PART THREE
1. RUMBLINGS OF THE STORM
This was my first voyage with my wife and children. I have often observed in the course of this
narrative that on account of child marriages amongst middle class Hindus, the husband will be
literate whilst the wife remains practically unlettered. A wide gulf thus separates them, and the
husband has to become his wife's teacher. So I had to think out the details of the dress to be
adopted by my wife and children, the food they were to eat, and the manners which would be
suited to their new surroundings. Some of the recollections of those days are amusing to look
back upon.
A Hindu wife regards implicit obedience to her husband as the highest religion. A Hindu
husband regards himself as lord and master of his wife, who must ever dance attendance upon
him.
Mahatma Gandhi - Autobiography
8 9
आप इस को महज संयोग ही कह सकते हैं की आज मैने गाँधी जी की आत्मकथा में ये पढ़ा .
पिछ्ले कुछ दिन से चल रही ब्लॉग - बहस जो नारी ब्लॉग की पोस्ट से शुरू हो कर रश्मि रविजा के ब्लॉग से होती हुई अंशुमाला के ब्लॉग तक पहुंची पूरी मेरी नज़र में दुबारा घूम गयी .
जिस अंश को ऊपर मैने दिया हैं वो आज सुबह किताब में पढ़ा था , फिर नेट पर खोज कर यहाँ पेस्ट किया . ये किताब 19 2 7 में पहली बार पब्लिश हुई थी और जिस समय का ये विवरण हैं वो साल था 18 9 7 , यानी आज से तक़रीबन 1 1 5 साल पहले .
गाँधी जी कहते हैं भारत में
बाल विवाह के कारण ,
पति पढ़ा लिखा ,
पत्नी बिलकुल निरक्षर ,
होने के कारण
उनके बीच गहरी खाई
जिसकी वजह से
पति को पत्नी का "टीचर " बनना पड़ता था
कितनी अजीब बात हैं आज ११ ५ साल बाद भी समाज की यही सोच हैं की पति को अपनी पत्नी को अपने हिसाब से सक्षम बना लेना चाहिये
एक तरफ हम नारी सशक्तीकरण की बात करते हैं , स्त्री पुरुष लिंग विबेध से ऊपर उठ कर समानता की बात करते हैं और दूसरी तरफ हम पुरुषो से ये भी उम्मीद करते हैं की वो अपनी पत्नी के टीचर बने .
क्या ये कुछ ज्यादा उम्मीद करना नहीं हुआ ?
आज के युग में जब समानता की बात हो रही हैं तो हम कैसे ये सोच सकते हैं की वो लड़के जो आज 2 ५ -30 वर्ष के हैं वो अपनी पत्नी को " सक्षम " बनाने के लिये उनके "टीचर " बन जाए . इन लड़को ने अपने बचपन से लेकर विवाह तक यही सुना हैं की लड़किया लड़को के बराबर हैं . बेटे और बेटी के अधिकार बराबर हैं . कानून और संविधान में स्त्री और पुरुष के अधिकार बराबर हैं फिर वो कैसे और क्यूँ अपनी पत्नी को "कुछ सिखाने " में अपना समय दे . क्यूँ उनको ये उम्मीद नहीं होनी चाहिये की उनकी पत्नी उनके समान ही सब कुछ करने में सक्षम होंगी .
और अगर वो "टीचर" बनता भी हैं तो फिर क्या गाँधी जी के कथन अनुसार एक हिन्दू पत्नी के लिये उसका सबसे बड़ा धर्म अपने पति की बात मानना होता हैं आज भी मान्य नहीं होना चाहिये .
हम कुछ ज्यादा की उम्मीद कर रहे हैं उस आधी आबादी से जिसके बराबर हम मानते हैं की हम हैं .
अपने जीवन साथी को उसके गुण दोष के साथ कोई तब ही अपना सकता हैं जब दोनों साथी बराबर हो .
लेकिन
आज भी ये उम्मीद तो यही हैं की एक साथी यानी पति अपने हिसाब से अपने जीवन साथी को "सीखा पढ़ा कर " अपने और अपने परिवार के लिये "ढाल" ले
और
दूसरा साथी यानी पत्नी "सहनशीलता" से अपने साथी से "सीख पढ़ कर " उस के परिवार के योग्य अपने को बनाले .
समानता और बराबरी के युग में , ये दोनों साथी गुरु और शिष्य , पूज्य और पूजक बने रहे तो फिर साथी कैसे रह पायेगे क्युकी दोनों आज भी दो अलग अलग सीढ़ियों पर ही खड़े हैं बस फरक इतना हैं की दोनों को एक बात समझ आ चुकी हैं की वो बराबर हैं .
इस बराबरी की बात से लडके उम्मीद करने लगे हैं की उनकी पत्नी हर प्रकार से सक्षम हो कर उनकी जीवन साथी बन रही हैं लेकिन वास्तविक स्थिति बिलकुल भिन्न हैं .
कारण बहुत से हैं , जिनकी चर्चा पिछली बहस में हो चुकी हैं
मुझे तो गाँधी जी का कथन पढ़ कर बस इतना लगा की ११ ५ साल में भी हमारे समाज की सोच में बदलाव बहुत कम हुआ हैं . जो हुआ भी हैं उसकी वजह से एक असुंतलन की स्थिति की और हम बढ़ रहे हैं
1. RUMBLINGS OF THE STORM
This was my first voyage with my wife and children. I have often observed in the course of this
narrative that on account of child marriages amongst middle class Hindus, the husband will be
literate whilst the wife remains practically unlettered. A wide gulf thus separates them, and the
husband has to become his wife's teacher. So I had to think out the details of the dress to be
adopted by my wife and children, the food they were to eat, and the manners which would be
suited to their new surroundings. Some of the recollections of those days are amusing to look
back upon.
A Hindu wife regards implicit obedience to her husband as the highest religion. A Hindu
husband regards himself as lord and master of his wife, who must ever dance attendance upon
him.
Mahatma Gandhi - Autobiography
8 9
आप इस को महज संयोग ही कह सकते हैं की आज मैने गाँधी जी की आत्मकथा में ये पढ़ा .
पिछ्ले कुछ दिन से चल रही ब्लॉग - बहस जो नारी ब्लॉग की पोस्ट से शुरू हो कर रश्मि रविजा के ब्लॉग से होती हुई अंशुमाला के ब्लॉग तक पहुंची पूरी मेरी नज़र में दुबारा घूम गयी .
जिस अंश को ऊपर मैने दिया हैं वो आज सुबह किताब में पढ़ा था , फिर नेट पर खोज कर यहाँ पेस्ट किया . ये किताब 19 2 7 में पहली बार पब्लिश हुई थी और जिस समय का ये विवरण हैं वो साल था 18 9 7 , यानी आज से तक़रीबन 1 1 5 साल पहले .
गाँधी जी कहते हैं भारत में
बाल विवाह के कारण ,
पति पढ़ा लिखा ,
पत्नी बिलकुल निरक्षर ,
होने के कारण
उनके बीच गहरी खाई
जिसकी वजह से
पति को पत्नी का "टीचर " बनना पड़ता था
कितनी अजीब बात हैं आज ११ ५ साल बाद भी समाज की यही सोच हैं की पति को अपनी पत्नी को अपने हिसाब से सक्षम बना लेना चाहिये
एक तरफ हम नारी सशक्तीकरण की बात करते हैं , स्त्री पुरुष लिंग विबेध से ऊपर उठ कर समानता की बात करते हैं और दूसरी तरफ हम पुरुषो से ये भी उम्मीद करते हैं की वो अपनी पत्नी के टीचर बने .
क्या ये कुछ ज्यादा उम्मीद करना नहीं हुआ ?
आज के युग में जब समानता की बात हो रही हैं तो हम कैसे ये सोच सकते हैं की वो लड़के जो आज 2 ५ -30 वर्ष के हैं वो अपनी पत्नी को " सक्षम " बनाने के लिये उनके "टीचर " बन जाए . इन लड़को ने अपने बचपन से लेकर विवाह तक यही सुना हैं की लड़किया लड़को के बराबर हैं . बेटे और बेटी के अधिकार बराबर हैं . कानून और संविधान में स्त्री और पुरुष के अधिकार बराबर हैं फिर वो कैसे और क्यूँ अपनी पत्नी को "कुछ सिखाने " में अपना समय दे . क्यूँ उनको ये उम्मीद नहीं होनी चाहिये की उनकी पत्नी उनके समान ही सब कुछ करने में सक्षम होंगी .
और अगर वो "टीचर" बनता भी हैं तो फिर क्या गाँधी जी के कथन अनुसार एक हिन्दू पत्नी के लिये उसका सबसे बड़ा धर्म अपने पति की बात मानना होता हैं आज भी मान्य नहीं होना चाहिये .
हम कुछ ज्यादा की उम्मीद कर रहे हैं उस आधी आबादी से जिसके बराबर हम मानते हैं की हम हैं .
अपने जीवन साथी को उसके गुण दोष के साथ कोई तब ही अपना सकता हैं जब दोनों साथी बराबर हो .
लेकिन
आज भी ये उम्मीद तो यही हैं की एक साथी यानी पति अपने हिसाब से अपने जीवन साथी को "सीखा पढ़ा कर " अपने और अपने परिवार के लिये "ढाल" ले
और
दूसरा साथी यानी पत्नी "सहनशीलता" से अपने साथी से "सीख पढ़ कर " उस के परिवार के योग्य अपने को बनाले .
समानता और बराबरी के युग में , ये दोनों साथी गुरु और शिष्य , पूज्य और पूजक बने रहे तो फिर साथी कैसे रह पायेगे क्युकी दोनों आज भी दो अलग अलग सीढ़ियों पर ही खड़े हैं बस फरक इतना हैं की दोनों को एक बात समझ आ चुकी हैं की वो बराबर हैं .
इस बराबरी की बात से लडके उम्मीद करने लगे हैं की उनकी पत्नी हर प्रकार से सक्षम हो कर उनकी जीवन साथी बन रही हैं लेकिन वास्तविक स्थिति बिलकुल भिन्न हैं .
कारण बहुत से हैं , जिनकी चर्चा पिछली बहस में हो चुकी हैं
मुझे तो गाँधी जी का कथन पढ़ कर बस इतना लगा की ११ ५ साल में भी हमारे समाज की सोच में बदलाव बहुत कम हुआ हैं . जो हुआ भी हैं उसकी वजह से एक असुंतलन की स्थिति की और हम बढ़ रहे हैं