- इस दुनिया में एक पिता एक भाई अपनी पुत्री और बहिन का बलात्कार करता हैं , मै एक ऐसे परिवार को जानती हूँ जहां एक बेटे ने अपनी माँ का बलात्कार करने की कोशिश की और दुसरे परिवार में एक भाई बहिन पति पत्नी की तरह रहते हैं
ये सब जो हुआ हैं वो नारी के प्रति हिंसा में आता हैं इसका रिश्तो और संबंधो से कोई लेना देना है ही नहीं
बहुत से लोग उन महिला के प्रति हिंसक नहीं होते जो रिश्ते में उनकी माँ , बहिन , बीवी या बेटी हैं लेकिन अगर रिश्ता नहीं हैं तो उनके लिये वो महज एक महिला हैं यानी एक शरीर मात्र
ऐसे आर्टिकल केवल उन विषयों पर बात करते हैं जिन पर बहुत बाते हो चुकी हैं बुत वो उन पर बात नहीं करते जहां कोई सम्बन्ध की बात ना हो
नारी के प्रति हिंसक होना केवल पुरुष का अपने को "बलवान " और " उच्च " सिद्ध करना होता हैं
" जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की " "The Indian Woman Has Arrived " एक कोशिश नारी को "जगाने की " , एक आवाहन कि नारी और नर को समान अधिकार हैं और लिंगभेद / जेंडर के आधार पर किया हुआ अधिकारों का बंटवारा गलत हैं और अब गैर कानूनी और असंवैधानिक भी . बंटवारा केवल क्षमता आधारित सही होता है
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
हिन्दी ब्लोगिंग का पहला कम्युनिटी ब्लॉग जिस पर केवल महिला ब्लॉगर ब्लॉग पोस्ट करती हैं ।
यहाँ महिला की उपलब्धि भी हैं , महिला की कमजोरी भी और समाज के रुढ़िवादि संस्कारों का नारी पर असर कितना और क्यों ? हम वहीलिख रहे हैं जो हम को मिला हैं या बहुत ने भोगा हैं । कई बार प्रश्न किया जा रहा हैं कि अगर आप को अलग लाइन नहीं चाहिये तो अलग ब्लॉग क्यूँ ??इसका उत्तर हैं कि " नारी " ब्लॉग एक कम्युनिटी ब्लॉग हैं जिस की सदस्या नारी हैं जो ब्लॉग लिखती हैं । ये केवल एक सम्मिलित प्रयास हैं अपनी बात को समाज तक पहुचाने का ।
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
15th august 2011
नारी ब्लॉग हिंदी ब्लॉग जगत का पहला ब्लॉग था जहां महिला ब्लोगर ही लिखती थी
२००८-२०११ के दौरान ये ब्लॉग एक साझा मंच था महिला ब्लोगर का जो नारी सशक्तिकरण की पक्षधर थी और जो ये मानती थी की नारी अपने आप में पूर्ण हैं . इस मंच पर बहुत से महिला को मैने यानी रचना ने जोड़ा और बहुत सी इसको पढ़ कर खुद जुड़ी . इस पर जितना लिखा गया वो सब आज भी उतना ही सही हैं जितना जब लिखा गया .
१५ अगस्त २०११ से ये ब्लॉग साझा मंच नहीं रहा . पुरानी पोस्ट और कमेन्ट नहीं मिटाये गए हैं और ब्लॉग आर्कईव में पढ़े जा सकते हैं .
नारी उपलब्धियों की कहानिया बदस्तूर जारी हैं और नारी सशक्तिकरण की रहा पर असंख्य महिला "घुटन से अपनी आज़ादी खुद अर्जित कर रही हैं " इस ब्लॉग पर आयी कुछ पोस्ट / उनके अंश कई जगह कॉपी कर के अदल बदल कर लिख दिये गये हैं . बिना लिंक या आभार दिये क़ोई बात नहीं यही हमारी सोच का सही होना सिद्ध करता हैं
15th august 2012
१५ अगस्त २०१२ से ये ब्लॉग साझा मंच फिर हो गया हैं क़ोई भी महिला इस से जुड़ कर अपने विचार बाँट सकती हैं
"नारी" ब्लॉग
"नारी" ब्लॉग को ब्लॉग जगत की नारियों ने इसलिये शुरू किया ताकि वह नारियाँ जो सक्षम हैं नेट पर लिखने मे वह अपने शब्दों के रास्ते उन बातो पर भी लिखे जो समय समय पर उन्हे तकलीफ देती रहीं हैं । यहाँ कोई रेवोलुशन या आन्दोलन नहीं हो रहा हैं ... यहाँ बात हो रही हैं उन नारियों की जिन्होंने अपने सपनो को पूरा किया हैं किसी ना किसी तरह । कभी लड़ कर , कभी लिख कर , कभी शादी कर के , कभी तलाक ले कर । किसी का भी रास्ता आसन नहीं रहा हैं । उस रास्ते पर मिले अनुभवो को बांटने की कोशिश हैं "नारी " और उस रास्ते पर हुई समस्याओ के नए समाधान खोजने की कोशिश हैं " नारी " । अपनी स्वतंत्रता को जीने की कोशिश , अपनी सम्पूर्णता मे डूबने की कोशिश और अपनी सार्थकता को समझने की कोशिश ।
" नारी जिसने घुटन से अपनी आज़ादी ख़ुद अर्जित की "
हाँ आज ये संख्या बहुत नहीं हैं पर कम भी नहीं हैं । कुछ को मै जानती हूँ कुछ को आप । और आप ख़ुद भी किसी कि प्रेरणा हो सकती । कुछ ऐसा तों जरुर किया हैं आपने भी उसे बाटें । हर वह काम जो आप ने सम्पूर्णता से किया हो और करके अपनी जिन्दगी को जिया हो । जरुरी है जीना जिन्दगी को , काटना नही । और सम्पूर्णता से जीना , वो सम्पूर्णता जो केवल आप अपने आप को दे सकती हैं । जरुरी नहीं हैं की आप कमाती हो , जरुरी नहीं है की आप नियमित लिखती हो । केवल इतना जरुरी हैं की आप जो भी करती हो पूरी सच्चाई से करती हो , खुश हो कर करती हो । हर वो काम जो आप करती हैं आप का काम हैं बस जरुरी इतना हैं की समय पर आप अपने लिये भी समय निकालती हो और जिन्दगी को जीती हो ।
नारी ब्लॉग को रचना ने ५ अप्रैल २००८ को बनाया था
January 30, 2013
January 29, 2013
क्या परिभाषा हैं बच्चे की ?? क्या महज नाबालिग होने से कोई बच्चा हो जाता हैं
दिल्ली गैंग रेप के एक दोषी को नाबालिग मान लिया गया हैं उसके स्कूल के सर्टिफिकेट के हिसाब से .
इस अपराधी की उम्र 17.5 साल हैं
किसी भी नाबालिग अपराधी को केवल और केवल 3 वर्ष की सजा ही हो सकती हैं
सजा पूरी होने से पहले अगर अप्रादी 18 वर्ष का हो जाता हैं तो सजा ख़तम हो जाती हैं
इस का सीधा मतलब हुआ की ये अपराधी जून के बाद फिर किसी का "रेप " करने के लिये खुला छोड़ दिया जाएगा . क्युकी जून तक ये असम्भव हैं की इसकी ओवर हौलिंग करके इसे पशु से इंसान बनाया जा सके
ये वो अपराधी हैं जिसने एक लड़की का बलात्कार किया
फिर उसके शरीर के अन्दर लोहे की छड डाली
फिर उसकी आंते उस छड से बाहर निकाली
इस घिनोने काम से बेहोश हो चुकी लड़की के साथ फिर बलात्कार किया
जुते से उसके अंगो को मसला
उसके बाद उसको "ले मर साली " कहा
फिर अपने साथियो को उस लड़की को कपड़े उतार कर उसके मित्र के साथ सड़क पर फेंक कर उनके ऊपर से बस ले जा कर उनको मारने के लिये उकसाया
क्या आप को लगता हैं ये सब काम एक " बच्चा " भी अगर करे तो वो माफ़ी के काबिल हैं .
क्या परिभाषा हैं बच्चे की ?? क्या महज नाबालिग होने से कोई बच्चा हो जाता हैं
क्या रेप यानि बलात्कार ये यौन से सम्बंधित अपराधी को बच्चा मानना सही हैं वो भी जब वो 17.5 साल का हो चुका हैं .
एक तरफ हम बाल विवाह को अपराध ,मानते हैं तो दूसरी तरफ हम इस अपराधी को "ना बालिग " मानते हैं .
क्यूँ बाल विवाह एक अपराध हैं और नाबालिग के द्वारा किया गया बलात्कार अपराध होते हुए भी उसको सजा का प्रावधान नहीं .
आप निष्पक्ष राय दे . कमेन्ट स्पैम में जा सकते इस लिये मुझे समय दे उनको बाहर लाने के लिये .
इस अपराधी की उम्र 17.5 साल हैं
किसी भी नाबालिग अपराधी को केवल और केवल 3 वर्ष की सजा ही हो सकती हैं
सजा पूरी होने से पहले अगर अप्रादी 18 वर्ष का हो जाता हैं तो सजा ख़तम हो जाती हैं
इस का सीधा मतलब हुआ की ये अपराधी जून के बाद फिर किसी का "रेप " करने के लिये खुला छोड़ दिया जाएगा . क्युकी जून तक ये असम्भव हैं की इसकी ओवर हौलिंग करके इसे पशु से इंसान बनाया जा सके
ये वो अपराधी हैं जिसने एक लड़की का बलात्कार किया
फिर उसके शरीर के अन्दर लोहे की छड डाली
फिर उसकी आंते उस छड से बाहर निकाली
इस घिनोने काम से बेहोश हो चुकी लड़की के साथ फिर बलात्कार किया
जुते से उसके अंगो को मसला
उसके बाद उसको "ले मर साली " कहा
फिर अपने साथियो को उस लड़की को कपड़े उतार कर उसके मित्र के साथ सड़क पर फेंक कर उनके ऊपर से बस ले जा कर उनको मारने के लिये उकसाया
क्या आप को लगता हैं ये सब काम एक " बच्चा " भी अगर करे तो वो माफ़ी के काबिल हैं .
क्या परिभाषा हैं बच्चे की ?? क्या महज नाबालिग होने से कोई बच्चा हो जाता हैं
क्या रेप यानि बलात्कार ये यौन से सम्बंधित अपराधी को बच्चा मानना सही हैं वो भी जब वो 17.5 साल का हो चुका हैं .
एक तरफ हम बाल विवाह को अपराध ,मानते हैं तो दूसरी तरफ हम इस अपराधी को "ना बालिग " मानते हैं .
क्यूँ बाल विवाह एक अपराध हैं और नाबालिग के द्वारा किया गया बलात्कार अपराध होते हुए भी उसको सजा का प्रावधान नहीं .
आप निष्पक्ष राय दे . कमेन्ट स्पैम में जा सकते इस लिये मुझे समय दे उनको बाहर लाने के लिये .
January 23, 2013
पता नहीं शोषण हैं ये सब या नहीं , क्यूँ पैदा किया जाता हैं इन सब को ??
गाजियाबाद से दिल्ली आये लगभग 8 महीने हो चले हैं . यूँ तो लखनऊ से माँ - पिता के साथ दिल्ली 1965 में ही आगयी थी पर 1977 से गाजियाबाद में ही रहना बसना था .
दिल्ली में जसोला { अपोलो अस्पताल के पास } जब से शिफ्ट किया हैं यहाँ एक अनुभव हुआ हैं . दिल्ली मे लोग खाना खुद नहीं बनाते हैं . यहाँ जिस डी डी ऐ फ्लैट काम्प्लेक्स में फ्लैट हैं वहाँ तकरीबन 400 फ्लैट हैं . इन 400 फ्लैट में कम से 300 फ्लैट में खाना घर का कोई सदस्य नहीं बनाता हैं .
कौन बनाता हैं फिर खाना ??
लीजिये उस व्यक्ति की जीवनचर्या से परिचित कराती हूँ
उम्र 12 साल से 17 साल के बीच
जेंडर स्त्रीलिंग
सुबह 6.30 बजे इनकी माँ इनको उठा देती हैं और भूखे पेट ,तक़रीबन 30 मिनट पैदल चल कर ये उस पहली जगह पहुचती हैं जहां इनको नाश्ता बनाना हैं . सर्दी , गर्मी , बरसात इनके नियम में परिवर्तन नहीं हैं . नाश्ता यानी सब्जी पराठा और चाय . वही ये नाश्ता बना कर , खिला कर { कम से कम 5 सदस्य } खुद भी चाय पीती हैं और अगर तय हैं तो नाश्ता करती हैं पर ज्यादा बार केवल चाय ही मिलती हैं . इसके लिये 800 रुपये
अब समय हैं 8.30 बजे और ये दूसरी जगह पहुच कर बर्तन धोने का काम और झाड़ू पोछे का काम करती हैं . एक घंटे ये काम होता हैं और इसके लिये 1000 रुपया मिलता हैं लेकिन बर्तन धोने के लिये शाम को भी आना होता हैं
अब समय हैं 10.30 और ये तीसरी जगह जाती हैं जहां इनको 5 लोगो का खाना बनाना होता हैं . समय होता हैं 12.30 दोपहर .
अब ये अपने घर वापस आती हैं और नाशता या खाना जो भी हो खाती हैं / बनाती हैं . इसके बाद अपने घर के काम निपटाती हैं क्युकी माँ किसी के यहाँ कपड़े धो रही होती हैं या यही काम कर रही होती हैं
इसके बाद 3 बजे से इनकी यही दिन चर्या दुबारा शुरू होती हैं यानी सुबह के बर्तन धोना , फिर शाम के लिये खाना बनाना और शाम को 6.30 बजे तक घर जाना .
इनके परिवारों में कम से 5-6 लडकियां जरुर हैं जो काम करती हैं और 6 साल की उम्र से कर रही हैं . यानी 6 साल की बच्ची बर्तन धोना , सब्जी इत्यादि काटना , कपड़े धोना करती हैं , आता गूंथना इत्यादि करती हैं और 8 साल तक की उम्र पर ये खाना बनाने का काम करना शुरू कर देती हैं .
उस पर भी इनके अभिभावक इनके लिये ज्यादा से ज्यादा काम खोजते रहते हैं . कयी जगह ये सुबह 8 बजे से शाम को 6 बजे तक रहती हैं 4000 रूपए पाती हैं पर उस से भी संतुष्टि नहीं हैं , सुबह 6.30 बजे इनको पहले किसी जगह नाश्ता बनाना होता हैं फिर वही रात को 6.30 बजे से 8.30 के बीच में खाना पकाना .
सब मिला कर एक लड़की 6000 रूपए प्रति माह अवश्य पाती हैं लेकिन
इस पैसे पर उसका अधिकार नहीं होता . एक रुपया भी उसको नहीं दिया जाता हैं . माँ कहती हैं तेरे लिये ही जोड़ रही हूँ कम से 2 लाख तेरी शादी में खर्च होगा ही .
इनके हर घर में माँ बेटी में तनाव पानी चरम सीमा पर होता हैं . इन मे से कोई भी लड़की अपनी मर्जी से काम करने नहीं आती हैं . सबको भेज जाता हैं . बेमन से पूरा दिन इनसे "बेगार " करवाई जाती हैं .
इन घरो में लडको का हाल भी कुछ बेहतर नहीं हैं . 6-12 वर्ष के लडके दुकानों पर लगे होते हैं और साइकल से "फ्री होम डिलीवरी " का काम करते हैं और इनको तकरीबन 2000 रूपए मिलते हैं .
कभी कभी लगता हैं ये जो हम सब के घरो में इस प्रकार से काम लेने की , खाना बनवाने की प्रक्रिया हम किसी दुसरे से करवाते हैं उसका क्या प्रभाव हम सब पर पड़ता होगा ? क्या इनका बनाया खाना जो बेमन से होता हैं हम सब वो पोषण देता होगा जो भोजन का काम हैं
पता नहीं शोषण हैं ये सब या नहीं , क्यूँ पैदा किया जाता हैं इन सब को ?? क्यूँ हम सब अपना काम खुद करने की और अग्रसर नहीं होते हैं .
विदेशो में तो सब काम खुद किया जाता हैं फिर यहाँ क्यूँ नहीं
अजीब आत्म मंथन हैं आज यहाँ इन शब्दों में .
दिल्ली में जसोला { अपोलो अस्पताल के पास } जब से शिफ्ट किया हैं यहाँ एक अनुभव हुआ हैं . दिल्ली मे लोग खाना खुद नहीं बनाते हैं . यहाँ जिस डी डी ऐ फ्लैट काम्प्लेक्स में फ्लैट हैं वहाँ तकरीबन 400 फ्लैट हैं . इन 400 फ्लैट में कम से 300 फ्लैट में खाना घर का कोई सदस्य नहीं बनाता हैं .
कौन बनाता हैं फिर खाना ??
लीजिये उस व्यक्ति की जीवनचर्या से परिचित कराती हूँ
उम्र 12 साल से 17 साल के बीच
जेंडर स्त्रीलिंग
सुबह 6.30 बजे इनकी माँ इनको उठा देती हैं और भूखे पेट ,तक़रीबन 30 मिनट पैदल चल कर ये उस पहली जगह पहुचती हैं जहां इनको नाश्ता बनाना हैं . सर्दी , गर्मी , बरसात इनके नियम में परिवर्तन नहीं हैं . नाश्ता यानी सब्जी पराठा और चाय . वही ये नाश्ता बना कर , खिला कर { कम से कम 5 सदस्य } खुद भी चाय पीती हैं और अगर तय हैं तो नाश्ता करती हैं पर ज्यादा बार केवल चाय ही मिलती हैं . इसके लिये 800 रुपये
अब समय हैं 8.30 बजे और ये दूसरी जगह पहुच कर बर्तन धोने का काम और झाड़ू पोछे का काम करती हैं . एक घंटे ये काम होता हैं और इसके लिये 1000 रुपया मिलता हैं लेकिन बर्तन धोने के लिये शाम को भी आना होता हैं
अब समय हैं 10.30 और ये तीसरी जगह जाती हैं जहां इनको 5 लोगो का खाना बनाना होता हैं . समय होता हैं 12.30 दोपहर .
अब ये अपने घर वापस आती हैं और नाशता या खाना जो भी हो खाती हैं / बनाती हैं . इसके बाद अपने घर के काम निपटाती हैं क्युकी माँ किसी के यहाँ कपड़े धो रही होती हैं या यही काम कर रही होती हैं
इसके बाद 3 बजे से इनकी यही दिन चर्या दुबारा शुरू होती हैं यानी सुबह के बर्तन धोना , फिर शाम के लिये खाना बनाना और शाम को 6.30 बजे तक घर जाना .
इनके परिवारों में कम से 5-6 लडकियां जरुर हैं जो काम करती हैं और 6 साल की उम्र से कर रही हैं . यानी 6 साल की बच्ची बर्तन धोना , सब्जी इत्यादि काटना , कपड़े धोना करती हैं , आता गूंथना इत्यादि करती हैं और 8 साल तक की उम्र पर ये खाना बनाने का काम करना शुरू कर देती हैं .
उस पर भी इनके अभिभावक इनके लिये ज्यादा से ज्यादा काम खोजते रहते हैं . कयी जगह ये सुबह 8 बजे से शाम को 6 बजे तक रहती हैं 4000 रूपए पाती हैं पर उस से भी संतुष्टि नहीं हैं , सुबह 6.30 बजे इनको पहले किसी जगह नाश्ता बनाना होता हैं फिर वही रात को 6.30 बजे से 8.30 के बीच में खाना पकाना .
सब मिला कर एक लड़की 6000 रूपए प्रति माह अवश्य पाती हैं लेकिन
इस पैसे पर उसका अधिकार नहीं होता . एक रुपया भी उसको नहीं दिया जाता हैं . माँ कहती हैं तेरे लिये ही जोड़ रही हूँ कम से 2 लाख तेरी शादी में खर्च होगा ही .
इनके हर घर में माँ बेटी में तनाव पानी चरम सीमा पर होता हैं . इन मे से कोई भी लड़की अपनी मर्जी से काम करने नहीं आती हैं . सबको भेज जाता हैं . बेमन से पूरा दिन इनसे "बेगार " करवाई जाती हैं .
इन घरो में लडको का हाल भी कुछ बेहतर नहीं हैं . 6-12 वर्ष के लडके दुकानों पर लगे होते हैं और साइकल से "फ्री होम डिलीवरी " का काम करते हैं और इनको तकरीबन 2000 रूपए मिलते हैं .
कभी कभी लगता हैं ये जो हम सब के घरो में इस प्रकार से काम लेने की , खाना बनवाने की प्रक्रिया हम किसी दुसरे से करवाते हैं उसका क्या प्रभाव हम सब पर पड़ता होगा ? क्या इनका बनाया खाना जो बेमन से होता हैं हम सब वो पोषण देता होगा जो भोजन का काम हैं
पता नहीं शोषण हैं ये सब या नहीं , क्यूँ पैदा किया जाता हैं इन सब को ?? क्यूँ हम सब अपना काम खुद करने की और अग्रसर नहीं होते हैं .
विदेशो में तो सब काम खुद किया जाता हैं फिर यहाँ क्यूँ नहीं
अजीब आत्म मंथन हैं आज यहाँ इन शब्दों में .
January 21, 2013
कौन जिम्मेदार हैं इस दर्द ??? पोस्ट पर एक कमेन्ट आया हैं
कौन जिम्मेदार हैं इस दर्द ??? पोस्ट पर एक कमेन्ट आया हैं
हमारा समाज ,हमारा परिवार , और कहीं न कहीं हम खुद ....एक सच्चाई जो मैंने खुद देखी है ...
"हमारे मोहल्ले में एक भैया हैं ..मतलब जिन्हें सब भैया कहतें हैं ...मैं जब कुछ दिनों के लिए अपने घर गई तो मेरे मम्मी ने कहा वो देखो बेचारा बिना किसी बात के जेल में है , तो मैंने पुछा क्या हुआ मम्मी बिना बात के तो किसी को जेल नहीं होती इस पर मम्मी का कहना कुछ यूं था ...पांच साल का केश खुलवाया है मायावती ने उसमें गैंग रेप केश में फंस गया बेचारा ....तो मैंने मम्मी से कहा उनको देखकर ही डर लगता है तुम उनकी तरफदारी क्यों कर रही हो, ऐसे इंसान को तो सजा मिलनी ही चाहिए, इस पर मम्मी तपाक से बोल पड़ी कि हाँ तुमको ज्यादा पता है तुम तो यहाँ रहती भी नहीं हो तुम्हे क्या पता बेचारे के 2 छोटे -छोटे बच्चे हैं, पांच साल पहले कि गलती की सजा भला अब क्यों, तब मैंने अपनी मम्मी को बहुत समझाया पर नहीं वो नहीं समझी पर अब जब उनकी ज़मानत हो गई है तो वो खुद कहते हैं कि "मेरे कर्मो की सजा मुझे मिल गई" ....बहुत शर्मनाक है ये ....पर उस लड़की की क्या गलती थी जिसको वो सजा मिली ... ऐसे इंसान को खुला खुमने की या समाज में इज्ज़त कुन मिलती है ...सबको सच्चाई पता है आज फिर भी लोग उस इंसान से बात करतें है, हमदर्दी जतातें है , हर सामाजिक कार्यकर्म में बुलातें हैं क्यों ....मैं आज तक न समझ पाई ...और शायद न समझ पाऊँगी ...
"हमारे मोहल्ले में एक भैया हैं ..मतलब जिन्हें सब भैया कहतें हैं ...मैं जब कुछ दिनों के लिए अपने घर गई तो मेरे मम्मी ने कहा वो देखो बेचारा बिना किसी बात के जेल में है , तो मैंने पुछा क्या हुआ मम्मी बिना बात के तो किसी को जेल नहीं होती इस पर मम्मी का कहना कुछ यूं था ...पांच साल का केश खुलवाया है मायावती ने उसमें गैंग रेप केश में फंस गया बेचारा ....तो मैंने मम्मी से कहा उनको देखकर ही डर लगता है तुम उनकी तरफदारी क्यों कर रही हो, ऐसे इंसान को तो सजा मिलनी ही चाहिए, इस पर मम्मी तपाक से बोल पड़ी कि हाँ तुमको ज्यादा पता है तुम तो यहाँ रहती भी नहीं हो तुम्हे क्या पता बेचारे के 2 छोटे -छोटे बच्चे हैं, पांच साल पहले कि गलती की सजा भला अब क्यों, तब मैंने अपनी मम्मी को बहुत समझाया पर नहीं वो नहीं समझी पर अब जब उनकी ज़मानत हो गई है तो वो खुद कहते हैं कि "मेरे कर्मो की सजा मुझे मिल गई" ....बहुत शर्मनाक है ये ....पर उस लड़की की क्या गलती थी जिसको वो सजा मिली ... ऐसे इंसान को खुला खुमने की या समाज में इज्ज़त कुन मिलती है ...सबको सच्चाई पता है आज फिर भी लोग उस इंसान से बात करतें है, हमदर्दी जतातें है , हर सामाजिक कार्यकर्म में बुलातें हैं क्यों ....मैं आज तक न समझ पाई ...और शायद न समझ पाऊँगी ...
January 19, 2013
January 18, 2013
कौन जिम्मेदार हैं इस दर्द ???
आज कल हिन्दुस्तान टाइम्स अखबार में दूसरे पेज पर उन महिला के संस्मरण छापे जा रहे हैं जिनका कभी ना कभी बलात्कार या मोलेस्टेशन यानी शारीरक शोषण हुआ हैं .
ये संस्मरण आप ई संस्करण में हर दिन 2 नंबर के पेज पर पढ़ सकते हैं
ज्योति सिंह पाण्डेय के साथ जो 16 दिसम्बर को हुआ वो कोई अपवाद नहीं था वो एक आम घटना थी जो रोज किसी ना किसी महिला के साथ , बच्ची के साथ , बूढी के साथ हो रही हैं .
ज्योति सिंह पाण्डेय ने अपनी माँ को बहुत विस्तार से बताया था जिस लड़की के विचार यहाँ दिये गए हैं वो लड़की मर ने तक उन लोगो को जला कर मारने की बात कर रही थी जिन्होने उसके अन्दर रोड डाल कर उसकी आंतो को बाहर निकाल था
एक लिंक दे रही हूँ उसकी क्या कामना और इच्छा थी उस लिंक पर मिल जाएगी
http://epaper.timesofindia.com/Default/Client.asp?Daily=CAP&showST=true&login=default&pub=TOI&Enter=true&Skin=TOINEW&AW=1358158373125
उसी प्रकार से हिन्दुस्तान टाइम्स बहुत सी महिला की मुंह जबानी उनके दर्द की दास्ताँ सुनवा रही हैं
पढिये जरुर http://paper.hindustantimes.com/epaper/viewer.aspx
पर जा कर प्रष्ट संख्या 2 पर जाए
पूरे हफ्ते के संस्मरण पढिये जरुर
कौन जिम्मेदार हैं इस दर्द का जो इन संस्मरण के शब्दों में हैं ????
ये संस्मरण आप ई संस्करण में हर दिन 2 नंबर के पेज पर पढ़ सकते हैं
ज्योति सिंह पाण्डेय के साथ जो 16 दिसम्बर को हुआ वो कोई अपवाद नहीं था वो एक आम घटना थी जो रोज किसी ना किसी महिला के साथ , बच्ची के साथ , बूढी के साथ हो रही हैं .
ज्योति सिंह पाण्डेय ने अपनी माँ को बहुत विस्तार से बताया था जिस लड़की के विचार यहाँ दिये गए हैं वो लड़की मर ने तक उन लोगो को जला कर मारने की बात कर रही थी जिन्होने उसके अन्दर रोड डाल कर उसकी आंतो को बाहर निकाल था
एक लिंक दे रही हूँ उसकी क्या कामना और इच्छा थी उस लिंक पर मिल जाएगी
http://epaper.timesofindia.com/Default/Client.asp?Daily=CAP&showST=true&login=default&pub=TOI&Enter=true&Skin=TOINEW&AW=1358158373125
उसी प्रकार से हिन्दुस्तान टाइम्स बहुत सी महिला की मुंह जबानी उनके दर्द की दास्ताँ सुनवा रही हैं
पढिये जरुर http://paper.hindustantimes.com/epaper/viewer.aspx
पर जा कर प्रष्ट संख्या 2 पर जाए
पूरे हफ्ते के संस्मरण पढिये जरुर
कौन जिम्मेदार हैं इस दर्द का जो इन संस्मरण के शब्दों में हैं ????
January 10, 2013
मेरा सर उन दोनों के नमन में झुका हैं और शर्म से भी झुका हैं की हम अपने जवान फौजियों को बचा नहीं पाते
अल ओ सी पर पकिस्तान ने हमारे 2 फौजी भाई मार दिये और बेहद दर्दनाक मौत दी हैं ये 2003 के सीज फायर कानून का उलंघन हैं .
मेरा सर उन दोनों के नमन में झुका हैं और शर्म से भी झुका हैं की हम अपने जवान फौजियों को बचा नहीं पाते .
क्यूँ हम जवाब में युद्ध नहीं कर रहे ?
कारगिल के शहीद भी युद्ध के शहीद नहीं माने जाते हैं क्युकी युद्ध तो हुआ ही नहीं ?
क्या इस प्रकार से छल कपट से मरने के लिये ही हमने अपनी फ़ौज को अल ओ सी पर तैनात किया हैं .
हम सब तो अपने घर में हैं इस ठण्ड में और वहाँ इनके सर काट कर फौजी को मौत की नींद सुलाया जा रहा हैं
क्यूँ हम सौहार्द की बात करते हैं उस मुल्क से जिसको इस शब्द का मतलब नहीं पता .
मेरा सर उन दोनों के नमन में झुका हैं और शर्म से भी झुका हैं की हम अपने जवान फौजियों को बचा नहीं पाते .
क्यूँ हम जवाब में युद्ध नहीं कर रहे ?
कारगिल के शहीद भी युद्ध के शहीद नहीं माने जाते हैं क्युकी युद्ध तो हुआ ही नहीं ?
क्या इस प्रकार से छल कपट से मरने के लिये ही हमने अपनी फ़ौज को अल ओ सी पर तैनात किया हैं .
हम सब तो अपने घर में हैं इस ठण्ड में और वहाँ इनके सर काट कर फौजी को मौत की नींद सुलाया जा रहा हैं
क्यूँ हम सौहार्द की बात करते हैं उस मुल्क से जिसको इस शब्द का मतलब नहीं पता .
January 08, 2013
आर पार की लड़ाई
हर लड़ाई जब अपने पीक पर पहुचती हैं तो आमने सामने की लड़ाई होती हैं . यानी या तो आक्रमण करने वाला आप को मार देगा या आप आक्रमण करने वाले को मार देगे
आक्रमण करने वाले को मारना " आत्मा रक्षा " माना जाता हैं और इस के लिये कानून कोई सजा नहीं देता हैं .
इस देश मे आज उन महिला को कानून दोषी नहीं मान रहा हैं जिन्होने किसी बलात्कारी पुरुष को मारा हो . { जो इस बात को नहीं जानते हैं वो ज़रा अखबार ध्यान से पढ़े }
आज देश में लड़कियों को बलात्कार करने के बाद मारने की शुरुवात हो चुकी हैं , दिल्ली रेप के बाद नॉएडा में इसी प्रकार की हुई हैं
दिल्ली रेप बाद लड़कियों ने सेल्फ डिफेन्स के लिये पिस्टल के लाइसेंस लेना शुरू कर दिया हैं और ये संख्या 2012 में पहले से काफी ज्यादा हैं { अगेन प्लीज रीड पेपर }
अब समय जीओ और जी ने दो से बदल कर मारो या मर जाओ हो गया हैं
आक्रमण करने वाले को मारना " आत्मा रक्षा " माना जाता हैं और इस के लिये कानून कोई सजा नहीं देता हैं .
इस देश मे आज उन महिला को कानून दोषी नहीं मान रहा हैं जिन्होने किसी बलात्कारी पुरुष को मारा हो . { जो इस बात को नहीं जानते हैं वो ज़रा अखबार ध्यान से पढ़े }
आज देश में लड़कियों को बलात्कार करने के बाद मारने की शुरुवात हो चुकी हैं , दिल्ली रेप के बाद नॉएडा में इसी प्रकार की हुई हैं
दिल्ली रेप बाद लड़कियों ने सेल्फ डिफेन्स के लिये पिस्टल के लाइसेंस लेना शुरू कर दिया हैं और ये संख्या 2012 में पहले से काफी ज्यादा हैं { अगेन प्लीज रीड पेपर }
अब समय जीओ और जी ने दो से बदल कर मारो या मर जाओ हो गया हैं
January 07, 2013
comment
She died not in an effort to save her but she started the fight to save the boy who was with her . She was warrior and she was raped because of being a warrior and fighter . The rapist had to “teach her a lesson ” as they have themself said because she was very furious and fiery . She bit them with her teeth to stop them hitting her friend .
She should be remembered because she was brave and not because she was gang raped . She did nothing to protect her on the contrary she fought to protect her friend .
She should be remembered because she was brave and not because she was gang raped . She did nothing to protect her on the contrary she fought to protect her friend .
The society { me included } is crying loud and hoarse because she was gang raped brutally on the contrary i feel they should talk about her bravery , her courage to fight 6 man single handed as her friend had fainted when hit by a rod
http://indianhomemaker.wordpress.com/2013/01/06/jyoti-singh-pandey-delhi-bus-gang-rape-victims-name/#comment-155931
January 05, 2013
January 02, 2013
" ह्यूमन राइट्स के पुरोधा "
आज ललित की पोस्ट {लिंक} पढ़ी . ललित ने एक बहुत ही वाजिब प्रश्न किया हैं की "हैरत तब और भी बढ़ जाती है जब इन गीतों को पसंद करने वालों में लड़कियाँ भी शामिल पाई जाती हैं।"
ऐसे ही बहुत बार मेरे मन भी प्रश्न उठते रहे हैं और आज भी उठ रहे हैं की कैसे हिंदी ब्लॉग जगत की बहुत सी महिला हमेशा उन आलेखों की तारीफ़ करती पायी जाती हैं जहां लिंग विभेद अपनी चरम सीमा पर दिखता हैं .
क्या वो इन आलेखों को पढ़ती हैं या महज ईमेल में लिंक मिल जाने के कारण उस जगह जा कर कमेन्ट में " आप ने एक दम सही लिखा " कहना जरुरी समझती हैं .
इस बार जो घटित हुआ यानी जिस प्रकार से बलात्कार हुआ और जिस प्रकार से एक बहादुर लड़की की मृत्यु हुई उसको "एक अपवाद " कह दिया जा रहा हैं इसी ब्लॉग जगत में और तसल्ली दी जा रही हैं दुनिया इतनी भी बुरी नहीं हैं . क्या रेप और बलात्कार अपवाद हैं अगर एक भी होता हैं तो भी क्या हम उसको अपवाद कह सकते हैं . इस बार तो "अति" हुई हैं "अपवाद" नहीं .
एक और पोस्ट पर कहा जा रहा हैं इसको नारी पुरुष के नज़रिये से मत देखिये , ये तो मानवता की बात हैं . एक लड़की का बलात्कार हुआ हैं , वो 23 साल की उम्र में इतनी दर्दनाक मौत का शिकार हुई हैं , और हमारे ब्लॉग जगत के ज्ञानी और विदुषी इसको लिंग आधारित दोष मान ही नहीं रहे हैं . वो लेख पर लिख रहे रहे की हम सब को "अभी सोचना " चाहिये "मानवता " के बारे में .
कभी कभी लगता हैं " ह्यूमन राइट्स के पुरोधा " सब से ज्यादा हिंदी ब्लॉग जगत में ही हैं और उनके साथ यही की कुछ महिला हाँ मे हाँ मिला कर केवल और केवल "ह्यूमन राइट्स " की बात करना चाहती हैं बलात्कार और उसके कारण की नहीं . वो बलात्कार को कंडम तो करते हैं पर मानते हैं ये सब "अपवाद हैं " जबकि अब यू ऍन तक मान चुका हैं की बलात्कार हमारे देश की सबसे बड़ी नेशनल समस्या हैं .
ये वो वक्त हैं जब हम सब को एक साथ खड़े हो कर बहिष्कार करना चाहिये अपने बीच से उन सब का जो "एक शब्द " भी किसी महिला विरुद्ध कहते हैं जो उस महिला को केवल इस लिये कहा जा रहा हैं क्युकी वो महिला हैं . जी हाँ "एक शब्द " भी क्युकी यही से शुरुवात होती हैं विबेध की और उस विबेध को बढ़ावा कोई ना कोई महिला ही देती हैं उस समय उनके साथ खड़े होकर दुसरो को ये समझा कर की "उनका मतलब " वो नहीं था जो समझा गया .
ऐसे ही बहुत बार मेरे मन भी प्रश्न उठते रहे हैं और आज भी उठ रहे हैं की कैसे हिंदी ब्लॉग जगत की बहुत सी महिला हमेशा उन आलेखों की तारीफ़ करती पायी जाती हैं जहां लिंग विभेद अपनी चरम सीमा पर दिखता हैं .
क्या वो इन आलेखों को पढ़ती हैं या महज ईमेल में लिंक मिल जाने के कारण उस जगह जा कर कमेन्ट में " आप ने एक दम सही लिखा " कहना जरुरी समझती हैं .
इस बार जो घटित हुआ यानी जिस प्रकार से बलात्कार हुआ और जिस प्रकार से एक बहादुर लड़की की मृत्यु हुई उसको "एक अपवाद " कह दिया जा रहा हैं इसी ब्लॉग जगत में और तसल्ली दी जा रही हैं दुनिया इतनी भी बुरी नहीं हैं . क्या रेप और बलात्कार अपवाद हैं अगर एक भी होता हैं तो भी क्या हम उसको अपवाद कह सकते हैं . इस बार तो "अति" हुई हैं "अपवाद" नहीं .
एक और पोस्ट पर कहा जा रहा हैं इसको नारी पुरुष के नज़रिये से मत देखिये , ये तो मानवता की बात हैं . एक लड़की का बलात्कार हुआ हैं , वो 23 साल की उम्र में इतनी दर्दनाक मौत का शिकार हुई हैं , और हमारे ब्लॉग जगत के ज्ञानी और विदुषी इसको लिंग आधारित दोष मान ही नहीं रहे हैं . वो लेख पर लिख रहे रहे की हम सब को "अभी सोचना " चाहिये "मानवता " के बारे में .
कभी कभी लगता हैं " ह्यूमन राइट्स के पुरोधा " सब से ज्यादा हिंदी ब्लॉग जगत में ही हैं और उनके साथ यही की कुछ महिला हाँ मे हाँ मिला कर केवल और केवल "ह्यूमन राइट्स " की बात करना चाहती हैं बलात्कार और उसके कारण की नहीं . वो बलात्कार को कंडम तो करते हैं पर मानते हैं ये सब "अपवाद हैं " जबकि अब यू ऍन तक मान चुका हैं की बलात्कार हमारे देश की सबसे बड़ी नेशनल समस्या हैं .
ये वो वक्त हैं जब हम सब को एक साथ खड़े हो कर बहिष्कार करना चाहिये अपने बीच से उन सब का जो "एक शब्द " भी किसी महिला विरुद्ध कहते हैं जो उस महिला को केवल इस लिये कहा जा रहा हैं क्युकी वो महिला हैं . जी हाँ "एक शब्द " भी क्युकी यही से शुरुवात होती हैं विबेध की और उस विबेध को बढ़ावा कोई ना कोई महिला ही देती हैं उस समय उनके साथ खड़े होकर दुसरो को ये समझा कर की "उनका मतलब " वो नहीं था जो समझा गया .
Central Government Act Section 509 in The Indian Penal Code, 1860 509. Word, gesture or act intended to insult the modesty of a woman.-- Whoever, intending to insult the modesty of any woman, utters any word, makes any sound or gesture, or exhibits any object, intending that such word or sound shall be heard, or that such gesture or object shall be seen, by such woman, or intrudes upon the privacy of such woman, shall be punished with simple imprisonment for a term which may extend to one year, or with fine, or with both
आप सब से आग्रह हैं की सेक्शन 509 , इंडियन पेनल कोड की धारा को ध्यान से पढ़े . आप का लिखा एक शब्द भी किसी महिला को खिलाफ ना हो , वो महिला ना भी बोले लेकिन कोई और महिला बोल सकती हैं आवाज भी उठा सकती और अब सजा भी होंगी . ऐसे आलेखों पर ताली बजाना "एबेटमेंट " माना जा सकता हैं.
January 01, 2013
2013 का आगमन
हमारे देश में सुख शांति रहे
हम भारत माता को माता मान कर उसके सम्मान की रक्षा करे
नारी ब्लॉग के पाठक गण
आप सब का नया साल सुख और शांति के साथ बीते .
आप और आपके परिजन इस साल सुरक्षित रहे .
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in this world there are instances where a father a brother rapes the daughter / sister . i know of a family where the son tried to rape his mother
i know a family where a sister and brother have a sexual relationship and enjoy it too
its not about relationships its about criminality against woman
most people never harm a woman they are related to because she happens to be mother or sister or daughter or wife to them but the moment she is not related to them she becomes a WOMAN
such articles only try to focus on issues that have been talked often but they dont talk about issues where relationships dont come into picture
criminality against woman is just to show that "man still has a upper hand "
think about it praveen