह अपनी कमाई को अपने मन से खर्च कर ले।  ऐसा नहीं है कि आत्मनिर्भर महिलायें को प्रताड़ित नहीं किया जाता।  अभी तक तो एक सोच थी कि ज्यादातर घरों में काम करने वाली महिलाओं के पति ही उनके पैसे छीन कर उनको प्रताड़ित करते हैं लेकिन ऐसा नहीं है -  नौकरी वाली लड़की से शादी करना पसंद करते हैं क्योंकि उनके घर में दोहरी कमाई आएगी और एक कामधेनु उन्हें मिल रही होती है लेकिन कुछ घरों में तो सिर्फ कामधेनु ही समझी जाती है।  उसकी कमाई पर पति और सास ससुर का हक़ होता है।
                            एक अध्ययन के अनुसार ५० प्रतिशत महिलायें पति के द्वारा मार खा चुकी हैं।  रोज न सही लेकिन उनके मन का काम न होने पर हाथ उठाने में गुरेज नहीं करते और इसको वे सामान्य बात मानती है फिर इस हिंसा का तो कोई उपाय नहीं नहीं है। ५० प्रतिशत महिलायें और पुरुष इस बात को बुरा नहीं समझते हैं।
                           ये सब बातें तो तब की हैं जब कि वह एक परिवार में उसके सदस्य होने के नाते सह रही होती है और जी रही होती है।  ऐसा नहीं है कि उसकी आत्मा इस हिंसा के बाद रोती नहीं है लेकिन कभी बच्चों का मुंह देख कर , कभी माता पिता की इज्जत का हवाला देने के बाद और कभी छोटे भाई बहनों के भविष्य को देख कर आपने आंसुओं के गले के नीचे उतार कर सब कुछ सह लेती हैं।
                         इसके अलावा भी परित्यक्ता होने पर वह जिस हिंसा का शिकार होती है उसका जिम्मेदार भी हमारा समाज अधिक जिम्मेदार है।  उसके दर्द को समझने के स्थान पर उस पर परोक्ष रूप से लांछन लगाये जाते हैं क्योंकि पुरुष हर हाल में सही समझा जाता है।  इस का उन्मूलन कैसे हो सकेगा ? इस पर विचार भी होना चाहिए।
                        संतानहीन महिला भी समाज की दृष्टि में पूर्णरूप से दोषी समझी जाती है बगैर से जाने की इसका कारण क्या है ? ससुराल में उसका विकल्प लाने की बात भी सोची जाने  लगती है .  वंश तो उसको ही बढ़ाना होगा।  इस कारण के उन्मूलन की बात सोचने की पहल होनी चाहिए।  चाहे गोद लेकर या फिर और आधुनिक विकल्प भी सोचे जा सकते हैं और उस मानसिक प्रताड़ना से बचाया जा सकता है।
                         सिर्फ लड़कियों की माँ और लडके की माँ को अलग अलग तरीके से व्यवहृत होती है . इसके लिए भी परिवार वाले उनके प्रति विभिन्न प्रकार से प्रताड़ित करने के अवसर खोजते रहते हैं और कभी कभी तो लड़की होने पर घर से भी निकाल देते है।
                        घर से लेकर बाहर तक किसी भी जगह वह यौन शोषण का शिकार तो बनती ही रही है और जैसे जैसे हमारे समाज ने प्रगति की है वैसे वैसे उसकी असुरक्षा जा रही है।  वह सिर्फ एक सामान समझी जाती है।  घर में पुरुष सदस्यों में अब कोई सीमा रेखा नहीं रह गयी है , पास पड़ोस में चाचा और भाई कहे जाने वाले लोग , स्कूल में सहपाठी ,   कार्य स्थल पर बॉस , सहकर्मी , इसके बाद उसके लिए संसार की कोई भी जगह महफूज़ नहीं है।  रोज रोज घटने वाली घटनाओं ने एक आतक का भाव उसके मन में भर दिया है।  अब पुरुष वर्ग इतना उदंड और वहशी हो चूका है कि उसके न उम्र का लिहाज रहा है और न ही किसी का खौफ बचा है।  जैसे जैसे क़ानून सख्त होने का प्रयास कर रहा है वैसे वैसे ही अपराधों की संख्या बढ़ रही है।  इसके पीछे एक कारन यह भी है कि अब निर्भीक होकर महिलायें अपने प्रति होने वाले हिंसा के मामलों को सामने लाने लगी हैं और इससे जो बेनकाब हो रहे हैं वे दुनियां में बहुत प्रतिष्ठित और सम्मानीय व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं .
                             आज के दिन हैम अपने नारी वर्ग से जो इस बात के प्रति सजग है , न हिंसा को सहन करें और न औरों के सहते हुए देखें।  जरूरत बगावत की ही नहीं है बल्कि शांत और सौम्य तरीके से उससे जुड़े हुए लोगों को समझने की भी है।  अगर लोगों की सोच में सकारात्मक बदलाव आएगा तो वास्तव में महिला हिंसा उन्मूलन की दिशा में एक सफल कदम कहा जाएगा।

November 22, 2013

जिस लड़की का शोषण हुआ उसके पिता के मित्र रहे थे जिन्होने शोषण किया , उनकी बेटी कि सबसे निकटम दोस्त थी ये पत्रकार।

Non reporting of Sexual Harassment for ages have led man to believe that woman are sex slaves born to satisfy the sexual needs of man when and where ever the need arose, with and whom so ever this need aroseThis all starts at family level and keeps going on as none is willing to report it at the family . The ladies of the family always are more protective of the man folk and feel all such things bring blemish on the family repute { even in this case it should have been the daughter to have got her dad arrested immediately }Also its a common practice the higher the man rises the lower he falls , take into account all the cases that happen in work place whether in india or usa or elsewhere the male boss thinks its his RIGHT AS A BOSS to command respect from woman employee , and commanding respect means satisfaction of their sexual needs in which ever way they want .Also woman needs to always understand that when ever some helps them going out of the way there is a ulterior motive to exploit as soon the situation arises not just the situation but the child/ girl / woman , the man feels the person is so obliged that will never report BUTthings have changed , woman have evolved and this is the biggest ERROR of judgement the man make , they are not willing to accept this evolution .
  1.  http://indianhomemaker.wordpress.com/2013/11/22/how-do-you-associate-a-sexual-assault-with-someone-who-you-thought-stood-up-for-justice/#comment-222442
  2. http://www.saharasamay.com/nation-news/676543147/tarun-tejpal-sexual-assault-case-read-victim-s-complete-e-mail-t.html
  3. http://indianhomemaker.wordpress.com/2013/11/22/how-do-you-associate-a-sexual-assault-with-someone-who-you-thought-stood-up-for-justice/

जिस लड़की का शोषण हुआ उसके पिता के मित्र रहे थे जिन्होने शोषण किया , उनकी बेटी कि सबसे निकटम दोस्त थी ये पत्रकार। 


November 21, 2013

मिलिये निशा मधुलिका जी से ,the indian woman has arrived जैसे शब्द इनके लिये कह कर हम अपने लिखे हुए शब्दो का सम्मान करते हैं।


Helping Women Get Online Story: A retired lady, who didn't know what to do with her time started blogging and posting videos on cooking and is a successful YouTube Chef today with a channel that has over 85,000 subscribers an more than 50,000 views a day. Help more women benefit from the Internet, help them discover hwgo.com. Helping Women Get Online, A Google initiative.


मिलिये निशा मधुलिका जी से ,the indian woman has arrived जैसे शब्द इनके लिये  कह कर हम अपने लिखे हुए शब्दो का सम्मान करते हैं।
ब्लॉग वाणी आज और भी मुखर  हैं

अपनी इस पोस्ट http://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2010/11/blog-post_14.html पर मैने गृहणी और कंप्यूटर क्रांति कि बात कि थी आज मुझे ये विडियो देख कर अपनी लिखी बात फिर से याद हो आयी

निशा जी को मेरा सलाम और मैथिली जी और सिरिल जी जैसा ब्लॉग परिवार अगर हर घर में हो तो ऐसी ना जाने कितनी कहानिया रोज मुझे पोस्ट करने को मिले

खाना बनाना निकृष्ट काम नहीं हैं और स्त्री खाना बना कर परतंत्र नहीं स्वतंत्र  ही हैं क्युकी हर वो काम जिसको करने में हमें अच्छा लगे और जिसको करने कि क्षमता हम में हो वो काम जरुर करना ही चाहिये।  जब दाल रोटी चावल ब्लॉग बनाया था तब भी मन में  यही बात थी

"दाल रोटी चावल सदियों से नारी ने इसे पका पका कर राज्य किया हैं , दिलो पर , घरो पर" http://daalrotichaawal.blogspot.in/2008/04/blog-post.html

November 20, 2013

सावधान हो जाइये !

        सावधान हो जाइये बगैर आपकी जानकारी के और आपके डिटेल्स कहीं  से भी प्राप्त करके कोई भी आपके नाम से बैंक में अकाउंट खोल सकता है।  मनचाहा पता और मनचाही जगह पर और  फिर उसके आधार पर क्रेडिट कार्ड भी ले सकता है और  लाखों की खरीदारी भी कर सकता है। पता तब चलेगा   चलेगा जब बैंक के रिकवरी नोटिस आपके पास आएगा।  
                                     कल मेरे पास एक फ़ोन दिल्ली से आया कि आपकी बेटी प्रज्ञा श्रीवास्तव के ऊपर स्टेट बैंक का दो लाख सत्तर हजार  लोन है और मैं तीस हजारी कोर्ट से रोहित त्यागी बोल रहा हूँ।  रिकवेरी के लिए उनका वारंट निकला हुआ है।  मैंने डिटेल जानना चाहा तो उसके द्वारा दिया गया वर्किंग प्लेस और रेजिडेंस एड्रेस गलत था।  मैंने कहा कि  बेटी ने कभी यहाँ पर जॉब नहीं की और न ही वह इस एड्रेस पर रही है।  फिर उसने उसका पेन कार्ड नंबर और नॉमिनी में माँ का नाम रेखा देवी (जबकि मैं अपना नाम सिर्फ रेखा श्रीवास्तव ही प्रयोग करती हूँ ) और पिता का नाम आदित्य श्रीवास्तव बताया।  फिर बताया कि उसने इतने रुपये की खरीदारी की है। 
                                     मैंने उसको बताया कि मेरी बेटी यहाँ पर नहीं रहती है वह पुर्तगाल में है और न ही उसने कोई खरीदारी की है।  जो डेट्स खरीदारी की थी उस समय वह इंडिया में भी नहीं थी।  फिर भी वह बेटी का कांटेक्ट नम्बर मांग रहा था जो मैंने नहीं दिया।  लेकिन एक प्रश्न मेरे सामने छोड़ गया कि क्या ऐसे भी सम्भव है।  इस को किस क्राइम में रखा जा सकता है।  लेकिन हो बहुत कुछ सकता है इसलिए आप लोग भी सावधान रहिये।  पेन कार्ड नं हम कई जगह इस्तेमाल करते हैं और  माता पिता के नाम तो हर जगह पर इस्तेमाल होते हैं।  फ़ोटो आपकी नेट से किसी भी तरीके से ली जा सकती है।  इससे कैसे बचा जा सकता है ? 
ठीक वैसे ही जैसे अकाउंट हैक करके रुपये निकले जा सकते हैं वैसे ही नकली अकाउंट खोल कर कुछ भी किया जा सकता है।

November 08, 2013

जन हित मे जारी

जन हित मे जारी

जो लोग गूगल कि सुविधाये इस्तमाल कर रहे हैं वो इस  अवशय पढ़े
http://www.google.com/intl/en/policies/terms/changes/
गूगल इन अपनी पॉलिसी में बदलाव किये हैं
आप अपने प्रोफाइल में भी अगर सही बदलाव कर ले तो आप का प्रोफाइल काफी सुरक्षित हो जायेगा

November 07, 2013

That Day After Everyday- A Short Film


I saw a short movie today: 'That Day After Everyday', and have not been able to shake it off my mind.
 
Its a movie about ordinary women like us who are taught to ignore lewd remarks / advances made by 'Sadak Chhaps' who are no match to us in brains or talent or hard work that we put in every day. And ignore them is what we do till we are pushed over the edge.
 
I am posting it for the readers of Nari Blog since I thought you would appreciate this one.
 
Its a movie by Anurag Kashyap...I just want you to watch it!



November 05, 2013

"जेंडर बायस "

हिंदी फिल्मो में और अब हिंदी टी वी सीरियल मे जहां भी "गरीब" घर दिखाए जाते हैं यानि एक कमरे में जहां परिवार रहते हैं वहाँ हमेशा एक बिस्तर होता है कभी तखत , कभी चारपाई तो कभी मंझी।

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